फूल सक्रांति के दिन गाँव के औजि (ढोल दमाऊं बादक ) द्वार-द्वार जाकर (नौबत ) इसको शुव्कामना सन्देश कहते हैं गढ़वाली मैं इस सन्देश को नौबत कहते हैं !
और चैती गीत गाते हैं, पहले इसे यानी चैती ईटों को वादी यानि (बेडा) गाते थे और आजकल ओ़जी गाते हैं ढोल दामऊँ के साथ तथा समस्त ग्राम देवताओं ,भूमयाल,क्षेत्रपाल ,बजीर,नंदा नारैण,और खोली के गणेश का आह्वान कर उस परिवार की रिधि शिधि की कामना करते हैं !
तुमारा भंडार भरयान,
अन्न-ध्न्तल बरकत हवेन!
ओंद रओ ऋतू मास ,
ओंद रओ सबुक संगरांद !
फूलदेई -फूल देई फूल संगरांद !
अर्थात तुमारा भण्डार भरा रहे ,अन्न-धन की विर्धी हो,ऋतुएं महीने आते रहें और संक्रांति का पर्व मनाया जाता रहे ,पूल संक्रांति का पर्व विवाहिता महिलाओं के लिए आशा निराशा की संयुक्त अनुभूति का पर्व है !