देवभूमि के उन पहाडों मैं जीवन ब्यतीत करने वाले हम गरीब परवारों के उन सपनो को इन रिस्पत खोर अधिकारियों ने चकना चूर कर दिया है जो सपना हमने ९ साल पहले देखा था, हमारी देव भूमि मैं जो भी परिवार रहेगा वो सुखी और संपन्न जीवन ब्यतीत करेगा लेकिन हमें क्या मालुम था की ये सपना बिलकुल उल्टा हो जायेगा !
आजकल पटवारी जी भी अपने हतकड़ी भी नहीं निकालते, जबतक पटवारी जी को दारु की बोतल न सुन्गाई जाय और महात्मा गांधी जी की फोटो वाले लाल लाल नोट न दिखाए जाय, और आजकल तो गाँव के प्रधान जी भी कुछ ऐसे ही हत्कंडे अपना रहे हैं जैसे की जिलाधिकारी ही और पटवारी जी अपनाते हैं
मधवाल भाई जी ये बिलकुल सछ बात है यही होता है हमारे देवभूमि के गांवों मैं और गलियों मैं हर उस गरीब परिवार के उस जवान बेटे के साथ, जिस परिवार का सहारा वो उसका जवान बेटा है
आजतक जितने भी छूटे राज्य बने थे तो क्या हुवा कुछ भी तो नहीं सबने कहा की हम वो कर देंगें वो कर देंगें लेकिन किसी ने भी कुछ नहीं किया है हमरे उत्तराँचल को ही देख लीजिये, उत्तराँचल देश का एक ऐसा राज्य है जहां प्रकृति ने अपना पूरा खजाना लूटा रखा है,
यहां प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं, यहां के रमणीक स्थल स्विटजरलैंण्ड से कम नहीं, यहां के लोगों में देश के लिए मर मिटने का जज्बा है लेकिन फिर भी पहाड़ राज्य बनने के पहले जहां था बनने के आठ साल बाद भी वहीं खड़ा है. आखिर वह कौन सी वजह है जो यह प्रदेश इन आठ सालों में वह तरक्की नहीं कर पाया जो इसे करनी चाहिए थी.
नौ साल हो गए हैं और आम आदमी को बिजली, पीने का पानी और जीवन की गाड़ी ढोने के लिये अब भी सडक़ों का इन्तजार है। डाक्टर और शिक्षकों का रोना तो आम पहाड़ी लोग अब भी रो रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या अब भी रोजगार की है जिसकी तलाष में यहां के बेरोजगारों का पलायन रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है।
पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की किरण न पहुंच पाने के कारण पिछले 10 सालों में 12लाख से ज्यादा परिवारों ने प्रदेश के तराई वाले क्षेत्रों की ओर रूख किया है। जिससे पर्वतीय क्षेत्र की जनसंख्या कम हुई है।उत्तराखण्ड राज्य के गठन के समय 10 करोड़ के ओवरड्राफ्ट के साथ इस राज्य का सरकारी कामकाज शुरू हुआ था और आज इसका नान प्लान का बजट ही छह हजार करोड़ के बराबर है।
इसी तरह राज्य की सालाना योजना उस समय हजार करोड़ से कम थी जोकि आज 4778 करोड़ तक पहुंच गयी है। यही नहीं राज्य ने कई क्षेत्रों में पुराने और स्थापित राज्यों को भी पीछे धकेलने में सफलता हासिल की है। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इस नये राज्य की जिस तरह से बुनियाद रखी गयी थी उस हिसाब से यह चल नहीं रहा है। पिछले दो सालोंं में तो विकास में ठहराव सा आ गया।