Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 269415 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                           दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै 

                                                                        प्रदूषित करि है शुभ दिवाइ

      हर साल दश्यार बै तीन सप्ताह तक पटाखों क शोर शुरू है जांछ जो दिवाइ कि रात भौत अनाधून है जांछ |  शहरों में पटाखों क शोर और धुंवै कि बादोव भरी रात क कसैलपन, घुटन और धुंध कि चादर दुसार दिन कि रतै स्पष्ट देखी जै सकीं | दिवाइ क त्यार पर भषम हुणी टनों बारूद और रसायन हमुकें अँध, काल और लाइलाज रोगों का शिकार बनूरौ | पटाखों कै कारण कएक जाग आग लागण क समाचार हाम सुणते औं रयूं | हालूं में छै बटि चौद महैण क   तीन नना कि तरफ बटि उनार बौज्यू ल देश क उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करनै कौ कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में बढ़ण (ठुल हुण) उनर अधिकार छ और य सम्बन्ध में सरकार और दुसरि एजेंसियों कैं राजधानी में पटाखों कि बिक्री क लिजी लैसेंस दीण है रोकी जो| उच्चतम न्यायालय ल कौ कि केंद्र और राज्य सरकारों कैं निर्देश दिई जो कि ऊँ पटाखों क दुष्प्रभावों क बार में लोगों कैं शिक्षित करण और उनुकें पटाखों क इस्तेमाल नि करण कि सलाह दिई जो |  न्यायालय ल य लै बता कि य सम्बन्ध में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में खूब प्रचार करीजो और स्कूल- कालेजों में शिक्षकों, व्याख्याताओं, सहायक प्रोफेसरों और प्रोफेसरों कैं निर्देश दिई जो कि ऊँ पटाखों क दुष्प्रभावों क बार में छात्रों कैं शिक्षित करीजो | य सबूं कैं मालूम छ कि सर्वोच्च न्यायालय क रात में दस बजी बाद पटाखा नि जलूण क आदेश पैलिकै (२००५ ) बै छ पर नव- धनाड्यों और काई कमै करणी लोगों द्वारा य आदेश कि खुलि बेर हुकम अदूली करी जैंछ | यूं लोग रात दस बजी बटि द्वि बजी तक भौत ठुल शोर वाल पटाखा और लम्बी-लम्बी पटाखों कि लड़ि जगूनी जैल उ रात उ क्षेत्र में नान-ठुल, बीमार, वृद्ध सहित सबै निवासी दुखित रौनी | यूं लोग आपणी मस्ती में समाज क दुसार लोगों कैं हुणी परेशानी कि परवा नि करन | उ रात पुलिस लै देखण में नि औनि या इनुकें पुलिस क अभयदान मिलि हुंछ | उसी लै हर जाग पुलिस ठाड़ी नि रै सकनि | हमरि लै कुछ जिम्मेदारी छ | क्ये हाम बिन प्रदूषण क त्यार या उत्सव मनूण क तरिक नि अपनै सकनौ ? अगर हाम आपण नना कैं य खरीदी हुई मुसीबत क बार में जागरूक करूं या उनुकें पटाखों लिजी डबल नि द्यूं तो कुछ हद तक य समस्या सुलझि सकीं | डबल फुकि बेर प्रदूषण करण या घर फुकि बेर तमाश देखण और बीमारी मोल ल्हींण कि य परम्परा क बार में गंभीरता ल सोची जाण चैंछ | ठुल शोर वाल पटाखों कि बिक्री बंद हुण पर लै बजार में यूं क्यलै बेचां रईं य एक भौत ठुल सवाल छ | हमूल जरूर बदलण चैंछ और आपस में एक दुहरै हुणी “पटखा मुक्त शुभ दिवाइ “ कौण कि परम्परा डाउण चैंछ तबै हाम आपण पर्यावरण कैं बचै सकनूं और आपण नना कैं प्रदूषित हाव है बचै सकनूं | कुर्मांचल अखबार कि पुरि टीम और पाठकों कैं य अन्यार में उज्याव कि जीत क प्रतीक त्यार ‘दिवाइ’ कि भौत- भौत शुभकामना |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 
०५.११.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                              बिरखांत-४० : अन्धविश्वास का महिमामंडन

      एक समाचार पत्र के अनुसार उत्तराखंड सरकार राज्य में अंधविश्वास को संस्कृति बताने का प्रयास कर रही है | राज्य में व्याप्त अंधविश्वास को गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों और तांत्रिकों ने व्यवसाय बना दिया है जिन्हें अब पेंशन देने की बात हो रही है  | शराब पी कर एक आदमी में तथाकथित ‘देवता’ नाचता है जिस पर कोई अंगुली नहीं उठाता कि शराब पी कर इसमें किस ‘देवता’ का अवतार हो रहा है | इसी डंगरिये के आदेश पर शराब-मांस मिश्रित मसाण (महिला पर ही डर से लगाया जाने वाला भ्रम ) पूजा दी जाती है जिसका लुत्फ़ मसाण पूजक मंडली रात्रि के समय किसी गाड़ –गधेरे में पिकनिक के तौर पर उठाती है | आज भी मिलीभगत से फलित ‘मसाण उद्योग’ के इस प्रपंच को राज्य में देखा जा सकता है | अशिक्षा की उपज अंधविश्वास पोषित इस पाखंड में समाज का शोषण किया जाता है, पशु-बलि दी जाती है, भ्रम पनपाया जाता है और आपसी मिलीभगत से देवता या भगवान् के नाम पर लूट होती है | जागर को सभी मर्ज अथवा सभी समस्याओं की दवा बताया जाता है | लूट-खसोट के बाद पीडित को लाभ न मिलने पर भाग्य- भगवान्- करमगति पर दोष लगाया जाता है और अक्सर दुबारा पूजा यह कह कर मांगी जाती है कि ‘पहली पूजा तुमने दिल से नहीं दी’| किसी शिल्पी को, राज-मिस्त्री को, बाग़-बगीचा लगाने वाले को, बढ़इ को, वर्षा आधारित किसान को पेंशन मिले अच्छी बात है | अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले किसी भी अन-उत्तरदायी तंत्र या पाखण्ड को पोषित करना, समाज को विज्ञान से दूर रखना है | आज वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास को पहचानने, यथार्थ एवं सत्य को समझने, भ्रम-अशिक्षा को दूर करने और श्रधा एवं अन्धश्रधा के अंतर को समझने की आवश्यकता है | मैंने डंगरियों के करार या पाखण्ड के कारण कई पीड़ितों की अकाल मृत्यु देखी है जिन्हें चिकत्सकीय उपचार से इसलिए रोका गया कि डंगरिया उसे ठीक कर देगा | मेरे क्षेत्र में ग्राम सभा से लेकर संसद तक चुनाव लड़ने वाले लगभग सभी प्रत्यासी गणतुओं के पास जाते हैं जो मनभावन दक्षिणा पाने के बाद सभी को जीतने का भरोसा देता है | चुनाव में जो एक जीतता है वह उसे महिमामंडित करता है और हारने वाले चुप रहते हैं | इनके देखादेखी कई महिलाओं को कीर्तन या सांस्कृतिक आयोजनों में भी तथाकथित ‘देवी’ आने लगी है जो डंगरिये की तरह हावभाव करके लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचना चाहती है | अंधविश्वास हमारी संस्कृति नहीं है | इस प्रपंच-पाखण्ड को समझें और राज्य को गणतुओं, तांत्रिकों, झाड़-फूक, मसाण, पशु-बलि, महिला उत्पीडन, अशिक्षा, नशा, धूम्रपान, शराब और पाखण्ड के मकड़जाल से बाहर निकालें | उत्तराखंड देवभूमि है, वीरभूमि है और शहीदों की भूमि है | यह विक्टोरिया क्रॉस, परमवीर चक्र और अशोक चक्र प्राप्त सैनिकों की भूमि है |  इसे अशिक्षा, अज्ञान और अंधविश्वास से बचाने के लिए कुछ सुद्रढ़ कदम उठाने की आवश्यकता है | अपने किसी भी स्वार्थ के लिए इस राज्य को इक्कीसवीं सदी से पुन: सत्रहवीं सदी में नहीं ले जाएं | पूरन चन्द्र काण्डपाल | अगली बिरखांत में कुछ और ...

07.11.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                          बिरखांत-४१ : दीप पर्व पर खूब हुआ पर्यावरण प्रदूषण

    पर्यावरण की अनदेखी, स्वास्थ्य- हानि की जानकारी का अभाव, काले-सफ़ेद धन की उन्मुक्त उपलब्धता और देखादेखी की होड़ आदि कुछ मुख्य कारण रहे राजधानी में दीपावली की रात (११ नवम्बर २०१५) दो बजे तक अंधाधुंध पटाखों के शोर का | संभ्रांत आवासीय कालोनियों में समझा जाता है कि यहां शिक्षित समाज रहता है | यह सत्य भी है | फिर भी उच्चतम न्यायालय के रात्रि दस बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने के वर्ष २००५ के आदेश की प्रतिवर्ष की तरह इस साल भी अवहेलना क्यों हुई, यह सोचनीय है | बच्चे थोड़े पटाखे-फुलझड़ियों के साथ रात्रि दस बजे तक दीप उत्सव मनाते तो यह अच्छी बात होती | उच्चतम शोर वाले प्रतिबंधित पटाखे बाजार में कहां से आए यह भी दुखद प्रश्न है | इस दौरान वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंचा | अगली सुबह (१२ नवम्बर) सड़कें बेशुमार जले पटाखों के कचड़े से भरी पड़ी थी, कोहरा-धुंध छाया हुआ था, हवा में घुटन और आंखों में जलन तो रात्रि में ही होने लगी थी | प्रदूषण ५५० माइक्रोग्राम तक बढ़ गया जो सामान्य से कई गुना अधिक है | पर्यावरण सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड तथा धूल कणों से भर गया | पटाखों का शोर चरम तक पहुँच गया जिससे लोग घरों में भी चैन से सो नहीं सके | बच्चों, वरिष्ठ जनों और रोगियों पर इसका घातक असर पडा | धुंए के बादलों से भरी इस रात के कसैलेपन ने त्यौहार की छवि को लगभग पूर्ण रूप से धूमिल कर दिया | कई जगह पटखा जनित आग भी लगी और कुछ लोग दुर्घटनाओं के शिकार भी हुए | प्रश्न उठता है क्या हम सौम्यता से इस त्यौहार को नहीं मना सकते थे ? बच्चों ने स्कूल में जरूर कहा “से नो टू क्रैकर्स” (पटाखों को ना कहें अर्थात पटाखे नहीं जलायें) | बच्चे ‘पर्यावरण बचाओ, पेड़ लगाओ’ विषय पर निबंध में भी पटाखों का विरोध करते हैं परन्तु घर आकर सब कुछ बदल क्यों जाता है ? इसका मुख्य कारण है अभिभावकों द्वारा धन उपलब्ध करना या स्वयं पटाखे खरीद कर बच्चों को देना | इस दीप पर्व में केवल घर में स्वच्छता और रोशनी की जाती है जिस कारण इसे प्रकाश पर्व भी कहते हैं | एक समाचार के अनुसार राजधानी में चालीस फीसदी छोटे बच्चों के फेफड़े अस्वस्थ हैं, राजधानी सबसे अधिक प्रदूषित शहर है फिर भी हमने इस चेतना को नजर अंदाज कर दिया | पटाखों से होने वाली हानि की चर्चा कर हम समाज में जन-जागृति बढायें और अपने बच्चों को समझाएं, आज यही समय की मांग है | हम अपने घर से शुरुआत करें | बिरखांत ३७ में भी इस विषय पर यही विनय की गयी थी |अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१२.११.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                       दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
                                                                    दिवाइ में हौछ खूब प्रदूषण 

    पर्यावरण कि अनदेखी,  स्वास्थ्य- हानि कि जानकारी कि कमी, काव-सुकिल धन कि इफरैत और मैंसों कि आपसी होड़ जास कुछ ख़ास कारण रई राजधानी में दिवाइ कि रात (११ नवम्बर २०१५) द्वि बजी तक अनाधून पटाखों क शोर क | संभ्रांत आवासीय कालोनियों में समझी जांछी कि यां शिक्षित समाज रौंछ | य सांचि बात लै छ | फिर लै उच्चतम न्यायालय क रात दस बजी बाद पटाखा नि जगूण क वर्ष २००५ क आदेश कि हर साल कि चार य साल लै हुकुम वदूली हैछ, जो भौत दुःख कि बात छ |  नानतिन थ्वाड़ पटाखा -फुलझड़ियों ल रात दस बजी तक य त्यार मनूना तो भलि बात हुनि | कान फुटणी भौत ठुल शोर वाल पटाखों पर प्रतिबन्ध हुण क बावजूद लै यूं बाजार में कां बै आईं य बात भौत दुखदायी छ |  य दौरान हाव में प्रदूषण लै खतरनाक स्तर पर पुजौ | अघिल दिन रतै (१२ नवम्बर) पर सडकों में बेशुमार जई पटाखों क कुड़-कभाड़ भरी हय और भौत ज्यादै धुंयार फोकी रई |  सांस ल्हींण में घुटन और आंखों में जलन त रात में शुरू है गेइ | प्रदूषण ५५० माइक्रोग्राम तक बढ़ी गोय जो सामान्य है भौत ज्यादै हय | पर्यावरण सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड और धूल ल भरी गोय | पटाखों क शोर लै यतु ज्यादै है गोय कि लोग घरों में चैन ल नि स्ये सक | नान, सयाण और बीमारों पर यैक भौत खतरनाक असर पडौ |  धुवां क यों बादोओं ल यतु कसैलपन है गोय कि त्यार कि रंगत बिलकुल बिगड़ी गेइ | य रात कएक जाग आग लै लै गोय और पटाखों वजैल कएक लोग घैल लै गाय | सवाल उठुंछ कि हाम य त्यार कैं सौम्यता ल क्यलै नि मनून ?  नना ल इस्कूल में जरूर कौ “से नो टू क्रैकर्स” (पटाखों को ना कहें अर्थात पटाखे नहीं जलायें) | नना ल ‘पर्यावरण बचाओ, पेड़ लगाओ’  विषय पर निबंध में लै पटाखों क विरोध करौ पर घर ऐ बेर सब कुछ क्यलै बदलि जांछ ? यैक मुख्य कारण छ  अभिभावकों द्वारा नना कैं इफरैत है डबल दींण या खुद पटखा खरिदी बेर नना कैं दीण | दिवाइ क त्यार में घर कि साफ़-सफाई, रंग-रोगन करी जांछ और रात कै दी जगै बेर उज्याव करी जांछ | यैकै वजैल य त्यार हुणी ‘प्रकाश पर्व’ लै कई जांछ |   एक समाचार क अनुसार राजधानी में चालीस फीसदी छ्वाट नना क फेफड़ों में भौत कमजोरी छ या उनु पर बीमारी लागण फैगे | राजधानी देश में सबूं है ज्यादै प्रदूषित शहर छ फिर लै हाम सजाग नि हूं राय |  पटाखों ल हुणी नुकसान कि चर्चा करि बेर समाज में जन-जागृति बढूंण और आपण नना कैं समझूण आज य समय कि जरवत छ | हमूल आपण घर बै शुरुआत करण चैंछ |  अल्लै समाचार सुणण में आछ कि दिवाइ कि रात देश में कएक राज्यों में आग लागि बेर भौत नुकसान हौछ | हर साल य ई समाचार औनी पर हाम य आग लगूणी परम्परा कैं बंद नि करैं राय |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
१२.११.२०१५


Pooran Chandra Kandpal

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                                                                     बिरखांत-४२ : मोटापा- मधुमेह- सूगर- डाइबिटीज

     १४ नवम्बर को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया गया | बच्चों के शोषण, कुपोषण, गुमशुदा, भिक्षावृति सहित नोबल पुरस्कृत कैलाश सत्यार्थी के ‘बचपन बचाओ’ आन्दोलन को भी कुछ लोगों ने याद किया | १४ नवम्बर ‘विश्व मधुमेह दिवस’ (वर्ष १९९१ से ) भी मनाया जाता है | मधुमेह (डाइबिटीज) अर्थात खून में सूगर (ग्लूकोज) की अधिकता | यह एक ऐसी हालत है जब हमारे शरीर में ग्लूकोज (सूगर) ग्लाइकोजन (सूगर का वह रूप जो खून में होता है) में नहीं बदलने से वह सीधे खून और मूत्र में  बहने लगता है | पंक्रिया ग्रंथि से इन्सुलिन निकलता है जो इस बदलने के कार्य में सक्रीय रहता है | मधुमेह के रोगी को इसी कारण इन्सुलिन दिया जाता है | जब हम अधिक मीठा लगातार लेते रहेंगे तो हमारी इन्सुलिन सभी मीठे को ग्लाईकोजन में नहीं बदल सकती | इससे लीवर (कलेजा) के सभी कार्यों पर असर पड़ता है | विश्व मधुमेह फेडरेशन के अनुसार हमारे देश में साड़े छै करोड़ लोगोंको मधुमेह है जिसमें चालीस वर्ष से कम उम्र के १५ % हैं | चीन, अमेरिका सहित पूरा विश्व इस रोग से परेशान है | विगत वर्ष इस रोग से विश्व में ३८ लाख लोगों की मौत हुई | इंडियन कौंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च द्वारा की गई “द इंडिया डाइबिटीज स्टडी” में पाया गया कि देश में १५.३ करोड़ आबादी मोटापे से पीड़ित है जो कि १.२ अरब जनसंख्या का १३% है | खान-पान और जीवन शैली जनित यह रोग किसी को भी हो सकता है और माता-पिता से बच्चों में भी जा सकता है | यदि आप इस रोग से बचना चाहते हैं तो अपने आहार पर नियंत्रण रखें, प्रतिदिन कम कम से कम ३० मिनट व्यायाम जरूर करें, सुबह पार्क के चक्कर लगाएं अन्यथा डाक्टर के चक्कर लगाने पड़ेंगे | आहार में घी- तेल -मक्खन- मीठा कम लें और मोटापे से बचें | कोल्ड ड्रिंक और जंकफ़ूड -पिजा, बर्गर, चिप्स, मोमोज, फ्राइड फूड्स आदि से बचें | दाल- दलिया- दूध और फल -हरी सब्जियां नियमित लें | बच्चों को ओवरवेट नहीं होने दें क्योंकि सभी रोगों की जड़ मोटापा है | मोटे पेट या कमरा बन गई कमर वाले व्यक्ति को ध्यान से देखें | क्या आप ऐसा बनना चाहेंगे ? निरोग रहना सबसे बड़ी उपलब्धि है | कृपया रोग से स्वयं को, मित्रों को, परिवार को बचाएं तभी भारत तंदुरुस्त रहेगा | अच्छे स्वास्थ्य की चर्चा खास कर अपने पति/पतनी और बच्चों से जरूर करें | किसी ने कहा है – एक न एक समा जला के रखिये, सुबह होने को है माहौल बना के रखिये | अगली बिरखांत में कुछ और ...
पूरन चन्द्र काण्डपाल मोब. 9871388815
16.11.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                     दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                     मी भगवान् बलां रयूं

      होय महाराज मी भगवान् बला रयूं   | कुछ लोग मी कें माननी और कुछ नि मानन | जो माननी उनुहें त मी आपणी बात कै सकनू | आपू लोग कौछा कि कै बेर दुःख हल्क हुंछ | आपूं अक्सर मी हूं आपण दुःख-सुख कौंछा तो म्यर दुःख लै तुमै सुणला | आपूं लोगों द्वारा म्येरि प्रशंसा, खरि- खरि, क्वचड़ेन, खुचक्याणी या लांछन मी सब सुणते रौनू और लुकी बेर आपूं लोगों कैं देखनै रौनू | मी तुमरि मन्नत लै सुणनू  और तुमर कर्म दगड़ी तुमरि कोशिश कैं लै देखनू | तुम लोग कौंछा कि म्यार अनेक रूप छीं | म्यार यूं रूपों में तुम म्यर मूर्ति रूप और चित्र रूप लै देखेंछा | आपूं लोगों ल आपण घरा क मंदिर में लै मी कैं जागि दि रैछ | तुम वर्ष भरि रतै-ब्याव म्येरि पुज-पाठ -आरती लै करछा | धूप- दीप जगूछा और म्यार सामणी ख्वर-मुनव लै रगड़छा | दिवाइ क त्यार में तुम म्यार बद्याल घर में नई भगवान् ल्ही औंछा और जैकैं पुर साल घर में पुजौ उकें क्वे डवा क मुड़ि बै लावारिस ख्येड़ि औंछा या प्लास्टिक कि थैली में बंद करि बेर क्वे गाड़ –गध्यार में ख्येड़ि औंछा | डवा क मुड़ि म्येरि भौत कुकुरगत हिंछ | कभतै नान-तिन म्ये में ढुंग-घंतर मारण क खेल खेलनी और कभतै कुकुर-बिराव म्ये पर गिच लगूनी या मीकें गंद करनी | आपूं लोग म्ये दगै यस वर्ताव क्यलै करछा कौ ? अगर यसै करण छ्यौ तो आपण मंदिर में धरि बेर म्येरि पुज क्यलै करी ? आब मी तुमर घर क बेईज्जती क साथ निकाई भगवान् तुमु हैं खुटी सलाम करनू कि म्ये दगै यस अपमानित व्यवहार नि करो | मी कैं निगाउगुसै- ख्येड़घलू नि छोड़ो | जै दिन लै तुम मी कैं आपण घर बै भ्यार निकावला मेहरबानी करि बेर म्यर अकार कैं माट में बदलि दिया  अर्थात म्येरि मूर्ति कैं टोड़ि बेर म्यर चुर बनै दिया और उ चुर कैं क्वे नजीक क खेत या बाड़ में या बगिच में भू-विसर्जन करि द्या अर्थात माट में दबै दिया | पाणी में डाइ बेर लै म्यर मटै बनूं | भू-विसर्जन करि बेर अर्थात जमीन में दबै बेर पाणी गंद हुण है बचि जाल | यसिके म्यार चित्रों कैं लै चुर बनै बेर जमीन में दबै दिया | म्यार कएक रूपों क अनेक प्रकार क चित्र लगभग हर त्यार में और विशेषकर नवरात्रि और रामलिला क दिनों   में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में लै छपनै रौनी | रद्दी में पुजते ही यूं अखबारों में ज्वात –चप्पल, शिकार-शराब सहित गंदी है गंदी चीज लपेटी जींछ | म्येरि यसि दुर्गति पर लै सोचिया | मी और कैहूं कौनूं ? एक तुमै हया म्येरि डाड़ सुणणी | जब तुम मी हुणी आपण दुःख कै सकछा तो मी लग आपण दुःख –तकलीफ तुमुकणी बतूल | म्येरि य दुर्गति क पढ़ी-लेखी बुद्धिजीवी या जो आपूं कैं धरम-करम क ठेकदार समझनी, क्वे लै विरोध क्यलै नि करन, य आज तक म्यार समझ में नि आइ | मी कैं उम्मीद छ कि आब तुम म्येरि य पीड़-डाड़ कैं समझला और म्यर ठीक ढंग ल भू-विसर्जन करला अर्थात मी कैं जमीन में दबाला | म्यार ऊपर जरूर कृपा करिया | धन्यवाद | मी छ्यूं हमेशा तुमर दिल में रौणी तुमर लड़पुती ‘भगवान’ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल,रोहिणी दिल्ली
19.11.2015

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                                                      बिरखांत-४३ : “मैं इंडिया गेट से शहीद बोल रहा हूं जी”

   “भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट से मैं ब्रिटिश भारतीय सेना का शहीद इंडिया गेट के प्रांगण का आखों देखा हाल सुना रहा हूं | १३० फुट (४२ मीटर) ऊँचा यह शहीद स्मारक १० वर्ष में १९३१ में बन कर तैयार हुआ | इस स्मारक पर मेरे नाम के साथ ही मेरे कई शहीद साथियों के नाम लिखे हैं जिन्होंने भारतीय सेना में १९१४-१८ के प्रथम महायुद्ध तथा तीसरे अफगान युद्ध में अपनी शहादत दी थी | जब मैं शहीद हुआ तब से कई युद्ध हो चुके हैं | देश की स्वतन्त्रता के बाद १९४७-४८ के कबाइली युद्ध, १९६२ का चीनी आक्रमण, १९६५, १९७१ तथा १९९९ का पाकिस्तान युद्ध, १८८६ का श्रीलंका सैन्य सहयोग, संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना बल और विगत २७ वर्षों से जम्मू-कश्मीर के छद्म युद्ध में मेरे कई  साथी शहादत की नामावली में अपना नाम लिखते चले गए | शहीदी का सिलसिला जारी है और रहेगा भी | हाल ही में (१७.११.२०१५) ४१ राष्ट्रीय राइफल के कमान अधिकारी कर्नल संतोष महाडिक ने कुपवाड़ा, कश्मीर में भारत माता पर अपने प्राण न्यौछावर किये हैं | स्वतंत्रता के बाद देश की राजधानी में कोई ऐसा स्मारक नहीं बना जहां इन सभी शहीदों के नाम अंकित किये जाते | भला हो उन लोगों का जिन्होंने १९७१ के युद्ध के बाद इंडिया गेट पर उल्टी राइफल के ऊपर हैलमट रखकर उसके पास २६ जनवरी १९७२ को ‘अमर जवान ज्योति’ स्थापित कर दी | इंडिया गेट परिसर में एक शहीद स्मारक बनाने का सुझाव मेरी व्यथा को लिखने वाले इस लेखक ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया गेट का शहीद’ (प्रकाशित २००५) में अवश्य दिया है | अब सुनने में आ रहा है कि इस ओर कदम उठाये जायेंगे | मेरे देश में शहीदों और शहीद परिवारों का कितना सम्मान होता है यह तो आप ही जानें परन्तु मैं इंडिया गेट पर लगे सबसे ऊँचे पत्थर से चौबीसों घंटे देखते रहता हूं कि यहां क्या-क्या होता है | राष्ट्रीय पर्वों पर हमें पुष्प चक्र चढ़ा कर सलामी दी जाती है और कुछ देश-प्रेमी जरूर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं | बाकी दिन इंडिया गेट एक पिकनिक स्पॉट बन कर रह गया है | यहां लोग सैर– सपाटे और तफरी के लिए आते हैं | यहां मदारी बन्दर नचाते हैं, स्वदेशी-विदेशी युगल प्रेमालाप करते हैं, बच्चों की अनदेखी कर फब्तियां कसते हैं, अश्लील हरकत करते हैं, किन्नर वसूली करते हैं, कारों में लगे डेक का शोर होता है, भोजन खाकर दोना-पत्तल-प्लास्टिक की थैलियां-खाली बोतल  जहां-तहां डालते हैं, खिलौने वाले और  फोटोग्राफर द्विअर्थी संवाद बोलते हैं | हमें श्रधांजलि देना तो दूर हमारी ओर कोई देखता तक नहीं | हमारे प्रति दिखाई गयी यह उदासी तब जरा जरूर कम होती है जब कोई इक्का-दुक्का देशवासी मेरी उलटी राइफल,  हैलमट और प्रज्वलित ज्योति को देखने के लिए वहाँ पर पल भर के लिए रुकता है | मुझे किसी से कोई गिला- शिकवा नहीं है क्योंकि मैं अपने देश के लिए शहीदी देने स्वयं गया था, मुझे कोई खीच कर नहीं ले गया | कुछ कलमें मेरी गाथाओं को लिखने के लिए जरूर चल रहीं हैं, कुछ लोग यदा-कदा मेरे गीत भी गाते हैं, क्या ये कम है मेरी खुशी के लिए ? मैं तो इन पत्थरों में लेटे -लेटे गुनगुनाते रहता हूं –‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ |” अगली बिरखांत में ‘मुज्जफर नगर कांड का शहीद’ ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
20.11.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             बिरखांत-४४ :”मैं मुजफ्फरनगर कांड का शहीद बोल रहा हूं जी”
 
   “अलग उत्तराखंड राज्य कि मांग वर्ष १९२३ में पहली बार उठी और  १९५२, १९५६, १९६८, १९७३ और १९७९ में यह अधिक गुंजायमान हुई | १९९४ के काल खंड में इस अहिंसक मांग पर गोली चला दी गयी और आजाद हिन्द में एक राज्य की मांग पर ४२ आन्दोलनकारियों को गोली का शिकार होना पड़ा | रामपुर तिराहे पर बने शहीद स्मारक से ही में एक शहीद आपको इस लम्बी कहानी को एक छोटी सी गाथा के रूप में सुना रहा हूं | एक सितम्बर १९९४ को उत्तर प्रदेश की बर्बर पुलिस ने अंग्रेजी हकूमत की तरह खटीमा में निहत्थे आन्दोलनकारियों पर गोली चलाकर आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया | २ सितम्बर को मसूरी में आठ प्रदर्शनकारी मारे गये | इसके बाद पूरे उत्तराखंड के गांव, कस्बों और नगरों में अहिंसक आन्दोलन चरम पर पहुंच गया | राज्य का सभी वर्ग लेखक, पत्रकार, गीतकार, कवि, किसान, भूतपूर्व सैनिक, विद्यार्थी, स्त्री-पुरुष-बच्चे अपना काम-धंधा और घरबार छोड़कर सडकों पर आ गए | इस आन्दोलन का कोई केन्द्रीय नेतृत्व नहीं था | दोनों ही राष्ट्रीय राजनैतिक दल इससे अलग रहे | २ अक्टूबर १९९४ को आन्दोलनकारी शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए बसों में बैठ कर दिल्ली आ रहे थे | तब उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे | एक सोची-समझी चाल से उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर आन्दोलनकारियों पर नादिरशाही दमन चक्र चलाया गया | पुलिस की वर्दी पर दाग लगाने वालों ने भोर होने से पहले अचानक निर्दोषों पर आक्रमण कर दिया | लाठी-डंडे –बन्दूक का जम कर इस्तेमाल हुआ | महिलाओं के साथ  बदसलूकी की गई जिसने सभ्यता को शर्मसार किया | गन्ने के खेतों में घसीट कर लोगों को पीटा गया | रामपुर, सिसोना, मेदपुर और बागोवाली के लोगों ने महिलाओं की मदद की | एक महिला कह रही थी “काश ! आज मेरी कमर में दराती होती, इन भेड़ियों के मैं भुतड़े (टुकड़े) कर देती”| उत्तराखंड की नारी ने वहां पर वीरांगना लक्ष्मीबाई की तरह संघर्ष किया | पुलिस फायिरिंग में वहां पर कई शहीद हो गए और सैकड़ों घायल हुए | ३ अक्टूबर को राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तराखंड में आन्दोलन और तेज हो गया जिससे देहरादून, नैनीताल और कोटद्वार में पांच लोग मारे गए | ३ नवम्बर को पूरे उत्तराखंड में काली दिवाली मनाई गयी | केवल शहीदों कि नाम पर एक दीपक जलाया गया | १५ अगस्त १९९६ को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने लालकिले से उत्तराखंड राज्य बनाने की घोषणा कर दी और ९ नवम्बर २००० को राज्य बन गया | तब से राज्य में आठ मुख्य मंत्री बन गए हैं, जिन पुलिस कमांडरों ने जघन्य अपराध कर ४२ निर्दोषों को मारा उन्हें तरक्की मिल गई है परन्तु न आजतक  शहीदों को न्याय नहीं मिला और न हमारे सपनों का उत्तराखंड बना | जब तक दोषियों को दण्डित नहीं किया जाएगा और राज्य की राजधानी देहरादून से गैरसैण नहीं जाएगी, हमारी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी | मुझे पता है उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष मोर्चा पिछले २१ वर्षों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर शहीदों को न्याय दिलाने के लिए प्रति वर्ष २ अक्टूबर को अहिंसक प्रदर्शन करते आ रहा है | हमारी चिताओं पर आप मेले लगाते हैं, हमारे लिए आखें नम करते हैं, इससे कुछ शान्ति जरूर मिलती है | जय भारत, जय उत्तराखंड |” अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
23.11.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                         बिरखांत-४५ : अपने संविधान को जानें और समझें

   हमारा देश १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र हुआ | स्वतन्त्रता मिलते ही हमें अपने संविधान की आवश्यकता थी | संविधान बनाने कि लिये  संविधान सभा बनाई गयी | संविधान सभा के लिए ३८९ सदस्य निर्वाचित  हुए जिसके अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद चुने गए | संविधान सभा ने संविधान निर्माण समिति बनाई जिसके अध्यक्ष डा. बाबा साहेब भीम राव अम्बेदकर बनाए गए | इस समिति में एक अध्यक्ष और ५ सदस्य थे | इस समिति ने हमारे देश की विविधता का ध्यान रखते हुए ९ दिसंबर १९४६ से २६ नवम्बर १९४९ तक संविधान लिखने में २ वर्ष, ११ महीने और १८ दिन लगाए | हमारे संविधान में एक आमुख, २२ अध्यायों में ३९५ अनुच्छेद और १२ अनुसूची एवं एक परिशिष्ट हैं | हमारा संविधान  २६ जनवरी १९५० को लागू हुआ | आज, २६ नवंबर २०१५ हम संविधान दिवस मना रहे हैं | संविधान के पहले पन्ने (preamble या आमुख या उद्देशिका) पर एक नजर – “ हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित  करने वाली बंधुता बढाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख २६ नवम्बर, १९४९ ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं |” १९५० से अब तक संविधान में १०० संशोधन हो चुके हैं | जैसा कि वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी महोदय ने हाल ही में स्मरण कराया है, हमें अपने देश की बहुलता, विविधता, बहुसंस्कृति और गंगाजमुनी तहजीब को सदैव स्मरण रखने की आवश्यकता है तभी हम ‘सर्वेभवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामया’ और ‘वसुधैव कुटम्बकम’ के राष्ट्र-दर्शन पर सफल हो सकते हैं | हमारे अग्रजों ने मिलकर स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त किया | उन्हीं के मार्ग दर्शन पर हम सब को मिलकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान करना है | हम हमेशा अपना राष्ट्रीय कर्तव्य स्मरण रख सकें तो यही देश के लिए सबसे बड़ा योगदान होगा | अगली बिराखांत में कुछ और...
पूरन चन्द्र काण्डपाल,९८७१३८८८१५
26.11.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै 

                                                              अन्धविश्वास क महिमामंडन

     चनरदा एक उड़ति खबर ल्ही बेर ल्ही बेर बतूं रईं, “अंहो ! एक समाचार पत्र क अनुसार उत्तराखंड सरकार राज्य में अंधविश्वास कैं संस्कृति बतूण का प्रयास करैं रै बल | राज्य में व्याप्त अंधविश्वास कैं गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों और तांत्रिकों ल व्यवसाय बनै है जनू कैं आब पिलसन (पैंशन) दीण कि बात चलि रै | शराब पी बेर एक आदिम में दयाप्त औंतरि जांछ जै पर क्वे आंउ नि उठै सकन कि शराब पी बेर य आदिम में क्वे दयाप्त औंतरि रौछ ? य ई डंगरिया क हुकम पर शराब और शिकार क दगाड मसाण (डरै बेर सैणीयां पर जबरजस्ती लगाई जाणी भैम ) कि पुज दिई जैंछ जैक लुत्फ़ मसाण पुजणी मंडलि रात कै क्वे गाड़ –गध्यर क किनार पर पिकनिक कि तौर पर मनूनी | आज लै यूं सबू कि मिलीभगत ल पनपि ‘मसाण उद्योग’ क य पाखंड -प्रपंच कैं राज्य में देखी जै सकूं | अशिक्षा कि उपज अंधविश्वास पोषित य पाखण्ड में समाज क शोषण करी जांछ, बकरा कि बइ दिई जैंछ, भैम पनपाई जांछ और आपसी मिलीभगत ल दयाप्त क नाम पर लूट करी जैंछ | जागर कैं सबै मर्जों कि औखत और सबै परेशानियों कि दवाइ बताई जांछ | लुटि-खसोटि बेर जब पीड़ित कैं फैद नि हयौ तो भाग्य- भगवान्- करमगति पर दोष लगाई जांछ और अक्सर दुबार पुज यौ कै बेर मांगी जैंछ कि ‘तुमुल पैलीकै कि पुज ख़ुशि है बेर नि दी |’ क्वे शिल्पी कैं, क्वे राज-मिस्त्री कैं, बाग़-बगीच लगूणी कैं, बढ़इ कैं, द्यो क भरौस पर भैटी किसान कैं पेंशन मिलनी तो भलि बात हुनि |  अंधविश्वास कैं बढ़ावा दीणी क्वे लै बेजबाबदार तन्त्र या पाखण्ड कैं पोषित करण, समाज कैं विज्ञान है दूर धरण वालि बात हइ | आज य वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास कैं पछ्याणण, यथार्थ और सत्य कैं समझण, भैम-अज्ञानता-अशिक्षा कैं दूर करण और श्रधा एवं अन्धश्रधा में फरक कैं समझण कि जरवत छ | मी ल डंगरियों क करार या पाखण्ड क कारण कएक पीड़ितों कि अकाल मृत्यु देखि रैछ जनर डाक्टरी इलाज ये वजैल रोकि दे कि उनुकें डंगरी ठीक करि द्यल | हमार इलाक में ग्राम सभा बटि संसद तक चुनाव लड़णी लगभग सबै प्रत्यासी गणतुओं क पास जानी जो म्वटि दक्षिण ल्ही बेर सबू कैं जीत क भरौस दिनीं | चुनाव में जो एक जीतूं उ गणतु कैं महिमामंडित करूं और हारणी सब कंडीडेट चुप रौनी | यूं गणतु –डंगरियां कि देखा- देखि कएक सैणीयां में कीर्तन या सांस्कृतिक आयोजनों में लै ‘देवि’ औंतरण फैगे जो डंगरी-गणतुओं क जस हावभाव करि बेर लोगों ध्यान आपण तरफ खैंचीं | अंधविश्वास हमरि संस्कृति न्हैति | य प्रपंच-पाखण्ड कैं समझण चैंछ और राज्य कैं गणतुओं, तांत्रिकों, झाड़-फूक, मसाण, पशु-बलि, महिला- उत्पीडन, अशिक्षा, नशा, धूम्रपान, शराब और पाखण्ड क मकड़जाव है भ्यार निकाउण चैंछ | उत्तराखंड देवभूमि छ, वीरभूमि छ और शहीदों कि भूमि छ | य विक्टोरिया क्रॉस, परमवीर चक्र और अशोक चक्र प्राप्त करणी सैनिकों कि भूमि छ | येकैं अशिक्षा, अज्ञान और अंधविश्वास है बचूण क लिजी कुछ मजबूत कदम उठूण कि जरवत छ | हमूल आपण क्वे लै स्वार्थ क लिजी य राज्य कैं इक्कीसवीं सदी बै दुबार सत्रहवीं सदी में नि ल्हिजाण चैन |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली 

26.11.15

 

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