दोस्तो जैसे आप सभी लोगों को पता है की रामलीला और अन्य धार्मिक, सामाजिक नाटक जिनका मंचन हमारे देश, गॉव और शहरौं मैं बहुत प्राचीन समय से होता चला आ रहा है और हम सभी लोग इनका आनंद बड़े चाव से लेते है . हमारे उतराखंड मे राम लीला का एक अलग ही महत्व है और इसकी एक अलग ही पहिचान है. वैसे तो राम लीला का मंचन देश के हर भाग मे होता होगा लेकिन जो राम लीला हमारे गॉव या कहे की उतराखंड मे होती है, उसकी एक अलग ही पहिचान और एक अलग ही स्वाद है. अभी तक आप लोगों ने केवल हिन्दी काब्या और गद्य मे ही राम लीला देखी होगी और सुनी होगी लेकिन क्या कभी आपने अपनी बोली मे राम लीला का स्वाद लिया? हमारे उतराखंड की अपनी बोली मे कभी आपने राम लीला का मंचन होते हुए देखा? जहा तक मे समझता हू किसी ने भी अभी तक अपनी बोली मे इसका स्वाद नही लिया होगा, लेकिन दोस्तो मे अपने को बड़ा भाग्यवान मानता हू की मैंने अपनी बोली मे इसका स्वाद लिया हुआ है और कई बार हम लोग इसका मंचन अपने गॉव मे कर चुके है.
मैं सीधे शब्दों मे आप लोगों से कहना चाहता हू की हमारे गॉव मे एक ऐसा ब्याक्तित्व है जिन्होंने इसके बारे मैं सोचा और इसको अपनी बोली मे लिखने का प्रयास किया और अपने कार्य मे सफल भी हुए. उनका नाम है "श्री सर्वेश्वर दत्त कान्डपाल". उन्होंने लव कुश काण्ड का अपनी बोली मे बड़ा ही सज्जीव और मधुर वर्णन किया है. मुझे पूरा विश्वास है की जब आप लोग एक बार इसको देखेंगे और सुनेंगे तो जरूर आप लोग इसको पसंद करेंगे और तारीफ करेंगे.