वन के एकांत मैं घास काटते ,लकडी बीनते ,पुष्पित वन्लाताओं के बीच उनके कंठ से ये खुदेड़ गेट मुखरित होते है !
डांडू फूले फ्लोंलडी
गाडू बासे म्यौलडी
मैनू आयो चैत को !
हरी हवी डांडी फुलू की !
मैं खुद लगीं भूलू की !!
कभी मैत मी जांदू नी
बाबा मैं बुलोंदा नी !!
अर्थात पहाडियों आर फ्यूंली के फूल खिल रहे हैं,अदि घाटियों मैं म्यौलडी बोलने लगी है चैत का महिना आ गया है पर्वत श्रेणियां हरी भरी हो गयी है !उन्हें देखकर मुझे अपने छोटे भाइयों की याद आने लगी है ! क्योकि मैं कभी माईके जा नहीं सकी,और न मेरे पिता ही मुझको बुलाने आ सके !