Poll

Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 388041 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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What happened in Uttarakhand Assembly yesterday. Go through this report. The young MLA from UKD torn the report in the assembly itself and alleged that this is not the original report and ruling Govt is misleading people of Uttarakhand.

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राजधानी मुद्दे पर आंदोलनकारी का पारा चढ़ाJul 15, 01:47 am

देहरादून। दीक्षित आयोग की रिपोर्ट में राजधानी को सबसे अधिक उपयुक्त मानने और गैरसैण को अनुकूल न माने जाने को लेकर आंदोलनकारियों में तीव्र आक्रोश है। गैरसैण को ही स्थायी राजधानी बनाने की मांग को लेकर उत्तराखंड महिला मंच और उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के कार्यकर्ताओं ने दीक्षित आयोग का पुतला फूंका। उत्तराखंड महिला मंच ने गैरसैण को राजधानी बनाए जाने की मांग को लेकर विधानसभा कूच किया। यहां बेरीकेडिंग पर पुतला फूंकते से पूर्व उनकी पुलिस से तीखी झड़प भी हुई। यहां पर मुख्यमंत्री को प्रेषित ज्ञापन एसडीएम चकराता को ज्ञापन सौंपा। चेतावनी दी गई कि यदि गैरसैण को राजधानी नहीं घोषित किया गया तो व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा।

मंगलवार को उत्तराखंड महिला मंच की कार्यकर्ता जिला मुख्यालय में एकत्र हुए और गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करने की मांग को लेकर विधानसभा कूच किया। रैली में कार्यकर्ता गैरसैण को राजधानी बनाने के नारे लगाते हुए चल रहे थे। जुलूस को पुलिस ने रिस्पना पुल से पहले बेरीकेडिंग लगाकर रोक लिया। यहां उनकी पुलिस से हल्की नोक झोंक हुई। यहां पर प्रदर्शनकारियों ने प्रदेश सरकार व दीक्षित आयोग के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इसके कुछ देर बाद प्रदर्शनकारी महिलाएं एक थैले में दीक्षित आयोग और प्रदेश सरकार का पुतला लेकर आ गई। अभी पुतले पर मिट्टी तेल छिड़का ही था कि पुलिस ने उनसे पुतला व माचिस छीनने का प्रयास किया। इस पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच खूब गुत्थम-गुत्था भी हुई। पुलिस आंदोलनकारियों से पार न पा सकी और प्रदर्शनकारियों ने पुतले में आग लगा दी। इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री को प्रेषित ज्ञापन एसडीएम चकराता को अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में कहा गया है कि राज्य आंदोलन के दौरान ही गैरसैण को राजधानी बनाए जाने का संकल्प लिया गया था। दीक्षित आयोग की रिपोर्ट यह तय नहीं करेगी की राजधानी कहां हो। चेतावनी दी गई कि यदि गैरसैण को राजधानी घोषित नहीं किया गया तो फिर आंदोलन तेज किया जाएगा।

प्रदर्शन करने वालों में मंच की जिला संयोजक निर्मला बिष्ट, भुवनेश्वरी कठैत, पदमा गुप्ता, हेमलता नेगी व जगदंबा रतूड़ी समेत बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल थीं। दूसरी ओर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच ने कचहरी स्थित शहीद स्मारक के धरना स्थल में एकत्र होकर दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का विरोध किया। वक्ताओं ने आंदोलनकारी रहे विधायकों की इस मामले में कोई प्रतिक्रिया न दिए जाने का भी विरोध किया। बसपा विधायकों द्वारा आंदोलनकारियों के संबंध में प्रश्न पूछे जाने पर उन्हें बधाई दी। इसके बाद आंदोलनकारियों ने प्रिंस चौक पर प्रदेश सरकार व दीक्षित आयोग का पुतला फूंका। इस मौके पर मंच के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती, रामलाल खुंडूडी, गणेश डंगवाल, ओमी उनियाल, अभय कुकरेती, पृथ्वी सिंह नेगी, लताफत हुसैन व राज्य आदोलनकारी संगठन के अध्यक्ष विजयेश नवानी व केपी उनियाल आदि शामिल थे।

हेम पन्त

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ये रिपोर्ट तो दीक्षित आयोग ने प्रस्तुत की है और स्थाई राजधानी के विषय में सुझाव दिये हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा, कांग्रेस व उक्रांद इस मसले पर क्या रुख अपनाते हैं. अब तक तो भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से यह कहकर बच रहे थे कि रिपोर्ट देखने के बाद विचार रखेंगे. अब जबकि दीक्षित आयोग की "अधकचरी" रिपोर्ट सामने आ गई है, जनता राजनैतिक दलों के विचार भी सुनना चाहती है. जनता के मन की बात तो सबको पता ही है, वो गैरसैंण से कम पर मानने को तैयार नही होगी. अगर सरकार ने देहरादून के समर्थन में अलोकतान्त्रिक तरीकों से आगे बढने के लिये कदम बढाये तो राज्य आन्दोलन की तर्ज पर एक और जनसंघर्ष की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.. 

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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There is nothing new in the report it was very much expected and I have already quoted about it on this subject.  Most of the things by the government are decide according to the connivence of the Politicians and Bureaucrats not according to the expectation or mandate of the public.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanks Joshi,

Welcome Back after a long gap.

It is really sad that there is transparency in the report submitted by Dixit Ayog. It seems that UK needs a another agitation for shifting the Capital.

There is nothing new in the report it was very much expected and I have already quoted about it on this subject.  Most of the things by the government are decide according to the connivence of the Politicians and Bureaucrats not according to the expectation or mandate of the public.

vivekpatwal

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न जाने कितनी सरकारें आएँगी और जाएँगी, परन्तु राजधानी का मुद्दा यथावत बना रहेगा ऐसा मेरा मानना है, जब लोहा गरम था तब सरकारे कुछ न कर सकी , अब तो राज्य बने ८-९  साल हो गए हैं, नेता लोग अपना उल्लू सीधा करेंगे और कुछ नहीं,
कांग्रेस ५ साल सत्ता में रही, उन्होंने क्या कर लिया, और अब बीजेपी और उक्रांद सत्ता में बने हुए है बीते २.५ साल से, इन्होने क्या कर लिया, अगर इन्हें राजधानी गैरसैण बनाना ही है तो फिर इन्हें किसी आयोग की जरुरत नहीं होनी चाहिए , उक्रांद आज धरने पर बैठ कर क्या जाताना चाहती है, जबकि वो स्वयं सर्कार का हिस्सा है,

  शायद कई लोगो को मेरे विचार अच्छे न लगे परन्तु सत्य ऐसा ही होता है,

anupam

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Hi All.

Interestingly, Gairsain seems to bleeding amidst the whole halla ballo on 'capital'. A lot of politics have been going on the issue. In fact one of the foremost political party UKD which claims and reiterates from time to time that permanent capital be shifted to Gairsain apparently has double standards. I have with many leaders and I can assure you all that even senior leaders of UKD are themself accept that Gairsain has lost relevance. Parties like Cong and BJP are apparently against Gairsain. Lets be practical and accept that now shifting capital all the way from Dun is going to make no sence. rather the demand should be on shifting few important office to the place and declare it as Summer capital. I dont know how many of the members agree with me but I think this is one of the practicle idea.
anupam

हेम पन्त

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उक्रांद की उहापोह वाली स्थिति ने ही गैरसैंण की मांग को गहरा धक्का दिया है. मुझे तो लगता है कि परिसीमन वाले मसले की तरह ही स्थाई राजधानी के मुद्दे पर भी उक्रांद आन्दोलन के नाम पर औपचारिकता ही निभाता रह जायेगा. जब तक आम लोग आन्दोलन से नहीं जुड़ते इन धरना प्रदर्शनों से कुछ नहीं होने वाला.

दीक्षित आयोग ने देहरादून को स्थाई राजधानी बनाने की सिफारिश की है, इस रिपोर्ट से देहरादून के समर्थन में राजनैतिक दलों की मंशा जाहिर हो गई है, लेकिन क्या आम जनता की भावनाओं की कोई कीमत नही है? दीक्षित आयोग और उससे पहले उप्र सरकार द्वारा बनाये गये आयोग के सामने 65% जनता ने गैरसैण के समर्थन में अपने विचार रखे थे. इन जन-आकांक्षाओं का क्या होगा?  

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is Arvind ji view.

arvind upreti <arvind1965@yahoo.com>
reply-tokumaoni-garhwali@yahoogroups.com

tokumaoni-garhwali@yahoogroups.com

dateWed, Jul 15, 2009 at 1:40 PM
subjectRe: [Kumauni-Garhwali] UTTARAKHAND CAPITAL ISSUE
mailing list<kumaoni-garhwali.yahoogroups.com> Filter messages from this mailing list
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hide details 1:40 PM (39 minutes ago) Reply



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I feel Srinagar Garhwal is abetter option.
 


--- On Wed, 7/15/09, mp.mehta . <mp.mehta@sify.com> wrote:

हुक्का बू

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दीक्षित आयोग का गठन कुछ उत्तराखण्ड राज्य और विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र की खिलाफत करने वाले राजनेताओं ने बनाया। ये राजनेता बड़ी दूरदृष्टि वाले थी, इन्हें तभी भान हो गया था कि कल एक दिन पहाड़ खाली होंगे और तराई में ही जनदबाव बनेगा और उन्होंने राज्य गठन से ही तराई की राजनीति शुरु कर दी, बार-बार देहरादून से बाजपुर हैलीकाप्टर उड़ने लगे। तराई विकास पार्टी की बातें होने लगीं। इन नेताओं की सोच यह थी कि कल दे दिन जब अधिसंख्य विधायक तराई के होंगे और अगर राजधानी गैरसईंण होगी तो उन्हें अपने काम-काज के लिये पहाड़ में चढ़ना होगा। जिन्दगी भर तराई में रहे और लखनऊ की आबो-हवा लगे इन स्वयं भू नेताओं ने सोचा कि कौन जाये पहाड़, हमें यहीं रहना है, तो राजधानी पास में हो। इसलिये जान बूझकर इस मसले को उलझाने के लिये आयोग बना दिया गया।
     कोई यह बताये जनमत सर्वैक्षण से बड़ा और माध्यम लोकतंत्र में क्या हो सकता है?
     कोई यह बताये कि गैरसैंण के वासियों को कठिन जलवायु, ढलान, बाढ़ संभावित, भूकम्प संभावित क्षेत्र में क्यों रहने दिया जा रहा है, जब कि दीक्षित आयोग का कथन है कि यह स्थान रहने लायक बिल्कुल नहीं है, तो क्यों इन १०००-१२०० लोगों का जीवन सरकार दांव पर लगा रही है, इन्हें कहीं पुनर्वासित क्यों नहीं किया जा रहा?

     कोई मुझे यह बताये कि यह अर्जिता बंसल कौन हैं< जिन्होंने जनमत सर्वेक्षण किया राजधानी के लिये, मैं भी उत्तराखण्ड में ही रहता हूं और जब से यह आयोग बना, तब से कोई ऐसा समाचार मैने नहें देखा कि इस नाम का कोई महानुभाव  हमारी राजधानी के लिये सर्वे कर रहा है।
रिपोर्ट मे और भी कई भ्रामक तथ्य हैं मसलन, रिपोर्ट के अनुसार कर्णप्रयाग समुद्र तल से 50 मीटर नीचे है। गैरसैंण के लिए पानी  अलकनंदा से लाने की बात कही गई है, जबकि रामगंगा व पिंडर नदी गैरसैण से ही होकर बहती हैं। बालावाला- हर्रावाल को जौलीग्रांट से छह किमी. दूर बताया गया है। जो वास्तव में 16 किमी. से कम नहंी है। रिपोर्ट में चौखुटिया को चमोली जिले में बताया गया है, जबकि यह अल्मोड़ा जिले की तहसील है। इतने भ्रामक तथ्यों वाली रिपोर्ट हैं!


       बेंगलुरु, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, चेन्नई, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, मुंबई का जिक्र आयोग ने किया कि ये भी राज्य के केन्द्र में नहीं हैं। तो क्या आयोग हमें यह सजेस्ट कर रहा है कि मेरी नजर में जो वेवकूफी इन राज्यों ने की, वह हम भी कर लें।

       हिमालयी राज्यों, जम्मू कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड और त्रिपुरा की राजधानियां राज्य के केन्द्र में हैं, तो इन हिमालयी और पर्वतीय राज्यों में मात्र उत्तराखण्ड के लिये यह कैसे किया जाय कि पूरे राज्य से औसतन लगभग ५०० कि०मी० दूर देहरादून को राजधानी बना दिया जाय?
    गैरसैंण की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से निकटता कम होना इसके विपक्ष में बताया गया है, राष्ट्रीय राजधानी में इलाज के अलावा उत्तराखण्ड के आदमी का कोई काम नहीं पड़ता है, मंत्रीगणों का जरुर काम पड़ता है और वे हैलीकाप्टर से जाते हैं और गैरसैंण से भी चले जायेंगे।
       आयोग कहता है कि रेल मार्ग नहीं है गैरसैंण में, तो भाई ये बता दे कि धारचूला, मोरी, चकराता, हिमनी से आने वाला आदमी किस रेल से देहरादूण आता है, जब इस प्रदेश में रेल आधारित परिवहन व्यवस्था ही नहीं है तो यह तर्क कैसा? किस चीज के लिये राजधानी में रेल चाहिये?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hi All.

Interestingly, Gairsain seems to bleeding amidst the whole halla ballo on 'capital'. A lot of politics have been going on the issue. In fact one of the foremost political party UKD which claims and reiterates from time to time that permanent capital be shifted to Gairsain apparently has double standards. I have with many leaders and I can assure you all that even senior leaders of UKD are themself accept that Gairsain has lost relevance. Parties like Cong and BJP are apparently against Gairsain. Lets be practical and accept that now shifting capital all the way from Dun is going to make no sence. rather the demand should be on shifting few important office to the place and declare it as Summer capital. I dont know how many of the members agree with me but I think this is one of the practicle idea.
anupam

Anupam Ji,

Thanks for sharing your views on this issue. I think people would see the Capital only in Gairsain and summer capital may hardly be accepted by them. I believe it has some finacial burden on the State Govt also like J&K. They spend crs of Rupees every yr on shifting the capital during summer and winter season.

 

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