Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1113264 times)

Bhishma Kukreti

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  तिमली में  विद्वान बद्री  दत्त  डबराल   परिवार की तिबारी व जंगलेदार निमदारी  में काष्ठ  कला , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , , मोरियों , खोलियों,  कोटि बनाल , छाज    ) काष्ठ कला, नक्कासी   - 131
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

  पहले ही कहा जा चूका है कि पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लॉक के तिमली  गाँव के बारे में प्रसिद्ध था कि वहां के गोर बछर भी संस्कृत में बचियाते हैं।  इस  लोक कथ्य का साफ़ अर्थ था कि १८८८ के लगभग संस्कृत स्कूल खलने से तिमली में संस्कृत विद्वानों की झड़ी लगती गयी।  प्रस्तुत दो भवनों के मालिक भी संस्कृत के प्रकांड विद्वान् परिवार था यथा  -बद्री  दत्त डबराल , आचार्य ललिता प्रसाद डबराल , ईश्वरी दत्त डबराल व डा. गोवर्धन  प्रसाद डबराल से संबंधित है।  आज की पीढ़ी के हिसाब से आशीष डबराल के परिवार का यह पुरातन घर है जिसमे तिबारी व जंगलेदार निमदारी है।  अब इस जगह पर बिलकुल न्य भवन खड़ा हो गया है किंतु कोशिस की गयी कि प्राचीन कला तंतु बरकरार रहें।
विद्वान बद्री दत्त डबराल परिवार के मकानों में काष्ठ कला याने लकड़ी  पर नक्कासी समझने हेतु मकानों को तीन भागों में बाँटना होगा
१- तिबारी वाले मकान में खोली व तिबारी में काष्ठ कला /लकड़ी पर नक्कासी
२- इसी तिबारी के ऊपर तीसरे मंजिल  में जंगले में लकड़ी पर खुदाई
३- बिन तिबारी वाले भवन में जंगले में काष्ठ कला अलंकरण /लकड़ी पर नक्कासी
      -: तिबारी वाले मकान में काष्ठ कला , लकड़ी में नक्कासी :-
 खोली /प्रवेशद्वार  में काष्ठ कला:-  विद्वान् बद्री दत्त डबराल परिवार के तिपुर (1 =2 ), दुखंड /तिभित्या  मकान  में तल मंजिल में खोली दर्शनीय थी जिसे अब नए रंगों से उसी अवस्था में लाने का प्रयत्न किया गया है।  खोली के आंतरिक सिंगाड़ /स्तम्भ व आंतरिक रिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष  में केवल ज्यामिति अंकन /नकासी  हुआ है।  जबकि बाह्य सिंगाड़ों व मुरिन्ड के बहरी वाली पट्टियों में पर्ण -लता व  ज्यामिति कला का अंकन हुआ है।  मुरिन्ड /मथिण्ड  के मध्य बहुदलीय शगुन प्रतीक पुष्प विराजमान है।
मध्य मंजिल में तिबारी में कष्ट कला अंकन या नक्कासी:-   विद्वान् बद्री दत्त डबराल के मकान के मध्य मंजिल में चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ /खोली /द्वार की तिबारी स्थापित हैं।  छज्जे पर स्थित तिबारी के प्रत्येक स्तम्भ में कला अंकित  है व ढांगू उदयपुर की अन्य तिबारियों के स्तम्भों जैसा  ही है ।  आधार पर उलटा कमल फूल से कुम्भी आकर निर्मित होता है फिर  ड्यूल है , इसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल की आकृति अंकित है व यहाँ से स्तम्भ की मोटाई गोलाई में  धीरे धीरे कम होतो जाती है व एसबीएस एकम मोटाई स्थल पर ड्यूल है व उसके ऊपर खिला कमल फूल है ज जहां से स्तम्भ में थांत (bat blade type ) के ऊपर नयनाभिरामी नक्कासी दार दीवालगीर (ब्रैकेट ) हैं। 
 दीवालगीर में नक्कासी :- विद्वान बद्री दत्त डबराल परिवार की इस तिबारी के दीवालगीर में उम्दा नक्कासी हुयी है। दीवालगीर में फूल की  नली  व मोटी  कली का अग्र   भाग की आकृति में पक्षी की चोंच भी है एक एक पक्षी भी अंकित हुआ है
चिड़िया के शरीर पर भी नक्कासी हुयी है।  दूसरी मंजिल के छज्जे के लकड़ी के आधार से शंकु नुमा आकृतियां लटक रही हैं।
विद्वान् बद्री दत्त डबराल परिवार के इस मकान में दूसरी मंजिल पर जंगला बंधा था जो कि  दुसरे बिन तिबारी के मकान  जैसा ही है  तो उसी पर चर्चा निम्न तरह से होगी। 
विद्वान बद्र दत्त डबराल परिवार के दुसरे मकान के दूसरी मंजिल में लकड़ी के जंगले पर नक्कासी:-  विद्वान डबराल परिवार के दुखंड , दुभित्या ,  तिपुर  वाले दूसरे मकान के दूसरी मंजिल पर उसी तरह का जंगला बंधा है जैसे तिबारी युक्त मकान के दूसरी मंजिल में है।   
 जंगला लकड़ी के छज्जे पर स्थापित है व इस जंगले  में आठ स्तम्भ है जिनके शीर्ष /मुरिन्ड में मेहराब हैं याने कुल आठ स्तम्भ व सात मेहराब /तोरण हैं।   प्रत्येक स्तम्भ का आधार मोटा है व उस पर सांतर कटान से नक्कासी हुयी है।  दो ढाई फिट तक स्तम्भ के दोनों ओर पट्टिकाएं फिट की गयीं हैं।  ध्यि फिट पर ही लकड़ी का रेलिंग है।  स्तम्भ जब मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष के निकट पंहुचता है तो स्तम्भ में  ड्यूल व कमल दल की न्यूना छवि की खुदाई है (कम महत्वपूर्ण ) . यहां से स्तम्भ का थांत भी शुरू होता हिअ व मेहराब का एक भाग /अर्ध चाप भी शुरू होता है।  मेहराब में नकासी हुयी है व त्रिभुजों के किनारे पर एक एक बहुदलीय सत्य मुखी नुमा पुष्प खुदा है।  मेहराब के लकड़ी वाले हिस्से में प्राकृतिक कला /अलंकरण के चिन्ह दिख रहे है किन्तु क्या थे मिट गए हैं।  विद्वान् बद्री दत्त परिवार के मकान के  दूसरी मंजिल का काष्ठ जंगला  (निमदारी ) शानदार रहा होगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती व अवश्य ही तिमली ही नहीं डबरालस्यूं की शान  रहे होंगे ये दोनों मकान। 
निश्सकर्ष निकलन सरल है कि  विद्वान बद्री दत्त दरबाल परिवार के दोनों मकानों में भव्य काष्ठ कला अंकन / नक्कासी  हुयी है व तीनों किस्म का अलंकरण हुआ है ९प्रकृतिक, ज्यामितीय व मानवीय ) . दोनों मकान अपने नकासी के लिए प्रसिद्ध थे। 
आशीष डबराल की सूचना  अनुसार अब दोनों मकान ध्वस्त कर दिए गएँ है लगभग इसी तर्ज पर नए मकान बने हैं

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति  फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी
सहयोगी सूचना : आशीष  डबराल
* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली i , मोरियों , खोलियों,   काठ बुलन, छाज    ) काष्ठ कला, नक्कासी   अगले अध्याय में 
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला  , नक्कासी


Bhishma Kukreti

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         -: 130 वीं कड़ी:

 हेरवाल  ( टिहरी गढ़वाल ) में मुकुंद सिंह रावत  परिवार की भव्यतम  जंगलेदार  निमदारी में काष्ठ कला अंकन  , नक्कासी

 
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बलान  ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी  )    130   


संकलन - भीष्म कुकरेती
कुछ समय पहले टिहरी गढ़वाल के प्रतापनगर ब्लॉक में उपली  रमौली में  हेरवाल गाँव मुकंद सिंह रावत के भव्य जंगलेदार निमदारी के करां प्रसिद्ध था व आज ग्रेन  मेन्टोरिंग  के संस्थापक  वीरेंद्र रावत के कारण भी प्रसिद्ध है।  वीरेन्द ररावत मुकंद सिंह रावत के सुपुत्र हैं।
   हेरवाल गांव के मुकुंद सिंह रावत का जंगलेदार निमदारी दुपुर है दुखंड / तिभित्या है।  इस मकान में  पहली मंजिल पर आने के लिए बाहर से सीढ़ियां हैं।  मकान 24 कमरों का भव्य मकान है।  तल मंजिल में 5   काष्ठ से बंद बरामदे हैं व काष्ठ पर सलीकेदार ज्यामितीय कला अंकन /नक्कासी के साफ़ साफ़ दर्शन होते हैं।  इसी तरह  पहली मंजिल पर भी 5 काष्ठ/लकड़ी   से बंद बरामदे या डंड्यळ /बैठक हैं व उन दरवाजों में लकड़ी की ज्यामितीय नक्कासी बार बार आँखों को आकर्षित करती है।
  पहली मंजिल में  छज्जे में निमदारी फिट है।  छज्जे के ऊपर 21 स्तम्भ खड़े हैं जो सीधे  छत आधार पट्टिका से मिलते हैं।  निमदारी के 21  के 21 स्तम्भ वास्तव में आम तिबारियों के स्तम्भ से लोहा लेते हैं।  प्रत्येक स्तम्भ के आधार में ऊँचा लम्बा लटका कमल फूल जैसा है , इस आधार के ऊपर ड्यूल है फिर कुछ कुछ सीधे खिले कमल फूल की आकृति में स्तम्भ है, यहां  से  स्तम्भ की गोलाई में मोटाई कम होती जाती है व जहां पर सबसे कम मोटाई है वहां फिर ड्यूल है व सीधा लघु पद्म दल आकृति है व वहां से स्तम्भ दो भागों में बंट सा जाता है।  स्तम्भ का सीधा भाग स्तम्भ थांत (bat blade type ) की आकृति धारण कर ऊपर शीर्ष /मुरिन्ड /मथिण्ड  से मिल जाता है।  दूसरी ओर मेहराब के एक चाप का हिस्सा बनता है जो आगे जाकर दुसरे स्तंम्भ के अर्ध चाप से मिलकर पूरा मेहराब या तोरण  (arch ) बनता है।  मेहराब तिपत्ति (trefoil ) नुमा है व मेहराब के बाहर त्रिभुज आकृति में पर्ण -लता (पत्तियां -लता या फूल /बेल बूटे ) की नक्कासी हुयी  है। संभवतया त्रिभुजा कार आकृति के किनारों पर एक एक फूल भी खुदा था।  मेहराब व स्तंभ थांत  ऊपर छत आधार पट्टिका से मिलते हैं।  छत आधार पट्टिका व भर की ओर  वर्षा बचो पट्टिका में भी कलाकारी हुयी है व मकान की सुंदरता बढ़ाने में कामयाब हुए हैं।
 स्तम्भ के दो दो फिट ऊंचाई तक लकड़ी की ही रेलिंग लगी है। व आँखों को आकर्षित करने वाला ज्यामितीय जंगला भी सधा है।
 निष्कर्ष निकलता है कि  टिहरी गढ़वाल के हेरवाल गांव में मुकुंद सिंह रावत परिवार की निमदारी भव्यतम निमदारियों में गिनी जाएगी जो आकर में बड़ी तो है ही स्तम्भों में नक्कासी  की  दर्शनीयता  से भी नायब  से नायब निमदारी  मानी जाएगी। 
  शिल्प का नयनाभिरामी नमूना है मुकुंद सिंह रावत परिवार की भव्यतम निमदारी।  मकान के शिल्पी व लकड़ी के शिल्पकार किस गाँव के थे के बारे में अभी तक सूचना नहीं मिल सकी है। 


  सूचना व फोटो आभार :  वीरेंद्र रावत , हेरवाल

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 गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बालन   ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  तिबारी , भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , तिबारी ,नक्कासी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी तिबारी ,नक्कासी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला तिबारी , , नक्कासी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में तिबारी , भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; House Wood carving Art from   Tehri;     


Bhishma Kukreti

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       100  वीं  कड़ी     
ईड़ा   गाँव (एकेश्वर ) में सिपाई नेगियों  के गौरवपूर्ण   क्वाठा  में काष्ट  कला विवेचना
(  वीरांगना तीलू रौतेली  का सगाई भवन   )

पौड़ी गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई, खोली , छाज   ) काष्ठ अंकन लोक कला -100

(लेख अन्य पुरुष में है जी श्री का प्रयोग नहीं है )     
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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    (उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला अंकन   श्रृंखला का यह 100 वीं  किस्त  है।  तो कुछ त्यौहार मनाना चाह रहा था।  दो तीन दिन पहले ही फेसबुक मित्र उमेश असवाल के चार पांच  फोटो  व सूचना भेजी थीं जिसमे एक फोटो में  प्रसिद्ध गाँव इड़ा   गाँव के सिपाई नेगियों के क्वाठा का बिलकुल भग्न  प्रवेश द्वार व इसी क्वाठा  का अंदरूनी भाग की फोटो भी भेजी थी।  भग्न प्रवेश द्वार के बारे में उमेश ने सूचना दी कि  लकड़ी के द्वारों को दीमक खा गयी है तो ...  ।  साथ में  उमेश असवाल सूचना दी थी कि इसी घर में तीलू रौतेली की मंगनी हुयी थी।
मुझे  लगा कि भवन काष्ठ कला  100 वीं  क़िस्त में इसी तिबारी भवन  विवेचना से बड़ी बात क्या हो सकती थी।  किन्तु दो समस्याएं थीं एक तो  सिंह द्वार फोटो पर कोई ऐसी निशानी न थी कि  क्वाठा भितर   लगे व मुझे तीलू रौतेली का ससुराली  गाँव की कोई जानकारी  न थी।    इस पर मनोज इष्टवाल याद आये कि कभी तीलू रौतेली संबंधित  ट्रैवलॉग सर्कुलेट किया था।  मैं   गूगल बाबा  की शरण में गया व ईड़ा , तीलू रौतेली व इष्टवाल की शब्दों से खोज आरम्भ की और और बांछित फल भी मिल गया   कि  जिस क्वाठा  के द्वार का अब पता नहीं केवल खंडहर है उसकी तस्वीर इष्टवाल के इंटरनेट लेख में मिल गयी। इष्टवाल  का लेख तो बड़ा खजना है पौड़ी गढ़वाल के वास्तु इतिहासकारों के लिए। यदि मनोज इष्टवाल समय रहते इस क्वाठा प्रवेशद्वार का दस्तावेजीकरण  नहीं करते तो पता ही न चलता कि  इड़ा  में इतना बड़ा किला था।  यही मैं   सबसे प्रार्थना  कर रहा हूँ कि  पहाड़ों की तिबारियां , बखाई , खोली , छाज सभी एक दिन समय की मांग  के कारण  या साझी मिल्कियत के कारण ध्वस्त हो जाएँगी यदि फोटो व विवरण से इंटरनेट में दस्तावेजीकरण हो जाय तो आगे किपीढ़ियों के लिए पहाड़ी भवन संस्कृति समझने में सरलता होगी।  इष्टवाल के लेख में फोटो ने यह सिद्ध कर दिया कि  मैं सही पथ पर हूँ।
   चूँकि मैं ना तो  कला  जानकार हूँ न ही वास्तु इतिहासकार कि महलों /किलों आदि की वास्तु कला पर हाथ आजमाऊँ ना ही मेरी उम्र इतनी है कि मैं अपने लिए दस बीस साल के लिए काम सजा के रखूं . इसलिए मैं इड़ा के इस ऐतिहासिक क्वाठा के महल नुमा आकृति पर आज नहीं  लिखूंगा अपितु केवल अंदर मकान के अंदर तिबारी या निमदारी नुमा आकृति पर ही  'की बोर्ड पुश' करूंगा  (कलम चलाऊंगा  )  . इड़ा सिपाई  नेगियों के क्वाठा  प्रवेश द्वार पर फिर कभी प्रकाश डालूंगा जब  मैं कुछ महलों की कला भाषा /परिभाषिक शब्दों को समझ लूंगा . )
   सिपाई नेगियोंके क्वाठा भितर  के अंदरूनी निमदारी /तिबारी में काष्ठ कला :-
मकान अंदर से हवेली नुमा है याने तीनों और कमरे व बीच में आँगन व सामने द्वार।  अंदर सामने के  भाग में पहली मंजिल में बड़ी निमदारी या तिबारी है , जो  तीनो ओर  है। 
सामने तेरह या चौदह स्तम्भ हैं व पड़े (90 अंश ) में दोनों ओर   चार चार स्तम्भ हैं।  स्तम्भों में प्राकृतिक कला  अलंकरण के छाप  दीखते  तो है किंतु क्या थे उनका फोटो में अभी पता चलना कठिन है। उबर के कमरों के दरवाजों पर भी कला अंकित है और फोटो में साफ़ दिखाई नहीं देती हैं।
वास्तव में सिपाई नेगियों के क्वाठा  में काष्ठ  कला बाह्य प्रवेश द्वार पर अधिक उभर कर आयी है बनिस्पत अंदरूनी भाग के।   
मकान चूँकि किला है  तो भवन का बड़ा होना लाजमी है।  किला कब निर्मित हुआ की कोई सूचना नहीं है।  बड़े भवन होने से ही भव्यता आयी है। 
चूँकि भवन का नाम सिपाई नेगी के नाम  से है तो निश्चित है कि भवन  1886   से पहले तो नहीं निर्मित हुआ है क्योंकि  गढ़वाल में वास्तव में सिपाई नाम लैंसडाउन छावनी  स्थापना 1886 के बाद  ही अधिक प्रचलित हुआ।  1857  के बाद में सिपाई शब्द भारत में प्रचलित हुआ। 
 भविष्य अगली किसी कड़ी   में क्वाठा  के प्रवेश द्वार पर पकाश डाला जायेगा।   

सूचना व फोटो आभार :   उमेश असवाल व  मनोज इष्टवाल
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 Traditional House wood Carving Art of  Pauri   Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   to  be  continued
  पौड़ी गढ़वाल  तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला  जारी
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) श्रृंखला जारी   - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  to  be  continued   


Bhishma Kukreti

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King Kirti Shah honoring Scholars

History of Tehri King Kriti Shah   - 13
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 186 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1432     
 
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

   Kirti Shah was well versed with English and Hindi.  He had knowledge of French and Sanskrit.  Tehri King Kirti Shah used to participate in religious rituals as satsanga, kirtn  or Conferences by Mahatmas
 King Kirti Shah established press in Tehri.  The press used to print government /official necessary subject.  Kirti Shah also started a fortnightly newspaper as ‘Riyasat Tihri Garhwal Darbar Gazette. The cost of gazette was Rs. 2 annual.
 Tehri King Kirti Shah was famous for honouring and sheltering scholars (1).
Hari Krishna Raturi- Hari Krishna Raturi was a brilliant scholar. He gained high position and was guardian of prince Kirti Shah when the prince was studying.  Harikrishna Raturi prepared a book Garhwal ka Itihas (history of Garhwal) in Hindi. Tehri king Kirti Shah arranged English version publication of the book from London. Before the book could take shape, Kirti Shah died.  Harikrishna Raturi lost his Hindi manuscript too. Harikrishna Raturi wrote again the book and published it in 1928 from Garhwali press Dehradun .  Harikrishna Raturi published a book ‘Narendra Hindu law” in 1917 and  that book worked as the  constitution for judiciary in Tehri Riyast.  In 1910, Hari Krishna Raturi published a book Garhwal Varnan .  Raturi expired in June 1933 (2)
Diwkar Sharma – Diwkar sharam was teacher in Pratap High school Tehri. Diwkar Sharma had interest in History especially Garhwal History.  Harikrihana Raturi used his collection about Garhwal history in his Book ‘Garhwal ka Itihas’. (1).
 Badri Datt Sharma Pandey- Badri Datt Sharma belonged to  Pandey family of Kumaon . His ancestors established in Tehri from Kumaon. Badri Datt Sharma was Sanskrit teacher and was famous  Mantric –Tantric too.  He was Sanskrit teacher in Sanskrit school in capital. Later on,  his son Haranand  ‘ Magna Pundit became famous tantric- Mantric too.
 Harikrishna Daurgidatta Rudola - Harikrishna Daurgidatta Rudola was born in Shrinagar. In 1855. His father Durga Datta t was famous scholar of astrology, Karmakanda and mantras.
 The Queen Guleria appointed learned Harikrishna Daurgadatti   Rudola as teacher in Pratap High School Tehri.  Harikrishna Daurgadatti was brilliant poet of Sanskrit, Hindi (Braj) and Garhwali.  Harikrishna Daurgadatti Rudola created epics and long poetries in Sanskrit. Maxmular appreciated his poetries. He also published Garhwali poetries in Garhwali magazine. (1) .Dr. Prem Datt Chamoli analysed and appreciated his Sanskrit works in ‘Sanskrit Sahitya ko Garhwal ki den’.


References   
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 190 -193
2-Garhwali Patrika Dated 11.6 1933 (from Garhwali press Dehradun )
3- Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 188 (The book is available on Internet as free PDF)
Copyright@ B.C .Kukreti, 2020

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CEO is Responsible for Regular Income and Profit for  Organization

Guidlines for Chief Executive Officers (CEO) series – 73
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

 न यथेष्टव्ययायालं संचिते णु धनं भवत्  I
सदगमाद्विना कस्य कुबेरस्यापि  नान्जसा  II 181II
पूज्यस्त्वेभि: गुनैर्भूपो  न भूप: कुल संभव: I
न कुल पूज्यते     यादूग्बलशौर्यपराक्रमै    II 182(Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.181 .182)
Translation –
There is no bigger wealth than the earth. If there is no regular income the kubaer (wealth deity) becomes poor. If there is no regular income, the daily expenditures might be small will erode  the wealth. That is why the person should work for regular incoming income.  The king should have qualities cited in previous chapter and the capable king does not mean taking birth at king house.
(Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.181 -.182) 
 Organization needs regular income and profit. If the CEO does not pay attention on profit and regular inflow and outflow of money in the organization, it is sure that one day organization will be bankrupted.
  References   
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 41
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020
Guidelines for Regular income for Organization by Chief Executive Officers; Guidelines for Regular income for Organization by Managing Directors; Guidelines for Regular income for Organization by Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Regular income for Organization by  General Mangers; Guidelines for Regular income for Organization by Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Regular income for Organization by Executive Directors ; Guidelines for Regular income for Organization by ; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by  CEO; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by COO ; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by CFO ; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by  Managers; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by MD ; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by Chairman ; Refreshing Guidelines for Regular income for Organization by President


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         Tehri King Kirti Shah invented Hindi Key Board for Type Writer


History of Tehri King Kriti Shah   - 13
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 186 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1432     

  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

  Kirti Shah was multi talented and multi hobbies person. He used to take keen interest in technical aspect as in electricity, type writing and many more.  He had good collection of telescopes in his collection. He produced search light and bioscope himself. Kirti shah used to repair himself the electric wires and appliances himself.
 He used to take great interest in Typing and was frustrated that there was no Hindi type writer. According to philosopher, writer, freedom fighter, ex-Central Minister Bhakta Darshan,  the progressive Tehri King invented Hindi Typewriter first and tried many times. Later on Kirti Shah sold the right of Hindi Typewriter to Remington Rad Company. (2)
Hindi language lovers will always remember great king Kirti Shah for his invention of Hindi Typewriter
Great Historian Shiv Prasad Dabral praised the great acts by   Kirti Shah for inventing Hindi Type Writer first time in Typewriter History (1)
It is  great proud for  all Garhwalis  that King  Kirti  Shah invented Devnagari (Hindi)  Typewriter,
References   
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 195
2-- Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 190 (The book is available on Internet as free PDF)
Copyright@ B.C .Kukreti, 2020
 Kirti Shah Tehri King: the great inventor of Hindi Typewriter; Kirti Shah   A Himalayan King: the great inventor of Hindi Typewriter; Kirti Shah   A Garhwali King: the great inventor of Hindi Typewriter; Kirti Shah   A North Indian King: the great inventor of Hindi Typewriter; Kirti Shah   A progressive King: the great inventor of Hindi Typewriter; A progressive Asian king Kirti Shah the inventor of Hindi typewriter

Bhishma Kukreti

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  नाली बडोली  (दुगड्डा  ) में  स्व जितार   सिंह नेगी की  तिबारी /डिंड्याळी  में काष्ठ कला

ना
ली बडोली  (दुगड्डा  ) में  स्व जितार   सिंह नेगी की  तिबारी /डिंड्याळी  में काष्ठ कला अलंकरण , नक्कासी
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली  , मोरी , खोली , कोटी बनल   ) काष्ठ कला , अलंकरण   नक्कासी  - 133
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 नाली बडोली (छोटी व बड़ी )  कृषि समृद्ध गाँव रहा है। समृद्धि  की अभिव्यक्ति  नाली बडोली  के मकानो में पाषाण व काष्ठ  कला अंकन में दीखता है।  आज इसी श्रृंखला में पौड़ी गढ़वाल के दुगड्डा मंडल के नाली बडोली  गाँव में स्व जितार  सिंह नेगी की तिबारी की चर्चा होगी।   आज परिस्थिति बिपरीत हो गयीं हैं जबकि  कभी  स्व जितार सिंह नेगी की  16 कमरों ,   दुखंड /तिभित्या। दुपुर मकान की  तिबारी नाली बडोली ही नहीं अपितु अजमेर व निकटवर्ती उदयपुर पट्टी के गाँवों   की शान थी , पहचान थी व गाँव में इस तिबारी का सामजिक महत्व भी था।
  पौड़ी गढ़वाल के नाली बडोली  गाँव में स्व जितार सिंह नेगी के  मकान  में तल मंजिल में खोली (अंदर ही  अंदर से पहली मंजिल पर जाने का प्रवेश द्वार )है।  खोली के काष्ठ सिंगाड़ों /स्तम्भों  में पर्ण -लता (बेल बूटों ) की सुंदर अंकन (नक्कासी ) हुयी है जो  चक्षु सुखदायी है।  सिंगाड़ किसी चौखट मुरिन्ड /मथिण्ड  से नहीं मिलते अपितु  ट्यूडर नुमा अर्ध गोल आकर्षक चाप/तोरण  बनाते हैं व सूचना अनुसार इसी तोरण में ऊपर शीर्ष में एक देव /नजर न लगे का प्रतीक आकृति खुदी थी जो अब नहीं  दिख  रही है। मुरिन्ड के अगल बगल दोनों ओर काष्ठ  छज्जा आधार से  दो दो मानव आकृति के दीवालगीर (bracket ) हैं।  ये दोनों (कुल चार )  मानव आकृति सम्भवतया   क्षेत्रपाल    प्रतीक हैं ।  क्षेत्रपाल आकृतियों  के ऊपर शंकुनुमा व कुछ कुछ फूल नली जैसे कुछ आकृति भी है।
पहली मंजिल में तीन कमरों के बरामदे के बाहर छह खम्बों /स्तम्भों /सिंगाड़ों  से युक्त तिबारी स्थापित  है।  तिबारी में छह स्तम्भ स्वतः ही पांच ख्वाळ /खोली बनाते हैं। सभी छहों स्तम्भ सीधे  सपाट   हैं व बिन प्राकृतिक या मानवीय नक्कासी के हैं।  उसी तरह मुरिन्ड की बौळी /कड़ी भी सपाट व चौखट नुमा है।  कहा जा सकता है कि तिबारी के स्तम्भों व मुरिन्ड  में ज्यामितीय कला अलंकरण /नक्कासी हुयी है और प्राकृतिक व् मानवीय खुदाई नहीं दिखती है।  हाँ मुरिन्ड  में कुछ प्रतीक आकृति होने की छाप अवश्य है। 
 निष्कर्ष निकलता है कि पौड़ी गढ़वाल के दुगड्डा मंडल के  नाली -बडोली गांव में स्व जितार  सिंह के मकान में काष्ठ कला लंकरण /लकड़ी की नक्कासी की दृष्टि से तिबारी (स्तम्भ , मुरिन्ड आदि में )  में कोई विशेष कला अलंकरण /अंकन नहीं हुआ है।  किन्तु तल मंजिल की  खोली  में  ज्यामितीय (  स्तम्भों का तोरण में ढलना ) , मानवीय  अलंकरण (  मुरिन्ड में नजर न लगने वाला देव प्रतीक , चार क्षेत्रपाल प्रतीक आकृतियां ) व प्राकृतिक (सिंगाड में बेल बूटे ) कला अलंकरण /नकासी  अवश्य की सहसा  चक्षुओं को आकर्षित कर सकने में सफल हैं।   

सूचना व फोटो आभार : संजय नेगी 

  यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .   
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों, कोटि बनल, खोलियों . मोरियों     में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  , नक्कासी
दुगड्डा  ब्लॉक में मकान में लकड़ी पर नक्कासी , अजमेर पट्टी  में लकड़ी पर नक्कासी , नाली बडोली  में मकानों में लकड़ी पर नक्कासी   

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Sarva Dharma Sammelan Conference in Tehri
History of Tehri King Kriti Shah   - 15
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 188 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1434       
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
 King Kirti Shah was follower of Sanatan Panth . However, he honoured every religion and sect. Kirti Shah was keen in understanding the principles of all religions. Once, he caaled aconference of all religious pundits and representatives that is - islamik , sikh , sanatan , jain , Arya Samaj etc scholars attended the conference. Those scholars spoke about their religious principles.   The king  offered them a gift and honoured the,
References   
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 194
Copyright@ B.C .Kukreti, 2020

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Employees Education and Training are essential aspects for the organization

Guidlines for Chief Executive Officers (CEO) series – 74
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
गजाश्वरथपश्वादीन्   भृत्यान्दासांस्तथैव    च   I
सँभारान्सैनिकान्  कार्यक्षमान्ज्ञात्वा दिने   दिने   II 367II
संरक्षयेत्प्रयत्नेन   सुजीर्णन्     संत्यजेत्सुधी:  I
शतक्रोशभवां    वार्ता     हरेदेकदिनेन    वै II 368II
सर्वाविद्याकलाभ्यासे   शिक्षयेद्    भृतिपोषितान्   I
समाप्तविद्यं संदृष्टवा  तत्कार्य  तं  नियोजयते  II 369 II
विद्याकलोत्मान्द्रिष्टवा    वत्सरे   पूजयेश्च       तान् I
विद्याकलानां वृद्धि:     स्यात्था  कुर्यांन्नृप:    सदा  II 370 II(Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.367, 368, 369, 370)
Translation –
  The wise King should arrange protection for capable elephants, horses, chariots, (the assets for movement) , animals (assets ), slave , servants , articles , soldiers etc.  and should separate out the incapable ones. The king should have so strong communication system that he gets information within a day from far away.  The King should offer monetary help to educate every citizen and after education,, they should be trained as per their job.  Those are experts in a particular trade those should be honoured. The king
(Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.367, 368, 369, 370)
  CEO must arrange continuous training for the staff o organization:-
 CEO must understand that every staff‘s output is essential for getting the desired results. Training is essential to improve outputs.
A-Training is Essential for new employee – It is utmost essential that new employee gets training as per organization need either from the experienced staff or from outside consultants.   
B-Removing shortcomings- Training is essential for tackling of the shortcomings of the staff
C- Tackling new changes – There are changes happening and the staff should cope with changes. That is why it is essential that staff gets training for new technology or newer concepts. By training,  the employees  learn about new innovations around the world.
D- Training improves productivity and adhere the  quality norms – The training is essential for increasing staff productivity
E- Training increases staff’s morale and Satisfaction
F- Training set consistency
G- Training reduces staff turn over
 H- Training enhances organization reputation and brand equity.
I-Training to trainer is also must
  References   
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 63 
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तल्ला इडा  (एकेश्वर,  पौड़ी गढ़वाल ) में सिपाई नेगियों के क्वाठा भितर  का प्रवेश द्वार में काष्ठ कला , अलंकरण या नक्कासी   


गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   -  136
 (कला , अलंकरण केंद्रित )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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एकेश्वर  , चौंदकोट समृद्धि व वीरता व सामजिक कार्यो में त्याग, सामूहिकता के लिए प्रसिद्ध रहा है।  सलाण  में चौंदकोट की बांद , चौंदकोट के सफेद शानदार सींगदार - हळया बल्द , कुछ जगह तिबारी निर्माण हेतु चौंदकोट्या  मिस्त्री भी प्रसिद्ध रहे हैं।  समृद्धि हो वीरता हो तो तिबारियां व  क्वाठा  भीतर होना लाजमी है।  तल्ला इडा  में सिपाई नेगिओं का क्वाठा भीतर प्रसिद्ध इमारत रही है।  क्वाठा शब्द कोष्टक याने कोष्ठ से बना शब्द है कोष्ठक याने मकान  में तीन ओर घर हैं व एक प्रवेश द्वार व बीच में सामूहिक चौक।  ढांगू में ग्वील   के आज के क्वाठा भीतर देखने से  या उच्चाकोट  व सिरकोट  के पुराने क्वाठा भीतर देखकर साफ़ जाहिर हो जाता है कि क्वाठा भितर  का अर्थ है कोष्ठ  { }  या () में घर।
 इसी तरह  पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट  क्षेत्र में   एकेश्वर मंडल में तल्ला इडा  का क्वाठा  भितर है (पिछले  अध्याय 100  वीं कड़ी ) में  सिपाई  नेगियों के क्वाठा  भितर का अंदरूनी भाग पर चर्चा हो चुकी है।  आज  बाह्य  प्रवेश द्वार या मुख्य द्वार पर चर्चा की जायेगी .  सिपाई नेगी परिवार पंवार वंशीय गढ़वाल राजा  व ब्रिटिश राज में प्रसिद्ध  भड़ों  के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं।  कहा जाता है कि जिस क्वाठा  की चर्चा हो रही है उस क्वाठा  में जेल भी थी व इष्टवाल की सूचना अनुसार अपराधियों को दंड   विधान का इंतजाम भी था , घुड़साल भी थी।
 तल्ला इडा  में सिपाई नेगियों के क्वाठा  भितर प्रवेश द्वार में काष्ठ कला, अलंकरण , नक्कासी समझने हेतु नमन स्थलों में ध्यान देना आवश्यक है -
१- मुख्य द्वार में अंदरूनी खोली,  के  सिंगाडों /स्तम्भों  , दरवाजों ,  मुरिन्ड  में काष्ठ  कला , लकड़ी पर नक्कासी
२- मुख्य द्वार के बाह्य मेहराब में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी
३- तल मंजिल में मुख्य द्वार के दोनों ओ र  चोबदारों (सुरक्षा कर्मी ) के बैठने या खड़े रहने के बुर्जनुमा काष्ठ संरचना  में कला -अलंकरण या नक्कासी
४- पहली मंजिल में चोबदार कोष्टक के ठीक ऊपर बुर्ज में काष्ठ कला -अलंकरण या नक्कासी व  ऊपर छत पट्टिका से आते दिवालगीरों  व अन्य स्थलों में काष्ठ कला -अलंकरण अंकन या नक्कासी
५- दूसरे मंजिल में  तिबारी नुमा काष्ठ संरचना में कला -अलंकरण  अंकन या नक्कासी
   १-  तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा के  मुख्य द्वार में अंदरूनी खोली,  के  सिंगाडों /स्तम्भों  , दरवाजों ,  मुरिन्ड  में काष्ठ  कला , लकड़ी पर नक्कासी :-  मुख्य द्वार या खोली  के द्वार के  दोनों सिंगाड़/स्तम्भ   चार चार  वर्टिकल स्तम्भों के मेल
से निर्मित हुए हैं।  दो उप स्तम्भ गढ़वाल की तिबारियों के स्तम्भ जैसे हैं याने  आधार पर उल्टा कमल दल फिर ड्यूल व फिर सीधा खिलता कमल फूल  व फिर स्तम्भ का बढ़ते जाना व शीर्ष से पहले उल्टा कमल फूल , ड्यूल व फिर से  सुल्टा कमल फूल है।  दूसरे  अन्य स्तम्भों में प्राकृतिक ( सर्पीकार लता , पर्ण  ) कला , अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है याने   अन्य दो सिंगाड़ों  में    वानस्पतिक नक्कासी हुयी है। 
तल मंजिल में मुख्य द्वार /खोली  का मुरिन्ड  चौखट नुमा है व  ऊपर  काष्ठ  प्रतीकात्मक  या काल्पनिक प्रकार का  अलंकरण के चिन्ह साफ़ साफ़ दृष्टिगोचर होते हैं।  सम्भवतया ये मानवीय आकृतियां नजर हटाने या शगुन संबंधी आकृतियां रही होंगी।
 २-  तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा के  मुख्य द्वार  के बाह्य मेहराब में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी -  बाह्य मेहराब  खोली के आंतरिक मुरिन्ड के बाहर व ऊपर है।  मेहराब तिपत्ति  नुमा है व भर की पट्टिका में  दोनों किनारों में चक्राकार , बहुदलीय पुष्प जैसा सूरजमुखी का केन्दीय भाग होता है जैसे हैं।  मेहराब के बाहरी ओर  बेल  बूटों  की सुंदर नक्कासी हुयी हैं।  कलाकारों  ने  कमाल दिखाया  है । 
३-  तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा के  मुख्य द्वार  के तल मंजिल में मुख्य द्वार के दोनों ओर   चोबदारों (सुरक्षा कर्मी ) के बैठने या खड़े रहने के बुर्जनुमा काष्ठ संरचना  में कला -अलंकरण या नक्कासी - तल मंजिल में  मुख्य द्वार के अगल बगल में  बुर्ज नुमा संरचना बनी है जो  जरूरी ही चोबदारो / सुरक्षा  कर्मी के कड़े या बैठने का स्थान रहा होगा, तल मंजिल के बुर्ज में दोनो ओर दो   दो स्तम्भ तह व दो दो मेहराब हैं जो  संरचना व , कला, अलंकरण , नक्कासी इस  दृष्टि से मुख्य स्तम्भों व मुख्य मेहराब की बिलकुल नकल है. याने तोरण , कमल दल , ड्यूल,  चक्राकार  पुष्प आदि हैं , तल मंजिल के बुर्ज  के मुरिन्ड  में  प्रतीकात्मक  आकृति के चिन्ह देखे जा सकते हैं
४-    तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा के   पहली मंजिल     में चोबदार कोष्टक के ठीक ऊपर बुर्ज में काष्ठ कला :- तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा के   पहली मंजिल में चोबदार कोष्टक के ठीक ऊपर बुर्ज में काष्ठ कला -अलंकरण या नक्कासी व  ऊपर छज्जा  आधार पट्टिका से आते दिवालगीरों  व अन्य स्थलों में काष्ठ कला -अलंकरण अंकन या नक्कासी- मुख्य द्वार के पहली मंजिल में दोनों ओर बुर्ज या बालकोनी हैं जो लाल किले आदि की याद दिला  देते हैं।   पहली मंजिल के बुर्ज तल मंजिल के चोबदार बै ठवाक  के ठीक ऊपर हैं व तल मंजिल में सुरक्षा कर्मी के खड़े होने वाली संरचना की बिलकुल नकल है।  दोनों संरचनाओं  में व  उनकी  कलाओं  व अलंकरण अंकन  याने  नक्कासी में रत्ती भर का भी अंतर नहीं है। पहली मंजिल के बुर्ज व तल मंजिल के बुर्ज मध्य एक चौखट नुमा या  चौखट , डोला नुमा आकृति है  जिसमे ज्यामितीय कला अंकित हुयी है।
   दूसरी मंजिल के छज्जे के काष्ठ आधार  पट्टिका  से दीवालगीर  लटके से दीखते हैं व इन  दीवाल गीरों में हस्ती या पशु व कुछ मानव आकृति  अंकित दिखती हैं  , प्रत्येक बुर्ज में ऊपर चौखट  में मानवीय अलंकरण  अंकन (मानव व पशु ) हुआ है।
५ - तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा के  मुख्य द्वार दूसरे मंजिल में  तिबारी नुमा काष्ठ संरचना में कला -अलंकरण  अंकन या नक्कासी -   सिपाई नेगियों के क्वाठा भितर  के दूसरी मंजिल (तिपुर ) में  तिबारी नुमा संरचना है जिसमे ६ स्तम्भ है व पांच  ख्वाळ हैं तिबारी की संरचना - स्तम्भ , मेहराब , मेहराब के ऊपर मुरिन्ड  व  तिबारी का कला पक्ष  पौड़ी गढ़वाल की आम तिबारियों के समान ही है रत्ती भर का भी अंतर् नहीं याने स्तम्भ में  उलटे -सुल्टे कमल फूल , ड्यूल व घुंडी आदि व मुरिन्ड में मेहराब व मेहराब के त्रिभुज में प्राकृतिक कला अलंकरण व ऊपर कड़ी में  साधा  कला। 
    तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा   भितर  में कला पक्ष के सभी अंगों का ध्यान रखा गया है यथा - दृश्यात्मक संगठन नियम  ,  समरूपता व समरसता ;  एकरसता तोडू प्रबंध , अनुपूचारिक व औपचारिक संतुलन , अनुपातिक संरचनाएं , गतिशीलता , गति से रंगत उतपति , आकार , आकर में डिजायन का ध्यान   कलाकारों ने पूरा रखा है।   यह तय है कि  तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा   भितर  निर्माण शिल्पकारों को प्रशिक्षण पारिवारिक गुरुकुल पद्धति से ही मिली होगी। व वे हर कोण से कला पक्ष व तकनीक पक्ष में सफल हुए हैं।
निष्कर्ष है कि  तल्ला इडा के सिपाई नेगियों के  क्वाठा   भितर संरचना , इंजीनियरिंग व कला पक्ष दृष्टि से उच्चतर स्तर  का है।  शिल्पकारों की प्रशंसा  आवश्यक है।   
  अभी तक उमेश असवाल से   इस क्वाठा  के निर्माण काल व शिल्पकारों के गाँव आदि की सूचना न मिल  सकी  है. शिल्पकारों  के बारे में सूचना व निर्माण काल से अनुमान लगाना सरल होगा कि   पौड़ी गढ़वाल  में तिबारी कला का क्षेत्र तर विकास (Evolution)  कैसे हुआ व शिल्पकारों का दुसरे दूरस्त क्षेत्रों में किस तरह आना जाना हुआ व  यह भी पता चल सकेगा कि  ये शिल्पकार दूसरे क्षेत्र में भी  बसे थे की नहीं व क्या बसाहत ट का कोई पैटर्न था  कि नहीं। 
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सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल , एकेश्वर
संदर्भ - मनोज इष्टवाल , उत्तराखंड में भवन निर्माण में तिबारी ,बाखली वास्तु कला  (हिमालयन डिस्कवर ) , मार्च 2020
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई, कोटि बनाल    ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी - 136
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला ; नक्कासी , पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला  , नक्कासी , जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला बनाल  ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी , भवन नक्कासी  नक्कासी


 

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