तन्दूर की कहानी
सरोज शर्मा (भोजन मूल शोधार्थी)
ई बात अलग च कि ई आज भारतीय खाणुक अहम हिस्सा च ।
तंदूर: खाण पकाण क एक तकनीक और उपकरण च जै मा हजार तरह का खाण पकयै जंदिन, पुरण जमन मा यै कु तोरीन बोलदा छा,
यै मा संदेह नीच कि तंदूर मुगलों का जमन मा खूब लोकप्रिय छा खासकर जहांगीर का बगत दूसर जगा लिजांण वला हल्का तंदूर विकसित हूंयी, लेकिन पैल तंदूर जै कु जिक्र प्राचीन यात्रा वृतांत मा मिलद वू जमीन क ताल हूंद छा, तुगलको का रसौड़ा मा कबाब और नान बणाण मा हूंद छा, चंगेज खान ल पैल बार यैकु परिचय तुर्को और अरबों से करवाई बाद मा ई भारत आई,
चिकन का शौकीन तंदूरी चिकन कु नाम ही सुण लीं त ऊंक गिचची मा पाणि आ जा,
भारत मा व्यंजनु कु स्वाद बणाण मा हमर पारंपरिक तंदूर महत्वपूर्ण भूमिका निभांद, भारत मा तंदूर कु इतिहास सिन्धु घाटी और हड़पपा सभ्यताओ से मनै जांद, यूं एतिहासिक स्थलों की खुदै मा तंदूर का अवशेष पयै गैं,तंदूर क उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप तक नी च ,बल्कि पश्चिम और मध्य एशिया मा भि
लोग तंदूर क उपयोग करदा छाई, तंदूर का अवशेष प्राचीन मिश्र और मोसोपोटामिया क सभ्यताओ मा भि पयै गैं, जमीन क ताल कु तंदूर आर्मेनियाई तोरीन क याद दिलांद, यू आज क ओवन क जन काम करद, ये नजरिए से यू मुगल नी च, बल्कि आर्मेनियाई च, मुगलो का बाद ये थै अफगान तंदूर क साथ मिलैकि नै रूप दियै ग्या, जै से सांझा चुल्हा बणाण मा मदद ह्वाई जु एक पंजाबी तंदूर च, हम अगर गुरू नानक देव कु जिक्र नि करला त तंदूर क इतिहास अधूरा रैण, ऊंक द्वारा तंदूर क उपयोग कु बढावा दियै ग्या, ऊंन जातिगत बाधाओं क दूर करण और समानता कु बढावा दीण खुण सांझा चुल्लू बणाण कु आग्रह कैर, सांझा चूल्ला कि अवधारणा ल न केवल जातिगत बाधाओं थै दूर करण मा मदद कैर बल्कि महिलाओ खुण भि एक बैठक केन्द्र क निर्माण कैर दयाई।