मेरा जानकारी के अनुसार १०८ सेवा की एक गाड़ी की कीमत ३० लाख रुपये है, आज १०८ सेवा का जो धरातलीय प्रयोग उत्तराखण्ड में हो रहा है, वह सिर्फ और सिर्फ यह है कि फोन काल आने के बाद मरीज को उठाकर सीधे हास्पिटल पहुंचा दिया जाता है। जब कि इस सेवा की शुरुआत इसलिये की गई थी कि पहाड़ी क्षेत्रों में दुर्गम रास्ते और हास्पिटल कम होने तथा हास्पिटल होने पर भी वहां तक पहुंचने मॆं (कम दूरी पर भी ज्यादा समय लगने) परेशानी होती थी। इसलिये इस गाड़ी में जीवन रक्षक उपकरण लगाये गये। लेकिन आज हालत यह है इन गाड़ियों में टेक्निशयन त्तो हैं नहीं और यह मात्र एम्बुलेंस बनकर रह गई हैं, जिनमें कोई इलाज नहीं होता, ये मरीज को उठाकर अस्पताल पहुंचा देती हैं। लेकिन एक एम्बुलेंस २ लाख रुपये में आ जाती है और उसमें भी आक्सीजन सिलेंडर और फर्स्ट ऎड बाक्स होता ही है। जो काम १०८ सेवा आज कर रही है, वैसा काम तो १०२ डायल कर जिला अस्पताल की एम्बुलेंस भी करती ही थी, तो फिर इतना खर्च करने की जरुरत क्या थी?
अच्छा होता कि सरकार जिला अस्पतालों CHC, PHC पर ज्यादा एम्बुलेंस खरीदवा देती या फिर १०८ सेवा शुरु करनी ही थी तो पहले टेक्निशियन की व्यवस्था की जानी चाहिये थी, ताकि इस योजना का लाभ जनता को मिल सके।