Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 326398 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                               दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै 

                                                                        भांग-बभूत निचैन, विकास चैंछ

        जब बात निकई छ तो उ दूर तक जैंछ | सुणन में औं रौ कि  उत्तराखंड में भांग कि खेति कैं प्रोत्साहन दिई जाल बल |  उद्देश्य य बताई जां रौ कि भांग क रेसा क उद्योग लगाई जाल बल | रेसा - उद्योग क लिजी भीमू और रामास क उत्पादन कैं बढ़ाई जाण चैं | यूं द्विनूं ल मैंसों कैं फैद ल ह्वल | भांग कि खेति ल फैद कम नुकसान ज्यादै ह्वल | कई जांछ, “दूद क ट्वट और गोभर क नाफ” अर्थात डंगरों कैं दूदा क लिजी ना गोभरा क लिजी पाओ | भांग क डवां पर बै रेसा त बाद में निकवल, पैली अत्तर (चरस) और भांग निकवल | पहाड़ी जगां में असोज (सितम्बर) क महैण में करीब करीब सबै गौंनूं में भंगा डवां पर बै  अत्तर निकाई जैंछ जो चरसियों कैं बेची जैंछ या इनार मार्फ़त बाबाओं क सुल्पों तक पुजीं | चरस निकावणा क बाद पतेलों कैं भांग क रूप में सुल्प में धरि बेर पीई जांछ | अगर भांग कि खेति कैं बढ़ावा दिई जाल त राज्य चरस-भांग प्रदेश बनि जाल | उत्तराखंड शराब, नश और धूम्रपान प्रदेश त पैलिकै बै बनि रौछ | राज्य में जो डंगरियों कैं पेंशन दीण कि बात चलि रैछ फिर यूं डंगरियों कैं भंगड़ी में तम्बाकू कि जाग पर चरस या भांग दिई जाल |  राज्य सरकार कैं यास विनाशकारी कदम नि उठूण चैन | बिहार में एक अप्रैल २०१६ बटि शराबबंदी हूं रै | महाराज ज्यू नीतीश क अनुकरण करो | राज्य क स्कूलों में शिक्षा कि गुणवता घटते जांरै, स्कूलों में बै नान कम होते जां रईं | य बात कि चिंता न अध्यापकों कैं छ और न सरकार कैं |  प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ और दवाई द्विनूं कि कमी बताई जां रै | लागै रौ जो डंगरियों ल शराब कैं घर- घर पुजा ऊँ स्वास्थ्य केंद्रों और स्कूलों में आब बभूत लगूणा क लिजी धरी जाल | बभूत ल नना कि शिक्षा बिन पढिये बढ़ि जालि और बीमारों कि तब्यत लै ठीक है जालि | रेल, गैरसैण और भाषा पर सरकार चुप छ | यूं डंगरियों हूं बै बभूत क एक फुक्क आई एस पर और एक फुक्क सीमा पर ठाड़ हई दुश्मनों पर लै मरवै दिना ताकि दुश्मण लै परास्त है जान | मुसर्रफ येति आछ और आपणी बेगम दगै ताजमहल क सामणि दगडै भैटि बेर फोटो खिचै बेर न्हैगो | पाकिस्तान जै बेर वील ‘कारगिल कांड’ करौ | तांत्रिक-डंगरियों ल एक फुक्क वीकि बुद्धि ठीक करणा लिजी क्यलै नि मार ? तुमार विरोधी त हर बात पर तुमर विरोध कराल पर आम जनता यस नि करनि | य जनता ल पिछाड़ि लगभग चालीस वर्षों बटि आपुकैं देखि रौछ, आपणी मिठीवाणी और अश्वासनों कैं लोगों ल कुछ उम्मीद क साथ सुणन में मन लगा | आपूं हैं हरदा, हरका, हरीशदा, यां तक कि बेटा –ठुलबौज्यू लै कौछ | आपूं कैं ‘माड़’ ल ना ‘नाइ’ बरकै बेर प्यार दे उत्तराखंडियों ल | यस कौण पर आपण विरोधी म्ये पर कांग्रेसी हुण क ठप्प लगै सकनी जबकि मी एक गैर-राजनैतिक भारतीय उत्तराखंडी छ्यूं | आखिर में आपूं हैं निवेदन छ कि मेहरबानी करि बेर भांग, नश और अंधविश्वास कैं प्रोत्साहित नि करो | आज राज्य कैं ‘शिरोपासविस्वा’ कि जरवत छ अर्थात – शिक्षा, रोजगार, पाणी, सड़क, विजुली और स्वास्थ्य | य ‘छै आखंरों’ लै अघिल कि बैतरणी पार ह्वलि महाराज |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली 
17.12.2015

Pooran Chandra Kandpal

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   ब्योलि ढूंढों ( कुमाउनी गीत )

अणब्यवाई लौंडों कि डिमांड पर य गीत
‘ब्योलि ढूंढो’ (उकाव –होराव किताब -२००८ )
 प्रस्तुत छ –

(कुंवारे लड़के के मन में कैसी दुल्हन की 
कल्पना है, इस गीत में अपने मन की
बात वह अपने बड़े भाई से कह रहा है | )
 
दाज्यू मिहुणी ब्योलि ढूंढो गौं बै भली-भली
मीकणी नि चैनी दाज्यू शहर की च्येली |
 
आपण मुलुक बै ढूंढों और कैंबै नि चैनी
कसिक समाउल मैं तेजतरार स्यैणी
आजकल च्येलिया हैगीं बंदूकै की नली | मीकणी...
 
सिदि सादि नानि चैंछ पढ़िया लेखिया
जो ख्वारम धोति धरो आंचव गाड़िया
मिसिरी कि कुंज जसी, गूड़ कसि डली | मीकणी...
 
छवट-छ्वट घुगंट मजी चमकणी बिंदुली
नगदार कनफूल दगै नानि नानि नथूली
देखण में लागो जसी गुलाब की कली | मीकणी...
 
बानकी कुटुकि ढूंढो, ढूंढो काई गोरी
लुपलुपी सुपसुपी ढूंढो चौमासै की तोरी
काकड़ फुल्युड़ जसी कैरुवै गेदुली | मीकणी...
 
सासु-सौर क भरम करो भल-भल व्यवहार
ननद देवर दगै रौ भै-बैणी चार
पिनाउ कि गांज जसी झन ल्याया चिलैली | मीकणी...
 
औंणियां जणियां देखो घर देखो समाज
खुशी-खुशी जो निभैद्यो द्वि घरों कि लाज
धान कि बालड़ी जसी फुन वाई धमेली | मीकणी...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
18.12.2015
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                     लेखन के जरिए नाराजगी 

    राष्ट्रीय सहारा (१९.१२.१५) में प्रकाशित समाचार ‘लेखन के जरिये नाराजगी व्यक्त करें’ एक विचार हो सकता है | पुरस्कार लौटाने वाले ३९ लेखकों को खलनायक की तरह नहीं देखा जाय | इसके अलावा देश के कई बुद्धिजीवी वर्ग का भी इन्हें समर्थन मिला | उस दौरान देश में कई तथाकथित नेताओं द्वारा विषवमन किया गया, अशिष्ट भाषा का खुल कर प्रयोग हुआ | साहित्य अकादमी द्वारा मारे गए लेखकों की स्मृति में यदि आरंभ में शोक प्रकट कर दिया जाता तो बात अधिक नहीं बढ़ती | प्रजातंत्र में असहमति तथा दुःख- नाराजगी प्रकट करने के लिए जो भी माध्यम चुना जाता है उसमें पुरस्कार लौटाने अथवा मैडल वापस करने की कोई मनाही नहीं है | लेखन से भी नाराजगी व्यक्त हो सकती है परन्तु उसको पढ़ने वाला कोई नहीं होता और न ही मीडिया में उसकी उचित चर्चा होती है | असहमति प्रकट करने के प्रजातांत्रिक द्वार बंद नहीं किये जाने चाहिए | बुद्धिजीवियों को नाराजगी प्रकट करने की राह एवं तरीका  स्वयं चुनने दें, उन्हें इस मुद्दे पर सलाह देना उचित नहीं होगा | लेखक का एक राष्ट्रधर्म होता है, वह राष्ट्रहित में ही वह कदम उठाता है जो उसे उस दौर में उचित लगता है |

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
19.12.2015

Pooran Chandra Kandpal

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ब्यौल ढूंढो ( कुमाउनी गीत )
 
‘ब्योलि ढूँढो’ गीत क बाद आब ‘ब्यौल ढूंढो’
च्येलियां कि डिमांड लै पुरि करि दिनू |
( बदलते समय के साथ लड़कियों ने भी
कैसे दुल्हे की चाहत रखी है, इस गीत में
उनके मन की बात है | )
 
दाज्यू मीहुणी ब्यौल ढूंढो गौं बै भलौ भलौ
मीकणी नि चैन दाज्यू बात मारणी च्यलौ |
 
उत्तराखंड बटि ढूंढो और कैं बै नि चैनौ
आपण मुलुक बै ढूंढो सीप सहूरौ नानौ
गलती साथ झन ढूंढिया क्वे फरफंडी च्यलौ | दाज्यू...
 
सिदसाद ब्यौल ढूनिया पढ़िया लेखीया
गबरू जवान जस हिम्मत क भरिया
डरणी मरणी झन ढूनिया, ढूनिया दिलवालौ | दाज्यू...
 
जांचि लिया भली भांत शराबी-कबाबी
देखि लिया गुसैल नशैल, जुवारी लबारी
झन ढूनिया गुट्कबाज, बिड़ि सिगरटौ रयलौ | दाज्यू...
 
यतू पतव झन ढूनिया कुकुर क पुछड़
चुसिया बानर जस नि हुण चैन मुखड़
झन ढूनिया बल्द जस कुड़कभाड़ ठयलौ | दाज्यू...
 
देखण चाण भल हुण चैं सनिमा जस हीरो
अकला पिछाड़ी लठ्ठ लिणियां नि हुण चैन जीरो
थम्मू जस झन ढूनिया, गूड़ कस भ्यलौ | दाज्यू...
 
रोबिल चटक ढूनिया जस राजकुमारा
ख़ुशी ख़ुशी जो उठै द्यो म्यार झटैक नखरा
कमै धमै सब आपणी जो म्यार हाथ द्यलौ | दाज्यू...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल ,९८७१३८८८१५
19.12.15

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                        बिरखांत – ५१ : कैसे कैसे बखेड़े

   हमें बखेड़ा उपजाने में देर नहीं लगती | घर में, पड़ोस में, कार्यस्थल में, सड़क पर या बैठे-बैठे सोशल मीडिया में | २१ अक्टूबर २०१५ को दिल्ली के भागीरथी विहार में चूहेदानी से दूसरे की घर की ओर चूहा छोड़ने पर ऐसा बखेड़ा हुआ कि आपसी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी | कुछ वर्ष पूर्व सशस्त्र सेना चिकित्सा कालेज (AFMC) पूने के इन्टोमोलोजी विभाग में हमें बताया गया कि चूहा किसान का शत्रु है और सांप मित्र | अगर सांप न होते तो चूहे सभी अन्न नष्ट कर देते क्योंकि  इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है | हम सब चूहों द्वारा किये गए नुकसान से परिचित हैं | हम घर के चूहे को पकड़ते हैं और दूसरी जगह छोड़ देते हैं | चूहों से फ़ूड पोइजनिंग, रैट बाईट फीवर और प्लेग जैसी कई बीमारियाँ फैलती हैं | वैज्ञानिकों के अनुसार हमें चूहों को नष्ट कर देना चाहिए | चूहेदानी को पानी की बाल्टी में डुबाना, चूहा मारने का उत्तम तरीका बताया गया है | परन्तु कुछ लोग चूहे को भगवान् की सवारी बताते हैं इसलिए मारने के बजाय दूसरे के घर की ओर डंडा देते हैं | स्वयं सोचें और जो उचित लगे वही अपनाएं | इस बात पर भी बखेड़ा खड़ा हो सकता है | दूसरा बहुचर्चित बखेड़ा कुत्ते का है | एक व्यक्ति कुत्ता पालता है और परेशानियां पड़ोसियों को झेलनी पड़ती हैं | कुत्ता  रात को भौंकता है, कहीं पर भी शौंच कर देता है | श्वान मालिक किसी की बात नहीं सुनता | रिपोट होने पर पुलिस-अदालत होती है और वर्षों केस लटके रहता है | कुत्ते वाला त्यौरियां चढ़ा कर कुत-डोर हाथ में थामेबड़े रौब से घूमता है | उसे किसी की परवाह नहीं |  उसकी सबसे बोलचाल बंद है | एक दिन जब कुत्ते का मालिक मर जाता है | सभी पड़ोसी उसके कुतप्रेम, कुतत्व और कुतपने को भूल कर उसकी अर्थी में शामिल होते हैं फिर भी उस परिवार को अकल नहीं आती और अंत में अदालत के दंड से ही केस का अंत होता है | तीसरा बखेड़ा ‘हा-हा’ का है | एक आदमी प्रतिदिन सुबह चार बजे अपने घर की बालकोनी में जोर-जोर से ‘हा-हा’ करता है अर्थात हंसने का व्यायाम करता है | पड़ोसी उसे मना करते हैं | वह नहीं मानता | केस अदालत में जाता है | अदालत से उसे आदेश मिलता है, “तुम पार्क में जाया करो, घर की बालकोनी या आसपास ‘हा-हा’ नहीं करोगे | तुम्हारी इस हरकत से लोग दुखी हैं |” पड़ोसियों से अकड़ने वाला यह तीसमारखां अदालत से माफी मांगता है और लोगों को उसकी ‘हा-हा’ से मुक्ति मिलती है | इसी तरह पड़ोस में तबला, ढोलक, हारमोनियम, ढोल, डीजे, म्यूजिक सिस्टम, हॉर्न, पटाखे, जोर जोर से झगड़ा, बहुमंजिले फ्लेटों में ‘खट-खट, वाहन पार्किंग, जीने की गन्दगी आदि समस्याओं से हम आए दिन जूझते हैं और छोटी सी बात पर बखेड़े खड़े हो जाते हैं | चलो अपने से पूछते हैं, ‘कहीं हम चूहा, कुत्ता, हा-हा सहित इन अन्य बखेड़ों के कारण तो नहीं हैं ?’ अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल , ९८७१३८८८१५
20.12.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                              बिरखांत-५२ : हम बच्चों से डरने लगे हैं |

    आज की बिरखांत बच्चों को समर्पित है | हम अपने बच्चों से डरने लगे हैं और डर के मारे हमने अपने बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया है | आए दिन समाचार पत्र या टी वी में हम देखते हैं कि अमुक बच्चा मां या पिता के डांटने पर घर से भाग गया या फंदे पर लटक गया | इस डर के मारे हमने भी बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया जो अनुचित है | हमने बच्चों को समय देना चाहिए | प्यार से समझा कर भी बच्चे मान जाते हैं परन्तु यह कार्य शैशव काल से शुरू होना चाहिए | ज्योंही हमें बच्चों में कोई भी अवगुण नजर आने लगे, हमें धृतराष्ट्र या गांधारी नहीं बनना चाहिए | दुर्योधन के अवगुणों को उसके माता-पिता ने नजरअंदाज कर दिया था | गुरु द्रोणाचार्य की बात को भी उन्होंने अनसुना कर दिया |

        जब भी कोई हमसे हमारे बच्चे की बुराई करे हमने बुरा मानने के बजाय चुपचाप उसकी बात को जांचना-परखना चाहिए | कम उम्र के बच्चे भी हमारे दिए हुए मोबाइल या कंप्यूटर पर उत्तेजनात्मक दृश्य देख रहे हैं | देश में १३ साल से कम उम्र के ७६ % बच्चे रोज यू ट्यूब में वीडियो देख रहे हैं जिन्होंने अपने अभिभावकों की अनुमति से अपने एकाउंट बना रखे हैं | बच्चों की भाषा भी अशिष्ट हो गयी है | उन्हें घर का खाना कम पसंद आने लगा है | वे चाउमिन, मोमोज, बर्गर, चिप्स, फिंगर फ्राई और बोतल बंद पेय से मोटे होने लगे हैं | घर में भी हम बच्चों को  अनुशासित नहीं रख रहे हैं | प्रात: उठने से लेकर रात्रि में सोने तक बच्चों के लिए समय प्रबंधन होना बहुत जरूरी है | खेल और टी वी पर एक-एक घंटे से अधिक समय अनुचित है | १५ अगस्त या २६ जनवरी की छुट्टी देर तक सोने के लिए नहीं होती |

        कुछ लोग अपने अवयस्क लाडलों को स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार चलाने की खुली छूट दे रहे हैं | गली-मुहल्ले में अक्सर यह दृश्य देख जा सकता है | अवयस्क लाडला अपने वाहन से पास ही खेल रहे बच्चों को कुचल देता है | किसी के निर्दोष बच्चे मारे गए और इस लाडले को सजा भी नहीं होती | रात में ये तरह-तरह के हॉर्न बजा कर लोगों को दुखित कर उड़नछू हो जाते हैं | पुलिस सब कुछ देखती है परन्तु चुप रहती है | ऐसे बच्चों के अभिभावकों के लाइसेंस और वाहन जफ्त होने चाहिए | हाल ही की रिपोट के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में हमारे देश में प्रति वर्ष डेड़ लाख बेक़सूर लोग मारे जाते हैं और तीन लाख लोग घायल होते हैं | इस संख्या में अवयस्क लाडलों द्वारा मारे गए निर्दोष भी शामिल हैं |

      बच्चों के साथ देशप्रेम और शहीदों की चर्चा भी होनी चाहिए | हमें अपने बच्चों के व्यवहार, बोलचाल, संगत, आदत, आहार और स्वच्छता पर अवश्य नजर रखनी चाहिए | यदि अनुशासन आरम्भ से होगा तो आगे चल कर डांटने का प्रशन ही नहीं उठेगा | बच्चों के साथ अभिभावकों का मित्रवत व्यवहार ही उन्हें उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर करता है | बच्चों के लिए समय जरूर निकालें अन्यथा एक दिन अभिभावकों को  पछताना पड़ सकता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल ,९८७१३८८८१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                     दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै 

                                                                           १६ दिसंबर ‘विजय दिवस’ की याद में

    १६ दिसंबर भारतीय सैन्यबल कैं सलूट करण क दिन छ | आजै  कै  दिन १९७१ में हमरि सेना ल पाकिस्तान क ९३००० (तिरानबे हजार) सैन्य-असैन्य कर्मियों कैं पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आत्मसमर्पण करवा छ |  य युद्ध क मुख्य कारण छी करीब एक करोड़ है ज्यादै  पूर्वी पाकिस्तानी जनता द्वारा पाकिस्तान कि फ़ौज क अत्याचार है आपणी ज्यान बचै बेर भारत में शरण ल्हीण | उ टैम में देश कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी छी जैल दुनिय क ध्यान शरणार्थी समस्या कि तरफ खैंचौ | पाकिस्तान कैं भारत द्वारा शरणार्थियों एवं वां कि मुक्तिवाहिनी सेना ( पाकिस्तान क अत्यचारों विरोध में लड़णी संगठन) कि मदद करण भल नि लाग और वील ३ दिसंबर १९७१ हुणि भारत कि पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर एक साथ युद्ध थोपि दे | १४ दिन क य युद्ध में पाकिस्तान छटपटै गो और वीक सैन्य कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल ए ए के नियाजी ल पुर सैन्य साजो सामान क साथ भारतीय सैन्यबल क कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल जे एस अरोड़ा क सामणि ढाका में आत्मसमर्पण करि दे | य युद्ध कि पुरि बागडोर उ टैम में देश क चीफ आफ आर्मी, जनरल एस एच एफ जे मानेकशा (शैम मानेकशा) क हाथ में छी जनुकैं ३ जनवरी १९७३ हुणि, भारतीय सेना क सर्वोच्च कमांडर देश क राष्ट्रपति ल आजीवन फील्ड मार्शल क रैंक प्रदान करौ | बाद में उनुकैं पद्मविभूषण द्वारा लै सम्मानित करीगो | १६ दिसंबर १९७१ हुणि दुनिय क नक्श विश्व में एक नईं देश ‘बंग्लादेश’ का जन्म हौछ जैक राष्ट्रध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान बनीं | भारत कि य महाविजय पर पूर्व प्रधानमंत्री (तब नेता विपक्ष ) अटल बिहारी वाजपेयी ल इंदिरा गांधी कैं ‘दुर्गा’ का अवतार बता | आजादी बटि आज तका क युद्धों में हमार करीब साड़े बारह हजार सैनिक शहीद है चुकि गईं जनुमें साड़े तीन हजार है ज्यादै सैनिक १९७१ के युद्ध में शहीद हईं और यूं शहीदों में २५५ उत्तराखंड बटि छी | हर साल हाम १६ दिसंबर हुणि आपण देशा क शहीदों कि याद में ‘विजय दिवस’ मनूनूं और नई दिल्ली में इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति क सामणी सबै सैन्य शहीदों कैं राष्ट्रीय श्रधांजलि दिई जैंछ | मीडिया में य दिवस क बार में ज्यादै  चर्चा नि हुण क भौत दुःख छ | हमरि सेना कैं कभै लै मीडिया में उतू जाग नि मिलनि जतू मिलण चैंछ जबकि दुसार मुद्दों कि खुलि बेर बेकार कि चर्चा हिंछ | हमूल आपण शहीदों कैं कभै लै नि भूलण चैन और शहीद परिवारों क हमेशा सम्मान करण चैंछ | शहीदों कि याद में म्याल लगते रौण चैनी | यूं पंक्तियों क लेखक (तब उम्र २३ वर्ष) कैं उ १४ दिन क युद्ध में शामिल हुणी भारतीय सेना क सदस्य हुण क सौभाग्य प्राप्त छ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
२४.१२.२०१५


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                                                              बिरखांत -५३ : सरकारी स्कूल के बच्चे और मास्टर

     अध्यापक (मास्टर) देश की भावी पीढ़ी, हमारे कर्णधारों का निर्माण करते हैं जिससे देश का भविष्य बनता है | वर्तमान में बहुत कुछ बदल गया है | आज के जमाने में विद्यार्थी अपने शिक्षकों का उचित सम्मान नहीं करते | शिक्षा तीन बिन्दुओं से जुड़ी है – अभिभावक, शिक्षक और विद्यार्थी  | जब तक इन तीनों का सहयोग संतुलित नहीं होगा, शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता | अभिभावकों की चुस्त निगाह, शिक्षकों का उचित मार्गदर्शन और विद्यार्थी के अनुशासित अध्ययन से ही शिक्षा प्राप्त की जा सकती है |
      आज शिक्षा का स्तर गिरने के लिए ये तीनों ही जिम्मेदार हैं | अभिभावकों के पास समय का अभाव है तो अध्यापकों में समर्पण की कमी पाई जाने लगी है क्योंकि शिक्षक यह भूलते जा रहे हैं कि वे देश के लिए भावी कर्णाधारों के निर्माता हैं | कुछ अध्यापक टयूसन उद्योग से जुड़ चुके हैं जो अध्यापन पर खर्च होने वाली ऊर्जा को टयूसन पर उत्सर्जित करते हैं | दूसरी तरफ विद्यार्थी भी नादानी के कारण अपने भविष्य के प्रति जागरूक नहीं लगते | अक्सर विद्यार्थियों द्वारा अध्यापकों के प्रति अशिष्ट व्यवहार की घटनाओं की खबर मिलते रहती है जिससे अध्यापकों में निराशा और भय की भावना घर कर जाती है | ऐसे में विद्यार्थियों में अनुशासन स्थापित करना कठिन हो जाता है |
      सरकारी स्कूल के अध्यापक बताते हैं, “विद्यार्थी समय पर स्कूल नहीं आते, अध्यापक की उपस्थिति में भी कक्षा में मन नहीं लगाते, दिया हुआ गृहकार्य करके नहीं लाते, सहपाठियों को पढ़ने नहीं देते, मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं तथा कक्षा में उटपटांग हरकत एवं दादागिरी करते हैं | हम उन्हें समझा ही सकते हैं तथा किसी प्रकार का दंड नहीं दे सकते | अभिभावक बुलाने पर भी स्कूल नहीं आते | कक्षा दस के विद्यार्थी को कक्षा छै की किसी भी विषय की पढ़ाई अच्छी तरह नहीं आती | फेल करने का आदेश नहीं है | ऐसे विद्यार्थियों को अपने भविष्य की चिंता नहीं होती है |”
     इन पंक्तियों का लेखक एक सरकारी स्कूल के नजदीकी पार्क में स्कूल समय पर घूमते विद्यार्थियों के बारे में बताने जब स्कूल में गया तो उक्त उत्तर मिला | यह जान कर हैरानी हुई कि विद्यार्थियों ने पार्क में घूमने का कारण स्कूल में पढ़ाई नहीं होना बताया | हाल ही में उत्तरप्रदेश में उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि सरकारी बाबूओं और अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ें तभी इन स्कूलों की दशा सुधरेगी | पता नहीं इस आदेश की पालना होगी या कोई तोड़ निकाल लिया जाएगा | सरकारी स्कूलों की पढ़ाई भगवान भरोसे ही चल रही है | ऐसे में भावी पीढ़ी का भविष्य क्या होगा, आप सोच सकते हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५ 

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                                                                              दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै   

                                                                           दुनिय दगै मनौ हैपी न्यू ईयर
 
       होई महाराज, आपूं कैं लै ‘हैपी न्यू ईयर’, ‘नई साल कि बधै’ | भारत क नईं साल त चैत शुक्ल पक्ष पड्याव (मार्च क दुसर हफ्त में ) मानी जांछ पर उ दिन भौत कम लोग ‘नई साल कि बधाई’ कौनी | हमार देश में मुख्य तौर पर हर साल तीन नईं वर्ष मनाई जानी | पैल १ जनवरी हुणि जैक पैली रात ३१ दिसंबर हुणि खूब शोर-शराबा क साथ उत्सव मनाई जांछ |  १ जनवरी क शुभकामना संदेश लै भौत जोर-शोर क साथ दिई जांछ | वाट्सैप, फेसबुक आदि सबै सोशल मीडिया में बधाई संदेशों कि गाड़ ऐ जींछ, गध्यार फुफै जानी जनुकैं तरण भौत  मुश्किल है जांछ | य नईं साल हमार देश सहित पुरि दुनिय में सब मनूण फैगीं |
 
         दुनिय दगै हिटण भौत जरूरी छ | जो नि हिटल उ पछिन रै जाल | कंप्यूटर क्रांति यैक खाश उदाहरण छ | हमूल माशा, रत्ती, तोला, छटांग, सेर और मण कि जागि पर मिलि, सेंटी, डेसी,/ डेका, हेक्टो, किलो, क्विंटल और टन अपनै है तो यसिके दुनिय दगै जनवरी १ हुणि नई साल मनूण में हिचक नि हुण चैनि | घर में हमूल आपण नना कैं आपणि भाषा में महैण/दिन क नाम बतूण लै छोडि है | २९, ३९, ४९, ५९, ६९, ७९, ८९ और ९९ आदि संख्याओं कैं कसी बलानी, हमार ज्यादेतर नान नि जाणन | आजै आपण नना हैं पुछि बेर देखि लियो | हाम कोई लै भाषा सीखूं पर हमूल आपणी मातृभाषा नि भुलण चैनि | हमार देश क नईं वित्त वर्ष १ अप्रैल बटि ३१ मार्च तक हुंछ | हमार देश में दुसर नई साल हुणि ‘विक्रमी सम्वत’ कौनी जो ईसा पूर्व ५७ बटि मनाई जांछ | २०१५ में वि.स. २०७२ (२०१५ में ५७ जोड़ी बेर ) छ जो २१ मार्च २०१५ हुणि शुरू हौछ | तिसर नई साल ‘साका वर्ष’ छ जो ७८ ई. बटि शुरू हौछ अर्थात य ऐल क २०१५ बटि ७८ वर्ष पछिन छ | यैक मौजूदा साल १९३७ (२०१५ में बै ७८ घटै बेर ) छ |
 
          भारत एक संस्कृति बहुल देश छ जां कएक संस्कृति दगड-दगडै फलनी –फूलनी | यां लगभग हरेक राज्य में अलग अलग टैम पर नई साल मनाई जांछ | अनेकता में एकता क य  एक विशेष उदाहरण छ | हमार देश ‘भारत’ क नाम अंग्रेजी में ‘इंडिया’ छ | कएक लोग कौनी कि हमार देश क नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ हुण चैंछ | पड़ोसी देशों क नाम अंग्रेजी में लै उई हुंछ जो उनरि आपणि  भाषा में हुंछ |  ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ बै आछ |  ‘इंडस’ शब्द ‘हिंदु’ बै आछ और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ बै आछ (इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस क किनार रौणी लोगों हैं ‘इंडोई’ कौंछी |
 
       जे लै हो, कभतै य सवाल मन में जरूर उठूंछ कि एक देशा क द्वि नाम नि हुण चैन | हमार देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ कैं अमीर और ‘भारत’ कैं गरीब माननी अर्थात इंडिया क मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत क मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमर देश केवल भारत कै नाम पर पुकारी जनौ तो भल हुन | हमार संविधान क आमुख में लै लेखी छ “वी द पीपल आफ इंडिया दैट इज ‘भारत’...” अर्थात हम भारता क लोग... | हम भारतीय छ्यूं, ‘वसुधैव कुटम्बकम’ हमार विश्व दर्शन छ | यैक वजैल सबूं दगै १ जनवरी हुणि हंसनै –ख़ुशि हुनै नईं साल कि बधै जरूर कया | कुर्मांचल अखबार कि पुरि टीम और पाठकों कैं लै नई साल कि भौत भौत बधै |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली   
31.12.2015
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                 बिरखांत-५४ : दुनिया के साथ हैपी न्यू ईयर
 
     जी हां, आपको भी ‘हैपी न्यू ईयर’, नव वर्ष की बधाई | भारत का  नव वर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (मार्च द्वितीय सप्ताह) माना जता है परन्तु उस दिन बहुत कम लोगों को हैपी न्यू ईयर या नव वर्ष की बधाई  कहते हुए सुना गया है | हमारे देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव वर्ष मनाये जाते हैं | पहला १ जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या ३१ दिसंबर को मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाते है | १ जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा जाता है | आज भी यही हो रहा है | वाट्सैप, फेसबुक सहित सभी सोशल मीडिया में इस तरह के संदेशों का सैलाब आया है कि संभाले नहीं संभल रहा | यह नव वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |

      दुनिया के साथ चलना ही पड़ता है | जो नहीं चलेगा वह पीछे रह जाएगा, कम्प्यूटर क्रान्ति इसका एक उदाहरण है | हमने माशा, रत्ती, तोला, छटांग, सेर और मन की जगह मिलि, सेंटी, डेसी,/ डेका, हेक्टो, किलो, क्विंटल और टन अपनाया है तो विश्व के साथ जनवरी १ को नव वर्ष मानने में हिचक नहीं होनी चाहिए | घर में हमने अपने बच्चों को हिन्दी महीनों/दिनों के नाम बताने भी छोड़ दिये हैं | 29, 39, 49, 59, 69, 79, 89 और 99 को हिंदी में क्या कहते हैं, हमारे अधिकांश बच्चे नहीं जानते | पूछ कर आज ही देखिये | हम कोई भी भाषा सीखें परन्तु अपनी मातृभाषा तो नहीं भूलें | हमारे देश का वित्त नव वर्ष १ अप्रैल से ३१ मार्च तक होता है | दूसरे नव वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं जो ईसा पूर्व ५७ से मनाया जता  है | २०१५ में वि.स. २०७२ है जो २१ मार्च २०१५ को आरम्भ हुआ था | तीसरा नव वर्ष साका वर्ष है जो ७८ ई. से आरम्भ हुआ अर्थात यह वर्तमान २०१५ से ७८ वर्ष पीछे है | इसका वर्तमान वर्ष १९३७ है |

      भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग अलग समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम अंग्रेजी में ‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी देशों के नाम अंग्रेजी में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’ शब्द ‘हिंदु’ से आया और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया (इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के किनारे के लोगों को  ‘इंदोई’ कहते थे |

      जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और ‘भारत’ को गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ ‘भारत’ ही पुकारा जाय तो अच्छा है | हमारे संविधान के आमुख में भी लिखा है “वी द पीपल आफ इंडिया दैट इज ‘भारत’...” अर्थात हम भारत के लोग... |  हम भारतीय हैं, ‘वसुधैव कुटम्बकम’ हमारा विश्व दर्शन है | इसलिए सबके साथ १ जनवरी को मुस्कराते हुए नव वर्ष की बधाई जरूर कहिये | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
01.01.2016

 

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