बहुत दुःख का विषय है कि थोड़े से समय के अंतराल मे हमारी संस्कृति मे बहुत बदलाव आ गया है|
आज बाहर गया हर व्यक्ति अपने को गाँव के लोगो से कुछ ऊपर समझने लगा है| वो ये भूल गया है कि जो रक्त उसके अन्दर है
वो उसको उसी गाँव कि मिट्टी ने दिया है|
आदर व भाई चारा नाम कि कोई चीज़ नही रह गयी है| पहले वर्ष मे १ बार अपने इष्ट-देवता को पूजने कि जो विधि थी वो भी अब गायब सी हो गयी है|
गाँव अब सूना सूना सा हो गया है| अभिवादन का तरीका महर जी ने जैसे बताया अब वो ना के बराबर है| यज्ञो-पवीत (जनेयु ) संस्कार अब लोग करते ही नही है| या फ़िर औपचारिकता हेतु विवाह से कुछ समय पहले करते है और विवाह के बाद उतार कर रख देते है|
खाने के बारे मे जैसा मेहता जी ने बताया, पहले रिसया होती थी.... १ वस्त्र मे पहनकर खाने का प्रचलन होता था| वो गायब हो गया है|