दीक्षित आयोग का गठन कुछ उत्तराखण्ड राज्य और विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र की खिलाफत करने वाले राजनेताओं ने बनाया। ये राजनेता बड़ी दूरदृष्टि वाले थी, इन्हें तभी भान हो गया था कि कल एक दिन पहाड़ खाली होंगे और तराई में ही जनदबाव बनेगा और उन्होंने राज्य गठन से ही तराई की राजनीति शुरु कर दी, बार-बार देहरादून से बाजपुर हैलीकाप्टर उड़ने लगे। तराई विकास पार्टी की बातें होने लगीं। इन नेताओं की सोच यह थी कि कल दे दिन जब अधिसंख्य विधायक तराई के होंगे और अगर राजधानी गैरसईंण होगी तो उन्हें अपने काम-काज के लिये पहाड़ में चढ़ना होगा। जिन्दगी भर तराई में रहे और लखनऊ की आबो-हवा लगे इन स्वयं भू नेताओं ने सोचा कि कौन जाये पहाड़, हमें यहीं रहना है, तो राजधानी पास में हो। इसलिये जान बूझकर इस मसले को उलझाने के लिये आयोग बना दिया गया।
कोई यह बताये जनमत सर्वैक्षण से बड़ा और माध्यम लोकतंत्र में क्या हो सकता है?
कोई यह बताये कि गैरसैंण के वासियों को कठिन जलवायु, ढलान, बाढ़ संभावित, भूकम्प संभावित क्षेत्र में क्यों रहने दिया जा रहा है, जब कि दीक्षित आयोग का कथन है कि यह स्थान रहने लायक बिल्कुल नहीं है, तो क्यों इन १०००-१२०० लोगों का जीवन सरकार दांव पर लगा रही है, इन्हें कहीं पुनर्वासित क्यों नहीं किया जा रहा?
कोई मुझे यह बताये कि यह अर्जिता बंसल कौन हैं< जिन्होंने जनमत सर्वेक्षण किया राजधानी के लिये, मैं भी उत्तराखण्ड में ही रहता हूं और जब से यह आयोग बना, तब से कोई ऐसा समाचार मैने नहें देखा कि इस नाम का कोई महानुभाव हमारी राजधानी के लिये सर्वे कर रहा है।
रिपोर्ट मे और भी कई भ्रामक तथ्य हैं मसलन, रिपोर्ट के अनुसार कर्णप्रयाग समुद्र तल से 50 मीटर नीचे है। गैरसैंण के लिए पानी अलकनंदा से लाने की बात कही गई है, जबकि रामगंगा व पिंडर नदी गैरसैण से ही होकर बहती हैं। बालावाला- हर्रावाल को जौलीग्रांट से छह किमी. दूर बताया गया है। जो वास्तव में 16 किमी. से कम नहंी है। रिपोर्ट में चौखुटिया को चमोली जिले में बताया गया है, जबकि यह अल्मोड़ा जिले की तहसील है। इतने भ्रामक तथ्यों वाली रिपोर्ट हैं!
बेंगलुरु, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, चेन्नई, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, मुंबई का जिक्र आयोग ने किया कि ये भी राज्य के केन्द्र में नहीं हैं। तो क्या आयोग हमें यह सजेस्ट कर रहा है कि मेरी नजर में जो वेवकूफी इन राज्यों ने की, वह हम भी कर लें।
हिमालयी राज्यों, जम्मू कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड और त्रिपुरा की राजधानियां राज्य के केन्द्र में हैं, तो इन हिमालयी और पर्वतीय राज्यों में मात्र उत्तराखण्ड के लिये यह कैसे किया जाय कि पूरे राज्य से औसतन लगभग ५०० कि०मी० दूर देहरादून को राजधानी बना दिया जाय?
गैरसैंण की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से निकटता कम होना इसके विपक्ष में बताया गया है, राष्ट्रीय राजधानी में इलाज के अलावा उत्तराखण्ड के आदमी का कोई काम नहीं पड़ता है, मंत्रीगणों का जरुर काम पड़ता है और वे हैलीकाप्टर से जाते हैं और गैरसैंण से भी चले जायेंगे।
आयोग कहता है कि रेल मार्ग नहीं है गैरसैंण में, तो भाई ये बता दे कि धारचूला, मोरी, चकराता, हिमनी से आने वाला आदमी किस रेल से देहरादूण आता है, जब इस प्रदेश में रेल आधारित परिवहन व्यवस्था ही नहीं है तो यह तर्क कैसा? किस चीज के लिये राजधानी में रेल चाहिये?