Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1100902 times)

Bhishma Kukreti

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सिलड़ी काटळ  ( यमकेश्वर , पौड़ी )  में  बडोला परिवार के जंगलेदार मकान  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  ,बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्कासी -231
House Wood carving art of Sildi katal, Yamkeshwar ,  Pauri Garhwal
 संकलन -भीष्म कुकरेती 
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यमकेश्वर ब्लॉक में उदयपुर पट्टी तिबारी , निमदारियों हेतु भाग्यशाली क्षेत्र है।   इसी क्रम में आज  सिलड़ी काटळ  ( यमकेश्वर , पौड़ी )  में  बडोला परिवार  के जंगलेदार मकान में  काष्ठ कला अलंकरण आदि पर चर्चा होगी। सिलड़ी काटल राजसेरा व तिल फरया गाँवों के निकटवर्ती गाँव है। 
सिलड़ी काटळ (यमकेश्वर ) में बडोला परिवार के प्रस्तुत जंगलेदार मकान का निर्माण  स्व . राम प्रसाद बडोला ने करवाया था।  मकान ढैपुर , दुखंड (दुघर ) है।   सिलड़ी काटळ  ( यमकेश्वर , पौड़ी )  में  बडोला परिवार के  मकान में जंगला पहली मंजिल पर स्थापित है।     सिलड़ी काटळ  ( यमकेश्वर , पौड़ी )  में  कमलेश बडोला परिवार के मकान में  जंगला यमकेश्वर क्षेत्र में पाए जाने वाले जंगले  से कुछ भिन्न है।  जंगला में दस के लगभग स्तम्भ (खाम ) हैं।  खाम छज्जे से ऊपर चलते हैं तो मुरिन्ड से  नीचे एक कड़ी से मिलते हैं व फिर इसी कड़ी के ऊपर चलते ऊपर मुरिन्ड (छत के आधार की लम्बी कड़ी ) से मिलते हैं।  इस तरह दो स्तम्भ दो चौखट बनते हैं  एक बड़ा आयत नीचे व छोटा आयत ऊपर की ओर।  कुल
   सिलड़ी काटळ  ( यमकेश्वर , पौड़ी )  में  बडोला परिवार के  मकान में व जंगले  के स्तम्भ  में ज्यामितीय कटान कला के अतिरिक्त कोई विशेष कला दृष्टिगोचर नहीं होती।  बहुत कम जनसंख्या वाले गाँव में इस जंगलेदार मकान ने बडोला परिवार व सिलड़ी काटळ  को क्षेत्र में विशेष पहचान दी  वा आज भी मकान की अपनी पहचान है।   
निष्कर्ष निकलता है बल   सिलड़ी काटळ  ( यमकेश्वर , पौड़ी )  में  बडोला परिवार के  मकान में जंगले पर केवल ज्यामितीय कला ही मिलती है  और स्तम्भों व  भू समांतर दो कड़ियों  की स्तिथि इस जंगले  को विशेष बना देता है।   
सूचना व फोटो आभार : विकास बडोला , सिलड़ीकाटळ
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   श्रृंखला
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; 


Bhishma Kukreti

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बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार की  बीस खम्या  जंगलेदार  निमदारी व खोली में काष्ठ कला, अलंकरण ,  अंकन , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला, अलंकरण ,  अंकन , लकड़ी नक्काशी-222     
 Traditional House wood Carving Art of  Barsudi ,  Rudraprayag 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  इस श्रृंखला में  जंगलेदार निमदारी  उस भवन को कहा गया है  जिस भवन के छज्जे (लकड़ी के या पैडळस्यूं  प्रकार के पत्थर से बने )  में स्तम्भ  (खाम ) हों जो ऊपर छत आधार तक पंहुचते हैं।  स्तम्भों /खामों के मध्य आधार पर जंगले  (reling with  small    size  clumns )  बंधे होते हैं।  ढांगू में निमदारी   न कह इस प्रकार के भवन को जंगलेदार कूड़  कहते हैं। 
  सर्वेक्षण से पता लगता है कि इस प्रकार जंगलेदार निमदारी  का प्रचलन हरिसल राजा आका विल्सन  के 1864 में बनाये गए भवन के बाद ही शुरू हुआ अतः  इस प्रकार के जंगलेदार भवन शैली को विल्सन शैली  के निमदारी भी कह सकते हैं।   गढ़वाल भूभाग (सभी गढ़वाल जिले , देहरादून व हरिद्वार ) में निमदारी  निर्माण प्रचलन रहा है किंतु कुमाऊं खंड में अभी तक  इस सर्वेक्षण में निमदारी निर्माण की कोई सूचना नहीं मिली। 
प्रस्तुत  बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार का भवन भव्य है जिसमे में छज्जे पर लगभग 20 स्तम्भों से निमदारी बनी है।  कला दृष्टि से  बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार के भवन के काष्ठ स्तम्भों में ही कला  अवलोकन आवश्यक  नहीं अपितु खोली  में भी काष्ठ कला अवलोकन अत्त्यावष्यक है। 
  बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार  के ढैपुर , दुखंड /दुघर वाले  मकान में खोली  तल मंजिल में है  व चिन्ह बताते हैं खोळी भव्य रही है।  खोळी  के दोनों ओर मुख्य स्तम्भ हैं और प्रत्येक मुख्य स्तम्भ दो प्रकार के उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बना है।   एक प्रकार का उप स्तम्भ आधार से सीधा ऊपर मुरिन्ड के भू स्तरीय भाग का एक भाग बन जाते हैं।  इन सीधे स्तम्भों में बेल बूटों की कला अंकित है।  दूसरे प्रकार के उप स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल अंकित है फिर ड्यूल अंकन है , जिसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल आकृति खुदी है और यहाँ से यह उप स्तम्भ  सीधा ऊपर जाकर मुरिन्ड का एक स्तर बन जाता है।  मुरिन्ड चौखट है व कई स्तरीय कड़ियाँ मुरिन्ड में है।  मुरिन्ड में देव आकृति स्थापित है।  निम्न स्तर के मुरिन्ड के ऊपर भी मेहराब नुमा मुरिन्ड है।  खोळी  के दरवाजे पर ज्यामितीय कला अंकन किया गया है। 
  बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार  के मकान में पहली मंजिल में जंगला बिठाया गया है जंगले  में बीस स्तम्भ हैं जो छज्जे से ऊपर छत आधार तक गए हैं।   स्तम्भों के आधार में दोनों तरफ पट्टिकाएं लगी हैं जो स्तम्भ को मोटाई देते हैं।  इसके ऊपर स्तम्भ में उलटा कमल फूल अंकित है फिर ड्यूल है जिसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल है जिसके ऊपर स्तम्भ कड़ी सीधे ऊपर जाती है किन्तु स्तम्भ में फिर आधार का दुहराव होता है याने कमल फूल व सबसे ऊपर स्तम्भ के दोनों ओर पट्टिकाएं।  ऊपर व नीचे आधार में स्तम्भ एक दूसरे के आइना नकल हैं।   
  बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार के भवन के पहली मंजिल में स्थापित दो स्तम्भों के मध्य  आधार पर तीन तीन लकड़ी की  रेलिंग (कड़ियाँ ) हैं।  इन कड़ियों के मध्य  लौह जंगले सधे हैं। 
निष्लृष निकलता है कि  बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार की निमदारी  भव्य है २० खम्या है व खोली में भी भव्य नक्काशी हुयी है।  तीनों प्रकार के अलंकरण - ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (देव आकृति )  अलंकरण मकान में मिलते हैं।
सूचना व फोटो आभार:  नंदन राणा
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्काशी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्काशी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्काशी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्काशी  , खिड़कियों में नक्काशी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्काशी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्काशी ,  स्तम्भों  में नक्काशी


Bhishma Kukreti

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नाथूपुर (गढ़वाल ) में जंगलेदार मकान में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , जिसमें  शहीद चंद्र शेखर आजाद ठहरे थे !

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड,  की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी -230 
  Tibari House Wood Art in   , Pauri Garhwal   
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 नाथूपुर दुगड्डा मंडल में ऐतिहासिक गाँव है।  नाथूपुर की स्थापना गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड औननरी कैप्टेन नाथूसिंह रावत ने की थी।  सन  1927  में  मूलत: चौंदकोट निवासी नाथूसिंह रावत को यह भूमि  गाँव ब्रिटिश शासन ने  उनके शौर्य हेतु जागीर में दी थी।  लगभग 1930 में उनके घर में शहीद चंद्र शेखर आजाद ठहरे थे।  रिटायर्ड औननरी कैप्टेन नाथूसिंह रावत  के पुत्र  स्वतंत्रता  सेनानी  भवानी सिंह  रावत चंद्र शेखर आजाद के दोस्त थे।  आज इस मकान की देखरेख भवानी सिंह रावत के सुपुत्र जगमोहन सिंह रावत करते हैं। 
 आज उस  जंगलेदार मकान में काष्ठ कला , अलंकरण की चर्चा होगी जिसमें   शहीद चंद्र शेखर आजाद ठहरे थे।
रिटायर्ड औननरी कैप्टेन नाथूसिंह रावत  का यह ऐतिहासिक मकान दुपुर है व जंगला पहली मंजिल में स्थापित है।  जंगला लकड़ी के छज्जे पर स्थापित है।  जंगल में सात स्तम्भ (खाम ) दृष्टिगोचर हो रहे हैं।  स्तम्भ छज्जे से सीधे ऊपर मुरिन्ड की कड़ी से मिलते हैं।  स्तम्भ के आधार पर  दोनों ओर से पट्टिकाएं लगी हैं जिससे आधार पर स्तम्भ मोटे दीखते हैं। स्तम्भ व मुरिन्ड (शीर्ष ) की कड़ी सपाट हैं।  आधार पर दो ढाई फिट की ऊंचाई में दो रेलिंग (कड़ियाँ ) हैं जिनके बीच  सपाट  उप स्तम्भ के जंगले  सधे हैं।
 मकान या जंगले  में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई अन्य अलंकरण के दर्शन नहीं होते हैं।
  मकान दो कारणों से ऐतिहासिक है।  एक तो यह मकान स्वतंत्रता सेनानी भवानी सिंह रावत का भी मकान था व यहीं शहीद चंद्र शिकार आजाद भी ठहरे थे।
  गढ़वाल में जंगलेदार मकान समझने हेतु भी मकान कम ऐतिहासिक नहीं है।    रिटायर्ड औननरी कैप्टेन नाथूसिंह रावत ने यह मकान बनवाया और  अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने जंगलादार मकान निमृत करवाया था।  गढ़वाल में सबसे पहले जंगलेदार  शैली मकान की नींव हरसिल के विल्सन ने  1860  के करीब रखी थी  व वहीं से जंगलेदार मकान प् प्रचलन गढ़वाल में हुआ।  नाथू सिंह रावत का यह मकान 1927 -28 में बना।  तो इस मकान को  जंगलेदार शैली के मकान इतिहास में एक मील पत्थर भी मान सकते हैं।  जब  रिटायर्ड औननरी कैप्टेन नाथूसिंह रावत ने जंगलेदार मकान बारे में सोचा होगा तो अवश्य ही ऐसे मकान उनके समय निर्मित हो चुके होंगे। 
सूचना व फोटो आभार: वरिष्ठ पत्रकार विजय भट्ट
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


Bhishma Kukreti

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Tehri King Cooperating British during  World War II
History of Tehri King Narendra Shah -42
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 235     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1482
By: Bhishma Kukreti (History Student
 By 1936, Mussolini had rule over Italy and Hitler was ruler of Germany. They had accord with each other. Latter on Japan also met with them. In 1938, Hitler r capture Georgia and then Czechoslovak too . Hitler attacked on Poland on 1st September 1934. Therefore, the friendly countries Britain and France declared war against Germany. Britain declared war against Germany from the common wealth countries too.
 In India, Congress was against India declaring war  or participating World War II. Rashtriya Swyam Sewak Sangh , Muslim league and  Princely States of India were with Britain for war against Germany.
Tehri King Narendra Shah too helped Britain as much the King could do so .  Britain had 182, 000 Indian soldiers in India .By 1945, the numbers went up to 20 lakhs. There was no scope of employment in British Garhwal and Tehri Garhwal, Therefore, young Garhwalis  entered into Army with pleasure.  Due to recommendation from the King, British government trained commissioned captain Gambhir Singh, Lieutenant Yudhbeer Singh , Vidyadhar Juyal 9son of Chakradhar Juyal) and others and trained them in IAM Dehradun. (20
  Tehri  Contributed for  Rs. 25,ooo for war fund and bought Defence bond for Rs. 50, 000. The Tehri King sent 350 labourers to helping the British Narendra Shah sent Army Battalion Sippers and Miners for helping British Government. On 27th November 1940. The King gave an enthusiastic speech before the battalion before the battalion left Tehri. (1, 2)
  The king awarded honorary post of General  Minister as major and awarded Chief Secretary as Captain to encourage people to take jobs in British army.
As per administrative report of Tehri Garhwal, 1940-41 , In 1941, the king sent 1000 new soldiers from Tehri state to the British army.  As per the above report only, the King contributed Rs. 10000 for curing of the soldiers. British government commissioned Vikram Shah  the second son as Lieutenant in 1942  .
References
1-Dabral S.P.,, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page  50, 51 
2- Daurgidatt , Narendravanshakavya 285, 324
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020 


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Plant Science Aspects in Ashtanga Hridaya of Vagbhata

Economic Botany or applied Botany in Vagbhata literature (Ashtanga Sangraha and Ashtanga Hridaya)   -3
Glimpses of Botany in Gupta period (3rd Century AD to 8th Century AD   -5
BOTANY History of Indian Subcontinent –132   
Information Compiler: Bhishma Kukreti 
  Vagbhata is credited for writing Ashtanga Sangraha, Ashtanga Hridaya and Rasasamucchaya.
   The Ashtanga Sangraha mentioned 755 medicinal plants (1) .
 All three texts by Vagbhata are related to Ayurveda and not plant science. However, there are aspects of Plant Science in all the texts.
  The following chapters are there in Ashtanga Hridaya by Vagbhata (1) –
 Chapter (Botany subject) --------------------------- ----Page of Kanjiv Lochan’s book
Dravyadravya Vigyan (on Science of Herbs) --------------- --45
AnnasvarupaVigyaniyam (On Cereal Science) ----------------66
Annaraksha (on Proper Use of Cereals) ------------------------- 102
Matrasitya (on Approperate of eatables) ------------------------118
Sodhanadidigana Sangrah ------------------------------------------187
(On Groups of Herbs  for Purificatory  therapies )
Dhumapanavidhi (Smoke Therapy) ------------------------------  255
Appendix (of translation book)
Appendix -6—(Herbs and their Groups) -------------------------- 384-394
 
References:
1-Varghese Thomas et all, 2020, Controversial Identities of medicinal plants in classical literature of Ayurveda, Journal of Ayurveda and Integrative Medicine 16 February 2020

2-Dr. Kanjiv Lochan (Translated) , 2008Astanga Hrdaya, Chaukhambha Publications , New Delhi , contents 
Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020

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 Affordable Ration and Clothes Depos  (Shops) in Tehri Garhwal 

History of Tehri King Narendra Shah -43
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 236     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1483
By: Bhishma Kukreti (History Student
 Due to World War, the government called cereals and foot items in it Army depos. Bad Management, trader’s profit first aim created acute shortage of food items in India. Government opened affordable food items shops all over India (2).  In 1939, there was famine type of situation in Tehri Garhwal. Same situation was for dress materials or clothes. Narendra Shah Administration opened shops for affordable food items and clothes in Narendra Nagar and Tehri.  Those depos were not sufficient for fulfilling the need of villagers in remote regions that is far away from Tehri and Narendra Nagar. (3)
References
1-Dabral S.P.,, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page   51  -52
2- Daurgidatt , Narendravanshakavya 357-358
3-Karmabhumi, 4th December 1939
Juyal-Diwan Chakradhar Juyal p 213, 14
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Need of Training for Supervisors [/b]

(Example from Shukra Niti)
Appointing and Training the Department Head Strategies for CEO – 4 
Successful Strategies for successful Chief executive Officer – 104
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 104
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 143, first Shloka 144 )
 व्युहाभ्यासं शिक्षयेद्य: सांप्रातस्तु सैनिकान् II 143II
जानति स शतानीक: सुयोद्धुं युद्ध्भुमिकाम्
Translation
 The Shatanik (in charge of 100 soldiers) should have knowledge of training in morning and evening to soldiers for war strategies, war exercises,  managing war materials and war dresses.
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 143, fisrt shloka half 144)

References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 83   
 Copyright@ Bhishma Kukreti 2020
Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for Chief Executive Officers; Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for Managing Directors; Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for Chief Operating officers (CEO); Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for  General Mangers; Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for Executive Directors ; Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for ; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for  CEO; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for COO ; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for CFO ; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for  Managers; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for  Executive Directors; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for MD ; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for Chairman ; Refreshing Guidelines  for  ‘ arranging training for Supervisors’ for President


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फरसाड़ी ( वीरोंखाल , पौड़ी गढ़वाल )  में स्व साधो सिंह गुसाईं  की  पंद्रह पंद्रह सिंगाड़ों (स्तम्भ)  की दो तिबारियों में  काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी 



गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड,  की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  )  में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी- 234 
  Tibari House Wood Art in  Farsadi  , Pauri Garhwal     
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  तिबारियों , जंगलेदार मकानों या बाकगलियों के सर्वेक्षण में कई विशेष या Exclusive  तिबारियों , बाखलियों की सूचना मिलती जा रही है। ऐसे ही अति विशेष टीबारियुक्त मकान की सूचना कवि वीरेंद्र जुयाल ने फरसाड़ी से भेजी है।   वीरेंद्र जुयाल की सूचना  फरसाड़ी ( बीरों खाल , पौड़ी गढ़वाल )  में स्व साधो सिंह गुसाईं के भव्य मकान में दो बड़े बड़ी पंदरा -पंदरा  खम्या  (15 , 15 स्तम्भों की ) तिबारियों की है।  पौड़ी गढ़वाल मध्य फरसाड़ी (थलीसैण तहसील )  गाँव  में   स्व साधो सिंह गुसाईं के इस  मकान   के बहुत कमचोड़े छज्जे , छोटी छोटी खिड़कियां (मोरी ) आदि से लगता है बल  साधो सिंह गुसाई का यह मकान सम्भवतया 1895 -1910  में निर्मित हुआ होगा।  दोनों तिबारी पहली मंजिल पर स्थापित हैं। 
    फरसाड़ी (पौड़ी गढ़वाल )  में स्व साधो सिंह गुसाईं का मकान दुपुर , दुघर है व  एक तिबारी चार पांच कमरों के बाहर बरामदे से बनी है।  प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ /खाम ) एक जैसे ही हैं।  प्रत्येक सिंगाड़ /स्तम्भ छज्जे के ऊपर देहरी पटाळ  के ऊपर स्थापित हैं।   प्रत्येक स्तम्भ का आधार कुछ कुछ  चौखट  घंटाकार  का है।  इस घंटाकार आकृति के ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी (सीधा  ऊपर जाते ) कमल दल आकृति है।  यहां से कुछ कुछ पर्या  (गढ़वाली  दही मथने की मथनी )  आकर ले ऊपर बढ़ता है।  जहां पर स्तम्भ की मोटाई कम है वहां पर उलटा कमल दल उभरता है उसके ऊपर ड्यूल व ड्यूल के ऊपर सीधा कमल फूल उभर कर आया है।  यहां से स्तम्भ सीधा होकर  ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष की कड़ी से मिलता है
  फरसाड़ी ( वीरोंखाल , पौड़ी गढ़वाल )  में स्व साधो सिंह गुसाईं  के मकान में शेष भागों में कोई विशेष काष्ठ कला उल्लेखनीय नहीं है।    फरसाड़ी ( वीरोंखाल , पौड़ी गढ़वाल )  में स्व साधो सिंह गुसाईं  के मकान की मुख्य विशेषता है नक्काशीदार पंद्रह पंद्रह स्तम्भों की एक साथ दो दो तिबारियां।  मकान में बीस पच्चीस कमरे  हैं यह भी एक विशेषता है।   
सूचना व फोटो  आभार : वीरेंद्र जुयाल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


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 बणचुरी  ( पौड़ी गढ़वाल ) में  लखेड़ा परिवार के   मकान  में काष्ठ कला 

बणचुरी  (यमकेश्वर , पौड़ी गढ़वाल ) में  लखेड़ा परिवार के मकान की  जंगलेदार तिबारी  वाले मकान  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्कासी- 

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्कासी--235
House  Wood carving art from Banchuri, Ymakeshwar , Puari  Garhwal
 संकलन -भीष्म कुकरेती
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महाभारत में भृगुखाल ( कनखल  के समीप भृगु आश्रम ) व आगे की पहाड़ियों से अनुमान लगता है कि  रिख्यड -बणचुरी -सौर  आदि स्थानों में आश्रम थे व ऋषियों  की तपस्या स्थली अवश्य रही है।  रिख़्यड -बणचुरी  नाम भी २००० साल पुराने नाम है लगते हैं।  उदयपुर मल्ला की धरती कृषि उन्नत धरती मानी जाती रही है अत:  समृद्धि का प्रभाव भवन पर पड़ना आवश्यक है।  इस क्षेत्र से  तिबारियों व जंगलेदार मकानों की सूचना लगातार मिलती रहती है।  आज  इसी श्रृंखला में  ग्राम बणचुरी  (यमकेश्वर , पौड़ी गढ़वाल ) में स्व जोगेश्वर प्रसाद लखेड़ा निर्मित जंगलेदार तिबारी युक्त मकान में काष्ठ कला अलंकरण पर चर्चा होगी। 
 मकान  की खड़कियाँ , जंगल , एक मीटर चौड़े छज्जे को देखकर लगता है मकान 1940 के लगभग ही निर्मित हुआ होगा।  मकान  दुपुर -दुघर है व पहली मंजिल में जंगला  भी स्थापित है व तिबारी भी। मकान भव्य है। 
 जंगला 22 खमटियों  (स्तम्भ ) से निर्मित हैं व सभी खमटियों  में ज्यामितीय अलंकरण कटान हुआ है। 
इसी तरह तिबारी में चार सपाट  स्तम्भ (सिंगाड़ ) हैं व्  चार स्तम्भ तीन ख्वाळ  बनाते हैं।  स्तम्भ सामन्य तिबारियों से अलग हैं कि इन स्तम्भों में कमल पुष्प जैसे कोई आकृति अंकित नहीं है अपितु साइकल बाड़ी (यमकेश्वर ) में स्व दिनेश कंडवाल की तिबारी जैसे सपाट  सिंगाड़ / स्तम्भ  हैं।
 अपने जमाने में स्व जोगेश्वर प्रसाद लखेड़ा  का  जंगलेदार , तिबारी युक्त मकान की  क्षेत्र में अपनी ठसक /(गर्व युक्त पहचान ) थी जो आज भी बरकरार है।  ब्यौ बरात  के मेहमानों को  ठहराने  में  इस तिबारी  युक्त  मकान का बड़ा महत्व था। 
 सूचना व फोटो आभार : दिनेश लखेड़ा
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   श्रृंखला
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; 


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गूम (बिजलौट, पौड़ी ) में स्व पंडित खिमा नंद काला के अनोखे मकान में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड,  की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी - 223
  Tibari House Wood Art in Goom , Bijlot   , Pauri Garhwal   

 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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नैनीडांडा , धुमाकोट पूड़ी गढ़वाल क्षेत्र से कई तिबारियों व निमदारियों (जंगलेदार मकान ) की सूचना मिली हैं।  इसी क्रम में आज धुमाकोट  तहसील के गूम   गाँव में स्व खीमा नंद काला द्वारा बनाये गए जंगलेदार मकान व तिबारी की काष्ठ कला की विवेचना होगी।   स्व खिमा  नंद कला ने यह मकान संबत 1985  अर्थात सन  1928 में निर्मित किया था व समय उनके मकान के दरवाजे पर खुदा हुआ है। मिस्त्री थे ग्राम पटोटिया  (नैनीडांडा ) के जसमल।  जसमल का नाम भी दरवाजे पर अंकित है।
  गूम (बिजलौट, पौड़ी ) में स्व पंडित खिमा नंद  काला  का  दुपुर , दुघर मकान अनोखा इसलिए है कि  ऐसे बहुत कम मकान पाए गए हैं जहां जंगला पहली मंजिल पर बंधा है व तिबारी तल मंजिल में स्थापित है (पंडित विश्वंबर दत्त देवरानी , ज्याठ गांव जैसे ) I      गूम (बिजलौट, पौड़ी ) में स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान में लकड़ी नक्कासी विवेचना हेतु इन बिंदुओं पर ध्यान देना होगा - तल मंजिल में तिबारी , खोली , दरवाजे पर अंकन , पहली मंजिल में स्तम्भ व जंगल में  लकड़ी कारीगरी।
    गूम (बिजलौट, पौड़ी ) में स्व पंडित खिमा नंद काला  के तल मंजिल में खोली में काष्ठ कला , अलंकरण :-   स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान में तल मंजिल में परम्परागत खोली है।  खोली के  दोनों ओर मुख्य स्तम्भ  चार चार तीन तीन उप स्तम्भों के युग्म से बने हैं।  चारों उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड (शीर्ष ) की सतह (layers ) बनते हैं।  चार उप स्तम्भों में तीन उप स्तम्भ लगभग एक जैसे हैं जो आधार से सीधे ऊपर चलते जाते हैं व इन उप स्तम्भों में प्राकृतिक (लता पर्ण ) कला अंकित हुयी है।   चौथे  उप स्तम्भ  के आधार में अधोगामी /उल्टा कमल दल है , इसके ऊपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल दल है व यहां से  उप स्तम्भ पर्ण  लतायुक्त नक्कासी हो ऊपर मुरिन्ड की और चले जाते हैं। 
खोली के मुरिन्ड के चौखट स्तर जो खोली का निम्न स्तर है के ऊपर  मेहराब है।  मेहराब के अंदर चाप के पटिले (तख्ता ) में पट्टी आदि की नक्काशी हुयी है।  मेहराब के ऊपर त्रिभुजों (स्कन्धों ) में एक एक बहुदलीय फूल है व बाकी स्थान में प्राकृतिक अलंकृत कला अंकित हुयी है।  मुरिन्ड का सबसे ऊपरी स्तर चौखट है।  मुरिन्ड के अगल बगल में ऊपर से दीवालगीर हैं जिन पर ज्यामितीय कला के अतिरिक्त हाथी का भी अंकन है।  खोळी मुरिन्ड के  ऊपर छप्परिका  आधार से शंकु लटके हैं।
  स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान में  तल मंजिल में तिबारी में काष्ठ कला उत्कीर्णन :-   तिबारी चार  सिंगाड़ों (स्तम्भों  ) की बनी है व तीन ख्वाळदार तिबारी है।  प्रत्येक  काष्ठ स्तम्भ के आधार  में  अधोगामी (उल्टा ) कमल दल से क्मम्भी बनी है कुम्भी के ऊपर ड्यूल (ring type wood plate  जैसे बोझा धोने हेतु सर पर गोल  कपड़ा या रस्सीनुमा  पगड़ी रखी जाती है ) है व ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी (सीधा ) कमल दल है , यहां से स्तम्भ लौकी आकर ले लेता है व ऊपर बढ़ता है। जहां सबसे कम मोटाई है वहां से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता है - १- मेहराब का  अर्ध चाप व  २- स्तम्भ सीधा थांत आकृति धारण क्र मुरिन्ड चौखट की कड़ी से मिल जाता है।  मेहराब  का अर्ध चाप सामने वाले स्तम्भ के अर्ध चाप से मिल पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब के ऊपरी तरभुजों (स्कंध ) में एक त्रिभुज में एक किनारे हाथी है व दुसरे किनारे परं लताएं  अंकित हुयी है।  एक त्रिभुज में अष्टदलीय फूल है।  मुरिन्ड के चौखट कड़ी के ऊपर की कड़ी में तरंगित पत्तियां -लताओं का अंकन हुआ है।  तिबारी के मुरिन्ड के ऊपर  छज्जे  आधार से लकड़ी के शंकु लटके हुए हैं।
गूम में  स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान  के दरवाजे में काष्ठ कला अंकन -  स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान में तल मंजिल के दरवाजे में काष्ठ कला अंकन मिलता है।  दरवाजे  का  नीचे का भाग
 सपाट  है जिसके ऊपरी भाग में लेख अंकन के अतिरिक्त बहुदलीय पुष्प अंकित है।  इस भाग के ऊपर आकर्षक चतुष्दलीय  पुष्प अंकित हैं।  इस भाग के बाद दो सपाट पत्तियां दिखती है जिसके ऊपर  पत्तियों का अंकन जिसमे पट्टी की धमनिया भी नजर आ रही हैं। इसके ऊपरी भाग में गुंथी छोटी जैसा अंकन हुआ है जिसके ऊपर  गोल आकार की पत्तियों का अंकन हुआ है।
  गूम में  स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान  के  पहली मंजिल में जंगले /निमदारी में  काष्ठ अंकन :-   गूम में  स्व पंडित खिमा नंद काला  के मकान  के  पहली मंजिल में  भव्य जंगला बंधा है।  निमदारी  में 20 खाम  / स्तम्भ  हैं।  प्रत्येक  स्तम्भ  आधार व ऊपर मोटे  कटे हैं व बीच में कम मोटे  हैं।  प्रत्येक दो स्तम्भ के ख्वाळ  में दो लकड़ी की चौकोर लकड़ी की कड़ी से रेलिंग बनी हैं व रेलिंग के बीच लौह सीक से जंगला बना है।
  निष्कर्ष निकलता है कि  गूम में  स्व पंडित खिमा नंद काला  के भव्य मकान  में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय कला अलंकरण अंकन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार :  कवि , शिक्षा विद रमा कान्त ध्यानी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी   - 
 


 

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