मौण उत्सव के आयोजन से कुछ दिन पूर्व टिमरू के तनों को काटकर लाया जाता है तथा इसे आग में थोड़ा सा भूनकर इसके तने की छाल को ओखली में कूटकर घराटों व चक्कियों में बारीक पाउडर के रूप में तैयार कर बकरी की खाल के बने थैले, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘खलटे` कहा जाता है अथवा सामान्य कपड़ों के थैले में संग्रहीत कर लिया जाता है।
इस मेले की तिथि तय होने के साथ-साथ यह भी तय होता है कि इस वर्ष कौन सा गांव मौण मेले का नेतृत्व करेगा तथा चयनित गांव द्वारा ही मुख्यत: बड़ी मात्रा में टिमरू का पाउडर तैयार किया जाता है। यह पाउडर लगभग ३ से ४ क्विंटल तक होता है। पारम्परिक रीति रिवाजों के अनुसार ढोल-दमाऊ बजाने वाले पुरुष संदेशवाहक बनकर गांव-गांव तक मौण मेले की सूचना व निमंत्रण पहुंचाते हैं।
इस मेले में मुख्यत: पुरुष अधिक संख्या में भाग लेते हैं। जबकि महिलाएं काफी कम संख्या में इस मेले के समापन स्थल में आकर लोकगीतों व लोकनृत्य में सम्मिलित होती हैं। ढोल नगाड़ों व रणसिंगा आदि से सुसज्जित वाद्य यन्त्रों के साथ हाथ में टिमरू का डंडा लिए तथा मछली पकड़ने के जाल मछकण्डी को टांगकर सीटियां बजाते व हल्ला करते हुए अपने बदन में सिर्फ लंगोट या कच्छा बनियान पहनकर मछली पकड़ने वाले जाल को लिए उस सुनिश्चित स्थान पर पहुंचते हैं जहां पर टिमरू का पाउडर नदी में डाला जाता है। उस नियत स्थान को मेड कहा जाता है तथा मेले में सम्मिलित होने वाले ग्रामीणों को मणेर कहते हैं। सर्वप्रथम जल की
पूजा टिमरू के पाउडर से की जाती है। बाद में मौण से भरे थैलों व खलटों पर टिमरू के डण्डों से प्रहार कर उन्हें तोड़ा जाता है। पाउडर से मछलियां बेहोश हो जाती हैं और उसी दिशा में जन सैलाब पानी में टूट पड़ता है। ग्रामीण लोग मछलियों को पकड़कर गले में टंगी मछकण्डी में एकत्रित करते जाते हैं। इसमें अधिकांशत: रोहू मछली व एक अन्य सर्पाकार मछली पकड़ी जाती है। जिसे स्थानीय निवासी गूज कहते हैं।
इस दिन पकड़े जाने वाली मछलियों में सबसे बड़ी मछली को गांव के मंदिर में चढ़ाया जाता है तथा अन्य मछलियों का इस्तेमाल भोजन में किया जाता है। इसे स्थानीय ग्रामीण शगुन सिद्धि कहते हैं। स्थानीय लोगों से बात करने से पता चलता है कि इस पर्व का अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में बन्द होने का मुख्य कारण इस मेले में हिंसक झगड़ा होना तथा अश्लील गीत ”लेचुआ“ गाना इस मेले को असभ्य व गैर सामाजिक पर्व के श्रेणी में ला देता है।
आज भी इस मेले में हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं। जहां स्थानीय बुजुर्ग इसके आयोजन के घटते स्तर से चिन्तित हैं वहीं दूसरी तरफ स्थानीय युवक व जनप्रतिनिधि इसे राज्य के मुख्य आकर्षक पर्व के रूप में राज्य पर्यटन विभाग से चिन्हित करा विकसित करने को प्रयासरत हैं।