तब बिष्णु नाभी बै कमल जो पैद है गो,
तै दिन का बीच में कमल बटिक पंचमुखी ब्रह्मा पैड भो,
जो ब्रह्मा-ले सृष्टि रचना करी, तीन ताला धरती बड़ै,
नौ खण्डी गगन बड़ा छि।
....कि तै बखत का बीच में बाटो बटावैल ड्यार लि राखौ,
घासिक घस्यार बंद है रौ, पानि को पन्यार बंद है रौ,
धतियैकि धात बंद है रै, बिणियेकि बिणै बंद है रै,
ब्रह्मा वेद चलन बंद है रो, धरम्क पैन चरण बंद है गो,
क्षेत्री-क खण्ड चलन बन्द है गो, गायिक चरण बन्द है गो,
पंछीन्क उड़्न बंद है गो, अगासिक चडि़ घोल में भै गईं,
सुलक्षिणी नारी घर में पंचमुखी दीप जो जलण फैगो........
......कि तै बखत का बीच में संध्या जो झुलनें,
दिल्ली दरखड़ में, पांडव किला में,
जां पांच भै पाण्डवनक वास रै गो,
संध्या जो झूलनें इजूऽऽऽ हरि हरिद्वार में, बद्री केदार में,
गया-काशी,प्रयाग, मथुरा-वृन्दावन, गुवर्धन पहाड़ में,
तपोबन, रिखिकेश में, लक्ष्मण झूला में,
मानसरोबर में नीलगिरि पर्वत में......।
तै तो बखत का बीच में, संध्या जो झुलनें इजू हस्तिनापुर में,
कलकत्ता का देश में, जां मैय्या कालिका रैंछ,
कि चकरवाली-खपरवाली मैय्या जो छू, आंखन की अंधी छू,
कानन की काली छू, जीभ की लाटी छू,
गढ़ भेटे, गढ़देवी है जैं।
सोर में बैठें, भगपती है जैं,
हाट में बैठें कालिका जो बणि जैं।
पुन्यागिरि में बैठें माता बणि जैं,
हिंगलाज में भैटें भवाणी जो बणि जैं।
....कि संध्यान जो पड़नें, बागेश्वर भूमि में, जां मामू बागीनाथ छन।
जागेशवर भूमि में बूढा जागीनाथ रुनी,
जो बूढा जागी नाथन्ल इजा, तितीस कोटि द्याप्तन कें सुना का घांट चढ़ायी छ,
सौ मण की धज चढ़ा छी।
संध्या जो पड़ि रै इजाऽऽऽ मृत्युंद्यो में, जां मृत्यु महाराज रुनी, काल भैरव रुनी।
तै बखत का बीच में संध्या जो झुलनें,
सुरजकुंड में, बरमकुंड में, जोशीमठ-ऊखीमठ में,
तुंगनाथ, पंच केदार, पंच बद्री में, जटाधारी गंग में,
गंगा-गोदावरी में, गंगा-भागीरथी में, छड़ोंजा का ऎड़ी में,
झरु झांकर में, जां मामू सकली सैम राजा रुनी,
डफौट का हरु में, जां औन हरु हरपट्ट है जां, जान्हरु छरपट्ट है जां.......।
गोरियाऽऽऽऽऽऽ दूदाधारी छै, कृष्ण अबतारी छै।