रस व्यख्या (रस क्या हूंद )
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा –भाग 1
गढवाली अनुवाद – भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
प्रणम शिरसा देवी पितामहम्हेश्वरौ।
नाट्यशास्त्रं प्रवक्ष्यामि ब्रह्मणा यदुदा हृतम्।। 1।।
मि ददा श्री ब्रह्मा अर महेश्वर तैं सिवा लगैक नाट्य शास्त्र दृढ ब्यूंत से सब्युं समिण रखुल जु ब्रह्मा डरा वेदों से उतपन्न करे ग्ये। ( भनाशा १ )
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श्रृंगारहास्यकरुणा रौद्रवीरभयानका : I
बीभत्साद्भुतसंज्ञौ चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः स्मृता: (भ . ण.श. अध्याय 6, 15)
स्वांग (नाटक ) मा श्रृंगार, हास्य , करुण, रौद्र , बीभत्स अर अद्भुत आठ रस हूंदन। (भ. ना . 6 , 15 )
न हि रसादृते काश्चिदर्थ:प्रवर्तते।
तत्रविभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति: । । ( 6 ,31 को पैथराक सूत्र )
रस का बिना कै नाट्यंगका अर्थ प्रतीति नि होंदी। प्रदर्शन समौ पर विभाव , अनुभाव अर व्यभिचारी भावों क मिलण /संयोग से ही रस जन्मद (निष्पत्ति हूंद) । ( 6 ,31 को पैथराक सूत्र )
भावाभिनयसंबद्धान्स्थायिभावांस्त्था बुधा:।
आस्वादयन्ति मनसा तस्मान्नाट्यरसा: स्मृता:। । ( 6. 33 )
. ये कुण नाट्य रस इलै बुले जान्द किलैकि यु भौत सा प्रकारों भावों , अभिनय-भेदों अर स्थायी भावों से संयुक्त ह्वेका मानसिक आस्वादन दींदन। ( भनाशा 6. 33 )
न , भावाहीनोsति रसो न भावो रसवर्जितः ।
परस्परकृता सिद्धिस्तयोरभिनये भवेत् । । .(6 , 36 )
बिना भाव का रस नि हूंद अर रस का बिना भाव नि जन्मदन /हूंद। इलै , अभिनय म यि एक दुसराक पूरक बणि ही सिद्धि प्राप्त करदन। (6 , 36 )
तेषामुतपत्तिहेतवश्चत्वारो रसा:।
त्तद्यथा - श्रृंगारो रौद्रो वीरो बीभत्स इति।। .
श्रृंगाराद्धि भवेद्धास्यो रौद्राच्च करुणो रस:।
विराच्च ैवाद्भुतोत्पतिर्बीभत्साच्च भयानक:।। (6 , 39 )
श्रृंगारानुकृतिर्या तु स हास्यस्तु प्राक्रिर्तित।
रौद्रस्यैव च यत्कर्म स ज्ञेय: करने रस:। । (6 , 40 )
वीरस्यापि च यत्कर्म सोsद्भुत: परिकीर्तित:।
बीभत्सदर्शनं यच्च ज्ञेय: स तु भयानक:। । (6 , 41 )
यूं मधे चार रस उतपति का मूल बुले गेन। यी इन छन - श्रृंगार , रौद्र , वीर तथा बीभत्स। यूं मंगन श्रृंगार रस बबिटेन हास्य , रौद्र से करुण , वीर से अद्भुत अर बीभत्स ब्रिटेन भयानक रस को जन्म ह्वे। श्रृंगार रस क अनुक्रमण से हास्य रसौ जनम मने जांद। जु कार्य रौद्र युक्त छन ऊं बिटेन करुण रसौ विकास स्वीकार करे ग्ये। वीरता कारण अद्भुत रस जनम ह्वे तो बीभत्स दिखण से भयानक रसौ उदय ह्वे।
शेष 'रसुं वर्ण' अर रस आदि विषय अग्वाड़ी भागुं म .
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Garhwali Translation of Bharat Natya Shastra will be continued