विगत शनिवार को गिरदा एक कार्यक्रम में भाग लेने देहरादून आये थे, उनसे मुझे भेंट करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। घी-त्यार से संबंधित कई बातें गिरदा ने मुझे बताईं, इस त्यौहार के अवसर पर उन्होंने मेरा पहाड़ परिवार के सभी सदस्यों और समस्त देश-प्रदेश वासियों को शुभकामनायें दी हैं, एक छोटी सी कविता के साथ-
"घ्यू संकरात क चुपाड़ा हाथ,
मास का बेडू, तिमळाक पात"
साथ ही इस त्यौहार के दिन घी न खाने वाले व्यक्ति के लिये कहा जाता है कि वह अगले जन्म में गनेल बनेगा। इसका तथ्यात्मक पहलू भी गिर्दा ने बतलाया कि "जो लोग प्राकृतिक संसाधनों और पशुधन का पूरा इस्तेमाल नहीं करते और अकर्मण्य होकर प्रकृति और उसकी विपुल सम्पदा का इस्तेमाल नहीं करते, ऐसे कर्महीन निश्चित ही अगले जन्म में गनेल की ही गति को प्राप्त होंगे।"