Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 264247 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                          बिरखांत-67 : रेल-सड़क रोक कर क्यों जलाओ हो देश ?

     हम सभी अपने किसी भी भाषण में स्वयं को देशप्रेमी या राष्ट्रवादी बताते हैं, भारत माता की जय बोलते हैं, वन्देमातरम भी जोर शोर से कहते हैं | देश के लगभग सभी लोग देश से प्यार करने की बात भी कहते हैं | इस बीच हम अपनी मांग मनवाने के लिए उग्र आन्दोलन करते हैं और अपने सभी भाषणों को भूल कर राष्ट्र की सम्पति को नष्ट करने में लग जाते हैं | हम रेल- सड़क मार्ग अवरुद्ध करते हैं, बाजार बंद करवाते हैं, राष्ट्र की सम्पति एवं व्यक्तिगत सम्पतियों पर आग लगाते हैं, उसे बरबाद करते हैं या लूट मचाते हैं | इस तरह अपनी उग्र हरकतों से देश का अरबों रुपए का नुकसान होता है, जान-माल की हानि होती है, राष्ट्र की छबि पर धब्बा लगता है और दुनिया हमारे देश में इस हुड़दंग को देख कर यहां आने से या हमारे देश में धन लगाने के लिए कतराने लगती है |

      इस तरह के अनियंत्रित, उग्र एवं हिंसक आन्दोलन हमने हाल के दिनों में राजस्थान (गुर्जर आन्दोलन), आंध्रप्रदेश (कापू समुदाय आन्दोलन), गुजरात (पटेल आन्दोलन) और हरयाणा (जाट आन्दोलन) में देखें और भुगते हैं | सभी आन्दोलनों में लोगों ने अपने हिसाब से आरक्षण  की मांग की है | मांग जो भी हो, आन्दोलन का तरीका जनता को परेशान करने का नहीं होना चाहिए | १४ फरवरी २०१६ से जो जाट आन्दोलन चला है उससे तो जनता बहुत दुखी हुई है |

       एक हजार से अधिक ट्रेन रद्द हो गए, बसें जला दी गयी, रेलवे स्टेशन फूक दिए, कई संपतिया नष्ट कर दी या लूट ली, 19 जानें चली गयी और कई लोग घायल हो गए| सडकों से सार्वजनिक वाहन लगभग बिलकुल गायब हो गए, मुनक नहर तोड़ कर दिल्ली का पानी  बंद कर दिया, आम लोगों के मकान, दुकान और वाहन जला दिए | आखिर आपने जनता पर अपना गुस्सा क्यों निकला ? 21 फरवरी को जब हमारी सेना के दो कैप्टन और तीन जवान कश्मीर में देश के लिए अपनी शहीदी दे रहे थे उसी समय हरयाणा में कुछ लोग देश को जला कर नष्ट कर रहे थे | राष्ट्र की संपत्ति को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी | यह हमारे देश का दुर्भाग्य है |

    अपनी मांग मनवाने के लिए जनता को परेशान करने और देश की संपत्ति नष्ट करने के बजाय आप उन लोगों तक जाते या उनसे निबटते जिनसे आपको शिकायत थी | आपने आम जनता को परेशान कर उसका जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया | कोई अस्पताल नहीं पहुँच सका, कोई बेमौत मर गया, कोई कार्य पर नहीं जा सका, कोई परीक्षा या साक्षात्कार में नहीं पहुँच सका | प्रजातंत्रीय व्यवस्था में आन्दोलनों में हिंसा का कोई स्थान नहीं है | आपने लोगों को किस बात की सजा दी ?

     अन्ना हजारे, मेधापाटकर आदि अहिंसक आंदोलनों से अपने उद्देश्य तक पहुंचे हैं | अत: आन्दोलन करिए, अनशन करिए, खूब करिए पर जनता को परेशान मत करिए और राष्ट्र की सम्पति नष्ट मत करिए | आप अपनी मांग मनवाने के लिए किसी बेक़सूर का रास्ता न रोकें, उस पहुँचने दें उसके गंतव्य तक, पैदा करने दें उसे एक रोटी बिना किसी भय –रुकावट के | अहिंसक तरीके से आपको जन-जन की सहानुभूति मिलती जबकि हिंसक रूप से कोई भी घृणा का पात्र बन जाता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.02.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                 दिल्ली बै चिठ्ठी ए रै

                                                                            अंधविश्वास क विरोध पैली लै हौछ

 
      संत कबीर ज्युल त १४ऊँ सदी में पाखण्ड और अंधविश्वास क घोर विरोध करौ | हमार उत्तराखंडी कवियों शिवदत सती, गौरदा, गिरदा, शेरदा बटि  आत्माराम गैरोला, भावानीदत्त थपलियाल, चक्रधर बहुगुणा, अदित्यराम दुदपुड़ी तक सबूंल समाज में व्याप्त रूढ़ीवाद और पाखण्ड क खूब विरोध करौ | साहित्य अकादमी भाषा सम्मान प्राप्त, कएक किताबों क रचियता रामनगर निवासी मथुरादत मठपाल ज्यू द्वारा संकलित ‘दुदबोली’ में शिवदत सती ( १८४८-१९४० ई.) ग्राम भड़गांव, जिला अल्मोड़ा रचित ‘मित्र विनोद’ क कुछ लैन आज कि चिठ्ठी में उनुकें श्रधांजलि स्वरुप प्रस्तुत करें रयूं -
 
ज्युन छन दुःख दियो, करो बरबाद; मरी बेर गयाकाशी करले सराद |
मरिया की गयाकाशी, माटी लीण जायो; ज्युना कण दुःख दियो जरा नि लजायो |
सराद में आई बेर, मारिया नि खाना; बामण ज्यू खाई जानी बिरादर नाना |
के जाणनी पतड़िया करमों का हाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े मॉल |
 
खानदानी बामण त है गईं नौकर; पितलिया पतड़िया है गीं घर घर |
ठगणियां बामण क मानी जले कयो; तनरो त येसो कोणों रुजगार हयो |
नि जानना अनपढ़ यो छ पोप जाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |
 
आपण लिजिया सब बामण लिजानी; यजमान बहकाई बेर बैठी-बैठी खानी |
कठुवा बामण ले रचो गरुड़ पुराण; साँची मानी जानी सब यती अनजान |
गरुड़ पुराण छा यो बड़ो झूठो जाल ; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |
 
परबुद्धि अकल में बासी जौ कफुवा; मरिया का लिजिय जो लागौछ ढपुवा |
नि पुजनो नि पुजनो मारिया का उती; बामण को रुजगार लिजाण की बुती |
नि जाणनै मूरख तु ठगण की चाल; परवत रौण भलो झन पड़े माल |
 
बामण ले फोड़ी दियो भारत को दान; कुनली मिलाई बेर होई जानी रान |
बामण का घर देख विधवों को ठाल; पर्वत रौण भलो झन पड़े माल |

भटकछै तीर्थों में कती छन राम; हिरद में ध्यान लगो उती वीको धाम |
शिवदत्त नौ छ मेरो शिबुवा कै दिनी; बिगड़िया खापड़ी का अपयश लिनी |
कथ मरूं मरनेसू हरै गोछ काल: परवत रौण भलो झन पड़े माल |

      शिव दत्त सती ज्यू आज बै ७६ वर्ष पैली १९४० में दिवंगत है गईं | उनूल समाज में व्याप्त विषमताओं, अंधविश्वास, छुआछूत, रूढ़ीवाद क जम बेर   विरोध करौ | यसिके लखनऊ निवासी वरिष्ठ लेखक प्रयाग दत पंत लै समाज कैं जगाते रौनी | आज हम विज्ञान क युग में रौनूं और हमूल उई प्रथा – परम्परा कैं अपनूण या मानण चैंछ जैक क्वे वैज्ञानिक आधार हो | गरुड़ पुराण म्यर लै सुणी छ | सवाल पुछण पर वाचक ज्यू ल बता “ महाराज हाम त जे किताब में लेखि रौछ उई बतूं रयूं, हमूहैं क्ये सवाल नि पुछो |” मित्र विनोद क लेखक ल ज्ये लै गरुड़ पुराण क बार में लेखि रौछ मी उ दगै सहमत छ्यूं |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
25.02.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                           बिरख्न्त-68 : जे एन यू - एच यू में राजनीति की रतनजोत
 
     देश के दो बड़े शिक्षा संस्थानों जे एन यू (जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी) और एच यू (हैदराबाद यूनिवर्सिटी) ने आजकल मीडिया और राजनीतिज्ञों का ध्यान अधिक आकृष्ट कर रखा है | वैसे भी मीडिया सबसे अधिक स्थान राजनीति को ही देती है | जवान- किसान, खेत-खलिहान, भाषा-संस्कृति, व्यापार- रोजगार जैसे विषयों को वांच्छित स्थान नहीं मिलता | जे एन यू में कुछ मनचलों- सिरफिरों ने देशद्रोही नारेबाजी करके इस संस्थान की प्रतिष्ठा पर दाग लगाने का प्रयास किया | अब तक जो समाचारों में चल- बह रहा है उसके अनुसार कुछ ही ऐसे सिरफिरे थे जिन्होंने यह घृणित –कुंठित एवं देशद्रोही कुकृत्य किया |
 
    देश में जब भ्रष्टाचार विरोधी और लोकपाल समर्थक अन्ना आन्दोलन (२०१३) चल रहा था तब कुछ लोगों ने पूरी संसद पर अंगुली उठाई थी, जो एकदम गलत था | हमारे प्रजातंत्र की सर्वोच्च सभा संसद में सभी भ्रष्ट, अपराधी या दागी नहीं हैं | वहां सच्चे और ईमानदार जन-नेता भी हैं | कुछ लोगों की वजह से हमें अपनी संसद के प्रति अशिष्टता प्रकट नहीं करनी चाहिए | इसी तरह कुछ कुंठित सिरफिरों की वजह से सम्पूर्ण जे एन यू को भी बदनाम करना अनुचित है | देश का पूरा जनमानस चाहता है कि इस संस्थान पर कालिख पोतने वालों को सख्त से सख्त सजा मिले | जांच चल रही है और हमें अपने जांच तंत्र और न्याय के मंदिरों पर भरोसा रखना चाहिए | शिक्षा संस्थान ही क्यों, देश के किसी भी कोने में देशद्रोह की अवाज को सख्ती से कुचला जाना चाहिए |
 
    इसी तरह हैदराबाद यूनिवर्सिटी में छात्र आत्महत्या से भी देश दुखित है | आखिर ऐसे संस्थान में एक छात्र आत्महत्या क्यों करता है ? इसकी भी उचित जांच होनी चाहिए | इन दोनों मुद्दों पर अब सड़क से संसद तक  जम कर राजनीति की रतनजोत का रंग चढ़ा है | राजनैतिक दल सबसे पहले अपना वोट बैंक देखते हैं | किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बुलवाया जाता है फिर पल्ला झाड़ दिया जाता है या खंडन कर के मीडिया पर कही हुई बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप मड़ दिया जाता है |  एक समाचार पत्र के अनुसार (सूचना नेट में भी है ) जे एन यू में कई अनैतिक, असामाजिक और अशोभनीय कृत्य हुए हैं जिनकी चर्चा करना यहां अशोभनीय एवं संदेहास्पद लग रहा है |
 
    हमारी शिक्षा के ये उच्च संस्थान देश के खजाने के बदौलत भावी कर्णाधारों का निर्माण करते हैं | यहां अनुशासन की कड़ी नियमावलियां हैं जिनके पालन में कोताही नहीं होनी चाहिए | इन संस्थानों को नशा, धूम्रपान, अश्लीलता, अनैतिकता आदि व्यभिचारों से बचना चाहिए | राष्ट्र यहां अध्ययन करने वालों, यहां के प्रशासन और स्टाफ से यही उम्मीद करता है कि यहां केवल राष्ट्र निर्माण की ही गतिविधियां हों तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के नाम पर एक- दूसरे पर कीचड़ उछालने की राजनीति नहीं हो | यही आशा- अपेक्षा देश के सभी शिक्षा संस्थानों से भी की जाती है ताकि भारत का नाम विश्व के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में शामिल हो सके |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
२७.०२.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                               जे एन यू - एच यू में राजनीति कि रतनजोत

     देशा क द्वि ठुल शिक्षा संस्थानों जे एन यू (जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी) और एच यू (हैदराबाद यूनिवर्सिटी) ल अच्याल मीडिया और राजनीतिज्ञों क ध्यान आपण तरफ खैंचि रौछ | उसी लै मीडिया सबूं है ज्यादै जागि राजनीति कणी द्यूंछ | जवान- किसान, खेत-खलिहान, भाषा-संस्कृति, व्यापार- रोजगार जास विषयों कैं उतू जागि नि मिलनि जतू मिलण चैंछ | जे एन यू में कुछ उपटापियों ल देशद्रोही नारेबाजी करि बेर य संस्थान कि प्रतिष्ठा पर दाग लगूण कि खतरनाक कोशिश करी | आज तक जो समाचारों में बगि- बहि बेर हमार सामणी औरौ, यैक हिसाब ल कुछ यास सिरफिर गुंड छी जनूल य घृणित –कुंठित एवं देशद्रोही कुकृत्य करौ |

    देश में जब भ्रष्टाचार विरोधी और लोकपाल समर्थक अन्ना आन्दोलन (२०१३) चलि रौछी तब कुछ लोगों ल पुरि संसद पर आंऊ उठा, जो एकदम गलत छी | हमार प्रजातंत्र कि सर्वोच्च सभा संसद में सबै भ्रष्ट, अपराधी या दागि न्हैति | वां सच्च और ईमानदार जन-नेता लै छीं | कुछ लोगों कि वजैल हमूल आपणी संसद क प्रति अशिष्टता प्रकट नि करण चैनि | यसिके कुछ कुंठित सिरफिरों कि वजैल पुरि जे एन यू कैं लै  बदनाम करण ठीक न्हैति | देश क पुर जनमानस चांछ कि य संस्थान पर कालिख पोतणियां कैं सख्त है सख्त सजा मिलो | जांच चलि रैछ और हमुकें आपण जांच तंत्र और न्याय क मंदिरों पर भरौस करण चैंछ | सबै शिक्षा संस्थानों सहित देशा क क्वे लै कुण पर देशद्रोह कि उठी आवाज कैं सख्ती क साथ कुचली जाण चैंछ |

    यसिके हैदराबाद यूनिवर्सिटी में छात्र आत्महत्या ल लै देश दुखित छ  | आखिर यास संस्थान में एक छात्र आत्महत्या क्यलै करूं ? यैकि लै सही जांच हुण चैंछ | यूं द्विये मुद्दों पर आब सड़क बै संसद तक जम बेर  राजनीति कि रतनजोत क रंग चढ़ि रौछ | राजनैतिक दल सबूं है पैली आपण वोट बैंक देखनी | क्वे ले मुद्द पर पैली क्ये न क्ये कवाई जांछ फिर पल्ल झाड़ी जांछ या वीक खंडन करि बेर मीडिया पर कई हुई बात कैं तोड़-मरोड़ि बेर पेश करण क आरोप मड़ दिई जांछ | एक समाचार पत्र क अनुसार (सूचना नेट में लै छ ) जे एन यू में कएक अनैतिक, असामाजिक और अशोभनीय काम हईं बल जनरि चर्चा करण यां अशोभनीय एवं संदेहास्पद जस लागें रौ |

    हमरि शिक्षा क यूं उच्च संस्थान देशा क खजान कि बदौलत भावी कर्णाधारों क निर्माण करनी | यां अनुशासन क सख्त क़ानून छीं जनर  पालन में कोताही नि हुण चैनि नहीं | यूं संस्थानों कैं नश, धूम्रपान, अश्लीलता, अनैतिकता आदि व्यभिचारों है बचाई जाण चैंछ | राष्ट्र यां  अध्ययन करणी शिक्षार्थियों, यांक प्रशासन और स्टाफ हूं बटि यई उम्मीद करूं कि यां केवल राष्ट्र निर्माण की गतिविधि हो और अभिव्यक्ति कि  स्वतंत्रता और प्रजातंत्र क नाम पर एक- दूसरै पर कीचड़ लाफाउण कि राजनीति नि हो | यई आस –उम्मीद हाम देशा क सबै शिक्षा संस्थानों हुणि बटि लै करी जैंछ ताकि भारत क नाम दुनिया क शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में शामिल है सको |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
03.03.2016

Pooran Chandra Kandpal

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  पूरन चन्द्र काण्डपाल रचित प्रकाशित पुस्तकें

हिंदी पुस्तकें

१. जागर - उपन्यास (अंधविश्वास का विरोध)
२. पोखर के मोती - कहानी संग्रह
३. स्मृति लहर - कविता संग्रह
४. कारगिल के रणबांकुरे - कारगिल युद्ध (१९९९)(पुरस्कृत)
५. ये निराले - कुछ अद्वितीय मानव (जीवनी)
६. बंजर में अंकुर - उपन्यास (बंधुवा मजदूर का दर्द)
७. शराब, धूम्रपान और आप - नशा मुक्ति जन-जागरण
८. इंडिया गेट का शहीद - लेख संग्रह
९. बचन की बुनियाद - बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण (पुरस्कृत)
१०.हिम्मत - नवज्योति नशामुक्ति विवरण
११.उत्तराखंड एक दर्पण - उत्तराखंड की झलक (लेख संग्रह)
१२.सच की परख - लेख-व्यंग्य संग्रह
१३.यथार्थ का आईना - राष्ट्रहित के १०१ मुद्दे
१४.जिन्दगी के जंग - कहानी संग्रह
१५.यादों के कलिका - कविता संग्रह
१६.उजाले के ओर - १०१ लघु लेख संग्रह
१७.माटी की महक - लेख संग्रह
 
कुमाउनी पुस्तकें

१. उकाव- होराव - गीत, कविता, हास्य-व्यंग्य
२. भल करू च्यला त्वील - कहानि संग्रह
३. मुक्स्यार - कविता संग्रह
४. उज्याव - उत्तराखंड सामान्य ज्ञान
५. बुनैद - निबंध (१०१ इस्कूली नना लिजी )
६. बटौव - कहानि संग्रह
७. इन्द्रैणि - १५४ अनुच्छेद, ३० कहानि, १६ चिठ्ठी
८. लगुल - १३ राष्ट्रपति, १४ प्र.मंत्री, ७३ अन्य
९.महामनखी - नोबेल, भा.रत्न, परमवीर, अशोकचक्र

निवास – डी- 2 / 2, सेक्टर – 15, रोहिणी दिल्ली -110089
मोब. 9871388815 , email- kandpalp@yahoo.com

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             बिरखांत-७० : महिला दिवस (८ मार्च) : नारी सम्मान –सशक्तिकरण

     प्रति वर्ष आठ मार्च को महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए महिला दिवस मनाया जाता है | दूसरे शब्दों में यदि सभी पुरुष महिलाओं का सम्मान करते, उन्हें बराबरी का हक़ देते और उनसे दुर्व्यवहार नहीं करते तो इस दिन को मनाने के जरूरत ही नहीं होती | वास्तव में आज भी नारी शक्ति को वह हक और सम्मान नहीं मिलता जिसकी वह हकदार है | महिला से हमारे मुख्य चार रिश्ते हैं- मां, बहन, पत्नी और बेटी | बाकी रिश्ते इन रिश्तों के बाद हैं | हमें नारी को प्रोत्साहन देना ही होगा क्योंकि वह परिवार की धुरी है | संसद में महिलाओं को ३३% जगह न मिलना और निर्भया केस सहित अन्य नरपिशाचों का मृत्यु दंड के बाद भी आज तक जीवित रहना सोचनीय है |

     सत्य तो यह है कि नारी के बिना परिवार है ही कहां ? विख्यात लेखक रोयडन कहते हैं “मानव को इधर-उधर भटकने से बचा कर सभ्यता के साथ रहने-बसाने का श्रेय महिला को ही जाता है |” कई अन्य विद्वानों ने भी नारी के पक्ष में बहुत कुछ कहा है जो यथार्थ है | इस बीच नारी के एक रूप कुछ बेटियों द्वारा उनके माता -पिता एवं परिजनों को जो परेशानी हुई उसकी चर्चा करनी भी जरूरी है | आजकल कुछ बेटियां माता- पिता को बिना विश्वास में लिए अपनी मर्जी से प्रेम- विवाह कर रही हैं   ( क़ानून बालिग़ लड़की को यह अधिकार है ) जो माता- पिता को कई कारणों से उचित नहीं लगता | माता- पिता बेटी को अपने अनुभवों के आधार पर समझाते हैं पर वह नहीं मानती और कोर्ट मैरीज के धमकी देती हैं | कुछ तो हौनर किलिंग के शिकार भी हो गईं जो सर्वथा अनुचित है जिससे कई घर भी उजड़ गए | कुछ लड़कियों ने बिना मां- बाप को बताये अपनी मर्जी से विवाह कर मां- बाप से किनारा भी कर लिया है | 

     विगत कुछ महीनों में प्रेम- विवाह की ऐसी ही तीन शादियां देखी |  इन तीनों ही प्रेम-प्रसंगों में लड़कियों के कहने पर माता- पिता को नहीं चाहते हुए भी बेटी के साथ सैकड़ों किलोमीटर दूर बस या रेल से धक्के खाते हुए लड़के के शहर में जाकर शादी करनी पड़ी क्योंकि प्यार के बाद लड़के ने यह शर्त रख दी थी कि शादी उसीके शहर में होगी | यदि लड़की के मां- बाप नहीं जाते तो कुछ भी घटित होने की धमकी भरी तलवार उनके सामने बेटियों ने लटकाई थी | बेटियों का यह अद्भुत प्रेम अपने प्रेमी को बारात लेकर अपने घर भी नहीं बुला सका जो बहुत चकित करता है |

     इन तीनों घटनाओं में मां- बाप ने अपनी लाडलियों से अपनी असमर्थता भी प्रकट की परन्तु वे नहीं मानीं | इन बेटियों को एक ही बात याद रही, “Everything is fair in love and war” ( प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज है ) | इस महिला दिवस पर बेटियों से इंतना जरूर कहूंगा कि प्रेम- विवाह करो परन्तु मां- बाप को इंतना मजबूर भी मत करो कि उनके आंसू आपके लिए भविष्य में सैलाब बन जाएं | ऐसा अंधा प्यार भी ठीक नहीं जिसमें हम भूल गए कि जिन मां- बाप ने हमें पाल-पोष एवं शिक्षित कर इस योग्य बनाया, हमने यौवन के नशे में उन्हें ही हर तरफ से दण्डित कर दिया | प्रेम- विवाह में मां-बाप की सहमति और आशीर्वाद  आपके हित में होगा | महिला दिवस पर सभी महिलाओं को शुभकामनाएं और पतियों से एक विनम्र निवेदन, यदि आपकी बैंक पासबुक में पत्नी का नाम अभी तक नहीं जुड़ा है तो आज ही जोड़ें क्योंकि सुख और दुःख दोनों में इसका बहुत बड़ा महत्व है | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.3.16

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                 बिरखांत-७२ :दिल्ली में उत्तराखंड एकता
 
     देश की राजधानी दिल्ली की वर्तमान जनसंख्या लगभग एक करोड़ सड़सठ लाख है जिसमें उत्तराखंडियों की संख्या लगभग बीस से बाईस लाख बताई जाती है  (कुछ लोग तो तीस लाख भी बताते हैं ) जिनकी सैकड़ों सामाजिक संस्थाएं हैं | कहीं कहीं तो एक ही क्षेत्र में कई संस्थाएं हैं | कुछ लोगों के मन में एक अच्छा विचार आया कि इन छोटी-छोटी संस्थाओं का संगठन बने ताकि हमारी एकता का प्रदर्शन राजनैतिक रूप से भी हो | इसी सन्दर्भ में दिल्ली में ‘उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली’ का गठन हुआ | मंच के कार्यकर्ताओं की अपील और उत्तम प्रयास के परिणाम स्वरुप २ अक्टूबर २०१४ को जंतर-मंतर दिल्ली में बहुत लोग एकत्र हुए परन्तु यह संख्या आशा के अनुरूप नहीं थी |
 
      ८ नवम्बर २०१४ को इसी मंच के आह्वान पर बुराड़ी दिल्ली में एक विशाल सांस्कृतिक आयोजन हुआ | इस आयोजन में भी संख्या बल का वह जलवा नहीं दिखा जिसकी उम्मीद थी | मंच के अथक प्रयास से इस वर्ष ( १४ जनवरी २०१६ ) दिल्ली सरकार ने दिल्ली में चार जगह पर उत्तराखंडी महोत्सव ‘उतरायणी’ मनाने के लिए सहयोग दिया जो सुचारु रूप से मनाया गया | इस पर्व पर बुराड़ी के निकट यमुना तीर पर १४ जनवरी २०१६ की रात्रि को अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा कुमाउनी-गढ़वाली कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया | उक्त तीनों आयोजनों में इस बिरखांत का लेखक मौजूद था | १५ जनवरी २०१६ को इस उत्सव में अच्छी भीड़ थी और आयोजन भी एक सांस्कृतिक मेले की तरह सफल रहा |

     यहां कहना पड़ेगा कि हमारी एकता रूपी बेल अभी कुछ कमजोर सी नजर आती है जिसे बहुत मजबूत ठांगरों (सपोर्ट) की जरूरत है | दिल्ली में फ़ैली सभी संस्थाओं के नेताओं में आपसी समन्वय की कमी है | हमें सबसे पहले सर्वसम्मति से अपना एक हेडमास्टर बनाना पड़ेगा जिसे हम टीम कैप्टन भी कह सकते हैं | हम में जोश और कर्म करने की ताकत तो है परन्तु कितना भी छिपाओ अखाड़ेबाजी नजर आ जाती है | हम सभी इस सत्य को जानते हैं | उत्तराखंडियों की इस कमी को देश के प्रमुख राजनैतिक दल अच्छी तरह जानते हैं इसी कारण हमें स्थानीय निकायों और विधान सभा में उचित संख्या में टिकट नहीं मिलते | यही हाल राज्य में भी है | अगर वहाँ भी एकता होती तो जो चार रेल लाइनें आजादी के बाद से अटकी पड़ी हैं उनमें आज रेल चल रही होती | हमारे ८ सांसद और ७० विधायक इस हेतु एक आवाज में कभी नहीं गरजे | इस दर्द को मैंने ‘उत्तराखंड एक दर्पण’ (२००७) और ‘माटी की महक’ (२०१२) पुस्तकों  सहित कई पत्र-पत्रिकाओं और कवि सम्मेलनों में भी व्यक्त किया | एकता की कमी से आवाज अनसुनी रह गयी | ‘न करना, न करने देना और करने वाले की टांग खींचना’ की सोच ने हमारी एकता पर ग्रहण तो अवश्य लगाया है जिसे हमें मिटाना होगा |
 
     हमारे पास जनसंख्या है, हमारी शाख भी है, सराहना भी है, हम कर्मठ भी हैं परन्तु राजनैतिक दखल दृढ़ता से नजर नहीं आता | उसके लिए जिगर बनाते हुए हमें हर हाल में एकता बनानी होगी | उन युवाओं का तहे दिल से समर्थन करना होगा जिन्होंने यह ‘एकता मंच’ बनाया है | कम से कम एक रूपया प्रतिदिन इस मंच के लिए बचाना होगा | इस बार चार जगहों पर ‘उतरायणी’ के लिए सहयोग मिला जो अगली बार अधिक होगा | हमारी भाषा अकादमी बनाने का आश्वासन दिल्ली सरकार द्वारा इन युवाओं को मिल चुका है (१४.०३.२०१६) | मित्रों एकता तभी बनेगी जब संकीर्ण मानसिकता, निज स्वार्थ और महत्वाकांक्षा को त्याग कर सर्वसम्मति बनेगी | ऐसे में फिलहाल एकता मंच को सर्वमान्य झंडाबरदारों की सख्त आवश्यकता है जो संगठन का नेतृत्व करने वाले एक सर्वमान्य ‘भगीरथ’ की खोज कर सकें | अगली बिरखांत में कुछ और...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ९८७१३८८८१५
16.03.2016
 
 

Pooran Chandra Kandpal

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    बिरखांत -७१ : क्यों नहीं होता बैंक कर्ज वसूल ?
 
       हमारे देश में तीन प्रकार के बैंक है – सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक और विदेशी बैंक | वर्तमान में २७ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हैं और कुल मिलाकर देश में लगभग ९३ व्यावसायिक (कामार्सिअल) बैंकों की लगभग एक लाख दस हजार शाखाएं हैं जिनका नियंत्रण रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (भारतीय रिसर्व बैंक) द्वारा होता है और यह पूर्ण तंत्र वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है | वर्ष १९६९ में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ | इससे पहले बैंक आम आदमी की पहुँच से बाहर थे | देश के प्रत्येक व्यक्ति को बैंकों से जोड़ने का कार्य निरंतर चल रहा है |
 
      बैंकों में लोग धन जमा करते हैं और वह धन देश की प्रगति पर लगाया जाता है, साथ ही नियमानुसार बैंकों से धन व्यापार या कामधंधे कि लिए ब्याज पर उद्यमियों को उधार भी दिया जाता है जिसे हम अग्रीम या एडवांस भी कहते हैं | जनता को अपना जमा किया हुआ धन मांग पर ब्याज सहित लौटाया जाता है | हमारे देश में बैंकों पर जनता को दृढ़ भरोसा है और बैंकों की विश्वसनियता उच्च स्तर की बनी हुई है | पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र एवं अन्य बैंकों का ऋण न शर्तानुसार लौटाया जा रहा है और न ही उसका ब्याज मिल रहा है | बैंकिंग भाषा में इस धन को एन पी ए (नान प्रोडक्टिव असेट या गैर उत्पादित आस्तियां ) कहते हैं | आज यह रकम लगभग पैंतालीस हजार करोड़ रूपए से बढ़कर कुछ ही वर्षों में तीन लाख करोड़ रुपए हो गई है |

     बैंकों का कर्ज वसूल न होना चिंता की बात है | एन पी ए बन गयी लगभग यह पूर्ण रकम बड़ी कम्पनियों या तथाकथित बड़े धनाड्य घरानों के पास है | गरीब या आम आदमी कभी भी ऋण नहीं रोकता, वह उधार लिया हुआ ऋण हर हाल में चुकाता है | आम आदमी से ऋण वसूलने में बैंक भी देरी नहीं करते, निश्चित तारीख पर दरवाजा खटखटाने पहुँच जाते हैं | देश के इन बड़े देनदारों पर हमारे बैंक कोई कार्यवाही नहीं करते क्योंकि बड़े घराने जो हुए फिर उन पर ऊपर बैठे हुए ‘बड़ों’ का हाथ भी होता है |

     क्या जनता क यह धन यों ही डूब जाएगा ? क्या क़ानून केवल गरीब या आम आदमी के लिए ही है ? क्या इस धन को वसूलने की चिंता हमारी सरकार को है ? ये प्रश्न हमारी सांस लेने वाली हवा में घुल कर घुटन महसूस करा रहे हैं क्योंकि इन प्रश्नों के पीछे न्याय की तड़फ है | सरकार को बैंकों का ऋण नहीं लौटाने वालों पर सख्त कार्यवाही  करनी चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.03.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                          दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                                     क्यलै नि हुन बैंकों क कर्ज वसूल ?         
 
       हमार देश में तीन किस्माक बैंक छीं – सार्वजानिक क्षेत्रा क बैंक, निजी क्षेत्रा क बैंक और विदेशी बैंक | वर्तमान में २७ सार्वजनिक क्षेत्रा क बैंक छीं और कुल मिलै बेर देश में लगभग ९३ व्यावसायिक (कामार्सिअल) बैंकों कि करीब एक लाख दस हजार शाखा छीं जनर नियंत्रण रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (भारतीय रिसर्व बैंक) द्वारा हुंछ और य पुर तंत्र वित्त मंत्रालय क अधीन औंछ | वर्ष १९६९ में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण हौछ | राष्ट्रीयकरण है पैली बैंक आम आदमी कि पहुँच है भ्यार छी | देश में हरेक परिवार कैं बैंकों दगै जोड़ण  क काम लगातार चलि रौछ |
 
      बैंकों में लोग धन जमा करनी और उ धन देश क विकास में लगाई जांछ और दगड़- दगड़े नियमानुसार बैंकों क धन व्यापार या कामधंधों क लिजी ब्याज पर उद्यमियों कैं उधार लै दिई जांछ जै हुणि  हाम अग्रीम या एडवांस लै कौनू | जनता कैं वीक जैम करी हुई धन मांग पर ब्याज सहित लौटाई जांछ | हमार देश में बैंकों पर जनता क पक्क  विश्वास छ और बैंकों की विश्वसनियता उच्च स्तर कि बनी हुई छ | पिछाड़ि कुछ सालों बटि सार्वजनिक क्षेत्र एवं दुसार बैंकों का ऋण न शर्तानुसार लौटाई जां रय और न वीक ब्याज मिलें रय | बैंकिंग भाषा में य धन हुणि एन पी ए (नान परफौर्मिंग असेट या गैर उत्पादित आस्तियां ) कौनी | आज य रकम लगभग पैंतालीस हजार करोड़ रूपै है बढ़ि बेर  कुछै सालों में तीन लाख करोड़ रुपै हैगे |

     बैंकों क य कर्ज वसूल नि हुण चिंता कि बात छ | एन पी ए बनि गे लगभग य पुरि रकम ठुल-ठुल कम्पनियों या तथाकथित भौत ठुल  धनाड्य घरानों क पास छ | गरीब या आम आदिम कभैं लै ऋण नि रोकन, उ कर्ज लियी युई ऋण हर हाल में चुकौछ | आम आदिम हैं बै   ऋण वसूलण में बैंक लै देर नि करन, निश्चित तारीख पर दरवाज पर लठ्ठ  खड़कै दिनी | उ गरीब बिचार आपण भान- भदेइ बेचि बेर कर्ज लियी हुई डबल और ब्याज जसी- तसी चुकै द्युछ | देशा क ठुल देनदारों पर हमार बैंक क्वे लै कार्यवाई नि करन क्यलै कि ऊँ ठुल घरान हाय और उनार ख्वार में माथ बैठी ‘ठुल- मुनावां’ क हाथ लै हय | नियम-क़ानून सब गरीब क लिजी हाय | ठुल लोग त ठुल है ठुल छेद में पांचर ठोकण या टाल लगूण जाणनेर हाय |

     क्ये जनता क य धन यसिके डुबि जलौ ? क्यलै क़ानून सिरफ  गरीब या आम आदिम कै लिजी हयौ ? क्ये य रकम कैं वसूलण कि चिंता हमरि सरकार कैं हई ? यूं सवाल हमरि सांस ल्हीणी हाव में घोई रईं जो हमू कैं घुटन महसूस करूं रईं क्यलै कि यूं सवालों क पिछाड़ि न्याय कि दरकार छ, तड़फ छ | सरकार कैं बैंकों क ऋण नि लौटूणियां पर सख्त है सख्त करवाइ भौत जल्दि करण चैंछ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
१७.०३.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                 बिरखांत -७३:  जागर नहीं है मर्ज की दवा (i)

     देवताओं की भूमि कहा जाने वाला प्रदेश उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य, स्वच्छ वातावरण तथा अनगिनत देवालयों के लिए प्रसिद्ध है | यहां के निवासी परिश्रम, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, देशप्रेम तथा जुझारूपन के लिए भी जाने जाते हैं | साक्षरता में भी अब यह प्रदेश अग्रणीय हो रहा है | रोजगार के अभाव में पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा | इस पहाड़ी राज्य में पहाड़ से भी ऊँची रुढ़िवादी परम्पराएं यहां के निवासियों को आज भी घेरे हुए है |

     ऐसी ही एक परम्परा है ‘जागर’ जिसे यहां ‘जतार’ या ‘जागरी’ के नाम से भी जाना जाता है | पूरे राज्य में यह परम्परा भिन्न-भिन्न नाम से समाज को अपने मकड़जाल में फंसाए हुए है | सभी जाति- वर्ग का गरीब- अमीर तबका इस रूढ़िवाद में जकड़ा हुआ है जिसे इस जकड़ का तनिक भी आभास नहीं है |

     इस तथाकथित समस्या समाधान के लिए आयोजित की जाने वाली ‘जागर’ में मुख्यतौर से तीन व्यक्तियों का त्रिकोण होता है | पहला है ‘डंगरिया’ जिसमें दास द्वारा ढोल या हुड़के की ताल- थाप पर देवता अवतार कराया जाता है जिसे  अब ‘देव नर्तक’ कहा जाने लगा है | दूसरा है ‘दास’ जिसे ‘जगरिया’ अथवा ‘गुरु’ भी कहा जाता है | यह व्यक्ति जोर- जोर से बिजेसार (ढोल) अथवा हुड़का (डमरू के आकार का स्थानीय वाद्य ) बजाकर वातावरण को कम्पायमान कर देता है |  इसी कम्पन में डंगरिये में देवता अवतरित हो जाता है | देवता अवतार होते ही डंगरिया भिन्न- भिन्न भाव- भंगिमाओं में बैठकर अथवा खड़े होकर नाचने लगता है | इस दौरान ‘दास’ कोई लोकगाथा भी सुनाता है | लोक चलायमान यह गाथा जगरियों को पीढ़ी डर पीढ़ी कंठस्त होती है | वीर, विभत्स, रौद्र तथा भय रस मिश्रित इस गाथा का जगरियों को पूर्ण ज्ञान नहीं होता क्योंकि सुनी- सुनाई यह कहानी उन्हें अपने पुरखों से विरासत में मिली होती है | यदि इस गाथा में कोई श्रोता शंका उठाये तो जगरिया उसका समाधान नहीं कर सकता | उसका उत्तर होता है “ बुजर्गों ने इतना ही बताया |”

     ‘जागर’ आयोजन का तीसरा कोण है ‘सौंकार’ अर्थात जो व्यक्ति अपने घर  में जागर आयोजन करवाता है | ‘सौंकार’ शब्द ‘साहूकार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है धनवान या ऋण देनेवाला | जागर आयोजन करने वाला व्यक्ति अक्सर गरीब होता है परन्तु जागर में उसे ‘सौंकार’ फुसलाने के लिए कहा जाता है ताकि वह इस अवसर पर खुलकर खर्च करे |
     ‘जागर’ आयोजन का कारण है आयोजक किसी तथाकथित समस्या से ग्रस्त है जिसका समाधान जागर में करवाना है | बीमार पड़ने, स्वास्थ्य कमजोर रहने, कुछ खो जाने, परिजन का आकस्मिक निधन हो जाने, पशुधन सहित चल- अचल सम्पति का नुकसान होने, पुत्र-पुत्री के विवाह में विलम्ब होने, संतान उत्पति में देरी अथवा संतान नहीं होने, संतान का स्वच्छंद होने, संतान उत्पति पर जच्चा को बच्चे के लिए दूध उत्पन्न नहीं होने, विकलांग शिशु क जन्म लेने, तथाकथित ऊपर की हवा (मसाण –भूत, छल- झपट ) लगने, किसी टोटके का भ्रम होने, दुधारू पशु द्वारा दूध कम देने, जुताई के बैलों की चाल में मंदी आने, तथाकथित नजर (आँख) लगने, परीक्षा में असफल होने, नौकरी न लगने, परिजन के शराबी- नशेड़ी- जुआरी बनने, सास- बहू में तू- तड़ाक होने अथवा मनमुटाव होने, परिवार- पड़ोस में कलह होने, पलायन कर गए परिजन का पत्र अथवा मनीआर्डर न आने अथवा आशानुसार उसके घर न आने जैसी आए दिन की समस्याएं जो वास्तव में समस्या नहीं बल्कि जीवन की सीढ़ियां हैं जिनमें हमें चलना ही होता है, जागर आयोजन का प्रमुख कारण होती हैं | वर्षा नहीं होने, आकाल पड़ने अथवा संक्रामक रोग फ़ैलने पर सामूहिक जागर का आयोजन किया जाता है जिसका अभिप्राय है रुष्ट हुए देवताओं को मानना परन्तु ऐसा कम ही देखने को मिला है जब जागर के बाद इस तरह के संकट का निवारण हुआ हो |

     व्यक्तिगत जागर पर विहंगम दृष्टिपात करने पर स्पष्ट होता है कि उपरोक्त में से किसी भी समस्या के पनपते ही समस्या-ग्रस्त (दुखिया) व्यक्ति डंगरिये तथा जगरिये से सलाह- मशवरा करके जागर आयोजन की तिथि निश्चित करता है | पूरा गांव जागर वाले घर में एकत्रित हो जाता है | समस्या समाधान की उत्सुकता सबके मन में बनी रहती है | दास- डंगरिये को भोजन कराया जाता है | (अब शराब भी पिलाई जाती है ) | धूप- दीप जलाकर तथा गोमूत्र छिड़क कर स्थान  को पवित्र किया जाता है | डंगरिये को आसन लगाकर बैठाया जाता है | ठीक उसके सामने जगरिया और उसका साथी तासा (रौटी) वाला बैठता है | डंगरिये को भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू के ऊपर छोटे छोटे जलते हुए कोयले रखे जाते हैं ) दी जाती है जिसे वह धीरे- धीरे कश लगाकर पीते रहता है | पंच- कचहरी (वहाँ मौजूद जन समूह ) में धूम्रपान का सेवन खुलकर होता हे | नहीं पीने वाला भी मुफ्त की बीड़ी- सिगरेट पीने लगता है | इसी बीच जगरिया अद्वायी (गाथा) सुनाने लगता है | शेष भाग अगली बिरखांत ७४ में...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.03.2016

 

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