दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै : अहा रे ! कुर्सी में बैठी बापसैपो !
आज क युग में वैद करण में लोग देर नि लगून पर निभूण कि बात छोड़ो, वैद लै भुलि जानी | एक हजार है ज्यादै वर्ष पुराणी कुमाउनी-गढ़वाली भाषा जो कभैं कत्यूरी और चंद राजाओं की राजकाज कि भाषा छी, गोरखा आक्रमण क दौर में ख़तम हैगे | रचनाकार अघिल आईं और भाषा कैं दुबार पनपा | द्वि दशक पैली कुछ मित्रों ल कौ, ‘आपूं हिन्दी में त लेखैं रौछा पर कुमाउनी मरैं रै, यकैं लै ज्यौन धरो |’ मी ल कोशिश करी और कुमाउनी कि कुछ विधाओं में आठ किताब लेखीं | द्वि किताब ‘उज्याव’ (उत्तराखंड सामान्य ज्ञान, कुमाउनी में ) और ‘मुक्स्यार’ ( कुमाउनी कविताएं ) निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड सरकार द्वारा कुमाऊं क पांच जिल्लों- अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, पिथौरागढ़ और चम्पावत क सबै पुस्तकालयों लिजी खरीदण क बाबत यों सबै जिल्लों क मुख्य शिक्षा अधिकारियों कैं पत्रांक २२४८१-८६/पुस्तकालय/२०१२-१३ दिनांक २३ जून २०१२ के माध्यम ल आदेश दे | तब बटि तीन वर्ष बिति गईं, कएक स्मरण पत्र दीण पर लै आज तक एक लै किताब नि खरीदी गेइ | मुणी बटि माथ तक कुर्सी में बैठी हुई जो लै बापसैब हुणी कौ उनूल वैद जरूर करौ पर परिणाम शून्य रौछ | य ई नै दिल्ली और उत्तराखंड कि कएक नामचीन संस्थाओं एवं कएक कद्दावर मैंसों ल लै म्यर अनुरोध पर इस्कूली नना क लिजी लेखी म्यार चार किताबों (उज्याव, बुनैद, इन्द्रैणी, लगुल –हरेक कि कीमत मात्र अस्सी रुपै ) कैं समाज में पुजूण क कएक ता बचन दे, वैद करौ पर इक्का-दुक्का लोगों लै वैद निभा | यूं किताबों में मी ल भौत कम शब्दों में गुमानी पंत, गिरदा, शेरदा, कन्हैयालाल डंड्रीयाल, पिताम्बरदत बड़थ्वाल, शैलेश मटियानी, सुमित्रानंदन पंत, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, ज्योतिराम काण्डपाल, बिशनी देवी शाह, टिंचरी माई, लवराज सिंह धर्मशक्तु, सुन्दरलाल बहुगुणा, बछेंद्री पाल, गौरा देवी, विद्यासागर नौटियाल, श्रीदेव सुमन, चंद्रकुंवर बर्त्वाल सहित गंगा, हिमालय, उत्तराखंड राज्य, पर्यटन, स्वतंत्रता सेनानी, किसान, सैनिक, विद्यार्थी, अध्यापक एवं राष्ट्र क कएक महापुरुषों, १३ राष्ट्रपतियों, १४ प्रधानमंत्रियों और कएक दुसार विषयों कैं छुगंण कि लै कोशिश करी | विचार गोष्ठियों और सम्मेलनों में अक्सर य साहित्य कैं गौं-देहात तक पुजूण क खूब वैद सुणनू पर क्रियान्वयन शून्य | काश ! हम सब एक-एक किताब लै आपण घर /संस्था में धरना , आपण गौं क अध्यापक- सभापति-सरपंच तक पुजूना तो नान जरूर जाणन कि य ‘गिरदा’- ‘गढ़वाली’ आदि मैंस को छीं और हमरि लिखित भाषा लै उनु तक पुजनि | हाम आयोजन में औनू , भाषण दिनू , भाषण सुणनू और ढुंग पलटै बेर बाण बै झन ये चाण कै बेर न्हें जानू | बस | मी निराश नि है रय | वसंत जरूर आल, प्यौरोड़ि जरूर फुललि | “आजि निराशा का घुप्प अन्यार लै नि है रय, उम्मीदा क मश्याव लै जगैं रईं / कभतै जब मरूं हुणी मन छटपटां, ज्यौन रण कि तम्मन्ना क पहौर लै लागि जां रईं |”
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.09.2015