दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै २१.०४.१६
‘जागर’ उपन्यास क नाट्यमंचन
वर्ष १९९५ में हिंदी अकादमी दिल्ली क सौजन्य ल प्रकाशित म्यर उपन्यास ‘जागर’ क १० अप्रैल २०१६ हुणि प्यारे लाल भवन आई टी ओ नई दिल्ली क सभागार में ‘कलश कलाश्री’ क करीब द्वि दर्जन रंगकर्मियों द्वारा खिमदा (के एन पाण्डेय) और अखिलेश भट्ट क निर्देशन में मंचन हौछ | डेड़ घंट क य मंचन क साक्षी छी उ सभागार जो कला-प्रेमियों और साहित्य -प्रेमियों ल खचाखच भरी छी | छै सौ पच्चीस सीटों वाल य सभागार में साहित्यकार, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, कवि, पत्रकार, कलाकार, रंगकर्मी, राजनीतिज्ञ सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद छी | सुप्रसिद्ध साहित्यकार बल्लभ डोभाल, डा. हरिसुमन बिष्ट, राजनेता हरीश अवस्थी, पत्रकार देव सिंह रावत, चारु तिवारी, डा. पवन मैठानी सहित कएक नामचीन व्यक्ति वां मौजूद छी | सबै दर्शक वां य जिज्ञासा क साथ ऐ रौछी कि आखिर लेखक ल ‘जागर’ उपन्यास में समाज कैं क्ये संदेश दी रौछ?
‘जागर’ उपन्यास कि रचना क अंउर १९७१ क भारत-पाक युद्ध क दौरान जमीन भतेर बंकर में फूटीं जब य लेखक मात्र तेईस वर्ष क छी | उपन्यास क कुछ कड़ि १६ दिसंबर १९७१ हुणि युद्ध समाप्त क बाद, बंकर में जब लै टैम मिलछी, कागज़ क कतरनों में लेखि लिछी | मेरि यात्रा चालू रैछ और करीब चार वर्ष में य उपन्यास पुर हौछ | १९७५ बै १९९५ तक बीस वर्ष य हस्तिलिपि म्यार सिंदूक में बंद रैछ | मी कएक प्रकाशकों क पास गोयूं, सबूल छापण क लिजी डबल मांगीं जो म्यार पास नि छी | १९९४ में अखबार क एक विज्ञापन कैं देखि बेर मील यैकैं टैप करवा और हिंदी अकादमी में जम करवै दे | य उ टैम छी जब मील पैल ता हिंदी अकादमी द्यखी | कुछ महैण बाद म्यर पास एक रजिस्टर्ड चिठ्ठी ऐछ जमें लेखि रौछी कि अकादमी ख़ुशी k साथ खुद य उपन्यास कैं छपूण चैंछ | यसिक १९९५ में हिंदी अकादमी क सौजन्य ल य उपन्यास छपौ |
उपन्यास छपते ही उई बात हैछ जैकि आशंका छी | मसाण उद्योग वाल और सबै अन्धविश्वास क पोषक म्यार विरोधी बनि गाय और जां- तां मीकैं प्रताड़ित करैं फै गाय | मीकैं और म्यार परवार कैं यैक वजैल भौत दुःख हौछ | यसि बात नै, भौत लोग मेरे म्यार दगाड़ लै छी जमें म्येरि घरवाइ लै छी | एक संस्था ल य पुर विवरण कैं ‘राष्ट्रीय सहारा’ दैनिक समाचार पत्र में छपवै दे | ३० अगस्त २००४ हुणि य अखबार द्वारा मीकैं मंदिरों में पशुबलि और समाज में अन्धविश्वास क खुलि बेर विरोध करण पर ‘आज का प्रेरक व्यक्तित्व’ सम्मान ल सम्मानित करीगो |
अंधविश्वास एक कैंसर जस रोग छ जैकि समाज में भौत गैर जाड़ छीं | आज म्यार जास हजारों-लाखों लोग य कैंसर क विरोध में आवाज उठूँ रईं | शिक्षा क उज्याव ल आब लोग य मकड़जाव कैं समझें फैगीं | य उपन्यास ‘प्यारा उत्तराखंड’ (संपादक देव सिंह रावत) अखबार में कुछ वर्ष पैली किस्तवार छपि चुकि गो | १० अप्रैल २०१६ हुणि यैक नाटक-मंचन कैं देखण क बाद देव सिंह रावत कि टिप्पणी, “य नाटक एक श्रेष्ठ और प्रेरणादायक पहल छ |” डा. पवन मैठानी क अनुसार, “खिमदा कि टीम ल नाटक क कि आत्मा अर्थात उद्देश्य कैं सार्थक करि दे |” सोसल मीडिया में य मंचन पर भौत सार्थक प्रतिक्रिया है रईं |
‘जागर’ क नाट्यमंचन क द्वि दर्जन कलाकारों क श्रम और कला क मी हार्दिक अभिनन्दन करनूं | यूं कलाकारों ल गीता, रानी, शंकर कि इज, चनिका कि घरवाइ, सेरी पुछारिन, बंसीधर कि घरवाइ, डाक्टर, शंकर, रवि, गोपीचंद, चनिका, शास्त्री ज्यू, कलुवा, भगुवा, दौलतिया, बंसीधर, जोरावर, गौ क स्यैणिय, नान और ठुल सहित सबै किरदारों कैं जीवंत करि दे और सभागार में बै खूब ताइ बटोरीं | सभागार में बैठी उ दौर कि ‘गीता’ य सब देखि बेर नाटक कि गीता, रानी और गीता कि सासु क अभिनय ल भावविभोर है गे |
कुल मिलै बेर यूं सबै कलाकारों ल खिमदा और अखिलेश भट्ट क निर्देशन में ‘जागर’ उपन्यास ऊँ लोगों तक लै पुजै दे जैल आज तक य उपन्यास नि पढ़ि रौछी | नाटक क पछिन बै काम करणी हाथों ल और संगीत निर्देशक वीरेन्द्र नेगी, सूत्रधार पटवाल ज्यू, प्रकाश प्रबन्धन, मंच प्रबंधन, रूपसज्जा और गायक कलाकारों ल लै भौत भल काम करि बेर य मंचन पर चार चाँद लगाईं | यूं सबू कैं हार्दिक धन्यवाद |
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ‘जागर’ उपन्यास का लेखक, रोहिणी दिल्ली
२१.०४.२०१६