देखिए, क्या हुआ जब हजारों लोगों को आशीर्वाद देने आया 'भूत'
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में कुमौड़ के ऐतिहासिक मैदान में अनूठी लोक परंपरा की संवाहक हिलजात्रा उत्सव के हजारों लोग गवाह बने और लखियाभूत का आशीर्वाद लिया।
नगर के आसपास के इलाकों के अलावा कुमाऊं के अन्य स्थानों से भी लोग हिलजात्रा देखने पहुंचे। हिलजात्रा पर्व की तैयारी कुमौड़ गांव में मंगलवार से शुरू हो गई थी। मंगलवार देर रात तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। बुधवार दोपहर बाद नगर के सभी लोगों का रुख कुमौड़ गांव की ओर था।
कुमौड़ के ऐतिहासिक मैदान में शाम करीब पांच बजे से उत्सव की शुरुआत हुई। इससे पूर्व लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम हुए। कुमौड़ के ऐतिहासिक कोट (किले) से सबसे पहले रोपाई करने वाली महिलाओं का दल मैदान में उतरा। इसके बाद गलिया बल्द (आलसी बैल) की जोड़ी लाई गई। काफी देर तक यह कार्यक्रम चला।
बाद में ढोल-नगाड़ों के बीच जैसे ही लखिया भूत को मैदान में लाया गया तो उपस्थित लोगों के रौंगटे खड़े हो गए। लखियाभूत का पात्र इस साल नीरज महर बने थे। वह विशेष प्रकार का मुखौटा पहने थे। उन्हें नियंत्रित करने के लिए बड़ी-बड़ी रस्सियों का सहारा लिया गया।
मान्यता है कि लखियाभूत जितना आक्रामक है, प्रसन्न होने पर उतना ही फलदायी भी होता है। हजारों की तादात में मौजूद महिलाओं और पुरुषों ने लखियाभूत का आशीर्वाद प्राप्त किया।
लोक मान्यता है कि इस तरह की उपासना एवं आयोजन से लखियाभूत खुश हो जाते हैं। इससे गांव एवं इलाके में किसी प्रकार की विपदा नहीं आती। फसल बेहतर होती है।
सूखा और ओलों का प्रकोप नहीं होता है। करीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में सांसद अजय टम्टा, विधायक मयूख महर, भाजपा प्रदेश महामंत्री प्रकाश पंत, डीएम विनोद गिरी, एसपी आरएल शर्मा आदि मौजूद रहे। हिलजात्रा महोत्सव समिति के अध्यक्ष गोपू महर, चंद्रशेखर महर, यशवंत महर ने सभी का स्वागत किया।
कुछ इतिहासकार एवं अध्येता लखिया को भगवान शंकर का बारहवां अवतार मानते हैं। हिलजात्रा मूल रूप से नेपाल का पर्व है। वहां इसे इंद्रजात्रा के नाम से मनाया जाता है। कहा जाता है कि यह पर्व नेपाल के राजा ने महरों को भेंट स्वरूप प्रदान किया था।
कहते हैं कि महर लोग अतीत में नेपाल के राजा के निमंत्रण पर इंद्रजात्रा पर्व में शामिल होने गए थे। वहां इंद्रजात्रा शुरू होने से पहले भैंसें की बलि दी जाती थी। भैंसा कुछ इस तरह का था कि उसके सींग आगे की तरफ झुके थे। इस कारण उसकी गर्दन ढक गई। उसे काटने में अड़चन आ रही थी।
महर बंधुओं ने इस पहेली को हल कर दिया, जैसे ही भैंसें ने हरी घास खाने के लिए सिर ऊपर उठाया तो महर ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा ने खुश होकर यह उत्सव भेंट कर दिया।
इस उत्सव के साथ उन्होंने मुखौटे समेत कई अन्य सामग्री भी दी। कुमाऊं में आठों पर्व के समापन के अवसर पर अन्य स्थानों पर भी छोटे स्तर पर हिलजात्रा के आयोजन होते हैं। सभी स्थानों पर मुख्य पात्र के रूप में लखियाभूत का ही पूजन होता है। इसके अलावा हिरन-चितल को भी दिखाया जाता है। (amar ujala)