Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 269415 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                  बिरखांत – 33  :  मर्यादा पुरुषोतम श्री राम

       रामलीला के इस मौसम में श्रीराम का स्मरण ह्रदय से हो जाए तो अच्छा है | बताया जाता है कि श्री राम का जन्म आज से लगभग सात हजार वर्ष ( बी सी ५११४ )पूर्व हुआ | कुछ लोग इस पर भिन्नता रखते हैं | पौराणिक चर्चाओं में अक्सर मतान्तर देखने-सुनने को मिलता ही है | श्रीराम की वंशावली की विवेचना में मनु सबसे पहले राजा बताये जाते हैं | इक्ष्वाकु उनके बड़े पुत्र थे |  आगे चलकर वंशावली में ४१वीं पीढ़ी में राजा सगर, ४५ वीं पीढ़ी में राजा भगीरथ, ६०वीं में राजा दिलीप बताये जाते हैं | दिलीप के पोते रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ और दशरथ के पुत्र श्रीराम जो ६५वीं पीढ़ी में थे | वाल्मीकि के राम मनुष्य हैं | तुलसी के राम ईश्वर हैं | कंबन ने ११वीं सदी में कंबन रामायण लिखी और तुलसी ने १६वीं सदी में रामचरित मानस | अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘पुरवासी-२०१२’ में डा. एच सी तेवाड़ी (वैज्ञानिक) का लेख श्रीराम के बारे में कई जानकारी लिए हुए है | श्रीराम तेरह वर्ष की उम्र में ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में गए | वहाँ से मिथिला नरेश जनक- पुत्री सीता से उनका विवाह हुआ  | २५ वर्ष (कुछ लोग १४ वर्ष भी कहते हैं ) की उम्र में उन्हें वनवास हुआ | १४ वर्ष वन में बिताने के बाद वे ३९ वर्ष की उम्र में अयोध्या लौटे | श्रीराम हमारे पूज्य या आदर्श इसलिए बन गए क्योंकि उन्होंने समाज के हित में कई मर्यादाएं स्थापित की | उन्होंने माता-पिता की आज्ञा मानी, हमेशा सत्य का साथ दिया, पर्यावरण से प्रेम किया, अनुसूचित जाति के निषाद को गले लगाया, भीलनी शबरी के जूठी बेर खाए और सभी जन-जातियों से प्रेम किया | एक राजा के बतौर राज्य की प्रजा को हमेशा खुश रखा | उन्होंने एक धोबी के बचनों को भी सुना और सीता का परित्याग कर दिया | सीता और धोबी दोनों ही उनकी प्रजा थे परन्तु सीता उनकी पत्नी और प्रजा दोनों थी जबकि धोबी केवल प्रजा था | लेख के अनुसार एक धारणा है कि भारत में जाति भेद आदि काल से चला आ रहा है और तथाकथित ऊँची-नीची जातियां हमारे शास्त्रों की ही देन है  | महर्षि वाल्मीकि इस धारणा को झुठलाते लगते हैं क्योंकि वह स्वयं अनुसूचित जाती से थे और इसके बावजूद सीता उनकी पुत्री की तरह उनके आश्रम में रहीं | स्वयं राजा श्रीराम ने उन्हें वहाँ भेजा था | राज-पुत्र लव -कुश महर्षि के शिष्य थे | यहां यह दर्शाता है कि श्रीराम की मान्यता सभी वर्ग के लोगों में सामान रूप से थी | आज हम मानस का अखंड पाठ करते हैं परन्तु उसकी एक पंक्ति अपने ह्रदय में नहीं उतारते | जो उतारते हैं वे श्रद्धेय हैं | हम समाज में आज भी राम के निषाद-शबरी को गले नहीं लगाते | जो लगाते हैं वे अधिक श्रद्धेय हैं | संक्षेप में श्रीराम का वास्तविक पुजारी वह है जो उनके आदर्शों पर चले | हमारी समाज में कएक रावण घूम रहे हैं और कईयों के दिलों में रावण घुसे हुए हैं |  हम उस रावण का तो पुतला जला रहे हैं जबकि इन रावणों से सहमे हुए हैं | गांधी समाधि राजघाट पर मूर्ति स्तुति में विश्वास नहीं रखने वाले बापू के मुंह से निकला अंतिम शब्द ‘हे राम’ बताता है कि वे सर्वधर्म समभाव से वशीभूत थे और ‘ईश्वर-अल्लाह’ को एक ही मानते थे | हम भी श्रीराम का निरंतर स्मरण करें और ऊँच –नीच तथा राग- द्वेष रहित समाज का निर्माण करते हुए सर्वधर्म समभाव बनाकर अपने देश में मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहने का प्रयत्न करें | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१३.१०.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                   दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                                   मर्यादा पुरुषोतम श्री राम

      रामलिल क आनन्द ल्ही बेर चनरदा बता, “रामलिल क य मौसम में श्रीराम ज्यू क स्मरण दिल बै है जो तो भौत भल छ | बताई जाछ कि श्री राम क जन्म आज बै लगभग सात हजार वर्ष ( बी सी ५११४ ) पैली हौछ | कुछ लोग य पर दुसरि राय धरनी | पौराणिक चर्चाओं में अक्सर मतान्तर देखण- सुणण में औंछ | श्रीराम ज्यू कि वंशावली कि विवेचना में मनु सबूं है पैल राज बताई जानी | इक्ष्वाकु उनार ठुल च्याल छी |  अघिल जै बेर वंशावली में ४१वीं पीढ़ी में राजा सगर, ४५ वीं पीढ़ी में राजा भगीरथ, ६०वीं में राजा दिलीप बताई जानी | दिलीप क नाति रघु, रघु क च्यल अज, अज क च्यल  दशरथ और दशरथ क च्यल श्रीराम जो ६५वीं पीढ़ी में छी | वाल्मीकि क राम मनुष्य छीं | तुलसी क राम भगवान छीं | कंबन ल ११वीं सदी में कंबन रामायण लेखी और तुलसी ल  १६वीं सदी में रामचरित मानस | अल्माड़ बै प्रकाशित ‘पुरवासी-२०१२’ में डा. एच सी तेवाड़ी (वैज्ञानिक) ज्यू क लेख में श्रीराम क बार में कएक जानकारी छीं | श्रीराम तेरह वर्ष कि उम्र में ऋषि विश्वामित्र क आश्रम में गईं | वां बै मिथिला नरेश जनक क कि च्येलि सीता दगै उनर ब्या हौछ | २५ वर्ष (कुछ लोग १४ वर्ष लै कौनी ) कि उम्र में उनुकें वनवास हौछ | १४ वर्ष वन में बितूण क बाद ऊँ ३९ वर्ष कि उम्र में अयोध्या लौटी | श्रीराम हमार पूज्य या आदर्श यैक लिजी बनि गईं क्यलैकि उनूल समाज क हित में कयेक मर्यादा स्थापित करीं | उनूल इज-बौज्यू क कौय मानौ, हमेशा सांचि बलै, पर्यावरण दगै प्रेम करौ, अनुसूचित जाति क निषाद दगै अंग्वाव भेड़ी, भीलनी शबरी क जुठ बेर खाईं और सबै जन-जातियों दगै प्रेम करौ | एक रजा क बतौर उनूल राज्य कि प्रजा कैं हमेशा खुश धरौ | उनूल एक धोबि क क्वीड़ों पर लै कान लगा और आपणी राणी सीता क परित्याग करि दे | सीता और धोबि द्विये उनरि प्रजा छी पर सीता उनरि घरवाइ और प्रजा द्विये छी जबकि धोबि केवल प्रजा छी | लेख क मुताबिक एक धारणा छ कि भारत में जाति भेद आदि काल बै चलि रौछ और तथाकथित ऊँची-नीची जाति हमार शास्त्रों की ही देन छ | महर्षि वाल्मीकि य धारणा कैं झुठलौं रईं क्यलैकि ऊँ खुद अनुसूचित जाति क छी और यैक बावजूद सीता उनरि च्येलि क चार उनार आश्रम में रैछ | खुद राजा श्रीराम ल सीता कैं वां भेजौ | राज-पुत्र लव -कुश महर्षि क शिष्य छी | यां य लागरौ कि श्रीराम ज्यू कि मान्यता सबै वर्गा क लोगों क लिजी एक सामान छी | आज हम राम चरित मानस क अखंड पाठ करनूं पर वीकि एक लैंन आपण दिल में नि उतारन | जो उतारनी ऊँ श्रद्धेय छीं | हम समाज में आज लै  राम क निषाद-शबरी दगै अंग्वाव नि किटन | जो किटनीं ऊँ ज्यादै श्रद्धेय छीं | संक्षेप में रामज्यू क वास्तविक पुजारि उ छ जो उनार आदर्शों पर चलो | हमार समाज में कएक रावण घूमें रईं और कयेकों क दिलों में लै रावण घुसी हुई छीं | हम उ रावण क त पुतव जगूं रयूं जबकि यूं रावणों देखि डरैं रयूं | गांधी समाधि राजघाट पर मूर्ति पुज में विश्वास नि करणी बापू क गिच बै निकई आंखरी शब्द ‘हे राम’ बतू छ कि ऊँ सर्वधर्म समभाव ल वशीभूत छी और ‘ईश्वर-अल्लाह’ कैं एक्कै मान छी |  हमूल लै श्रीरामज्यू कैं हमेशा याद करण चैंछ और बिना ऊँच –नीच एवं राग- द्वेष वाल समाज क निर्माण करनै सबै धर्मों में आस्था धरि बेर भाईचार क साथ रौण क प्रयास करण  चैंछ |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.102015 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                  बिरखांत – ३४ :व्यथित साहित्यकार

      साहित्यकार हमेशा अपने विचारों को अपनी कलम से शब्द-रूप देते  हैं | वे साहित्य-धर्म के साथ साथ राष्ट्र- धर्म भी निभाते हुए सोच-समझ कर कलम चलाते हैं | यह सत्य है कि प्रत्येक साहित्यकार का किसी भी मुद्दे को देखने –परखने का अपना नजरिया होता है | हमारे प्रजातंत्र की खूबी है कि इसमें पक्ष और विपक्ष की अपनी भूमिका होती है | जब कभी किसी दल विशेष को किसी कलमकार की बात अच्छी नहीं लगती तो वह उस कलमकार पर अपने मन:स्थिति के अनुसार ठप्पा लगा देता है | हाल  के दिनों में लेखकों द्वारा सम्मान लौटाने का सिलसिला चल पड़ा है | अब तक (१५.१०.२०१५) करीब दो दर्जन से अधिक लेखक बड़े दुःख और भारी वेदना के साथ अपने पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर चुके हैं | पांच लेखकों ने साहित्य अकादमी में अपने आधिकारिक पदों से इस्तिफा दे दिया है | यह सब क्यों हो रहा है ? पिछले कुछ महीनों में तीन विद्वान् लेखकों – नरेंदर दाभोलकर, गोविन्द पंसारे और एम् एम् कलबुर्गी की अज्ञात लोगों ने ह्त्या कर दी जिससे साहित्य जगत में अंधेरा छा गया | ये लेखक सामाजिक सौहार्द की मजबूती के लिए लिखते हुए अंधविश्वास का विरोध करते थे | इन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की सीमा में ही रह कर राष्ट्र हित में लिखा | कुछ लोगों कों यह नहीं भाया और इनका क़त्ल करवा दिया गया | आज समाज में असहनशीलता बहुत बढ़ गयी है | उलजलूल भाषणों से समाज में विष-वमन किया जा रहा है, धर्म के नाम पर असहिष्णुता फैलाई जा रही है जिससे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति चोटिल हो रही है | इससे देश में निराशा तो फ़ैल रही है विदेश में भी राष्ट्र के छवि धूमिल हो रही है | देश में आपसी भाईचारा बना रहे, वातावरण शांत रहे, अमन-चैन रहे, अविश्वास-असहनशीलता नहीं फैले, यही तो लेखक चाहते हैं | जब लेखक को विषमता –विसंगति –असहिष्णुता दिखाई देती है तो वह कलम की बदौलत मिले सम्मान को जेब में रखकर चैन से नहीं बैठ सकता | जो भी साहित्यकार इस हालत को देखकर विरोध स्वरुप सम्मान लौटाकर अपनी व्यथा-वेदना प्रकट कर रहे हैं उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता | सम्मान लौटना दुख प्रकट करना है | हाल कि दिनों में जो देश में विघटित हुआ है यदि शासन चला रहे जिम्मेदार व्यक्तियों द्वारा इस पर आरम्भ में चर्चा हो जाती तो यह स्तिथि नहीं आती | अब जो कुछ भी साहित्यकारों के लिए बोला जा रहा है उसमें भी आदर की भाषा का अभाव है | साहित्यकार किसी दल विशेष का नहीं होता | वह देश हित में लिखता है | सुधीजनों से आशा है कि वे उस पर किसी का पक्ष लेने का ठप्पा नहीं लगाएं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१५.१०.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                      बिरखांत- ३५ :  मन की बात  पर सुझाव

   माननीय प्रधानमंत्री जी आपके ‘मन की बात’ को हम रेडियो पर बड़े ध्यान से सुनते हैं | आपने कुपोषण, नदियों के प्रदूषण, शिक्षा- प्रसार, किसान समस्या, गरीबी, विकास आदि जैसे कई विषयों पर देश की जनता से अपने मन की बात कही है | आप यदा-कदा श्रोताओं से सुझाव भी आमंत्रित करते हैं | आपके मन में हमारे तथाकथित ‘सपेरों के देश’ को ‘माउस’ पकड़ने वालों का देश बनाने की भी लालसा है | आपकी सब बातों से जन-मानस का मनोबल बढ़ता है और निराशा दूर होती है | आप ने काशी को क्योटो बनाने का सपना भी दिखाया है और ‘बुलेट’ ट्रेन चलाने की बात भी कही है परन्तु हमारे देश की जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है | काशी और हरिद्वार सहित देश की नदियों एवं मंदिरों में स्थापित  मूर्तियों में जो हजारों- लाखों लीटर दूध भगवान् के नाम पर प्रतिदिन  बहाया जाता है उसे नहीं बहाने की बात भी यदि आप कर देते तो यह दूध उन कुपोषित बच्चों के मुंह में चला जाता जो दूध की एक बूंद को तरसते हैं |  ताजा उदाहरण हरिद्वार का है | २४ अगस्त को हरिद्वार में बाल्टियां भर-भर कर दूध गंगा में बहाया गया | इस आयोजन में हमारे एक केन्द्रीय मंत्री भी उपस्थित थे | यह दृश्य देश के राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों सहित कई टी वी चैनलों पर भी छाया रहा | उसी दिन उत्तरप्रदेश के हमीरपुर में चालीस हजार बच्चों के कुपोषित होने का समाचार भी छपा था | काश ! गंगा में बहाया गया यह दूध इन बच्चों के मुंह तक पहुँच पाता तो यह अवश्य ही कुछ हद तक इनका कुपोषण दूर होता | सर, मेरा आपसे अनुरोध है कि अगली ‘मन की बात’ में कृपया कुछ बातें अंधविश्वास के विरोध में  भी जरूर शामिल करने का कष्ट करें | साथ ही देश के धर्माचार्यों, बाबाओं एवं साधु-संत समाज से भी आग्रह करें कि वे भी देश को अंधविश्वास से बचाने की बात करें | आपके कहने पर यदि इनका सहयोग मिल गया तो देश को अन्धविश्वास की जंजीरों से मुक्ति मिल सकती है | आपके द्वारा चलाया गया स्वच्छता अभियान भी तभी गति पकड़ेगा जब इसमें सभी धर्माचार्य सहभागी बनेंगे | यदि हम अंधविश्वास के सांकलों से मुक्त हो गए तो हमारी नदियाँ भी कई प्रकार के विसर्जन से बच जायेंगी जिसमें मूर्ति विसर्जन भी शामिल है | यदि हम जल विसर्जन की जगह भू-विसर्जन अपना लें अर्थात विसर्जित की जाने वाली सभी वस्तुओं को जमीन में दबा दें ( क्योंकि पानी में भी तो ये मिट्टी में ही मिलेंगी), शव-दाह के लिए जहां उपलब्ध है सी एन जी या बिजली की फर्नेश अपना लें तो जीवन दायिनी नदियाँ और वृक्ष तो बचेंगे ही, प्रदूषण भी थमेगा और अन्धविश्वास जनित कई समस्याएं स्वत: ही हल हो जायेंगी | सादर | अगली बिरखांत में कुछ और ...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.10.2015

Pooran Chandra Kandpal

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पुलिस स्मृति दिवस - भलेही समाज में पुलिस की छवि अक्सर धूमिल रहती है परन्तु पुलिस के जवान कर्तव्य की बेदी पर अपने प्राण अर्पण करते आए हैं | १ सितम्बर २०१४ से ३१ अगस्त २०१५ तक देश में ४३४ पुलिस के जवानों ने कर्तव्य निभाते हुए अपनी जान की बाजी लगा दी | २१ क्टूबर १९५९ को लद्दाख में पुलिस के १० बहादुर जवानों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी | तब से २१ अक्टूबर को प्रतिवर्ष पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है | आज इस पुनीत अवसर पर पुलिस के उन सभी वीर जवानों को श्रधांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने कर्तव्य के बेदी पर अपने को न्यौछावर कर दिया | साथ ही हम शहीद परिवारों के प्रति भी सम्मान प्रकट करते हैं | पूरन चन्द्र काण्डपाल | २१ अक्टूबर २०१५ |

Pooran Chandra Kandpal

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                                                      बिरखांत -३६ : जी मैं ‘भगवान’ बोल रहा हूं

        जी हां, मैं भगवान बोल रहा हूं | कुछ लोग मुझे मानते हैं और कुछ नहीं मानते | जो मानते हैं उनसे तो मैं अपने बना कह ही सकता हूं | आप ही कहते हो कि कहने से दुःख हलका होता है | आप अक्सर मुझ से अपना दुःख-सुख कहते हो तो मेरा दुःख भी तो आप ही सुनोगे | आपके द्वारा की गयी मेरी प्रशंसा, खरी-खोटी या लांछन सब मैं सुनते रहता हूं और अदृश्य होकर आपको देखे रहता हूं | आपकी मन्नतें भी सुनता हूं और आपके कर्म एवं प्रयास भी देखता हूं | आप कहते हो मेरे अनेक रूप हैं | मेरे इन रूपों को आप मूर्ति-रूप या चित्र-रूप देते हो | आपने अपने घर में भी मंदिर बनाकर मुझे जगह दे रखी है | वर्ष भर सुबह-शाम आप मेरी पूजा-आरती करते हो | धूप- दीप जलाते हो और माथा टेकते हो | दीपावली में आप मेरे बदले घर में नए भगवान ले आते हो और जिसे पूरे साल घर में पूजा उसे किसी वृक्ष के नीचे लावारिस बनाकर पटक देते हो या प्लास्टिक की थैली में बंद करके नदी, कुआं या नहर में डाल देते हो | वृक्ष के नीचे मेरी बड़ी दुर्दशा होती है जी | कभी बच्चे मुझ पर पत्थर मारने का खेल खेलते हैं तो कभी कुछ चौपाए मुझे चाटते हैं या गंदा करते हैं | आप मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों करते हैं जी  ? अगर यही करना था तो आपने मुझे अपने मंदिर में रखकर पूजा ही क्यों ? अब मैं आपका पटका हुआ अपमानित भगवान आप से विनती करता हूं कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करें | जब भी आप मुझे अपने घर से विदा करना चाहो तो कृपया मेरे आकार को मिट्टी में बदल दें अर्थात मूर्ति को तोड़ कर चूरा बना दें और उस चूरे को आस-पास ही कहीं पार्क, खेत या बगीची में भू-विसर्जन कर दें अर्थात मिट्टी में दबा दें | जल विसर्जन में भी तो मैं मिट्टी में ही मिलूंगा | भू-विसर्जन करने से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा | इसी तरह मेरे चित्रों को भी चूरा बनाकर भूमि में दबा दें | मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं | रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही से अपना दर्द कहूंगा | मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन करेंगे | सदा ही आपके दिल में डेरा डाल कर रहने वाला आपका प्यारा ‘भगवान’ | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
२१.१०.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                        सातवां  राष्ट्रीय कुमाउनी  भाषा  सम्मेलन

  सातवां राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मलेन २३ से २५ अक्टूबर २०१५ को कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी, अल्मोड़ा एवं 'पहरू' कुमाउनी मासिक पत्रिका द्वारा हिमालय देवस्थानम कल्यानिका आश्रम डोल (शहरफाटक ), अलमोड़ा (उत्तराखंड ) में सफलतापूर्वक आयोजित किया गया | इस सम्मलेन में देश के करीब १७० कुमाउनी भाषा के साहित्यकार, लेखक एवं कवि सम्मिलित हुए | २४ अक्टूबर को आयजित कुमाउनी कवि सम्मेलन में देश के करीब तीन दर्जन कवियों ने कुमाउनी में काव्य पाठ किया गया | सम्मलेन में कुमाउनी और गढ़वाली भाषा को स्कूलों में पढ़ाने, इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने तथा उत्तराखंडी भाषाओं की अकादमी बनाने संबंधी प्रस्ताव पुन: पारित कर राज्य सरकार को भेजने हेतु पुरजोर आवाज बुलंद की गयी | इस अवसर  पर कई कुमाउनी पुस्तकों का विमोचन भी किया गया |

 पूरन चन्द्र काण्डपाल
२६.१०.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                        बिरखांत – ३७ : प्रदूषित होती शुभ दीपावली

      हर साल दशहरे से तीन सप्ताह तक पटाखों का शोर जारी रहता है जो दीपावली की रात चरम सीमा पर पहुंच जाता है |  शहरों में पटाखों के शोर और धुंए के बादलों से भरी इस रात का कसैलापन, घुटन तथा धुंध की चादर आने वाली सुबह में स्पष्ट देखी जा सकती है | दीपावली के त्यौहार पर जलने वाला कई टन बारूद और रसायन हमें अँधा, बहरा तथा  लाइलाज रोगों का शिकार बनाता है | पटाखों के कारण कई जगहों पर आग लगने के समाचार हम सुनते रहते हैं | हाल ही में छै से चौदह महीने के तीन शिशुओं की ओर से उनके पिताओं द्वारा देश के उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में बड़े होना उनका अधिकार है और इस सम्बन्ध में सरकार तथा दूसरी एजेंसियों को राजधानी में पटाखों की बिक्री के लिए लाइसेंस जारी करने से रोका जाय | उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करें और उन्हें पटाखों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दें | न्यायालय ने कहा कि इस सम्बन्ध में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में व्यापक प्रचार करें तथा स्कूल और कालेजों में शिक्षकों, व्याख्याताओं, सहायक प्रोफेसरों और प्रोफेसरों को निर्देश दें कि वे पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में छात्रों को शिक्षित करें | यह सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय का रात्रि दस बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने का आदेश पहले से ही है  परन्तु नव- धनाड्यों एवं काली कमाई करने वालों द्वारा इस आदेश की खुलकर अवहेलना की जाती है | ये लोग रात्रि दस बजे से दो बजे तक उच्च शोर के पटाखे और लम्बी-लम्बी पटाखों के लड़ियाँ जलाते हैं जिससे उस रात उस क्षेत्र के बच्चे, बीमार, वृद्ध सहित सभी निवासी दुखित रहते हैं | ये लोग अपनी मस्ती में समाज के अन्य लोगों कों होने वाली परेशानी की परवाह नहीं करते | उस रात पुलिस भी उपलब्ध नहीं हो पाती या इन्हें पुलिस का अभयदान मिला होता है | वैसे हर जगह पुलिस भी खडी नहीं रह सकती | हमारी भी कुछ जिम्मेदारी होती है | क्या हम बिना प्रदूषण के त्यौहार या उत्सव मनाने के तरीके नहीं अपना सकते ? यदि हम अपने बच्चों को इस खरीदी हुई समस्या के बारे में जागरूक करें या उन्हें पटाखों के लिए धन नहीं दें तो कुछ हद तक तो समस्या सुलझ सकती है | धन फूक कर प्रदूषण करने या घर फूक कर तमाशा देखने  और बीमारी मोल लेने की इस परम्परा के बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए | उच्च शोर के पटाखों की बिक्री बंद होने पर भी ये बाजार में क्यों बिक रहे हैं यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है | हम अपने को जरूर बदलें और कहें “पटखा मुक्त शुभ दीपावली” | “ SAY NO TO FIRE CRACKERS”. अघली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
२६.१०.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                           बिरखांत – ३८ :सातूं राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन-२०१५ 

     सातूं राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मलेन २३ बटि २५ अक्टूबर २०१५ तक कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी, अलमोड़ा और ‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका द्वारा हिमालय देवस्थानम कल्याणिका आश्रम डोल (शहरफाटक ), अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में सफलतापूर्वक आयोजित करीगो |  सालम क्षेत्रक कुमाउनी कवि दिवंगत केदार सिंह कुंजवाल ज्यू कैं समर्पित य सम्मलेन में देश बटि करीब १७० कुमाउनी भाषा क साहित्यकार, लेखक, कवि और कुमाउनी भाषा प्रेमी  शामिल हईं | सम्मेलन में कुमाउनी भाषा क कएक विधाओं क करीब तीन दर्जन रचनाकारों कैं सम्मानित करीगो | य तीन दिनी सम्मेलन सात सत्रों में चलौ जमें कुमाउनी और गढ़वाली भाषा कैं भारतीय संविधान कि आठूं अनुसूची में शामिल करण क सन्दर्भ में कुमाउनी भाषा कि प्राचीनता और उमें आज तक रची साहित्य पर चर्चा हैछ | दुसार सत्रों में कुमाउनी कविता कि विकास यात्रा और वीकि दशा- दिशा, कुमाउनी लोक साहित्य, लोक कलाकारों द्वारा गायन /वादन,  कुमाउनी गद्य साहित्य,  बाल साहित्य, मानकीकरण, व्याकरण एवं इतिहास, कुमाउनी भाषा विकास में राजनैतिक दलों कि और महिलाओं कि भूमिका सहित कुमाउनी भाषा में साहित्य कि सबै विधाओं पर गहन विचार-विमर्श हौछ | करीब छै  दर्जन है ज्यादै वक्ताओं ल व्याख्यान दे | २४ अक्टूबर २०१५ संध्याकालीन सत्र में राष्ट्रीय कुमाउनी कवि सम्मेलन हौछ जमें करीब तीस है ज्यादै कवियों ल काव्य पाठ करौ | सम्मेलन में उत्तराखंड राज्य कि विधान सभा क अध्यक्ष कुंजवाल ज्यू ल लै व्याख्यान देते हुए हमरि भाषाओं कैं मान्यता दीण में सहयोग करण कि बात करी |  सम्मेलन में साहित्य अकादमी भाषा सम्मान प्राप्त श्री मथुरा दत मठपाल ज्यू, प्रोफ़ेसर शेर सिंह बिष्ट ज्यू, डा. हयात सिंह रावत ज्यू (सचिव एवं ‘पहरू’ सम्पादक), संस्था क अध्यक्ष कर्म्याल ज्यू, तारा चन्द्र त्रिपाठी ज्यू, सहित अनेक वरिष्ठ जन मुख्य वक्ता छी | हिमालय देवस्थानम कल्याणिका आश्रम क एवं समाजसेवी बालम सिंह कपकोटी ज्यू क य आयोजन में भौत भल सहयोग मिलौ | जय नंदा कला केंद्र अलमोड़ा क कलाकारों ल सांस्कृतिक सहयोग दी बेर सम्मेलन कि भौत भलि शोभा करी | सम्मेलन में करीब आदू दर्जन किताबों क लोकार्पण लै हौछ | यांक विद्यार्थियों एवं स्टाफ दगै आश्रम क पुर नियमों क साथ सम्मेलन में भागीदारी करणी सबै आगंतुकों ल दगडै भोजन प्राप्त करौ | एक भलि आशा-उम्मीद क साथ सम्मेलन क समापन हौछ | अघिल बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
28.10.2015


Pooran Chandra Kandpal

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                                                     बिरखांत – ३९ : गणतुवों (पुछारियों) के तुक्के

   अंधविश्वास की जंजीरों में बंधा हमारा समाज गणतुवों या पुछारियों के झांसे में बहुत जल्दी आ जाता है | लोग अपनी समस्या समाधान के लिए गणतुवों के पास आते हैं या भेजे जाते हैं | कभी- कभार उनका तुक्का लग जाता है तो उनके श्रेय का डंका पिटवाया जाता है | तुक्का नहीं लगने पर भाग्य- भगवान्- किसमत –नसीब -करमगति कह कर वे पल्ला झाड़ देते हैं | हाल ही में दिल्ली महानगर में ऐसी ही एक घटना घटी | मेरे एक परिचित का उपचाराधीन मानसिक तनाव ग्रस्त युवा पुत्र अचानक दिन में घर से बिन बताये चला गया | इधर -उधर ढूंढने के बावजूद जब वह देर रात तक घर नहीं आया तो थाने में उसकी रिपोट लिखाई गई | इस तरह परिवार का पहला दिन रोते-बिलखते बीत गया | दूसरे दिन प्रात: किसी मित्र के कहने पर पीड़ित माता- पिता गणत करने वाली एक महिला (पुछारिन) के पास गये | पुछारिन बोली, “आज शाम से पहले तुम्हारा बेटा  घर आ जाएगा | वह सही रास्ते पर है, सही दिशा पर चल रहा है | तुम बिलकुल भी चिंता मत करो |” उसी रात थाने से खबर आती है कि आपके बताये हुलिये के अनुसार एक लाश अमुक अस्पताल के शवगृह (मोरचुरी) में है  | परिजन वहां गए तो मृतक वही था जो घर से गया था | चश्मदीदों ने बताया कि यह व्यक्ति उसी दिन (अर्थात गणत करने के पहले दिन ) रात के करीब साड़े नौ बजे दुर्घटनाग्रस्त होकर बेहोशी हालत में पुलिस द्वारा अस्पताल लाया गया | उसकी मृत्यु लगभग तभी हो गयी थी | दस-ग्यारह घंटे पहले मर चुके व्यक्ति को पुछारिन ने बताया कि ‘वह  सही दिशा में चल कर घर की ओर आ रहा है’ | इस धंधे के लोग किस तरह समाज को बरगलाते हैं, यह एक उदाहरण है | यदि पुछारिन के पास कुछ भी ज्ञान होता तो वह कह सकती थी ‘वह व्यक्ति घोर संकट में है या परेशान है, अड़चन में फंसा है |’ पोस्टमार्टम और अंत्येष्टि के बाद पुछारिन को जब यह दुखद समाचार भिजवाया गया तो उसने ‘भाग्य -भगवान्- किसमत- नसीब- करम -परारब्ध- ब्रह्मलेख’ आदि शब्दों को दोहरा दिया | यदि वह व्यक्ति जीवित आ जाता तो यह पुछारिन महिमामंडित हो जाती जबकि उससे आज ‘तूने तो ऐसा बताया था’ पूछने वाला कोई नहीं है |  सच तो यह है कि दोषी हम हैं जो इस प्रकार के तंत्रों के जाल में फंसते हैं और कभी सही तुक्का लगने पर इनकी वाह-वाही का डंका पीटते हैं | कब जागेगा तू इंसान ? किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को महिमामंडित नहीं करने से हम समाज में सुधार ला सकते हैं | चर्चा तो करें | अघली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.11.2015

 

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