Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1100904 times)

Bhishma Kukreti

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बडोळी (एकेश्वर , पौड़ी ) में एक घर में तिपुर  में लकड़ी जंगले  में काष्ठ कला , नक्काशी 
गढ़वाल,  कुमाऊँ, उत्तराखंड,  की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी -  227   Tibari House Wood Art in Badoli , Ekeshwar , Pauri Garhwal   
 संकलन - भीष्म कुकरेती -  बडोली  (एकेश्वर पौड़ी गढ़वाल ) के बारे  में कहा जाता है कि बडोलाओं के प्रथम पुरुष बडोळी   में बसने के कारण बडोला हुए।   सुनील बडोला के फेसबुक वाल से बड़ोळी के एक  तिपुर  में जंगले  की फोटो मिली जो कुछ विशेष है।  पहले तो मकान तिपुर है जो  जौनसार , रवाईं छोड़ बहुत कम गढ़वाल में मिलते हैं । दूसरी विशेषता है कि   इस दुखंड /दुघर -तिपुर  मकान में जंगला  पहले मंजिल में नहीं है अपितु  दूसरी मंजिल में है।    तिपुर मकान के दूसरी मंजिल में  दो तरफ काष्ठ जंगला बंधा है सामने की ओर  व किनारे की  तरफ, जबकि  पहली मंजिल में केवल छज्जा ही है।  अनुमान लगाना सरल है कि जंगले में बीस  स्तम्भ (खाम ) होंगे।  खां /स्तम्भ  लकड़ी के छज्जे के आधार से सीधे ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष की कड़ी से मिल जाते हैं।  खामों  /स्तम्भों  के  मुरिन्ड से मिलने से पहले  मध्य में तोरण /मेहराब निर्मित है और  यही मुख्य काष्ठ कला है इस जंगलेदार   मकान में  .  निष्कर्ष निकलता है कि बडोली (एकेश्वर , पौड़ी गढ़वाल ) के इस तिपुर , दुघर /दुखंड मकान में केवल ज्यामितीय अलंकरण प्रयोग हुआ है।  मकान की  मुख्य विशेषता इसकी तिपुर शैली व  दूसरी मंजिल में जंगला  बंधा होना है।  
सूचना व फोटो आभार : Suneel Badola यह लेख  भवन कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना  जानकारी श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता  उत्तरदायी नही हैं .Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली , बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   -   Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari HouseWood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art inPabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखालपौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल मेंतिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल मेंतिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल मेंतिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल मेंतिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल मेंतिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल मेंतिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श 

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धानाचूली (कुमाऊं )  के एक मकान में काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी नक्काशी   
कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी -224    -
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 धानाचूली गाँव  (धारी तहसील नैनीताल , कुमाऊं ) अभी पर्यटन  लिआज से कम प्रसिद्ध क्षेत्र है किंतु अब यह क्षेत्र पर्यटन क्षेत्र में अपने  पांव पसार रहा है .  इस क्षेत्र से कई ध्वस्त किन्तु काष्ठ कला दृष्टि  से महत्वपूर्ण  हैं . इसी क्रम में  एक कम  ध्वस्त मकान में काष्ठ कला , अलंकारण की चर्चा की जायेगी
मकान दुपुर (तल मंजिल व पहली मंजिल ) व दुघर (एक कमरा आगे व एक कमरा  पीछे ) शैली का है . यह तल मंजिल के बड़े बड़े द्वार हैं व द्वार के उपर आकर्षक मुरिंड हैं . .
 तल मंजिल में प्रत्येक  बड़े द्वार के उपर  चौकोर मुरिंड  में आकर्षक कला अलंकरण अंकित हुआ है . मुरिन्ड के नीचे द्वार में मेहराब के अंग अभी भी विद्यमान हैं।  मुरिंड चौकोर है व आयताकार लकड़ी के स्लीपर जैसे लगता है . फिर अंदर की ओर  आयत के लम्बाई वाले उपर नीचे हिस्से (parallel to earth )  में  मोटे/// कटान  की नक्काशी हुयी है व आड़े (vertical ) में  त्रिभुज आकार की नक्काशी हुयी  . इस मोटे स्लीपरनुमा काष्ठ  पटिले में मध्य आयत में .S आकार में पर्ण -लता का अंकन हुआ है।  कहा जा सकता है तल मंजिल के बड़े द्वार के ऊपर मुरिन्ड चौखट में प्रत्येक स्तर पर मनोहारी सुंदर कला अंकन हुआ है।
 तल मंजिल के दोनों द्वारों के मुरिन्ड के ऊपर एक एक छाज (झरोखा ) स्थापित हैं।  दोनों लकड़ी के झरोखे एक दूसरे  के आइना आकृति नकल है याने दोनों छाज  (झरोखे) एक समान हैं।
दोनों छाज (झरोखे ) में दो ढुड्यार ( बाहर झाँकने के लिए बड़े छेद  ) हैं व दोनों छाज ढुड्यारों के बीच व किनारे पर मुख्य स्तम्भ हैं जो उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बने हैं। 
ढुड्यार (झरोखे का छेद ) के नीचे  का भाग नक्काशी युक्त पटिले (लकड़ी का तख्ता रूप जैसे )  से ढके हैं व ऊपर कुछ कुछ अंडाकार ढुड्यार  खुला है। छाज के किनारे  उप स्तम्भ में कुछ अलग कलाकारी अंकित हूई  व बाकी  उप  स्तम्भों में कुछ अलग
किनारे के उप स्तम्भ
 किनारे के उप स्तम्भ का आधार बोतल नुमा है जिसके ऊपर उलटा कमल फूल है जिसके ऊपर सीधा खिला कमल दल है। इसके ऊपर स्तम्भ म ीक बड़ी लता व उससे लगे पत्तियों के आकृति अंकित हैं।  इस स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड (शीर्ष या मुंड ) का ऊपरी स्तर बनाते हैं।  इस तरह कुल तीन उप स्तम्भ हैं।  दूसरे प्रकार के अंदर के उप स्तम्भ में आधार के कुछ ऊपर उल्टा कमल दल हैं जिस पर पत्तियों की सुंदर  नक्काशी हुयी है। इसके ऊपर बारीक ड्यूल है फिर ऊपर बड़े बड़े दलों वाला उल्टा कमल दल अंकन है।  फिर ड्यूल है जिसके ऊपर सीधे कमल दल कुम्भी नुमा आकृति बनाते हैं. कमल दलों के ऊपर पर्ण /पत्तियों की नक्काशी हुई है। ।  इस कुम्भी के ऊपर  ड्यूल है , ड्यूल छल्ले नुमा आकृति  लिए हुए जिसके छोटे छोटे आयताकार भाग हैं। ड्यूल के ऊपर पत्तियों से नक्काशीदार युक्त कमल पंखुड़ियां है जो बड़ी कुम्भी बने हैं।  कमल दल के ऊपर स्तम्भ लौकी आकार लेकर ऊपर बढ़ता है। इस दौरान स्तम्भ के कड़ी में उभर व गड्ढे (flute -flitted ) का अंकन हुआ है।  जहां पर उप स्तम्भ की मोटाई कम है वहां उल्टा कमल दल अंकन हुआ है जिसके ऊपर बारीक ड्यूल है जिसके ऊपर बड़ा कड़ा नुमा छल्ला अंकन (ड्यूल ) है व उसके ऊपर   नक्काशीदार फूल दल फूल है जिसके ऊपर चौखट नुमा डब्बा नुमा आकृति अंकित है जिसके ऊपर उल्टा कमल है व कमल दल में पत्तियों का उत्कीर्णन हुआ है इस उलटे कमल दल के ऊपर पत्तियों से बना धगुल आकृति है जिसके ऊपर हृदय नीमा आकृति खड़ी है जिसके अंदर पत्तियों की कलाकृति दिखती है।  यहाँ से उप स्तम्भ मुरिन्ड (शीर्ष ) का स्तर बनना शुरू होता है।  मुरिन्ड के स्तर में कई प्रकार की नक्काशी हुयी है। मुरिन्ड (शीर्ष ) के स्तरों में फूल खुदे हैं लताएं अंकित है व शंकु नुमाकृतियाँ भी खुदी है तथा स्पाइरल लताओं का।  अंकन भी हुआ है।  अंकन शैली जटिल है व् असंभ्वतया अवधी नबाब शैली  या रोहिला शैली से प्रभावित हैं। 
   ढुड्यार ( छाज या झरोखे का छेद वाला भाग ) के ऊपरी भाग में मेहराब हैं व मेहराबों में बड़ी आकर्षक किन्तु जटिल अंकन हुआ है जो फिर से अवध या रोहिला काष्ठ अंकन से प्रभावित लगते हैं अथवा मुगल शैली से प्रभावित हैं। 
निष्कर्ष निकलता है कि धानाचूली के इस ध्वस्त मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है मानवीय अलंकरण देखने को नहीं मिला।  इस लेखक का अनुमान है कि कला अंकन अवध या रोहिला कला अंकन से अवश्य प्रभावित है। 
सूचना व फोटो आभार : मुक्ता नाइक
https . ramblinginthecity.com/tag/kumaon se saabhar
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्काशी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्काशी  ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्काशी   ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्काशी  ,  ,  मोरी में नक्काशी  , मकानों में नक्काशी   ; कुमाऊं की बाखलियों में लकड़ी नक्काशी  ,  कुमाऊं की बाखली में काष्ठ कला व   अलंकरण , कुमाओं की मोरियों में नक्काशी   श्रृंखला जारी  रहेगी   ...


Bhishma Kukreti

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घेस ( देवाल , चमोली ) में एक मकान की खोली व  मोरी /छाज (झरोखे )  में काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी - 228
  House Wood Carving Art  from   , Chamoli 
(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल व टिहरी गढ़वाल की तुलना में चमोली गढ़वाल व रुद्रप्रयाग गढ़वाल तिबारी व खोलियों  के मामले में अधिक समृद्ध हैं।  आज भी पारंपरिक मकानों के अवशेष ही नहीं सही सलामत मकान मिलते हैं।  ऐसे ही घेस (देवल ब्लॉक , चमोली गढ़वाल ) से एक खोली व मोरी /छाज (झरना ) की सूचना मिली है जिसकी काष्ठ कला पर आज चर्चा होगी। 
 -:घेस  (देवाल ) में खोली  में काष्ठ कला , नक्काशी:-  चमोली व रुद्रप्रयाग में कहावत प्रचलित है कि भजैक  लईं   कज्याण अर  बिन खोली मकान इकजनि होंदन।  यह कहावत घेस की खोली देख सही साबित होती है।  खोली के दोनों ओर मुख्य सिंगाड़ या स्तम्भ सजे हैं।  मुख्य सिंगाड़ या स्तम्भ  तेतें उप स्तम्भों व दो दो कड़ियों के युग्म/ जोड़ से निर्मित हुए हैं। 
 उप स्तम्भों में कड़ी नुमे उप स्तम्भ सीधे आधार से ऊपर मुरिन्ड से मिल जाते हैं व मुरिन्ड के एक स्तर  layer  बनाते हैं। इन उप स्तम्भ या कड़ियों पर  ज्यामितीय कटान छोड़ कोई विशेष नक्काशी नहीं दिखाई देती है।  बाकी  सभी तीन उप स्तम्भों में एक ही तरह की नक्काशी दिखाई दी है। इस प्रकार के उप स्तम्भ का आधार चौकोर जैसा कुछ है जिसके ऊपर उल्टा कमल दल है जी भड्डू जैसे आकृति बनाने में सफल है फिर ड्यूल है जिसके ऊपर फिर बड़ा अधोगामी पद्म पुष्प है जिसके ऊपर षट्कोणीय आकृति खुदी है जिसके ऊपर ड्यूल है और ड्यूल के ऊपर कुछ कुछ चौकोर  उर्घ्वगामी कमल दल है।  यहांसे सभी उप स्तम्भ shaft (कड़ी ) में बदल जाते हैं व ऊपर जाकर मुरिन्ड का  एक स्तर  ( layer ) बनाते हैं।  कमल दल से ऊपर सभी कड़ियों में  सुंदर आकर्षक बारीकी लिए प्राकृतिक जैसे फूल व हृदय आकृति फूल ; बेणी , सर्पीली लता आकृतियों आदि की नक्काशी हुयी है।  मुख्य स्तम्भ के  बाहर के उप स्तम्भ कड़ियाँ  ऊपर वाले मुरिन्ड की तह /layer  /स्तर बनाते हैं व भीतरी कड़ियाँ व उप स्तम्भ नींम तल के मुरिन्ड की तह /layer /स्तर बनाते हैं।  निम्न तल के व ऊपरी तल के मुरिन्ड चौखट नुमा आकृति के हैं। 
  खोली में मेहराब : खोली के दरवाजों पर  ब्रिटिश शैली में कटान हुआ है।  ऊपर  दरवाजों में कलश व शगुन आकृति व ऊपर फूल अंकित हैं।  दरवाजों के ऊपरी भाग में स्तम्भ से मेहराब के काष्ठ आधार प्रकट होते हैं जो चारपाई /पलंग के पाए जैसे हैं। पाए जैसे आधार के बाद एक चौकोर गट्टा है जहां से मेहराब के स्कंध हुरु होते हैं।  मेहराब के स्कंध  पाए के ऊपर ऐसे लगते हैं जैसे झंडे हों।  मेहराब के दोनों स्कंध में हाथी अंकित हुए  हैं।  मुरिन्ड के ऊपरी तह भी चौखट है जिसके दोनों किनारे में  बहुदलीय (सूरजमुखी जैसे ) फूल   , फिर गदा , पहाड़ी उठाये हनुमान मूरत ,  चतुर्भुज , कमलासन धारी लक्ष्मी मूरत  व बीच में   चतुर्भुजी गणपति  अंकित हैं। 
घेस के मकान में छाज /झरोखे या मोरी में काष्ठ कला अंकन :-  चमोली  व राठ  इलाके में बहुत से मकानों में  कुमाउँनी छाज संस्कृति का पूरा प्रभाव है।   घेस के मकान के पहली मंजिल में भी छाज /झरोखा /मोरी है।  छाज के ढुड्यार (छेद या झरोखा ) के दोनों ओर मुख्य स्तम्भ हैं।  मुख्य स्तम्भ   उप स्तम्भों से बने हैं व उप स्तम्भों में आधार पर नक्काशी लगभग /कमोबेश  खोली के उप स्तम्भों जैसे ही है। केवल अंतर् फूलों आदि के ऊपर की नक्काशी का ही है।  छाज के कमल फूल दलों के ऊपर प्राकृतिक कला अंकन  हुआ है।   उप स्तम्भ के ऊपरी कमल दल के बाद स्तम्भ  चपटे  कड़ियों में बदल जाते हैं व ऊपर मुरिन्ड के स्तर का भाग बन जाते हैं।  चपटे   कड़ियों  के ऊपर पर्ण -लता आकृतिओं की नक्काशी मिलती है।  ढुड्यार (छेद ) के निचले भाग को सपाट तख्तों से बंद किया गया है।
निष्कर्ष निकलता है कि  घेस ( देवाल , चमोली )  में इस मकान की खोली में आकर्षक ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय कला अंकन हुआ है।  नक्काशी बारीक व सधी है। 
सूचना व फोटो आभार:: संजय चौहान 
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . भौगोलिक , मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला,नक्काशी ;  नीति,   घाटी में भवन काष्ठ  कला, नक्काशी  ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्काशी , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्काशी श्रृंखला जारी  रहेगी


Bhishma Kukreti

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ढांगर (प्रतापनगर,  टिहरी )  में दिनेश सिंह पंवार की तिबारी में काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी- 229
  Traditional House Wood Carving Art of  , Tehri 

संकलन - भीष्म कुकरेती

 टिहरी गढवाल  तिबारियों के मामले में भाग्यशाली जनपद है।  टिहरी गढवाल से कई प्रकार के तिबारियों की सूचनाएं लगातार मिल रही हैं।  इसी क्रम में पूजा राणा ने प्रताप नगर तहसील से  ढांगर गाँव से दिनेश सिंह पंवार के भव्य मकान में स्थापित   आकर्षक तिबारी  में काष्ठ कला अंकन , अलंकरण  पर चर्चा होगी।
 ढांगर (प्रतापनगर,  टिहरी )  में दिनेश सिंह पंवार की तिबारी  ऊपरी  मंजिल में छज्जे के उपर देहरी में टिकी है।   तिबारी चौखम्या -तिख्वळ्या (चार स्तम्भ -तीन ख्वाळ )  है।  किनारे  के दोनों सिंगाड़ (स्तम्भ)  दीवाल से कड़ी से जुड़े हैं , दोनों कड़ियों के ऊपर सपर्पीली लता -पर्ण  का अंकन हुआ है।  पत्थर  डौळ  (हाथी पाँव आकर ) के ऊपर सभी सिंगाड़ टिके हैं और सभी सिंगाड़ों (स्तम्भों )  में कला , अंकन, अलंकरण एक सामान है। पत्थर के डौळ के ऊपर  स्तम्भ  का आधार कुम्भी नुमा आकर है जो अधोगामी (उल्टा ) पद्म पुष्प दल ( उल्टा कमल पंखुड़ियां )  है व कुम्भी के ऊपर ड्यूल (सर के ऊपर पगड़ी जैसे भर उठाने हेतु ) है व ड्यूल के ऊपर  उर्घ्वगामी (सीधा ऊपर की ओर चलने वाला ) पद्म दल (कमल पंखुड़ियां ) विद्यमान है।  इस स्थल से स्तम्भ लौकी रूप धारण करते ऊपर चलता है. जहां स्तम्भ की सबसे कम मोटाई है वहां  पर ाधगामी कमल दल उपस्थित है व ऊपर ड्यूल है व ड्यूल के ऊपर  उर्घ्वगामी कमल दल  अंकित हैं।  इस स्थान से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता है।  आधार से लेकर ऊपर तक कमल दलों में प्राकृतिक अंकन हुआ है ।  ऊपरी उर्घ्वगामी कमल दल के ऊपर स्तम्भ थांत रूप धारण करता है व थांत के ऊपर  छत आधार से चलते दीवालगीर लगे हैं।  जहां से स्तम्भ ऊपर थांत रूप धारण करता है वहां से  अर्ध चाप   शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर मेहराब बनाता है।  मेहराब  तीखा (sharp ) नहीं अपितु आकर्षक तिपत्ति रूप (trefoil ) में है, मेहराब के बाहरी शीर्ष स्तर  में भी नक्काशी हुयी है ।  मेहराब के ऊपर स्कंध त्रिभुज आकर के हैं।   प्रत्येक त्रिभुज में किनारे  एक एक बहुदलीय फूल (सूरज मुखी आकर ) अंकित  हैं। मेहराब स्कंध याने त्रिभुज में  फूल को छूने पत्तियां दृष्टिगोचर होते हैं।
मुरिन्ड (शीर्ष ) चौखट व बहुस्तरीय हैं।  मुरिन्ड के प्रत्येक स्तर में प्राकृतिक कला अंकन हुआ है और  प्रत्येक मेहराब के ऊपर मुरिन्ड स्तर में शगुन हेतु काल्पनिक  आकृति अंकित हुयी हैं। 
 छत के काष्ठ आधार से हर स्तम्भ के थांत के ऊपर तक दीवालगीर शुरू होते हैं।  दीवालगीर  में पक्षी (जैसे मोर हो ) गर्दन चोंच का अंकन  हुआ है और इसके ऊपर पुष्प केशर नाभि भी अंकित है (कमाल  की कारीगरी )।   छत आधार से शंकु लटके हैं व छत आधार पर भी कला अंकन हुआ है। 
निष्कर्ष निकलता है कि ढांगर (प्रतापनगर,  टिहरी )  में दिनेश सिंह पंवार की तिबारी   भव्य है व  आकर्षक प्राकृतिक , ज्यामितीय  और मानवीय (मयूर  चोंच गर्दन ) कला अंकन से भरपूर है।
  सूचना व फोटो आभार:  पूजा राणा 

यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I   भौगोलिक स्तिथि और व भागीदारों  के नामों में त्रुटी  संभव है I 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ  कला  , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्काशी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ; House Wood carving Art from   Tehri; 


Bhishma Kukreti

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Tooth Brushes and tooth paste description in Astanga Sangraha
Economic Botany or applied Botany in Vagbhata literature -1
Glimpses of Botany in Gupta period (3rd Century AD to 8th Century AD   -3
BOTANY History of Indian Subcontinent –130   
Information Compiler: Bhishma Kukreti 
It is a fact that Vagbhata  studied the works of his predecessor medicine authorities  as  Gautama, Brihaspati, Kapilabala, Varuna, Khandkapya, Charaka, Sushruta etc. Vagbhata quoted their works in his literature as Astanga Sangraha.(3).
 However, Vagbhata did have his own theories and he mentioned those ideas in his works (3)
 From Botany point of views we shall discuss plants mentioned in Astangahridaya and Astanga Sangraha  those were not mentioned in Charaka Samhita, Sushruta and Bhel Samhita in following chapters.
In this chapter, the plants recommended for tooth brushes and paste by Vagbhata in Astang Sangraha (4)–
Plants name in A.S----------Botanical name
Vata----------------------------- Ficus bengalensis
Asana ------------------------- Pterocarpus marsupium
Arka --------------------------  Calotropis procera
Khadira -------------------- Acacia catechu
Karanja ----------------------- Pongamia  pinnata
Karavira ----------------------- Nerum indicum
Sarja --------------------------- Vateria  indica
Arimeda ----------------------   Acacia leucoploea
Apamarga ----------------------- Achyranthes aspera
Malati -------------------------- Jasminum arborescens
Kakubha ------------------------- Terminalia  arjuna
Dipping medium for tooth Brushing in Astanga Sangraha –
There is suggestion in Astang Sangraha that the toth brush should be dipped into dipping medium that is mixture of-
Vapya – Cordia dichotama
And Trivarga tritaya (Trikatu, Triphala and Trijataka) with honey (3 and 4)
Following plants were used (recommended on Vagbhata time  ) for preparing mixture of  Trivarga Tritaya-
Piper longum
Piper nigrum
Zingiber officianale
Terminalia chebula
Phyllanthus embllica
Terminalia belerica
Cinnamomum zylanicum
Elletria cardamomum

References:
1-Subhaktha P.K.J.P., Manohar ,S Gundeti and Ala Narayana , Vagbhata- His Contribution Journal of Indian Medical heritage Vol.39-2009, pp 111-136.
2-Ramarao, B., Sharma, P.V., 1992, History of Medicine in India: Vagbhata, NSA New Delhi pp. 205-221 
3- Sarma C.R.R . ,B. Rama Rao , Additional material in Astanga Sangraha, Bulletin , Ind.Inst.History Medical  Vo .lIX p 1 to 12
4- Astanga Sangraha Sutra 1 Chapter
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Chakradhar Juyal Retiring
History of Tehri King Narendra Shah -41
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 2303   
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1481
By: Bhishma Kukreti (History Student
  Chakradhar Juyal served the state for fourteen years with strength, devotion to the state and honesty. Juyal was not keeping well. . Juyal offered resignation from 1st July 1939. Barring Ravain incident and then after his court cases against personalities as Chandola, Taradatt Gairola, and mis behaviour with Bhavani Datt Uniyal , over all people and scholars appreciated the administration of Chakradhar Juyal. The King offered a reception in appreciation for his good works for Tehri Kingdom on his retirement time. Chakradhar Juyal died on 24th December 1924 in Dhahran (Vikasnagar) Dehradun.
 Appointment of Maulichandra Sharma as Federal Secretary :-
 After Chakradhar Juyal retiring as Diwan, the King Narendra Shah appointed Maulichandra Sharma as Federal Secretary of the state. On 9th March 1939. Maulichandra Sharma was the son of Sanatan Dharma leader Din Dayal Sharma. Later on , King promoted Sharma as General Minister of he Kingdom. Sanatan Dharma Samiti’s Chief Goswami Ganesh Datt recommended the name of Maulichandra Sharma to the king. Goswami had effective  influence on Narendra Shah. Maulichandra had ample  knowledge of Hindi and Sanskrit.

References
1-Dabral S.P.,, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page  49
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Plants Prohibited for Teeth Brushing in Ashtanga Sangraha

Economic Botany or applied Botany in Vagbhata literature (Ashtanga Sangraha and Ashtanga Hridaya)   -2
Glimpses of Botany in Gupta period (3rd Century AD to 8th Century AD   -4
BOTANY History of Indian Subcontinent –131   

Information Compiler: Bhishma Kukreti 

 Vagbhata described most of the Plants mentioned in Charaka Samhita, Bhel samhita  and Sushruta Samhita .
 Vagbhata added many plants and drugs and habits for good health than Charaka Samhita and Sushruta Samhita.  There are following plants prohibited for tooth brushing mentioned in Ashtanga Sangraha by Vagbhata but those were not mentioned in Charaka and Sushruta Samhita with references to tooth brushing (3, 4). –
Name in AS-------------------- Botanical Name
Slesmataka -------------------  Cordia dichotama
Arista -----------------------  Sapindus trifoliatus
Vibhita -------------------------  Terminialia belerica
Dhava ------------------------ Anogeissus latifolia
Dhanva ------------------------ Grewia tiliaefolia
Bilva ------------------------- Aegel marmelos
Vanjula  -------------------- --- Salix caprea
Nirgundi ----------------  ------Vitex  negundo
Sigru ----------------------------  Moringa oleifera
Tilvaka ------------------------------ Symplocos racemoss
Tinduka -------------------------------- Diospyros embryopteris
Kvidara ----------------------------- Bauhnia racemoss
Sami ---------------------------------- Prosopis soicigera
Pilu ------------------------------------  Salvadora persica
Pippala --------------------------- Ficus religious
Linguda -------------------------  Balanites aegyptiaca
Guggulu ------------------------ Commiphora mukul
Paribhadraka -------------------------------  Erythrina  indica
Amlika -------------------------------------- Tamrindus indica
Mochaki ------------------------------------ Bombax malbericum
Salamali ---------------------------------- Bombax malbericum
Sana -------------------------------------- Crotalaria juncea
The other information on plants mentioned by Vagbhata will be discussed in following chapters
References:
1-Subhaktha P.K.J.P., Manohar ,S Gundeti and Ala Narayana , Vagbhata- His Contribution Journal of Indian Medical heritage Vol.39-2009, pp 111-136.
2-Ramarao, B., Sharma, P.V., 1992, History of Medicine in India: Vagbhata, NSA New Delhi pp. 205-221 
3- Sarma C.R.R. , B. Rama Rao , Additional material in Ashtanga Sangraha, Bulletin , Indian. Institute .History Medical  Vo .lIX p 1 to 12
4- Ashtanga Sangraha Sutra 1 Chapter
Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020


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Understanding Hierarchy in the Organization

(Example from Shukra Niti )
Appointing and Training the Department Head Strategies for CEO - 3
Successful Strategies for successful Chief executive Officer – 101
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 101
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

योज्य स पत्तिपाल: स्यात्रिशतां गौल्मिक: स्मृत :II 141II
शतानां तु शतानीकस्तथा अनुशातिको वर :
सेनानीलेखकश्चैते  शतं  प्रत्यधिया इसे II 142II
साहस्रिकस्तु संयोज्यस्तथा  चायुतिको महान् I
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 141, 142)
Translation:
The responsibilities of Pratipal are as  follows -  Pratipal is in charge of 5-6 soldiers. The in charge of 30 soldiers is called ‘Gaulmik. The in charge of 100 soldier is called ‘Shatannik’, Anushatik and  Senani lekhak . Sahasrik controls 1000 soldiers. Ayutik control 10, 000 soldiers. The king should appoint army in charges accordingly .

(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 141, 142 first half)

References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 83   
 Copyright@ Bhishma Kukreti 2020
Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for Chief Executive Officers; Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for Managing Directors; Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for  General Mangers; Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for Executive Directors ; Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for ; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for  CEO; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for COO ; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for CFO ; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for  Managers; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for MD ; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for Chairman ; Refreshing Guidelines for Understanding Hierarchy in the Organization for President



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  बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी  के मकान में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी

House Wood Carving Art  in   house of  Burfu ,  Pithoragarh
गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी  -  233
 संकलन - भीष्म कुकरेती 
-
 चीन -भारत -  पिथौरागढ़ -तिब्बत -नेपाल सीमावर्ती  जोहर घाटी , दारमा घाटी आदि क्षेत्र कभी तिब्बत -भारत व्यापार का केंद्र था  और   समृद्धि ही समृद्धि हुआ करती थी जो  इस क्षेत्र के मकानों  में झलकती थी।  आज  इस क्षेत्र में बहुत से मकान   ध्वस्त हैं और कुछ घर जीर्णोद्धार से पुन: सजीव हुए हैं (जैसे होम स्टे मर परिवर्तित होना )  जो समृद्धि व कला  कहने लायक आज । 
 आज  इसी क्रम में  बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी /जांगपांगी  के मकान में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी की चर्चा की जायेगी।  मकान यद्यपि बाखली नहीं है किन्तु    बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी  के मकान  में , खोली झरोखे आदि की वही शैली जो आम कुमाऊं की बाखलियों में पायी जाती हैं जिसे   लिखाई नाम भी  (गुस्तास्प  और जीरो ईरानी 2017 )  दिया गया है। बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी  का मकान दुपुर व संभवतया दुघर या तिघर है।  इस मकान में काष्ठ कला विवेचना हेतु मकान के निम्न भागों पर ध्यान देना होगा -
तल मंजिल में खोली में लकड़ी नक्काशी
पहली मंजिल में खोली  (प्रवेश द्वार ) व  बड़े छाजों /झरोखे  में लकड़ी नक्काशी
पहली मंजिल में लघु झरोखों में लकड़ी नक्काशी
    बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी  के मकान  के तल मंजिल में जो खोलीनुमा दरवाजे के दोनों और के मुख्य स्तम्भ  स्तम्भों के युग्म /जोड़ से निर्मित है। पहली मंजिल की खोली /प्रवेश द्वार की खोली के मुरिन्ड से अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि तल मंजिल की खोली के मुरिन्ड में तीन चार  चौखटीय स्तर होंगे।
 पहले मंजिल की खोली के आकार व तल मंजिल से पहली मंजिल हेतु बाहर की सीढ़ियों  है खोली में अवश्य ही तब्दीली हुयी है।  संभवतया पहले खोली तल मंजिल में थी व आंतरिक सीढ़ियों वाली खोली रही होगी।
खोली के दोनों ओर मुख्य स्तम्भ हैं।  प्रत्येक मुख्य स्तम्भ चार चार उप स्तम्भों (सिंगाड़ों )  के युग्म /जोड़ से बने हैं।  दो उप स्तम्भ आधार से ही सीधे हैं जिनमे केवल ज्यामितीय कला  व दोनों  उप स्तम्भ आधार से सीधे खोली के चौकोर मुरिन्ड के तह (layer ) बन  जाते हैं।  दूसरे दोनों उप स्तम्भों के आधार में चौकोर आयात नुमा आधार हैं।  इस गोल व चौकोर  आधार के ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर कुम्भी है, इस गला युक्त कुम्भी के ऊपर एक और ड्यूल है फिर एक और गला युक्त कुम्भी है।  इस गला युक्त  बाद स्तम्भ सीधी कड़ी रूप धरण कर ऊपर चौखट रूपी  मुरिन्ड  की तहें बन जाते हैं। 
    बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी  के मकान  के पहली मंजिल में दो लघु झरोखे या छाज दृष्टिगोचर हो रहे हैं।  दोनों लघु झरोखों /छाजों  में ज्यामितीय क्लाआँक्न हुआ है व छाज (झरोखे ) बहुत ही आकर्षक हैं।
निष्कर्ष निकलता है कि     बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी   का प्रस्तुत  मकान का अवश्य ही जीर्णोद्धार हुआ  है (अनुमान सरल है बल अब यह होम स्टे रूप में विद्यमान है )। मकान में लकड़ी पर   ज्यामितीय व प्राकृतिक   आश्चर्य  है कि मकान की लकड़ी पर कहीं भी मानवीय (पशु , पक्षी , देव , कल्पना) अलंकरण नहीं दीखता है।  इस मामले में     बुर्फू ( पिथौरागढ़ ) में  गोकर्ण  सिंह जंगपांगी / जांगपांगी  के मकान  की कला आम कुमाउँनी बाखलियों में पाए जाने वाली आम कला से बिगळीं (अलग या विशेष ) है।
मूल सूचना सूत्र : सचिदानंद सेमवाल
  फोटो आभार: विजय कुंदाजी  इंडिया हाइक्स
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 
 
 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी ;  House wood Carving art in Pithoragarh  to be continued

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खंड (तल्ला थलीसैण , पौड़ी ग ) में नौडियाल बंधुओं के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

-
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड,  की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी- 232
  Tibari House Wood Art in Khand , Talla Thalisain   , Pauri Garhwal     
 संकलन - भीष्म कुकरेती
-
 थलीसैण (पौड़ी गढ़वाल ) क्षेत्र तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकानों के मामले में भाग्यशाली क्षेत्र है।  इसी क्रम में  आज  खंड (तल्ला थलीसैण , पौड़ी ग ) में  मायाराम नौडियाल 'शास्त्री ' नौडियाल बंधुओं के भव्य मकान में जंगले  में काष्ठ कला पर चर्चा होगी। 
  खंड (तल्ला थलीसैण , पौड़ी ग ) में नौडियाल बंधुओं  का मकान दुपुर -दुघर   है।  मकान में तल मंजिल के बरामदे की ऊपर पहली मंजिल में भव्य जंगला स्थापित है।  खंड (तल्ला थलीसैण , पौड़ी ग ) में नौडियाल बंधुओं के जंगले  में 15 से अधिक खाम (स्तम्भ हैं ) और 14 ख्वाळ  हैं।  प्रत्येक  स्तम्भ सीधे हैं व जैसे ही स्तम्भ ऊपर मुरिन्ड की कड़ी (शीर्ष ) से मिलने को होता है प्रत्येक स्तम्भ से अर्ध चाप निकलते हैं व दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर मेहराब बनाते हैं।  मेहराब तिपत्ति नुमा हैं मेहराब में सपाट ज्यामितीय कटान ही हुआ है।
   जंगल में आधार के ऊपर दो  फिट के ऊपर भू समांतर में एक सपाट कड़ी  (रेलिंग ) है और आधार कड़ी व इस कड़ी के मध्य धातु के जंगल हैं। 
निष्कर्ष निकलता है कि  खंड (तल्ला थलीसैण , पौड़ी ग ) में नौडियाल बंधुओं के मकान के जंगले में ज्यामितीय कटान से कला अंकित है व भव्य है। 
सूचना व फोटो आभार: विवेका नंद जखमोला
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


 

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