साहित्य लहर
वर्ष १९७१ में भारत-पाक युद्ध हुआ. यह युद्ध १४ दिन तक लड़ा गया.
पाकिस्तान की 93000 फ़ौज के भारतीय सेना के सामने समर्पण करने
के साथ ही बंगलादेश का जन्म हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस
युद्ध का सदस्य रहा हूँ. उस दौरान मैं देश की पश्चिमी सीमा पर एक
इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ अटैच था. १६ दिसंबर १९७१ को सायं ८ बजे
युद्ध बंद हो गया. युद्ध समाप्ति के बाद भी हमने जमीन के अन्दर
बंकरों में कई महीने बिताए. उस दौरान जब समय मिलता में दो-चार
पंक्तियाँ लिख लेता था.
तब से कलम निरंतर चल रही है. कलम घिसते हुए ४० वर्ष हो गए
हैं परन्तु पहली किताब 'जागर' उपन्यास के तौर पर वर्ष १९९५ में हिंदी
अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित हुयी. पुस्तक छपवाने की आर्थिक
सामर्थ्य नहीं थी. इसलिए 'जागर' उपन्यास करीब बीस साल तक मेरे बक्से
में बंद रहा.
मेरे मन में उठी साहित्य लहर की बहुत लम्बी कहानी है . अब तक
में उन्नीस पुस्तकें लिख चुका हूँ. प्रत्येक पुस्तक छपवाने के लिए जो पापड़
मुझे बेलने पड़े उसकी चर्चा करने की अब आवश्यकता नहीं समझता हूँ.
लेखन क्षेत्र में मेरी कलम देशप्रेम, समाज सुधार, रुढ़िवाद और अन्धविश्वास
के विरोध में चलती है. शहीदों का स्मरण और शहीद परिवारों के प्रति श्रद्धा
मेरी कलम का दृष्टिकोण है. मेरे लेखन के तानेबाने में विपत्ति में धैर्य,
जीवन सादगी से जीने, संस्कृति बचाने, सकारात्मक सोचने, कर्म संस्कृति
अपनाने , सार्थक बदलाव स्वीकार करने, नशा-मुक्ति का प्रचार करने, जल-जंगल-
जमीन प्रदूषित नहीं करने, वृक्षारोपण करने तथा विसर्जन के नाम पर नदियों
का रूप नहीं बिगाड़ने का विनम्र अनुरोध है. गांधीगिरी में बहुत ताकत है.
में इसे अपनाने का प्रयास करता हूँ और समाज से कूपमंडूकता से बाहर
आने की प्रार्थना करता हूँ.
उक्त बिन्दुओं/सिद्धांतों के आधार पर कलम चलाते हुए मैंने साहित्य की
कई विधाओं पर लेखनी चलाई है. उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह ,
जीवनी, स्वास्थ्य शिक्षा, बाल शिक्षा,कारगिल युद्ध , लेख संग्रह सहित तीन
पुस्तकें कुमाउंनी में भी लिख चुका हूँ. हिंदी में लिखी गयी दो पुस्तकें
पुरस्कृत भी हुयी हैं. लेखन जारी है और कुछ पत्र/पत्रिकाओं में भी छ्प
रहा है. पाठकों ने मेरे कलम पर धार लगाई है और लगाते जा रहे हैं .
प्रभु से अराधना है कि कलम चलती रहे और साहित्य की लहरों में
में हिचकोले लेता रहूँ. में अपने उन पाठकों/प्रियजनों का आभारी
हूँ जिन्होंने मेरे साहित्य की वेब साईट बनाई है और साहित्य
जगत में मेरी लेखनी की चर्चा की है.
पूरन चन्द्र कांडपाल