Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 326397 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                           बिरखांत -५५ : रिसोल्यूसन (संकल्प) नए साल २०१६ का

     हमने कई लोगों को कहते हुए सुना है के इस वर्ष गंगा स्नान करने हरिद्वार गया था और बीड़ी-सिगरेट-तम्बाकू छोड़ आया या चाय छोड़ आया या मांसाहार छोड़ आया | अपने प्रण को पूरा करने के लिए लोग गंगा स्नान या कसम का सहारा लेते हैं परन्तु उच्च मनोबल के कमी से  कुछ ही दिनों में प्रण से फिसल जाते हैं | इधर सोशल मीडिया में में भी न्यू ईयर रिसोल्यूसन (संकल्प) की बात कई अनुज-अग्रज कर रहे हैं | दर्जन भर संकल्प यहां दे रहा हूं | ‘जब जागो तब सवेरा’ के मंत्र से अपने मनोबल के सहारे हम इन पर खरे उतर सकते हैं |

     १. सपने (कल्पना) देखें, बिना सपने के हम योजना नहीं बना सकते और न कर्म कर सकते हैं | २. फौंक अर्थात बड़बोलापन न करें, जो कहें उसे जरूर करें | कथनी को करनी में जरूर बदलें | ३. ईमानदारी से कार्य करें जिसका हमें पारिश्रमिक मिल रहा है | रात को सोने से पहले इस बारे में अपने से सवाल जरूर करें | ४. समय प्रबंधन जरू करें | सेकेंड के दसवे भाग से मिल्खा सिंह और सेकेंड के सौवे भाग से पी टी उषा को  ओलम्पिक पदक से वंचित होना पड़ा | जो समय को बरबाद करेगा उसे समय कभी माफ़ नहीं करेगा | ५. स्वस्थ रहें, स्वस्थ रहने के लिए भोजन और जीवन शैली पर अनुशासन रखें, जंक फ़ूड न खाएं, नियमित व्यायाम जरूर करें | ६. मुंह को राक्षसी गुफा न बनाएं बल्कि सुख का द्वार बनाएं, जो मिले सो नहीं खाएं, मोटापे से बचें क्योंकि सारी बीमारियों की जड़ मोटापा है | ७. आलस त्यागें, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है | प्रातः बिस्तर जल्दी छोड़ें |

       ८. शराब, धूम्रपान, गुट्का, तम्बाकू, पान मसाला आदि ये सब हमारे दुश्मन हैं | इनसे अपने को दूर रखें | जो आपके निकट भी इन्हें प्रयोग करता हैं उसे गांधीगिरी से मना करें | ८. अपने ऊपर किये गए सहयोग का आभार अवश्य व्यक्त करें तथा अभिवादन करने में पहल करें | ‘आभार’,’क्षमा करें’, और ‘धन्यवाद’ शब्दों का प्रयोग जरूर करें | इससे ईगो (घमंड,अहंकार) नहीं पनपेगी | ९. चिंता न करें बल्कि चिंतन करें | चिंतन से युक्ति या राह मिलती है | १०. शिष्ट भाषा बोलें, हास्य रस-पान करते रहें तथा प्रसन्न रहें | ११. व्यस्त रहें, अस्त-व्यस्त नहीं | पुस्तक-समाचार पत्र-पत्रिका से नाता अवश्य जोड़ें | १२. राष्ट्र की सम्पति को अपनी सम्पति समझें चाहे वह पेड़, पार्क, सड़क, बस, रेल कुछ भी हो |

         इन सभी बातों की चर्चा बच्चों एवं परिजनों से जरूर करें | ये सभी संकल्प हमारी जीवन में साहस, कर्मठता, निडरता, राष्ट्र-प्रेम और सामाजिकता का संचार करते हैं | इन संकल्पों को हम बिना किसी की मदद के आसानी से क्रियान्वित भी कर सकते हैं | फिर देर किस बात की है ? करिए संकल्प और निखारिये अपना व्यक्तित्व | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
05.01.2016 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                           दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                   सरकारी इस्कूलों क नान और मास्टर
 
     अध्यापक (मास्टर) देश कि भावी पीढ़ी, हमार कर्णधारों क निर्माण करनीं जैल देश क भविष्य बनूं | अच्याल क जमान में भौत कुछ बदलि गो | आजा क विद्यार्थी आपण शिक्षकों क ठीक सम्मान नि करैं राय | शिक्षा तीन बिन्दुओं दगै जुड़ी छ – अभिभावक, शिक्षक और विद्यार्थी | जब तक यूं तीनों का सहयोग संतुलित नि ह्वल, शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त नि है सकन | अभिभावकों कि चौकस नजर, शिक्षकों क भल मार्गदर्शन और विद्यार्थी क अनुशासित अध्ययन लै शिक्षा प्राप्त करी जै सकीं |

      आज शिक्षा क हालत डमाडोल हुण क लिजी यूं तीनै जिम्मेदार छीं | अभिभावकों क पास आपण नना उज्यां चाण क टैम न्हैति तो मास्टरों में पढ़ूंण क लिजी समर्पण कि कमी हैगे क्यलै कि ऊँ आपूं कैं भावी पीढ़ी क निर्माता नि समझन | कुछ मास्टर टयूसन उद्योग में शामिल है रईं | इस्कूल में पढ़ूण में जो ऊर्जा लागण चैंछी उ टयूसन पर ख़तम हूं रै | दुसरि तरफ विद्यार्थी लै नादानी क वजैल आपण भविष्य क लिजी जागरूक न्हैति | अक्सर विद्यार्थियों द्वारा मास्टरों  क प्रति अशिष्ट व्यवहार कि खबर मिलते रैंछ जैक वजैल मास्टरों पर निराशा और डर कि भावना ज्येड़ी गे | यास में  विद्यार्थियों कैं अनुशासन में धरण भौत कठिन काम है जांछ |

      सरकारि इस्कूला क मास्टर बतूनी, “विद्यार्थी टैम पर स्कूल नि औंन, मास्टरों कि मौजूदी में लै कक्षा में मन नि लगून, घर हुणि दिई हुई काम करि बेर नि ल्योन, कक्षा में दुसार नना कैं लै पढ़ण नि दिन, मोबाइल फोन क इस्तेमाल लै खुलि बेर करनी और कक्षा में उटपटांग हरकत करनी और क्ये कौयौ तो दादागिरी करनी | हाम नना कैं समझै ई सकनूं, क्वे किस्म कि छोटि-म्वटि सजा क नाम पर डरै लै नि सकन | अभिभावक बलूण पर लै इस्कूल नि औन | कक्षा दस क नना कैं कक्षा छै कि क्वे लै विषय कि पढ़ाई भली-भांत नि औनि | फेल करण क औडर न्हैति | यास नना कैं आपण भविष्य कि चिंता लै नि हुनि |”

     यूं जबाब मीकैं एक सरकारि इस्कूला क, एक नजीक क पार्क में इस्कूल क टैम पर घूमणी नना क बार में जब में उ इस्कूल में बतू हैं गोयूं तब मिलीं | य जाणी बेर हैरानी हैछ कि नना ल पार्क में घूमें हैं औण क कारण इस्कूल में पढ़ाई नि हुण बता | हालूं में उत्तरप्रदेश में उच्च न्यायालय ल आदेश देछ कि सरकारि बाबूओं और अधिकारियों क नान सरकारि इस्कूल में पढ़ण चैनी तबै सरकारि इस्कूलों कि दास सुधरलि | पत्त नै य आदेश कि पालना होली या नि हवा ? है सकूं यैक लै क्ये तोड़ निकाई जो | मास्टर सैबों ल नक् नि मानण चैन और य बात स्वीकार करण चैंछ कि सरकारि इस्कूलों कि पढाई भगवान भरौस पर चलि रैछ | यास में हमरि भावी पीढ़ी क भविष्य क्ये ह्वल, आपूं सोचि सकछा | शिक्षा विभागा क माथ भैटी ठुल अफसरों ल कभतै बिन बताइये इस्कूलों क चक्कर लगूण चैनी | सच्चाई क पत्त चलि जाल |

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
07.01.2016

Pooran Chandra Kandpal

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           सैणी भक्ति
 
घरवाइ कि डांट कैं धरिल्यो आपण ख्वारम
कभैं त उ कौलि म्यर मैंस छ भल आदिम
एकाद ता वीकि सुणो पै आपण मन कसि करो
डरण कि जरवत न्है डरण क नाटक जरूर करो
अगर चलूण चांछा भलीभाँत गृहस्थी कि गाड़ि
तो साल में दिद्यो उकें एक भलि जसि साड़ि |
 
आपणि घरवाइ कैं जरा ध्यान ल देखो उ छ गुणों कि खाण
तुमर बिगड़ी मूड कैं ठीक करण में लगै दीं आपण पराण
जब तुमुकैं क्वे निपुछा उ अलबलानै पुछलि
क्वे तुमरि सुणो –निसुणो उ जरूर सुणलि
बेकारै कि पुजपाठ छोड़ो सैणी क भक्त बनि जौ
दुनिय में ऐ रौछा सैणी कैं उल्लू बनै बेर खैजौ |
 
आब मजाक छोड़ो, य बात गांठ पाड़ि लिया
घरवाइ है भल क्वे दोस्त निहुन, यकीन करिया
उ हकीम छ, वैद छ और छ कडु दवाइ
उ बिना अन्यारपट छ, उ छ घर कि दिवाइ
उ बिना जिन्दगी क्ये नि हइ जस कुड़ बिन छवाइ
उ छ त घर छ, तबै त उहैं कौनी घरवाइ |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल ‘उकाव-होराव’ बटि
 
07.01.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                    बिरखांत-५६  :छोटा परिवार और डिंक

    हमारे देश की जनसंख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं जबकि चीन की आबादी अब घटने लगी है | वहां एक जनवरी २०१६ से दो बच्चे पैदा करने की अनुमति मिल गयी है | हमारे देश में जनसंख्या बढ़ने का मुख्य कारण अशिक्षा और अन्धविश्वास है | कुछ लोग लडके की चाह में परिवार बढ़ा रहे हैं | ‘लड़की तो ससुराल चली जायेगी, लड़का बहू लाएगा, साथ में दहेज़ भी लायेगा, वंश चलाएगा, मुखाग्नि देगा, पिंडदान देगा, शराद करेगा’ जैसी अनेकों अतृप्त चाह हम पाले हुए हैं |
       अल्ट्रासाउंड मशीन रोगों के खोज के लिए थी जिसका दुरुपयोग डाक्टर रूपी कुछ कसाई कन्या भ्रूण की हत्या के लिए कर रहे हैं | बेटे के चाह ने उस औरत को पिशाच बना दिया है जो अजन्मी कन्या की हत्या के लिए डाक्टर के सामने लेटती है | बेटी हमारे लिए वह सब कुछ कर सकती है जो पुत्र कर सकते हैं और कर भी रही है | वह अर्थी को कंधा भी दे रही है और चिता को अग्नि भी | आज यदि कुछ वरिष्ठ नागरिक वृधाश्रमों में हैं तो पुत्र की वजह से हैं न कि पुत्री के कारण | देश का स्त्री-पुरुष अनुपात २०११ में ९४०/१००० था जो अभी भी अस्थिर है | लोगों को समझना होगा कि यदि बेटी मार दी जायेगी तो बहू कहां से आएगी ?
        समाज में परिवर्तन तो आया है | कुछ लोग दो बच्चों तक ही परिवार सीमित रखने लगे हैं, कुछ तो एक ही बच्चे से तृप्त हैं | लोगों का मतलब देश के सभी धर्म-सम्प्रदाय से है | अशिक्षा से ही कहीं-कहीं बहुपत्नी प्रथा अभी भी नहीं उखड़ रही है | जिस दिन देश का प्रत्येक व्यक्ति संतान की अच्छी शिक्षा और परवरिश की ठान लेगा तो फिर वह न तो एक से अधिक विवाह करेगा और न पत्नी पर दो से अधिक संतान पैदा करने के लिए प्रथा-परम्परा के नाम पर दबाव डालेगा | छोटे परिवार के लाभ ही लाभ हैं जबकि बड़े परिवार में दुःख ही दुःख है |
       आजकल एक नई श्रेणी देखने में आ रही है जिसे डिंक ( DINK-double income no kids ) कहा जा रहा है | यह दम्पति दोनों जौब करते  हैं और मिलकर खूब कमा भी रहे हैं परन्तु घर में शिशु नहीं आने दे रहे | उनका जबाब है, “ ऐसे ही ठीक है, ऐस कर रहे हैं कौन पड़े लफड़े में, आदि आदि |”  यह उत्तर उचित नहीं है | आप शिक्षित हैं और शिक्षितों से समाज बहुत कुछ सीखता है | यदि आपने निःसंतान रहने का मन बना  ही लिया है तो यह समाज को एक गलत संदेश जाता है | बहुत देरी से संतान का आना या नहीं आना प्रत्येक दृष्टिकोण से अनुचित है | घर की सुनसान दीवारों के बीच किलकारी गूंजने दो, तभी आपकी शिक्षा का कुछ अर्थ है | आज यूरोप के कुछ देश डिंक श्रेणी से बहुत दुखी हैं क्योंकि उनके देश में जनसंख्या संतुलन बिगड़ रहा है | अगली बिरखांत में कुछ और ...
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
०९.०१.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                      बिरखांत – ५७ : उतरैणी/मकरैणी/मकर संक्रांति/उतरायण

    आज १४ जनवरी को उतरैणी /  उतरायनी है | पौराणिक मान्यता के अनुसार आज पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है जो एक खगोलीय घटना है जिसे ‘संक्रमण’ या ‘संक्रांति’ कहा जाता है | १४ जनवरी से ही शिशिर ऋतु का माघ महीना आरम्भ होता है | यह त्यौहार पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है |  उत्तराखंड में ‘उतरैणी’ या ‘मकरैणी’ या ‘मकर संक्रांति’ के नाम से, असम में ‘बीहू’, हिमाचल-जम्मू-कश्मीर-पंजाब में लोहड़ी, बंगाल में ‘संक्रांति’, तमिलनाडु में ‘पोंगल’, उत्तरप्रदेश में ‘संकरात’, बिहार-पूर्वी उत्तरप्रदेश में ‘खिचड़ी’, गुजरात में ‘उतरायण’, ओडिशा में ‘मित्रपर्व’, तथा महाराष्ट्र में ‘तिलगुल’ आदि |

       इस दिन लोग नदियों में किये गए स्नान को पुण्य मानते हैं और पाप कटने की बात करते हैं | केवल स्नान करने से पुण्य कैसे मिल जाएगा और पाप कैसे कट जाएगा, यह एक विचित्र बात है | पाप तो तब कटेगा जब उसका प्रायश्चित हो और उस पाप कर्म की पुनरावृति नहीं हो | पुण्य तब मिलेगा जब हम नदी में कारसेवा (श्रमदान) करके नदी की गन्दगी साफ़ करेंगे | यहाँ तो हम नदी में वह सब कुछ डाल आते हैं जिसकी हमें जरूरत नहीं है | स्वर्ण मंदिर अमृतसर में भी लोग स्नान करते हैं परन्तु कारसेवा से तालाब की मिट्टी भी निकालते हैं |  हम जहां भी गए गन्दगी डाल आते हैं | विश्व के सबसे ऊँची चोटी ऐवरेस्ट में भी कूड़े के ढेर हमारे पर्वतारोहियों और शेरपाओं ने ही डाले  हैं |
     मकर संक्रांति के दिन देश में कई नदियों के किनारे या पड़ाओं में मेले लगते हैं | उत्तराखंड के बागेश्वर में गोमती-सरयू नदियों के संगम पर इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमें मुख्य तौर से स्थानीय वस्तुओं का व्यापार होता है | इस मेले से ही उत्तराखंड में व्याप्त ‘छुआछूत’ के उन्मूलन का श्रीगणेश भी हुआ | जो लोग ‘छुआछूत’ के पोषक थे उनके बारे में अन्य लोग कहते थे, “खणी- निख़णी आब बागसर देखियाल”, अर्थात खाने- नहीं खाने वालों का पता बागेश्वर में लगेगा जहां  अलग से कुलीन रसोई की व्यवस्था नहीं होती | उतरैणी के दिन कौवे को बुला बुला कर भोजन भी कराया जाता | शीत काल में इस पक्षी को बचाने का यह एक पर्यावरण से जुड़ा सरोकार है |

      बागेश्वर उतरैणी मेले का स्वतंत्रता आन्दोलन में भी बहुत बड़ा योगदान है | “लड़ाइ लड़ी जब देश ल आजादी कि उत्तराखंडी पिछाड़ी नि राय, फिरंगियों कैं यस खदेड़ौ उनूल भाजनै पिछाड़ी नि चाय”, (जब देश ने आजादी की लड़ाई लड़ी तो उत्तराखंडी पीछे नहीं रहे | उन्होंने अंग्रेजो को ऐसे भगाया कि उन्होंने ने भागते हुए पीछे नहीं देखा | ) बागेश्वर में १३ जनवरी १९२१ को उतरैणी के दिन अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर के सामने कुमाऊं केशरी बद्री दत्त पांडे जी के कहने पर ‘कुली बेगार’ के सभी रजिस्टर वहाँ संगम में बहा दिए गए | इस तरह उत्तराखंड में ‘कुली बेगार’ (बिना पारिश्रमिक दिए जोर-जबरदस्ती वहाँ के लोगों से बोझा/ डोली/ कमोड उठवाना) के कलंक का अंत हुआ | अंग्रेजों के जुल्म की कभी ख़त्म नहीं होने वाली बिरखांत बहुत लम्बी है | उतरैणी की शुभकामानों के साथ अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
१४.०१.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                    दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                    उतरैणी/मकरैणी/मकर संक्रांति/उतरायण

           माघ क महैण एक पैट ( १४ जनवरी) हुणि उतरैणी / घुघुतीत्यार / उतरायनी मनाईगे | पौराणिक मान्यता क अनुसार आज पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करीं जो एक खगोलीय घटना छ जैहुणि ‘संक्रमण’ या ‘संक्रांति’ लै कई जांछ | य ई दिन बटि शिशिर ऋतु लै शुरू है जींछ | य त्यार पुर देश में अलग-अलग नामों ल मनाई जांछ | उत्तराखंड में ‘उतरैणी’ या ‘मकरैणी’ या ‘मकर संक्रांति’ क नाम ल, असम में ‘बीहू’, हिमाचल- जम्मू कश्मीर- पंजाब में लोहड़ी, बंगाल में ‘संक्रांति’, तमिलनाडु में ‘पोंगल’, उत्तरप्रदेश में ‘संकरात’, बिहार-पूर्वी उत्तरप्रदेश में ‘खिचड़ी’, गुजरात में ‘उतरायण’, ओडिशा में ‘मित्रपर्व’, और महाराष्ट्र में ‘तिलगुल’ आदि नाम ल मनाई जांछ |

      य दिन लोग नदियों में करी स्नान कैं पुण्य माननी और पाप कटण कि बात करनी | केवल स्नान करण ल पुण्य कसी मिलल और पाप कसी कट जाल, य एक अटपटि बात छ | पाप त तबै कटल जब वीक प्रायश्चित ह्वल और उ पाप कर्म कि पुनरावृति नि हो | पुण्य तब मिलल  जब हम नदी में कारसेवा (श्रमदान) करि बेर नदी की गन्दगी साफ़ करुल  | यां त हम नदी में उ सब कुछ डाइ औनूं जो हमूकें नि चैन | स्वर्ण मंदिर अमृतसर में लै लोग स्नान करनीं पर कारसेवा ल तालाब में जमी लित कैं लै साफ़ करनीं | हम जां लै जानूं वां कुछ न कुछ गन्दगी जरूर डाइ औनूं | दुनिय में सबूं है ठुल पहाड़ ऐवरेस्ट में लै शेरपाओं और पर्वतारोहियों द्वारा डाई कुड़ -कभाड़ क ढेर लगी हुई छ |

     उतरैणी क दिन देश में कएक नदियों क किनार या पड्यावों में लै म्याल लागनीं |  उत्तराखंड क बागेश्वर में गोमती-सरयू नदियों क संगम पर य दिन भौत ठुल म्यल लागूं जमैं खाश तौर पर स्थानीय चीजों क   व्यापार हुंछ | य ई म्यल बै उत्तराखंड में पसरी ‘छुआछूत’ ख़तम करण क  श्रीगणेश लै हौछ | जो लोग ‘छुआछूत’ कैं माननी उनार बार में वांक लोग कछी कि “खणी- निख़णी आब बागसर देखियाल”, अर्थात बागसर क म्याल में कैक लिजी अलग रस्या बनूण क क्वे सवाल पैद नि हुछी | कौतिक में बामण, जिमदार, शिल्पकार, हिन्दू, मुसईय सब आपण हिसाब ल खाण-पीण जस मौक लाग उस करि ल्हीनी |  उतरैणी क दिन कवा  कैं बलै बलै बेर नानतिन हलू, खीर, लगड़- बढ़ खऊनी और बद्याल में कवै हूं बै कएक काल्पनिक चीज मांगनी | शीत काल में पहाड़ में कवा कैं बचूण क लिजी य परम्परा चली हुई छ |
      बागसर में उतरैणी म्यल क स्वतंत्रता आन्दोलन में लै भौत ठुल योगदान छ |  “लड़ाइ लड़ी जब देश ल आजादी कि उत्तराखंडी पिछाड़ी नि राय, फिरंगियों कैं यस खदेड़ौ उनूल भाजनै पिछाड़ी नि चाय |” बागसर  में १३ जनवरी १९२१ हुणि उतरैणी क दिन अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर क सामणि कुमाऊं केशरी बद्री दत्त पांडे ज्यू क कौण पर ‘कुली बेगारा’ क सब रजिस्टर वां संगम में बगै देईं | उ दिन बै उत्तराखंड में ‘कुली बेगार’ (बिना मजूरी दिए जोर-जबरदस्ती वां क लोगों हैं बै ब्वज / डोलि / कमोड उठौण ) क कलंक क अंत हौछ |  अंग्रेजों क जुल्म की कभैं ख़तम नि हुणी बिरखांत भौत ठुलि छ | सबै पाठकों और कुर्मांचल अखबार कि पुरि टीम कैं उतरैणी कि शुभकामना |

पूरन चन्द्र काण्डपाल,रोहिणी दिल्ली
१४.०१.२०१६


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                                                                            बिरखांत- ५८ : चन्द्र सिंह राही : प्रेम का जोगी

     राही जी ( चन्द्र सिंह राही) चले गए १० जनवरी  २०१६ को | अभी ७३ वर्ष के ही थे परन्तु यात्रा का काल चक्र पूर्ण हो चुका था | विगत दो दशकों से मैंने कई बार उनके गीत सुने | गीत प्रस्तुति का उनका एक निराला ही अंदाज था | याद करिए उनकी गजल “कुतगली ना लगौ |” उन्हें हुड़का सहित कई वाद्यों की महारथ हासिल थी | वे लोक गायक तो थे ही एक गीतकार भी थे | चार दशकों तक उन्होंने लोकगायकी में लोगों का मनोरंजन किया | ‘हिलमा चांदी को बटना, भाना हो रंगीली भाना , स्वर्ग तारा य जुनाली राता.., जैसे कई गीतों कों उन्होंने स्वर दिया जिनके मुखड़े भुलाए नहीं भूलते |

      राही जी ने ‘दिल को उमाल, रमछौल, धै और गीत गंगा’ आदि पुस्तकैं भी लिखी | गीत गंगा १२६ गढ़वाली गीतों का संग्रह है जो २०१० में प्रकाशित हुआ | इस गीत गंगा में नदी, पहाड़, जंगल, घर-आगन, लोक  जीवन, पशु-पक्षी, मौज-मस्ती, हंसी- खुशी और मिलन- बिछोह के गीत हैं | राही जी अपनी भाषा के प्रति समर्पित थे |  मंच संचालकों को कई बार वे अपने एक अद्भुत अक्खड़ अंदाज में कह भी देते थे, “आपणी भाषा में बोलो यार, कतु क मिठी भाषा छ हमरि” |  वे कन्हैयालाल डंडरियाल सहित कई गढ़वाली कवियों की चर्चा भी करते थे | ‘ प्रेम को जोगी’ गीत में वे कह गए, “ तेरा प्रेम को भूको छौं मुखडी ज़रा बतै जा |”

    राही जी की कला का श्रृंगार भी हुआ | उन्हें कएक सम्मान भी मिले | इनमें एक सम्मान उत्तराखंड भाषा संस्थान, उत्तराखंड सरकार, देहरादून से भी उन्हें वर्ष २०११-१२ का ‘बालम सिंह जनौटी लोकभाषा सम्मान’ १२ दिसंबर २०११ को प्रदान किया गया | हम समारोह में साथ ही थे | आयोजन के समापन के बाद उस दिन वे मेरे साथ दून हॉस्टल देहरादून  से रेलवे स्टेशन तक साथ आए | इस दौरान उनसे उनके गीत गायन यात्रा संबंधी कई बातें हुई | राही जी वास्तव में प्रेम के भूखे थे जिसे हमने उनके गीत, संगीत और भाषा व्यवहार में लहलहाते देखा | राही जी की जीवन यात्रा भलेही थम गयी परन्तु उनकी ‘गीत गंगा’ की गंगोत्री कभी नहीं थमेगी | राही जी को हार्दिक श्रधांजलि | अगली बिरखांत में कुछ और..
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पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५

१८.०१.२०१६


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                                                                                             दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                                          हाम नना देखि डरै फै गोयूं

    बेई चनरदा मिलीं और अच्याला क नना क बार में कुछ ज्यादै चिंता में डुबि रौछी | बतूण लागीं, “ क्ये कई जो हो महाराज हाम आपण नना देखि डरै फै गोयूं और डरा मारि हमूल नना हैं क्ये लै कौण छोड़ि हालौ | हर दुसार दिन खबर मिलीं या टी वी में हाम देखनूं कि इज या बौज्यू कि डांट पड़ण पर फलाण नान घर बै भाजि गो या फंद पर लटकि गो | य डरा क वजैल हमूल लै नना हैं क्ये कौण छोडि है जो भलि बात न्हैति | हमूल नना कैं टैम दीण चैंछ | प्यार ल समझै बेर लै नान मानि जानी  पर य काम बिलकुल नानछिना यानै शैशव काल बै शुरू हुण चैंछ | जता लै हमू कैं नना में क्वे लै अवगुण नजर ओ, हमूल धृतराष्ट्र या गांधारी नि बनण चैन | दुर्योधना क अवगुणों कैं वीक इज-बौज्यू ल देखीय क अणदेखी करि दे | उनूल गुरु द्रोणाचार्य कि बात कैं लै अणसुणी करि दे |

        जब लै क्वे हमूं हैं हमार नना कि बुराई करनी हमूल नक् मानण क बजाय चुपचाप विकि बात कैं जाचण –परखण चैंछ | कम उमरा क नान लै हमार दिई मोबाइल या कंप्यूटर पर उत्तेजनात्मक दृश्य देखें रईं | देश में १३ साल है कम उम्र क ७६ % नान रोज यू ट्यूब में वीडियो देखें रईं जनूल आपण अभिभावकों कि इजाजत ल आपण एकाउंट बनै रौछ | नना कि भाषा लै गन्दी या अशिष्ट है गे | ऊँ आपण आम-बुबू कैं लै क्ये नि समझन और नै उनरि सुणन | उनू कैं घर का खाण लै भल नि लागन | ऊँ चाउमिन, मोमोज, बर्गर, चिप्स, फिंगर फ्राई और बोतल बंद पेय ल म्वाट लै हूं फैगीं या उनरि तंदुरुस्ती बिगड़ण फैगे |  घर में लै हाम नना पर क्ये खाश अनुशासन नि लगून और उनुकें ज्यादै पुतपुतै दिनू | रतै उठण बटि रात स्येतण तक नना लिजी टैम क कैद-क़ानून हुण चैंछ | खेल और टी वी पर एक-एक घंट है ज्यादै टैम दींण ठीक न्हैति | १५ अगस्त या २६ जनवरी कि छुट्टी देर तक स्येतण क लिजी नि हुनि  बल्कि जल्दि उठि बेर य दिन कैं मनूण क लिजी हिंछ |

        कुछ लोग आपण अवयस्क लाडलों कैं स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार चलूण कि खुलि छूट दीं रईं |  गली-मुहल्ल में अक्सर य दृश्य हाम देखैं रयूं | अवयस्क लाड़िल आपण वाहन ल नजीक में खेलणी नना कैं कुचलि द्युछ | कैकै निर्दोष नान मारी गाय और य लाड़िल कैं सजा लै नि हुनि क्यलै कि उ अवयस्क मानी जांछ | रात में यूं जोर जोरैल हॉर्न बजै बैर लोगों कैं परेशान करि बेर उड़नछू है जानी | पुलिस सब चैरीं पर चुप भैटी रैंछ | यास नना क अभिभावकों क लेसंस रद्द हुण चैंछ | हाल कि रिपोट क अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में हमार देश में हर साल डेड़ लाख बेक़सूर लोग मारी जानी और तीन लाख लोग घैल है जानी | य संख्या में अवयस्क लाडलों द्वारा मारी गईं निर्दोष लोग लै शामिल छीं |

      नना दगै देशप्रेम और शहीदों कि चर्चा लै हुण चैंछ | हमूल आपण नना क व्यवहार, बोलचाल, संगत, आदत, आहार और स्वच्छता पर जरूर  नजर धरण चैंछ | अगर शुरू बटि अनुशासन ह्वल तो अघिल जै बेर डांटण क सवाल पैद नि हवा | नना दगै अभिभावकों क मित्रवत व्यवहार ल उनर भविष्य भल रांछ और नान एक समझदार नागरिक बननी | तो अंत में य कूण चानू कि आपण नना लिजी टैम जरूर निकालिया नतर एक दिन पछताण पड़ि सकूं |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल ,रोहिणी दिल्ली
21.01.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                     बिरखांत – ५९ : प्रथा- परम्परा और क्रियान्वयन 

      उत्तराखंड के सरोकारों से सराबोर होने की बात तो हम सब करते ही हैं परन्तु अपने हिस्से का क्रियान्वयन हम नहीं करते | हम ‘बन बचाओ, नदी बचाओ, पेड़ लगाओ, प्रकृति से छेड़छाड़ मत करो और शराब-धूम्रपान-गुट्का से उत्तराखंड को बचाओ’ भी कहते हैं | हम गंगा-यमुना की स्वच्छता बहश में भागीदारी भी करते रहे हैं | परन्तु न हमें पेड़ लगाने की चिंता हैं, न पर्यावरण बचाने की और न नदी बचाने की |  उदहारण के लिए दिल्ली में यमुना किनारे स्थित निगम बोध श्मशान घाट की चर्चा करते हैं |

      यहाँ पर उत्तराखंड एवं कुछ अन्य जगहों के लोग शवदाह यमुना नदी के किनारे करते हैं और चार-पांच घंटे में शव दाह कर सम्पूर्ण राख-कोयला यमुना में बहा देते हैं | काला गंदा नाला बन चुकी यमुना की दुर्दशा निगमबोध घाट पर देखी नहीं जा सकती है | यहाँ पर शवदाह की व्यवस्था सी एन जी फर्नेश से भी है | छै फर्नेश (भट्टी) चालू  हालत में हैं | एक शवदाह में एक घंटा बीस मिनट का समय लगता है | शवदाह में समय तो बचता ही है एक पेड़, पर्यावरण, हवा और यमुना भी बचती है और शवदाह में कर्मकांड की वे सभी क्रियाएं भी की जाती हैं जो लकड़ी के दाह में की जाती हैं | शवदाह में सी एन जी खर्च मात्र एक हजार रुपये है जबकि लकड़ियों का खर्च ढाई से पांच हजार रुपये तक हो जाता है | अक्सर फट्टे, लकडियां, चीनी दोबारा मंगाई जाती हैं क्योंकि फट्टे और चीनी में मुर्दाघाट में भी कमीशन का यमराज बैठा है |

      यह सब जानते हुए भी लोगों का रुझान सी एन जी दाह के प्रति नहीं दिखाई देता | अन्धविश्वास की जंजीरें उन्हें बांधे हुए हैं | तर्क दिया जाता है कि ‘हमारी परम्परा लकड़ी में ही जलाने की है और लकड़ी में जलाने से ही मृत व्यक्ति सीधा स्वर्ग जाएगा |’ यमुना के मायके वाले उत्तराखंडियों को तो यमुना की अधिक चिंता होनी चाहिए | यदि मानसिकता नहीं बदली तो प्रधानमंत्री के बनारस को क्योटो बनाने के सपने का क्या होगा ? वहां भी पण्डे घाटों की स्वच्छता में कुछ न कुछ रोड़ा अटका रहे हैं | पेड़, पर्यावरण, प्रदूषण एवं नदियों की चिंता के साथ आज रुढ़िवादी एवं अंधविश्वासी परम्पराओं-प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता भी है | क्या हम सोसल मीडिया के भागीदार इन मुद्दों पर जनजागृति करेंगे ? वक्त आने पर इसे अपनायेंगे या अपनाने को कहेंगे ? या सिर्फ दूसरों से ही इस कदम की अपेक्षा करेंगे ? हो सके तो इस मुद्दे पर चर्चा करें और वक्त आने पर क्रियान्वयन में मदद करें |

          कौन क्या कर रहा है, बात यह नहीं है | मुख्य बात है कि हम क्या कर रहे हैं ? कथनी –करनी में अंतर हम रोज देखते हैं | शराब-धूम्रपान-गुट्के के विरोध में मंच से कविता पाठ करने वाले तथा लम्बे-लम्बे भाषण देने वालों को मैंने उसी समारोह के समापन के तुरंत बाद शराब गटकते, सिगरेट पीते और गुट्का फांकते देखा है | पर उपदेश.. के प्रवचनों की हमारे इर्द-गिर्द बाड़ आई है | हम स्वयं से इन सवालों को पूछें और अपने हिस्से का क्रियान्वयन से कतराएं नहीं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
२२.०१.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                             बिरखांत-६० :67वां गणतंत्र दिवस  – कमर कसने का दिन
 
            प्रतिवर्ष जनवरी महीने में चार विशेष दिवस एक साथ मनाये जाते हैं | 23,  24,  25 और 26  जनवरी |  23 को नेताजी सुभाष जयंती, 24 को राष्ट्रीय बलिका दिवस ( इस दिन 1966 में श्रीमती इंदिरा गाँधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थी ), 25 को मतदाता जागरूकता दिवस और 26 को 1950 में हमारा संविधान लागू हुआ था | इस वर्ष से 22 जनवरी को ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ दिवस भी मनाया जाने लगा है | हमने विगत 66 वर्षों में बहुत कुछ पाया है और देश में विकास भी हुआ है परन्तु बढ़ती जनसंख्या ने इस विकास को धूमिल कर दिया | 66 वर्ष पहले हम 43 करोड़ थे और आज 125 करोड़ हैं अर्थात उसी जमीन में 82 करोड़ जनसंख्या बढ़ गई |

                हमने मिजाइल बनाए, ऐटम बम बनाया, अन्तरिक्ष में धाक जमाई, कृषि उपज बढ़ी, साक्षरता दर जो तब 2.55% थी अब 74.1% है | रेल, सड़क, वायुयान, उद्योग, सेना, पुलिस, अदालत आदि सब में बढ़ोतरी हुई | इतना होते हुए भी हमारी लगभग 30% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है जिनकी प्रतिदिन की आय पचास रुपए से भी कम बताई जाती है | देश की आधी जनता के पास शौचालय नहीं हैं | कई स्कूलों और आगनबाड़ी केन्द्रों में पेय जल नहीं है और 25% जनता तक अभी बिजली नहीं पहुँची है | प्रतिवर्ष हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं | अदालतों में करीब तीन करोड़ से भी अधिक मामले लंबित हैं और एक केस सुलझाने में कई वर्ष लग जाते हैं | ब्रेन ड्रेन भी नहीं थमा है |

           विदेशों की नजर में हम निवेश के लिए सुरक्षित नहीं हैं | 187 देशों में हमारा नंबर 169 है अर्थात उनकी नजर में 168 देश उनके लिए हमसे अधिक सुरक्षित हैं | विश्व के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में हमारा नाम नहीं है | बताने के लिए तो बहुत कुछ है जिससे मनोबल को ठेस लगेगी | प्रतिवर्ष राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड हमारा मनोबल बढ़ाती है | हमारे सुरक्षा प्रहरी हिम्मत और शक्ति के परिचायक हैं जो सन्देश देते हैं कि हमारी सीमाएं सुरक्षित और चाकचौबंद हैं | हमें अपने देश में ईमानदारी के पहरुओं पर भी गर्व है | हम अभी विकासशील देश हैं क्योंकि हमारे पास विकसित देशों जैसा बहुत कुछ नहीं है |

             भारत को विकसित राष्ट्र बनने में देर नहीं लगेगी यदि ये मुख्य चार दुश्मनों – भ्रष्टाचार, बेईमानी, अकर्मण्यता और अंधविश्वास से उसे निजात मिल जाय | इसके अलावा नशा, आतंकवाद, अशिक्षा, गरीबी, गन्दगी और साम्प्रदायिकता भी हमारी दुश्मनों की जमात में हैं | यदि हम इन दस दुश्मनों को जीत लें तो फिर भारत अवश्य ही सुपर पावर समूह में शामिल हो सकता है | इन दुश्मनों की चर्चा हमारे राष्ट्र नायकों सहित देश के कई प्रबुद्ध नागरिकों ने पहले भी कई बार की है | आइये इस गणतंत्र पर कमर कसें और इन सभी दुश्मनों को जड़ से उखाड़ फेंकने में सहयोग करते हुए देश को महाशक्ति समूह में शामिल करें | आप सबको 67वे गणतंत्र दिवस की बधाई |  अगली बिरखांत में कुछ और ...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
25.01.2016

 

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