हिल जात्रा, ऎसा त्यौहार है, जो सिर्फ पिथौरागढ़ में ही मनाया जाता है। यह शिव जी की बारात का एक रुप माना जा सकता है। इसमें लोग बैलों का मुखौटा लगाकर नृत्य करते हैं और यह लोग जोडि़यों में होते है और इनको हांकने के लिये एक हलिया भी होता है। कई जोडि़यां बनाई जाती हैं और सब मैदान में घुंम-घूम कर नृत्य करते हैं। कुछ बैल अकेले भी होते हैं, मुख्य रुप से दो बैल अकेले होते हैं एक मरकव्वा बल्द, जो सबको मारता फिरता है और सबसे तेज दौड़ता है, दूसरा होता है गाल्या बल्द, जो कि कामचोर होता है और बार-बार सो जाता है और उसका हलिया परेशान होता है। यह दोनों बल्द संस्कृति का प्रदर्शन करते हुये ग्रामीण हास्य को भी परिलक्षित करते हैं।
हिल जात्रा में मुख्य आकर्षण होता है हिरन और लखिया भूत तथा महाकाली। हिरन के लिये एक आदमी को हिरन का मुखौटा पहना दिया जाता है और उसके पीछे तीन लोगों को बैठी मुद्रा में ढंक दिया जाता है, दूर से देखने में लगता है जैसे कोई हिरन चर रहा है। अंत मे हिरन के आंग देवता भी आता है और यह कथानक समाप्त होता है। इसे पहाड़ी ड्रेगन भी कहा जा सकता है, जिस तरह से चीन में मुखौटो के द्वारा ड्रेगन प्रदर्शित किया जाता है, उसी प्रकार से हमारे उत्तराखण्ड में हिरन को दिखाया जाता है।
लखिया भूत शिव जी का एक गण है, जिसका प्रदर्शन भी इस जात्रा में किया जाता है।