Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1103159 times)

Bhishma Kukreti

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तल्ला गुराड़ (एकेश्वर)   में रौतों   के भव्य मकान की  भव्य तिबारी में काष्ठ कला , लकड़ी नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन ; लकड़ी नक्कासी   -  188
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल में एकेश्वर खंड का तल्ला गुराड़  एक समृद्ध गाँव है।  यहां से उमेश असवाल ने कई भवनों की सूचना दी है।  आज तल्ला गुराड़  में रौतों /रावतों  की तिबारी में लकड़ी पर अंकन , नक्कासी की विवेचना की जाएगी।
 तिबारी  दुपुर मकान  की पहली ंजील में है व मकान दुघर /दुखंड है।  तिबारी पत्थर के  चौड़े  छज्जे के ऊपर  पत्थर की देहरी की ऊपर सजी है।  तिबारी तेरह  स्तम्भों /सिंगाड़ों से निर्मित है याने तिबारी तेराखम्या या तेराखंब्या  है।  तेरह  सिंगाड़ों /स्तम्भों की तिबारी बड़े सौकारों की  साहूकारपन (धनी का धन )  की निशानी मानी जाती थी।  थोकदार ही तेरह  खंब्या  तिबारी बना सकते व उसकी देखरेख कर सकते थे।  मैदानों  में कहा जाता   है  कि हाथी खरीदना सरल है किंतु हाथी पालना व देखरेख करना मुश्किल होता है।  वैसे ही गढ़वाल में कथ्य है कि बड़ी तिबारी बनाना सरल है किंतु  देखरेख कठिन होता है। 
तिबारी के स्तम्भ सीधे हैं व उनमें  ज्यामितीय उत्कीर्णन  हुआ है स्तम्भों में उभार व गड्ढे (flueting and flilleting ) की ज्यामितीय उत्कीर्णन हुआ है।  स्तम्भ चौखट मुरिन्ड /शीर्ष से मिलते हैं।  मुरिन्ड में भी कोई ख़ास नक्कासी देखने को नहीं मिलती है।
नक्कासी न होने पर भी  तेरह खंबों से मकान शानदार लगता है।   चार या पांच कमरों से तिबारी की बैठक /बरामदा बना है जो गढ़वाल विशेषतः पौड़ी गढ़वाल  में देखने को नहीं मिलता है।   
 मकान व तिबारी में कोई जटिल कला अंकन न होने पर भी बड़े मकान व बड़ी तिबारी ने मकान को भव्य बना दिया है।  मकान  जीर्णोद्धार की बात जोह रहा है और जिस दिन  मकान का जीर्णोद्धार होगा उसी दिन   तल्ला गुराड़  की यह भवतं तिबारी भी इतिहास में समा जायेगी। उत्तरी गढ़वाल व कुमाऊं में पर्यटन विकास ने पुराने भवनों को उसी हालात में रखवाया व अब होम स्टे से   ये  तिबारियां लाभ का साधन बनी है।    किन्तु पौड़ी गढ़वाल में लगता नहीं तिबारियां होम स्टे में बदलेंगी .

सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल , एकेश्वर

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन; लकड़ी  नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  लकड़ी नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   खम्भों  में  नक्कासी  , भवन नक्कासी  नक्कासी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


Bhishma Kukreti

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 ल्ला गुराड़ (चौंदकोट)  में महानतम वीरांगना तीलू रौतेली परिवार के  पुराने भवन में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी [/color]

 House Wood Art , motifs carving in old house of Tillu Rauteli  in Talla Gurrad 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी   - 189 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 तीलू  रौतेली संसार में एक मात्र वीरांगना हुयी  है जिसने 15 वर्ष की आयु से सात युद्ध लड़े व दुश्मनों द्वारा धोखे से बीरगति को प्राप्त हुयी थीं।  तीलू  रौतेली के परिवार के दो पुराने मकानों की सूचना तल्ला गुराड़  से मिली है।   प्रस्तुत मकान  व भव्य खोली ध्वस्त अवस्था में है।  आज  वीरांगना  तीलू   रौतेली के परिवार  का उजड़ा बिजड़ा  मकान  व खोली पर चर्चा होगी।
 तल्ला गुराड़ (चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल )   में तीलू रौतेली  परिवार के  मकान दुपुर , दुखंड व खोली वाला है।  काष्ठ  कला दृष्टि से तल्ला गुराड़  में तीलू रौतेली परिवार के  उजड़े मकान में तिबारी व खोली पर टक्क लगाई जाएगी।
 तल मंजिल पर स्थापित खोली (ऊपरी मंजिलों में जाने हेतु आंतरिक मुख्य प्रवेश द्वार ) बेमिशाल नक्काशीदार है।   खोली तल मंजिल से पहली मंजिल तक गयी है। खोली के म्वार पर दोनों और सिंगाड़ (स्तम्भ )  हैं व् सिंगाड़  वास्तव में युग्म में हैं (दो तीन लघु स्तम्भों। कड़ियों से मिलकर बनना ) . . तीलू रौतेली परिवार मकान की खोली में चार लघु सिंगा स्तम्भ /कड़ियों को मिलकर एक ओर  का सिंगाड़ बना है।  आंतरिक कड़ी सपाट है जो ऊपर जाकर मुरिन्ड  की भी कड़ी बन जाती है , आंतरिक कड़ी के बाद की कड़ी में बेल बूटों की नक्काशी हुयी है व यह कड़ी भी ऊपर जाकर मुरिन्ड की भूसमानान्तर कड़ी में बदल जाती है, बेल बूटों से सज्जित कड़ी के बाद सपाट कड़ी है जो ऊपर जाकर मुरिन्ड की कड़ी में बदल जाती है। सबसे बाहर मोटी कड़ी है जिसके आधार में कमल युक्त कुम्भियाँ हैं व ऊपर जाकर इस मोटी कड़ी में मुरिन्ड समानंतर में उलटा कमल उभरता है व फिर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल है। यहां से यह कड़ी थांत  (cricket bat blade type ) की शक्ल ले शिखर  मुरिन्ड से मिल जाता है। स्तम्भ की सबसे बाहर की कड़ी भी बेल बूटों से सज्जित है व यह बेल बूटों से सज्जित कड़ी  ऊपर शिखर मुरिन्ड की कड़ी में परिवर्तित होती है। 
          खोली में  दो मुरिन्ड (शीर्ष ) हैं  तल/अधोभव  मुरिन्ड व  शिखर मुरिन्ड।  अधोभव या नीचे के मुरिन्ड की कड़ियों के ऊपर अर्ध वृत्त आकृति में गणेश आकृति व वानस्पतिक आकृति अंकित हैं। 
 तल या अधोभव मुरिन्ड   के ऊपर एक मेहराब है जो शिखर मुरिन्ड निर्माण करता है। मेहराब के बाहरी त्रिभुजों में फूल अंकन हुआ है।
  शिखर मुरिन्ड के बगल में दो दो दीवालगीर (bracket ) लकड़ी के चौखटों में स्थापित हैं याने कुछ चार दीवालगीर हैं। दीवालगीर के चौखट बैठवाक में एक शेर अथवा हाथी की काष्ठ आकृति स्थापित हुयी  है।  ब्रैकेटों पर भी सुंदर ज्यामितीय व वानस्पतिक कटान हुआ है। 
ब्रैकेटों  के नीचे के भाग  की कड़ियों /पटिलों में सुंदर बेल बूटों  की नक्काशी हुयी है।
छपरिका  से लकड़ी के शंकु भी लटक रहे  हैं। 
    तीलू रौतेली परिवार के प्रस्तुत मकान  में तिबारी पहली मंजिल पर स्थापित है। तिबारी में चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ  हैं।  दीवाल को स्तम्भों से जोड़ने वाली दो कड़ियों में शानदार बेल बूटों की महीन नक्काशी हुयी है। 
 प्रत्येक स्तम्भ के आधार किकुम्भी उल्टे खिले कमल की पंखुड़ियों से निर्मित हुयी हैं।  कुम्भी के ऊपर ड्यूल है , ड्यूल के मत्थि  उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल से खिला फूल है व यहां से स्तम्भ लौकी शक्ल ( याने ऊपर की और मोटाई कम होना ) अख्तियार करता है।  जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहां पर एक उल्टा कमल दल है जिसके ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर खिला कमल फूल है व यहीं से स्तम्भ के दो भाग होते जाते हैं एक भाग थांत का आकर लेता हुआ ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है  कुछ ऊपर थांत के किनारे नक्काशी युक्त दो लघु कड़ियाँ भी उभरती हैं व वे भी मुरिन्ड  से मिलते हैं।  स्तम्भ जहाँ से थांत  की शक्ल बन जाती है वहीं से मेहराब का अर्ध मंडल भी शुरू होता है।  मेहराब में प्राकृतिक अंकन हुआ है। 
  तीलू रौतेली परिवार का उजड़ा -बिजड़ा मकान संभवतया 1900 के लगभग ही निर्मित हुआ होगा। 
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि मकान में काष्ठ कला में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरणों का प्रयोग हुआ है।
     
सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


Bhishma Kukreti

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कुलसारी  (नारायणबगड़ , चमोली ) में हंसराम कुलसारा के  भव्य मकान में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी  - 190
(अलंकरण व कला पर केंद्रित) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 चमोली, रुद्रप्रयाग , जौनसार  बाबर , रवाई , गर्ब्यांग , धानाचुली आदि क्षेत्रों  से अनोखे Exotic भवनों व उन पर अनोखी काष्ठ कलाकारी की रोज फोटो सहित सूचना मिलती रहती है।  मित्रों के सहयोह का ही कारण है कि अब लेखक को यह सोचना पड़ता है पहले किस भवन से शुरू  करूँ और इस भवन से शुरू करता हूँ तो दूसरा भवन छूट जाएगा का दुःख भी। 
  आज मुंबई में रहने वाले उमेश पुरोहित   द्वारा  सूचित  कुलसारी (नारायण बगड़ , चमोली गढ़वाल )में  हंसराम कुलसारा के  भव्य मकान में काष्ठ कला पर चर्चा होगी।  उमेश अनुसार इस भवन में  घरजवैं फिल्म की सूटिंग भी  हो चुकी है।  कुलसारी गाँव धीरज सिंह नेगी सरीखे नगर श्रेष्ठियों का गाँव है।  समृद्धि की झलक कुलसारी में भवनों पर साफ़ झलकती है।  सूचना मिली है ऐसे ही कुछ मकान और भी कुलसारी गांव में हैं। 
  प्रस्तुत  हंसराम कुलसारा का   भवन  तिपुर (तल मंजिल +2  पुर ), दुखंड /दुघर है व घर के हर खंड में कला  व समृद्धि झलकती है।  काष्ठ  कला दृष्टि से भी कुलसारी  के  हंसराम  कुलसरा के  भवन में उकृष्ट किस्म की कलाकारी , नक्काशी मिलती है।  कला का जहां सवाल है टिन  की छत  के ऊपर  त्रिभुजाकार चिमनी भी ज्यामिति कला का अध्भुत नमूना है।
 विवेचना हेतु मकान में निम्न भागों  में कला , नक्काशी समीक्षा आवश्यक है
तल मंजिल के दोनों कमरों के दरवाजों  व मुरिन्ड ऊपर ज्यामितीय काष्ठ  कला
तीनों मंजिल में  छोटी छोटी कुल 12 मोरियों  में बारीक काष्ठ कला /नक्काशी
तल मंजिल मे से शुरू हो पहली मंजिल तक चली खोली व खोली ऊपर , अगल बगल में  बारीक कला अंकन। 
पहली व दूसरी मंजिल में   बड़ी बड़ी मोरियों या  (कुमाऊं में जिन्हे छाज कहा जाता है।  ) में कला प्रदर्शन। 
 तल मंजिल के दोनों कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय  कटान हुआ है व एक द्वार के मुरिन्ड ऊपर त्रितोरण /तीनमहराब आकृति पट्टिका स्थापित हुयी है।  यह त्रितोरण आकृति मकान की सुंदरता में वृद्धिकारक आकृति है। 
 तीनों पुरों /मंजिलों में  हर मंजिल में चार याने कुल  12 मोरियां  या झरोखे स्थापित हैं।   प्रत्येक मोरी का  स्तम्भ कुमाऊंनी बाखली के लघु मोरियों /झरोखों जैसे कई लघु स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बना है। 
हंसराम कुलसारा  के  भवन में तीन लघु स्तम्भों से मोरी के दो मुख्य  स्तम्भ बने हैं ।  इस भवन की प्रत्येक मोरी के लघु स्तम्भ आधार पर उलटे कमल फूल से कुम्भी बनी है ऊपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल अंकन है व यहां से स्तम्भ सीधा हो ऊपर मुरिन्ड  की एक कड़ी बन जाता है और यह क्रम 12  के 12  मोरियों में उपश्थित है याने मकान में मोरियों पर  शानदार , बारीक, दिलकश नक्काशी युक्त 72 लघु स्तम्भ हैं। 
    खोली की कला तो दर्शनीय है।  तल मंजिल से पहली मंजिल तक खोली है।  खोली के दोनों ओर स्तम्भ हैं।  खोली के दोनों मुख्य स्तम्भ चार स्तरीय (तह ) लघु तंभों के जोड़ (युग्म )  से बना है  याने चौगट  स्तम्भों से मुख्य स्तम्भ बनते हैं।  खोली में स्तम्भों के निर्माण में इस तरह का जटिल कला उत्तराखंड ही नहीं अपितु हिमाचल के जौनसार -रवाई क्षेत्र व नेपाल के  डोटी   व नेवार  क्षेत्रों में भी मिलती  है   .
    दोनो उपस्तम्भों    उसी तरह कमल , ड्यूल की आकृतियां अंकित हैं जैसे मोरियों के लघु स्तम्भों में प्रकट हुयी है।   अन्य दो उप स्तम्भों में  से एक में प्राकृतिक नक्काशी हुयी है व एक सीधी है।  सभी उप स्तम्भ ऊपर जाकर  मुरिन्ड की कड़ी बन जाते हैं यह रूप प्रतिरूप भी  मध्य हिमालय (हिमाचल, उत्तराखंड , नेवार , डोटी )  के सभी भागों  में देखने को मिला है या कमोवेश रूप से एक जैसा ही है।   खोली के मुरिन्ड में देव आकृति अंकित हुयी है। 
  छपपरिका के नीचे मुरिन्ड के ऊपर दोनों  ओर  दो दीवालगीर  (bracket ) फिट हैं  (कुल चार ) व प्रत्येक दीवालगीर में ऊपर नीचे ज्यामितीय व पक्षी नुमा सुडौल आकृतियां हैं उनके बीच एक एक हाथी अंकित है।  छपपरिका से मुरिन्ड ओर   झालर  आकृति भी लटकती सुशोभित है।
  पहली व दूसरी मंजिल में कुल मिलाकर  बड़े बड़े मोरी या तिबारी जैसे ही ख्वाळ  हैं - दो पहली मंजिल ंव तीन दूसरी मंजिल में।  स्तम्भ व मुरिन्ड में कला दृष्टि से इन ख्वाळों /बड़ी मोरियों में कला , अलंकरण बिलकुल  छोटी मोरियों जैसे ही है बस आकर में ही अंतर है।  बड़ी बड़ी मोरियों के द्वारों में ज्यामितीय कटान से दिल्ले /पैनल बनाये गए हैं। 
  कुलसारी (नारायण बगड़ , चमोली गढ़वाल ) के  हंसराम कुलसारा के मकान निर्माण में मिट्टी -पत्थर- टिन व लकड़ी का प्रयोग हुआ है व सभी माध्यमों के मध्य  सामजस्य बढ़िया तरीके से हुआ है जिसे गढ़वाली में कहा जाता है बल छंद से बिठाये  गए हैं।
  कलाओं में सामजस्य व रेखाओं में सामजस्य ,  अकार में अनुपातिक समरसता , गति व ताल का पूरा ख्याल , दोहराव आदि कारकों का  पूरा ध्यान ओड  व बढ़इयों ने रखा है। 
 हंसराम कुलसरा के भव्य भवन का निर्माण सन  1945  के हुआ था
सहर्ष निष्कर्ष निकल जाता है कि  हंसराम कुलसरा के भव्य मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मान्वित तीनों अलंकरण  का अंकन हुआ है व कला  संगठन तकनीक /ब्यूंत  का पूरा ध्यान रखा गया है 
सूचना व फोटो आभार : उमेश पुरोहित , भुवनेश पुरोहित
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला,नक्काशी ;  नीति,   घाटी में भवन काष्ठ  कला, नक्काशी  ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्काशी , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्काशी श्रृंखला जारी  रहेगी


Bhishma Kukreti

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Narendra Shah Promoting Education

History of Tehri King Narendra Shah -24 
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 216     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1463

By: Bhishma Kukreti (History Student)

   King Narendra Shah tok interest in promoting education in the princely state Tehri Garhwal.
The Sanrakshan Samiti started taking fees in Pratap High School from students. King Narendra Shah stopped taking fees from students. King Narendra Shah added a few primary schools . There were total 60 primary schools in Tehri at the time of Narendra Shah (1)
Narendra Shah also started scholarship trust for students in 1920. Dozens of students from the state were benefited taking graduating studies by help of scholarship.   A few students got education in Europe    by getting scholarship from education trust (1).
  King Narendra Shah also helped the students of British Garhwal.  In 1921, Narendra Shah donated for Rs. 4000 to Lansdowne school and Rs. 3000 to Karna Prayag school. In 1926, Narendra Shah sent Kundan Singh Gusain to England for getting Ph.D. degree (2)
 In 1934, The King donated Rs. One lakh to Banaras University and promised to give Rs. 6000 per year. Madan Mohan Malviya established ‘Sir Kirti Shah Chair of Industrial Chemistry’ for offering scholarship to chemistry students. (1)
  The King opened a public library in Tehri in 1923. In 1938, Maharaja Narendra Shah established a carpentry school in Tehri.  In 1940, the Pratap High School was upgraded up to Inter College. In 1942 , Narendra Shah opened a girls school  in Tehri and the Maharaja inaugurated the school on 20th August 1942.
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 21
2- Garhwali , 24th September 1926
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020


Bhishma Kukreti

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Sage Sushruta :  The father of Surgery and Plastic Surgery

BOTANY History of Indian Subcontinent –121
 
Information Compiler: Bhishma Kukreti   

  Sage Sushruta is called ‘Father of Medicines Surgery’ and ‘Father of Plastic Surgery in India’.  There are differences among historians about time of Sushruta. Atrideva shows (1) his period at the Nagavansha period (176-340 AD) and Suhas states based on many sources that the Great Surgeon ever born in India Sushruta lived in 6 century B.C. Mahabharata states that Sushruta was son of Vishwamitra. But the popular Brahmarshi Vishwamitra does not have any relation with father of Sushruta.
 It seems that Sushruta took primary education under his father. (2). Later on in his childhood days, Sushruta saw pain of people. Pain of people affected Sushruta for taking medicine education. Sushruta went to King Kashi, Dhanvantri Divodasa the popular surgeon and physician of his time.  (2)
   Once, when King Divodasa (Dhanvantri) was sitting in his hermitage along with other sages. At that time, Sushruta came with other sages and requested to Sushruta, “O Lord! We are felling very unhappy many people suffering from diseases related to body and mind. We have come to you for studying Ayurveda for curing people.”
 The King Divodasa Dhanvantri taught his students Ayurveda and  Surgery . In Sushruta Samhita, King Divodasa offer lectures to sage of Sushruta and it is clear that King Divodas Dhanvantri did not roam along with his disciple for teaching as Charaka and his Gurus  used to do .
That means that in Sushruta period a few or all Medical Teachers used to live in their Ashrams or medical researches centre  and students used to visit their schools (Hospitals) .
The reference of Sushruta and other students or sages visiting hermitage of Divodasa for taking medical education offer us the direction that there were medical schools at Sushruta period and students used to come to the medical schools. This was nothing but creating infrastructure for medicals services and creating medical services infrastructure is part and partial of medical tourism
Sushruta studied surgery under his Guru King Divodas and later created famous Grantha ‘Sushruta Samhita’. Writing book or Grantha is also part and partial of promoting medical tourism.
 Above article written with the help of both books by Atrideva Vidyalankar and Dr. Suhas
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References –   
1-Vidyalankar Atrideva   , 1960  Ayurveda ka Vrihat Itihas , Hindi Sahitya Samiti, Banaras pages 188-
2- Suhas, B.R.  2011, Sushruta, Sapana Book House Bengaluru 1-10
3- Atrideva   , 1960  Ayurveda ka Vrihat Itihas, Hindi Sahitya Samiti, Banaras pages 192

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Duties of Finance minister Charge or Chief Account Officer

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 92 
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

पूराणि च  कति ग्रामा अरण्यानि च संति हि I
कर्षिता कति भू: केन प्राप्तो भाग्स्तत: कति II 104II
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अस्वामिकं कति प्राप्तं नष्टिकं  तस्कराहृतम् I
संचितं तु विनिश्चत्यामात्यो राज्ञे निवेदयेत  II 107II(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 104-107
The duties of Amatya (that lives with  and in many texts, Amatya  means the  account minister)  are –
 The Amatya should inform the king about numbers of forests, cities, houses, villages,. The Amatya should inform the areas used by the famers for farming and how much money is received. The Amatya should have knowledge of   unoccupied farms /field or unploughed field. The Amatya should know about receipt of  land tax, yearly  capital punishment on criminals yearly basis .  The Amatya should have knowledge of grains produced in famrs and the production of forests. The minister should have knowledge of wealth received from death of land owners, official lootings and capital punishment on thieves. He should give total details of the above income.
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 104-107 )
  The CEO must get information about following income periodically –
 Active Income
Business Income
Adjusted Income
Sales Income
Royalty
Capital gains
Interest income
Dividend Income

References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 78 -79
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Narendra Shah caring public health and Census 

History of Tehri King Narendra Shah -25
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 217     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1464

By: Bhishma Kukreti (History Student)

     There were hospitals in Tehri , Devprayag, Rajgarhi, and Uttarkashi. Maharaja Narendra Shah increased the facilities by installing tools and machines and space. Narendra Shah established a hospital in Narendra Nagar.  The King opend a couple of Ayurvdic hospitals in Tehri Garhwal (2)
      There was mass counting (Census) in 1921 all over India. There was census in Tehri too. Deputy Collector Uma Datt Dangwal was in charge of Census of 1921 in Tehri Garhwal. The population of Tehri Garhwal in 1921 was found 3, 18,482 as against Census 19of 11 -3,00725.  (1)
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 22
2- Bhakta Darshan, 1952, Garhwal ki Divangat Vibhutiyan p320
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Medicinal Plants Classification  by Sushruta
Glimpses of Botany in Sushruta Samhita -2
BOTANY History of Indian Subcontinent –122   
Information Compiler: Bhishma Kukreti   
  Mandal et all. all state that there are 700 plants described in Charaka Samhita and Sushruta Samhita (1).
  There is classification of medicinal plants in both the texts. Charaka Samhita divided medicinal plants into 50 groups (Kasya) based on their therapeutic uses.
 Sushruta Samhita divided medicinal plants in  folioing 37 Gana or groups based on origin and similar morphological characteristics and each group has ten plants (1 and2).
1-Kokolyadi
2-Vidarigandhadi
3-Mustadi
4- Shyamadi
5-Ambashadi
6-Pipplyadi
7-Laghu Panchmula
8-Eladi
9-Paruskadi
10-Patoladi
11- Muskakadi
12- Argvadhadi, Salasaradi, Arkadi, Laksadi
13- Eladi. Argvadhadi
14-Surasadi, Laksadi
15-Rodhradi, Anjanadi, Arkadi, Argvadhadi
16- Kakolyadi
17-Mustadi, Vachadi, Haridradi
18-Vali Panchmoola
19-Paruskadi
20 –Nyagodhadi
21-Guduchhyadi, Upladi, Sarvadi, Paruskadi
22-Brihtyadi , Vidargandhadi
23- Rodhradi, Priuangadi, Ambasthadi
24- Nyagodhadi,
25- Nyagodhadi, Surasfadi
26- Utpaladi
27-Trina Panchmoola, Virataradi
28-Vidargandhadi
29-Pipplayadi
30-Dasamula
31-Paruskadi
32-Sarivadi , Utpaladi,  Anjanadi
33-Pipplyadi m Surasadi
34-Salasardi
35-Rodhradi
36-Priyangadi
37-Vidargandhadi
 
 




 
 



 
 
 .
References-
1-Mandal, Subhash C., Vivekanand Mandal, Tetsuya Konishi, (editors)  Elsevier USA,2018,  pp 4-13
S. Robert, Ayurveda: Life, Health and Longevity, Ayurveda press, new Mexico, 2004
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Guidelines for Instructions to  HRD Head from CEO

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 93 
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

 उक्तं ताल्लिखितै: सर्वं   विद्यादत्तनुदशिभि: II108 II
 परिवर्त्यं नृपो   ह्योतान्युन्ज्याद्न्यो अन्यकर्मणि I
न कुर्यात्स्वाधिकबलान्   कदापि  ह्याधिकरिण :  II 109
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 108-109 )
  The duties of the King are that he provides written or oral instructions to Purohit (HRD head) time to time that the purohit transfers employees from one position to other position. Also the king should instruct purohit (HRD head)  not to give authorities to officers more that required power.   
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 108-109 )
  CEO should transfer high positioned officer from one post to other diffract department  post  that the person comes to know the knowledge of different department .E.G, account manager is transferred to Operation department and  production manager is transferred to marketing department
References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 79
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Guidelines for Instruction to HRD Hear for Chief Executive Officers; Guidelines for Instruction to HRD Hear for Managing Directors; Guidelines for Instruction to HRD Hear for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Instruction to HRD Hear for  General Mangers; Guidelines for Instruction to HRD Hear for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Instruction to HRD Hear for Executive Directors ; Guidelines for Instruction to HRD Hear for ; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for  CEO; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for COO ; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for CFO ; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for  Managers; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for MD ; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for Chairman ; Refreshing Guidelines for Instruction to HRD Hear for President

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बगोरी (भटवाड़ी  , उत्तरकाशी ) में  एक तिबारी  में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी



बगोरी (भट वाड़ी , उत्तरकाशी ) में भवन काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी श्रृंखला -8 

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 197

 संकलन - भीष्म कुकरेती     - 

  बगोरी ( भटवाड़ी , उत्तरकाशी ) में पहले एक तिबारी की विवेचना  हो चुकी है I आज एक अन्य तिबारी की व्वेचना होगी उस भवन का नाम है बगोरी ( , उत्तरकाशी ) में भवन संख्या 7 I  बगोरी के भवन संख्या 7  ढाई पुर  भवन है व तिबारी पहली मंजिल पर है I तल मंजिल  में भंडार है या खाली है जैसे बगोरी गाँव में सामन्य प्रचलन है I

तल मंजिल की छत याने पहली मंजिल का फर्श लकड़ी की कड़ीयों व तख्तों से बना है .पहली मंजिल पर तीन कमरों के आगे लम्बा बरामदा है जिस पट तिबारी के पांच स्तम्भ खड़े हैं I पांच स्तम्भ चार ख्वाळ या खोली बनाते हैं . प्रत्येक स्तम्भ के आधार  पर  उल्टे कमल फूल से कुम्भी निर्मित हुयी है फिर ड्यूल है व ड्यूल के उपर उर्घ्वागामी (सीधा ) कमल फूल है . कमल पंखुड़ियों में  बेल बूटों की सुंदर नक्कासी हुयी है I जहां पर सीधा कमल फूल समाप्त होता है वहां से  स्तम्भ की मोटाई कम होना शुरू हो जाती है I इसी ऊँचाई पर ख्वळ में दो स्तर/तह का जंगला पूरे ख्वाळ के आधार तक बिठाया हुआ है . जंगले का  उपरी स्तर पटले /तख्ते  में छेड़ कर नक्कासी कर जंगला बना है ति निचले स्तर का जंगला क्रोस (X) आकर के पट्टियों से बना है .

  जहां से स्तम्भ सबसे कम मोटा है  वहां  पर उल्टा कमल फूल से घुंडी बनती है व उस उलटे फूल  (अधोगामी कमल दल ) के उपर ड्यूल है व ड्यूल  के उपर सीधा (उर्घ्वागामी ) कमल दल हैI कमल दल के उपर स्तम्भ थांत (Cricket Bat Blade type ) का शक्ल अख्तियार कर लेता है व थांत उपर ढाइ वां मजिल के फर्श की कड़ी से मिल जाता है I स्तम्भ से यहीं से मेहराब चाप का अर्ध खंड भी शुरू होता  है जो दूसरे स्तम्भ के आधे खंड से मिलकर  पूरा  मेहराब बनता है I मेहराब तिपत्ति नुमा है I मेहराब के बाहर त्रिभुजों में नक्कासी हुयी है व  सम्भवतया त्रिभुज के किनारे एक एक फूल भी खुदा है व त्रिभुज में नक्कासी हुयी है . स्तम्भ के थांत स्वरूप में कोई नक्कासी नही दिखीI पहली मंजिल की मुरिंड कड़ी व ढाई पुर के तह  की कड़ी में  भी कुछ नक्कासी नही दिखी . ढाई पुर बंद नही अपितु खुला है I

 पहले मंजिल में ब्रस्म्दा चार पञ्च फीट चौड़ा है व बरामदे के अंदरूनी हिस्से में कमरे हैं व कमरों के दरवाजे मजबूत लकड़ी के हैं I. दरवाजों पर ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं Iबरामदे व कमरों के मध्य दीवार मजबूत लकड़ी के पट्टियों /  बौळइयों  /कड़ीयों  की ही बनी है Iदो कमरे के मध्य दीवाल के उपरी भाग में दो मन्दिर रखने की आकृतियाँ बनी है (यथा  शहरों में आम घरों में मन्दिर रखे जात्ते हैं ) दोनों मन्दिर गृहों में मेहराब बने हैं i

 तीखी ढलवां छत आधार र से एक लम्बी व आयताकार काष्ठ आकृति  फिट है जिस पर लता –सर्पिल पत्ती का अंकन  दीखता है .

    कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बगोरी (भटवाड़ी उत्तरकाशी  की भवन संख्या   7 की तिबारी भव्य व  कला दृष्टि से उच्च स्तर की है व मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है .  मानवीय अलंकरण दृष्टिगोचर नही हुआ I

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी

 

 

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