प्रदेश के दिवंगत जनकवि गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' ([/size]जन्म: 09 सितंबर 1945, [/size]निधन: 22 अगस्त 2010) की दो एक्सक्लूसिव दो कवितायें: [/size]1. `फिर चुनाव की रितु आने वाली है बल'
[/size]यह कविता गिर्दा ने वर्ष 2009 की होलियों पर लिखी थी, इसे वह ठीक-ठाक कर ही रहे थे कि, मैंने इसे मांग लिया, और उन्होंने सहर्ष दे भी दी थी.फिर चुनाव की रितु आने वाली है बल,
घर घर में तूफान मचाने वाली है बल,
हर दल में `मैं´`मैं´ का दलदल गहराया,
यह `मैं´ जाने क्या कर जाने वाली है बल,
सौ बीमारो को एक अनार दिखला,
हो सके जहां तक मतकाने वाली है बल,
संसद में नोटों का करतब दिखा चुके,
अब `रैली´ में `थैली´ आने वाली है बल,
फिर भी लगता अपने बल चलने वाली,
कोई सरकार नहीं आने वाली है बल,
मिली जुली सरकारों का फिर स्वांग रचा,
जाने कब तक ठग खाने वाली है बल,
पर सब को ही नाच नचाने वाली है बल,
जाने क्या क्या स्वांग दिखाने वाली है बल,
फिर चुनाव की रितु आने वाली है बल´
[/size]2. [/size]यह कविता गिर्दा ने मई 2009 में, केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम पर दैनिक जगनन के पत्रकार द्वारा जूता मारने से प्रेरित होकर लिखी थी, और ३ मई २००९ को मेरे द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय सहारा' के कार्यक्रम "सही नेता चुने जनता" में प्रस्तुत किया था. इस कविता में कुमाउनी शब्द "भन्काया" पर गिर्दा का विशेष जोर देकर कहन था कि 'जूता मारा नहीं वरन गुस्से की पराकाष्ठा के साथ मारा है, जरूरी नहीं कि वह सामने वाले को छुवे ही, पर उसका असर होना अवश्यंभावी है ' ये जूता किसका जूता है, ये जूता किस पर जूता है!
ये जूता खाली जूता है, या जूते के ऊपर जूता है!
जिस पर यह जूता फैंका क्या, उस पर ही यह जूता फेंका है!
जिसने यह जूता फेंका आखिर, उसने क्यों कर फेंका है!
क्या नालायक नेताओं की यह साजिश सोची समझी है!
या नेताओं पर लोगों के गुस्से की यह अभिव्यक्ती है।
जूते की यात्रा लंबी है, जूते का मतलब गहरा है,
आखिर क्यों लोगों का गुस्सा, जूता `भनका´ कर निकला है!
इन मुद्दों पर सोचो यारो, वर्ना हालत नाजुक होगी,
आगे यह स्थिति लोकतन्त्र के लिए बहुत घातक होगी।