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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 348748 times)

हुक्का बू

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आज दीक्षित आयोग की रिपोर्ट सदन में पेश की गई है, इसमें गैरसैंण के संबंध में बहुत ही बेतुके तर्क दिये हैं कि वहां पर पानी की कमी है, जमीन ठोस नहीं है, वहां पर बड़ा शहर नहीं बन सकता, यह दिल्ली से दूर है (जब कि देहरादून सारे उत्तराखण्ड से दूर है)  प्राकृतिक आपदा वाला क्षेत्र है, आदि-आदि। ये सब तर्क ऐसे हैं, जो पूरे उत्तराखण्ड की वेदना है।
     वहीं देहरादून के बारे में अच्छे तर्क दिये गये हैं, जो भी इस रिपोर्ट को पढ़ेगा, समझ ही जायेगा कि यह दीक्षित आयोग की राजधानी स्थल चयन आयोग नहीं बल्कि देहरादून राजधानी बनाओ आयोग की रिपोर्ट है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मैंने पहले ही कह दिया है यह रिपोर्ट तो एक बहाना है जिसमे कोई पर्दार्शियता नहीं है! पूरे भारत वर्ष के जितने भी पहाडी राज्य है सबकी राजधानी पहाड़ मे है केवल उत्तराखंड को छोड़ कर!

यह सीधे -२ राज्य की जनता और प्रवासी उत्तराखनडियो के साथ एक प्रकार से धोका है !


आज दीक्षित आयोग की रिपोर्ट सदन में पेश की गई है, इसमें गैरसैंण के संबंध में बहुत ही बेतुके तर्क दिये हैं कि वहां पर पानी की कमी है, जमीन ठोस नहीं है, वहां पर बड़ा शहर नहीं बन सकता, यह दिल्ली से दूर है (जब कि देहरादून सारे उत्तराखण्ड से दूर है)  प्राकृतिक आपदा वाला क्षेत्र है, आदि-आदि। ये सब तर्क ऐसे हैं, जो पूरे उत्तराखण्ड की वेदना है।
     वहीं देहरादून के बारे में अच्छे तर्क दिये गये हैं, जो भी इस रिपोर्ट को पढ़ेगा, समझ ही जायेगा कि यह दीक्षित आयोग की राजधानी स्थल चयन आयोग नहीं बल्कि देहरादून राजधानी बनाओ आयोग की रिपोर्ट है।

Lalit Mohan Pandey

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Ek cheej samajh nahi ati ki jab sab neta pahad se hi hai..wo chahe N.D tiwari ji ho, harish rawat ji ho ya fir BJP ke Khanduri ji ho, koshayri ji ho, prakash pant ho ya nishank ho, fir ye itni pahad virodhi soch kaise rakhte hai, inme se kise nahi pata hai ki capital dehradoon banane ka matlab hai pahad ke liye ek bahut bada jhatka, pahad ke log kabhi bhi apne aap ko dehradoon se juda hua (connected) mahsoosh hi nahi karte hai. Aese mai fir uttarakhand ka vikas kaise sambhav hai.

Lalit Mohan Pandey

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स्थायी राजधानी: देहरादून ने बाजी मारी
स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त स्थल चयन के मानकों पर देहरादून पूरी तरह खरा उतरा है, जबकि काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) को विकल्प के रूप में लेने की संस्तुति है। गैरसैंण(चमोली), रामनगर (नैनीताल) तथा आईडीपीएल ऋषिकेश को फिजिबिलिटी के आधार पर दौड़ में शामिल नहीं किया गया। आयोग ने यह भी स्वीकारा कि स्थायी राजधानी के स्थल चयन की समस्या सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक व तकनीकी समस्याओं से जुड़ी है। स्थायी राजधानी स्थल चयन को गठित जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आज से शुरू हुए विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन सदन में पेश की गई। इसमें पांच स्थलों की फिजिबिलिटी के आधार पर संस्तुति की गई है। मानकों में भौगोलिक केंद्रीयता, जनसंख्या केंद्रीयता, पहुंच मार्ग, परिवहन प्रणाली, वन क्षेत्र, स्थलाकृति, भूकंप, भूस्खलन, स्वीकार्यता, सुरक्षा, बस्तियों का स्वरूप, जलवायु, जल स्रोत, भूमि की उपलब्धता, प्राकृतिक जल निकासी, शहरी विस्तार की संभावना व स्थल विशेष पर निवेश आदि को शामिल किया गया। इन सभी मानकों पर देहरादून की अन्य स्थलों की अपेक्षा सर्वाधिक अनुकूलता रही। आयोग ने देहरादून को स्थायी राजधानी के लिए सबसे बेहतर माना है। काशीपुर को अपेक्षाकृत कठिन जल निकासी, गंगा का प्रवाह क्षेत्र, बांध से संभावित खतरा व पर्यावरणीय पक्ष के आधार पर कमजोर माना गया। इसके बावजूद सुधार की संस्तुतियों के साथ आयोग ने काशीपुर का विकल्प खुला रखा है। तृतीय चरण में आयोग ने देहरादून व काशीपुर के स्थलों का ही विश्लेषण किया। आयोग ने पाया कि देहरादून का नथुवावाला-बालावाला क्षेत्र राजधानी की स्थापना के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यह स्थल अधिकतर मानकों पर खरा उतरता है। इससे 1200 हेक्टेयर कृषि भूमि निकालने में भी सुविधा रहेगी। इसके लिए करीब 1315 करोड़ की ही आवश्यकता होगी। इसके विपरीत नगर स्तरीय संबद्ध गतिविधियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए काशीपुर में 1200 हेक्टेयर भूमि की लागत करीब 4266 करोड़ होगी। यदि देहरादून में चिह्नित स्थल किसी कारणवश शासन द्वारा नहीं लिया जा सकता है तो काशीपुर के चिह्नित स्थल विकल्प के रूप में लिए जा सकते हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा है कि स्थायी राजधानी के लिए प्रस्तावित स्थल गैरसैंण, रामनगर व आईडीपीएल ऋषिकेश को द्वितीय चरण की रिपोर्ट के साथ ही दौड़ से बाहर कर दिया गया। हालांकि इन तीनों स्थलों का उपग्रह चित्रों की सहायता से दोबारा परीक्षण भी किया गया। इसके बावजूद इन स्थलों की फिजिबिलिटी को लेकर बने दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नहीं आया। गैरसैंण की फिजिबिलिटी रिपोर्ट में स्थलों को पारिस्थितिकीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना गया। रामनगर को भी स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त नहीं माना गया, जबकि आईडीपीएल ऋषिकेश भी स्थल चयन के मानकों को पूरा करने में पिछड़ गया। ऐसे में आयोग ने हर लिहाज से देहरादून को ही स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त माना है।

Lalit Mohan Pandey

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Dikshit ji aapke Rajdani chayan ke manaku mai "Jan bhawana" kyu nahi include thi.... Reachability ke hisab se aap dehradoon ko kaise sahi mante hai ye mere palle to nahi pad raha hai...Rahi bat bhoomi uplabhata to gairsain mai kya kami hai.. baki sab cheej सुरक्षा, बस्तियों का स्वरूप, परिवहन प्रणाली, शहरी विस्तार की संभावना ye sab to man made hai, jaha pe aap vikas karoge waha pe ye cheej sudhar jayenge...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I think it was pre decided game plan. We have even doubt the findings of Dixit Commission. It was blunder at the beginging, other wise people would not have to suffer so much.

All membes have a lot property in Dehradoon areas and other business, they would never like to see the Capital at hill area. 



स्थायी राजधानी: देहरादून ने बाजी मारी
स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त स्थल चयन के मानकों पर देहरादून पूरी तरह खरा उतरा है, जबकि काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) को विकल्प के रूप में लेने की संस्तुति है। गैरसैंण(चमोली), रामनगर (नैनीताल) तथा आईडीपीएल ऋषिकेश को फिजिबिलिटी के आधार पर दौड़ में शामिल नहीं किया गया। आयोग ने यह भी स्वीकारा कि स्थायी राजधानी के स्थल चयन की समस्या सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक व तकनीकी समस्याओं से जुड़ी है। स्थायी राजधानी स्थल चयन को गठित जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आज से शुरू हुए विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन सदन में पेश की गई। इसमें पांच स्थलों की फिजिबिलिटी के आधार पर संस्तुति की गई है। मानकों में भौगोलिक केंद्रीयता, जनसंख्या केंद्रीयता, पहुंच मार्ग, परिवहन प्रणाली, वन क्षेत्र, स्थलाकृति, भूकंप, भूस्खलन, स्वीकार्यता, सुरक्षा, बस्तियों का स्वरूप, जलवायु, जल स्रोत, भूमि की उपलब्धता, प्राकृतिक जल निकासी, शहरी विस्तार की संभावना व स्थल विशेष पर निवेश आदि को शामिल किया गया। इन सभी मानकों पर देहरादून की अन्य स्थलों की अपेक्षा सर्वाधिक अनुकूलता रही। आयोग ने देहरादून को स्थायी राजधानी के लिए सबसे बेहतर माना है। काशीपुर को अपेक्षाकृत कठिन जल निकासी, गंगा का प्रवाह क्षेत्र, बांध से संभावित खतरा व पर्यावरणीय पक्ष के आधार पर कमजोर माना गया। इसके बावजूद सुधार की संस्तुतियों के साथ आयोग ने काशीपुर का विकल्प खुला रखा है। तृतीय चरण में आयोग ने देहरादून व काशीपुर के स्थलों का ही विश्लेषण किया। आयोग ने पाया कि देहरादून का नथुवावाला-बालावाला क्षेत्र राजधानी की स्थापना के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यह स्थल अधिकतर मानकों पर खरा उतरता है। इससे 1200 हेक्टेयर कृषि भूमि निकालने में भी सुविधा रहेगी। इसके लिए करीब 1315 करोड़ की ही आवश्यकता होगी। इसके विपरीत नगर स्तरीय संबद्ध गतिविधियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए काशीपुर में 1200 हेक्टेयर भूमि की लागत करीब 4266 करोड़ होगी। यदि देहरादून में चिह्नित स्थल किसी कारणवश शासन द्वारा नहीं लिया जा सकता है तो काशीपुर के चिह्नित स्थल विकल्प के रूप में लिए जा सकते हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा है कि स्थायी राजधानी के लिए प्रस्तावित स्थल गैरसैंण, रामनगर व आईडीपीएल ऋषिकेश को द्वितीय चरण की रिपोर्ट के साथ ही दौड़ से बाहर कर दिया गया। हालांकि इन तीनों स्थलों का उपग्रह चित्रों की सहायता से दोबारा परीक्षण भी किया गया। इसके बावजूद इन स्थलों की फिजिबिलिटी को लेकर बने दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नहीं आया। गैरसैंण की फिजिबिलिटी रिपोर्ट में स्थलों को पारिस्थितिकीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना गया। रामनगर को भी स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त नहीं माना गया, जबकि आईडीपीएल ऋषिकेश भी स्थल चयन के मानकों को पूरा करने में पिछड़ गया। ऐसे में आयोग ने हर लिहाज से देहरादून को ही स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त माना है।

पंकज सिंह महर

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UKD stages protest, demands Gairsain as Uttarakhand capital
« Reply #236 on: July 14, 2009, 04:46:05 PM »
Dehra Dun, Jul 13 The Uttarakhand Kranti Dal (UKD) staged demonstrations and sit-ins here today to protest Dixit Commission&aposs report which has opposed making Gairsain as permanent capital of the hill state.

Since the carving out of Uttarakhand as a separate state, the UKD, a key regional party, has vociferously raised the demand of making Gairsain as its permanent capital.

UKD workers, led by its president Narayan Singh Jantwal, assembled at Gandhi Park here and staged a sit-in to protest the Dixit Commission&aposs report which was tabled in the state assembly today.

They also held demonstrations and submitted memoranda to the Dehra Dun District Magistrate to be on passed to Prime Minister Manmohan Singh and Chief Minister Ramesh Pokhariyal Nishank.

Jantwal said since 80 per cent of geographical area of Uttarakhand is hilly, the permanent capital should be housed there.

A committee of MLAs set up under the chairmanship of the then Uttar Pradesh minister Ramashankar Kaushik had also favoured making Gairsain as capital of the hill state, Jantwal said.

He said the UKD would intensify its stir if its demand was not met.

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण संवाददाता: गैरसैण को प्रदेश की स्थायी राजधानी घोषित करने समेत विभिन्न मांगों को लेकर उत्तराखंड क्रांति दल ने राजधानी में धरना दिया। दल का कहना है कि गैरसैण को राजधानी घोषित कर इससे लगे चमोली, पौड़ी और अल्मोड़ा के क्षेत्रों को मिलाकर राजधानी क्षेत्र बनाया जाना चाहिए। दल ने उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों के लिए हिमालय राज्य विकास मंत्रालय के गठन की भी मांग पर जोर दिया है। पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल की अगुवाई में बड़ी संख्या में उक्रांद कार्यकर्ता गांधी पार्क पहंुचे, जहां उन्होंने गैरसैण को राजधानी बनाने की मांग के समर्थन में नारेबाजी की और फिर धरना दिया। इस मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी भेजा गया। इसके अलावा राज्य के औद्योगिक संस्थानों में स्थानीय बेरोजगारों को 70 फीसदी आरक्षण देने संबंधी जीओ का कड़ाई से अनुपालन कराने समेत अन्य कई मांगें ज्ञापन में शामिल की गई हैं। दल की ओर से प्रधानमंत्री को भी ज्ञापन भेजा गया, जिसमें हिमालयी राज्य विकास मंत्रालय के गठन की मांग को प्रमुखता से उठाया गया है। धरने पर उक्रांद अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल के अलावा बीडी रतूड़ी, काशी सिंह ऐरी, प्रीतम सिंह पंवार, श्रीकृष्ण भट्ट, कै. लक्ष्मण सिंह चुफाल, पीसी भट्ट, नंदन सिंह रावत, पंकज भट्ट, शैलेश गुलेरी, नरेंद्र सिंह रावत, प्रमिला रावत, दिनेश चंद्र बडोला समेत पार्टी के केंद्रीय पदाधिकारियों के अलावा सूबे के सभी जिलों से आए कार्यकर्ताओं ने शिरकत की। इस बार बदला-बदला था मंजर लंबे अर्से बाद उत्तराखंड क्रांति दल पहली बार एकजुट दिखा। केंद्रीय कार्यकारिणी के लगभग सभी पदाधिकारियों के अलावा सूबे के विभिन्न जनपदों से आए पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने भी राजधानी में आयोजित धरना-प्रदर्शन में शिरकत की। दल की ओर से पूर्व में चलाए गए कार्यक्रमों में जहां काफी लोग नजर आते थे, वहीं सोमवार को मंजर बदला-बदला सा था।

पंकज सिंह महर

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तीन चरणों में तैयार हुई रिपोर्ट देहरादून, जागरण ब्यूरो: स्थायी राजधानी स्थल चयन की रिपोर्ट तीन चरणों में तैयार की गई। उपयुक्त स्थल का पता लगाने के लिए स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर को फिजिबिलिटी स्टडी के लिए सलाहकार नियुक्त किया गया। जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित आयोग ने पहले चरण में राजधानियों की प्रकृति, कार्यकलाप, मानक तैयार करने तथा प्रमुख राज्यों की राजधानियों का अध्ययन किया। प्रस्तावित स्थल चयन के लिए विश्लेषण किया गया। नई राजधानी की मुख्य गतिविधियों को चिन्हित किया। संभावित ढांचे का आंकलन किया। प्रथम चरण की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि राज्यों की राजधानी के हमेशा भौगोलिक दृष्टि से केंद्र में होना संभव नहीं है। पर्वतीय राज्यों की राजधानी भी इस फार्मूले के अनुरूप नहीं हैं। ऐसे में फिजिबिलिटी ही सबसे अहम है, ताकि राजधानी स्थल का चयन में तकनीकी कमी न रहे। दूसरे चरण में पहले चरण के मानकों का दो स्तर पर परीक्षण किया गया। संभावित स्थलों का मूल्यांकन किया गया। देहरादून, गैरसैंण, काशीपुर, रामनगर व आईडीपीएल ऋषिकेश के विशिष्ट स्थलों की फिजिबिलिटी का आंकलन किया गया। इस चरण के विश्लेषण के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। तृतीय चरण में तीन प्रमुख उद्देश्यों, मानकों के आधार पर शीर्ष वरीयता वाले दो स्थलों का चिन्हीकरण, स्थलों का मूल्यांकन, जनसंख्या के विस्थापन, सूचना के मुख्य साधन, भूमि अधिग्रहण व महायोजना से संबंधित परीक्षण कर अंतिम संस्तुति की गई। भावी राजधानी के लिए संस्तुतियां आयोग ने भावी राजधानी के लिए देहरादून की संस्तुति की है। सरकार को इस मसले पर अंतिम निर्णय लेते हुए क्या प्रक्रिया अपनानी है, उसका भी खुलासा रिपोर्ट में किया गया है। स्थायी राजधानी स्थल चयन के लिए अंतिम निर्णय लेते समय सरकार को एक बार अधिसूचना जारी करने के बाद नौ बिंदुओं पर काम करना होगा। नगर और ग्राम योजना प्लानिंग विभाग, एमडीडीए, राजस्व विभाग तथा विधि विभाग के परामर्श से भूमि अधिग्रहण करनी होगी। भूमि के विकास, नियोजन, डिजाइन तथा अधिग्रहण की प्रक्रिया देखने के लिए सरकारी एजेंसी राजधानी परियोजना कार्यालय स्थापित करना होगा। धनराशि के स्रोतों का चिन्हीकरण व संस्थानीकरण के साथ ही महायोजना बनानी होगी। विभिन्न भवनों, सड़कों तथा अन्य सिविल कार्यो के लिए मनचित्र तैयार करना होगा। आवश्यकता पड़ने पर अनुरक्षण व भावी विस्तार की योजना को भी मूर्त रूप देना होगा। आठ वर्ष में आई रिपोर्ट स्थायी राजधानी स्थल चयन आयोग की रिपोर्ट आठ वर्ष में जनता के सामने आई है। रिपोर्ट में वही है, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन वर्ष 2001 में भाजपा की अंतरिम सरकार में किया गया था। कुछ समय बाद आयोग को स्थगित कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 2002 में पहली निर्वाचित कांग्रेस सरकार के सत्तारूढ़ होने पर आयोग को पुनर्जीवित कर दिया गया। इसके बाद कभी आयोग का कार्यकाल 11 बार बढ़ाया गया। कांग्रेस ने पांच साल तक आयोग का कार्यकाल बढ़ाने की रणनीति पर ही अमल किया। 2007 में भाजपा के सत्तारूढ़ होने पर भी आयोग का कार्यकाल बढ़ा। आखिरकार अक्टूबर 2008 में आयोग ने सरकार को रिपोर्ट सौंप दी। इस अवधि में स्थायी राजधानी का मुद्दा हवा में ही तैरता रहा। सियासी दलों की मुश्किल बढ़ी स्थायी राजधानी स्थल चयन पर आयोग की रिपोर्ट सदन में पेश होने के साथ ही राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब इस मुद्दे पर सियासत की नई धार सामने आ सकती है। स्थायी राजधानी के मामले में सत्तारूढ़ भाजपा व कांग्रेस ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। दोनों दल रिपोर्ट का अध्ययन करने का राग अलाप रहे हैं। यह अलग बात है कि भाजपा व कांग्रेस के अनेक नेता स्थायी राजधानी को लेकर अपना मत सार्वजनिक कर चुके हैं। सबसे बड़ी चुनौती गैरसैंण को राजधानी बनाने के मुद्दे पर है। चुनाव में इसका संकल्प लेकर कई प्रत्याशी जीत का ताज पहन चुके हैं। उक्रांद भी गैरसैंण के मुद्दे पर तल्ख तेवर अपनाए हुए है। सपा शुरू से ही देहरादून को स्थायी राजधानी बनाने की पैरवी कर रही है, जबकि बसपा भी देहरादून को राजधानी बनाने पर सहमति व्यक्त कर चुकी है। ऐसे में राजनीतिक दलों के भीतर एक स्थल विशेष को राजधानी बनाने को लेकर जो तूफान उठेगा, उसका सामना करना भाजपा, कांग्रेस व उक्रांद के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। राज्य आंदोलनकारी निराश स्थायी राजधानी के संबंध में पेश रिपोर्ट से राज्य निर्माण आंदोलन में भागीदारी करने वाले आंदोलनकारी संगठन काफी निराश हैं। आंदोलनकारियों की शुरू से ही गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग रही है। जो रिपोर्ट आयोग ने दी है, उसमें गैरसैंण की फिजिबिलिटी स्थायी राजधानी के लिए नहीं बन पाई है। इससे आंदोलनकारी खासे निराश व मायूस हैं। ऐसे में एक नये आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार होती दिख रही है।

पंकज सिंह महर

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स्थायी राजधानी--------------------> ?? ?? ??

 उत्तराखंड की स्थायी राजधानी के लिए दीक्षित आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश होने के बाद अब कयासबाजी पर लगाम कस गई है। आठ साल के लंबे समय और कई बार कार्यकाल बढ़ने के बाद आयोग ने स्थायी राजधानी को लेकर अपनी संस्तुतियां देहरादून के पक्ष में दी हैं। भूमि, भूकंपरोधी बंदोबस्त, रेल, हवाई व सड़क जैसे संपर्को में बेहतर स्थिति ने दून के दावे को मजबूत कर दिया है। हालांकि, विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड राज्य में पर्वतीय क्षेत्र में राजधानी स्थापित करने की मांग लंबे अरसे से की जा रही है। गैरसैंण को केंद्र बनाकर की जा रही इस मांग से जुड़ी जन भावनाओं पर भी आयोग गौर कर चुका है। यह बात दीगर है कि तमाम पहलुओं व मानकों के नजरिए से गैरसैंण, आईडीपीएल ऋषिकेश व रामनगर को आयोग ने उपयुक्त करार नहीं दिया। बाद में प्रस्तावित पांच स्थानों में इन तीनों के बाहर होने पर दून के साथ काशीपुर ही विकल्प के रूप में रह गया है। आयोग ने अपनी संस्तुतियां देते हुए सामाजिक, राजनीतिक व तकनीकी पेचीदगियों पर भी गौर फरमाया है। आयोग पर खर्च की बात करें तो लाखों रुपये राजधानी के लिए संभावित चयन स्थलों के सर्वे पर खर्च हुए हैं। लिहाजा, भाजपानीत सरकार के लिए इसे एकाएक ठंडे बस्ते में डालना संभव नजर नहीं आता। भाजपा की अंतरिम सरकार में गठित आयोग का प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस के सत्ताकाल में केवल कार्यकाल ही बढ़ाया गया। लिहाजा, दोनों ही दलों भाजपा व कांग्रेस के लिए इस मामले में सस्ती राजनीति में उलझना आसान नहीं होगा। यह भी तय है कि जन भावनाओं से गहरे जुड़े इस मसले पर आयोग की संस्तुति के सहारे अमल करना आसान कतई नहीं है। दीक्षित आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने से सरकार हरसंभव बचने की कोशिश करती रही है। बाद में यह मुद्दा जोर पकड़ता गया तो सरकार के लिए भी इससे बचना मुमकिन नहीं रह गया। आयोग की रिपोर्ट सदन में पेश कर सरकार ने समझदारी दिखाई है। रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अब सरकार की मंशा पर सवाल उठाने का मौका विपक्ष के हाथ से निकल चुका है। ऐसे में जरूरी है कि अब स्थायी राजधानी के लिए सर्वदलीय सहमति बनाने की ओर कदम बढ़ाए जाएं।

 

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