Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 269006 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                           बिरखांत – ११ (उजाले की ओर )

       यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं परन्तु इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ उसे रोकने का प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा और या वह अधिक बिगड़ जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने के बजाय बोलने की हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी | हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है, सत्य-अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके बावजूद भी हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा-अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं  क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं | हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता या लक्ष्य बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं | हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगने, गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में दूध डालते हैं और हम बीमार होने पर डाक्टर के पास जाने के बजाय झाड़-फूक वाले के पास जाते हैं |  वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा, केवल परीक्षा के दिन तिलक लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा-नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं  विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह दिखाने वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं-  ‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी बन गए लेकर डिग्री ढेर / अंधविश्वास कि मकड़जाल में फंसते न लगती देर // पंडित -बाबा –गुणी –तांत्रिक, बन गए भगवान् / आंखमूंद विश्वास करे जग, त्याग तत्थ – विज्ञान // सोसल मीडिया में मित्रों द्वारा अब  तक की बिरखांतों ( एक से दस तक) पर इन्द्रधनुषी प्रतिक्रियाएं हुईं हैं | सभी को साधुवाद एवं हार्दिक आभार | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत – १2 ( मनौ १५ अगस्त )
 
         मनौ १५ अगस्त
 
कै कैं छ टैम सब हैरीं व्यस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
 
आजादी यसिके नि मिलि क्तुक्वाल दि बइ,
ग्वारां क राज कि तबै हिली तइ,
काटि गुलामी कि बेड़ि करौ उनर राज अस्त,
तबै मनू रयूं हाम आज पन्नर अगस्त |
 
हमूकैं आजाद हई हैगीं अड़सठ साल,
क्वे रैगो गरीब क्वे हैगो मालामाल,
को चांरौ तिरंगै कैं सब हैरीं व्यस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
 
भ्रष्ट है गो तंत्र करैं रई देश क हलाल,
राष्ट्र सम्पति क कैकैं न्हैति मलाल,
अपराध दिनोदिन बढ़ते जांरौ ज्यान हैगे सस्त
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
 
नेताओं क गीत, शहीदों कैं क्वे नि पुछें रय,
शहीद परिवारों दगै क्वे लै नि मिलैं रय,
देश प्रेमियों क हालात है गईं खस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
 
इस्कूलों में लै देश प्रेम कि बात बंद हैगे,
नि रै गेइ पढ़ाई-लिखाई व्यौपार धंध हैगे,
नान-नान इस्कुलियां पुठम ठुल हैगीं बस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
 
राज्य में स्यैणी लै हैगीं शराब क ठेकदार
माफियों दगै मिलि रईं भल चलि रौ रुजगार,
कच्ची-पक्की इंग्लिश पेऊं रईं सब छीं मस्त,
कैल नि सोच यस लै ह्वल पन्नर अगस्त |
 
गैरसैण नि गेइ राजधानी देहरादून अटिकि रै,
उत्तराखंडियों क मन में य बात खटिकि रै,
करो हिम्मत लगूनै रौ गैरसैण क गस्त,
क्वे न क्वे वां जरूर मनौ पन्नर अगस्त |
 
सब जागि रेल न्हैगे उत्तराखंड चाइए रैगो,
आज -भोव कुनै-कुनै मुद्द दबाइए रैगो,
जोर नि लगाय हमूल मिलीजुलि जबरजस्त,
नेताओंल लै छोड़ आब मनूण पन्नर अगस्त |
 
अरे ओ लेखक कवि गीतकार साहित्यकारो,
अरे ओ देशाक पहरुओ इमानदार पत्रकारो,
उठो कमर कसो अघिल बढ़ो तुम निहौ पस्त,
क्वे झन मनौ,तुम जरूर मनौ पन्नर अगस्त |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                  बिरखांत- १३ (एक मुहल्ले का १५ अगस्त )

       कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में १५ अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों  में से मात्र छै लोग एकत्र हुए | (जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और मर जाओ |  यहां किसी को १५ अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |”  सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा  करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |  स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक व्यक्ति ने १५ अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने, भूलना मत | १५ अगस्त, १० बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े | खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं |” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई | बाकी अगली बिरखांत में... (तब तक सोचिए, क्या यहां १५ अगस्त मनाया होगा ?)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                         बिरखांत- १४  (एक मुहल्ले का १५ अगस्त (ii) )


     (१५ अगस्त पर पिछली(१३ वीं ) बिरखांत से आगे...) इस तरह १० दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा गया | १५ अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी | टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”  चनरदा ने उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |
        कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”
        समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो, निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले, देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?”

   (बिरखांत -१३ और १४ मेरी पुस्तक ‘माटी की महक’ (२०१२) के लेख ‘एक मुहल्ले का १५ अगस्त’ पर आधारित है | ) अगली बिरखांत में कुछ और....| मेरे शब्दों के लिए समय निकालने वाले सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं | )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१४.०८.२०१५

 


Pooran Chandra Kandpal

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          बिरखांत – १५  ( पत्नियों पर चुटकुलों की बौछार )
 
     मैंने अब तक जितना साहित्य लिखा उसमें साठ प्रतिशत महिला विमर्श
है जो कई विधाओं में विभिन्न तरीके से वर्णित है | स्वतंत्रता दिवस के दौरान
सोसल मीडिया में पत्नियों के बारे में बहुत चुटकुले लहराए गए | एक से एक
लाजवाब, अनोखे और अद्भुत कारतूस टाइप परन्तु सरस और लुभावने | पर क्या
पत्नी के बिना हम अधूरे नहीं हैं ? डरो मत और कुंआरों को भी मत डराओ |
पहले ही कुछ लड़के अबाउट टर्न करने लगे हैं | सभी कुंआरों को हिम्मत करनी
चाहिए | हम सभी पति तुम्हारे साथ हैं | (पुरुष होकर तुम चैन से क्यों रहो ?
हम भुगत रहे हैं, तुम भी भुगतो ) | ये ब्रेकेट में लिखा हुआ कृपया कुंआरे नहीं
पढ़ें | सभी पतियों की तरफ से पत्नियों को ये चापलूसी पंक्तियां समर्पित हैं -
 
पत्नी तुम भार्या ही नहीं हो, मित्र बंधु और शाखा हो तुम
जीवन नाव खेवया तुम हो, वैद  हकीम दवा भी तुम |
 
   यदि नाश्ता, लंच और डिनर भलेही ऐठन के साथ ही सही, चाहिए तो पत्नी के 
लठ्ठे, डंडे , तीर और तलवार रूपी सभी टौन्ट सहने में क्या हर्ज है | मोटा कलेजा
करके कभी-कभी "तू बहुत अच्छी है यार...तेरे बिना...हूँ हूँ ..हां हां .." कहने से
लाभ ही मिलेगा |  ये बात किसी को बताने की जरूरत नहीं | यह मन्त्र सिर्फ
आपके लिए है |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                        बिरखांत – १६ (कट्टरवाद और अन्धविश्वास )

        हमारे देश में अन्धविश्वास और कट्टरवाद का विरोध करने पर कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है | दाभोलकर और गोविन्द पंसारे इसके हाल ही में घटित उदाहरण हैं | इसी कारण बंगलादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन १९९४ से वतन छोड़कर दर -दर की ठोकरें खा रही हैं | वह भारत को  अपना दूसरा घर मानती हैं | अन्धविश्वास का विरोध करने वाले हमेशा ही उन लोगों के निशाने पर रहे हैं जो इसे पोषित कर अपनी दुकान चलाते हैं | उत्तराखंड, झारखंड और असम ही नहीं हमारा पूरा देश अन्धविश्वास से ग्रसित है | भ्रष्टाचार के बाद अंधविश्वास ही देश की सबसे बड़ी विकट समस्या है | बनारस को क्योटो बना सकेंगे या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा क्योंकि बनारस सहित देश के सभी मंदिरों में आज भी लाखों लीटर दूध बह कर नाले में जाता है जो देश के कुपोषित बच्चों के लिए पर्याप्त से भी अधिक होता | दिल्ली की मदर डेरी बूथों पर आज भी बूथ से ट्रे लेकर लोग अबारा कुतों को अंधभक्ति के मंत्र से ग्रसित होकर दूध पिलाते हैं जबकि पास ही बिना चप्पल-जूता पहने कूडा बीनने वाले गरीब बच्चे देखते रहते हैं | देश की गन्दगी, नदियों की दुर्गति सहित सभी प्रकार की सामाजिक बुराइयों में भी अन्धविश्वास का ही मिश्रण है | हमने आजादी का जश्न मनाया,  एक-दूसरे को शुभकामनाएं दी  और  अब देश को अन्धविश्वास की गुलामी से मुक्त करने के लिए हिम्मत से इसका विरोध करें और घर से शुरुआत करें तभी ‘जय भारत’ और ‘वन्देमातरम’ के उद्घोष का नारा  भी सार्थक होगा |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                               बिरखांत- 17 ( बैसी में ल्हे बद्यल )

      उत्तराखंड में सौण (सावन) में कुछ लोग बैसी करनीं | चनरदा बतूरईं, “कुमाउनी में लेखी एक कहानी किताब छ ‘भल करौ च्यला त्वील’ ( लेखक पूरन चन्द्र काण्डपाल -२००९) | य किताब में एक कहानी छ ‘बैसी में ल्हे बद्यल’ |” चनरदा ल कहानि शुरू करी, “उत्तराखंड में बैसी क मतलब छ बाइस दिन तक गौं कि धुणी में रोज जागर | (जागर क मतलब जां डंगरी (डा. एस एस बिष्ट ज्यू क अनुसार ‘देव नर्तक’ ) नाचनी और दास नचूनीं | य दौरान जो लोग बैसी करनीं ऊँ यकोई खानी और दुकोई नानीं | नियम क अनुसार बाईस दिन तक भक्ति करनी और आपण घर कि बिलकुल लै बात नि करन | इनार घरा क लोग लै इनुहें मिलु हैं नि औंन | बाईस दिन तक यूं दाड़ी लै नि बनून | पर आब समय  कैं आग लैगो, य बैसी लै दिखावै कि रैगे |”  चनरदा ल कहानि अघिल खसकै, “एक आदिम ल मैंकैं आपण गौं कि बैसी कि पुरि कहानि बतै | द्वि डंगरियां कूण पर गौं वाल बैसी क लिजी मानि गाय | हरेक घर बटि द्वि हजार रुपै मांगी गाय और य लै बतै दे कि जो ज्यादै द्याल भगवान् वीक उतुक्वे ज्यादै भल करल | जो नि दी सकछी वील लै करज गाड़ी बेर रुपै जम करीं | उ आदिम ल एक दिन कि कहानि बतै, “एक दिन मी धोपरि कै धुणी में आयूं | उता वां सिरफ द्वि डंगरी छी | उनू दिना चौमासि टिमाटर, कोपी, बीन और सगीमर्च कि फसल है रैछी | गौं क मैंस जै क पास जतू साग-पात हय दनादनी बेचै रौछी | गौं बै द्वि रुपै किलो माल खरीदी बेर पांच-छै गुण ज्यादै कीमत पर माल शहर हूं जां रौछी | मील द्विए डंगरियां हूं हाथ जोड़ि बेर कौ, “अहो आदेश”| बैसी में भैटियां हूं नमस्कार करण क य ई तरिक छ | उनूल जवाब दे ‘अहो आदेश’| ऊँ गेरू धोति लपेटि बेर आसन बिछै बेर भै रौछी | उनूल मी हूं इशार करनै कौ ‘भैटो भगत’ | ‘जो आदेश’ कौनै मी भै गोयूं | यूं द्विए मी कैं पच्छाण छी लै | एकै ल मी हूं पुछौ, “कतू डाल टिमाटर न्हैगीं और भौ क्ये चलि रौ ? फलाण क कतू न्हैगीं ? अमकाण क कतू न्हैगीं ? और नईं-ताजि क्ये हैरीं गौं में ? मी ल उनुकें सब बता और थ्वाड़ देर भै बेर मी नसि आयूं ?
           बैसी में भक्ति करण क त नाम छी, पर इनर ध्यान चौबीस घंट घर-गौं कि तरफ छी | चालिस घरों बै द्वि-द्वि हजार कनै  इनूल अस्सी हजार  रुपै इकठठ करीं और राशन, साग, घ्यूं, तेल, फल, इनण, दै, दूद, धूप, बत्ती यों सब भेट-घाट चड़ाव में ऐ गाय | आखिरी दिन इनूल भनार करौ | लोग आईं और खै-पी बेर न्है गईं | य ई गौं में उ साल दर्जा दस और बार क इमत्यान में क्वे लै नान पास नि हय |  अगर गौं वाल हरेक परिवार बै एक्कै हजार रुपै लै इक्ठ्ठ करि बेर यूं नना लिजी अंगरेजी,गणित और विज्ञान क ट्यूशन धरना तो यूं सबै नना कि जिन्दगी बनि जानि | गौं में पुस्तकालय हुनौ या एक अखबार हुनौ तो नना क ज्ञान बढ़न | पर यस सुझाव गौं में कैक समझ में नि ऐ सकन | यकैं ऊँ भल काम नि समझन | बैसी करि बेर डंगरियों क प्रचार हुंछ | उनर रुजगार, रुतवा और कद बढूं | उनू कैं गौं क नना क पास-फेल सै क्ये लै मतलब न्हैति | बाकि अघिल बिरखांत में.......

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                           बिरखांत   19  ( नशा-मुक्ति )

            अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक समूह में रहकर देश हित में निष्पक्ष कलम चला रहा हूं | स्वास्थ्य शिक्षक होने के नाते कई वर्षों से नशामुक्ति से भी जुड़ा हूं और सैकड़ों लोगों को शराब, धूम्रपान, खैनी, गुट्का, तम्बाकू, मिथ और अन्धविश्वास से छुटकारा दिलाने में मदद कर चुका हूं| एक टी वी चैनल पर मैंने इस बात को स्वीकारा है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने तरीके से भी किसी नशा-ग्रसित को नशामुक्त करने में मदद कर  सकता है | इसमें क्रोध नहीं विनम्रता की जरूरत है | नशेड़ी नशे के दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ होता है | जिस दिन वह इसके घातक परिणाम को समझ जाएगा, वह नशा छोड़ देगा | कोई भी नशा हम मजाक-मजाक में दोस्तों से सीखते हैं फिर खरीद कर सेवन करने लगते हैं | अपना धन फूक कर स्वास्थ्य को जलाते हुए  कैंसर जैसे लाइलाज रोग के शिकार हो जाते हैं | यदि आप किसी प्रकार का नशा कर रहे हैं तो इसे तुरंत छोडें | अपने मनोबल को ललकारें और जेब में रखे हुए नशे को बाहर फैंक दें | वर्ष २००४ में मेरी कविता संग्रह ‘स्मृति लहर’ लोकार्पित हुई | जनहित में जुड़ी देश की कई महिलाएं हमें प्रेरित करती हैं | ऐसी ही पांच प्रेरक महिलाओं – इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, किरन बेदी, बचेंद्री पाल और पी टी उषा पर इस पुस्तक में कविताएं हैं | पुस्तक भेंट करने जब में डा. किरन बेदी के पास झड़ोदाकलां दिल्ली पहुंचा तो उन्होंने बड़े आदर से पुस्तक स्वीकार करते हुए मुझे नव-ज्योति नशामुक्ति केंद्र सरायरोहिला दिल्ली में स्वैच्छिक सेवा की सलाह दी | मैं कुछ महीने तक सायं पांच बजे के बाद इस केंद्र में जाते रहा | मेडिकल कालेज पूने की तरह यहां भी बहुत कुछ देखा, सीखा और किया भी | आज भी मैं हाथ में तम्बाकू मलते या धूम्रपान करते अथवा गुट्का खाते हुए राह चलते व्यक्ति से सभी प्रकार के नशे छोड़ने पर किसी न किसी बहाने दो बातें कर ही लेता हूं | ९ अगस्त २०१५ को निगमबोध घाट दिल्ली के नजदीक कश्मीरीगेट, यमुना बाजार, हनुमान मंदिर पर नशेड़ियों से नशा छोड़ने की अपील करने एक महिला नेता पहुँची जिनके सिर पर किसी ने पत्थर मार दिया | बहुत दुःख हुआ | जनहित में मुंह खोलने वाले को असामाजिक तत्व निशाना बना देते हैं यह नईं बात नहीं है | आज भी पूरी दिल्ली में पाउच बदल कर जर्दा- गुट्का, तम्बाकू अवैध रूप से बिक रहा है | कानूनों के धज्जियां उड़ते देख भी बहुत दुःख होता  है | इसका जिम्मेदार कौन है ?  बुराई और असामाजिकता के विरोध में मुंह खोलने में जोखिम तो है | क्या जलजलों की डर से घर बनाना छोड़ दें ? क्या मुश्किलों की डर से मुस्कराना छोड़ दें ? मैं बिरखांत में किसी को सलाह (प्रवचन) देना नहीं चाहता बल्कि  समस्या को उकेर या उजागर  कर इसकी गंभीरता को समझाने  का प्रयास करता हूं |  अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                               दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै  (कोर्ट, शिक्षा , दैज  )

     उत्तराखंड में शिक्षा कि हालत पर चनरदा भौत उदास छीं | उनूल बता, “ १८ अगस्त २०१५ हुणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ल एक जनहित याचिका पर आदेश देछ कि सरकारि  कर्मचारी, अफसर, बाबू और जजों  क नना ल लै सरकारी इस्कूलों में पढ़ण चैंछ तबै देश कि शिक्षा कि हालत सुधरलि  | दुःख कि बात य छ कि याचिका कर्ता कैं आदेशा  क दुसार दिन सरकारि  नौकरी बै बर्खास्त करि  दे | लोगों क मानण छ कि य आदेश कैं कानूनी रूप दीण क  विरोध में कुछ लोग अपील लै करि सकनी | देश हित में सोचणी लोग य आदेश कैं भौत सुन्दर एवं सुधारवादी बतूंरी | आब देखो उत्तर प्रदेश सरकार य आदेश पर अमल करण में कतू फुर्ती देखैंछ ? अगर य आदेश लागु है जालौ तो समझो सरकारी इस्कूलों कि दाश सुधरिगे” |
      चनरदा ल एक दुसरि सामाजिक समस्या कि लै चर्चा करी | उनूल बता, “उत्तर प्रदेश  में बागपत क नजीक रटौल गौं क निवासियों ल एक अनुकरणीय  काम करौ  | एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार में खबर  छपि  रैछी कि गौं कि पंचैत ल ब्या में डी जे बजूण और दैज पर बिलकुल प्रतिबन्ध लगै हैछ  | पंचैत ल य फैसाल करौ कि च्येलि देखणीयां कैं केवल चहा –पाणी दिई जाल  | रिश्त पक्क हुण पर भोजन कि व्यवस्था करी जालि |” हमार परिवेश में च्येलि देखणीयां कि खिदमदगारी में लोगबाग भौत खर्च करें रईं |  बाद में यूं च्येलि देखणी एक आंखर जवाब लै नि भेजन | च्येलि क बाब कतू रिसि – कवां कि खिदमद करल, य एक अटपट सवाल छ | वास्तव में रिश्त पक्क हुण और लगन तय हुण परै आतिर –खातिर हुण चैंछ | च्येलि कैं यतू ह्याव लै नि करो कि उ ब्या हुण है पैलिकै आपूं कैं इज – बाब पर भार समझो | च्ये लि कैं खेड़िघलू कभैं नि समझण चैन | हमूल च्येलि में क्वे लै हालत में निराशा पैद नि हुण दीण चैनि | जां तक दैज क सवाल छ, यैक बार में बिलकुल साफ़ बात पैलिकै है जाण चैंछ | ब्यौल और वीक बाब जो दैज कि उम्मीद में रौनी , उ पुर नि हुण पर बाद में रिश्त में मरोड़ ऐ जींछ जैकि परेशानी च्येलि कैं भुगतण पड़ीं |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
२७.०८.२०१५   

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             बिरखांत – २० (आरक्षण किसे और कब तक )
 
     आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बोतल से बहार आ चुका है |  सोसल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर खूब बहस हो रही है | वर्ष १९५० में देश का संविधान लागू होते समय एस सी और एस टी के लिए मात्र दस वर्ष तक आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी | तब से ६५ वर्ष हो गए हैं आरक्षण दस-दस वर्ष बीतते हुए आगे खिसकते जा रहा है | जिस प्रकार गैस सिलिंडर छोड़ने की बात हो रही है उसी तरह हमारे सांसद-विधायक एवं अन्य प्रतिनिधियों को भी आरक्षण का लाभ केवल एक पीढ़ी के बाद छोड़ देना चाहिए ताकि यह लाभ उसी वर्ग में किसी अन्य को मिल सके | वर्तमान में कुल आरक्षण ओ बी सी को मिलाकर ५० % को पार कर गया है | आरंभिक दौर में यह उचित था कि निम्न वर्ग अथवा कमजोर  तबकों को आरक्षण दिया जाए | आज आरक्षण का लाभ अरक्षित वर्ग की क्रीमी लेयर ले रही है जबकि यह उसी वर्ग के गरीबों तक नहीं पहुंचा | देश में उच्च वर्ग अथवा उच्च जाति के गरीबों की संख्या भी बहुत है | अल्पसंख्यकों में भी बहुत लोग पिछड़े हुए हैं | ६५ वर्षों से  आरक्षण के मुद्दे पर बहुत ऊर्जा व्यय हो चुकी है तथा कई लोग मारे भी गए हैं फिर भी ढाक के तीन पात | वोट बैंक की राजनीति उचित कदम नहीं उठा पा रही है | यदि हमारे देश में आरक्षण देना ही है तो इसका एकमात्र आधार आर्थिक होना चाहिए, जाति या वर्ग के आधार पर नहीं | दूसरा बिकल्प यह है कि आरक्षण के बजाय गरीब तबकों को मुफ्त उच्च शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे शिक्षित होकर प्रतियोगिता स्तर तक पहुँच सकें | सभी वर्ग के गरीबों को मुफ्त प्रतियोगी शिक्षा और प्रशिक्षण ही आरक्षण की समस्या का एकमात्र हल है |  राष्ट्रीय रक्षा अकादमी पूने  और भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में आरक्षण नहीं है | देश में सैन्य अधिकारियों के करीब ग्यारह हजार पद रिक्त हैं | देश के युवाओं को अपनी योग्यता के बल पर इस ओर भी कदम बढ़ाने चाहिए | ५०-५५ % अंकों के साथ इन्टर पास युवा इसके लिए वर्ष में दो बार आवेदन कर सकता हैं | इतिहास साक्षी है कि देश में गरीब तबकों के कई लोगों ने बिना आरक्षण के भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है | आरक्षण की आग से देश को पहले भी बहुत नुकसान हो चुका है और सामाजिक सौहार्द भी कई बार बिगड़ चुका है | वर्तमान गुजरात आन्दोलन से देश की जो क्षति हुई है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती | अहिंसक आन्दोलन को हिंसा से दबाने की प्रतिक्रिया भयानक होती है जैसा कि हाल ही में देखने को मिला है | एक झटके में  दस जानें चली गई अर्थात दस घर उजड़ गए | जो बसें जल कर राख हो गईं हैं पता नहीं उनके बदले में दूसरी बसें कब आयेंगी या आयेंगी भी कि नहीं ?  अगली बिरखांत में कुछ और ....

पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.08.2015

 

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