Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 181010 times)

Bhishma Kukreti

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वाघोरी (उत्तरकाशी )  में  एक   निमदारी    युक्त   मकान    में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन, लकड़ी नक्काशी
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी -266
House wood Carving Art in , Vaghori  Uttarkashi
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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 हरसिल उत्तरकाशी का  बहुत hही आकर्षक क्षेत्र है . इस क्षेत्र में पारम्परिक मकान  आज भी बहुतायत में मिलते हैं . आज  वाघोरी  के दो मकानों  में  'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन, लकड़ी नक्काशी पर चर्चा होगी .
वाघोरी (हर्सिल  घाटी , उतरकाशी )  का यह मकान दुपुर है व दुखंड है . जैसे कि उत्तर पश्चिम उत्तरकाशी  के मकानों का प्रचलन  है कि उसी तरह ही इस  मकान के तल मंजिल में गौशाला या भंडार गृह हैं . पहली मंजिल में बरामदे पर निमदारी स्थापित है .निमदारी   पांच  सिंगाडों / स्तम्भों से निर्मिया है जिसमें चार ख्वाळ हैं .
 स्तम्भ , आधार की व मुरिंड की कड़ियों में   'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' ज्यामितीय कटान हुआ है . याने सिंगाड़ /स्तम्भ सपाट हैं .  प्रत्येक   ख्वाळ  में (दो स्तम्भ के मध्य )  आधार पर दो फीट तक जंगला (रेलिंग) बंधा है।  रेलिंग  'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  XX व चतुर्भुज में भी XX  की ज्यामितीय अल्नक्र्ण कला दृष्टिगोचर हो रही है .
निष्कर्ष निकालना सरल है कि वाघोरी के इस निमदारी में स्तम्भों , कड़ियों व जंगले में  सपाट  अलंकरण युक्त कला दृष्टिगोचर होती है .
सूचना व फोटो आभार : माधवी दावडा 
यह  लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . भौगोलिक ,  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakkhali,  Mori) of   Bhatwari , Uttarkashi Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Rajgarhi ,Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakkhali,  Mori) of  Dunda, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of  Chiniysaur, Uttarkashi ,  Garhwal ,  Uttarakhand ;   उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , भटवाडी मकान लकड़ी नक्कासी ,  रायगढी    उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी , चिनियासौड़  उत्तरकाशी मकान लकड़ी नक्कासी   श्रृंखला जारी रहेगी


Bhishma Kukreti

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 लाखामंडल (  देहरादून  )  शिव मन्दिर परिसर   निकट के एक   जीर्ण शीर्ण   मकान में     'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'    की  काष्ठ कला , अंकन लोक कला  अलंकरण, लकड़ी नक्कासी
गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बाखली  , कोटि बनाल , खोली , मोरी    ) में    'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'     काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, लकड़ी नक्कासी- 269
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Dehradun   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 लाखा मंडल , जौनसार , रवायीं , हरसिल , जौनपुर क्षेत्र से   आकर्षक कलायुक्त भवनों की सूचनायें  मिल रही हैं  I लाखा मंडल , रवायीं  क्षेत्र के बड़ी मकानों व मन्दिरों की काष्ठ कला व पाषाण कला पर तो खूब    लिखा गया  है किंतु छोटे छोटे कलायुक्त मकानों पर बहुत कम लिखा गया है .
  ' काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  की     काष्ठ अंकन लोक कला     श्रृंखला में आज लाखामंडल  शिव मन्दिर परिसर के निकट के एक  जीर्ण शीर्ण मकान    में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'     काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, लकड़ी नक्कासी  पर चर्चा होगी .  मकान भ्ग्न्वस्था में है व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने के कारण अवश्य ही यहाँ नया  घर निर्मित हो गया होगा. चूँकि अशोक उनियाल ने एक पर्यटक रूप में फूटो ली थी तो मकान  की मिल्कियत बारे में कोई सूचना नही है . लाखा मंडल से अशोक उनियाल ने  ऐसे कई फोटो भेजीं हैं तो उन्हें संख्या नाम दे दिया जाएगा . I 
लाखा मंडल के इस जीर्ण शीर्ण मकान  दुपुर -दुघर है .I लाखा मंडल   के इस   जीर्ण -शीर्ण मकान  के दीवारों के पत्थर   व पत्थरों के मध्य लकड़ी की सुडौल बौळीयों को    देखकर ही  सहर्ष अनुमान लगाना सरल है कि मकान कोटि बनाल  शैली से निर्मित हुआ है I    लाखा मंडल के इस जीर्ण शीर्ण मकान के तल मंजिल में खोली है।  खोली के सिंगाड़ /स्तम्भ  व मुरिंड /मथिंड  (शीर्ष )  के अवशेष बता रहे हैं कि खोली नक्काशीदार थी।  खोली के बाह्य सिंगाड़ों में बेल बूटों (सर्पीली -जंजीर दार लता व पर्ण ) की नक्काशी हुयी है जो अभी भी द्रष्टिगोचर हो रही है।  मुरिंड /मथिंड   (  शीर्ष कड़ियाँ  )  मध्य में  देव मूर्ति भी स्थापित है। 
पहली मंजिल में तिबारी स्थापित है।  तिबारी के सिंगाड़ / स्तम्भ  कड़ी पर स्थापित हैं।  लाखा मंडल के इस मकान में तिबारी  चौखम्या व तिख्वळया (चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ ) की है।  चारों सिंगाड़ आकृति , आकर व कला में एक सामान हैं। 
स्तम्भ के आधार में अधोगामी पद्म पुष्प से कुम्भी बनी है।  कुम्भी के उपर ड्यूल है जिसके उपर उर्घ्वागामी पद्म पुष्प दल है। उर्घ्वागामी पुष्प दल के बाद सिंगाड़ लौकी  आकार ले लेता है।  जहाँ सिंगाड़ की    मोटाई सबसे कम है  वहां से सिंगाड़ दो भागों में विभक्त होता है , एक भाग सीधे उपर की ओर थांत (क्रिकेट बैट ब्लेड )  आकर ले उपर मुरिंड /मथिंड की  कड़ियों मिल जाता है।  दूसरी ओर    सिंगाड़  से मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो दूसरे सिंगाड़ के अर्ध चाप से मिल पूरा मेहराब (  Arch/तोरणम ) बनाते हैं . मेहराब के स्कन्ध में दोनों ओर बहुदलीय     फूल गुदे हैं .I मुरिंड की कड़ी सुडौल व टिकाऊ है . कड़ी में कोई अंकन  नहीं दिख रहा है I स्तम्भ में कुम्भी से लेकर थांत की   जड़  तक उपर से Flute -Flitted  (उभार -गड्ढे ) का अंकन हुआ है I 
निष्कर्ष निकलता है कि लाखा मंडल (  देहरादून  )  शिव मन्दिर परिसर   निकट के एक   जीर्ण शीर्ण   मकान  की तिबारी व   खोली में     'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'     काष्ठ अंकन  पूरी तरह  आम गढवाली तिबारी व खोली जैसे hi है व कोटि बनाल  जौनसारी शैली की छाप भी है I
सूचना व फोटो आभार : अशोक उनियाल
यह लेख कला संबंधित है न कि  मिल्कियत संबंधी ,.  ये सूचनायें  श्रुति माध्यम से मिलती हैं अत:  भौगोलिक व  मिल्कियत  सूचना में व असलियत में अंतर हो सकता है जिसके लिए  संकलन कर्ता व  सूचनादाता  उत्तरदायी नही हैं .   
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देहरादून , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार, बाखली , कोटि बनाल  मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला जारी रहगी
 Traditional House Wood Carving of Dehradun Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  will be continued -
  House Wood Carving Ornamentation from Vikasnagar Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Doiwala Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from Rishikesh  Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Chakrata Dehradun ;  House Wood Carving Ornamentation from  Kalsi Dehradun ;  चकराता , देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  डोईवाला देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  विकासनगर देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ; कालसी देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी ;  ऋषीकेश देहरादून में मकान में लकड़ी पर नक्कासी श्रृंखला जारी रहेगी 


Bhishma Kukreti

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मसूण (टिहरी गढवाल ) में स्व ज्वालाराम कुकरेती निर्मित तिबारी में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन, लकड़ी नक्काशी
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल   ) में काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन, लकड़ी नक्काशी -  265
  Traditional House Wood Carving Art of  Masun  , Tehri  Garhwal

संकलन - भीष्म कुकरेती
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 मसूण (टिहरी गढवाल )  से चार  तिबारियुक्त मकानों की सूचना मिली और यह भी सूचना मिली कि अब केवल दो hi तिबार्तियाँ बची हैं . इसी क्रम में आज स्व ज्वालाराम  कुकरेती के तिबरियुक्त मकान में  काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन अथवा लकड़ी नक्काशी पर चर्चा होगीI  स्व ज्वालाराम कुकरेती  द्वारा निर्मित मकान दुपुर , दुखंड है व तिबारी पहली मंजिल में स्थापित है . तिबारी छज्जे के उपर देहरी पर आधारित है व चार सिंगाड़ों /स्तम्भों (चौखम्या) है व तीन ख्वाळ की है . प्रत्येक स्तम्भ एक समान  हैं . स्तम्भ का  आधार की  कुम्भी अधोगामी  (नीचे की ओर ) पद्म पुष्प से   निर्मित है  . कुम्भी के bad ड्यूल है , ड्यूल के उपर उर्घ्वागामी (सीधा उपर की ओर )  पद्म पुष्प है . यहाँ से स्तम्भ लौकी आकर धारण क्र लेता है . जहां  स्तम्भ की मोटाई सबसे कम होती है  वहां पर उल्टा कमल दल है फिर ड्यूल है , ड्यूल के उपर सीधा कमल दल है . यहाँ से स्तम्भ उपर की ओर थांत आकार धारण कर उपर मुरिंड से मिलता है व एक ओर से मेहराब का अर्ध चाप निकलता है . मेहराब  तिपत्ति /trefolic  रूप  में है . मेहराब के स्कन्धों में एक एक फूल है व  स्कन्ध त्रिभुज में बेल बूटों का अंकन है . थांत में भी प्राकृतिक अंकन है .  आधार से मुरिंड तक लेकर   स्तम्भ के उपर flute-flitted (उभर गड्ढे ) का अंकन  हुआ है .मुरिंड में प्राकृतिक नक्काशी हुयी है .
सूचना अनुसार पहले मकान के तल मंजिल में भव्य खोली थी .
निष्कर्ष निकलता है कि  स्व ज्वालाराम कुकरेती निर्मित मकान की तिबारी में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' से प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण अंकन हुआ है .
 सूचना व फोटो आभार: पंकज कुकरेती   
यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I   भौगोलिक स्तिथि और व भागीदारों  के नामों में त्रुटी  संभव है I 
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गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ  कला  , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्काशी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ; House Wood carving Art from   Tehri; 


Bhishma Kukreti

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सन1860 के  महासू मन्दिर (लख्वाड़ा, देहरादून ) में  'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  की काष्ठ कला अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्कासी 

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड ,  के  भवन  ( कोटि बनाल   , तिबारी , बाखली , निमदारी)  में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  की काष्ठ कला अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्कासी -268
  Traditional House wood Carving art of  Mahasu temple  Lakhwar  , Dehhradun   
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जौनसार बावर व उत्तरकाशी  मकानों   में  काष्ठ कला दृष्टि से  उत्तराखंड hi नही भारत में अतुलनीय क्षेत्र हैं . मेरा  कला क्षेत्र मकान हैं व मंदिरों  के मकान पर विवेचना करनी पड़ी  तो वः कोई विशेष कारण ही   रहता है . लख्वाड़ में  महासू  मन्दिर  को अपनी श्रृंखला में लेने का मुख्य कारण है इस मन्दिर की 1860 की एक फोटो  .     वर्तमान के महासू    मन्दिर में परिवर्तन कर दिया गया है किंतु  संरचना व शैली पुरातन ही रखी गयी है जो    प्रशंसनीय  है  अन्य था गढवाल में तो प्राचीन शैली को नष्ट कर नई कोई शैली अपनाने का रिवाज चल पड़ा है  (जैसे   ढांगू जसपुर में नागराजा मन्दिर व  त्रिवेणी जसपुर  के   ग्वील का  शिवालय  में प्राचीन शैली सर्वथा समाप्त कर  दी  गयी है ). 
9  वीं सदी  में     निर्मित   मन्दिर  की   186 0  की फोटो में लिखा है - मसूरी के निकट महासू मन्दिर में स्त्रियाँ नाच कर रही हैं . महासू के इस मन्दिर में चारों महासू भाई देव विद्यमान हैं I.
  प्रस्तुत  महासू   मन्दिर के छाया चित्र से भी साफ़ है कि मन्दिर निर्माण में पत्थर -लकड़ी प्रयोग अभिनव है .     हिमाचल व उत्तराखंड के प्रसिद्ध  कला -वास्तु के इतिहासकार  ओम  चंद हांडा व मधु जैन अपनी पुस्तक 'Art and Archetecture of Uttarakhand page 92 से आगे ' में लिखते हैं कि मन्दिर कोटि बनाल शैली  (पत्थर व लकड़ी के योग  से ) से बना है व  काठ - पत्थर का समन्वय  का सबसे उत्तम  उदाहरण  है महासू मन्दिर हनोल .  शिखर नाग   शैली के हैं . शिखर  शुंडाकार /पिरामिड शैली के हैं .  मन्दिर की प्रारंभिक बनावट हूण शैली का था .
  फोटो के मन्दिर में तल मंजिल  का भाग पत्थर का बना है . पहली मंजिल में  लकड़ी का काम    साफ साफ़ झलकता है . पहले मंजिल   के बरामदा या दर्शक   दीर्घा  के किनारे पर सामने  की ओर 9 स्तम्भ हैं अगल बगल में भी 9 स्तम्भ हैं . सभी स्तम्भों में नक्काशी हुयी है . आधार में  उल्टे  कमल दल से कुम्भी बनी है , फिर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल  से निर्मित घुंडी है . यहाँ से स्तम्भ सीधा उपर जाता है किंतु मुरिंड/ शीर्ष  पर  पंहुचने से पहले स्तम्भ में वाही व वाही शैली का अंकन हुआ है जो आधार पर हुआ है याने शीर्ष की ओर आधार कटान का दुहराव है .  मुरिंड की कड़ी लकड़ी के पत्तिका व झालर से ढक गयी है . पत्तिका  में जालीदार जैसे बारीक नक्काशी हुयी है .    और  झालर के दसियों लड़ियों में ऐसा  अंकन     हुआ   है जैसे गढवाली हुक्के के उपरी डंडिका में या कलायुक्त चारपाई के पायों में पाए जाते हैं ( , घुंडी , ड्यूल व फिर घुंडी अंकन  ) I
स्तम्भों के मध्य ख्वाळ में आधार पर जंगला है . ख्वाळ के मध्य  लकड़ी के पटिलों में  आयात नुमा छेद कर नक्काशी   से जंगला   निर्मित हुआ है .
पहली मंजिल के उपर पटालों की  ढलवां  छत  है व छत के उपर दूसरी मंजिल   पर पहली मंजिल की संरचना का दुहराव है किन्तु     दूसरी  मंजिल में दर्शक  दीर्घा    पहली   मंजिल की दर्शक   दीर्घा   से छोटी है . कला व अन्य संरचना हिसाब से पहली मंजिल के दर्शक दीर्घा व दूरी मंजिल के दर्शक  दीर्घा सामान   ही  हैं केवल  दूसरी मंजिल के ख्वाळ  आधार पर जंगले में  लघु  स्तम्भ  भिन्न हैं . दूसरी मंजिल के  बरामदे /दर्शक  दीर्घा के जंगले के   लघु  स्तम्भ कुछ कुछ घुंडी नुमा हैं (जैसे हुक्के की उपरी डंडिका में कला अंकन होता है I
 .  निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि  1860  तक  का  महासू मन्दिर भव्य था व  काष्ठ अंकन से सुस्सज्जित था .
 . सूचना व फोटो आभार : अभाई मिश्रा 
chkarata- the Heart of Jaunsar bawar  page
स्रोत  -    प्रसिद्ध इतिहासकार - लोकेश ओहरी 
कला विवेचना हेतु अन्य स्रोत - ओम चंद हांडा , मधु जैन , आर्ट एंड आर्किटेक्चर  ऑफ़ उत्तराखंड पेंटागन प्रेस
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar Dehradun ; Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar , Uttarkashi;  Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar, Chakrata;     Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar, Kalsi;  Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar Devdhar;  Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar , Bharam ;  Koti Banal House Wood carving art in  Tyuni, Jaunsar ;   कालसी जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;    त्यूणी जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;     चकरोता जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;  बड़कोट   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;     भरम जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;  हनुमानचट्टी   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;  यमुनोत्री   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;


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जखोल   (उत्तरकाशी ) में  दो मकानों में  काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  की काष्ठ कला अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्कासी
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड ,  के  भवन  ( कोटि बनाल   , तिबारी , बाखली , निमदारी)  में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  की काष्ठ कला अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्कासी -267 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 जौनसार से   कई मित्रों ने लकड़ी पर नक्काशी युक्त मकानों की सूचना डी है . जौनसार  के मकान गढवाल के अन्य भागों से बिलकुल अलग शैली के होते हैं . केवल चमोली के  नीती  व  माणा  घाटी में इस प्रकार के काष्ठ कला शैली के मकान मिलते हैं . किन्तु उतनी भव्यता नही मिलती जितनी जौनसार , रवायीं , हरसिल घाटी के मकानों में मिलती है . इसी क्रम में प्रसिद्ध मीडिया कर्मी जय प्रकाश पंवार द्वारा प्रेषित   सूचना   के अनुसार जखोल  के दो  मकानों में  'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  की  काष्कठ कला , अलंकरण पर  चर्चा होगी . सरलता में दोनों मकान सुंदरता के  अच्छे उदाहरण पेश करते हैं .
जखोली के दोनों मकान  कुछ कुछ एक सामान हैं कला दृष्टि से . सूखे घास /पराळ के सामने वाला  मकान  दुपुर व पहली मंजिल के उपर आधा पुर  -दुखंड है , जौनसार , चमोली , हरसिल क्षेत्रों जैसे ही तल मंजिल में  भंडार गृह या गौशाला है . पहली मंजिल में छज्जा टिकाऊ व ठोस लकड़ी का निर्मित है छज्जा के बाहरी ओर टिकाऊ ठोस कड़ी है व उपर मुरिंड /मथिंड  की कड़ी  भी चौकोर टिकाऊ व ठस है . छज्जे की कड़ी से उपर तक चार स्तम्भ /खाम हैं जो चौखट नुमा हैं . छज्जे /बरामदे के अंदर कमरों  से खुलने वाले  दरवाजों  के सिंगाड़/स्तम्भ में व मुरिंड में एक स्तर पर जय्मितीय कटान हुआ है . बाकी दरवाज़े सपाट हैं .
  पूरे  मकान में सपाट ज्यामितीय कटान की कला दृष्टिगोचर हो रही है व मकान आकर्षक लग रहा है 
दूसरे मकान में भी   काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'   की काष्ठ .  कला दृष्टिगोचर हो रही है
 .   दोनों मकानों  की लकड़ी पर नक्काशी     ने सिद्ध किया कि सरल डिज़ायन  सदा  ही  आकर्षित करता है .

सूचना व फोटो आभार : जय प्रकाश पंवार

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . भौगोलिक ,  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar Dehradun ; Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar , Uttarkashi;  Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar, Chakrata;     Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar, Kalsi;  Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar Devdhar;  Koti Banal House Wood carving art in Jaunsar , Bharam ;  Koti Banal House Wood carving art in  Tyuni, Jaunsar ;   कालसी जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;    त्यूणी जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;     चकरोता जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;  बड़कोट   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;     भरम जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;  हनुमानचट्टी   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;  यमुनोत्री   जौनसार में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  कोटि बनाल ;


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मुड़ी खेड़ा (यमकेश्वर, पौड़ी  )  मेंबलबीर सिंह असवाल के मकान में' काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में ' काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्कासी--271
Traditional House Wood Carving Art in Khera , Yamkeshwar , Pauri garhwal
 संकलन -भीष्म कुकरेती
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 खेड़ा (उदयपुर पट्टी , पौड़ी गढवाल )  से  कुछ तिबारियों , निमदारी युक्त तिबारी व   जंगलेदार  मकानों की सूचना मिली साथ में रैबार भी कि पहले भव्य तिबारियां थीं . आज   मुड़ी खेड़ा  केबलबीर सिंह असवाल  के भव्य मकान में तिबारी , निमदारी स्तम्भ व खोली  में ' काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्कासी पर चर्चा होगी . मकान दुपुर-दुखंड है . तिबारी व निमदारी पहली मंजिल पर स्थापित हैं। 
तल मंजिल में   नक्काशीयुक्त  खोली (उपर जाने हेतु आंतरिक प्रवेश द्वार )  स्थापित है।  खोली के सिंगाड़ों /स्तम्भों में नक्काशी हुयी है।  प्रत्येक मुख्य स्तम्भ  छह उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बने हैं।  प्रत्येक उप स्तम्भ में बेल बूटों /पर्ण -लता  की न्क्काशिहुयी है।  प्रत्येक उप स्तभ ऊपर जाकर  मुरिंड  के चौखट के  स्तर बन जाते हैं याने मुरिंड में कम से कम छह कुदरती  नक्काशीदार स्तर  (लेयर्स ) हैं।  मुरिंड के मध्य  कई सतरं से निर्मित गोल फूल अंकित है।  गोल आकृति (फूल ) के नीचे भी अर्ध गोलाई में  लता  अंकन हुआ है।   फूल के उपर एक अमूर्त  पक्षी नुमा (कल्पना युक्त कला ) आकृति अंकित है।
  पहली मंजिल में  छज्जे के किनारे पर  छह  स्तम्भों /खामों वाली निमदारी सजी है।  किनारे के स्तम्भ दीवार से तीन बेल बूटों से  सुस्सज्जित कड़ीयों से जुडी है।  ये कड़ियाँ व किनारे को दोनों स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिंड (शीर्ष ) के स्तर बन जाते हैं।   निमदारी के किनारे को दोनों स्तम्भ  के आधार में घुंडी। कुम्भी व प्राकृतिक कला अंकन हुआ जो   अभिनव काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  की   काष्ठ कला का प्रमाण पेश करते हैं। 
  निमदारी (  छज्जे  ) के  अंदर के बरामदे बाद तिबारी है।  तिबारी चार  सिंगाड़ / स्तम्भ  व तीन  ख्वाळ की है।  तिबारी के स्तम्भ आधार से लेकर मुरिंड तक नक्काशीदार हैं।  आधार  में उल्टे कमल फूल  (कुम्भी )  , ड्यूल व फिर सीधे कमल फूल  (घुंडी ) की आकृति के बाद स्तम्भ लौकी आकर ले लेता है व जहाँ पर सबसे कम मोटाई है वहन फिर से कुम्भी , ड्यूल व घुंडी आकृति उभर कर आती है।  आधार से लेकर मुरिंड तक स्तम्भों में बाहर से  भेद खूबसूरत कुदरती , मनोहरी  नक्काशी हुयी है।  सबसे कम मोटाई स्थल से स्तम्भ दो भागों में विभक्त सा दिखता है।  स्तम्भ का उपरी भाग थांत  आकार  (क्रिकेट बैट ब्लेड रूपी )  में मुरिंड से मिलता है।  यहीं से मेहराब का अर्ध चाप शुरू होता है जो सामने वाले स्तम्भ के अर्ध चाप से  मिलकर पूर्ण तोरणम/मेहराब निर्माण करता है।  मेहराब के अंदरूनी चाप   /अन्तश्चाप (introdos) तिपत्ति नुमा है . तोरणम के तीन स्तर हैं I बहिश्चाप जंजीर बनी लता  आकर का अंकन हुआ हैI   बीच के मेहराब  के स्कन्ध   त्रिभुजों में बहुदलीय गुलाब पुष्प समान पुष्प अंकित है I . जबकि दूसरे बाहर के मेहराबों  के स्कन्धों में गोल फूल जैसे आक्रति अंकित है . त्रिभुज नुमा स्कन्धों   के पटलों   में प्राकृतिक अल्नक्र्ण अंकन हुआ है I मेहराब  के  सबसे बाहर का चोखट स्तर में लता श्रृंखला अंकन हुआ है I
   स्तम्भ के थांत आकृति के उपर छत  के काष्ठ  आधार से  निकले दीवालगीर स्थापित हैंI . दीवालगीर पुष्प   केशर नाभिका व   पक्षी की गर्दन व चोंच आभास देने वाली चित्र कला अंकित है I छत के काष्ठ आधार से शंकु नुमा  दसियों आकृति  काष्ठ  की चौखट   नुमा गट्टियों से  निकली हैं .
मुरिंड के  सबसे ऊपर की  कड़ी में भी महीन प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है
   निष्कर्ष   निकलता है कि   मुड़ी खेड़ा (यमकेश्वर, पौड़ी  )  मेंबलबीर सिंह असवाल के मकान में' काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  से  बनीं     तिबारी -खोली व निमदारी में महीन  काष्ठ कला अंकन हुआ है I   

   सूचना  व फोटो आभार :  सुमित पयाल

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   श्रृंखला
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;

   






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टुंडाचौड़ा (पिथोरागढ़ , कुमाऊं )  में एक बाखली में   'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी
 
 काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी- 
  House Wood Carving Art  in   house of  Tunda Chaura ,  Pithoragarh
गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' 
 काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी- 270
 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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  कुमाऊं के प्रत्येक क्षेत्र में कलात्मक बाख्लियाँ  थीं व आज भी विद्यमान हैं I पिथौरागढ़ से  ही  सर्वाधिक बाख्लियों की फोटो व सूचना  मिल रही हैं I आज टुंडाचौड़ा में एक खूबसूरत , चित्तारष्क मकान  में काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत ' की काष्ठ  कला  अलंकरण अंकन  पर चर्चा होगी I
टुंडाचौड़ा का यह मकान तिपुर -दुखंड /दुघर है।  जैसा की आमतौर पर कुमाऊं में प्रचलन है कि तल मंजिल में खोली , गौशाला व भ्न्दार्ग्रिग होते हैं वैसा ही इस मकान के तल मंजिल में खोली, भंडार हैं।  काष्ठ कला विवेचना हेतु तल मंजिल की दो खोलियों;  पहली मंजिल में  तीन  छाजों/झरोखों ; दूसरी मंजिल के तीन छाजों /झरोखों तथा खिडकियों /मोरियों की काष्ठ कला पर टक्क लगानी आवश्यक है। 
   तल मंजिल में दोनों खोली (आंतरिक  रास्ते का प्रवेश द्वार )  तल मंजिल से पहली मंजिल तक गये हैं।  दोनों खोली एक दूसरे की नकल हैं।  खोली को दोनों और मुख्य सिंगाड़ /स्तम्भ तीन तीन  उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बने हैं।  उप स्तम्भ के आधार में  उल्टे कमल से कुम्भी बनी है , उल्टे कमल के  उपर ड्यूल है व ड्यूल के उपर सीधा कमल से बनी घुंडी है।  यहाँ से उप स्तम्भ सीधी कड़ी बन जाते हैं व उपर मुरिंड /शीर्ष की कड़ियाँ बन जाते हैं।  सबसे अंदर के उपस्त्म्भ में मुरिंड से नीचे मेहराब की चाप बनी हैं।  मुरिंड / शीर्ष के नीचे मेहराब लगभग बिना तीखे मोड़ का है। मुरिंड के उपर पत्थरों से बना मेहराब है।  मेहराब के नीचे अर्ध चाप में चार  लकड़ी के चौखट  आयात हैं जीने  जिनके अंदर देव मूर्तियां  (संभवतया  चतुर्भुज गणपति )मूर्ति स्थापित  हैं। चौखट याने  आयात  आकृति के उपर अर्ध चाप में बेल बूटों के आक्रति अंकन हुआ है। अंकन मध्य किसी देव की आक्रति अंकित हुयी है। 
 पहली मंजिल के सभी छाज /झरोखे क जैसे ही सामान हैं।    पहली मंजिल के छाज /झरोखे  तल मंजिल के कमरों के  उपरी  शहतीर  के उपर स्थापित हैं।  शहतीर के अंदर  चार  स्तरीय गोलाई में काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' से ज्यामितीय कटान/अंकन  हुआ है।  ज्शायामितीय कला  काला  युक्त  शहतीर   के   उपर छाज /झरोखा है.   शहतीर के उपर   तीन तीन (दो किनारे व एक मध्य में ) मुख्य स्तम्भ उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बने हैं।  पहली मंजिल के छाजों के सभी उप स्तम्भ लगभग खोली के उप स्तम्भ जैसे ही कलाकृत हैं याने  एक समान कला रूप में हैं।  ।  शहतीर व छाज के मध्य चौखट आयात आकृति है।  इन चौखटों  के अंदर  धार्मिक या आध्यात्मिक प्राकृतिक अंकन हुआ है।  छाजों /झरोखों के दरवाजों  के पैनलों में सपाट ज्यामितीय अंकन हुआ है या अमूर्त जयमितीय अंकन हुआ है। 
दूसरे मंजिल के तीनों झरोखे।/छाज  आकार में  पहले मंजिल के  झरोखों /छाजों  से  छोटे हैं  किंतु कला अंकन  दृष्टि  से सामान हैं।   केवल एक अंतर साफ़ है।  दूसरी मंजिल के झरोखों के मध्य मुख्य स्तम्भ में बीच की कड़ी में पट्टी नुमा आक्रति अंकन हुआ है।
 खिडकियों के मुरिंड ऊपर मिट्टी पत्थर के मेहराब हैं व पत्थर  के  मेहराब  व मुरिंड के मध्य काष्ठ  अर्ध चाप में प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है। 
निष्कर्ष निकलता है की टुंडाचौड़ा (पिथोरागढ़ ) की इस बाखली में 'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  से प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय अलंकरण बड़ी खूबसूरती से हुआ है। मृदा -पाषाण व काष्ठ   कलाकारों की प्रशंसा आवश्यक है।   
सूचना व फोटो आभार: गोपू बिष्ट
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . भौगोलिक मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी ;  House wood Carving art in Pithoragarh  to be continued

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जागेश्वर मन्दिर  (अल्मोड़ा )  परिसर  निकट   के   एक मकान में  'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  की काष्ठ कला अलंकरण,लकड़ी पर  नक्काशी 

Traditional House Wood Carving art of  jageshwar  , Almora , Kumaon
 
कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में  'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '  की काष्ठ कला अलंकरण,लकड़ी पर  नक्काशी- 272
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 कुमाऊं के  हर क्षेत्र में ग्रामीण परिवेश ही  नही श्री क्षेत्रों में भी  पुराने बाखली व  छाजदार/झरोखेदार       मकानों आज भी   दीखते   हैं जैसे अल्मोड़ा लाला बजार व बाजार में कई पुराने बाख्लियाँ दिखती हैं।   इसी क्रम में आज जागेश्वर मन्दिर परिसर निकट  पुराणी शैली के  जीर्ण -शीर्ण    मकान की खोली  व पहली मंजिल में काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' से निर्मित तिबारी  में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन पर चर्चा होगी।  मुंबई की श्रीमती सुमिता परवीन ने  इस भग्न मकान की सूचना /फोटो भेज दी थी।  श्रीमिति  सुमिता द्वारा   भेजी सूचना आधार पर एक भवन की चर्चा की प्रतिक्रिया में विजय सहगल ने भी इसी मकान की सूचना भेजी। 
    जागेश्वर क्षेत्र   के  इस   दुपुर व दुखंड  मकान में   काष्भंठ कला आकलन हेतु डार गृह के  दरवाज़े व मुरिंड  शहतीर  ; तल मंज़िल    में खोली व पहली मंजिल में तिबारी की काष्ठ कला पर ध्यान देना होगा। 
  जागेश्वर मन्दिर  परिसर  निकट   के    प्रस्तुत मकान की खोली  (आन्ततरिक    मार्ग प्रवेश द्वार  )  तल   मंज़िल में स्थापित है।  खोली तल मंज़िल से पहली मंज़िल तक गयी है।   खोली  को दोनों ओर मुख्य सिंगाड़ /स्तम्भ स्थापित      हैं।  प्रत्येक मुख्य स्तम्भ तीन तीन उप स्तम्भों  के युग्म /जोड़ से बने हैं।   तीन में  से दो उप स्तम्भ कुम्भी व घुंडी  युक्त  नक्काशी   से सजे हैं।  एक उप स्तम्भ  पर आधार से लेकर मुरिंड तक प्राकृतिक अलंकरण से  सजे हैं।  बाकी दो उप स्तम्भ  के आधार  में उल्टे कमल फूल से कुम्भी बनी है ; कुम्भी के उपर ड्यूल हैं व ड्यूल के  ऊपर  सीधा कमल फूल की आकृति  अंकन हुआ है।  कमल फूल के उपर स्तम्भ कड़ी में प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है और यही  से कड़ी ऊपर  जाकर मुरिंड /शीर्ष की परत /स्तर /layer  बन  जाता है . सभी उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिंड के स्तर बन जाते हैं।  इस तरह मुरिंड के तीनों स्तर में  वही  अंकन हुआ है जो    अंकन   उप स्तम्भों में हुआ है।  खोली के  मुरिंड  के नीचे अंदरूनी स्तम्भों से खूबसूरत तोरणम है।  तोरणम  के त्रिभुजाकार  स्कन्धों में काल्पनिक  प्राकृतिक अंकन लगते हैं।   
   .  जागेश्वर मन्दिर  परिसर  निकट   के    प्रस्तुत मकान  में  खोली के बगल में  तीन दरवाजों का    भंडार गृह है।  दरवाजों पर ज्यामितीय  कटान से  ही  बौटम  रेल्स , स्टिल्स , पैनल्स  लौक रेल ,   मुलियन्स , इंटरमीजियेट रेल व टौप रेल बने हैं।   कमरों के मुरिंड एक बड़ी मोटी कड़ी याने मेहराब से बने हैं . मेहराब के अंदर चौकोर  स्तर हैं . मेहराब /मुरिंड के बाहर के चौकोर स्तर में जीव नुमा  ( Engineering toung ) आकृति से अंकन हुआ है। 
  पहली मंजिल में  तिबारी में   पांच स्तम्भ व चार  ख्वाळ हैं।  पांचो स्तम्भ  एक जैसे ही हैं।  प्रत्येक स्तम्भ की आधार में   उल्टे कमल से कुम्भी बना है जिसके   ऊपर  ड्यूल है , ड्यूल के ऊपर सीधा कमल से बना घुण्ड है , इस घुण्ड के ऊपर  स्तम्भ लौकी आकार लेकर   ऊपर  बढ़ता है।  जहां स्तम्भ  की मोटाई सबसे कम है वहन उल्टे   कमल  की कुम्भी ,   फिर ड्यूल व    सीधा कमल  निर्मित घुण्ड है व यहाँ से स्तम्भ   ऊपर ओर  थांत  आकृति धारण कर उपर मुरिंड से मिल जाता है।  दूसरी ओर स्तम्भ से मेहराब/ तोरणम  का अर्ध चाप निकलता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर महेरब बना देता है।  मुरिंड  /शीर्ष में दो स्तर हैं।   किनारे के स्तम्भ को दीवार से जोड़ने वाली कड़ी में जिव्हा वाली आकृति अंकित हुयी है।  यह कड़ी ऊपर जाकर मुरिंड  की सबसे ऊपर मुरिंड का स्तर /लेयर बन जाता है। तोरणम के  त्रिभुज्कार स्कन्धों में लता नुमा अंकन हुआ है। 
तिबारी के    प्रत्येक ख्वाळ में दो स्तम्भों के मध्य   आधार में  जंगला बंधा है . जंगला लघु स्तम्भों से निर्मित हैं . I लघु स्तम्भ कुछ कुछ चारपाई के पाए जैसे आकृति में कटे हैं .
निष्कर्ष निकलता है कि जागेश्वर मन्दिर  परिसर  निकट   के   एक मकान में  'काठ लछ्याणौ ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत '   से  निर्मित   ज्यामितीय , प्राकृतिक  अलंकृत    काष्ठ  अंकन हुआ है। 
मूल सूचना व फोटो आभार : सुमिता प्रवीन  ,  सहायक सूचना -  विजय  सहगल 
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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Traditional House Wood Carving art of , Kumaon ;गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्काशी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भिकयासैनण , अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  रानीखेत   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भनोली   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सोमेश्वर  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; द्वारहाट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; चखुटिया  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  जैंती  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सल्ट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;

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चौरी (चम्पावत ) में  रमेश सिंह   के  मकान में 'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत 'की   काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी

कुमाऊँ ,गढ़वाल,  हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में  'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत 'की   काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी -273
Traditional House Wood carving Art in Champawat, Kumaun
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   एक समय चम्पावत कुमाऊँ की राजधानी थी . चम्पावत क्षेत्र में कई प्रकार के परंपरागत मकानों की सूचना मिली है .  इसी क्रम में आज चौरी के एक मकान की काष्ठ शैली पर चर्चा करेंगे जिसमे कला दृष्टि से  जटिलता कुछ है ही नही।  . फिर भी भी इस प्रकार के भवनों में काष्ठ कला का डौक्युमेंटेसन   मकानों में  काष्ठ कला विकास हेतु   आवश्यक है।
  प्रस्तुत    चौरी   ( चम्पावत )  का  मकान दुपुर व दुखंड है व शैली  हिसाब से सबसे सरलतम रूप में है। चौरी  के      रमेश  के मकान में तल मंजिल  के कमरे    पशुओं व भंडार हेतु  काम में आते हैं।   पहली मंजिल में वास किया जाता है। 
पहली मंजिल में छज्जा  लकड़ी की कड़ीयों व पटिलों से निर्मित है।   रमेश के मकान के     पहली मंजिल में  छज्जे   को  ढककर   बरामदा बनाया गया है।  बरामदे  में छह सीधे कटान के   खम्बे  /स्तम्भ लगे हैं।  छह छह के स्तम्भ कड़ी नुमा हैं व ज्यामितीय कटान से ही निर्मित हैं। ढके   बरामदे का      मुरिन्ड भी कड़ी से ही निर्मित है।  आधार में आड़े  पटिलों से जंगला बना है।  पटिलों में भी किसी प्रकार की नक्काशी नही हुई है।   काष्ठ  कला दृष्टि से पटिले भी सरलतम रूप में हैं।
 निष्कर्ष निकलता है कि चौरी (चम्पावत ) में  रमेश सिंह   के  मकान में 'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत 'की   काष्ठ कला अपने सरलतम रूप में है व यह कला आदि कल भी कही जासकती है।  पहाड़ों में इस तरह के सरलतम रूप से हीआगे निमदारी संस्कृति का विकास हुआ होगा व स्तम्भों में कुर्यांण /अंकन शैली विकसित हुयी होगी। 
सूचना व फोटो  आभार  :  नीलम सिंह
सूचना     प्रेरणा राजेन्द्र रावल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
Bakhali House wood Carving Art in  Champawat Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  Bakhali  House wood Carving Art in  Lohaghat Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  Bakhali , House wood Carving Art in  Poornagiri Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  Bakhali , House wood Carving Art in Pati Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;  चम्पावत    तहसील , चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; लोहाघाट तहसील   चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;    पूर्णगिरी तहसील ,    चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   पटी तहसील    चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   

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धानाचुली (नैनीताल )  के एक मकान में  'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी


कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में  'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी- 274
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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कुमाऊं से कई विशेष कलायुक्त भवनों   की सूचना मिलती रही हैं।  आज  धानाचुली   (कुमाऊँ ) के एक  वीरान मकान  में    'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी पर चर्चा होगी।

  धानाचुली  (नैनीताल )  का यह  वीरान मकान  डेढ़पुर व तिघर  मकान है।  मकान आम कुमाउंनी घरों से कुछ अलग हा कि छाज /झरोखे तल मंजिल में हैं।धानाचुली  के  प्रस्तुत   वीरान मकान  में    'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत' की   काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी नक्काशी समझने हेतु मकान के तल मंजिल में  झरोखेनुमा दो कमरों के द्वारों ,  व बीच में एक कमरे  के दरवाजों ;   खिडकियों , तल  मंजिल  व पहली मंज़िल के मध्य गांज (  पहली मंज़िल हेतु  कड़ियों / बौळियों से बना आधार) पर टक्क लगाने की आवश्यकता है।
धानाचूली के प्रस्तुत मकान की विशेषता है कि तल मंजिल में ही झरोखे आदि हैं जबकि कुमाऊं के अन्य भागों में छाज /झरोखे पहली मंजिल में होते हैं। 
मकान के खिडकियों, दरवाजों , पोल  होल  के बाहर पत्थर के मेहराब  से साफ़ जाहिर है कि मकान शैली पर ब्रिटिश शैली हावी हुयी है।   
तल मंजिल में दो कुछ बड़ी खिड़कियाँ हैं  जिनके  सिंगाड़ों में  आधार पर  घुंडी नुमा  अंकन हुआ है।  खिडकियों में एक ही दरवाज़ा है जो वास्तव में झरोखे का कम करता है। दरवाज़े के पटिल्या (पैनल ) पर आधार पर कमल पुष्प दल है।  फूल दल के उपर दो सूरजमुखी नुमा फूल अंकित हैं।  फूलों से कुछ ऊपर चतुर्भुज गणपति की मूर्ति अंकित है।  पटिले के सबसे उपरी भाग में तोरणम अंकन हुआ है। मुरिंड / मथिंड के उपर तोरणम  स्कन्ध में कुछ  लिखा है।
  तल मंजिल में बेच में एक कमरे के दरवाजे के दोनों ओर मुख्य सिंगाड़ /स्तम्भ है।  ये मुख्य स्तम्भ  तीन तीन उप स्तम्भों के जोड़ से निर्मित हैं। एक स्तम्भ आधार से हीसीधा है जिस पर प्राकृतिक अलंकरण हुआ है।  बाकी दो उप सभों के आधार में  कमल निर्मित कुम्भी है , कुम्भी के ऊपर ड्यूल है व ड्यूल के ऊपर उर्घ्वागामी कमल पुष्प आकृति अंकित ही. यहाँ से तीनो उप स्तम्भ  सीधे ऊपर जाकर मुरिंड के परत बन जाते हैं।  मुरिंड की परतों में बेल बूटों का अंकन दृष्टिगोचर  हो रहा है। 
 किनारे के कमरों के दरवाजों (झरोखों के दरवाज़े ) में सिंगाड़ों में कला अंकन है।  किनारे के दरवाजों के सिंगाड़ों के मध्य में एक कलाकृत स्तम्भ है।  हर झरोखे के दरवाजों के मुख्य स्तम्भ भी उप स्तम्भों के जोड़ से बने हैं।  सभी उप स्तम्भों के आधार पर अधोगामी  (उल्टे ) कमल फूल दल से कुम्भी निर्मित हुयी है , कमल फूल के ऊपर   ड्यूल है जिसके उपर उर्घ्वागामी कमल दल घुंडी / भड्डू जैसे आकृति निर्माण करता है।  यहाँ से उप स्तम्भ ओप्प्र की ओर बढ़ता है व ऊपर जाकर उल्टा कमल , ड्यूल व सीधे कमल दल की   पुनरावृति होती है। यहाँ से अंदरूनी उप स्तम्भ छोड़ बाकी उप स्तम्भ सीधे ऊपर जाकर मुरिंड /मथिंड/शीर्ष के परतें /स्तर। लेयर बन जाते हैं।  अंदरूनी उप स्तम्भ से यहाँ से अर्ध चाप निकलते हैं जो सामने के उप स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर दरवाज़े के उपर अंदरूनी तोरणम बनाते हैं।  तोरणम  के दोनों त्रिभुजाकार स्कन्धों में के कोण से नेचे की ओर आते  कलम पंखुड़ियों का अंकन हुआ है। 
मुरिंड/मथिंड/शीर्ष की परतें कड़ियों जैस इस्पात हैं। दो  झरोखों के दरवाजों के मध्य एक विशेष स्तम्भ है।  आधार में कुम्भी , ड्यूल , भड्डू आकृति अंकन तो अन्य  उप स्तम्भों जैसे   हीहै किन्तु  भड्डू आकृति के ऊपर दो पत्तियों के नाड़ी  संरचना जैसी आकृतियों का अंकन हुआ है। 
जहाँ तक दो मंजिलों के मध्य कड़ियों /बौळियों का प्रश्न है व छत के आधार की कड़ियों से  साफ लगता है कि यहाँ पर  जौनसार , रवायीं की  कोटि बनाल तकनीक अपनाई गयी है।  यही कारण है कि ट्रैवल  विशेषज्ञ इन मकानों पर जौनसारी प्रभाव की चर्चा करते हैं। 
निष्कर्ष निकलता है कि  धानाचूली के प्रस्तुत मकान में    'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  से विशेष  में विशेष (exclusve )  काष्ठ अंकन हुआ है  व मकान में 'काठ  लछ्याण , चिरण ,  कुर्याणौ पाड़ी  ब्यूंत'  से ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय कला , अलंकरण अंकन हुआ है।   
सूचना प्रेरणा - सत्य प्रसाद
 फोटो आभार: मुक्ता नाइक
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्काशी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्काशी  ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्काशी   ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्काशी  ,  ,  मोरी में नक्काशी  , मकानों में नक्काशी   ; कुमाऊं की बाखलियों में लकड़ी नक्काशी  ,  कुमाऊं की बाखली में काष्ठ कला व   अलंकरण , कुमाओं की मोरियों में नक्काशी   श्रृंखला जारी  रहेगी   ...

 

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