आपको मन्त्रों तंत्रों का विरोध का अधिकार कतई नही है यदि आप कर्मकांड में विश्वाश करते हैं !
सप्तशती के विरोध में कुछ नही और कुमाउनी गढ़वाली मन्त्रो के विरोध में इतना हो हल्ला
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प्रिय मित्रो
मुझे आश्चर्य होता है कि जब से मैंने गढवाली - कुमाउनी मन्त्रों के बारे में मेल भेजना शुरू किया भूत सी प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं
अधिकतर प्रशंशा में हैं व कुछ विरोध में हैं
विरोध में भी कुछ बेतुके विरोधी स्वर हैं कुछ सही स्वर हैं
मन्त्र साहित्य के विरोधियों से मेरा प्रश्न है कि यदि आप मार्कन्डेय पुराण के सप्तशती मन्त्रों की भर्त्सना नही करते हो तो आप गढवाली मन्त्रों कि भर्त्सना कैसे कर सकते हो ?
गढवाली मंत्र कि बुराई इसलिए कि ये मंत्र स्थानीय या ब्रज भाषा में हैं और मार्कन्डेय पुराण के सप्तशती मन्त्रों क़ी प्रशंशा इसलिए क़ी ये मंत्र संस्कृत में हैं!!!!!!
आईये जरा सप्तशती के मन्त्रों (देवी महात्म्य) क़ी बाँनगी देखिये और फिर कुमाउनी गढवाली मन्त्रों को निहारिये . आपको पता चलेगा क़ी इन दोनों साहित्य में कुछ अंतर नही केवल भाषा का फरक है
वाह ! संस्कृत में छपा मंत्र सही और बर्ज/खड़ी बोली/कुमाउनी/गढवाली भाषाओँ में छपा मंत्र तुच्छ ? किसने अधिकार दिया आपको स्थानीय भाषा को तुच्छ समझना और संन्स्कृत को बड़ी भाषा समझना
?
सप्तशती का सामूहिक कल्याण हेतु मंत्र
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेष देवगणश्क्तिस्मुह्मुर्त्य ......... भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न :
विश्व की रक्षा के लिए
या श्री : स्वयम सुक्रितिनाम भवनेश्व लक्ष्मी पापत्म्नाम क्रित्ध्याम हृद्येसू बुद्धि:...... तां त्वा नता : स्म परिपालय देवी विश्वम
भय नाश के लिए मंत्र
क- सर्वरूपे सर्वेशे सर्व शक्तिस्मविन्ते भ्येभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते
ख़ - एत्तत्ते वदनम सौम्यं लोचनत्रयभूषितं पातु न : स्र्व्भीतिस्य कात्यानी न्मोस्तुतु ते
रोग नाश के लिए
रोग्नाशेषानपह्न्सी तुष्टा रुष्टा तू कामान सकलां भीषटान , त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां , त्वामाश्रिता हाश्र्यन्ता प्र्यन्ति
महामारी नाश के लिए
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते
बाधा शांति के लिए
स्र्व्बाधा प्रशमन त्रैलोक्य्स्यखिलेश्वरि , एवमेव त्वया कार्य मस्मद्वैरीविनाशम
वैक्रितिक्म रहस्यम कुच्छ नही संस्कृत में तांत्रिक अनुष्ठान ही है
यदि आप मर्केंडेय पुराण (देवी पुराण ) पढ़ें तो पाएंगे कि वैक्रितिक्म रहस्यम कुछ नही अपितु तांत्रिक अनुष्ठान ही है
अब आईये गढवाली -कुमाउनी मन्त्रों को निहारिये
गढवाली -कुमाऊं में निम्न मंत्र व तन्त्र हैं
नादबुद, जंत्र विधि , कामरू जाप, नरसिंगवाली , महाविद्या , विरावली मंत्र , नेत्रपाली मंत्र,
मन्त्र्वाली, रखवाली , नरसिंग की चौकी , हथ हणमंत , चुड़ैल का मंत्र , भैरववाली, मैमंदा रखवाली
घटथापना , दखिण दिसा , चुड़ा मंत्र , आप रक्षा , काली की रखवाली , अष्ट बली , कूर्माश्टक, कलुवा की रखवाली
मन्त्रावली, डैण की रखवाली , फोड़ी बयाळी , जूर (ज्वर ) , तोड़ी रखवाली, मंत्र गोरील काई , पंचमुखी हनुमान , सेळी बिधि, भैर्वाश्टक, चौडियाबीर मसाण , सेळी बयाली , हनुमान उखेल, बाघ गाडण , दडीया मंत्र , दरियावली , गणित प्रकाश, स्र्व्जादु उखेल, समैण , सन्क्राचार्ज बिधि, षेत्रिपाल , लोचडा मंत्र , सैद्वाली , अन्छरवाली , उखेल, ओल्याचार , भऊनाबीर , गुरु पादुका , गांठा , गुसाईं पादुका , श्रीनाथ सकुलेष, सौ से अधिक फुटकर मंत्र , मोचावली , फुटकर सबदी , नाथ निघ्न्तु छिदरवाली , इंद्रजाल
यदि आप इन मन्त्रों को पढो तो पाएंगे की इनमे और मार्केंडेय पुराण या सोलह कलाओं के कर्मकांडी साहित्य में अधिक अंतर नही है केवल कर्मकांडी साहित्य संस्कृत में हैं व मन्त्र तंत्र जन भाषा में है
जो मन्त्रों व तंत्रों का विरोध करते हैं वे जन भाषा विरोधी हैं
मन्त्रों तंत्रों का विरोध के वे ही अधिकारी हैं जो अपने घर में कर्मकांड नही करवाते हैं .संस्कृत में वाचन मंत्र हैं और पूजा का सामान साहित्य तन्त्र हैं . यदि सन्स्कृत भाषाई मंत्र तन्त्र मान्य हैं तो फिर जन भाषाई साहित्य की तौहीन क्यों ?