Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 264248 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                              दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                              को सुणो किसान कि ?
 
    भौत साल पैली म्यार दिवंगत बौज्यू हूं बै घर क आंगण क अघिल बै खुमानियों ल लुती डाव क ढ्यक एक नजीक क गौ क नौसिखिय ठ्यकदार ल्हेछ | बैशाख क महैण कि गर्मी ल खुमानि  पेड़ पर पाकैं फै गाय | ठ्यकदार ल बौज्यू हुणि कौय, “दाज्यू खुमानि टोड़ि बेर टोपरियों में धरि दियो, भोव रत्ते उठै ल्ही जूल |” ठ्यकदार पांच टोपरि लै छोड़ि गोय | बौज्यू ल वीक कूण क मुताबिक खुमानि टोड़ि बेर टोपरियों में धर दी | दुसार दिन लै ठ्यकदार खुमानि ल्ही जाण हूं नि आय |
 
     कएक जुबाब भेजण बाद ठ्यकदार पांचूं दिन बाद आछ | तब तली खुमानि खूब बुरि तौर पर यतु पाकि गाय कि उनूं पर बै महक औं फै गेइ | य बीच ठ्यकदार कैं पत् चलि गोय कि खुमानि क भौ भौत डौन हैगो | वील अनुमान लगै ल्ही कि उकैं नाफ नि हवा | वील गुस्स में ऐ बेर पांचों- पांच खुमानि भरी टोपरियों कैं घरै कै नजीक एक खेत में टटकै दे | रिसी जास चाई आसपास क लोग दौड़ादौड़ आईं और खेत में ख्येड़ी खुमानियों कैं फ्री मैं उठै बेर ल्ही गईं | बौज्यू क कएक चक्कर लगूण बाद वील बाड़ मुश्किल ल कुछ महैण बाद छिरकै –छिरकै बेर कतू टॉन्ट मारनै डबल देईं | बौज्यू ल त वीक हुकम मानौ पर मी आज तक य नि समझि पाय कि खुबानियों क पाकण और भौ डौन हुण में म्यार बौज्यू क क्ये कसूर छी ?
 
     ठीक यई कुकुरगत य टैम (अप्रैल २०१६ क तिसर-चौथ हफ्त) में देशा क कएक राज्यों में टिमाटर, प्याज और आलु कि है रै | सुणण और देखण में आछ कि भौत भलि फसल क वजैल यूं नकदी फसलों क दाम किसान कैं पचास पैस प्रति किलो है लै कम मिलैं रईं | नाफ छोड़ो खाद, पाणि, मजूरी कि लागत लै किसान कैं नि मिलैं रइ | भौत मेहनत करण बाद पैद हई य बम्पर फसल क किसान कैं य कस इनाम मिल कि उकैं आपण खून- पसिण ल उगाई फसल खुद बरबाद करण पड़ी | उत्तराखंड में लै चौमासि साग- सब्जियों ( टिमाटर, गोबि, शिमला मर्च, फरास बीन आदि ) क किसान कैं कभैं लै ठीक कीमत नि मिलनि | द्वि या तीन रुपै पर किलो क हिसाब ल किसान हूं बै खरीदी य नकदी फसल २० बटि २५ गुण ज्यादै दाम पर हल्द्वानि या दिल्ली में बेची जैंछ | किसान कैं वीकि लागत कीमत लै नि मिलनि | यैक वजैल वां लै लोगों ल साग- सब्जी उगूण छोड़ि है |
 

     य सब हमार नीति- नियंताओं कि आँख बुजिय क वजैल हौछ | अगर स्थानीय स्तर पर शीत गोदाम (कोल्ड स्टोरेज ) बनी हुना तो इनरि बम्पर फसल कैं कम से कम कीमत पर जरूर खरिदि लियी जान | कौण क लिजी देश में खाद्य-संस्करण तंत्र लै छ पर यूं किसानों क य तंत्र क्ये काम क ?  अंत में परेशान है बेर किसान आपणि कपोघात (आत्मघात) करण जस खतरनाक कदम उठूनी जो ठीक बात न्हैति | भलि फसल पैद करण क लिजी किसान कैं भाषण दिई जांछ पर भलि फसल तैयार हुण पर वीक पास खरीदूं हुणि क्वे नि जान | फसल बूण ता या लगूण ता य अनुमान लै नि लागि सकन कि फसल कसि ह्वलि ? फसल खूब ह्वलि या उ पर प्रकृति कि मार पड़लि ? आखिर यैमें यूं मेहनत करणी   किसानों क्ये दोष छ ? मणि –मणि कै किसान- काश्तकारी क्यलै छोडें रईं ? यूं सवालों क जबाब यूं लाचार अन्नदाता कृषकों कैं को द्यल ?
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
१२.५.१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                          बिरखांत-८७ : देवभूमि में ४७ दिन का राष्ट्रपति शासन

     राजनैतिक बढ़त हासिल करने की होड़ में हमारे राष्ट्रीय राजनैतिक दल सभी स्थापित मर्यादाओं को तोड़ते देखे गए हैं | भाषा बिगड़ी, कटुता पनपी,राष्ट्र का समय बरबाद हुआ, संविधान की अनदेखी हुयी और देश तथा उत्तराखंड की जनता के सामने तमाशा खड़ा हुआ | केंद्र सरकार ने २७ मार्च २०१६ की रात को उत्तराखंड विधान के सभा के अध्यक्ष के कथित पक्षपातपूर्ण रवैये को आधार मानकर राज्य में राष्ट्रपति शासन थोप दिया | राज्य के उच्च न्यायालय ने इसे बेहद आपतिजनक और केंद्र का अनुचित हस्तक्षेप बताया | केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में इसे चुनौती दी जहां से विधान सभा में शक्ति परिक्षण का आदेश मिला | १० मई को शक्ति परिक्षण के बाद ११ मई को उच्चतम न्यायालय ने परिणाम घोषित किया जिसके अनुसार उत्तराखंड की रावत सरकार को ३३ और विपक्ष को २८ मत मिले | सर्वोच्च न्यायालय ने शीघ्र राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया और १२ मई २०१६ को राज्य में ४७ दिन के राष्ट्रपति शासन का पटाक्षेप हो गया | 

     संविधान के अनुच्छेद ३५६ (राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी ) का यह पहली बार प्रयोग नहीं हुआ है | पहले की सरकारों ने भी इसका कई बार दुरुपयोग किया है | “उन्होंने गलत किया तो हम भी गलत करें”, यह ठीक परम्परा नहीं मानी जायेगी | राजनैतिक दलों में आपसी- अंदरूनी कलह भी नई बात नहीं है | कांग्रेस में अरुणाचल में कलह हुआ तो केंद्र के दखल से सत्ता परिवर्तन हम सब ने देखा | राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार ‘उत्तराखंड में २८ मार्च को फ्लोर टेस्ट से पहले ही बाज ने पंछी को अपने पंजे में दबोच लिया और वह पंछी न्यायालय के आदेश से १२ मई को मुक्त हुआ |’ यहां एक बात समझने की है कि प्रजातांत्रिक संस्थाओं से खिलवाड़ करने से हमारी समूची व्यवस्था चरमरा सकती है | इधर अब यह भी कहा जाने लगा है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ रहा | जब कोई न्याय का दरवाजा खटखटायेगा तो एक पक्ष खुश और एक नाखुश तो होगा ही |

     एक सवाल और है यदि हरीश रावत पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप है तो बागी नौ विधायक दूसरे खेमे में किसके कहने पर और क्यों गए ? यही आरोप उनपर भी तो लग रहा है | राजनैतिक दलों का यह एक दूसरे पर बहुत ही आम और सस्ता लांछन है जो सत्य या असत्य दोनों हो सकता है | अब उन नौ बागियों का क्या होगा ? ‘न खुदा ही मिला न बिसाले सनम’ या ‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’ अथवा वे अब ‘न घर के रहे न घाट के’ आदि मुहावरे इनके बारे में खूब प्रयोग हो रहे हैं | ये लोग बिना सिद्धांत की  राजनीति के शिकार हो गए | जिस दल के बैनर तले ये लोग चुनाव जीत कर विधायक बने थे इन्होने उस दल के प्रति अपनी निष्ठा को स्वाहा कर दिया और क्षुद्र लालच के भंवर में फंस कर बहकावे में आ गए | मात्र कुछ महीने की प्रतीक्षा नहीं कर सके ये विदु जन | कुर्सी तो आनी जानी है परन्तु हमेशा के लिए चोले पर ‘बागी- लालची’ होने का दाग तो सनम लगा ही बैठे | अब रावत सरकार को विकास कार्यों में जुट कर जनता में व्यापी हुयी निराशा को शीघ्र दूर करना चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और ... 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१४.०५.०२०१६     

Pooran Chandra Kandpal

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                                                       बिरखांत-८८ : पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को...

     इस वर्ष सिविल सेवा परीक्षा परिणाम १० मई २०१६ को घोषित हुए जिसमें १०७९ प्रतियोगियों ने विजय पताका फहराई | लाखों प्रतियोगी इस परीक्षा में भाग लेते हैं | इस परीक्षा में एक दलित लड़की प्रथम आयी | यह प्रतियोगी परीक्षा प्रतिवर्ष संघ लोक सेवा आयोग (यू पी एस सी ) द्वारा आयोजित कराई जाती है जिसमें प्रतियोगी का स्नातक होना पहली शर्त होता है | लड़की प्रथम आयी तो एक मिथ तो यह टूटा कि लड़कियां रट्टू होती हं् या रटती ज्यादा, समझती कम हैं | अब उन लोगों को अपनी सोच भी बदलनी चाहिए जो सारे सामाजिक या पारिवारिक कायदे- क़ानून लड़कियों के लिए ही लागू करते हैं और उन्हें घर में दोयम दर्जे का नागिरक समझते हैं |

    सफल प्रतियोगियों में गरीब- अमीर सभी थे | कोई आटो चालक या सुरक्षा गार्ड की संतान था तो कोई किसान या श्रमिक का | कई विकलांगों (अब दिव्यांग) ने भी अपना परचम लहरा कर अपनी विकलांगता को मात दी और सफल प्रतियोगियों में अपना नाम दर्ज कराया | अमीरों के बच्चों पर अक्सर कोचिंग प्राप्त कर सुविधाजनक माहौल में पढ़ने की बात सामने आती है परन्तु कई गरीबों ने सफल प्रतियोगियों में अपना नाम दर्ज कराया  जबकि वे कोचिंग के लिए विशेष कक्षाओं में भी नहीं गए | उनके बारे में केवल इंतना ही कहा जाएगा कि उन्होंने अपने परिश्रम और अनुशासन के बलबूते से यह सफलता चूमी |

     प्रतियोगी परीक्षाओं में परिश्रम करने की बात सभी परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थी करते हैं परन्तु सफलता कुछ ही को मिलती है | कुछ अभिभावकों के बच्चे तो स्कूली शिक्षा में भी सफल नहीं होते | स्कूल तो ये असफल बच्चे भी गए थे तथा रोटी, कपड़ा और मकान उन्हें भी उनके अभिभावकों नि दिया था | कुछ को तो बहुत ही बेहतरीन सुविधा भी मिली थी फिर कमी कहां रह गई ? जीवन में असफल होने का मुख्य कारण होता है अनुशासन और समय प्रबंधन की कमी | भाग्य और भगवान को दोष ये ही लोग देते हैं क्योंकि यह काम बहुत सरल है | अनुशासन घर से आरम्भ होता है जिसकी बुनियाद बाल्यकाल में ही डाली जाती है और  जिसके प्रथम अध्यापक माता- पिता होते हैं | यदि हम इस बुनियाद को सुदृढ़ता से नहीं डाल सके तो आगे चलकर वांच्छित परिणाम की उम्मीद नहीं रहती | प्रातः उठने से लेकर रात्रि में सयन के लिए जाने तक अनुशासन और समय प्रबंधन की नितांत जरूरत है |

     कहते हैं समय और ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करता (time and tide wait for none) | १९९४ के लौसन्जेलेस ओलम्पिक में उड़न परी पी टी उषा सेकेण्ड के सौवे हिस्से से पदक से वंचित रह गई थी और १९६० के रोम ओलम्पिक में उड़न सिक्ख मिल्खा सिंह सेकेण्ड के दसवे हिस्से से पदक चूक गए थे | कोई समय की कीमत इन दोनों से पूछे | दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम आने लगे हैं | कुछ विद्यार्थी परिणाम से दुखी होकर अनुचित कदम भी उठा देते हैं जो एकदम गलत है | केवल परीक्षा के दिन चीनी- दही से मुंह मीठा करने से पेपर अच्छा नहीं होता | पेपर अच्छा होने के लिए पूरे वर्ष योजनावद्ध तरीके से लगन के साथ अध्ययन करना पढ़ता है |

      यदि बच्चों में अनुशासन और समय प्रबंधन उचित है तो सफलता चल कर आयेगी आपके पास | आज हमने बच्चों से कुछ कहना या उन्हें समझाना इस डर से छोड़ दिया है कि वह कहीं ‘कुछ कर न ले’ | ऐसी स्थिति यकायक नहीं आती | आरम्भ से ही नियमित एवं उचित परवरिश बहुत जरूरी है | मां की निगहवान आँखें और पिता का कुशल मार्गदर्शन इसके लिए अति आवश्यक है | एक दिन पौधे को पानी नहीं देने से वह मुरझाने लगता है | जब उसे पानी नियमित देते हैं तो फिर बच्चों पर भी यही बात लागू होती है | शिखर पर पहुँचने की बात सभी हैं परन्तु पहुँचते वही हैं जो दृढ निश्चय, लगन, अनुशासन और परिश्रम के पायदानों में कदम रखते हुए आगे बढ़ते हैं | ‘पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, मुक्कदर के सफ़ेद पन्ने कोरे उनके नहीं रहते |’ अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१८.०५.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                              दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                      देभूमि में ४७ दिन क राष्ट्रपति शासन

     राजनैतिक बढ़त हासिल करण कि होड़ में हमार राष्ट्रीय राजनैतिक दल सबै स्थापित मर्यादाओं कैं टोड़ि दिनी | भाषा बिगाड़नी, कटुता पनपूनी, देश का टैम बरबाद करनी, संविधान कि अनदेखी करनी और देश में तमाश ठाड़ करनी |  केंद्र सरकार ल २७ मार्च २०१६ कि रात हुणि उत्तराखंड विधान सभा क अध्यक्ष क कथित पक्षपातपूर्ण रवई कैं  आधार मानि बेर राज्य में राष्ट्रपति शासन थोपि दे | राज्य क उच्च न्यायालय ल यैकैं बेहद आपतिजनक और केंद्र क अनुचित हस्तक्षेप बता | केंद्र सरकार ल उच्चतम न्यायालय में यैकैं चुनौती दी जां बै विधान सभा में शक्ति परिक्षण क आदेश मिलौ | १० मई हुणि शक्ति परिक्षण क बाद ११ मई हुणि उच्चतम न्यायालय ल परिणाम घोषित करौ जैक अनुसार उत्तराखंड कि रावत सरकार कैं ३३ और विपक्ष कैं २८ मत मिलीं | सर्वोच्च न्यायालय ल जल्दि राष्ट्रपति शासन हटूण क आदेश दे और १२ मई २०१६ हुणि राज्य में ४७ दिन क राष्ट्रपति शासन क पटाक्षेप हौछ |

     संविधान क अनुच्छेद ३५६ (राष्ट्रपति शासन लगूण संबंधी ) क य पैल बार दुरुपयोग नि हय | पैलिका क सरकारों ल लै यैक कएक ता दुरुपयोग करौ | “उनूल गलत करौछ तो हम लै गलत करुल”, य ठीक परम्परा नि कई जालि | राजनैतिक दलों में आपसी- अंदरूनी झगड़ क्वे नई बात नि हइ | कांग्रेस में अरुणाचल में अंदरूनी झगड़ हौछ तो केंद्र क दखल पर वां सत्ता परिवर्तन हम सबूल देखौ | राजनैतिक विश्लेषकों क अनुसार ‘उत्तराखंड में २८ मार्च हुणि फ्लोर टेस्ट है पैलीकै बाज ल कबूतर कैं आपण पंज में दबोच ले और उ कबूतर कैं न्यायालय क आदेश ल १२ मई हुणि मुक्ति मिली |’ यां एक बात समझण कि छ कि प्रजातांत्रिक संस्थाओं दगै खिलवाड़ करण ल हमरि पुरि व्यवस्था चरमरै सकीं | यथां आब य लै कई जांरौ  कि सरकार पर न्यायपालिका क हस्तक्षेप बढ़ते जांरौ | जब क्वे न्याय क द्वार खटखटा लौ तो न्याल मिलण पर एक पक्ष खुशि और दुसर पक्ष नाराज जरूर ह्वल |

     एक सवाल और छ अगर हरीश रावत पर विधायकों कि खरीद-फरोख्त क आरोप छ तो  बागि नौ विधायक दुसार धाड़ में कैक कूण पर और क्यलै गईं ?  यई आरोप उनू पर लै लागें रौ |  राजनैतिक दलों क य एक दुसरै पर भौत सस्त लांछन छ जो सांच या झुठ क्ये लै है सकूं | आब ऊँ नौ बागियों कि हालत सब देखें रईं | ‘न खुदा ही मिला न बिसाले सनम’ या ‘दुविधा में द्विये गईं, न माया मिलि न राम | आब ऊँ न घरा क राय और न घाटा क | यूं लोग बिना सिद्धांत कि राजनीति क शिकार हईं | जो दला क बैनर पर यूं लोग चुनाव जिति बेर विधायक बनीं उ दला क प्रति इनूल आपणि निष्ठा स्वाहा करि दी और क्षुद्र लालच क भंवर में फंसि बेर यूं बहकाव में ऐ गईं | मात्र कुछ महैण क इन्तजार नि कर सक यूं लोग |  कुर्सी त आज छ भोव न्हैति पर इनूल हमेशा क लिजी आपण च्वव पर ‘बागि –लालची’ हुण क दाग लगै दे | आब रावत सरकार कैं विकास कार्यों में जुटि जाण चैंछ और जनता में जो उदासी छै रै उकैं जल्दि दूर करण चैंछ |   

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
१९.०५.०२०१६     

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                   बिरखांत-८९ : धर्माचार्य, अवैध धर्मस्थल, न्यायालय और हम 

        हिन्दू धर्म से अलग हुए तीन पंथों की नीव डालने वाले महामनीषियों को हम सब जानते हैं – भगवान् महावीर जैन, भगवान् गौतम बुद्ध और गुरु नानक देव जी | महावीर जैन का जन्म ५९९ ई.पू. हुआ और ७२ वर्ष की आयु में ५२७ ई.पू. में महाप्रयाण हुआ | ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत पर सत्य, अहिंसा एवं कर्म पर चलने तथा लालच, झगड़ा, छल-कपट और क्रोध से दूर रहने का उन्होंने संदेश दिया | भगवान् बुद्ध का जन्म ५६३ ई.पू. में तथा ८० वर्ष की आयु में ४८३ ई.पू. में देहावसान हुआ | उन्होंने भी अहिंसा एवं उच्च चरित्र का उपदेश दिया और अंगुलीमाल जैसे मानव हत्यारे का हृदय परिवर्तन कर उसे संत बनाया | गुरुनानक देव जी का जन्म १४६९ ई. में हुआ और ७० वर्ष की आयु में १५३९ ई. में उनका देहावसान हुआ | उन्होंने ‘ईमानदारी से कमाओ, बाँट कर खाओ और परमात्मा को याद करते हुए जनहित में कर्म करते जाओ’ का संदेश दिया |

     इन तीनों ही महामनीषियों ने हिन्दू समुदाय में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियां, आडम्बर और दिखावा से कुपित होकर नए पंथ की स्थापना की | लगभग २५०० वर्षों से इन्हीं के तरह कई संतों ने हमारी कमियों को उजागर किया, हमें कई बार जगाया परन्तु हम नहीं बदले | आज हमारे ही बीच से आर्य समाज के अनुयायी भी अंधविश्वास और रूढ़िवाद को मिटाने में जुटे हैं | अंधविश्वास ने हिन्दू धर्म को बहुत नुकसान पहुँचाया है | मंदिरों में महिला और दलित प्रवेश पर पाबंदी, पूजालयों में पशु बलि, मूर्तियों का दूध- तेल अभिषेक, वर्षा कराने के नाम पर विशालकाय यज्ञ, स्वर्गलोक की कल्पना, गंडे -ताबीज और तंत्र के माध्यम से लूट, जल-स्रोतों में शव, शव-राख और अन्य वस्तुओं का विसर्जन आदि जैसे कई अंधविश्वासों के सांकलों में समाज आज भी बंधा है जिसे कुछ को छोड़ सभी के मूक समर्थन प्राप्त है |

     धर्म के नाम पर हमारी इन विसंगतियों को देश का सर्वोच्च न्याय मंदिर भी जानता है | २० अप्रैल २०१६ की एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की खिचाई इसलिए की क्योंकि इन्होने अदालत के उस निर्देश का पालन नहीं किया जिसमें कहा गया था कि वे सार्वजनिक सडकों और फुटपाथों पर बने अवैध धार्मिक ढांचों को हटाने की दिशा में उठाये गए क़दमों की जानकारी दें | अदालत वर्ष २००६ में दायर उन याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी जिसमें सार्वजनिक स्थानों एवं सड़क के किनारे से पूजास्थल समेत अनाधिकृत ढांचों को हटाने का पहले ही आदेश दिया था |

     आज कोई भी व्यक्ति धर्माचार्य बन कर तंत्रिकता और अंधविश्वास को पोषित करता है | गुटखा मुंह में डाले अपने तथाकथित प्रवचन में चोरी से बिजली का कनकसन लेकर चोरी नहीं करने का संदेश देता है तथा अंधविश्वास फैलाता है | समय की मांग है कि एक आर एम पी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर) की तरह  इनके लिए भी शिक्षा का स्तर और योग्यता सुनिश्चित की जानी चाहिए तथा इसी आधार पर इन्हें लाइसेंस दिया जाना चाहिए जिससे देश और समाज का हित हो तभी दुनिया हमें सपेंरों का देश कहना बंद करेगी |

     हम देखते हैं किसी भी सड़क के किनारे पेड़ के नीचे एक गेरू लगे पत्थर को तीन पत्थरों से ढक कर उसी शाम वहाँ पर एक दिया जलाकर मंदिर तैयार हो जाता और दूसरे दिने वहां एक चरसिया व्यक्ति गेरुवे वस्त्र पहन कर बैठ जाता है जिसे लोग तुरंत बाबा कहने लगते हैं | यह बाबा कौन है कोई नहीं पूछता | हमें इस मुहीम में मुंह खोलना चाहिए और किसी भी धर्म की मान- मर्यादा को ठेश पहुँचाने वालों को सामूहिक तौर से बेनकाब करना चाहिए | धर्माचार्यों से भी विनम्र अपील है कि वे समाज में व्याप्त अन्धविश्वास के विरोध में जनजागृति कर राष्ट्र –हित में योगदान दें | अगली बिराखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
२२.५.२०१६ 
         

     

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-९० : एक बिरखांत व्हाट्सेप के नाम
 
व्हाट्सेप रंग- बिरंगा देखा,
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |
 
कभी ‘वाह-वाह’ कभी ‘जय-जय’
खूब तारीफ़ शब्द लय -लय
जिस न झुकाया सिर घर- मंदिर
वह देवी- देवता भेजते देखा |
 
कट-पेस्ट के लम्बे थान देखे
घूम- फिर वही ज्ञान देखे
छोटा ज्ञान पल्ले नहीं पड़ता
लम्बा ज्ञान बरसते देखा |
 
मस्ती देखी चैटिंग देखी
अन्धविश्वास के सैटिंग देखी
नाम बदल कर कई ग्रुप में
झूठा प्रोफाइल बहते देखा |
 
शराब गुटखा नशा धूम्रपान
मध्यम गति से लेते जान
हमने पार्क में बाल -बाला को
व्हाट्सेप नशे पर मरते देखा |
 
राजनीति को ढलते देखा
झूठनीति को फलते देखा
राजनीति कोई कहीं कर रहा
व्हाटसेप पर किसी को लड़ते देखा |
 
जिसको भी अपने मोबाइल में
जब भार्या ने हंसते देखा
क्रोध यों मडराया तिय पर
शब्द शोला बरसते देखा |
 
प्यार की आह भी भरते देखे
व्यंग्य बाण भी चलते देखे,
दूसरों की लेख -कविता पर
नाम अपना चस्पाते देखा |
 
चुटकुलों की बौछार भी देखी
बदलती बयार भी देखी,
पति-पत्नी एक दूजे के पूरक
व्हाट्सेप में पति को दबते देखा |
 
कभी किसी को जुड़ते देखा
कभी किसी को कुड़ते देखा
कभी तंज- भिड़ंत भी देखी
व्यर्थ बहस उकसाते देखा |
 
रात रात भर जगते देखा
घंटों वक्त गंवाते देखा
स्पोंडिलाइटिस कई लोगों को
व्हाट्सेप के कारण होते देखा |
 
चलते-चलते पढ़ते देखा
सैल्फी खीचते गिरते देखा
अश्लीलता का खुलकर तांडव
मोबाइल बदनाम होते देखा |
 
ऊंट –गधे के सुर में सुर
रखते जाते खुर में खुर
नहीं थी सूरत नहीं था सुर
झूठी प्रशंसा करते देखा |
 
कुछ शब्दों की धार भी देखी
शब्द पिरोती हार भी देखी
मान-मर्यादा के पथिकों को
राह गरिमा की चलते देखा |
 
क्या वे उस पथ चलते होंगे ?
जिस पथ चल- चल कहते होंगे !
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी- करनी में अंतर देखा |
 
व्हाट्सेप रंग- बिरंगा पर देखा
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा ||

अगली बिरखांत में कुछ और...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
२६.५.१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                              दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                     पसिण कि स्याइ ल जो लेखनी आपण इराद ...

     य साल सिविल सेवा परीक्षा परिणाम १० मई २०१६ हुणि घोषित हौछ जमै १०७९ प्रतियोगियों ल जीत क झंड फहरा | लाखों प्रतियोगी य परीक्षा में भाग ल्हिनी | य साल य परीक्षा में एक दलित च्येलि पैल नंबर में ऐछ | यह प्रतियोगी परीक्षा हर साल संघ लोक सेवा आयोग (यू पी एस सी ) द्वारा आयोजित करी जैंछ जमै प्रतियोगी क स्नातक हुण पैल शर्त हिंछ | च्येलि पैल नंबर में ऐछ तो य मिथ टूटि गो कि च्येलिय रट्टू हुनी या रटनी ज्यादै, समझनी कम | आब ऊँ लोगों कैं आपणी सोच बदलण पड़लि जो सबै सामाजिक या पारिवारिक कैद –क़ानून च्येलियां क लिजी लागु करनी और उनुकैं घर में दोयम दर्ज क  नागिरक समझनी | 

    सफल प्रतियोगियों में गरीब- अमीर सबै छी | क्वे आटो रिक्श चलूणीय कि या सुरक्षा गार्ड कि संतान छी तो क्वे किसान या मजदूर कि संतान छी | कएक विकलांगों (अब दिव्यांग) ल लै आपण परचम लहरै बेर आपणी विकलांगता कैं घुत्त देखा और सफल प्रतियोगियों में आपण नाम लेखा | अमीरों क बच्चों पर अक्सर कोचिंग ल्ही बेर सुविधाजनक माहौल में पढ़ण कि बात सामणि ऐंछ पर कएक गरीबों ल सफल प्रतियोगियों में आपण नाम लेखा जबकि ऊँ कोचिंग कक्षाओं में कभैं लै नि गाय | उनार बार में बस येतुक्वे कई जाल कि उनूल आपण मेहनत क बल पर सफलता प्राप्त करी |

     प्रतियोगी परीक्षाओं में मेहनत करण कि बात इम्त्यान दिणी सबै विद्यार्थी करनी पर सफलता सबू कैं नि मिलनि | कुछ अभिभावकों क नान त इस्कूली शिक्षा में लै सफल नि हुन | २०१६ क परिणाम हमार सामणि छ | कक्षा १२ में २२ % और कक्षा १० में २६ % विद्यार्थी उत्तराखंड में फेल है रईं | इस्कूल त यूं फेल हई नान लै गईं और लात- लुकुड़ दगै रौणी ठौर लै इनार अभिभावकों ल यूं नना कैं दी | कयेकों कैं त भौत भलि सुविधा लै मिली फिर लै कमी कां रैछ जो यूं फेल हईं ? जिन्दगी में फेल हुण क ख़ास कारण हुनी अनुशासन   और समय प्रबंधन कि कमी | भाग्य और भगवान कैं दोष यूं ई लोग दिनी क्यलै कि य काम भौत सरल छ | अनुशासन घर बै शुरू हुंछ जैकि बुनैद नानछिना बटि डाई जैंछ और य बुनैदा क मिस्तिरी हुनी इज- बौज्यू | अगर हाम य बुनैद कैं भलीभांत नि डाई सकूलौ तो बाद में भल परिणाम नि मिला | रत्ते उठण बटि रात स्येतण तक अनुशासन और टैम पर सब काम करण भौत जरूरी छ |

     कई जांछ कि टैम और ज्वार कैक इन्तजार नि करन | १९९४ क लौसन्जेलेस ओलम्पिक में उड़न परी पी टी उषा क हात बै सेकेण्ड क सौऊँ हिस्स ल पदक रड़ि गो और १९६० क रोम ओलम्पिक में उड़न सिक्ख मिल्खा सिंह लै सेकेण्ड क दसूं हिस्से ल पदक है चुकि गो | टैम कि कीमत क्वे यूं द्विनों हैं पुछो | दसवीं और बारहवीं क परीक्षा क रिजल्ट ऐगो | कुछ विद्यार्थी भल रिजल्ट नि हुण पर गलत कदम लै उठूण कि सोचनी जो भौत नकि बात छ | केवल इम्त्यान क दिन चीनि –दै ल खापड़ मिठ करि बेर पेपर भल नि हवा |  पेपर भल तबै ह्वल जब पुर साल ठीक ढंग ल टैम क अनुसार और लगन क साथ पढ़ाई करी ह्वलि |

      अगर नना में अनुशासन और समय प्रबंधन ठीक ह्वल तो सफलता हिटि बेर उनार पास आलि | आज हमूल नना हैं क्ये कूण छोड़ि है या उनूकैं समझूण य डरा मारि छोड़ि है कि कैं ऊँ क्वे गलत कदम नि उठै ल्हींण | येसि हालत अचानक नि औनि | शुरू बटि  नियमित और ठीक-ठाक परवरिश भौत जरूरी छ | इजा क चौकस आँख और बौज्यू क नियमित कुशल मार्गदर्शन यैक लिजी भौत जरूरी छ | एक दिन लै रवाप लगाई नान डवै कैं पाणी नि मिलल त उ मुरझै जांछ | जब हाम उकैं नियमित है बेर पाणी दिनू तो नना पर लै यौ ई बात लागु हिंछ | शिखर पर पुजण कि बात त सबै करनी पर वां पुजूं उ ई जो पक्क इराद, लगन, अनुशासन और मेहनत क खुटक्यण लगै बेर चढ़ण कि कोशिश करूं | ‘पसिण कि स्याइ ल जो लेखनी आपण इराद, मुक्कदरा क सफ़ेद पन्न उनार कभै क्वार नि रान |’

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली 
२६ .०५.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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        बिरखांत-९१ : ३१ मई तम्बाकू निषेध दिवस 

       प्रति वर्ष ३१ मई को पूरे विश्व में तम्बाकू से होने वाली हानियों के बारे में जनजागृति के लिए धूम्रपान निषेध (तम्बाकू निषेध ) दिवस मनाया जाता है | इसे WNTD आर्थात world no tobacco day (वर्ल्ड नो टोबाकू डे )भी कहा जाता है | संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था, विश्व स्वाथ्य संगठन के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष साठ लाख लोग कैंसर सहित तम्बाकू जनित रोगों से बेमौत मारे जाते हैं जबकि छै लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से धूम्रपान के शिकार होते हैं | वर्ष १९८९ में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रस्ताव पास कर प्रति वर्ष ३१ मई को तम्बाकू निषेध दिवस मना कर जनजागृति करने का निर्णय लिया | इस दिन प्रतिवर्ष एक नया नारा दिया जाता है | वर्ष २०१६ के लिए नारा है – तम्बाकू रहित युवा ( tobacco free youth) जिसका उद्देश्य युवाओं में धूम्रपान की लत को रोकना है |

     तम्बाकू के सभी उत्पादों में जो चार हजार रसायन होते हैं उनमें से कुछ ऐसे जहरीले होते हैं जिनके कारण सेवनकर्ता को नशा होता है | ज्योंही इन रासायनिक तत्वों की उसके रक्त में कमी आती है वह तम्बाकू अथवा धूम्रपान ढूँढने लगता है | इन जहरीले तत्वों में निकोटिन, तार तथा कार्बन -मोनो- आक्साइड मुख्य हैं जो मनुष्य के लिए बहुत घातक हैं | तम्बाकू के सेवन से हमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक हानि होती है | प्रतिदिन दस से पचास रुपये तक धूम्रपान पर खर्च करने वाला व्यक्ति वर्ष में अपनी जेब के चार हजार से बीस हजार रुपये भष्म कर देता है और बदले में मुंह, मसूड़े, गला, फेफड़े सहित शरीर के कई अंगों के कैंसर जैसे भयानक रोगों का शिकार हो जाता है |

     कोई भी व्यक्ति नशा, धूम्रपान, तम्बाकू, गुटखा, सुरती, खैनी, जर्दा, गांजा, चरस, अत्तर, नश्वार का प्रयोग करना अपने मित्रों, सहपाठियों, सहकर्मियों, सहयात्रियों और संगत से सीखता है | कुछ लोग तो तम्बाकू -नशा- धूम्रपान को महिमामंडित भी करते हैं | देवभूमि में ‘जागर’ में डंगरियों को ‘भंगड़ी’ के रूप में सुल्पे या हुक्के में तम्बाकू या चरस- गांजा भरकर दिया जाता है, (अब शराब भी परोसी जा रही है) जिसका यह मतलब बताया जाता है कि डंगरिये में नशा पीकर आत्मज्ञान उपजता है | कीर्तन मंडली में भी सिगरेट या सुल्पे में भरकर ‘शिवजी की बूटी’ के नाम से चरस पी जाती है जिसे बाबाओं का खुलकर समर्थन और संरक्षण मिलता है | ये लोग स्वयं तो पीते हैं तथा अन्य को अप्रत्यक्ष रूप से पिलाते हैं |

      किसी बैठक या चौपाल में एक बड़ी चिलम (फरसी) में एक साथ कई लोग तम्बाकू का मिलकर सेवन करते हैं | इनमें यदि एक को टी बी (क्षय रोग) होगी तो टी बी का बैक्टीरिया ट्यूबरिकल बेसिलस अन्य सभी चिलम गुड़गुडाने वालों के फेफड़े तक पहुँच जायेगा | देवभूमि में बारातों में भी बीड़ी- सिगरेट बड़ी शान से बांटी जाती है | बरेतियों या घरेतियों को नाश्ता तथा भोजन के बाद एक ट्रे या थाली में बीड़ी- सिगरेट भी परोसी जाती है | मुफ्त में मिलती है तो सभी पीते हैं | बच्चे भी छिप- छिप कर लेते हैं | नहीं पीने वाले भी मुह पर लगा लेते हैं | ‘मुफ्त का चन्दन घिस मेरे नंदन’ वाली कहावत का प्रैक्टीकल देखने को मिलता है | इस तरह मजाक में या मुफ्त में हम धूम्रपान करना सीख जाते हैं |

       धूम्रपान के विरोध में आयोजित एक जनजागृति कक्षा में कुछ लोगों ने पूछा, “सर खाना खाने के पश्चात् धूम्रपान की तुरंत हुड़क क्यों उठती है ?” यह सवाल सही था | ऐसा अक्सर होता है | धूम्रपान करने वालों के रक्त में निकोटिन जब तक एक निश्चित मात्रा में रहता है उन्हें कोई परेशानी नहीं होती | भोजन करते ही उनके रक्त में निकोटिन का स्तर गिरने लगता है क्योंकि निकोटिन को कलेजा (लीवर) निष्क्रिय करता है और भोजन के पश्चात लीवर में रक्त की बढ़ोतरी होने लगती है | लीवर में अधिक रक्त पहुँचने से उसका निकोटिन स्तर निष्क्रिय होने लगता है और धूम्रपान करने वाले को परेशानी अर्थात  निकोटिन की आवश्यकता महसूस होने लगती है जिस कारण वह भोजन के तुरंत बाद धूम्रपान के लिए अथवा तम्बाकू या गुटखा (या अन्य नशा) सेवन के लिए तड़पने लगता है | 
     
     विषय को एक बड़ी बिरखांत की जरूरत है | जब जागो तब सवेरा | यदि आप, आपके मित्र, परिजन, संबंधी, सहकर्मी या कोई अनजान आपको धूम्रपान करते या गुटखा- तम्बाकू खाते हुए दिखें तो एक बार विनम्रता से जरूर कहिये, “जिगर मत जला, मत छेद कर अपने फेफड़े में, मौत रूपी कैंसर से डर, अपने बीबी- बच्चों की तरफ और अपने शरीर की तरफ देख |” सेवन करने वाला एकबार जरूर सोचेगा | मैंने प्रयास किया और सफलता भी मिली | एक बार आप भी कह कर देखिये तो सही | अगली बिरखांत अंगूर की बेटी की...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
३१.५.१६

Pooran Chandra Kandpal

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    बिरखांत- ९२ : शराबी पति तो पत्नी क्या करे ?

    शराब के बारे में बिरखांत नंबर १ और 2 क्रमश: ६ और ७ जुलाई २०१५ को लिख चुका हूं | हम सब जानते हैं कि जो भी पिता, पति या पुत्र शराब पीता है उसकी परेशानी हर हाल में एक बेटी, पत्नी या मां को ही झेलनी पढ़ती है | यदि किसी महिला का पति शराबी हो तो उस पर क्या गुजरती है यह केवल और केवल वह महिला ही जानती है | शराबी पति से जूझ कर अपना घर बचाने वाली इन वीरांगनाओं को आज की बिरखांत समर्पित है |

    स्वभाव से हर पत्नी चाहती है कि उसका पति उसके नखरे उठाये, उसकी खुशामत करे, रूठने पर उसे मनाये, उसकी परवाह करे, उसकी ओर आकर्षित रहे और उसकी हर बात माने | एक चुस्त-दुरुस्त, फुर्तीला, योग्य, तंदुरुस्त, सम्पूर्ण ऐबों से दूर, सभी गुणों से भरपूर, सुन्दर पति की कामना सभी महिलाएं अपने मन में संजोये रहती हैं | इसके विपरीत जब किसी महिला का शराबी पति से पल्लू बंध जाये तो इसे विषम परिस्थिति ही कहा जाएगा और इस परिस्थिति से निबटने के लिए ही उसे असाधारण बनना पड़ेगा | असाधारण अर्थात अपरिमित धैर्य और अपार साहस अपने में जुटाना पड़ेगा | इस तरह की पत्नियाँ अवश्य ही बरबादी की ओर जाने वाले अपने जीवन-रथ के पहियों को रोक कर सुखद जीवन की ओर मोड़ लेती हैं |

     शराब की लत रूपी जंजीर में जकड़े कुछ ऐसे चिकने घड़े रूपी पति भी होते हैं जिन पर पत्नी के धैर्य, सहिष्णुता तथा प्रार्थना का तनिक भी असर नहीं पड़ता | ऐसी  परिस्थिति में पत्नी क्या करे ? उस पर उसके करीबी लोग यह लांछन लगाने के लिए भी तैयार खड़े हैं कि वह अपने पति को संभाल नहीं सकी | ऐसी घड़ी में बहुत बड़े सयंम की जरूरत है | किसी प्रकार के झगड़े, अनशन या द्वन्द से तो पारिवारिक कलह बढ़ता ही चला जाएगा | असंख्य उदाहरण हैं शराब और क्रोध की दुखदायी परिणिति के | जब व्यक्ति नशे के प्रभाव में होता है तो वह शराब या स्वयं की बुराई को सह नहीं सकता भलेही वह विनाश में विलीन हो जाए |

     कुछ टोटके मास्टरों ने ऐसी दुखित महिलाओं को दिग्भ्रमित किया | उन्हें नीम-हकीम, झाड़ू-मंतर जैसे टोटकों को अपनाने की सलाह दी | इससे समस्या सुलझने के बजाय उलझती ही गई | टोटकों से पति ‘वश में’ नहीं हो सकता | पति को वश में करने का सबसे बड़ा और रामबाण तरीका है प्यार का | असहाय, निराश एवं तनाव से जूझ रही ऐसी महिलाओं को प्यार से इस समस्या से निबटना पड़ेगा | प्यार रूपी इस रामबाण से अधिकांश महिलाओं को सफलता मिली है | विषम परिस्थितियों में खुश रहना या मुस्कराना आसान नहीं है | यह वैसा ही जैसे कोई हमें सुई चुभाये और रोने-चिलाने के बजाय हंसने को कहे | ऐसा करना कठिन है पर करना पडेगा क्योंकि उसे अपने डूबते हुए जहाज को बचाना है |

     इस समस्या का एकमात्र हल यह है कि यदि पत्नी ठान ले कि वह अपने पति से शराब रूपी सौत को अलग करके ही चैन लेगी तो उसे एक निश्छल रणनीति बनानी होगी जिसे अंजाम देने के लिये उसे स्वयं को तैयार करना होगा |  विनम्रता, शालीनता, सहनशीलता एवं समर्पण की पुष्पमाल  बन कर अपनी हार नहीं मानते हुए उसे पति के गले का हार बनना होगा | पति से शराब नहीं पीने की बात तब करनी होगी जब वह शराब में डूबा न हो | नशे की हालात में शराब नहीं पीने की बात करना आग में घी डालने के सामान है | पत्नी को उन क्षणों की तलाश करने होगी जब उसका पति उसकी अधिक से अधिक बातें सुन सके | पत्नी को पूर्ण तन्मयता से ऐसा वातावरण बनाना होगा जिस वातावरण में यह पटरी से उतरा हुआ पुरुष दुबारा पटरी पर आ जाय |  महिला में इतनी शक्ति है कि वह परिवार को टूटने से बचा कर बच्चों का भविष्य ध्यान में रखते हुए अंगूर की बेटी संग डूब रहे अपने पति को सावित्री बन कर बचा सकती है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०५.६.१६



Pooran Chandra Kandpal

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        बिरखांत- ९३ : सड़क दुर्घटना में बेमौत मृत्यु

    एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटना में करीब एक लाख तीस हजार (३५० मृत्यु प्रतिदिन अर्थात प्रति चार मिनट में एक मृत्यु ) लोग अपनी जान गंवाते हैं | इस तरह बेमौत मृत्यु में हमारा देश विश्व में सबसे आगे बताया जाता हैं | कैंसर, क्षय रोग, मधुमेह, हृदय गति व्यवधान आदि रोंगों के बाद देश में सड़क दुर्घटना में मरने वालों के संख्या आती है | इस बेमौत मृत्यु में दुपहिया वाहन चालक/सवार सबसे अधिक हैं जिसमें १८ वर्ष से कम उम्र के किशोरों की मृत्यु दर १२ % है | सड़क दुर्घटना में करीब पांच लाख लोग घायल होते हैं जिनमें अधिकाँश अपंग हो जाते हैं | दो वर्ष पहले केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की अकाल मृत्यु भी ३ जून १९१४ को सड़क दुर्घटना में हुयी थी | वर्तमान में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब हम टी वी में क्षत-विक्षत शव तथा चकनाचूर हुए वाहनों के दृश्य नहीं देखते हों |

     देश की राजधानी में प्रतिदिन सड़क दुर्घटना में पांच लोग मरते हैं जिनमें औसतन दो पैदल यात्री और दो दुपहिया चालक हैं | प्रति सप्ताह दो  साइकिल चालक तथा एक कार चालक सड़क दुर्घटना में मरता है | सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं बिना लाइसेंस के वाहन चलाना, वाहन चलाने का अल्पज्ञान होना, सिग्नल जम्पिंग, वाहन से सिग्नल नहीं देना, ओवर स्पीड (गति सीमा से अधिक ), ओवर लोड, शराब पीकर वाहन चलाना, रोड रेस (एक दूसरे से आगे निकलने की जल्दी), सड़क पर गलत पार्किंग, चालक की थकान या झपकी आना, लापरवाही, डेक का शोर अथवा मोबाइल पर ध्यान बटना आदि | विपरीत दिशा से आरहे वाहन की गलती, हेलमेट कोताही, सड़क के गड्डे, तथा मशीनी खराबी आदि भी भीषण दुर्घटना के अन्य कारण हैं | 

     इन सब दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है लोगों में क़ानून का डर नहीं होना | हमारे देश के लोग विदेश जाते हैं और वहाँ के नियम-क़ानून का पालन बखूबी करते हैं | स्वदेश आते ही यहां के क़ानून को अंगूठा दिखा देते हैं क्योंकि यहां क़ानून का डर नहीं है | सब जानते हैं कि शराब पीकर वाहन चलाने सहित सभी सड़क सुरक्षा के नियमों की अवहेलना में जुर्माना है परन्तु लोगों को जुर्माने की चिंता नहीं है | उन्हें घूस देकर छूटने का पूरा भरोसा है या जुर्माने की रकम अदा करने के फ़िक्र नहीं हैं | प्रतिवर्ष लाखों चालान भी कटते हैं | हमारे देश में बच्चे अपने अभिभावकों का वाहन खुलेआम चला कर दुर्घटना में कई निर्दोषों को मार देते हैं | कई बार बड़ी तेजी से उड़ती मोटरबाइक में एक साथ बैठे छै- सात बच्चे सड़क पर जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए देखे गए हैं | इन दुपहियों में कार या ट्रक का हॉर्न लगाकर, रात हो या दिन जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए उड़ जाना इन बिगडैल बच्चों का फैशन बन गया है | पुलिस या तो होती ही नहीं या देख- सुन कर भी अनजान बनी रहती है | अब जब दुर्घटनाओं की अति हो गई तब इन नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने पर अभिभावकों को दण्डित करने की मांग उठ रही है |

     इस बीच उत्तराखंड में भी सड़क दुर्घटनाओं की बाड़ सी आ गई है जिससे कई घर उजड़ गए हैं | बारात, पर्यटन, तीर्थाटन, व्यवसाय आदि से जुड़े कई वाहन आये दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं | इसका कारण भी सभी सड़क सुरक्षा के नियमों की अवहेलना ही है | इन सभी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हमें अपने घर से शुरुआत करनी पड़ेगी | अपने नाबालिग बच्चों को भूलकर भी कोई वाहन नहीं दें ताकि सड़क पर कोई अनहोनी न हो | लाइसेंस प्राप्त बालिंग बच्चों का प्रशिक्षण भी उत्तम होना चाहिए | आप स्वयं भी वाहन चलाते समय संयम रखें क्योंकि दुर्घटना से देर भली | स्मरण रहे आपका परिवार प्रतिदिन आपकी सकुशल घर वापसी के इंतज़ार में रहता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०८.०६.२०१६   


 

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