Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 264246 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                          बिरखांत- ८१ : हमारी सेना को न करें बदनाम

     कुछ अलगाववादी और असामाजिक तत्व जानबूझ कर हमेशा ही हमारी सेना को बदनाम करने की फिराक में रहते हैं ताकि सेना का मनोबल टूटे | हमारी अनुशासित सेना का मनोबल इनके षड्यंत्र से कभी भी नहीं गिरेगा | हमारी लाडली सेना से हमें बहुत उम्मीद है | वह राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा तो करती है, हमें अन्य गर्दिशों जैसे सूखा, बाड़, भूकंप, दंगे जैसी मुश्किलों में भी मदद करती है | बर्फीला सियाचीन हो या थार का तप्त मरुस्थल, नेफा- लेह- लद्दाख हो या रण-कच्छ का दलदल | पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सहित देश की दशों दिशाओं में सेना का निरंतर पहरा रहता है जिससे हमारा देश सुरक्षित है |

     अपने प्राणों को न्यौछावर करके सेना अपना कर्तव्य निभाती है | तिरंगे में लिपट कर जब हम अपने कुछ शहीदों के पार्थिव शरीर देखते हैं तो उनकी वीरता और साहस पर नम आँखों से हमें गर्व होता है | तिरंगे में लिपटा हुआ वह वीर शहीद हम में से किसी का बेटा होता है या किसी का पिता और या किसी का पति | उसके अलविदा कह जाने से कोई अनाथ होता है या कोई विधवा होती है या किसी की कोख सूनी होती है परन्तु पूरा राष्ट्र उस शहीद परिवार के साथ होता है और शहीद परिवार को श्रद्धा से नमन करता है | हम अपने इन शहीद महामानवों को प्रणाम करते हैं, सलाम करते हैं और गर्व से सलूट करते हैं |

     हमारी सेना को बदनाम करने की साजिश कुछ असामाजिक तत्व दुर्भावनावश स्वतंत्रता के बाद से ही करते आये हैं | इन पंक्तियों के लेखक को अपने देश की सीमाओं पर कर्तव्य निभाने का अवसर प्राप्त हुआ है | पंजाब (१९७०-७१), नागालैंड, मणिपुर, मीजोराम, मेघालय (१९७६-७८) तथा जम्मू-कश्मीर (१९८२-८३) आदि जगहों पर स्थानीय जनता के बीच रह कर इन क्षेत्रों को अच्छी तरह देखा है | जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में कुछ उग्रवादी संगठनों के बहकावे में लोग सेना पर जानबूझ कर लांछन लगाते हैं और वहाँ से सेना को हटाने का षड्यंत्र रचते रहते हैं क्योंकि सेना के रहते उनकी नापाक हरकतें कामयाब नहीं होती | वर्ष १९५८ से पूर्वोत्तर में तथा १९९० से जम्मू-कश्मीर में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट (आफ्सा) लगा है ताकि सेना को कर्तव्य निभाने में रुकावट न रहे | अलगाववादी तत्व इस ऐक्ट को हटाना चाहते हैं, इसी कारण वे सेना पर अक्सर बलात्कार आदि जैसे घृणित लांछन लगाते रहते हैं और मानवाधिकार रक्षक संस्थाओं के पास जाने की धमकी भी देते रहते हैं |

      जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में १२ अप्रैल २०१६ से अशान्ति बनी हुयी है | अलगाववादियों ने सेना पर एक स्कूली छात्रा के साथ छेड़खानी करने का आरोप लगाया | छात्रा ने वीडियो जारी कर इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया और सेना पर लगे लांछन को स्थानीय असामाजिक तत्वों का षड्यंत्र बताया | इस बीच अलगाववादियों ने उपद्रव भी शुरू कर सेना के चौकी पर पथराव कर दिया | सेना ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए गोली चलाई जिससे अब तक तीन व्यक्ति मारे गए हैं बताया जा रहा है |

         हमें सेना को बदनाम करने के लिए षड्यंत्रकारियों के नापाक मंसूबों को समझना पड़ेगा | हमारी सेना पर आरम्भ से ही दाग लगाने की साजिश चल रही है | भारत की सेना विश्व की सबसे अनुशासित सेनाओं में से एक है जिसका चरित्र और मनोबल बहुत ऊँचा है जिस पर इस प्रकार के अमानुषिक आरोप कुछ विकृत मानसिकता के लोग ही लगाते रहे हैं जो कभी भी सिद्ध नहीं हुए | हम अपनी सेना को दिल की गहराइयों से सलूट करते हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल,१९.०४.२०१६   

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                       बिरखांत -८० : मुनि बोले नहीं विचारि वचन

     हमारे देश में हिन्दू धर्म के चार मठाधीश हैं जिन्हें हम शंकराचार्य कहते हैं | उत्तर में जोशीमठ (उत्तराखंड), दक्षिण में सृन्गेरी (कर्नाटक), पूर्व में पुरी (ओडिशा) और पश्चिम में शारदापीठ द्वारका (गुजरात) | इन चारों पीथाधीशों में हिन्दू समाज की बड़ी आस्था/श्रधा है |

     इस बीच (११ अप्रैल २०१६) को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की टेलिविजन पर दो विवादास्पद टिप्पणियां देखने- सुनने को मिली जिन्हें पूरे देश में समाचार पत्रों ने भी जगह दी | इन दोनों टिप्पणियों पर लोगों में रोष देखने में आया | स्वामी जी ने पहली टिप्पणी हरिद्वार में की जिसमें उन्होंने महिलाओं द्वारा महराष्ट्र के शनि शिगनापुर मंदिर में प्रवेश को यह कहते हुए गलत बताया कि “शनि पूजा करने से महिलाओं की मुसीबतें बढ़ जायेंगी और उनके खिलाफ  बलात्कार जैसे अपराध बढ़ जायेंगे |” स्वामी जी ने दूसरी टिप्पणी में शिरडी के साईबाबा की पूजा को गलत बताते हुए कहा, “साई की पूजा करना अनुचित है जबकि वास्तविक भगवानों की अनदेखी की जा रही है और इसी कारण महाराष्ट्र में सूखा पड़ रहा है |”

     स्वामी जी की दोनों टिप्पणियों से लोग खफा हैं | महिलाओं ने इसे ‘घटिया और अपमानजनक’ कहा है और स्वामी जी से माफी माँगने की बात कही है | कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे संविधान का अपमान बताते हुए प्रदर्शन करने की बात भी कही है | लोग प्रश्न कर रहे हैं कि उत्तराखंड में हर साल की मौसमी त्रासदी और २००४ में दक्षिण भारत के सुनामी के क्या कारण थे जिसमें सोलह हजार से अधिक भारतीय मारे गए थे |
 
         उधर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर ट्रस्ट से पूछा है कि संवैधानिक तौर पर यह परंपरा अनुचित है, यह लैंगिक भेदभाव है | मां को मंदिर में जाने से कैसे रोका जा सकता है ? भगवन तो स्त्री –पुरुष में भेदभाव नहीं करते | क्या किसी महिला को माउंट ऐवरेस्ट में चढ़ने से रोका जा सकता है ?

     हमारा मानना है कि स्त्री को हेय दृष्टि से देखना, उसे कमजोर या अपवित्र मानना यह पुरुष की मानसिक संकीर्णता है | स्त्री सृष्टि की जन्मदाता है, पवित्र है, सहनशील एवं शक्ति की परिचायक है | उससे घृणा करना या उसे अपमानित करने वाला समाज यथार्थ को समझने में भूल कर रहा है और गर्त में जाता है | सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी स्वागत योग्य एवं वन्दनीय है | कृपया स्वामी जी भूल सुधार करने का मंथन करें ताकि आप में समाज की श्रधा यथावत बनी रहे और आपको लोग महिला विरोधी प्रचारित न करें | कोई साई बाबा को माने या कबीर को, राम  को माने या रहीम को, यह श्रद्धा का सवाल है| श्रधा या अंधश्रद्धा के अंतर को केवल ज्ञान और तथ्यों द्वारा ही विनम्रता से हम किसी के सामने रख सकते हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१५.४.१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             बिरखांत-८२ : कब तक होते रहेंगे बाल- विवाह ?

    देश को स्वतंत्र हुए ६९ वर्ष हो गए हैं जबकि बाल- विवाह विरोधी क़ानून उससे भी पहले से है फिर भी देश में बाल -विवाह धड़ल्ले से हो रहे हैं | १९ अप्रैल २०१६ को देश के लगभग सभी टेलीविजन चैनलों ने राजस्थान के चित्तौडगढ़ (गंगरार, जयसिंह पुरा गाँव ) में हुये दो बाल- विवाहों की मुक्त कंठ से चर्चा की और वीडियो प्रदर्शित किये | इन बाल -विवाहों में दुल्हन की उम्र क्रमशः ५ वर्ष और १३ वर्ष तथा दुल्हे की उम्र ११ वर्ष और १५ वर्ष थी | जोर शोर से खुलेआम बेझिझक मनाये गए इन विवाह उत्सवों में बहुत लोग मौजूद थे जो खूब हंसी- ठिठोली कर रहे थे | पंडित जी ने फेरे लगाने में असमर्थ नन्ही सी दुल्हन को जबरदस्ती फेरे लगवाए | यह तमाशा हर साल होता है परन्तु अक्षय तृतीया (इस बार १७ अप्रैल) के दिन अधिक होता है |

     हमारी देश में बाल-विवाह बहुत पहले से होते आये हैं | १९३० से शारदा ऐक्ट (राय साहब हरविलास शारदा की पहल से ) के अनुसार विवाह की उम्र लड़की के लिए १४ वर्ष तथा लड़के के लिए १८ वर्ष कर दी गई जो वर्तमान में क्रमशः १८ और २१ वर्ष है | बाल-विवाह के मुख्य कारण हैं –अशिक्षा, गरीबी, असुरक्षा और दहेज़ | कन्या भ्रूण हत्या का भी यही मुख्य कारण है | गरीबों की सोच है कि लड़की सिर का बोझ है, परायी अमानत है, जिसे जितना जल्दी हो सके निपटा दिया जाय | हमारी देश में आज भी ३० % लड़कियों की शादी १८ वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है | जवान होती लड़की को दबंगों द्वारा उठाकर ले जाने या जबरदस्ती शादी करवाने का डर मां-बाप को सताते रहता है | दहेज़ का दानव अलग से मुंह बाये खड़ा रहता है | इस बीच पति की मृत्यु होने पर बचपन में ब्याही गई लड़कियाँ जवान होने से पहले ही विधवा हो जाती हैं और फिर उन पर समाज का अपना विधवा क़ानून लग जाता जिससे वे पुनर्विवाह नहीं कर सकती |

     अब समय में कुछ बदलाव आया है | महिला साक्षरता दर ३ से बढ़कर  ६५ % (२०११) हो गई है | बाल –विवाह होने से कच्ची उम्र में मातृ-मृत्यु एवं शिशु मृत्यु की सम्भावना अधिक है | इसी कारण देश में यह दोनों मृत्यु दरें क्रमशः १८७ प्रति लाख तथा ४७ प्रति हजार हैं | इन्हीं तबकों में जनसँख्या वृद्धि भी अधिक है और गरीबी का अभिशाप भी जड़ पकड़े हुए है | क़ानून की यहां  खुलेआम अवहेलना होती है | राजस्थान की दलित महिला ५० वर्षीय भंवरी साथिन के साथ १९९२ में उस समय ऊँची जाती के लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया जब वह बाल-विवाह रोकने की कोशिश कर रही थी | निचली अदालत से फैसला बलात्कारियों के पक्ष में आया | १९९७ में इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय ने कार्यस्थल पर यौन शोषण रोकने के निर्देश दिए हैं जिसे ‘विशाखा दिशा निर्देश’ के नाम से जाना जाता है |

     राजस्थान सहित पूरे उत्तर भारत में होने वाले बाल-विवाहों की पूरी जानकारी स्थानीय प्रशासन और राजनीतिज्ञों को होती है जो इसे नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि वे वोट बैंक के क्षय होने का खतरा मोल नहीं लेते | जिस दिन राजनीतिज्ञ वोट के बजाय देश की सोचेंगे उस दिन देश की दशा सुधर जायेगी | कागज में बने हुए क़ानून अपनी अवहेलना खुद देखते रहते हैं | क़ानून का डर होता तो कोई इस तरह खुलेआम अपनी अबोध बच्चियों को नहीं निबटाता | हम यदा कदा किसी को जागृत तो कर ही सकते हैं क्योंकि देश के अविकसित, अशिक्षित और अस्वस्थ रहने का असर हम सब पर पड़ता है | टी वी के एक चैनल के अनुसार २२ अप्रैल को बाल-विवाह कराने वाला पंडित गिरफ्तार किया जा चुका है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
२४.०४.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                 दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै २१.०४.१६

                                                                                   ‘जागर’ उपन्यास क नाट्यमंचन
 
वर्ष १९९५ में हिंदी अकादमी दिल्ली क सौजन्य ल प्रकाशित म्यर उपन्यास ‘जागर’ क १० अप्रैल २०१६ हुणि प्यारे लाल भवन आई टी ओ नई दिल्ली क सभागार में ‘कलश कलाश्री’ क करीब द्वि दर्जन रंगकर्मियों द्वारा खिमदा (के एन पाण्डेय) और अखिलेश भट्ट क निर्देशन में मंचन हौछ | डेड़ घंट क य मंचन क साक्षी छी उ सभागार जो कला-प्रेमियों और साहित्य -प्रेमियों ल खचाखच भरी छी | छै सौ पच्चीस सीटों वाल य सभागार में साहित्यकार, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, कवि, पत्रकार, कलाकार, रंगकर्मी, राजनीतिज्ञ सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद छी | सुप्रसिद्ध साहित्यकार बल्लभ डोभाल, डा. हरिसुमन बिष्ट, राजनेता हरीश अवस्थी, पत्रकार देव सिंह रावत, चारु तिवारी, डा. पवन मैठानी सहित कएक नामचीन व्यक्ति वां मौजूद छी | सबै दर्शक वां य जिज्ञासा क साथ ऐ रौछी कि आखिर लेखक ल ‘जागर’ उपन्यास में समाज कैं क्ये संदेश दी रौछ?
 
‘जागर’ उपन्यास कि रचना क अंउर १९७१ क भारत-पाक युद्ध क दौरान जमीन भतेर बंकर में फूटीं जब य लेखक मात्र तेईस वर्ष क छी | उपन्यास क कुछ कड़ि १६ दिसंबर १९७१ हुणि युद्ध समाप्त क बाद, बंकर में जब लै टैम मिलछी, कागज़ क कतरनों में लेखि लिछी | मेरि यात्रा चालू रैछ और करीब चार वर्ष में य उपन्यास पुर हौछ | १९७५ बै १९९५ तक बीस वर्ष य हस्तिलिपि म्यार सिंदूक में बंद रैछ | मी कएक प्रकाशकों क पास गोयूं, सबूल छापण क लिजी डबल मांगीं जो म्यार पास नि छी | १९९४ में अखबार क एक विज्ञापन कैं देखि बेर मील यैकैं टैप करवा और हिंदी अकादमी में जम करवै दे | य उ टैम छी जब मील पैल ता हिंदी अकादमी द्यखी | कुछ महैण बाद म्यर पास एक रजिस्टर्ड चिठ्ठी ऐछ जमें लेखि रौछी कि अकादमी ख़ुशी k साथ खुद य उपन्यास कैं छपूण चैंछ | यसिक १९९५ में हिंदी अकादमी क सौजन्य ल य उपन्यास छपौ |
 
उपन्यास छपते ही उई बात हैछ जैकि आशंका छी | मसाण उद्योग वाल और सबै अन्धविश्वास क पोषक म्यार विरोधी बनि गाय और जां- तां मीकैं प्रताड़ित करैं फै गाय | मीकैं और म्यार परवार कैं यैक वजैल भौत दुःख हौछ | यसि बात नै, भौत लोग मेरे म्यार दगाड़ लै छी जमें म्येरि घरवाइ लै छी | एक संस्था ल य पुर विवरण कैं ‘राष्ट्रीय सहारा’ दैनिक समाचार पत्र में छपवै दे | ३० अगस्त २००४ हुणि य अखबार द्वारा मीकैं मंदिरों में पशुबलि और समाज में अन्धविश्वास क खुलि बेर विरोध करण पर ‘आज का प्रेरक व्यक्तित्व’ सम्मान ल सम्मानित करीगो |
 
अंधविश्वास एक कैंसर जस रोग छ जैकि समाज में भौत गैर जाड़ छीं | आज म्यार जास हजारों-लाखों लोग य कैंसर क विरोध में आवाज उठूँ रईं | शिक्षा क उज्याव ल आब लोग य मकड़जाव कैं समझें फैगीं | य उपन्यास ‘प्यारा उत्तराखंड’ (संपादक देव सिंह रावत) अखबार में कुछ वर्ष पैली किस्तवार छपि चुकि गो | १० अप्रैल २०१६ हुणि यैक नाटक-मंचन कैं देखण क बाद देव सिंह रावत कि टिप्पणी, “य नाटक एक श्रेष्ठ और प्रेरणादायक पहल छ |” डा. पवन मैठानी क अनुसार, “खिमदा कि टीम ल नाटक क कि आत्मा अर्थात उद्देश्य कैं सार्थक करि दे |” सोसल मीडिया में य मंचन पर भौत सार्थक प्रतिक्रिया है रईं |
 
‘जागर’ क नाट्यमंचन क द्वि दर्जन कलाकारों क श्रम और कला क मी हार्दिक अभिनन्दन करनूं | यूं कलाकारों ल गीता, रानी, शंकर कि इज, चनिका कि घरवाइ, सेरी पुछारिन, बंसीधर कि घरवाइ, डाक्टर, शंकर, रवि, गोपीचंद, चनिका, शास्त्री ज्यू, कलुवा, भगुवा, दौलतिया, बंसीधर, जोरावर, गौ क स्यैणिय, नान और ठुल सहित सबै किरदारों कैं जीवंत करि दे और सभागार में बै खूब ताइ बटोरीं | सभागार में बैठी उ दौर कि ‘गीता’ य सब देखि बेर नाटक कि गीता, रानी और गीता कि सासु क अभिनय ल भावविभोर है गे |

 कुल मिलै बेर यूं सबै कलाकारों ल खिमदा और अखिलेश भट्ट क निर्देशन में ‘जागर’ उपन्यास ऊँ लोगों तक लै पुजै दे जैल आज तक य उपन्यास नि पढ़ि रौछी | नाटक क पछिन बै काम करणी हाथों ल और संगीत निर्देशक वीरेन्द्र नेगी, सूत्रधार पटवाल ज्यू, प्रकाश प्रबन्धन, मंच प्रबंधन, रूपसज्जा और गायक कलाकारों ल लै भौत भल काम करि बेर य मंचन पर चार चाँद लगाईं | यूं सबू कैं हार्दिक धन्यवाद |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ‘जागर’ उपन्यास का लेखक, रोहिणी दिल्ली
२१.०४.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                     बिरखांत-८३ : कौन सुने किसान की ?

        वर्षों पहले मेरे दिवंगत बौज्यू से आंगन के आगे खुबानियों से लदे हुए पेड़ का ठेका स्थानीय गाँव के नौसिखिये ठेकेदार ने ले लिया | बैशाख के महीने की गर्मी से खुबानी पेड़ पर ही पकने लगे | ठेकेदार ने बौज्यू से कहा, “दाज्यू खुमानि टोड़ि बेर टोपरियों में धरि दियो, भोव रत्ते उठै ल्ही जूल |”   ( भाई साहब खुबानी तोड़ कर टोकरियों में रख देना, कल सुबह उठा ले जाऊँगा |”) ठेकेदार पांच टोकरियाँ भी छोड़ गया | बौज्यू ने उसके कहे मुताबिक खुबानी तोड़कर टोकरियाँ भर दी | दूसरे दिन ठेकेदार नहीं आया |

    कई जबाब भिजवाने के बाद ठेकेदार पांचवे दिन आया | तब तक खुबानी पूरी तरह पक चुकी थीं | इस बीच ठेकेदार को पता चला कि भाव गिर गया है और उसे नफ़ा नहीं होगा | उसने पाँचों खुबानी भरी टोकरियों को घर के पास ही खेतों में उड़ेल दिया | आसपास से लोग आये और मुफ्त में खुबानी उठा कर ले गए | बौज्यू के कई चक्कर लगाने के बाद उसने बड़ी मुश्किल से कुछ महीने पश्चात छिरका- छिरका कर (किस्तों में ) भुगतान किया वह भी रुष्ठ होकर | बौज्यू ने तो उसका आदेश माना परन्तु मैं आज तक नहीं समझ पाया कि खुबानियों के पकने और भाव गिरने में मेरे बौज्यू का क्या कसूर था ?

     ठीक यही दुर्गति इस समय (अप्रैल २०१६ का तीसरा सप्ताह)  देश के कई राज्यों में टमाटर, प्याज और आलू की हो रही है | सुनने और देखने में आया है कि बम्पर फसल के कारण इन नकदी फसलों के दाम किसान को पचास पैसे प्रति किलो से भी कम मिल रहे हैं | मुनाफा छोड़ो खाद, पानी, मजदूर की मजदूरी भी नहीं मिल रही है किसानों को | बहुत परिश्रम के बाद आई इस बम्पर फसल का किसान को यह ऐसा इनाम मिला कि उसे स्वयं अपने खून-पसीने से उगाई फसल बरबाद करनी पड़ी | उत्तराखंड में भी चौमासी सब्जियों ( टमाटर, गोबी, शिमला मिर्च, फ्रेंच बीन्स आदि ) का किसान को कभी भी उचित मूल्य नहीं मिलता | दो या तीन रुपये प्रति किलो के दर से किसान से खरीदी गई यह नकदी फसल २० से २५ गुना अधिक दाम  पर हल्द्वानी या दिल्ली में बेची जाती है | किसान को लागत मूल्य भी नहीं मिलता | इसी कारण वहाँ पर भी लोगों ने सब्जियां उगाना छोड़ दिया है |

     यह सब हमारे नीति- नियंताओं की अदूरदर्शिता का परिणाम है | यदि स्थानीय स्तर पर शीत गोदाम (कोल्ड स्टोरेज ) बने होते तो इनकी बम्पर फसल को कम से कम मूल्य पर अवश्य खरीद लिया जाता | कहने को देश में खाद्य-संस्करण तंत्र भी है परन्तु इन किसानों के किस काम का ? अंत में दुखी होकर किसान आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर होता है जो अनुचित एवं दुखित है | फसल पैदा करने के लिए किसान को भाषण दिया जाता है पर फसल तैयार होने पर उसके पास खरीदने कोई नहीं जाता | फिर फसल बोते- लगाते समय यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता कि फसल कैसी होगी ? फसल बम्पर होगी या उस पर पर प्रकृति की मार तो नहीं पड़ेगी ? आखिर इसमें इन मेहनतकस किसानों का क्या दोष है ? धीरे- धीरे लोग किसान- काश्तकारी क्यों छोड़ रहे हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर इन लाचार अन्नदाता कृषकों को कौन देगा ? अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
२८.०४.2016

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                   दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
 
                                                                              मुनि बोले नहीं विचारि वचन
 

        हमार देश में हिन्दू धर्म क चार मठाधीश छीं जनू हैं हाम शंकराचार्य कौनूं | उत्तर में जोशीमठ (उत्तराखंड), दक्षिण में सृन्गेरी (कर्नाटक), पूर्व में पुरी (ओडिशा) और पश्चिम में शारदापीठ द्वारका (गुजरात) | यूं चारों पीठाधीशों में हिन्दू समाज कि भौत श्रधा छ |
 
          य बीच (११ अप्रैल २०१६) हुणि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ज्यू कि टेलिविजन पर द्वि विवादास्पद टिप्पणि देखण- सुणण में आईं जनूं कैं पुर देश में अखबारों ल खूब बढ़ि- चढ़ी बेर छापौ | यूं द्विये टिप्पणियों पर लोगों में रोष देखण में आछ | स्वामी ज्यू ल पैल टिप्पणी हरिद्वार में करी जमें उनूल स्यैणियों द्वारा महराष्ट्र क शनि शिगनापुर मंदिर में प्रवेश कैं य कैते हुए गलत बता कि “शनि पूजा करन ल स्यैणियों कि मुसीबत बढ़ि जालि और उनार खिलाफ बलात्कार और छेड़खानी जास अपराध बढ़ जाल |” स्वामी ज्यूल दुसरि टिप्पणी में शिरडी क साईबाबा कि पुज कैं गलत बताते हुए कौ, “साई कि पुज करण गलत च जबकि वास्तविक भगवानों कि अनदेखी करी जांरै और य ई वजैल महाराष्ट्र में अकाव पड़ि रौछ |”
 
         स्वामी ज्यू कि द्विये टिप्पणियों वजैल लोग नाराज छीं से | स्यैणियां ल यै कैं ‘घटिय हरकत और अपमानजनक’ बताते हुए कौ कि स्वामी ज्यू कैं स्यैणियां हूं बै माफि मांगण चैंछ | कएक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ल यैकैं संविधान क अपमान बताते हुए प्रदर्शन करण कि बात लै करी | लोग सवाल पूछें रईं कि उत्तराखंड में हर साल कि मौसमी त्रासदी और २००४ में दक्षिण भारत कि सुनामी के क्या कारण छी जमें सोलह हजार है ज्यादै अधिक भारतीय मारी गईं |

     उथा सबरीमाला मंदिर में स्यैणियां क प्रवेश पर पाबंदी कैं सर्वोच्च न्यायालय ल मंदिर ट्रस्ट हुणि पुछौ छ कि य संवैधानिक तौर गलत परंपरा छ, य लैंगिक भेदभाव छ | मै कैं मंदिर में जाण है कसी रोकी सकूं ? भगवान त स्यैणि –मैंस में क्ये भेदभाव नि करन | क्ये क्वे स्यैणि कैं दुनिय क सबू है ठुल पहाड़ माउंट ऐवरेस्ट में चढ़ण है रोकी जै सकंछ ?
 

     हमर मानण छ कि स्यैणियां कैं हेय नजर ल देखण, उकैं कमजोर या अपवित्र मानण य मैंसों कि मानसिक संकीर्णता छ | स्यैणि सृष्टि कैं जन्म दिणी छ, पवित्र छ, सहनशील और शक्ति कि पछ्याण छ | वी दगै नफ़रत करण या उकैं अपमानित करणी समाज सांचि बाट कैं समझण में भूल करै रौ और गर्त में जारौ | सर्वोच्च न्यायालय कि टिप्पणी स्वागत योग्य और वन्दनीय छ | कृपया स्वामी ज्यू महाराज भूल सुधार करण क मंथन करो ताकि आपू में समाज कि श्रधा यथावत बनी रौ और आपू कैं लोग स्यैणिय विरोधी प्रचारित नि करै | क्वे साई बाबा कैं मानो या कबीर कैं, राम कैं मानो या रहीम कैं, य श्रद्धा क सवाल छ | श्रधा या अंधश्रद्धा क अंतर कैं केवल ज्ञान और तथ्यों क द्वारा विनम्रता क साथ हाम कैकै सामणि धरि सकनूं |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
२८ .४.१६
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                          बिरखांत- ८४ : मेरी लेखनी पर धार लगाती कलाम साहब चिठ्ठी 

     ‘महामनखी’ पुस्तक में मैंने अब तक ४५ भारत रत्न विभूषितों की भी  लघु गाथा लिखी है जिसमें ५ महिलाएं भी हैं | १२ महान हस्तियों को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया | इन ४५ में से ५ ही भारत रत्न आज हमारे बीच हैं | ये हैं- सर्वश्री अमर्त्यसेन, सुश्री लता मंगेशकर, सी एन आर राव, सचिन तेंदुलकर और अटल बिहारी वाजपेयी जी | ‘महामनखी’ में वर्णित १४० महान व्यक्तियों अथवा उनके परिजनों को इस पुस्तक को भेजने की मन में लालसा बनी हुई है | लोगों से पता भी पूछ रहा हूँ | अब तक ७ को भेज भी चुका हूँ | इन सातों में सुश्री लता जी और लिटिल मास्टर सचिन जी भी हैं |

     सचिन जी को पुस्तक भेजने के १५ दिन बाद मैंने उनके घर का फौन मिलाया | वहाँ से उनके कोई प्रतिनिधि बोले, “सचिन जी तो बाहर हैं, बोलिए क्या बात है ?” अपना परिचय देते हुए मैंने कहा, “सर १५ दिन पहले सचिन जी के लिए एक पुस्तक रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजी है, उसमें उनका नाम भारत रत्न क्रम ४३ पर है | क्या वहाँ पुस्तक प्राप्त हो गई है ?” वहाँ से जबाब कुछ इस तरह मिला, “देखिये उनके नाम से प्रतिदिन १५० से भी अधिक पत्र- पैकेट आदि पोस्ट से आते हैं | हमें पता नहीं आपकी पुस्तक आयी या नहीं | इन पत्र- पैकेटों को खोलने के लिए अलग से स्टाफ रखा है जो बताये मुताबिक डाक खोलते हैं और उसका डिस्पोजल करते हैं |” इतना कह कर फौन बंद हो गया और आगे वार्ता रुक गई | सुश्री लता जी से फौन संपर्क नहीं हो सका |

    वर्ष २००२ में मेरी पुस्तक ‘ये निराले’ प्रकाशित हुयी जिसमें मात्र ११ निराले व्यक्तियों के जीवनी है | इनमें एक थे पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम | तब वे राष्ट्रपति नहीं थे | वे २५ जुलाई २००२ से २५ जुलाई २००७ तक देश के ग्यारहवे राष्ट्रपति रहे | पुस्तक के इन ग्यारह निराले व्यक्तियों में कलाम साहब भी एक हैं ‘मिजाइल मैंन एपीजे अब्दुल कलाम’ के नाम से | इसी बीच वे राष्ट्रपति बन गए और मैंने राष्ट्रपति भवन में कोरियर द्वारा उनके नाम पर पुस्तक भेज दी | कुछ दिनों बाद मेरे पास कलाम साहब के ओ एस डी का एक पत्र आया जिसमें लिखा था, “कलाम साहब ने पुस्तक देखी, लेख अंग्रेजी अनुवाद में समझा और पुस्तक को राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय में रखने का आदेश देते हुए लेखक को धन्यवाद कहा है |” पत्र से मुझे गर्व का ऐहसास हुआ | लेखक को सिर्फ यही तो चाहिए कि लोग उसके शब्दों को पढ़ें और उसकी पुस्तक देश के पुस्तकालयों तक पहुंचे | कलाम साहब तो हमेशा के लिए अपना नाम अमर करके सुपुर्दे खाक हो गए और मेरी पुस्तक राष्टपति भवन पुस्तकालय के किसी ‘बुक सेल्फ’ में आज भी होगी |   

    लेखक आशावादी होता है | आशावाद को सिंचित करना उसका लेखक धर्म है, साहित्य धर्म है और राष्ट्र धर्म भी है | मुझे उम्मीद है कभी न कभी भारत रत्न, लिटिल मास्टर, ग्रैंड मास्टर, रन मशीन, सचिन-सचिन सहित कई नामों से प्रख्यात सचिन जी का और सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी का पत्र मेरे पास जरूर आयेगा | २००१ में प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘कारगिल के रणबांकुरे’ मैंने लगभग तीन सौ से अधिक शहीद परिवारों तक पहुंचाई थी | कारगिल युद्ध में ५०० से अधिक सैनिक शहीद हुए थे | इन शहीद परिवारों द्वारा भेजे गए पत्र और कलाम सहाब की चिट्ठी आज भी मैंने संजो कर रखे हैं जो मेरी कलम पर धार लगाते रहते हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०२.05.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                         दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै 

                                                                    हमरि सेना कैं नि करो बदनाम 

     कुछ अलगाववादी और असामाजिक तत्व जाणबुझि बेर हमेशा हमरि सेना कैं बदनाम करणा क फिराक में रौनी ताकि सेना क मनोबल टुटो | हमरि अनुशासित सेना क मनोबल इनार षड्यंत्रों ल कभैं लै नि टुटा | हमरि लाडिलि सेना हैं बै हमुकैं भौत उम्मीद छ | उ हमरि सीमाओं कि रक्षा करीं और हमूकैं अकाव, चलक, बाड़, दंग जास कएक गर्दिशों है लै बचीं | चाहे ह्यूं क लदी सियाचीन हो या थार क तात तौ जस रेगिस्थान, नेफा- लेह- लद्दाख हो या रण-कच्छ क खतरनाक सिमार | पूरब-पश्चिम, उत्तर- दक्षिण सहित देश कि दशों दिशाओं में सेना क लगातार पहर रांछ जै क वजैल हमर देश दुश्मण है सुरक्षित छ |

     आपण प्राणों कैं न्यौछावर करि बेर सेना आपण कर्तव्य निभैंछ | राष्ट्र-ध्वज तिरंग में लपेटी बेर जब हम कुछ शहीदों क पार्थिव शरीर कैं देखनू तो उनरि बहादुरी और हिम्मत पर आंखां में आंसू औनीं पर गर्व लै हुंछ | तिरंग में लपेटी उ वीर शहीद हमू में बै कैकौ च्यल हुंछ या कैकौ बाप हुंछ और या कैकौ मैंस (पति) हुंछ | वीक बलिदान पर क्वे अनाथ हुंछ या क्वे विधाव हिंछ या कैकी कोख खालि हिंछ पर पुर देश उ शहीद परिवार क दगाड़ हुंछ और शहीद परिवार कैं बड़ि श्रद्धा क साथ से नमन करूं | हम आपण यूं शहीद महामनखियों कैं प्रणाम करनू, सलाम करनू और भौत गर्व क साथ सलूट करनूं |

     हमरि सेना कैं बदनाम करण कि साजिश कुछ असामाजिक तत्व दुर्भावनावश स्वतंत्रता क बाद बै करते औं रईं | यूं पंक्तियों क लेखक कैं लै आपण देश कि सीमाओं पर कर्तव्य निभूण क मौक मिलौ |  पंजाब (१९७०-७१), नागालैंड, मणिपुर, मीजोराम, मेघालय (१९७६-७८) और जम्मू- कश्मीर (१९८२-८३) आदि जगां पर स्थानीय जनता क बीच रै बेर यूं जगां कैं भली भांत देखौ | जम्मू -कश्मीर और पूर्वोत्तर में कुछ उग्रवादी संगठनों क बहकाव में ऐ बेर वां क लोग सेना पर जाणबुझि बेर भौत घाटिय लांछन लगूनीं और वां बै सेना कैं हटूंण क षड्यंत्र रचनी क्यलै कि सेना क वां रौण पर उनार नापाक हरकत कामयाब नि है सकन |  वर्ष १९५८ बटि पूर्वोत्तर में और १९९० बटि जम्मू- कश्मीर में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट (आफ्सा) लागि रौछ ताकि सेना कैं कर्तव्य निभूण में क्वे रुकावट नि ओ | अलगाववादी तत्व य ऐक्ट कैं हटूण चानी, येक वजैल ऊँ सेना पर अक्सर बलात्कार आदि जस घृणित लांछन लगूनै रौनी और मानवाधिकार रक्षक संस्थाओं क पास जाण कि धमकी लै देते रौनी |

      जम्मू-कश्मीर क कुपवाड़ा जिल्ल क हंदवाड़ा में १२ अप्रैल २०१६ बटि अशान्ति बनी हुयी छ | अलगाववादियों ल सेना पर एक इस्कूली नानि दगै छेड़खानी करण क भौत घटिय आरोप लगा | नानि ल तुरंत एक वीडियो जारी करि बेर य आरोप कैं बिलकुल निराधार बता और सेना पर लागी लांछन कैं स्थानीय असामाजिक तत्वों क षड्यंत्र बता | य बीच अलगाववादियों ल उपद्रव शुरू करि बेर सेना कि चौकि पर पथराव लै करौ | सेना ल उनुकैं तितर-बितर करण क लिजी आत्मरक्षा में गोइ चलै जैल तीन आदिम मारी गईं बतायी जांरौ | 

         हमूल सेना कैं बदनाम करणी षड्यंत्रकारियों क नापाक मंसूबों कैं समझण चैंछ |  हमरि सेना पर शुरू बटि दाग लगूण कि साजिश चलि रैछ | भारत कि सेना दुनिय कि सबूं है ज्यादै अनुशासित सेनाओं में बै एक छ जैक चरित्र और मनोबल भौत ठुल छ, उच्च छ | हमरि सेना पर यास किस्मा क अमानुषिक आरोप कुछ विकृत मानसिकता कै लोग लगूनीं जो कभैं लै सिद्ध नि है सक | हम आपणी सेना कैं भौत गर्व क साथ दिल बटि सलूट करनूं |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
05.05.२०१६

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                                                                              बिरखांत – ८५ : किसने लगाई उत्तराखंड में आग ?
 
      देश का सत्ताईसवां राज्य उत्तराखंड इस वर्ष (२०१६) 2 फ़रवरी को आग की पहली चिंगारी का निशाना बना और तब से 2 मई ( तीन महीने) तक यह किसे पता था कि वह छोटी सी चिंगारी २५०० हेक्टेयर वन क्षेत्र में ११०० से अधिक अग्नि घटनाओं द्वारा राज्य को झुलसा कर रख देंगी | इस वनाग्नि ने ऐसा भयंकर रूप दिखाया कि राष्ट्रीय आपदा राहत बल, सेना, वायुसेना और स्थानीय जनता को भी अग्नि शमन के लिए बुलाना पड़ा | राज्य के लगभग सभी १३ जिले इस आग की चपेट में आ गए और आठ जानें भी बेमौत मारी गईं बताया जा रहा है तथा कई लोग जख्मी भी बताये जा रहे हैं | करोड़ों रूपए की वन संपदा का जो नुकसान हुआ उसका ठीक ठीक अनुमान लगाना मुश्किल है |
 
     हम सब जानते हैं कि उत्तराखंड एक वन प्रदेश है जिसके कुल क्षेत्रफल (५३४८४ वर्ग कि मी) का ६५ % (३५६५० वर्ग कि मी) भाग वन क्षेत्र है | यह वन क्षेत्र प्रतिवर्ष आग का शिकार होते रहा है जिस कारण राज्य में १५ फ़रवरी से १५ जून तक ‘फायर अलर्ट’ रखा जाता है | आग की घटनाएं ग्रीष्म काल में हर साल होती हैं परन्तु इस साल वनाग्नि ने इतना भयंकर रूप ले लिया कि राष्ट्रपति शासन से गुजर रहे प्रदेश में आग पर काबू पाने के लिए वायुसेना के हेलिकोप्टरों की मदद लेनी पड़ी जो हल्द्वानी से इंधन लेने के बाद भीमताल से पानी भरकर अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में कृत्रिम बारिश करते देखे गए |
 
     इस दौरान पूरे प्रदेश और देश में एक ही प्रश्न गूँज रहा है के देवभूमि में यह भीषण आग किसने लगाई ? इस भीषण आग का कारण सूखा मौसम, तेज गर्मी तथा तेज हवा बताया जा रहा है | सत्य तो यह है कि प्रशासन ने 2 फ़रवरी की पहली चिंगारी को गंभीरता से नहीं लिया | हमारा वन विभाग यह अच्छी तरह जानता है कि यदि आग आरम्भ में नहीं बुझाई गई तो वह दैंत्याकार बन कर सब कुछ भष्म कर देती है | उत्तराखंड में आग लगने के कई कारण हैं | धूम्रपान करने वालों की लापरवाही यहां आम बात है | अवुण (खेत के सूखे हुए हिसालू-किरमाडू के कांटे और खूमे-खामे) जलाना, सड़क किनारे कूड़ा- करकट जलाना आदि भी आग के कारण हैं | कुछ लोग इस लोकविश्वास से भी आग लगा देते हैं कि पिरूल (चीड़ की सूखी पत्तियां) को आग लगाने से अच्छी घास पनपेगी |
 
     इन सब कारणों से बढ़कर है ‘टिम्बर माफिया’ का अदृश्य हाथ जो प्रतिवर्ष गिरे हुए पेड़ों को काटने का ठेका लेता है | चीड़ और देवदार की लकड़ी का व्यापार दिनोदिन इस क्षेत्र में बढ़ते जा रहा है | जाहिर है आग से अधिक से अधिक पेड़ गिर जाते हैं जिससे इस कारोबार में लगे लोगों की मोटी कमाई होती है | राज्य के वन-विभाग की पेड़ों के इस अग्नि-क़त्ल में मिलीभगत किसी से छिपी नहीं है | इस बात की चर्चा यदा -कदा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में होते रहती है | जिस प्रकार भयंकर आग लगने पर इस वर्ष आग बुझाने वालों की संख्या बढ़ाई गई और हेलिकोप्टर से पाने छिड़कने का खर्चा उठाया गया, यदि पहले ही वन- रक्षक (पतरौल या फौरेस्ट गार्ड) नियुक्त कर दिए जाते तो यह हाहाकार नहीं मचता और न ही अमूल्य वन-सम्पदा भष्म होती |

      वन- रक्षक भी स्थानीय लोग ही होने चाहिए जिन्हें जंगल और दुर्गम क्षेत्रों में जाकर आग बुझाने की हिम्मत, हुनर और अपने जंगलों से प्यार हो | ‘सौ बिगाने से नौ बिगाने अच्छा’ (एक सौ रुपये दवा पर खर्च करने से अच्छा नौ रुपये बचाव पर खर्च करना) वाली कहावत सरकार ने नहीं समझी | बाहर का व्यक्ति तो इस धरातल पर सुगमता से चल भी नहीं सकता वह आग कैसे बुझाएगा | स्थानीय लोगों का मानना है कि इस बार ऐसे व्यक्ति आग बुझाने में जुटे थे जिन्हें इस हुनर का ज्ञान भी नहीं था | सरकार को राज्य की वन- सम्पदा और ग्लेशियरों को बचाने के लिए आग लगने की घटना से पहले ही फरवरी में ही स्थानीय वन- रक्षक तैनात कर देने चाहिए थे | इस बार हुए नुकसान से कुछ तो भविष्य के लिए सीखा जा सकता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल ,
०६.०५.२०१६

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                                                      बिरखांत-८६ : मुश्किल से भी नहीं चल रही गरीब की दाल-रोटी,

     जब हम आपस में आम बातचीत करते हैं तो बातों - बातों में कुछ  प्रश्न अपने आप आ ही जाते हैं, “और भइ क्या कर रहे हो ? क्या हो रहा है ? जिन्दगी कैसी चल रही है ? आदि- आदि | इस का उत्तर भी बहुत ही साधारण होता है, “बस भाई सब ठीक- ठाक है, गुजारा हो ही रहा है, चल रही है दाल-रोटी |” लेकिन यह उत्तर आज उस तरह का नहीं रहा | रोटी- दाल गरीब से दिनोदिन दूर हो रहे हैं | जो दाल मई २०१४ में रु.६५/- प्रति किलो थी वह मई २०१६ में बढ़कर रु. १८०/- प्रति किलो हो गई है | उत्तर भारत के जंगलों में तो टिम्बर माफियों ने आग लगाई बता रहे हैं परन्तु लोग पूछ रहे हैं कि इस दाल में आग किन माफियों ने आग लगाई ? दाल में लगी आग को बुझाने के लिए हमारा केंद्र- राज्य तंत्र तमाशबीन क्यों बन गया ?

     एक गरीब या आम आदमी को ज़िंदा रहने कि लिए पानी के अलावा मात्र छै वस्तुएं चाहिए – आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय और नमक | सब्जी, दूध, घी- तेल, फल की बात नहीं कर रहा जो उससे बहुत दूर हैं | वर्तमान में इन छै वस्तुओं का कम से कम मूल्य है -आटा २५ रु, चावल ४० रु, दाल १७० रु, चीनी ४० रु, चाय २५० रु और नमक १८ रु प्रति किलोग्राम है | विगत दो वर्षों में इन वस्तुओं की कीमत में १२% से २५०% तक का उछाल आया है | एक गरीब को रोटी जरूर चाहिए परन्तु रोटी खाने के लिए सब्जी नहीं चाहिए क्योंकि वह नमक के पानी में ही रोटी डुबो कर गुजारा कर लेता है और नमक के पानी के साथ ही चावल भी खा लेता है | जिन्दा रहने के लिए जरूरी उक्त छै वस्तुओं के दाम दिनोदिन बढ़ते ही जा रहे हैं जबकि महंगाई रोकने के वायदे पर ही २०१४ मई में नई सरकार आयी थी |

     सब्जियों के दामों में उतार- चढ़ाव कुछ हद तक गरीब भी सह लेता है या वह सब्जी खरीदता ही नहीं | प्याज- टमाटर अधिक नहीं तो कम से भी गुजारा हो जाता है परन्तु जिन्दा रहने के लिए जरूरी इन छै वस्तुओं का तो कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं | सरकार ने इन छै वस्तुओं पर एक अट्ठनी कम करने के बजाय उलटे १६ रु की नमक की थैली भी १८ रु की कर दी है |  इन वस्तुओं के बढ़ते दामों पर नियंत्रण कौन करेगा ? ये वे गरीब हैं जो न बोल सकते हैं और न जलूस निकाल सकते हैं और शायद ये वोट बैंक पर भी असर नहीं डालते | बीपीएल कार्ड धारकों के अलावा इनकी संख्या करोड़ों में हैं | इन छै वस्तुओं के अभाव में यदि कोई गरीब मर भी जाए तो किसी को क्या फरक पढ़ना है | हमें ओडिशा का कालाहांडी क्षेत्र अभी भूला नहीं है जहां आम की गुठलियां और चूहे खाकर लोग जीवित रहे हैं |

     प्रातः या सायंकालीन सैर में अक्सर वरिष्ठ नागरिकों को देश की वर्तमान ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा करते देखा –सुना जाता है | सब एक स्वर- सुर में इस बढ़ती मंहगाई को सरकार की असफलता बताते हैं | कानों पर टकराने वाले चर्चा के कुछ शब्द हैं, “इस महंगाई का आभास हमें चुनाव के दौरान लग गया था जब हमने करोड़ों रुपये के बजट की बड़ी- बड़ी रैलियां देखी थी | उन रैलियों पर जो खर्च हुआ उसकी भरपाई तो होनी ही है |” ये शब्द सत्य प्रतीत होते हैं अन्यथा रातों- रात दालों के दाम २०० से २५० % से भी अधिक क्यों बढ़ गए ? कौन रोकेगा दाल सहित अन्य वस्तुओं के दामों को ? आखिर किसने दी व्यापारियों को दाम बढ़ाने की यह खुली छूट ? गिर्दा कह गया, ‘काली रात का अंत तो जरूर होगा’ | (ततुक नि लगा उदेख, घुनन मुनइ नि टेक....) | निराशा से बाहर आकर उम्मीद करते हैं कि हमारा तंत्र देर में ही सही कभी तो जागेगा | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल , १०.५.१६

 

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