Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1104421 times)

Bhishma Kukreti

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देवप्रयाग मंडल   (टिहरी ) के  श्रीकोट क्षेत्र एक भव्य सातखंबा तिबारी में काष्ठ  कला , अलंकरण अंकन

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल    ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी  )     -173

संकलन - भीष्म कुकरेती

पर्यावरण मित्र  बिलेश्वर झल्डियाल   ने देवप्रयाग मंडल से  विशेषत: श्रीकोट से  कई  तिबारियों  की सूचना व फोटो भेजी हैं।  प्रस्तुत तिबारी  अति बिशेष तिबारियों के श्रेणी में आती है क्योंकि  श्रीकोट (टिहरी गढ़वाल ) क्षेत्र की  यह तिबारी सतखम्बी व खटख्वळि  /छह खवाळ  वाली तिबारी है।  तिबारी में काष्ठ  कला विवेचना हेतु तीन बिंदुओं पर ध्यान देना होगा।  मकान दुपुर, दुघर /दुखंड /तिभित्या है।  मकान का छज्जा चौड़ा है व पत्तरः वाली छत  वाला है। तल मंजिल से पहली मंजिल हेतु सीढ़ियां बाहर से हैं। 
  सतखम्बी व खटख्वळि  /छह  ख्वाळ    वाली तिबारी के तल मंजिल  में काष्ठ कला आकलन
पहली मंजिल में तिबारी में लकड़ी पर नक्कासी
 तिबारी के ऊपर मुरिन्ड  में काष्ठ कला  व अलंकरण अंकन
 मकान के तल मंजिल में दो बड़ी  चौखट खोली हैं जिनमे लकड़ी का तोरण /मेहराब स्थापित है।
पहली मंजिल में बाहर के तीन कमरों को खुला छोड़ बरामदा बना है जिस में  सात  सिंगाड़ /स्तम्भ  व स्तम्भों से निर्मित छह  ख्वाळ /खोली हैं।  कोटि क्षेत्र की इस तिबारी के सातों स्तम्भ   गढ़वाल की अन्य  तिबारियों स्तम्भों जैसे ही हैं किन्तु स्तम्भों के ऊपरी  शिरा  में अलग विशेष प्रकार की काष्ठ   कला अंकन देखने को मिला।
स्तम्भ  की आधारिक  कुम्भी अधोगामी कमल से बनी है, फिर
 ड्यूल है , , फिर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल है और यहां से स्तम्भ लौकी आकर लेता है।   गढ़वाल  की अन्य तिबारियों में सामन्यतया स्तम्भ की सबसे कम गोलई से थांत  (cricket bat blade type ) की शक्ल ले लेता ही किन्तु श्रीकोट क्षेत्र की इस तिबारी में स्तम्भ थांत  के आकृति में न होकर  स्तम्भ चौकोर मुंगुर /गदा नुमा  (club ) आकृति  अख्तियार कर लेता है।  इस मुंगर नुमा आकृति में युग्म लघु स्तम्भ भी अंकित हैं जो इस तिबारी  की विशेष विशेषता  (Exclusive  charcterstic )  प्रदान करता है।  युग्म लघु स्तम्भ युक्त  मुंगर /गदा आकृति सीधे ऊपर सिंगाड़  की कड़ी से जुड़ जाते हैं। 
छत के आधार व सिंगाड़ कड़ी के मध्य पट्टी में अंकन हुआ है। 
  आज  मकान जीर्ण शीर्ण अवस्था से गुजर रहा है किन्तु साफ़ पता चलता है कि कभी इमारत बुलंद थी व  चहल पहला वाला घर था।
  घट , गांव व घर मालिक की सूचना अभी नहीं आयी है तो शिल्पकार कहाँ के थे की सूचना भी प्रतेक्षारत है किन्तु मकान चिनने  वाले ओडों  व काठ कलाकारों के शिल्प की  प्रशंसा तो होनी ही चाहिए। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि श्रीकोट क्षेत्र की यह तिबारी गढ़वाल के तिबारियों में विशेष तिबारियों में गिनी जायेगी .

  सूचना व फोटो आभार : बिलेश्वर झल्डियाल पर्यावरण मित्र

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्कासी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; House Wood carving Art from   Tehri;           

Bhishma Kukreti

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Narendra Shah appointing Bhavani Datt Uniyal as Diwan and problems of Kuli Begar

History of Tehri King Narendra Shah -19
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 211   
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1458

By: Bhishma Kukreti (History Student)

    Narendra Shah appointed Bhavani Datt Uniyal as Diwan .Uniyal had been personal secretary of Kirti Shah and secretary of Sanrakhsan Samiti..  Bhavani Datt Uniyal worked as Diwan of Tehri Kingdom up to 1923. 
             Kuli Begar in Tehri Garhwal
 Kuli Begar was tradition that villagers had to bear the expenses and arrange transportation of goods of government officers visiting the village. Villagers had to arrange loaders and food , shelter for the officers. Kuli Begar tradition was a tradition from the Shah Administration and Chand administration. British official kept the tradition alive. In Tehri , the villagers had to face Kuli Begar  for European men coming for private visits as hunting etc.  The villagers had to arrange transportation of officers and Europeans but also arrange for their food, milk, ghee  and fodder for horses of  officers too.
  British officials stopping Kuli Begar in Pauri Garhwal
 British Government stopped Kuli Begar from 1921 .
There was restlessness among citizens of Tehri Garhwal for stopping Kuli Begar.
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 14
2-Bhakta Darshan, Garhwal ki Divangat Bibhitiyan
Copyright@ Bhishma Kukreti

Bhishma Kukreti

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Trees mentioned in Ashtadhyayi 

Plant Science in Panini’s Ashtadhyayi -3
BOTANY History of Indian Subcontinent –117   

Information Compiler: Bhishma Kukreti   

   Based on Panini Kalin Bharatvarsha by Vasudev Sharan Agarawala and Ashtadhyayi, Dabral offered details of trees, forests, medicinal and economic plants of Uttarakhand including Saharanpur (1, 2)
   There are following tress mentioned in Ashtadhyayi of Panini (3) –
 Sanskrit name in text ---------------Botanical name ------ Ref Ashtadhyayi
Amra --------------------------  Mangifera indica ------------VIII 4.5
Asvattha  ----------------------- Ficus religiosa -------------------IV, 3.48
Badara -------------------------Zizyphus  jujube ----------------- V 2,24
Bilva ---------------------------- Aegela marmelos ---------------IV3, 136
Daru ------------------  Cedrus deodara  -----------------------------IV 3, 139
Haritaki -------------------- Terminalia chebula ---------------------VI, 1.156
Ingudi ------------------------Ximenia aegyptiaca     -------- IV 3,164
Jambu --------------------------  Eugenia jumbolana -------------IV 3, 165 
Kantakara ------------------ Solenum jaquini ---------------------- IV , 3, 152
Karira -------------------- Capparis aphylita -------------------- IV 3, 141
Karshya ---------------------    Shorea robusta ------------------- VIII ,5
Khadira -------------------------- Acacia   catechu ----------------VIII 4,5
Kutja ---------------------     Holarrhena antidysentirica -------------- VI 1, 50
Nipa------------------------ Nauclea  kadama ------------------------ IV 3, 152
Nygrodha --------------------- Ficus bengalensis -------------------- VI, 2, 82
Palasa ------------------------ Butela frondosa -------------------IV 3, 1, 41
Patali ---------------------------- Stereospermum suaveolens ------- IV3, 136
Pilu -------------------------- Salvedora indica ----------------- V 2,24
Plaksha ------------------------ Ficus infectoria ---------------------  IV 3,136
Rohitaka --------------------- Andersonia rohitaka  -------------- IV 3, 152
Salmali ---------------- Bombax malabaricum ------------------IV 2, 82
Sami ------------------------- Prosopis specigera ------------------  V, 3,88
 Simsapa ----------------------Dalbergia sissoo --------------------VII 3.1
Spandana ------------ confusion                                  ----   IV 3.141
Sirisha ---------------------------Memosa sirisa --------------------- IV , 2, 80
Tala -----------------------------Borassus flabelifer ---------------IV 3, 152
Udumbara ---------------------Ficus glomerata ---------------------IV 3, 152
Varana -------------------     Crataeva religiosa -------------------- IV 2, 82
Vibbhitaka ---------------- Terminalia beelrica ------------------- IV 3, 152
Vikankata -------------------Flacourtia spida ------------------- IV 3.141
Vishtara ------------------------Unidentified tree ---------------VIII, 3, 93

References
1-Dabral, Shiv Prasad, 1969, Uttarakhand ka Itihas Bhag -2, Veer Gatha press Dogadda pp 150
2- Dabral, Shiv Prasad 1992,Kuninda Janapad  Veer Gatha press Dogadda
3-Agarawala, V.S, Ancient Indian Flora in Ashtadhyayi of Panini, Palaeobotanist (1952) 1:61-65
4- Vasudev Sharan Agarawala , Panini Kalin Bhartavarsha  (Digitalized book free down load )
5-Agarwal, Ashwini Kumar , Ashtadhyayi of Panini complete

Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020


Bhishma Kukreti

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  रांसी (रुद्रप्रयाग ) में एक निमदारी में काष्ठ कला , अलंकारण , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ अंकन , नक्कासी   -  172 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
-
रांसी रुद्रप्रयाग का एक गाँव है जहाँ से  तिबारी  व निमदारियों  होने  की सूचना मिली है I इस कड़ी में रांसी गाँव में एक तिपुर मकान में निमदारी या जंगलों में काष्ठ कला , अलंकरण, नक्कासी पर चर्चा की जायेगी I
 यह मकान तिपुर (तल +2 मंजिल )  दुघर , दुखंड   है I दुखंड , दुघर या तिभित्या का अर्थ है  एक कमरा बहर व एक कमरा अन्दर व इन दो कमरों के मध्य एक भीत (दीवाल ) I इस दो मंजिलों की निमदारी   वाले मकान में तीन हिस्सों में काठ की नक्कासी  पर ध्यान देना होगा – तल मंजिल में  खोली में काष्ठ कला –अलंकरण ,  पहली व दूसरी मंजिल में निमदारी के स्तम्भों व जंगलों में काष्ठ कला , नक्कासी व कहीं एनी स्थलों जैसे कमरों , खिडकियों के सिंगाड़ , मुरिंड आदि में काठ पर नक्कासी का जायजा लेना I
  तल मंजिल में दो बड़े द्वार /ख्वाळ/खोह हैं एक ख्वाळ को तख्तों से बंद कर दिया गया है दूसरे ख्वाळ में सथार्ण दरवाजा है .
 तल मंजिल से उपरी मंजिलों में जाने के लिए अंदरूनी  सीढ़ियों हेतु मुख्य प्रवेश द्वार या खोली  है I खोली के सिंगाड़ /स्तम्भ वास्तव में  नक्कासी युक्त तीन उप  त्रिगट सिंगाड़ो  व  मध्य में बिन नक्कासी के सीधे उप सिंगाड़ों /स्तम्भ से  मिलकर बने हैं व दोनों ओर नक्कासी युक्त  त्रिगट व सपाट त्रिगट  सिंगाड़ खड़े हैं I नक्कासी वाले उप सिंगाड़ /स्तम्भ  आधार  में  मोटा आयात   आकार  , फिर दो तीन कुम्भी आकार जिनके बीच कमल दल रु आभासी   आकृतियाँ है व फिर सभी उप स्तम्भ सीधे हो  पड़े  (भू समांतर ) रूप में आकर उपर मुरिंड का निर्माण  करते हैं I उपर मुरिंड में कुल 6 तल  हैं I मुरिंड के मध्य में गणेश मूर्ति थरपी /स्थापित ) गयी है याने प्रतीकात्मक मानवीय अलंकरण का उदाहरण मुरिंड में उपस्थित है Iदरवाजे पर सपाट कटान आयत आकृति बनाते के अतिरिक्त  दो अष्ट दलीय फूल खुदे हैं I अस्तु कहा जा सकता है मुरिंड  में ज्यामितीय , वानस्पतिक व प्रतीकात्मक मानवीय अलंकरण अंकित हैं I
   पहली व दूसरी मंजिल की निमदारी में  काष्ठ स्तम्भों /खम्बों से निमदारी निर्मित हुयी हैI प्रत्येक मंजिल में  9 स्तम्भ /खम्बे हैं अत: भवन में ऐसे कुल 18 स्तम्भ हैं I प्रत्येक गोल स्तम्भ के आधार में  दो फिट ऊँचाई तक  दोनों ओर पट्टिका  फिट की गयीं है व बाद में  कुछ उपर जाने के बाद  ड्यूल है उसके उपर बड़ा मोटा बड़े आयत का ड्यूल है फिर ड्यूल है व उसके उपर से  स्तम्भ लौकी आकार अख्तियार कर लेता है व जब लौकी आकार र समाप्त होता है तो तीनों ड्यूल के वाही आकृतियाँ निम्रित है जो इची आधार के बाद ऊपर हैं I इन अंतिम ड्यूल के बाद  स्तम्भ थांत (Cricket Bat Blade form ) आकृति अख्तियार रता है व  थांत रूप में ही मुरिंड (शीर्ष ) की कड़ी से मिल जाता है I
  स्तम्भ में आधार के  पौण फिट , डेढ़ फिट व ढाई फिट  ऊँचाई पर एक एक कड़ी  (भूतल से समानंतर) मिलकर  तीन रेलिंग निर्माण करते हैं I जो  ख़ूबसूरत दिखते हैं I
बाकी जगह भवन में विशेष काष्ठ कला अंकित नही हुयी है I
 मकान की छत टिन की है अत: मकान 1940 के बाद ही निर्मित हुआ ह्होगा I
 निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि रांसी गाँव के  इस खूबसूरत भवन में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय (प्रतीक गणेश  मूर्ती ) अलंकरण हुआ हैI
सूचना व फोटो आभार :
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी


Bhishma Kukreti

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  गटकोट   (ढांगू ) में जखमोला परिवार की निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण  अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  171
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लॉक में गटकोट एक प्राचीन  गाँव है व एक समय यह गढ़ी थी व यहाँ एक कोट  (छोटा किला  भी था।  यहाँ की  कई तिबारियों व निमदारियों  पर पहले चर्चा हो चुकी है।  अभी कुछ तिबारियों पर चर्चा हनी बाकी है. इसी  क्रम में आज  गटकोट   में नारयण दत्त जखमोला व मुनिराम  जखमोला की निम दारी में काष्ठ कला की चर्चा होगी।  कभी  गटकोट  की यह निमदारी में खूब चहल फल   रहती थी  अब उजाड़ पड़ी है। 
  गटकोट में नारायण दत्त , मुनिराम जखमोला की निमदारी   ढांगू   की अन्य निमदारियों जैसी ही है व कला दृष्टि से कोई विशेष अंतर् इस निमदारी में नहीं पाया गया।  दुपुर , दुखंड मकान में निमदारी पहली मंजिल के पत्थर के छज्जे पर लगी है।  निम दारी में आठ  सादे स्तम्भ हैं जो  छज्जे से सीधे मुरिन्ड की कड़ी से मिल जाते हैं।  स्तम्भों पर कोई नक्कासी नहीं हुई है।  एक दरवाजों में  ज्यामितीय कटान हुआ है व पैनल , मूलियन  देखकर  लगता है कि दरवाजा बाद में जोड़ा गया है। 
भवन में कोई विशेष  काष्ठ कला नहीं दिखती है। 
 
सूचना व फोटो आभार : विवेका नंद जखमोला , गटकोट 

यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी 

Bhishma Kukreti

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  जौहर घाटी के बरफू गाँव में  मकान में' ढुंगकटण  ब्यूंत ' की पाषाण कला
( हिमालयी ' ढुंग कटणौ  ब्यूंत ' व  'पगार चिणनौ ब्यूंत ' तकनीक  का कमाल ) 
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में   पाषाण  उत्कीर्णन कला   -  168
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 
-
 इस लेखक का विषय मकान में काष्ठ कला है ना कि पाषाण कला किन्तु जब इस लेखक को  जब   इंटरनेट में खोज करते  पिथौरागढ़ के बरफू गाँव में ध्वस्त मकान का चित्र मिला तो इस मकान को सामने लाने से न रह  सका।   1962  से पहले भारत  तिब्बत  व्यापार मार्ग  में  स्थापित बरफू गाँव कभी    आबाद गाँव था व रौनक दार गांव था तब बरफू में मिटटी पत्थर व लकड़ी के मकान थे अब चीनी अड़ंगा के कारण  तकरीबन खंडहर  हो चुके हैं।  इन्ही खंडहरों में से एक पत्थर के मकान अभी भी तेज बर्फीली हवाओं व बर्फ के मध्य खड़ा है और अपना इतिहास बयान कर रहा है। यद्यपि तिब्बत प्रभावित गृह शैली में मकान बहु मंजिले होते हैं यह मकान तल मंजिल तक ही सीमित है। 
 मकान अंदर से सम्भवतया दुखंड या तिखंड  है।  सामने बरामदा है व छत  दो बड़ी किनारे की पत्थर की दीवारें व मध्य में तीन  पाषाण स्तम्भों पर टिका है। एक किनारे की दीवार चौड़ी है।  मकान में पाषाण कला की दृष्टि से मध्य के तीन पाषाण स्तम्भ ही महत्वपूर्ण हैं।  पत्थर कटान  हिमालयी    'ढुंगकटणौ   ब्यूंत ' तकनीक पर आधारित है। 
प्रत्येक स्तम्भ  में कला या शैली तकरीबन एक जैसे ही है किन्तु  इसे कार्बन कॉपी भी नहीं  कहा जा सकता है।  सभी स्तम्भ लगते हैं गोल हैं।  मुरिन्ड छत का अधहार लकड़ी की कड़ी है।
  'ढुंगकटणो  ब्यूंत; से पत्थर इस तरह काने गए हैं व किनारे  चिने  गए हैं कि  स्तम्भ का आकर नीचे से ऊपर मुरिन्ड  तक गोल है।   पत्थरों की चिनाई  में 'पगार चिणनौ  ब्यूंत '  या ' पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक प्रयोग हुआ है।  स्तम्भ के  आधार में  पत्थरों  की हाथी पांव  आकृति है।  हाथी पाँव आकृति के ऊपर गोलाई में पत्थर चिने  गए हैं व ऊपर ड्यूल  नुमा आकृति के पत्थर लगे हैं।  प्रत्येक स्तम्भ में  आधार से कुछ ऊपर एक  ड्यूल हैं व एक ड्यूल आकृति  शीर्षफलक /abacus  से नीचे है वास्तव में सबसे उप्पर का पत्थर भी कुछ कुछ ड्यूल नुमा  ही है।   हिमालयी   पत्थर कटान 'ढुंगकटणौ   ब्यूंत ' तकनीक का ही कमाल है कि दो स्तम्भ की गोलाई नीचे से ऊपर तक तकरीबन एक समान है।  किनारे का एक स्तम्भ दो ड्यूल के मध्य चौकोर आकृति का है। 
  स्तम्भों से बने ख्वाळ  में लकड़ी की संरचना थी जो द्वार भी हो सकता  है अर्द्ध  ढकनी भी हो सकती है।  तल मंजिल में बरामदे के अंदर आग जगाने की मेहराब पाषाण अंगेठी या ढुंग बड़  (पत्थर की  छोटी आलमारी ) से पता चलता है की भवन में लकड़ी के काम में भी उच्च स्तर की नक्कासी हुयी होगी। 
मकान के तल मंजिल के किनारे की दीवारों के या पौ  चौंतरा /  नींव  के चौंतरा (foundation plateform )  के पत्थर भी  हिमालयी ' 'ढुंगकटणो  ब्यूंत ' तकनीक  से  काटे गए हैं  व हिमालयी  ' 'पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक अनुसार  पत्थरों की चिनाई  हुयी है। 
  बरफू (जोहर घाटी , पिथौरागढ़ ) के ध्वंस पाषाण मकान   में पत्थर की कटाई ज्यामिति कटाई ही हुयी है व कहीं भी प्राकृतिक या मानवीय अलंकरण नहीं दिखे हैं।   
बरफू (जोहर घाटी , पिथौरागढ़ ) के ध्वंस पाषाण मकान से सिद्ध होता है कि इस गाँव में  'ढुंगकटणो  ब्यूंत व  'पगार लगाणौ ब्यूंत ' तकनीक  उच्च स्तर की थी व कलाकार दोनों शैली के अभ्यस्त कलाकार थे।    ढुंग कटण  वळ  व 'पगार चिणन वळ'   कलाकार   जौहर घाटी के ही थे इसमें शक नहीं होना चाहिए। 
सूचना व फोटो आभार : शुभम मानसिंगका  (इंटरनेट )
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में  पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में  पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में    पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में    पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में    पत्थर पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh

Bhishma Kukreti

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जाजार (पिथौरागढ़  )  में  स्व . मोहन  सिंह दसौनी के मकान  (बाखली भाग ) में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -  178
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जाजार   पिथौरागढ़ के पाताल भुवनेश्वर के निकट बेरीनाग ब्लॉक  का महत्वपूर्ण  गांव है।   राजेंद्र रावल ने  जाजार  गाँव से तीन चार बाखलियों की सूचना दी है।  प्रस्तुत  स्व मोहन सिंह दसौनी  का तिपुर भवन    (तल मंजिल + 2  मंजिल ) वास्तव में  बाखली  शैली का ही भवन है किन्तु   भवन के दूसरे  भाग  का आधुनिकीकरण से यह भाग पूरा बाखली नहीं रह गया है।   भवन तल मंजिल व दो ऊपरी मंजिल का है व दुघर /दुखंड शैली का है।  दसौनी के भवन में तल मंजिल में काष्ठ कला या  काष्ठ अलंकरण  संबंधी  दर्शाने के लिए  कोई विशेष काष्ठ   भाग नहीं है।   काष्ठ  कला या नक्कासी समझने हेतु पहली मंजिल व दूसरी मंजिल पर ही ध्यान देना आवश्यक है।
जाजार  के मोहन सिंह दसौनी के भवन के पहली मंजिल  में एक कमरे के दरवाजों व  दो खिड़कियों में ज्यामितीय कटान  के अतिरिक्त विशेष कुछ उल्लेखनीय कला नहीं मिलती है।  पहली मंजिल में  काष्ठ  कला की विवेचना हेतु झरोखे पर ध्यान देना आवश्यक है।  स्व .  मोहन सिंह दसौनी के भवन के पहली मंजिल पर स्थित  झरोखा /छाज कुमाऊं के अन्य बाखलियों के झरोखे /  छाज के सामान   ही है।  इस झरोखे/ छाज  में दो  अंडाकार ढुढयार (झरोखे ) हैं व  तीन तीन लघु स्तम्भों   से मिलकर तीन स्तम्भ हैं।  यह शैली लगभग कुमाऊं के प्रत्येक बाखली में   सामान्य    शैली है।   प्रत्येक लघु स्तम्भ  के आधार में  अधोगामी पद्म  पुष्प है फिर ड्यूल  है उसक ेऊपर सीधा कमल दल है व उसके ऊपर से स्तम्भ  सीधे ऊपर जाकर मुरिन्ड /मठिंड / शीर्ष  के तल /layer  बन जाते हैं।   छाज के दोनों दरवाजों के  मध्य खरोखा है जिसमे मेहराब कटान हुआ है। 
मोहन सिंह दसौनी  के बाखली भवन के  दूसरे मंजिल में  दो बड़े झरोखे /छाज व दो छोटे झरोखे /छाज हैं जो पहली मंजिल के झरोखे की  लगभग  प्रतिलिपियाँ ही हैं केवल आकार का अंतर् है। ऊपरी मंजिल के छाजों में डी दरवाजे नहीं है व तीन स्तम्भों की जगह दो ही स्तम्भ है। 
  निष्कर्ष निकलता है कि जाजार (बेरीनाग , पिथौरागढ़ ) के बाखली भाग में ज्यामितीय , प्राकृतिक (कमल दल आदि ) अलंकरण हुआ है और इस लेखक को  मानवीय (figurative   ornamentation  ) नहीं देखने को मिला।  भवन के तल मंजिल से शुरू होने वाली व पहली मंजिल में  समाप्त  होने वाली खोली भी  पत्रों से भर दी गयी है अतः  मानवीय अलंकरण के चिन्ह भी मिट गए हैं।  (खोली में दैव  प्रतीक होता ही है ) .   
सूचना व फोटो आभार : राजेंद्र रावल , जाजार
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh

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लाखामंडल  (देहरादून ) शिव मंदिर व  गढ़वाल में  तिबारी काष्ठ  सिंगाड़  कला की लगुली (link )

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी    ) में  काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, नक्कासी    -  164
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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मंदिर में पाषाण या काष्ठ कला, अलंकरण  इस श्रृंखला का कोई अंग नहीं है।  फिर भी तिबारी, बाखली , निमदारी , कोटि बलान , खोली , मोरियों में  काष्ठ कला  शैली व अलंकरण शैली का उद्भव , प्रचार -प्रसार हेतु प्राचीन मंदरों की कला को समझना भी आवश्यक हो जाता है (फिर भी  यह  लेखक  मंदिरों में नहीं उलझना चाहता  है व अपने को  केवल मकानों तक ही सीमित रखना चाहता है ) ।   
जौनसार , रवाईं की गृह काष्ठ कला ने सभी कला विदों को आकर्षित किया है और  लाखामंडल  के मंदिर में  संभवतया सत्रहवीं सदी के जीर्णोद्धार हुआ व  लकड़ी के काम में बदलाव आया हो।  शिव मंदिर  जैसे  वास्तु  से गढ़वाल में तिबारियों में स्तम्भ के  कड़ी/link  मिल जाते हैं व कई परतें आगे जाकर खोलने में सक्षम होगा। 
  लाखामंडल के पांचवे छठे  सदी के नागर शैली का शिव मंदिर जिसका जीर्णोद्धार सम्भवतया 17   वीं सदी में हुआ होगा में काष्ठ  कला समझने हेतु निम्न केंद्रों पर टक्क लगाना आवश्यक है - तल मंजिल में  स्तम्भ व मेहराब या तोरण , पहली मंजिल में स्तम्भ व तीसरी मंजिल में स्तम्भों में ला।  मंदिर की मंजिल व जौनसारी /रवाईं  के कोटि बलान  शैली में ही निर्मित  दिख रहे हैं। 
  लाखामंडल के   इस मंदिर (    मंदिर  में  सम्भवतया  400  साल पुराना  लकड़ी का काम हुआ होगा ) के शिव मंदिर के तल मंजिल में  दो पत्थर स्तम्भ हैं व तीन काष्ठ स्तम्भ (लखड़ का सिंगाड़ ) हैं व तीनों सिंगाड़  दो प्रवेश द्वार /ख्वाळ  बनाते हैं।   स्तम्भ के आधार में कुम्भी उलटे कमल से बना है , इसके ऊपर ड्यूल है , उसके  ऊपर सीधा कमल दल है व उसके ऊपर स्तम्भ लौकी की शक्ल अख्तियार करता है व जब स्तम्भ की सबसे कम मोटाई होती है वहीं से स्तम्भ थांत  (cricket  bat   blade  type  ) की शक्ल परिवर्तित कर लेता है।  यहीं से स्तम्भ से  मेहराब का  अर्द्ध  चाप निकलता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से पूर्ण मेहराब बना लेता है।
मेहराब  द्विजा (ओगी  ogee )  शैली में निर्मित हुआ है। 
 तल मंजिल व पहली मंजिल के  संधि भाग मोटी  कड़ी  से निर्मित है है। 
पहली मंजिल में सामने (नदी की ओर )  पांच स्तम्भ हैं व  अगल बगल में एक एक स्तम्भ हैं याने   सात  स्तम्भ पहली मंजिल पर हैं।  सभी स्तम्भ तल मंजिलों के स्तम्भों से हू बहू मिलते हैं।  पहली मंजिल के छत से एक पट्टी नीचे लटकी है जिस पर झालर लगे हैं। यहीं पट्टिका के केंद्र या  छत के मुण्डीर / मूंड नीचे   सूर्य नुमा देव प्रतीक लगा है।  पट्टिका पर सर्पिल  आकृति की लता अंकन हुआ है। 
 दुसरे मंजिल में एक बुर्ज नुमा मंदिर शीर्ष आकृति है जिसमे चार काष्ठ स्तम्भ लगे हैं।  तीसरे मंजिल के मंदिर शीर्ष में भी  छह लकड़ी के सिंगाड़ लगे हैं जो  शैली व कला दृष्टि से तल मंजिल के सिंगाड़ों /स्तम्भों का ही रूप हैं।
   चूँकि इस लेखक का उद्देश्य मंदिर काष्ठ  कला नहीं है अपितु  मंदिरों में प्रयुक्त  स्तम्भों में रूचि थी।  यदि  पांचवीं सदी में निर्मित मंदिर का  जीर्णोद्धार सत्रहवीं सदी के आस पास हुआ  या 18  सदी में भी हुआ तो भी  कहा जा सकता है बल गढ़वाली -कुमाउँनी  ,यहां तक कि  नेपाल सीमा के धारचुला  क्षत्र के भवन स्तम्भ शैली में पिछले तीन - चार सौ सालों में कोई अंतर नहीं आया है।  और यदि मंदिर में कायस्थ कार्य ब्रिटिश कल में हुआ है तो भी यह दर्शाता है कि  तिबारी स्तम्भ मामले में यमुना के पूर्वी भाग व काली नदी के पश्चमी भाग में सर्वत्र स्तम्भों में कला , शैली अलंकरण एक ही रहा है। 
*** मंदिर में जीर्णोद्धार लकड़ी का काम 400  साल पहले हुआ होगा केवल अनुमान है, सत्यता से दूर हो सकता है । 
फोटो आभार :  पंकज असुन्दी , सूचना अरुणा  धीर
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देहरादून , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार, बाखली , कोटि बनाल  मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला जारी रहगी
 Traditional House Wood Carving of Dehradun Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  will be continued -
  House Wood Carving Ornamentation from Vikasnagar Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Doiwala Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Rishikesh  Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Chakrata Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Kalsi Dehradun ;  चकराता , देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  डोईवाला देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  विकासनगर देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ; कालसी देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  ऋषिकेश देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी   

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 हरसिल में   विल्सन   का  1843 -44  में निर्मित  विल्सन कॉटेज में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 165
 संकलन - भीष्म कुकरेती     

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हरसिल का राजा या पहाड़ी विलसन  या फ्रेड्रिक  विलसन का गढ़वाल इतिहास में टिहरी राजा से अधिक चर्चित हुआ था।   विलसन   सन 1830  से पहले ब्रिटिश सेना में था व बाद में  वह  रुग्ण हुआ  या कुछ कहते हैं कि वह  ईस्ट इण्डिया कम्पनी सेना का  भगौड़ा था।  स्वास्थ्य सुधार हेतु विलसन  को  मसूरी भेजा गया था जहाँ उसे हिमालय इतना पसंद आया कि  विलसन  गढ़वाल का हो गया।  विलसन  शिकारी बन गया व जंगली जानवरों  के अंग बेचकर विलसन  ने खूब  धन कमाया।  1845  में विलसन  ने हरसिल में रहना आरम्भ कर दिया उसने स्थानीय लोगों से घनिस्टता स्थापित   की व जंगली जानवरों के अंग का व्यापर में वृद्धि करता गया।  विलसन  ने हरसिल में सेव के बगीचे भी लगवाए व स्थानीय परिवारों को भी सेव बागवानी हेतु प्रोत्साहित किया।   विलसन  ने संग्रामी शिल्पकारण  से विवाह  किया  .  जंगली जानवरों के अंग प्रत्यंग से कमाए धन से विलसन  ने  1843 -1844  में विलसन फारेस्ट मैनसन   निर्मित किया जिस घर की दीवारें व कमरों के फर्श लकड़ी के स्लीपरों के थे।  (डबराल )  .  बाद में टिहरी रियासत के वनों के ठेके लेकर विलसन  ने अकूत धन कमाया।    विलसन  कॉटेज टिहरी  देश के इतिहास हेतु  तो महवत्वपूर्ण है ही  अपितु  पहाड़ों  में नए  वास्तु कला  के जन्म हेतु भी महत्वपूर्ण है। 
अनुमान किया  जाता है कि  गढ़वाल में निमदारी निर्माण  शैली संभवतया 1843 -44  में निर्मित विलसन  कॉटेज के      प्रभाव से ही जन्मी।  कुमाऊं  में  ब्रिटिशरों या अंग्रेजों के जंगलेदार मकान 1890  के बाद ही दीखते हैं व इस श्रृंखला में भी अल्मोड़ा व चम्पावत जिले  के लगभग 1900 के  निर्मित निमदारियों का वर्णन किया गया है।  गढ़वाल में हरसिल में ही इस प्रकार की  निमदारी 1843  में निर्मित हो गयी थी।  हो सकता है  पश्चिमी गढ़वाल में विलसन  कॉटेज   शैली का प्रभाव  पड़ा होगा व पूर्वी गढ़वाल व कुमाऊं  पर अन्य अंग्रेजों के भवनों से निमदारी भवन शैली का प्रभाव पड़ा होगा। 
यदि हम जौनसार , नेलंग  घाटी , टिहरी  गढ़वाल  उदाहरण राजमिस्त्री नारायण दत्त भट्ट  का मकान ) के  व   चमोली , रुद्रप्रयाग व कुमाऊँ के  १८९० से पहले के मकानों का ध्यान करेंगे तो पता चलेगा कि  इससे पहले  मकानों में छज्जा नमात्र का ही होता था या होता ही न था।   विलसन  की निमदारी के बाद ही  शायद गढ़वाल में  मकानों में पहली मंजिल में छज्जा  व निम दारी शैली का प्रवेश हुआ होगा।   पौड़ी गढ़वाल में इड़ा , सुकई  व चमोली गढ़वाल में  किमोठ   में  1890  के पहले बताये  गए मकानों में भी छज्जा  नहीं पाए गए हैं। 
विलसन  कॉटेज  फरवरी 1997  में आग में   भस्म    हो गया था व प्रस्तुत फोटो 1983  में ली गयी थी। 
 प्रस्तुत विलसन  कॉटेज को गढ़वाली शब्दावली /ग्लोसरी  हिसाब से भव्य निम दारी ही कहा जायेगा।   विलसन  कॉटेज दुपुर शैली में है व छत टिन  की है व  यॉर्कशायर या आयरिश शैली में छत बनी है।  तल मंजिल में लम्बा बरामदा है जिसके अंदर कमरे हैं।  तलमंजील के बरामदे के सभी स्तम्भों  के ऊपर पहली मंजिल में  लकड़ी का छज्जा /बरामदा सजा था व जिस पर जंगला सजा था।   
 
  तल मंजिल में  बरामदे में बड़ा प्रवेश द्वार है जिसके बाह्य किनारे पर  (चौक स सटकर )  एक तरफ एक स्तम्भ व दूसरी तरफ दो  काष्ठ स्तम्भ  थे  . बरामदे के बाकी दोनों किनारों पर    एक एक भाग में दो दो स्तम्भ थे।   विलसन  कॉटेज के तल मंजिल के स्तम्भ  कला में लगभग  जौनसार से लेकर अन्य गढ़वाल क्षेत्र के काष्ठ  स्तम्भों से मेल खा रहे हैं।  याने विलसन  ने स्थानीय कला स्वीकार की व  स्थानीय शिल्पकारों ने ही विलसन  कॉटेज के काष्ठ स्तम्भों का निर्माण किया।   स्तम्भ ऊपर पहली मंजिल के फर्श की आधारिक कड़ी से मिल जाते हैं। 
ऊपरी मंजिल  का फर्श  लकड़ी की कड़ियों या स्लीपरों से ही बना है।   पहली मंजिल की निमदारी पर 12 स्तम्भ हैं जो पहली मंजिल के फर्श के आधारिक कड़ी से उठकर ऊपर की कड़ी से मिल जाते हैं।   परएक स्तम्भ का आधार थांत  (criket  bat blade ) आकर  का है व कुछ ऊंचाई से मोटई कम होती है।  इसी ऊंचाई पर ऊपरी रेलिंग भी है जिस पर आयत में X  से भव्य जंगल ा बना था।  जंगल व बाकि सब जगह ज्यामितीय कला का प्रदर्शन ही था। 
   निष्कर्ष निकलता है कि  1843 -44  में       निर्मित विलसन  कॉटेज में काष्ठ   कला के हिसाब से यॉर्कशायर -आयरिश शैली व गढ़वाल शैली का समिश्रण हुआ है।  तल मंजिल के स्तम्भ गढ़वाली शैली व कलाकृति के हियँ बाकि लकड़ी का काम ब्रिटिश शैली का है।   बा तक के सर्वेक्षण में  जिन भी  निंदारियों की जानकारी मिली है वह 1900  बाद के ही हैं।  तो कहा जा सकता है विलसन  कॉटेज ही   गढ़वाल  की पहली निमदारी मानी जायेगी . यहां  तक  कि  कुमाऊं भाग में भी अब तक इस लेखक को किसी भी निमदारी नुमा भवन की सूचना नहीं मिली जो 1900  से पहले निर्मित हो तो कह सकते हैं कि  विलसन  कॉटेज उत्तराखंड  की पहली निम्दारी होगी।  और यह  कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि  गढ़वाल में निमदारी भवन शैली प्रवेश में विलसन कॉटेज की निमदारी का हाथ अवश्य है। 
 
  सूचना - शिव प्रसाद डबराल , व मनोज इष्टवाल , उत्तराखंड टूरिज्म सूचना विभाग
फोटो - स्वामी उपेंद्र व उत्तराखंड टूरिज्म विभाग
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 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी

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बगोरी (   , उत्तरकाशी ) की  एक निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन, नक्कासी
बगोरी (   , उत्तरकाशी ) में भवन काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी श्रृंखला -5
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 166
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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    प्राप्त सूचना व फोटो अनुसार बगोरी  में प्रस्तुत निमदारी वास्तव में जीर्णोधार हो रहा है या जीर्णोद्धार हो चूका है I बगोरी  का भवन संख्या 5  दुपुर है व बगोरी प्रथा की तरह तल मंजिल  संभवतया  गौशाला या भंडार हेतु उपयोग होता रहा है जबकि अब तल मंजिल में दुकाने खुलने के संकेत हैं I तल मंजिल में लकड़ी का काम केवल दरवाजों पर हुआ  है एवं दरवाजे पटिलों या तख्तों से निर्मित हुए हैं . तख्तों पर किसी  प्रकार की उल्लेखनीय या साधारण नक्कासी के दर्शन नही होते हैं I  बगोरी (   , उत्तरकाशी )  के भवन संख्या 5 के तल   मंजिल में बरामदे को ढका नही ग्या है व खुला है I तल मंजिल से उपर पहली मंजिल में जाने हेतु बहर से सीढ़ी है जो परम्परागत शैली  (आन्तरिक द्वार ) के मुकाबले अटपटा लगता है I
बगोरी (   , उत्तरकाशी ) के भवन संख्या 5 की निमदारी पहले मंजिल में स्थापित है I पहली मंजिल का फर्श लकड़ी का ही है व बाहर छज्जा  भी काष्ठ कड़ीयों से निर्मित हुयी है I बरामदा या छज्जा /बालकोनी काफी लम्बा है I
बगोरी (   , उत्तरकाशी )  के भवन संख्या 5  के पहली मंजिल के लम्बे छज्जे पर निमदारी कसी गयी है I लम्बे छज्जे पर आठ से अधिक स्तम्भ दूरी पर स्थापित हैं व स्तम्भ मध्य ख्वाळ बड़े आकार के हैं I स्तम्भ छज्जा आधार से उठकर उपर मुरिंडकी कड़ी से मिल जाते हैं Iमुरिंड की कड़ी छत आधार पट्टिका के नीचे है I छत टिन की है जो भवन के जीर्णोधार की सूचना ही देता हैI छजे पर स्थापित स्तम्भ चौकोर व सपाट हैं और उन पर कोई कलाकारी अंकित नही हुयी है I
  छज्जे पर ख्वाळ में दो फिट या ढाई फिट की ऊँचाई तक जंगला कसा गया है I  .ख्वाळ पर जंगला  सात लकड़ी के तख्तों से निर्मित है व जंगला जंगला न लगकर लकड़ी की आधी दीवार लग रही है I लकड़ी के तख्तों का यह जंगला भवन के दोनों ओर कसा गया है I  तख्तों पर कोई कलाकृति दृष्टिगोचर नही होती है I
बाकी बगोरी (   , उत्तरकाशी ) के भवन संख्या 5 में  प्रयोग लकड़ी के किसी भी भाग में कोई कलाकृति नही हुयी है I
निष्कर्ष निकलता है कि बगोरी (   , उत्तरकाशी ) के भवन संख्या 5 में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है व  अन्य  कोई अलंकरण नही हुआ है I
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी


 

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