Author Topic: Biggest Cloudburst incident in Kedarnath Uttarakhand-सबसे बड़ी आपदा उत्तराखंड में  (Read 22503 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देहरादून: आपदा प्रभावितों को सरकार की ओर से प्रभावी सहायता नहीं मिलने पर विभिन्न आंदोलनकारी संगठनों और बुद्धिजीवियों ने रोष जताया है।

दीनदयाल उपाध्याय पार्क में बुधवार को विभिन्न संगठनों की ओर से आयोजित पत्रकार वार्ता में उत्ताराखंड महिला मंच की पदमा गुप्ता सहित विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि आपदा के चार माह बाद भी सरकार पीड़ितों का पुर्नवास तो दूर, अभी तक उन्हें ठीक से राहत तक नहीं पहुंचा पाई है। आपदा से प्रभावित लोगों के लिए राहत की जिम्मेदारी पंचायत को देने की मांग सरकार के सामने रखी जाएगी। मांगों को जल्द पूरा कराने के लिए वह सात से नौ नवंबर तक उपवास भी रखा जाएगा। 

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उत्तराखंड में भूकंप के झटके, केदारनाथ में था केंद्रउत्तराखंड में आपदा को बीते अभी कुछ ही महीने बीते हैं इसके बाद आज सुबह 5 बजकर 3 ‌मिनट पर यहां भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 3.3 बताई जा रही है।

ताजा जानकारी के मुताबिक यह भूकंप उत्‍तराखंड के गढ़वाल मंडल में ज्यादा महसूस किया गया। आपदा का सबसे ज्यादा प्रभाव इसी इलाके में था। भूकंप का केंद्र रुद्रप्रयाग के आसपास था और इसकी गहराई 5 किमी थी। डेंजर जोन होने के कारण इस इलाके में इस तरह के भूकंप आते रहते हैं।

जोरदार बर्फबारी
केदारनाथ में आपदा के बाद से वहां का मौसम लगातार बदल रहा है। पिछले 6 महीने में यहां भारी बारिश के बाद अब जोरदार बर्फबारी भी हो रही है।

इस इलाके में भारी बर्फबारी ने पिछले कई सालों का रिकॉर्ड भी तोड़ा है। हालांकि भूकंप से अभी जानमाल की कोई सूचना नहीं मिली है।

पौड़ी में सुबह के समय लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए जिसके बाद लोग डर के कारण घरों से बाहर निकल आए।


http://www.dehradun.amarujala.com/news/city-news-dun/earthquake-in-uttarakhand-1/


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  ये था केदारनाथ में तबाही का असली कारण

अमर उजाला, देहरादून Updated @ 11:06 AM IST  the true reason of uttarakhand disaster  संबंधित ख़बरें   उत्तराखंड में 16-17 जून की तबाही को बढ़ाने में बांध और सड़कों का भी खासा योगदान रहा। केदारघाटी में तबाही के कारणों की पड़ताल से अब यह भी उभरकर सामने आ रहा है।

बांध और सड़क निर्माण ने आपदा को बढ़ाया
अलकनंदा में व्यापक पैमाने पर बांध और सड़क निर्माण होने ने आपदा की भयावहता को बढ़ा दिया। 16-17 जून की बाढ़ ने नदी पर बड़े पैमाने पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं पर भी सवाल खड़े किए थे। हालांकि विशेषज्ञों का एक धड़ा यह मानने को तैयार नहीं है।

पढ़ें, उत्तराखंड में बीएड की हुई 'बत्ती' गुल

दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञ इस पर साफ-साफ कहने लगे हैं कि आपदा की भयावहता को बढ़ाने में बांधों का भी हाथ रहा। अलकनंदा में बाढ़ों के इतिहास की गहरी समझ रखने वाले डॉ. नवीन जुयाल ने इस मुद्दे को फिर से उठाया है। डॉ. जुयाल ने हाल ही में करंट साइंस में लिखे गए एक लेख में स्पष्ट किया है कि 16-17 जून की यह बाढ़ पिछले छह सौ सालों का रिकॉर्ड तोड़ गई।

नदी में व्यापक पैमाने पर निर्माण कार्य
नदी में इतना मलबा आया कहां से, इस बात की पड़ताल करने पर तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जाती है। नदी में व्यापक पैमाने पर निर्माण कार्य जारी रहे। यह तब हुआ जब कि इस नदी में बरसात के बाद प्राकृतिक रूप से बांध बनने से बाढ़ आने का इतिहास रहा है। ऐसे में 16-17 जून को भारी बरसात के बाद नदी में मलबा इस बाढ़ की विभीषिका को बढ़ाने वाला ही साबित हुआ।

पढ़ें, जलप्रलय के बाद केदारघाटी में आग ने किया सब 'खाक'

पीएसआई के संस्थापक निदेशक रवि चोपड़ा के मुताबिक इस बात की भी पड़ताल की जा रही है। रवि चोपड़ा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बांध और बाढ़ केबीच संबंध की पड़ताल करने केलिए बनी कमेटी के अध्यक्ष हैं। कमेटी की दिल्ली में 15 नवंबर को बैठक हुई थी और इस बैठक में डॉ. नवीन जुयाल ने यह तथ्य भी पेश किए थे।

26 अगस्त 1894
यह बाढ़ अलकनंदा में उस समय आई जब अलकनंदा में पेड़ों की कटान दूर-दूर तक नहीं थी। अलकनंदा में यह बाढ़ अलकनंदा की सहायक नदी में भूस्खलन के कारण झील बनने के कारण आई थी। सितंबर 1893 में अलकनंदा की सहायक बिरही में पहाड़ टूटकर गिरने से झील बन गई थी। यह अनुमान लगा लिया गया था कि इस झील को भरने में करीब एक साल लेगा।

इस स्थिति को देखते हुए अगस्त 1894 में श्रीनगर और हरिद्वार के बीच केपुलों को पहले से ही खोल कर हटा लिया गया था। 26 अगस्त को झील के टूटने से बाढ़ आई पर पहले से ही सचते रहने के कारण किसी की जान नहीं गई।

20 जुलाई 1970
यह बाढ़ भी अलकनंदा की सहायक बिरही नदी में जोशीमठ और चमोली के बीच बादल फटने के कारण आईं। इस बार मानसून के बीच में बादल फटने के कारण यह बाढ़ आई थी लिहाजा इस बार किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। इस बाढ़ में बेलाकृची के पास तीस बसें बह गई थीं। करीब 13 पुल इस बाढ़ का शिकार बने।

श्रीनगर का निचला हिस्सा इस बाढ़ से बिलकुल ही तबाह हो गया था। इस बाढ़ के पीछे एक बढ़ा कारण व्यापक पैमाने पर अलकनंदा नदी घटी क्षेत्र में पेड़ों का कटान भी माना गया।

क्या रहे इस बार की बाढ़ की विभीषिका के कारण
1894 और 1970 में आई बाढ़ के क्षेत्र में फिर से बसावट हुई। नदी क्षेत्र में निर्माण के अलावा केदारनाथ में भी कोई हिस्सा नहीं छोड़ा गया। इससे नदी का प्राकृतिक बहाव बाधित हुआ।

सड़क और बांधों का व्यापक निर्माण भी इसका एक कारण रहा। 2000 से लेकर 2012 तक इस क्षेत्र में करीब 11 हजार किलोमीटर सड़क बनी। करीब 45 बांध बनाए जा चुके थे और 119 बांध या तो निर्माणाधीन थे या फिर प्रस्तावित थे।

http://www.dehradun.amarujala.com/news/city-news-dun/the-true-reason-of-uttarakhand-disaster/

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केदारनाथ जल प्रलय से लगभग खत्म हो चुके गौरीकुंड बाजार में लगभग 10 दुकान, लॉज और नेपालियों के डेरे (कच्चे घर) जलकर खाक हो गए।

दुकानों के अंदर रखे सिलेंडरों के कारण आग ज्यादा विकराल हो गई। आग बुझाने पहुंचे लोगों ने किसी तरह से अपनी जान बचाई। आग लगने के कारणों का स्पष्ट पता नहीं चल पाया है।

रात एक बजे आग की सूचना
पुलिस प्रथम दृष्टया आग लगने का कारण लकड़ियों के ढेर पर आग पकड़ना बता रही है। शीतकाल में केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद गौरीकुंड बाजार में लोग दुकान बंद कर अपने घरों को लौट जाते हैं। जानकारी के अनुसार, 18/19 नवंबर की रात लगभग एक बजे पुलिस कंट्रोल रुम को गौरीकुंड बाजार में आग लगने की सूचना मिली।

सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड के वाहन को आग बुझाने के लिए जिला मुख्यालय से रवाना किया गया। लेकिन गौरीकुंड से दो किलोमीटर पहले सड़क न खुलने के कारण वाहन बाजार तक नहीं पहुंच पाया।

यहां से फायर ब्रिगेड कर्मी पैदल ही घटनास्थल पहुंचे। तब तक गौरीकुंड पुलिस चौकी और गौरीगांव के निवासियों की मदद से आग पर काबू पा लिया गया था।

जांच चल रही है
आग से गौरीकुंड अस्पताल के निकट घरों, लॉज और दुकानों में रखा सामान स्वाह हो गया। थानाध्यक्ष पीएस चौहान ने बताया कि आग से लगभग 25-26 कमरे जले हैं। सिलेंडरों में आग पकड़ने के कारण आग ने विकराल रुप लिया।

गौरीकुंड में लोगों ने चौकीदार रखा हुआ है। प्रथम दृष्टया यह माना जा रहा है कि खाना बनाने के बाद उसने चूल्हे की आग बुझाकर उसके ऊपर लकड़ियां रख दी। लकड़ियों ने शायद आग पकड़ी होगी। फिलहाल जांच चल रही है।
आग लगने के कारणों पर सवाल
गौरीकुंड में आग की घटनाओं पर उंगली उठ रही है। करीब पांच दिन पूर्व गौरीकुंड बाजार में दुकान आग से जलकर खाक हो गई। अब यह घटना हो गई। बताया जा रहा है कि शीतकाल में भालू भोजन की तलाश में दुकानों के दरवाजे तोड़ देते हैं।

इसलिए लोग भालुओं को भगाने के लिए आग या बिजली का करंट छोड़ देते हैं। जिससे भी आग फैल सकती है। वहीं एक पीड़ित देवी प्रसाद गोस्वामी ने आग के पीछे साजिश बताया है। उन्होंने कहा कि साजिशन किसी ने आग लगाई है। उन्होंने प्रशासन से जांच की मांग की है।

ज्वलनशील पदार्थ हटाने की अपील
गौरीकुंड की दोनों घटनाओं में गैस सिलेंडरों ने आग की भीषणता बढ़ाने काम किया है। इसे देखते हुए पुलिस ने स्थानीय व्यापारियों और भवन स्वामियों से ज्वलशील पदार्थ न रखने की अपील की है।

एसपी बीजे सिंह ने बताया कि लोगों ने दुकानों के अंदर गैस सिलेंडर, मिट्टी तेल जैसे पदार्थ रखे हुए हैं। जो आग पकड़ रहे हैं। व्यापार संघ से कहा गया है कि ऐसे पदार्थ हटा ले। http://www.dehradun.amarujala.com/news/city-hulchul-dun/fire-rudrprayag-gaurikund-kedarnath/

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Uttarakhand आपदा के 6 महीने बाद भी पीड़ितों के जख्म हैं हरे - किराए के भवनों पर दिन गुजार रहे ग्रामीण
 
यह संयोग ही कहें कि रविवार को इस साल केदारघाटी और बदरीनाथ क्षेत्रों में आई आपदा के छह माह पूरे हुए, इसी दिन राजधानी देहरादून में रविवार को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी आपदा से निपटने में उत्तराखंड सरकार की काहिली को जमकर कोसा।

अमर उजाला ने आपदा पीड़ित इलाकों में छह माह का हाल जाना तो पाया कि अभी भी पीड़ितों के जख्म हरे हैं। सर्दी अब नए सितमगर के रूप में सामने आई है, इस दौरान अगर कोई चीज बढ़ी है तो लोगों की मुसीबतें।

किराए के भवनों पर दिन गुजार रहे ग्रामीण
16/17 जून की जलप्रलय के छह माह के बाद भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिंदगी पटरी पर लौटने के बजाय और उतरी नजर आती है। घाट, दशोली और जोशीमठ क्षेत्रों में छह माह बाद भी सड़क व पैदल रास्ते नहीं खुल पाए हैं। ग्रामीण मीलों पैदल चलने को मजबूर हैं।

आपदा से बदहाल सड़कें और पैदल रास्ते बदहाल हैं। प्रभावित गांवों के पुनर्वास और विस्थापन के दावे भी हवाई साबित हुए हैं। आपदा में पिंडर के कहर से नारायणबगड़ का पुराना बाजार तबाह हो गया था। यहां अब भी जीवन डर के साए में है। सरकारी मदद के वितरण में भी सवाल उठ रहे हैं।

 यह संयोग ही कहें कि रविवार को इस साल केदारघाटी और बदरीनाथ क्षेत्रों में आई आपदा के छह माह पूरे हुए, इसी दिन राजधानी देहरादून में रविवार को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी आपदा से निपटने में उत्तराखंड सरकार की काहिली को जमकर कोसा।
 
 अमर उजाला ने आपदा पीड़ित इलाकों में छह माह का हाल जाना तो पाया कि अभी भी पीड़ितों के जख्म हरे हैं। सर्दी अब नए सितमगर के रूप में सामने आई है, इस दौरान अगर कोई चीज बढ़ी है तो लोगों की मुसीबतें।
 
 किराए के भवनों पर दिन गुजार रहे ग्रामीण
 16/17 जून की जलप्रलय के छह माह के बाद भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिंदगी पटरी पर लौटने के बजाय और उतरी नजर आती है। घाट, दशोली और जोशीमठ क्षेत्रों में छह माह बाद भी सड़क व पैदल रास्ते नहीं खुल पाए हैं। ग्रामीण मीलों पैदल चलने को मजबूर हैं।
 
 आपदा से बदहाल सड़कें और पैदल रास्ते बदहाल हैं। प्रभावित गांवों के पुनर्वास और विस्थापन के दावे भी हवाई साबित हुए हैं। आपदा में पिंडर के कहर से नारायणबगड़ का पुराना बाजार तबाह हो गया था। यहां अब भी जीवन डर के साए में है। सरकारी मदद के वितरण में भी सवाल उठ रहे हैं।

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This is the development of Uttarakhand.
 निर्माणाधीन पुल अलकनंदा में गिरा
 रुद्रप्रयाग: छह करोड़ की लागत से रुद्रप्रयाग बाईपास पर बनाया जा रहा पुल शनिवार को अलकनंदा नदी में जा गिरा, जिससे काम कर रहे दो मजदूर घायल हो गए। वहीं दूसरी ओर अब बाईपास के जल्द निर्माण पर भी ग्रहण लग गया है।
 
 52 करोड़ की लागत से वर्ष 2004 में रुद्रप्रयाग बाईपास परियोजना का निर्माण कार्य की स्वीकृति केंद्र सरकार से मिली थी। इसी के तहत प्रथम चरण में दो पुल का निर्माण किया जाना था। मंदाकिनी नदी में पुल का निर्माण तो हो गया, लेकिन अलकनंदा नदी पर पिछले चार वर्ष से कछुआ चाल से इस पुल का निर्माण चल रहा था। आपदा के बाद से निर्माण एजेंसी ने पुल का निर्माण कार्य रोक दिया था। दो दिन पहले ही फिर दुबारा काम शुरू किया था। शनिवार को पुल पर कुछ मजदूर काम कर रहे थे, इसी बीच लगभग ढाई बजे अचानक पुल के दोनों छोर अलकनंदा नदी में गिर गए। इससे दो मजदूरों को भी हल्की चोटें आई हैं। इस घटना से जल्द बाईपास निर्माण पूरा होने को लेकर रुद्रप्रयाग वासियों की उम्मीदों को गहरा धक्का लगा है। 124 मीटर लंबे इस पुल का निर्माण प्राईवेट कंपनी कैलाश बिल्डर प्राईवेट कंपनी कर रही थी। सीमा सड़क संगठन की 66 आरसीसी की देख-रेख में काम हो रहा था। वहीं सूचना मिलते ही उप जिलाधिकारी सदर सीएस चौहान मौके पर पहुंचे तथा घटना की जानकारी ली। वहीं इस घटना से पुल निर्माण में कार्यदायी संस्था की लापरवाही भी उजागर हुई है।

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Mahindras donate vehicles for Uttarakhand relief
« Reply #56 on: January 02, 2014, 09:43:29 AM »
 Mahindras donate vehicles for Uttarakhand relief
New Delhi, Dec 31:   
The Mahindra Foundation donated 19 Mahindra vehicles to the Uttarakhand Disaster Headquarters in Dehradun on Monday as part of its efforts to help rehabilitation efforts after the severe floods in June 2013, the company said in a release. The donated vehicles include 13 4WD Bolero pic- ups for each of the 13 districts in the State, one Scorpio, three 25-seater buses, one 25 ton MTBL truck and a Bolero fitted with a 20KVA Mahindra Powerol DG Set, it said. In addition to this, the foundation, owned by the Mahindar Group, said it handed over 150 solar street lamps and 300 solar lanterns to the most severely hit villages that have been deprived of electricity. The vehicles and solar street lights/lanterns were handed over to the Chief Minister of Uttarakhand, Vijay Bahuguna, by Rajeev Dubey, President (Group HR, Corporate Services & After-Market) & Member of the Group Executive Board, Mahindra & Mahindra Ltd.


http://www.thehindubusinessline.com

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Uttarakhand Disasters: 'I want my children to become doctors or engineers'
« Reply #57 on: January 02, 2014, 09:45:24 AM »
Uttarakhand Disasters: 'I want my children to become doctors or engineers'
For six months, Dhanita Arya would not get to hear her husband Sunil's voice as he would leave their village Sirvani in Deoli-Bhaligram gram panchayat, and set out for Kedarnath with his mules. He would ferry the pilgrims around the temple town and return home with an average earning of Rs 2.5 lakh. This year, Sunil had promised her that she would be able to hear his voice every day during the six-month yatra. He had gifted her a mobile phone before he left for Kedarnath in April. He would call Dhanita at the end of the day and tell her what he had earned, what he had eaten, whom he had ferried. But on June 16, Sunil didn't call. Dhanita called him several times but there was no response. For four days, Dhanita waited. Then on June 20, her brother-in-law Shankar, who had accompanied Sunil, returned and told her that her husband had been washed away by the floods.
A 23-year-old Dalit, Dhanita is the youngest among the 35 women of Deoli Bhaligram who were widowed by the Uttarakhand floods and landslides this year that left 5,000 people dead.
Three months after Sunil went missing —his body was never recovered — Dhanita delivered their third child. Now Dhanita's life revolves around planning for the future of her children — four-year-old Ruchita, three-year-old Sudhanshu and the three-month-old Sonakshi. "My children are my only inspiration to live," she says. She also takes care of her 65-year-old mother-in-law Shyama Devi.
Dhanita received compensation of Rs 5 lakh from the state government, and another Rs 1 lakh for two of her husband's four mules. He did not have a licence for the other two mules he had purchased for Rs 1.1 lakh on credit. He had also borrowed Rs 40,000 from a trader for purchasing ration during the non-yatra season. Dhanita decided to repay Sunil's debts first before planning her own purchases. "I wanted to bear all of my husband's responsibilities," she says.


http://www.indianexpress.com/news/uttarakhand-disasters-i-want-my-children-to-become-doctors-or-engineers/1212866/

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आपदा की 'गोद' में उत्तराखंड, बेफिक्र सरकार
16-17 जून को आई केदारनाथ आपदा का कारण बने 1600 भूस्खनल क्षेत्र ऐसे थे जिनके बारे में बता दिया गया था कि यह अति संवेदनशील क्षेत्र में हैं और कभी भी भरभरा कर गिर सकते हैं।

दूसरी तरफ उत्तराखंड सरकार केदारनाथ आपदा के बाद भी यह तय नहीं कर पाई है कि अति संवेदनशील क्षेत्र कौन-कौन से हैं और इन क्षेत्रों में नुकसान को कम करने के लिए क्या किया जाएगा।

इसरों ने तैयार किया था मैप
यह काम इसरो ने किया था और इसके लिए बाकायदा अति संवेदनशील क्षेत्रों का मैप तैयार किया था। हद यह है कि केदारनाथ की आपदा के बाद यह तो माना जा रहा है कि इसरो की इस कसरत से नुकसान खासा कम किया जा सकता था पर इस मैप को योजना का हिस्सा बनाने की कोशिश न के बराबर है।


इसरों ने वर्ष 2000 में उत्तराखंड और हिमाचल के करीब 2000 किलोमीटर के यात्रा रूट का मैप तैयार किया था। इस मैप में यह साफ-साफ दर्शाया गया था कि यात्रा रूट पर कौन-कौन से अति संवेदनशील क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में पहाड़ कैसे हैं।

नदी से कटाव या भारी बरसात होने पर कहां-कहां भूस्खलन हो सकता है। सेटेलाइट डाटा का उपयोग कर पहाड़ का ढाल, भू उपयोग आदि को भी विस्तार से बताया गया। इसके साथ ही इसका फील्ड सर्वे भी इसरों ने कराया था।

केदारनाथ आपदा में 2000 जगह पर भूस्खलन हुआ
खास बात यह भी रही कि वर्ष 2000 के बाद की प्रदेश में आई आपदा से यह भी जाहिर हुआ कि ये मैप सटीक हैं। मसलन केदारनाथ आपदा के दौरान ही करीब 2000 जगह पर भूस्खलन हुआ।इनमें से करीब 1600 स्थान वे हैं जिनके बारे में मैप में बहुत हद तक स्पष्ट कर दिया गया था कि यह अति संवेदनशील क्षेत्र हैं। हद तो यह है कि केदारनाथ की आपदा के बाद भी अतिसंवेदनशील स्थानों के मानचित्रों को ठंडे बस्ते में ही रखा गया है।

अब केंद्रीय योजना आयोग की संस्तुति पर इस मैप को अपडेट किया जा रहा है। पर आपदा प्रबंधन में मैप के उपयोग को लेकर शायद ही कोई सुगबुगाहट हो।

यहां सटीक साबित हुआ था मैप
- फाटा भ्यूनांग भूस्खलन 2001-16 जृुलाई, 2001 को बादल फटने के कारण रुद्रप्रयाग में भूस्खलन हुआ था। मैप से जाहिर

हुआ कि यह भूस्खलन मैप में दिखाए गए अति संवेदनशील स्थान पर हुआ।

- वरुणावत्त, उत्तरकाशी-वरुणावत्त भूस्खलन 2003 में शुरू हुआ था। मैप में वरुणावत्त को अति संवदेनशील क्षेत्र में दर्शाया गया है।


खीमठ भूस्खलन 2012-14 सितंबर, 2012 को रुद्रप्रयाग जिले में भारी बरसात के कारण करीब 475 स्थानों पर भूस्खलन हुआ। मैप से तुलना करने पर जाहिर हुआ कि अधिकतर भूस्खलन अति संवेदनशील स्थानों पर हुए।

- केदारनाथ भूस्खलन, 2013-16-17 जून को केदारनाथ घाटी में आई आपदा के कारण करीब 2000 स्थानों पर भूस्खलन हुआ। मैप से तुलना करने पर करीब 1600 स्थान ऐसे पाए गए जो मैप में अति संवेदनशील स्थान के रूप में चिंहित हैं।

योजना आयोग ने आगे बढ़ाया कदम
केंद्रीय योजना आयोग ने अब मैप को अपडेट करने और इस मैप के आधार पर अति संवेदनशील स्थानों पर पहाड़ी ढाल का स्थिरीकरण करने, वैकल्पिक मार्ग तलाश करने, सुरंगों का प्रयोग करने का सुझाव दिया है।

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विश्वबैंक बाढ़ और भूकंप से प्रभावित उत्तराखंड में आपदा रोधी मकान तथा सड़क निर्माण के लिये 25 करोड़ डालर का ऋण देगा.

विश्वबैंक ने विज्ञप्ति में कहा, ‘भारत सरकार, उत्तराखंड सरकार तथा विबैंक ने 25 करोड़ डालर का ऋण उत्तराखंड को देने के लिये समझौता किया है. यह ऋण राज्य को आपदा के बाद की स्थिति से निपटने में मदद और आपदा जोखिम प्रबंधन क्षमता मजबूत बनाने को लेकर उत्तराखंड आपदा रिकवरी परियोजना के लिये दिया जाएगा.’

इस ऋण से उत्तराखंड में करीब 2,500 स्थायी आपदा रोधी मकान तथा करीब 3,600 किलोमीटर सड़क बनाये जाएंगे.

ऋण समझौते पर वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के संयुक्त सचिव, उत्तराखंड सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव राकेश शर्मा और विश्वबैंक के भारत में निदेशक ओनो रूल ने दस्तखत किये

 

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