Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1101469 times)

Bhishma Kukreti

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सेम भरदार (रुद्रप्रयाग ) में पूर्णा नंद डिमरी के मकान , खोळी में काष्ठ कला अंकन, लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्काशी-212   
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  रुद्रप्रयाग जिले से भव्य मकानों व बिलक्षणी मकानों की सूचना मिलती रहती है।  आज  सेम भरदार (रुद्रप्रयाग )  में पूर्णा नंद डिमरी के मकान व खोळी (प्रवेश द्वार )  में काष्ठ कला अंकन पर चर्चा होगी।
 पूर्णा नंद डिमरी का मकान दुपुर , दुघर  मकान है।  मकान में खोळी छोड़ बाकी सब स्थलों में ज्यामितीय कटान कला दृष्टिगोचर हो रही है।  अतः खोळी की कला पर ही ध्यान दिया जायेगा।
  खोळी तल मंजिल तक ही सीमित है व अन्य मकानों की तरह पहली मंजिल तक नहीं गयी है।  खोळी  के दोनों ओर सिंगाड़ /सत्मव्ह हैं।  प्रत्येक स्तम्भ दो दो उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बना है व उप स्तम्भ भी दो उप स्तम्भों के युग्म से बने है।  उप स्तम्भ आधार पर मोटे हैं  व कुछ ऊपर जाकर सीधे हो ऊपर मुरिन्ड की तह/layers  बन जाते हैं।  स्तम्भों पर बेल बूटों  का अंकन है।  मुरिन्ड के केंद्र मध्य में एक चौखट  तोरण आकर आकृति के अंदर चतुर्भुज , पालथी मारे  गणपति स्थापित हैं। 
 स्तम्भों के  अगल बगल में  मिट्टी पत्थर की चौखट दीवार है।  इन चौखट  दीवारों में मुरिन्ड के अगल बगल में छप्परिका  से नीचे दोनों  ओर  दो दो दीवालगीर निकल कर स्थापित हैं।  दीवालगीर में दो दो लघु  लकड़ी के गट्टों  के लघु स्तम्भ है, सबसे ऊपर का गट्टा  हाथी आभास दे रहा है ।  लघु स्तम्भ केमध्य चौखट में दो दो फूल हैं एक फूल  आम  जन्म पत्री  में  बने चौकी के अंदर  जैसे आकृति का फूल है व दूसरा फूल बहुदलीय सूरजमुखी जैसे आकृति का है। 
निष्कर्ष निकलता है कि सेम भरदार के पूर्णा नंद डिमरी के मकान उच्च स्तरीय है व खोली में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण अंकन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार:  हरीश डिमरी
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्काशी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्काशी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्काशी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्काशी  , खिड़कियों में नक्काशी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्काशी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्काशी ,  स्तम्भों  में नक्काशी

Bhishma Kukreti

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 बुरांसी (पाबौ , पौड़ी गढ़वाल ) में 'निरंकार ठौ ' मकान में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी -213   
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 मंदिरों व देवस्थलों   में काष्ठ कला इस श्रृंखला का विषय नहीं है किन्तु प्रस्तुत निरंकार ठौ मकान में है तो इस पूज्य देवस्थल को इस श्रृंखला में स्थान दिया गया है।  प्रस्तुत निरंकार ठौ के मकान में तीन तिबारियों की काष्ठ कला अंकन का विश्लेषण किया जायेगा।   बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान में   सात सात   मुख्य स्थलों में काष्ठ कला की जांच की जाएगी - तल मंजिल में दो खोळियों,  व पहली मंजिल में तीन तिबारियों में  काष्ठ कला अंकन विश्लेषण;   दो दो दीवालगीरों  में काष्ठ कला अवलोकन तथा तिबारी व बुर्ज के ऊपर छत आधार पर   लकड़ी पर नक्काशी  । 
बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान ढैपुर   , दुघर  है व पौड़ी गढ़वाल के मकान शैली जैसे ही छज्जे को महत्व दिया गया है।  (इस लेखक का अनुमान है पैडळस्यूं में छज्जा पत्थर  उपलब्ध होने  कारण पत्थर छज्जा शैली पौड़ी गढ़वाल में पली बढ़ी ) .
  १- बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान में तल मंजिल में दो खोळियों  में काष्ठ  कला , अलंकरण अंकन :-  बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान के तल मंजिल में दो खोळियां  हैं।  दोनों  खोळियों  में कला सामान है।  खोली के बाहर  दोनों और आयताकार पाषाण  के  सिंगाड़  (स्तम्भ ) हैं जिनके अंदर खोळियों  के लकड़ी के सिंगाड़  (स्तम्भ )  हैं।  खोळियों  के दोनों ओर प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ  छह छह उप सिंगाड़ों  या उप स्तम्भों से बने हैं उप स्तम्भों के आधार में मोटाई है व ऊपर सीधे हैं आधार से सभी स्तम्भ सीधे ऊपर जाते हैं व ऊपर बड़े  चौड़े मुरिन्ड की तह (layer ) बन जाते हैं। प्रत्येक उप स्तम्भ की कड़ी के ऊपर जंजीर जैसे या पर्ण लता  नुमा कला अंकित है।
चौड़ा मुरिन्ड  के केंद्रीय चौखट में किनारे पर सांप आकृतियां व चौखट मध्य काल्पनिक आकृतियां (abstrac ) अंकित हैं। 
मुरिन्ड के अगल बगल में  ऊपर बुर्ज या तिबारी जैसे बरामदे   के  आधार से दो दो  काष्ठ गट्टों  से निर्मित दीवालगीर स्थापित है।  दोनों ओर  के दीवालगीरों मध्य तीन चौखट हैं जिनके अंदर काल्पनिक आकृति अकन हुआ है।   एक ओर  के प्रत्येक दीवालगीर के ऊपर हाथी  आकृति अंकन हुआ है।   
   २-बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान के पहली मंजिल में तिबारी में काष्ठ कला अलंकरण अंकन -  बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान के पहली मंजिल में  आम तिबारियों जैसे  चौखम्या -तिख्वळ्या )चार  स्तम्भ व तीन ख्व्वाळ )  हैं।  प्रत्येक  सिंगाड़ /स्तम्भ छज्जे के ऊपर  देहरी के ऊपर चौकोर पत्थर के डौळ  के ऊपर स्थित हैं।  सिंगाड़ (स्तम्भ) के आधार में उल्टे कमल दल  से निर्मित कुम्भी है जिसके ऊपर ड्यूल है व ड्यूल के ऊपर सीधी (उर्घ्वगामी ) पद्म पुष्प दल है व जिसके ऊपर से सिंगाड़ (स्तम्भ ) लौकी नुमा शक्ल हासिल कर ऊपर बढ़ता है।  जहां सिंगाड़ की मोटाई सबसे कम है वहां उल्टा कमल अंकित है जिसके ऊपर ड्यूल व उसके ऊपर सीधा कमल अंकित है।  कमल दल के ऊपर एक चौखट है जहां स्तम्भ दो भागों में बंटता है एक भाग सीधा थांत  (crikcket  bat  blade ) की शक्ल ले ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है व प्रत्येक थांत के ऊपर  छत आधार  से दीवालगीर आती है या स्थापित है।  दीवालगीरों  में काल्पनिक कला अलंकरण अंकित हुआ है या चिड़िया चोंच व पुष्प केशर  नाल आभासी  कला अंकित है ।   कमल दल के बगल से  बहुस्तरीय मेहराब का आधा चाप शुरू होता है जो दूसरे  स्तम्भ के चाप से मिल पूरा मेहराब बना है।   मेहराब के ऊपर त्रिभुज (चाप स्कंध )  में कलाकृति अंकित है।  मेहराब के ऊपर चार पांच कड़ियों वाला मुरिन्ड  है व इन कड़ियों के ऊपर प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है।  मुरिन्ड के ऊपर छत आधार में  तीन काष्ठ पट्टिकाएं स्थापित है।  छत आधार के ऊपरी पट्टिका में शंकु  लटके हैं व बाकी दो पट्टिकाओं के किनारे दांत व खांचा  उभर कर आएं हैं व मकान को सुंदरता प्रदान करने में  सफल हैं।
३- बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान के  दोनों खोळियों  के ठीक ऊपर व तिबारी के जंगल बगल बुर्ज (बरामदे  ) हैं।  बरामदे के बाहर तिबारी व तिबारी के स्तम्भ मध्य  लकड़ी के जंगले  हैं।  तिबारी (बुर्ज /बरामदा) के बाहर तीन ओर कुल
 सात  सिंगाड़ (स्तम्भ ) छह ख्वाळ हैं ( सामने पांच स्तम्भ व चार ख्वाळ ) ।  दोनों ओर के बुर्जों में पूरी समानता है।  बुर्ज के स्तम्भ के आधार खोळी  के मुरिन्ड  के ऊपर कड़ी में टिके हैं।  बुर्ज के स्तम्भ आधार थांत (Cricket bat blade ) आकर के हैं व थांत के ऊपर सर्पीली पर्ण -लता का अंकन ( Spiral algae जैसे )  हुआ है।  थांत आकृति के ऊपर स्तम्भ  की आकर का हो जाता है या चारपाई के उल्टा  पाया जैसा।  स्तम्भ के सबसे कम मोटाई स्थल से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता है।  एक और स्तम्भ सीधा ऊपर थांत शक्ल ले मुरिन्ड  (शीर्ष ) से मिलता है व थांत के ऊपर छत आधार से दीवालगीर हैं जैसे तिबारी में भी हैं।  दूसरे भाग से मेहराब चाप बनते हैं। कला व आकृति हिसाब से  छह के छह मेहराब लगभग तिबारी के मेहराबों  जैसे ही हैं। 
मेहराब के ऊपर  तीन अलंकृत  कड़ियों वाला मुरिन्ड  है व मुरिन्ड के ऊपर  छत आधार पट्टिका है।   छत आधार पट्टिका से शंकु लटके हैं। 
  स्तम्भों के आधार पर मध्य ख्वाळ  में दो रेलिंग (कड़ियों )  के बीच जंगला है। जंगले  में  + या क्रॉस आकर के उप स्तम्भ स्थापित हैं। 
 निष्कर्ष निकलता है कि  बुरांसी  (पाबौं )  में निरंकार ठौ  मकान  में   ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण अथवा  इल्मे -ए -  हिंदसा , कुदरती व   तमसीली सजावट की नक्काशी हुयी है।   
सूचना व फोटो आभार : सोहन सिंह 
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
 , Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श

Bhishma Kukreti

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Tours in Indian Territory by Narendra Shah

History of Tehri King Narendra Shah -35
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 227   
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1474

By: Bhishma Kukreti (History Student)

Narendra Shah travelled in India as follows (1)-
1928- Narendra Shah visited Sweta Bandhu Rameshwar and Dwarika with his both the wives.1932-Traveled to Kashmir
1933-Viisted Ganagsagar
1938-Visited ranikhet
1942- Visited Badrinath –Kedarnath
  Chakradhar Juyal killing Man-eater Tiger –
Jim Courbet killed a man eater tiger in Rudraprayag in May 1925. Within a year, another man- eater tiger started attacking people and killing them in South Tehri Garhwal.  There was terror from Dev Prayag to Kirti Nagar. Diwan Chakradhar Juyal killed that man eater tiger. People were happy and they gathered in the capital Tehri  and gifted a silver  idol of the tiger to Juyal. King Narendra Shah also appreciate Juyal.
     King  appointing Chakradhar Juyal as Diwan-
Chakradhar Juyal was disciplined administrator and always used to be ready for state growth . King was happy with him and he appointed officially Juyal as Diwan in 1929. The King offered him gold bracelet as sign of King family or state officer. (2)
 Banning liquor Production- There was custom of liquor production at each home in Jaunsar,   Jaunpur and Ravain . Due to over consumption of liquor, there were many diseases as leprosy in the regions. Chakra Dhar Juyal took bold discussion to ban liquor production. (3)
 Free from Milsara Tax-
There was a common custom in Ravain Jaunsar and Jaunpur as Milsara. In those regions, many times the divorced couples sued to reunite (Milsara) and used to pay Milsara tax for making that marriage (Reunion) legal from court. Chakradhar Juyal stopped that Milsara tax for ever.
  Cancelling Saun Seri tax-
The Saun Seri  tax was very old tax for centuries. The state  used to take tax  as half Ghnati Ghee when a cow or buffalo used to deliver . Chakradhar Juyal cancelled that tax too in 1930 (1).
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 27-28
2-Karmabhumi 15th December 1939
3-Juyal Diwan Chakradhar Juyal book, pp 74-75
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020

Bhishma Kukreti

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Gupta Empire: An Introduction

Glimpses of Botany in Gupta period -1
BOTANY History of Indian Subcontinent –128   

Information Compiler: Bhishma Kukreti 

Mahajan rightly states that there are many sources for knowing the Gupta Empire (319-535 CE) as Literature works of that time; Tour memoir by Fahien a Chinese traveller; Inscriptions, Seals, Monuments, and other literature after Gupta era too.
 It is unknown about the land from where Gupta family started the rules.
From the reports of various Historians as Mahajan etc. (2), the following outlined data is available about Gupta emperors (almost all Indian subcontinent barring a couple of south sates) –
Chandragupta I (280-319) was son of Ghatotkatcha and got crown of Maghada .
 Samudragupta Parakramka (335- 375 A.D.) - Samudragupta got crown from his father around 335 (2)
Rama Gupta (375-380)
Chandragupta II ‘Vikramaditya (380- 415) – He was strong king as Samudragupta and expanded  Gupta empire.
Kumargupta I ruled for 42 years (415-457)
Skandagupta (457-467) very brave King as Chandragupta II
Punyagupta (467 -473) from here,  the Gupta empire started decline .Other Gupta Kings were Kumargupta II (467-476),
Budhagupta,
Narsinghgupta,
 Kumargupta III,
Vishnugupta,
and Bhanugupta -
References
1-Mahajan, V.D. Ancient India, 1998 page 466
2- Mahajan, V.D. Ancient India, 1998 page-477 
Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020

Bhishma Kukreti

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  Recruitment Strategies for CEO or HRD Head

Successful Strategies for successful Chief executive Officer – 99
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 99
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

 प्रभद्रादिजातिभेदं गजानां च चिकित्सितम्  II 128II
 ......
.....
हिताहितं पोषणम च मानं  यानं दतो वय: II 132II
  शूरश्च व्यूहवित्प्राज्ञ: कार्यो  अश्वधिपतिश्च  स : I
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan  128-131 )
Translation –
 The king should see the following qualities for appointing Superintendent of war elephants-
That has knowledge of classes of Elephants.
That knows of illnesses of elephants and  curing .
That knows raising Elephants.
That knows very well about the various qualities of baroness, tongue, nostrils etc.
That can control elephants by riding and while riding 
The King should appoint Superintendent   of Army horses that knows –
Knows classes of horses
That knows about mind of horses, colour, hair, qualities, speed and galloping, horses illnesses and curing; training horse riding. Knowledge of knowing the horse age by teeth; strategies of horse riding in war and is wise man. 
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan  128-131 )
References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 81   
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020
Guidelines for Recruitment Strategies for Chief Executive Officers; Guidelines for Recruitment Strategies for Managing Directors; Guidelines for Recruitment Strategies for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Recruitment Strategies for  General Mangers; Guidelines for Recruitment Strategies for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Recruitment Strategies for Executive Directors ; Guidelines for Recruitment Strategies for ; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for  CEO; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for COO ; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for CFO ; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for  Managers; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for MD ; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for Chairman ; Refreshing Guidelines for Recruitment Strategies for President

Bhishma Kukreti

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कड़ती (ढांगू ) में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  में काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्काशी 215  - 
 Traditional House wood Carving Art of  Kadti, Karti , Silogi , Pauri Garhwal

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल में ढांगू में कड़ती  एक प्रसिद्ध  गांव है और  सिलोगी स्कूल हेतु  जमीन देने हेतु आज भी  कड़ती गाँव याद किया जाता है। कड़ती व  बजारी कठूड़  दो गाँव क्षेत्र फल हिसाब से  मल्ला ढांगू में बड़े गांव माने जाते हैं।  कड़ती का सिलसू देवता तो मल्ला ढांगू के कई गाँवों का लोक देवता है।  ये गाँव धन कटने बाद पूजा हेतु धान व दूध कड़ती पँहुचाते थे।
 मकानों में लकड़ी पर  हुनर या नक्काशी  संबंधी सिलसिले में आज कड़ती के सिलस्वाल बंधुओं (स्व सिद्ध नंद सिल्सवाल , स्व दौलत राम सिल्सवाल व मोहन लाल सिल्सवाल )  की निमदारी अथवा जंगलेदार मकान में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी। 
अपने समय में सिलस्वाल बंधुओं की  निम दारी  की अपनी पहचान व  सामाजिक  उपयोग था।  कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  गढ़वाल की आम निमदारियों जैसे ही पहली मंजिल पर स्थापित हैं लकड़ी के चौड़े छज्जे के ऊपर स्थापित है।   कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  की गिनती भव्य निमदारियों में होती थी।   कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  में सोलह स्तम्भ हैं व पंद्रह ख्वाळ हैं। स्तम्भ छज्जे की कड़ी से चलते ऊपर बड़ी कड़ी से मिल जाते हैं।    कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  में  प्रत्येक स्तम्भ के आधार  पर दोनों ओर  से पट्टिकाएं लगी हैं।  जिससे आधार पर स्तम्भ मोटे व सुंदर लगते हैं।    कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी के आधार से दो फ़ीट ऊपर रेलिंग कड़ी है व इस कड़ी व छज्जे की कड़ी पर लोहे की  छड़ियों से जंगला बनाया गया है।
  कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  की लकड़ी में ज्यामितीय ढंग से ही कटान हुआ है व अन्य कोई अलंकरण निमदारी में नहीं दीखता है। 
निष्कर्ष  निकलता है कि   कड़ती में सिलस्वाल बंधुओं की निमदारी  लम्बी व सोलह सत्रह  काष्ठ स्तम्भों के कारण भव्य निमदारी है और निमदारी में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है।  इस निमदारी के शिल्पकार स्थानीय ही थे (कड़ती व कख्वन  व आसपास ) .
सूचना व फोटो आभार:  विशेश्वर सिल्सवाल कड़ती 
यह लेख  भवन  कला,  नक्काशी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो स कता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्काशी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्काशी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्काशी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्काशी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्काशी , नक्श , नक्काशी 


Bhishma Kukreti

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दांतू (दारमा घाटी, पिथौरागढ़  ) के एक  भव्य मकान में  काष्ठ कला , अलंकरण, नक्काशी

House Wood Carving Art  in   house of  Dantu village  of  Pithoragarh
गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी  नक्काशी-214   
 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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        दांतू गाँव पिथौरागढ़ में धारचूला तहसील के दारमा घाटी   का महत्वपूर्ण  सीमावर्ती गांव है जो  आदि कैलाश मानसरोवर ट्रैकिंग मार्ग  पर स्थित है।  भारत तिब्बत सड़क  पर  होने से दारमा  घाटी  के सभी गाँव  भारत -तिब्बत के मध्य व्यापार के गाँव  कभी  उत्तराखंड के समृद्ध गाँव थे और समृद्धि मकानों  में झलकती थीं।   आज इन्ही समृद्ध गाँवों में से एक गाँव  दांतू   गाँव के एक मकान में  सन 1 960  से पहले काष्ठ कला अंकन नक्काशी  पर चर्चा होगी।  मकान पूर्ण तया बाखली (लम्बे , एक साथ जुड़े  कई घर ) नही है  किन्तु  खोळी प्रवेशद्वार )  , छाज ( झरोखे ), खिड़कियां  आदि की शैली बाखली समान ही है।   दारमा  घाटी में मकान रिवाज अनुसार इस मकान में भी तल मंजिल  में गौशाला  व् भंडार थे व  ऊपरी मंजिल में  निवास इस्तेमाल  का रिवाज था। 
दांतू का यह मकान कुमाऊं शैली व ब्रिटिश शैली के मिश्रण से निर्मित हुआ है ( खोली व खिड़कियों के मुरिन्डों  के ऊपर पत्थर के मेहराब ब्रिटिश शैली के हैं )।
 दांतू के इस मकान में काष्ठ कला समझने हेतु मकान के तल मंजिल में कमरों के मुरिन्ड व दरवाजों में , खोळी  में व पहली मंजिल में दो छाजों  में काष्ठ कला पर ध्यान देना होगा।
तल मंजिल के कमरों  के दरवाजों पर ज्यामितीय कटान हुआ है किन्तु  कमरे के सिंगाड़  (स्तम्भ ) व स्तम्भ से मुरिन्ड की बनी कड़ियों में  प्राकृतिक कला (पर्ण लता वा पुष्प , सर्पिल लता  )  अंकन हुआ है।  कमरे के मुनरिन्ड  के मध्य एक बहुदलीय पुष्प की आकृति  खड़ी है जो  भव्य है। 
  दांतू  गाँव के इस भग्न हुए मकान की खोळी  (ऊपर मंजिल में जाने हेतु आंतरिक प्रवेशद्वार )   आज भी भव्य खोळी है जो  लकड़ी की टिकाऊ होने व नक्काशी की बारीकियों   से ही समझा जा सकता है।
खोली  के दोनों ओर  के सिंगाड़  (स्तम्भ )  चार चार उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से निर्मित है।  दो किनारे के उप स्तम्भों में आधार में कुछ ऊंचाई तक कमल फूल की कुम्भी व ड्यूल  की कला दिख रही है व इसके बाद  सभी चारों उप स्तम्भों में सर्पिल पर्ण लता का ाबंकन दिख रहा है।  सभी उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड के चौखट की कड़ियाँ बन जाते हैं।  यहां भी मुरिन्ड कड़ियों में सर्पिल पर्ण लता का अंकन हुआ है।  मुरिन्ड के केंद्र में  चतुर्भुज देव आकृति अंकित हुयी है।   मुरिन्ड के ऊपर दो मेहराब हैं एक मेहराब नक्काशी युक्त लकड़ी का है व दूसरा मेहराब लकड़ी के मेहराब के ऊपर पत्थर का मेहराब है जो ब्रिटिश भवन शैली  का द्योत्तक है।  मुरिन्ड के ऊपर अर्ध गोल स्कंध काष्ठ  कला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।  मेहराब के इस अर्ध गोल आकृति के अंदर  उठे अंजुली जैसे फूल की पंखुड़ियाों  का  आकर्षक अंकन हुआ है जो नक्काशी के बारीक व शानदार नक्काशी का उम्दा नमूना है।  अर्ध गोल आकृति के अंदर फूल पंखुड़ियों के उठी अंजुली (अंज्वाळ ) के अंदर एक बहुदलीय फूल अंकित है।   खोली में बेहतर दर्जे की नक्काशी हुयी है।  जो शिल्पकार  के कुशल काष्ठ शिल्प व मकान मालिक  के कला प्रेम को दर्शाने में सफल है।
  मकान के पहली मंजिल में  खोली  के आधे में दोनों ओर  बहुत कम चौड़े छज्जे (पौड़ी गढवाल की तुलना म बहुत कम चौड़े )  हैं व दोनों ओर  के छज्जों के उपर एक एक लकड़ी का नक्छाकाशी युक्जत  ( झरोखा ) सजा है।  छाज आम कुमाउंनी छाज (झरोखे , मोरी )  जैसा छाज है।  दोनों छाज  आकृति व कला दृष्टि  से एक समान  हैं।  प्रत्येक छाज दो दरवाजों से बनी है।  प्रत्येक छाज के प्रत्येक दरवाजे  के दोनों ओर मुख्य स्तम्भ हैं जो  तीन तीन उप स्तम्भों के युग्म /जोड़  से बने हैं।  प्रत्येक दरवाजे के बाहर व भीतरी उप स्तम्भ में आधार पर कमल फूल से बनी कुम्भी व ड्यूल आकृतियां  अंकित हैं।   आधार के ऊपरी कमल आकृति के बाद उप स्तम्भ बीच के उप स्तम्भ जैसे सीधे मुरिन्ड से मिलते हैं व मुरिन्ड की कड़ियाँ बन  जाते हैं।  इस दौरान सभी उप स्तम्भों में पर्ण -लता आकृति अंकित हुयी हैं।
  मध्य ओर के प्रत्येक दरवाजे का नीची वाला भाग लकड़ी के पटिले (तख्ता ) हैं व ऊपरी भाग में ऊपर मेहराब व नीचे  उल्टा मेहराब हैं और इन दो मेहराबों के मध्य ढुढयार  (छेद  , झरोखे )  है।  दुसरे घर या इसी घर के  दूसरे भाग में खिड़कियों के स्तम्भों में भी नक्काशी हुयी है।
    निष्कर्ष निकलता है कि  दांतू गाँव का यह मकान भव्य था व इस मकान में  लकड़ी में दिलकश नक्काशी हुयी है।  कला व अलंकरण दृष्टि से ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण हुआ है।  अब चूँकि यह क्षेत्र चीन युद्ध के बाद तकरीबन बांज ही पड़ गया था तो मकान ध्वस्त हो गए हैं किन्तु  टिकाऊ लकड़ी प्रयोग होने व पत्थर से मकान अभी भी  कुछ ना कुछ सही स्थिति में है। 
  सूचना प्रेरणा- बसंत शर्मा
 फोटो आभार:प्रसिद्ध फोटोग्राफर व कलाविद लोकेश शाह
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी ;  House wood Carving art in Pithoragarh  to be continued

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तल्ला गुराड़ (एकेश्वर , पौड़ी गढ़वाल ) में वीरांगना तीलू रौतेली  बंशजों के मकान, खिड़कियों  व खोळी  में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी - 216 
  Tibari House Wood Art in Tlla Gurad   , Pauri Garhwal 

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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तपौड़ी गढ़वाल के तल्ला गुराड़ व एकेश्वर से कई विशेष भवनों  की सूचना मिलीं हैं।     पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी शृंखला में  आज  गुराड़  में वीरांगना तीलू रौतेली के बंशजों  में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।  यह भवन नया भवन है।   मकान के कमरों के दरवाजों पर  ज्यामितीय  कला ,  बड़ी खिड़कियों    से साफ़ जाहिर है  कि मकान  1900  ही निर्मित हुआ है। भवन भव्य  था और आज भव्य  रूप दीखता है। 
तीलू रौतेली  बंशजों के ढैपुर  , दुघर मकान  में लकड़ी पर नक्काशी  समझने  स्थानों पर टक्क लगानी आवश्यक है
  तीलू रौतेली  बंशजों के मकान  में तल मंजिल में खोली , कमरों के दरवाजों के स्तम्भों  व खिड़कियों में   नक्काशी।
  तीलू रौतेली  बंशजों के मकान  में पहली मंजिल पर कमरों के दरवाजों व  खिड़कियों पर काष्ठ कला , अलंकरण अंकन।
    तीलू रौतेली  बंशजों के मकान  में तल मंजिल में  कमरों के दरवाजों के स्तम्भों  व खिड़कियों में   नक्काशी  -  तल मंजिल में  पांच से अधिक कमरे हैं व उनके दरवाजे व तल मंजिल में पांच से अधिक  कमरों के दरवाजों पर ज्यामितीय    कटान से ज्यामितीय (चौखट जैसा )  व  शैली में कला अंकन हुआ है।   किन्तु सभी कमरों के दरवाजों  व  खड़िकियों के  मुरिन्ड वास्तव में  मेहराब    आकृति से निर्मित हैं। 
 तीलू रौतेली  बंशजों के मकान  में   पहली  मंजिल में  कमरों के दरवाजों के स्तम्भों  व खिड़कियों में   नक्काशी -  खिड़कियों के दरवाजों का पृष्ह्न है   शैली की ज्यामितीय कटान हुआ है और  मुरिन्ड में मेहराब निर्मित है।  किन्तु कमरों के मुरिन्दों में कोई मेहराब (arch ) नहीं मिलते है।
    तीलू रौतेली  बंशजों के मकान  में तल मंजिल में खोली में   दिलकश नक्काशी  -     तीलू रौतेली  बंशजों के मकान  में  तल मंजिल की खोली पर  कला अलंकरण अंकन ही   मकान की विशेषता है।    बाहर पत्थर के आयताकार स्तम्भ हैं।   संबंधित , खोली में दोनों ओर मुख्य सिंगाड़  (स्तम्भ)  हैं।  प्रत्येक मुख्य स्तम्भ   दो उप स्तम्भों के युग्म / बना है।  बाहर का उप स्तम्भ  तिबारी जैसे स्तम्भ  जैसे है  याने आधार पर उलटे कमल दल , ड्यूल व सीधा कमल फूल है व फिर स्तम्भ की कड़ी सीधे हो ऊपर चलती है , आंतरिक या नीचे स्तर के मुरिन्ड की ऊंचाई पर कड़ी में उल्टा कमल अंकित है उसके ऊपर  ड्यूल , फिर सीधा कमल फूल है व वहां से कड़ी थांत  आकृति ग्रहण कर लेता है व ऊपरी बाह्य  मुरिन्ड से मिल जाता है।   अंदर के उप स्तम्भ  की कड़ी में  पर्ण -लता  का प्राकृतिक कला अंकन  हुआ है। यह कड़ी /उप स्तम्भ निम्न स्तर के मुरिन्ड से मिल मुरिन्ड की कड़ी बन जाती है।  मुरिन्ड  के तीनों स्तर की कड़ियों में पर्ण -लताओं का अंकन हुआ है , निम्न मुरिन्ड के ऊपर एक मेहराब  है जिसमे  ऊपर एक मेहराब है व  पटिले  में चतुर्भुज देव आकृति स्थित है व पटिले  में  प्राकृतिक अंकन हुआ है। इस पटिले के  ऊपर ही मेहराब है जिसके ऊपर ऊपरी मुरिन्ड है।  मेहराब के स्कंध में  भी अंकन हुआ है।
  तीलू रौतेली  बंशजों के मकान   के खोली  के ऊपरी भाग  याने निम्न स्तर के मुरिन्ड के बगल में  बाहर मिट्टी पत्थर के चौखट स्तम्भों के ऊपर  छप्परिका  से नीचे  दोनों ओर दीवालगीरें हैं।  प्रत्येक दीवालगीर   प्राकृतिक कला अंकित स्तम्भ हैं।  छप्परिका  से दोनों और दो दीवालगीर लटके जैसे हैं जिसमें    आधार पर ऊपर दो दो  हाथी  स्थापित हैं।  याने कुल चार हाथी हैं।  छप्परिका से शंकु आकृतियां भी लटकी। हैं 
  निष्कर्ष निकलता है कि  तीलू रौतेली  बंशजों  का  मकान  भव्य था व खोली  समेत मकान में लकड़ी पर ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण  कला अंकन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल
यह लेख  भवन  कला संबंधित   है . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


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पज्याण(पौड़ी गढ़वाल ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के कुमाऊं  शैली प्रभावित भवन में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी


गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी - 217 

  Tibari House Wood Art in Pajyan ,  Pauri Garhwal   

 संकलन - भीष्म कुकरेती

  पौड़ी गढ़वाल का चौथान क्षेत्र एक समृद्ध  क्षेत्र रहा है।  चौथान  पट्टी से कुछ तिबारियों  की सूचना मिली है जैसे चौथान पट्टी के पज्याण  गाँव से  स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  निर्मित कुमाऊं प्रभावित मकान की भी सूचना मिली है।   आज  पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन या लकड़ी पर नक्काशी की विवेचना होगी।

 आयुर्वेद रत्न स्व अमला नंद ढौंडियाल प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्स्क थे।    पज्याण(  चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  का भवन कुमाऊं भवन शैली प्रभावित भवन है।   पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन में खोली व छाज  पूरी तरह कुमाऊं शैली पर  आधारित हैं।   पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन में लकड़ी नक्काशी की विवेचना हेतु तीन स्थलों में टक्क लगानी आवश्यक है - खोळी ; पहली मंजिल में  छाजों  व भवन में खिड़कियों में काष्ठ कला अंकन। 

  पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन के तल मंजिल में खोळी  में लकड़ी नक्काशी :-

  पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन   की खोली  (प्रवेश द्वार ) तल मंजिल के आधार  से  भवन के पहली मंजिल में लगभग छत  आधार के बिलकुल निकट तक है। 

खोली के मुख्य सिंगाड़  अथवा स्तम्भ - पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन  के खोली मुख्य स्तम्भ (सिंगाड़ )  छह (6 )  उप स्तम्भों के युग्म जोड़ से निर्मित है। उप स्तम्भ दो प्रकार   के  हैं।  एक प्रकार के उप स्तम्भों में आधार से   पर्ण -लता (बेल बूटों )  का अंकन हुआ है ये तीनों उप स्तम्भ सीधे ऊपर जाकर  तीन स्तरों वाले मुरिन्ड की कड़ी बनाते हैं।  एक पर्ण -लता अंकित उप स्तम्भ  मुरिन्ड के सबसे ऊपर स्तर की कड़ी बनाता है , दूसरा  पर्ण  कला अंकन युक्त उप स्तम्भ  मुरिन्ड के मध्य स्तर की कड़ी बनाता है व तीसरा पर्ण   लता अंकित उप स्तम्भ   मुरिन्ड का निम्न स्तर की कड़ी बनता है। 

   खोली के मुख्य स्तम्भ में दूसरे प्रकार  के तीन  उप स्तम्भ कुछ कुछ गढ़वाल की तिबारियों जैसे ही हैं।  याने इस प्रकार के स्तम्भ आधार में  उलटे कमल दल से कुम्भी बना है , उल्टे  कमल फूल ऊपर  ड्यूल , ड्यूल ऊपर दो कमल फूल व फिर स्तम्भ लौकी आकार ले ऊपर चलता है फिर उल्टा कमल अंकित है जिसके ऊपर ड्यूल व ऊपर सीधा कमल फूल है व फिर प्रत्येक ऐसा स्तम्भ सीधा ऊपर जाकर मुरिन्ड के तीन स्तरों के एक स्तर  ी कड़ी भी बन जाते हैं। 

 खोली के मुरिन्ड  ( शीर्ष, abacus  जैसा )   के तीन स्तर हैं।  निम्न स्तर में देव मूर्ति बिठाई गयी है व  मध्य स्तर के ऊपर  हिरण के सींग बिठाये गए हैं।  मुरिन्ड की कड़ियों व पटिलों  में ज्यामितीय अथवा प्राकृतिक कला अंकन मिलता है।

  पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन  में खोली ऊपर छप्परिका  -  डा ढौंडियाल के भवन की खोली के ऊपर छपपरिका है  और   छप्परिका  से शंकु आकृतियां लटकी है।  इसके अतिरिक्त छपरिका  से खोली के दोनों  मुरिन्ड से बाहर व   मुरिन्ड के निम्न स्तर तक (छज्जे तक ) एक एक दीवालगीर स्थापित हैं जिनमे आधार पर दो दो हाथी व ऊपर  S  आकार की आकृति स्थापित है।

  पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन  के पहली मंजिल में छाजों (झरोखों , ढुड्यार ) में  काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी -   पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन  के पहली मंजिल में दो छाजों (झरोखे )  की सूचना मिली है।  छाज  के दोनों दरवाजों  के बाहर एक एक स्तम्भ है व एक एक स्तम्भ दो उप स्तम्भों के युग्म से बने हैं।  उप स्तम्भ  कला दृष्ति से बिलकुल खोली के उप स्तम्भों जैसे ही हैं। 

छाज के दरवाजों का निम्न तल  पटिल्या (तख्त जैसा ) से ढका है व झरोखा (ढुड्यार ) का  छेद    अंडाकार है व ऊपरी तरफ मेहराब युक्त  है।

खिड़कियों व अन्य कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय कला अलंकरण ही  दिख रहा  है।

निष्कर्ष निकलता है कि   पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन  के काष्ठ  संरचनाओं  में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण अंकन हुआ है.

     यह भी निष्कर्ष निकलता है कि पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल  के भवन  शैली डोटी  (पश्चिम नेपाल ) व कुमाऊं भवन शैली से पूरी तरह प्रभावित है।   

सूचना व फोटो आभार: उदय ममगाईं राठी

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक  स्थिति व मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं। 

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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श

 

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   मलारी गाँव (चमोली गढवाल ) में   पंच नाग भक्त की निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी पर नक्कासी

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी  -218
 
 
  House Wood Carving Art  from  Malari  , Chamoli 
(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 सीमावर्ती गाँव  मलारी के कुछ भवनों की फोटो अवश्य मिली हैं किन्तु स्वामित्व की कोई सूचना न मिल सकने के कारण मकानों को संख्या नाम दे  दिया गया है या अलग सा नाम दे दिया है I
  आज मलारी में भवन संख्या 3 याने   पंच नाग के एक भक्त के भवन में काष्ठ कला, काष्ठ अलंकरण अंकन /लकड़ी पर नक्कासी पर  चर्चा होगी .
  मलारी  (चमोली ) के   पंच नाग के एक भक्त का यह मकान पुरातन शैली का मकान है . मलारी  का यह मकान ढाईपुर (1+1 +1/2 मंजिल ) शैली का है व  दुखंड /तिभित्त्या ( आगे पीछे दो कमरों के मध्य एक भीत या दीवाल ) हैI व मकान के पहली मंजिल में निमदारीके जंगले  शायद चारों  ओर है नही तो दो ओर तो  दिख ही रही  है I
  मलारी  (चमोली ) के   पंच नाग के एक भक्त के मकान के  तल मंजिल में कमरे के दरवाजे व खिड़की पर ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त किसी प्राकृतिक, माविय अलंकरण के चिन्ह नही दिखे हैं .
     मलारी  (चमोली ) के   पंच नाग के एक भक्त के मकान के पहली मंजिल में लकड़ी का छज्जा है व छज्जे की आधार कड़ी व उपरी कड़ी के मध्य गोलाई लिए पत्तेनुमा (जैसे तिमल के या  कंडार के पत्ते हों ) की   आकृतियाँ स्थापित हैं I जिस ओर से भवन दिख रहा है उस ओर कम से कम सामने 30  पत्ते आकृतियाँ लटकीं (? ) या स्थापित हैं व उतने ही पत्तियाँ पीछे भी हैं I इन पत्तियों को धन से देखने से अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्ती आकृतियों में धार्मिक या प्राक्रतिक आकृति अंकित रही होगी I
  पहली मंजिल में छज्जे के आधार की उपरी  कड़ी पर स्तम्भ  कसे गये गये हैं I स्तम्भ के अध्हर पर ढाई तीन  फिट की ऊँचाई तक दोनों ओर काष्ठ पट्टिकाएं संलग्न है जिससे स्तम्भ आधार मोटा दिखाई देता है I   स्तम्भ इस ओर से तो सीधे  व छपरिका के कड़ी से मिल जाते हैं I किन्तु मकान के दूसरी ओर स्तम्भ के  मिलण  की कड़ी के उपर काष्ठ पट्टिका है जिस पर अलंकरण के चिन्ह दृष्टिगोचर हो रहे हैं I स्तम्भों में सर्पिल बेल बूटे के अलंकरण अंकन  के चिन्ह भी दिखाई देते हैं I
  मलारी  (चमोली ) के   पंच नाग के एक भक्त के निमदारी की विशेषता यह है कि छज्जे के आधार कड़ी से एक फीट उपर एक कड़ी है व  एक या डेढ़ फीट उपर दूसरी कड़ी है . इन कड़ीयों के मध्य दोनों खंडों में  हर ख्वाळ  में 30 याने (एक ख्वाळ में 60 ) हुक्का नै आकृति लगी हैं जैसे  गमशाली के भवन संख्या 3 (यह भी   पंच नाग भक्त की है ) में निमदारी की रेलिंग में भी हुक्के की नै जैसी आकृतियाँ लगी हैं जब कि मलारी की राशन दुकान निमदारी में बेलन नुमा आकृतियाँ लगी हैं I ये हुक्का नै आकृतियाँ सुन्दरता वृद्धिकारक हैं I
    मलारी  (चमोली ) के   पंच नाग के एक भक्त के मकान की एक अन्य विशेषता बरबस ध्यान खींचती है और वह है  ढाई पुर के ढलवां छत के  आधार पट्टिका /पटला से बाहर एक नक्कासी दार तोरण नुमा आकृति I तोरण में तिपत्ती नुमा मेहराब या चाप हैं व मकान के मूंड (सबसे उपर केंद्र )   बरछानुमा आकृति लटकती नजर आ रही है I संभवतया यह आकृति धार्मिक /आध्यात्मिक प्रतीक है I
    मलारी  (चमोली ) के   पंच नाग के एक भक्त के ढाई पुर  (निमदारी ) युक्त मकान में सभी तरह के अलंकरण /कला अंकन हुआ है .
मलारी व गमशाली  चमोली गढवाल के  एक ही क्षेत्र के गाँव हैं और उनकी निम दारियों में अद्भुत  साम्यता है तो दोनों गाँवों में   हर निमदारी की अपनी विशेष  विशेषता (Exclusivity) है I
सूचना प्रेरणा सूत्र  : सुशील बलोदी , झटरी
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Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी श्रंखला जारी   
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