मेहता जी,
"सूर्य अस्त, पहाड़ मस्त" भी विकास में बहुत बड़ा अवरोध है, अब चलें इसके मूल में; शराब की लत लोगों को पडती है फौज से, वहां पर उनके पास काफी काम होता है और शाम को थकान मिटाने के लिये शराब दी जाती है. जब वह घर पेंशन ले कर आते है तो फौज के व्यस्त शेडयूल की अपेक्षा काम होता ही नही है और वह शराब पीकर ही अपने को व्यस्त रखने का प्रयास रखता है.
दूसरा पक्ष; पहाड़ों में आम प्रचलन हो गया है कि सुबह से ही पीना, लोगों के पास काम की कमी है और पैसे की अधिकता..! शराब पीने का जो culture पहाड़ में शुरु हुआ वह हमारी संस्कृति को पतन की ओर ले जा रहा है. मैने देखा कि सुबह ६ बजे भी हमारा पहाड़ी पीने को तैयार हैं, गांवों में लोग शराब के अलावा कोई और चीज पर बोलते ही नही है. शराब को एक प्रकार का culture बनाकर रख दिया गया है, बैंक से लोन लेना है, तो शराब पिलाओ, स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाना है, पटवारी को शराब, फोन सही कराना है, लाइनमैन कि पिलाओ.......! हर चीज के लिये शराब और हर चीज में शराब.... अब तो हम लोग सूर्य उगने का भी इंतजार नहीं करते....! sad-sad, shame-shame