सैंकड़ों वर्षों तक यह गाँव ज्योतिष व संस्कृत के अध्ययन का केन्द्र बना रहा। इसकी विशिष्ट स्थिति के कारण नागपुर मंडल के अन्य गाँव इससे ईर्ष्या करते रहे। एक गढ़वाली कहावत में इसे देखा जा सकता है –
‘‘ध्यूल पर घाम भी है चि, तामि पर आदु भी रौंधा त रा जान्दा त जा।’’
अर्थात् मंदिर पर धूप भी है, छोटे बर्तन में आटा भी, रहते हैं तो रहो, जाते हो तो जाओ। परन्तु अपने अस्तित्व के लिये इस गाँव के लोगों ने वनों के बीच अपनी सामुदायिकता व आदर भावना को एक परंपरा के रूप में विकसित किया। इस विशिष्टता को ‘मक्कू बोला’ स्वभाव के नाम से जाना जाता है।