"तीर या तुक्का" मुहावरे की यह कहानी उत्तराखण्ड में तुक्का गुरु, तुक्का बामण, तुक्का लागी ज्योतिष भै के नाम से प्रचलित है।
एक बार एक पंडित जी अपने गांव में अपनी पंडिताइन के साथ रहते थे और थोड़ी- बहुत पंडिताई कर अपना जीवन गुजर-बसर करते थे। लेकिन वे अपनी आमदनी से खुश नहीं थे और पैसों के लिये परेशान रहते थे, एक बार वे परेशान होकर रास्ते पर जा रहे थे, तो रास्ते में ही गांव का किशनू मिल गया और उसने पंडित जी से पूछा कि" पंडितज्य़ू, मेरा बैल कहीं खो गया है, आप गन्थ-पूछ कर दो कि बैल कहां होगा?" पंडित जी पहले से ही भुनभुनाये थे, उन्होंने गुस्से में कहा कि "अरे कहां जायेगा, तेरा बैल, होगा किसी धान के खेत में" किशनू पास के धान के खेत में गया तो उसे अपना बैल मिल गया, तो शाम को वह पंडित जी के लिये अनाज आदि लेकर गया और उन्हें धन्यवाद दिया। पंडिताइन ने अपने स्त्रियोचित गुण के अनुसार पूरे गांव में बात फैला दी कि हमारे पंडित जी पर अबतार हो गया है और कांप कर भूत, भविष्य और वर्तमान सब बता रहे हैं। एक दिन किसी का घोड़ा खो गया तो वह दौड़ता-दौड़ता पंडित जी के पास आया और उनसे अपने घोड़े के लिये पूछ कर देने का अनुरोध किया, तो पंडित जी ने कहा कि अभी मैं पूछ नहीं करुंगा, तू दिन में आना। अब पंडित जी बड़े परेशान हो गये और खुद घोड़े को ढूंढने चल पड़े, गांव के पधान के बाड़े में उन्हें घोड़ा घास चरते हुये दिख गया तो बाड़े का गेट बंद कर वह घर आ गये और उन्होंने घर आकर आसन जमाया और घोड़े वाले को बुलाकर चावल के दाने हाथ में लेकर कहा कि " तेरा घोड़ा पधान के बाड़े में घास चर रहा है, जा ले आ।" घोड़े के मिलने पर वह खुश हो गया और पंडित जी को दक्षिणा दे गया। धीरे-धीरे पंडित जी की ख्याति बड़ती गयी और राजा के कान में भी यह बात पड़ी। एक दिन राजा की बेटी का नौलखा हार खो गया, तो राजा ने पंडित जी को बुला भेजा और कहा कि पंडित जी मैने आपकी ख्याति सुनी है, कल तक मेरी बेटी का हार ढूंढ कर दो, अगर नहीं ढूंढ पाये तो तुम्हें मौत की सजा दी जायेगी। पंडित जी की हालत खराब हो गयी, वे राजमहल में अपने कमरे में आ गये, पर उन्हें नींद नहीं आयी और वे नींद को बुलाने लगे "आ नीनू-आ नीनू, भोल तेरी मौत" अर्थात नींद तू आज आ जा, कल तो मेरी मौत हो जायेगी, फिर कैसे आयेगी। इसे राजमहल में झाडू लगानी वाली नीनू नाम की दासी ने सुना तो वह आकर पंडित जी के पैरों में गिर पड़ी कि पंडित जी मुझे बचा लो, मैं हार आपको दे देती हूं। पंडित जी ने वह हार महल में एक घड़े में रख दिया और दूसरे दिन हाथ में चावल के दाने लेकर पूछ कि और बताया कि महल के सातवें खम्भे के पास जो घड़ा है, उसमें ही हार है। सेवकों ने हार निकाल लिया, इससे राजा खुश हो गया और पंडित जी को दरबार में बुलाया और कहा कि" पंडित जी आप तो बड़े ग्यानी हो, मैं आपको जागीर दूंगा और अपना राज ज्योतिषी भी बनाऊंगा, लेकिन उससे पहले आपको यह बताना होगा कि मेरी मुटठी में क्या है?" अब पंडित जी परेशान कि अभी तक तो भाग्य साथ दे रहा था, अब क्या करुं, परेशान पंडित जी अब हे-राम, हे राम करने लगे और परेशानी में उनके मुंह से हे राम की जगह ही-रा, ही-रा निकलने लगा। राजा को अब विश्वास हो गया कि पंडित जी वास्तव में जानकार हैं, उसने पंडित जी को अपना राज ज्योतिषी बना लिया और बहुत जागीर भी भेंट कर दी। इसे कहते हैं तुक्का लागी-ज्योतिष भै।