Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1113264 times)

Bhishma Kukreti

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श्रीकोट (देवप्रयाग ) में एक भव्य मकान में  निमदारी  युक्त तिबारी  में काष्ठ  कला    अलंकरण अंकन   

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बाखाई , खोली , मोरी , कोटि बनल   ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन )  -  118   
(केवल कला व अलंकरण )  (लेख अन्य पुरुष शैली में है )


संकलन - भीष्म कुकरेती
   
 देवप्रयाग विकास खंड के श्रीकोट (पौड़ी खाल )  गांव से बिलेश्वर झल्डियाल से क चार पांच चर्चा लायक मकानों की सूचना मिली है जिनके काष्ठ  कला व अलंकरण की विवेचना आवश्यक है।  पहला इस मकान की विवेचना हेतु तीन भागों में ध्यान देना होगा। मूलतः मकान दुपुर था किन्तु जीर्णोद्धार में एक तीसरा मंजिल जोड़ा गया है। ,
  मूल भव्य मकान भी  गढ़वाल के अन्य   तिबारीयुक्त मकानों की भाँती दुखंड व तिभित्या है। . मुख्य तिबारी पहली मंजिल पर स्थापित है। भव्य मकान का छज्जा पत्थर का है व उस पर देहरी है व तिबारी स्थापित है।  तिबारी के आगे निमदारी या जंगला भी स्थापित है अनुमान लगाना सरल है कि मूलतः मकान में तिबारी ही थी पहली मंजिल व दूसरी मंजिल के जंगले बाद में ही जोड़े गए हैं।  चूँकि जंगले धातु के हैं तो उन की विवेचना न हो सकेगी।
तिबारी भाग में काष्ठ कला तिबारी के सात स्तम्भों (सिंगड़ों ) में दर्शन होते हैं जो सात  स्तम्भ छह  मोरी, ख्वाळ  , खोली बनाते हैं।
  स्तम्भों में कारीगरी अलंकरण दर्शनीय है। 
प्रत्येक स्तम्भ में गढ़वाली की तिबारियों जैसे ही आधार पर  अधोगामी (उल्टा ) कमल दल  से निर्मित कुम्भी , ड्यूल , उर्घ्वगामी (सीधा ) कमल दल ; सीधा स्तम्भ की कड़ी /शाफ्ट फिर अधोगामी कमल दल , नक्काशीयुक्त ड्यूल , फिर उर्घ्वगामी कमल  और  दल के बाद स्तम्भ का थांत शुरू हो  चौखट नुमा मुरिन्ड /मथिण्ड  से मिल जाता है।
 श्रीकोट (पौड़ी खाल ) टिहरी के इस मकान की तिबारी की विशेष विशेस्ता है कि स्तम्भ में ऊपरी कमल  जहां से समाप्त होता है व थांत (bat type blade ) शुरू होता है वहां स्तम्भ पर एक विचित्र किन्तु नयनाभिरामी अलंकरण हुआ है।  प्रत्येक स्तम्भ में स्तम्भ कड़ी -थांत   संधि स्थल में  ऐसी चार आकृतियां हैं याने तिबारी में कुल 28 आकृतियां।  आकृति ट्यूडर तोरण /arch  जैसी है जिसके शीर्ष में कुछ तीखापन (sharpness ) है और फिर इस ट्यूडर  चाप से ऊपर एक धन आकर आकृति निकलती है जो ईसाईयों के क्रॉस का भी आभास देता है।  स्तम्भ व थांत संधि स्थल में यह विशेष ट्यूडर व ऊपर धन आकार आकृति ही श्रीकोट की तिबारी को गढ़वाल के अन्य तिबारियों से अलग कर देता है।
बाकी अन्य स्थानों में ज्यामितीय कला अलंकरण ही दृष्टिगोचर हो रहा है।
निष्कर्ष निकलता है कि  श्रीकोट (पौड़ी खाल , देवप्रयाग विकाश खंड , टिहरी ) का  विवेचित मकान तिबारी के कारण भव्य बन पड़ा है और तिबारी में सात स्तम्भ व छह ख्वाळ -खोली हैं , स्तम्भों में कुल उल्टे  कमल दल 14 व सीधे कमल दल भी 14 हैं व 28 ड्यूल हैं व 28 ट्यूडर  धन आकार आकृति हैं जो तिबारी को विशेष दर्जा दे देते हैं। 
तिबारी भव्य की गिनती में आती है। 

  सूचना व फोटो आभार :  बिलेश्वर झल्डियाल  पर्यावरण मित्र

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गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई  ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला; House Wood carving Art from   Tehri;   श्रीकोट में काष्ठ कला , श्रीकोट देवप्रयाग में मकान में काष्ठ  अलंकरण

Bhishma Kukreti

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कलसी (द्वारीखाल , पौड़ी )  में  बुद्धि सिंह नेगी की   तिबारी  में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  141
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  कलसी मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक पौड़ी गढ़वाल ) का एक कृषि समृद्ध गांव रहा हिअ व पिछले 150  साल से छत की सिलेटी  पटाळों  की खांडी /खानों  व पत्थर निकलने वाले कलाकारों के लिए प्रसिद्ध रहा है।  कलसी से कृषि समृद्धि प्रतीक तिबारियों व निमदारियों की सूचना मिली है।
    प्रस्तुत है कलसी में   स्व बुद्धि सिंह नेगी की    तिबारी   में काष्ठ कला , अलंकरण उत्कीर्णन की विवेचना।  आज  नरगिस  अपनी जीर्ण शीर्ण अवस्था पर रो रही है किन्तु कुछ साल पहले तक ही यह तिबारी पूर्वी  दक्मषिण ल्ला ढांगू में चर्चा का विषय होती थी याने पूर्वी दक्षिण  मल्ला ढांगू की शान थी पहचान थी।
     कलसी के       स्व बुद्धि    सिंह नेगी के   तिबारी  दुपुर मकान के पहले मंजिल  पर  पाषाणछज्जे के उपर  देळी /देहरी के ऊपर स्थापित है।  तिबारी चार स्तम्भों /सिंगाड़ों की है व चारों स्तम्भ /सिंगाड़  तीन ख्वाळ या खोली बनाते हैं।  देळी में चौकोर पत्थर डौळ  के ऊपर सिंगाड़ /स्तम्भ का आधार है जो कुम्भीनुमा है व कुम्भी शक्ल उल्टे कमल दल से पैदा हुयी है।  उल्टे कमल दल के ऊपर ड्यूल (ring type wood plate ) है का ड्यूल के ऊपर सीधे खिलता लम्बोतरा कमल फूल है और यहां से सिंगाड़ की गोलाई कम होती जाती है , जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहीं से  एक ओर स्तम्भ ऊपर की ओर थांत  (bat blade  shape ) की शक्ल अख्तियार करता है व दूसरी और बहु परतीय  मेहराब शुरू होता है। बहुपरतीय  मेहराब  तिपत्ति  (trefoil ) आकार में है। मेहराब की परतों (layers ) में लता , पर्ण  की खुदाई हुयी है जो आज भी बरबस आकर्षित करते हैं।  मेहराब के बाहर त्रिभुज में एक एक  मंत्र मुघ्द करने वाले बहुदलीय सूर्याकार  फूल  की  नक्कासी हुयी है।
 सिंगाड़ , मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष  की कई परतिय कड़ियाँ व पट्टियां हैं जो  छत आधार पट्टिका  के नीचे हैं। मुरिन्ड के प्रत्येक परत में  मोहित करने वाली पुष्प , लता व पर्ण  की शानदार नक्कासी हुई है।
आश्चर्य है कि  कहीं भी मानवीय , काल्पनिक  या प्रतीकात्मक  अलंकरण नहीं हुआ है।
मकान केओड  तो कख्वन आदि से स्थानीय   ही रहे होंगे  किंतु  काष्ठ कलाकार आयत किये गए होंगे कहाँ के शिल्पी थे की जानकारी नहीं मिल पायी है। 
निष्कर्ष में कहा जा सकता है अपने जमाने की शानदार तिबारी में प्राकृतिक , ज्यामितीय अलंकरण की नक्कासी हुयी है व खूबसूरत ,  कशिसदार  बन पड़ी है। 
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर  विक्रम तिवारी
यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी 

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घेस (देवल ,चमोली) में बिष्ट परिवार की  एक मोरी  में  काष्ठकला ,अलंकरण अंकन , नक्कासी   
 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 138
(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 चमोली गढ़वाल   का जो भाग कुमाऊं के निकट है या तिब्बत सीमा के पास वहन  की  कूड़ौ  बणौट  कौंळ  ( मकान निर्माण शैली )  गढ़वाल के अन्य भागों से बिगळीं (अलग ) है , इस भाग  के मकानों की शिल्प शैली पर कुमाऊं की बाखली /बखाई का प्रभाव साफ़ साफ नजर  आता है   ।  बेदनी बुग्याल का ट्रैकिंग आधारिक कैंप स्थल है  में भी कुमाऊं पद्धति की छाप वाले। 
   डा राकेश भट्ट ने उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला , अलंकरण उत्कीर्णन ,  नक्कासी श्रृंखला हेतु एक फोटो साझा की जो घेस  (देवल , चमोली ) के बिष्ट परिवार  मकान की पहली  या दुसरे मंजिल की मोरी का है।  इस तरह की खिड़की या मोरी दक्षिण गढ़वाल या टिहरी में कम ही मिलती हैं।  इस काष्ठ आकृति को सलाण   गढ़वाल में मोरी कहा जाता  है।  आज इस मोरी पर चर्चा होगी।
मोरी केवल झाँकने  काम आती है।  घेस  के  बिष्ट परिवार की इस मोरी में दोनों और दो दो स्तम्भों /सिंगाड़ों  से बने हैं।  दो  जोड़कर एक  .याने कुल चार स्तम्भ है।  दोनों स्तम्भ मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष से पहले ही   . प्रत्येक स्तम्भ का आधार चौखट डौळ  हैं व उसके ऊपर ड्यूल (wood plate ring ) है फिर  ऊपर दूसरा  डौळ  है जिसके ऊपर  उलटे कमल दल (पंखुड़ियां ) आकृति है फिर  तीन अलंकृत  ड्यूल हैं फिर नक्कासी युक्त घुंडी या कुम्भी आकर है।  इसके ऊपर नीचे  के ,ड्यूल  कमल दलों का दोहराव है। फिर सीधा कमल फूल है व उसके ऊपर स्तम्भ की कड़ी ऊपर जाती है।  इस शफ्ट या स्तम्भ कड़ी में फर्न पत्तियों  जैसी आकृति का अंकन हुआ है , इस कड़ी के ऊपर उलटा कमल दल है फिर ड्यूल हैं व स्तम्भ के सबसे ऊपर उर्घ्वगामी (ऊपर खिला ) कमल पुष्प है और इस कमल पुष्प सेक्स स्तम्भ सीधी कड़ियों में परिवर्तित हो चौखट मुरिन्ड। मथिण्ड /शीर्ष बनाते हैं।  सभी स्तम्भों में यही कला अंकन या नक्कासी हुयी है।
 झरोखे के नीचे  याने मोरी आधार में  काष्ठ पट्टिका  लगी है जो हाथ आदि टिकाने के भी काम आता है।  इस पट्टिका में कोई कलयुक्त अंकन नहीं हुआ है।
  कला कभी भी 1 +1 =2  या 11  से नहीं टोली जाती अपितु  अनंत सम्पूर्णता से टोली जाती है। 
घेस की इस मोरी की खूबसूरती इसके स्तम्भ में कला है और प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण का  नायब मिश्रण है।   
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सूचना व फोटो आभार :   प्रसिद्ध नाट्यशिल्पी   डा राकेश भट्ट
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्कासी  - 
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   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला, नीति में भवन काष्ठ  कला, नक्कासी   ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ,


Bhishma Kukreti

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वरगडी  ( द्वारीखाल , पौड़ी गढ़वाल  ) में हर्ष मोहन बलूणी  की दिलकश , हसीन , आकर्षक  तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर  नक्कासी
, अलंकरण अंकन , उत्कीर्णन , नक्कासी

  लंगूर , गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   -  137 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 राजनैतिक सीमाकरण हिसाब से वरगडी  है तो लंगूर पट्टी  (द्वारीखाल ब्लॉक ) का गांव किन्तु सामजिक  व  सांस्कृतिक दृष्टि से वरगडी  मल्ला ढांगू में आता है।  यह बलूणियों का गांव है. वरगडी  से भी कुछेक  तिबारी -निमदारी  होने की सूचना  मिली है व फोटो की प्रतीक्षा में हूँ।
   आज वरगडी  (द्वारीखाल ब्लॉक )  में हर्ष मोहन बलूणी  की खुबसूरत तिबारी में लकड़ी नक्कासी की विवेचना होगी।  यद्यपि  फोटो  हर्ष मोहन बलूनी की तिबारी के  कुछ भाग का ही मिला है किंतु   सूचना से पता चला है कि मकान दुखंड , तिभित्या (दो कमरों वाला , तीन भीत या दिवार = एक दीवार सामने चौक की ओर एक दीवार मध्य में व एक पीछे की ओर ) है।  हर्ष मोहन बलूनी का मकान दुपुर है व छज्जा आम ढांगू के छज्जों जैसे ही चौड़ा है जिसमे अनाज आदि भी सुखाया जा सकता है।  तिबारी मकान के पहली मंजिल पर स्थित है।
तिबारी में लकड़ी के चार सिंगाड़ /स्तम्भ हैं जो तीन ख्वाळ /खोली /द्वार  बनाते हैं।  डीआर से सटे सिंगाड  को जोड़ती कड़ी में बेल -बूटे  की बारीक  नक्कासी हुए है।  स्तम्भ के आधार की कुम्भी उलटे कमल फूल से बना है व फिर ड्यूल  (Ring type  wood plate ) है , फिर सुलटा कमल फूल है व यहां से सिंगाड़  की चौड़ाई या गोलाई कम होती जाती है।  जहाँ पर स्तम्भ है वहीं उल्टा कमल फूल (अधोगामी पद्म दल ) है फिर नक्काशीयुक्त शानदार प्रभावकारी ड्यूल है व उसके ऊपर उर्घ्वगामी (सीधा , सुल्टा )  कमल फूल है।  यहां से स्तम्भ एक ओर थांत (bat blade type ) की शक्ल अख्तियार करता है व यहीं से  दूसरी ओर  म्रेराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर पूर्ण मेहराब निर्माण करता है।  मेहराब  तिपत्ति (trefoil )     आकृति, तीन परतीय है व परतों  /layer  में भी सुंदर कलात्मक  पर्ण -लता  या बेल-बूटे   की नकासी हुई है।
 मेहराब के बार प्रत्येक त्रिभुज में किनारे पर मनभायी  बहुदलीय चक्राकार (तकरीबन सूरजमुखी जैसे )  फूल जड़े हैं।  इन फूलों को  घेरती चिड़िया हैं  व चिड़िया  की पूँछ में  प्रतीकात्मक  /सांकेतिक चित्रकारी हुयी है। एक ओर  त्रुभुज में चिड़िया की चोंच   फूल के नीचे दबी है व चिड़िया मछली आकर का  आभास देती है और यही तो आभाषी अलंकार  की खूबी है।
 मेहराब के ऊपर चौखट नुमा  बहुस्तरीय मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष भाग है , मुरिन्ड के प्रत्येक स्तर/परत में तरह तरह के पर्ण -लता  अलंकरण का उत्कीर्ण हुआ है खूबसूरत , नक्कासी.हुयी है। फोटो में साफ़ दीखता है कि छत आधार काष्ठ पट्टिका में भी  ज्यामितीय (खड़ी लाइन )  अलंकरण अंकन हुआ है।  बारीकी में भी शिल्पियों ने बहुत ध्यान दिया है।
  निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि वरगडी (द्वारीखाल ब्लॉक ) में हर्ष मोहन बलूनी की कशिशदार , हसीन तिबारी में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय सभी प्रकार के अलंकरणों का सुंदर उपयोग हुआ है व नक्कासी बरबस आकर्षित करने में सफल है व तिबारी की कला स्मरणीय है। 

सूचना व फोटो आभार : राकेश बलूणी  वरगडी 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी , भवन नक्कासी  नक्कासी

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  फल्दाकोट मल्ला (यमकेश्वर ) में शार्दुल सिंह पयाल की निमदारी में काष्ठ कला अलंकरण उत्कीर्णन , नक्कासी     
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 139
 संकलन -भीष्म कुकरेती
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  पिछले अध्यायों में चर्चा हो चुकी है कि उदयपुर पट्टी के फल्दाकोट मल्ला पुलिस विभाग के कर्मचारी होने के कारण  पुरे क्षेत्र में प्रसिद्ध गाँव है.  आज भी फल्दाकोट वालों की पहली चाहत पुलिस नौकरी है।   यहां तिबारियों का नहीं अपितु निम दारी निर्माण का रिवाज अधिक रहा है।  अनभ्वतया पश्चिम गढ़वाल में तिबारी शिल्पियों  के परिवार का न होना  एक कारण होगा व दूसरा  व्यक्तिगत स्तर  पर  तूण /चीड़ की कमी। 
आज शार्दुल सिंह पयाल की निमदारी की चर्चा होगी।  फल्दाकोट के शार्दुल सिंह पयाल का  दुपुर मकान दुखंड /तिभित्या  मकान है व पहली मंजिल पर लकड़ी का जंगला बंधा है।  बड़ी बड़ी खड़कियों  से साफ़ जाहिर है कि मकान 1950  के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा।
आठ स्तम्भों के जंगले दार निमदारी में ज्यामितीय अलंकरण  अंकन हुआ है।  स्तम्भों में कोई प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण (motifs ) के दर्शन नहीं होते हैं।  निमदारी अपनी सरल कला के कारण ही भव्य बन पड़ी है।  एक समय शर्दुल सिंह की निमदरी गांव की शान थी , उदयपुर की आन -बान     थी  व सामजिक कार्यों में काम भी आती थी।  अब बीरान सी दिखती है।   
सूचना व फोटो आभार :  ठाकुर बलवंत सिंह पयाल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .   
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  House Wood carving Art of Faldakot , Ymakeshwar

Bhishma Kukreti

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Arrival of Swami Ramatirtha

History of Tehri King Kriti Shah   - 16
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 189 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1435   
   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

  Swami Ramtirtha belonged to Nanded district , Maharashtra.  Swami Ramatirtha was on tour of Tehri Garhwal and staying at Ganga bank in a chatti called Kodiya. Coincidently, King Kirti Shah was staying in Kodiya too on the way to   Dehradun for meeting Viceroy. King Kirti Shah came to know about Ramatirtha being there.  King Kirti Shah sent his minister to request Swami Ramatirtha to come to his camp. Swami Ramatirtha came to met king at his royal camp. The king welcomed Ramatirtha. King Kirti Shah asked Swami ji about existence of God. (2). Swami Ramatirtha impressed Kirti Shah about his views on existence of God.  Kirti Shah requested Swami Ramatirtha for attending a Sarva Dharma Sammelan (Conference of all religious Gurus ) in Japan. King Kirti Shah paid all the expense   for swami Ramatirtha tour to Japan. Swami Ramatirtha impressed all religious leaders in Japan.  Swami Ramatirtha also visited  America. 
   After arriving from foreign countries, from February 1906, Swami Ramatirtha started staying in a hut at Vashishthashram 50 miles away from Tehri city. Kirti Shah arranged food and other needs for  Swami.   In October , Swami Ramatirtha visited Tehri  and lived in Samlsu Bag there. Swami Ramatirtha stated living  in  hut  built  the King in Malideval village at ganga bank and one mile away from Tehri.
Swami Ramatirtha die d on 17th October 1906.
    King Kirti Shah offered monetary help to Manmohan the son of Swami Ramatirtha for getting Engineering degree from London.   (2)     
References   
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 194
2-- Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 193 (The book is available on Internet as free PDF)
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Bhishma Kukreti

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Importance of Visit by CEO

Guidlines for Chief Executive Officers (CEO) series – 75
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)
 
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

पृष्टाग्रान्क्रूरवेषान्नति          नीतिविशारदान्  I
सिद्धास्त्रनग्न्स्त्रांश्च   भटनारन्नियोजयेत  II 371 II
पुरे पर्टयेन्नित्यं   गज्स्थो     रंजयन्प्रजा:  I
 राजायानारुढइत: कि राज्ञा  श्वा  न समोपि च II 372II (Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.371, 372)
Translation –
 The King should visit outside with soldiers those are having naked swords cruel, polite and knowledgeable of code of conducts.   The King should march on elephant in city on daily basis . If a fox sits on elephants, will people presume that fox as King? No. That means the scholars understand the differences between foolish and wise Kings. (Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.371, 372)
  CEO should visit in workplaces and market Places:-
 The CEO must visit following places regularly –
If organization is multi branches organization, the CEO visit branches regularly.
If organization is business organization, the CEO must visit market places and should meet the associates and customers fo getting real facts.
If the CEO is politician she /he must visit constituency regularly.
If CEO is a defence person then that person should visit different borders regularly.
If the organization has multi production facilities, CEO must visit those production centres regularly. If necessary, CEO must visit suppliers too or production centres for vital components.
  References   
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 63 
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 ओडार्सू    (देवलसारी निकट, टिहरी गढ़वाल  ) में  विजेंद्र पंवार व  जयेन्द्र  पंवार परिवार की भव्य तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन  , नक्कासी  

House wood Carving Art  of  Odarsu , near  Devalsari , Tehri    Garhwal

 गढ़वाल, कुमाँ ऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल    ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी  )   -142   

संकलन - भीष्म कुकरेती

  ओडार्सू    (देवलसारी निकट , टिहरी गढ़वाल )  गांव से राकेश पंवार ने  अपने परिवार  की भव्य टीबाति की सूचना व फोटो  भेजी है जिससे सीधा अर्थ निकलता है कि  यह गाँव कृषि समृद्ध गाँव था  और तिबारी की  भली दसा से साफ़ लगता है कि परिवार वाले देख रेख में कोई कोताही नहीं बरतते हैं बल्कि  तिबारी को  युवा रखने में तत्पर    रहते हैं। 
  तिबारी पंवार परिवार के दुपुर , दुखंड /तिभित्या मकान  के पहली मंजिल पर स्थापित है।
ओडार्सू    (देवलसारी निकट ) में  विजेंद्र पंवार व  जयेन्द्र  पंवार परिवार की भव्य तिबारी में 7 स्तम्भ /सिंगाड़ /columns  हैं जो 6 ख्वाळ  /खोली/द्वार  बनाते हैं।   प्रत्येक स्तम्भ छज्जे के  ऊपर देळी /देहरी के ऊपर चौकोर पत्थर डौळ  के ऊपर स्थापित हुए हैं व आधार पर  उल्टा कमल दल (अधोगामी पद्म पुष्प दल )   कुम्भी बनता है व इसके ऊपर ड्यूल (ring type wood plate ) है जिसके ऊपर  सीधा उभरता कमल फूल ( उर्घ्वगामी पद्म पुष्प )  है जहां से सिंगाड़ की गोलाई .मोटाई कम होती जाती है व जहां पर सबसे कम मोटाई है  वहां  पर उलटा कमल दल है व उसके ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी (सुल्टा /सीधा ) कमल पुष्प है।  कमल पंखुड़ियों व सिंगाड़  की  मध्य भागीय कड़ी  (shaft  of  Column ) में  फर्न पत्ती नुमा आकृति अंकन हुआ है।   सीधे कमल दल  से सिंगाड़  दो भागों में बंट जाता है एक भाग सीधा ऊपर  जा थांत (bat blade type ) की शक्ल ले लेता है व दूसरी ओर मेहराब के चाप शुरू हो जाते हैं।  मेहराब /arch  तिपत्ति  (trefoil ) आकृति का है बस बीच में आकर तीखा है।   मेहराब के  दोनों किनारे के त्रिभुजों में  बेल बूटों की नक्कासी है।  मेहराब  व सिंगाड़ के ऊपर  मुरिन्ड /मथिण्ड  के ऊपर  तीन च रतः वाली कड़ियाँ हैं जिन पर बेल बूटों की नक्कासी हुयी है।   इन कड़ियों के ऊपर छत आधार पट्टिका है जिमे बहुत ही नायब बेल बूटों की नकासी हुयी है।  छत आधार पट्टिका व बारिश रोको पट्टिका में भी सुंदर नकसी हुयी है।  छत आधार पट्टिका में ज्यामितीय कला प्र्दशन हुआ है।
   मकान में पहली मंजिल म ीक द्वार व  एक खड़की में द्वार सिंगाड़ों  में बहुत ही नयनाभिरामी अलंकरण अंकन हुआ है। पहले मंजिले माने के  प्रवेश द्वार  व खड़की के सिंगाड़ कुछ तिबारी के सिंगाड़ की ही नकल है।  प्रवेश द्वार के उप सिंगाड़ों  में बेल बूटों की नक्कासी है।  प्रवेश द्वार के मुरिन्ड में ैव प्रतीक आकृति खुदी है। खिड़की में मेहराब  निर्मित  हुआ है। खिड़की    के मुरिन्ड  में भी देव आकृति खुदी है। 
निष्कर्ष निकलता है कि ओडार्सू    (देवलसारी निकट ) में  विजेंद्र पंवार व  जयेन्द्र  पंवार परिवार की भव्य तिबारी में प्राकृतिक (natural motifs ) , ज्यामितीय (geometrical motifs ) व मानवीय (देव रूप आकृति ) अलंकरण अंकन /नक्कासी हुयी है व    कला , बृहद आकार दृष्टि   ओडार्सू    (देवलसारी निकट ) में  विजेंद्र पंवार व  जयेन्द्र  पंवार परिवार की  उच्च स्तर  की तिबारी है व  गढ़वाल की भव्य   तिबारियों में गणना लायक है।   
 तिबारी   80  साल पुराणी है /
सूचना व फोटो आभार : राकेश पंवार , ओडार्सू 
  यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .     
 
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House  wood  Carving Art  of  Odarsu , near  Devalsari , Tehri    Garhwal
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्कासी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; House Wood carving Art from   Tehri;   


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 नंद प्रयाग में  सेठ भोला दत्त बहुगुणा के  भव्य भवन  में उत्कृष्ट काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी   नक्कासी ,

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , मोरी , काठ बनाल , छाज  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन  -  114

(कला , अलंकरण पर केंद्रित )

 संकलन - भीष्म कुकरेती -

 रुद्रप्रयाग , काला , बहुगुणा लोगों का  प्राचीन कल से ही रिस्ता रहा है।  धमरिक स्थल रुद्रप्रयाग मेएक  चट्टी थी तो बुगाणी  से बहगुणा लोग या सुमाड़ी से कला आकर रुद्रप्रयाग लोग अपनी  चट्टी निर्माण कर जीवन यापन करते थे।  सेठ भोला दत्त की कथा भी तीर्थ यात्रा व्यापर की सकारात्मक , उत्साह वर्धक कथा है  . प्रस्तुर भवन देखर भी उत्साह आता है कि कृषि के पश्चात व्यापर ही सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय है।

   सम्प्रति ,  सेठ सतह भोला दत्त  बहुगुणा की भव्य मकान  में तिबारी ,  तल मंजिल में खोली (मुख्य अंदरूनी प्रवेश द्वार ) , तिबारी के मेहराब व मुरिन्ड /मथिण्ड  में  कला , अलंकरण का विवेचना की जाएगी।

खोली आम गढ़वाली खोली जैसी ही  भव्य है।  खोली में ही नहीं  भोला दत्त बहुगुणा के मकान के अंदरूनी सीढ़ियों में भी नक्कासी हुयी है। 

तिबारी में छह  स्तम्भ  हैं जो  पांच खोली /खोळा बनाते हैं।

तिबारी के प्रत्येक स्तम्भ /सिंगाड़    में आधार पर अधोगामी कमल दल (उल्टा  खिला कमल  फूल ) , ड्यूल व उर्घ्वगामी कमल फूल (खिला हुआ सीधा कमल फूल ) है व शीर्ष में थांत  से पहले भी यही क्रम है।  याने तिबारी के छह स्तम्भों में कुल 12 अधोगामी कमल दल , 12 उर्घ्वगामी पदम् पुष्प व 12 ड्यूल (ring type wood  plate ) हैं।  इसी तरह स्तम्भ शीर्ष याने मुरिन्ड /मथिण्ड  से   थांत  (bat blade ) की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं याने तिबारी में  6  थांत  आकृतियां है। कमल पंखुड़ियों के ऊपर वानस्पतिक कला अलंकृत है , अंकित है।

 6 स्तम्भ पांच खोला / खोली बनाते हैं और पांच मेहराब भी।  मेहराब /arch  तिपत्ति  (trefoil ) आकर की हैं।  मेहराब से बाहर  की त्रिभुजाकार पट्टिका में फूल पतियों के अलंकरण अंकित हुए हैं।   मेहराब के ऊपर   उत्कृष्ट   प्रतीकात्मक देव या कोई अन्य प्रतीक जड़ा है।  शीर्ष कड़ी से  शंकु आकर आकृतियां लटकी हैं। 

   मकान की खोली के सिंगाड़ों  में प्राकृतिक बेलबूटों  का  नयनाभिरामी उत्कीर्णन हुआ है। 

सीढ़ियों के तल पट  पर भी कलात्मक नक्कासी हुयी है।  सूचना अनुसार  मकान के अन्य काठ भागों में देव आकृति (जैसे गणेश ) , मोर आकृतियां व अन्य धार्मिक  मोर सांप आभासी आकृतियां भी उत्कीर्ण हुयी हैं। 

  दरवाजों पर अधिकतर ज्यामितीय अलकंरण उत्कीर्ण हुआ है     

निष्कर्ष निकलता है कि नंद प्रयाग में सेठ भोला दत्त बहुगुणा के भव्य मकान में कायस्थ कला गढ़वाली शैली की है व उसमे  ज्यामितीय ,  प्राकृतिक , मानवीय (पशु पक्षी) व  प्रतीकात्मक  (देव या नजर उतारने वाले प्रतीक )  प्रकार की कला अलंकरण उत्कीर्ण हुयी है।  कला अपने उत्कृष्ट  प्रीकास्ट में उभरी है।   

सूचना व फोटो आभार : प्रसिद्ध व्यंग्य चित्रकार जागेश्वर जोशी 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: वास्तविकता में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली , छाज्ज  ,, कोटि बनाल ) काष्ठ  कला अंकन  - 

   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला, नीति में भवन काष्ठ  कला  ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला ,

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किमाणा (उखीमठ) में  स्व. जगनाथ सिंह पुष्पवाण की तिबारी  में काष्ठ  कला 
 
  किमाणा   (उखीमठ ) में   स्व   जगनाथ सिंह पुष्पवाण    की तिबारी  में काष्ठ  कला -अलंकरण अंकन , नक्कासी
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ अंकन , नक्कासी   -  140 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
-
  डा कैलाश पुष्पवाण  अनुसार उनका गाँव किमाण (उखीमठ , चमोली गढ़वाल )  लघु स्विट्जरलैंड है। कुमाणा संतरे व माल्टे फलों के लिए भी प्रसिद्ध है।   तिबारी केदारनाथ मंदिर से संबंधित    जगनाथ सिंह पुष्पवाण  ने   60  साल पहले निर्मित की थी व डा कैलाश पुष्पबाण  उनके पोते हैं।  डा कैलाश पुष्पवाण  ने इस मकान का  नवीनीकरण   किया व उसे पर्यटन केंद्र में परिवर्तित कर दिया है (होम स्टे ). 
स्व   जगन्नाथ  सिंह पुष्पवाण के  दुपुर , दुखंड  (तिभित्या )  मकान /तिबारी में लकड़ी पर नक्कासी  विवेचना हेतु चार मुख्य विन्दुओं पर ध्यान देना होगा -
१- तल मंजिल में  दो खोलियों (प्रवेश द्वारों ) के बाहर मंडप में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन /नकासी विवेचन
२- तल मंजिल में खोलियों में काष्ठ कला , नक्कासी विवेचना
३- पहली मंजिल में  काष्ठ जंगल या निमदारी में काष्ठ  कला , नक्कासी  विवेचन
४ -  मकान के अन्य स्थलों जैसे कमरों के दरवाजों व खिड़कियों में काष्ठ कला , लकड़ी नक्कासी 
 १-    स्न्नथ सिंह पुष्पवाण  के मकान के तल मंजिल में    दो खोलियाँ हैं  याने पहली मंजिल में जाने हेतु दो आंतरिक प्रवेश द्वार हैं , इन खोलियों के आगे शनदार , जानदार मनमोहक मंडप बने हैं और विवाह के वेदी का  आभास भी दिलाते हैं।  प्रवेश द्वार के दोनों किनारों पर चौकियां हैं  व प्रत्येक चौकी के ऊपर  चार चार स्तम्भ हैं।  ये स्तम्भ ऊपर जाकर तोरण  या मंडप  से मिल जाते हैं   इस तरह कुल 16  स्तम्भ हैं, प्रत्येक स्तम्भ का आधार डौळ  नुमा आकार लिए है , इस डौळ नुमा आकृति के ऊपर कुम्भी आकृति है व उसके ऊपर  दो लोटानुमा आकृतियां  उत्कीर्ण हुयी हैं।  इसके बाद स्तम्भ कम गोलई लिए कड़ी में बदलते हैं व तब ऊपर  अधोगामी (उल्टा ) कमल पुष्प की आकृति अंकित हुयी , फिर ड्यूल है ,. ड्यूल के बाद्द  स्तम्भ थांत  (bat blade type  )आकृति अख्तियार कर लेता है यहां से तीन तरफ तोरण /चाप मेहराब /आर्च निकलते हैं जो भव्य है।  दोनों खोलियों के मध्य में भी ये तोरण /मेहराब है व मकान की अप्रतिम सुंदरता  को बढ़ा देते हैं।  किनारे के स्तम्भों  के ऊपर आड़े दिशा में भी तोरण /मेहराब चाप है।   स्तम्भों के मुरिदं /मथिण्ड शीर्ष वास्तबव में छज्जे का आधार है  जिस पर जालीदार नक्कासी हुयी है।  यह नक्कासी आँखों को आनंद देने में सक्षम है।  वास्तव में ये संरचनाये (चौकी स्तम्भ व  मंडप) डा कैलाश द्वारा जीर्णोद्धार या reform के बाद की है , पुरानी फोटो  (जो उपसना  से मिलीं थीं ) में ये संरचनाएं नहीं है।    पुराने भवन के खोलियों के ऊपरी भाग में कलयुक्त ाले भी थे।
२- तल मंजिल में खोली में नक्कासी -  खोली के दरवाजे के दोनों और कलयुक्त सिंगाड़ (स्तम्भ ) बिराज रहे हैं।  एक एक सिंगाड़  तीन उप स्तम्भों को मिलाकर निर्मित किये गए हैं।  अंदरूनी दो उप स्तम्भों के आधार पर कमल दल जैसी आकृतिया उत्कीर्ण /carved  हुयी है व ऊपर वानस्पतिक कलाकृति उत्कीर्ण हुयी है।  किनारे के दो स्तम्भों के ऊपरी कड़ी भाग में बेल बूटे (सर्पिल लता व पत्तियां ) अंकित हई है।  ऊपर मुरिन्ड। मथिण्ड चौखट रूप है।  मुरिन्ड  के केंद्र में गणेश  आकृति खुदी है जो शकुन का प्रतीक है व बुरी नजर व बीमारी प्रवेश न करे का प्रतीक है।
३- पहली मंजिल में जंगलेदार /निमदारी में नक्कासी -  पुष्पवाण  परिवार के पुराने मकान व  नवीनीकृत मकान के जंगल में अंतर् है।  नवीनीकृत जंगल में छज्जे के आधार व ऊपर एक फ़ीट तक सुंदर नक्कासी हुयी है। 
फिर छज्जे से  10 स्तम्भ   नीचे से निकलकर   ऊपर की कड़ी (छत आधार के नीचे ) से मिल जाते हैं।  जंगले /निमदारी के स्तम्भों के आधार व ऊपरी भाग मोटेठे हैं.   पुराने  मकान में स्तम्भों के मध्य भाग में दो जगह कटान से कला दर्शायी गयी है। 
४- मकान के कमरों व खोलियों के दरवाजों पर ज्यामितीय कला , अलंकरण  उत्कीर्ण हुआ है याने ज्यामितीय नक्कासी हुयी है।
 
 कुल मिलाकर  किमाणा  (उखीमठ ) में पुष्पवाण  के परिवार दोनों समय के मकान  कला दृष्टि से व काष्ठ कला दृष्टि से उच्च स्तर  के हैं व नवीनीकरण के पश्चात  कायस्थ उत्कीर्ण कला को और भी मुखर किया गया है।
 चिनाई के  व काष्ठ शिल्पकारों के बारे में   अभी तक कोई सूचना नहीं मिल स्की है।   शूल्पकारों की सूचना से गढ़वाल में कला  शैली स्थानांतर  का भी ज्ञान हो सकेगा।  मकान में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय  सभी अलंकरण उत्कीर्ण हुए हैं व मिश्रण सलीके से हुआ है। 
 
सूचना व फोटो आभार : उपासना सेमवाल पुरोहित व  डा.कैलाश पुष्पवाण
 
कई सूचनाएँ  इंटरनेट  से  भी ली गयी हैं।
* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  * Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी

 

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