उत्तराखण्ड का प्राचीन इतिहास को देखें तो हमारे शासको ने कई नये शहर पहाड़ और तराई, दोनों क्षेत्रों में बसाये। यथा- कीर्तिनगर, नरेन्द्रनगर, श्रीनगर, टिहरी, रुद्रपुर, काशीपुर, बाजपुर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चम्पावत आदि-आदि...........गांवों से लोगों को निकालकर नये शहरों को बसाने का काम उन शासकों ने उस समय किया, जब साधन कम थे, टेक्नोलाजी भी विकसित नहीं थी, सीमेण्ट सरिया का तो आविष्कार तक नहीं हुआअ था, बाहरी मजदूरों की संख्या न्यून होती थी।
लेकिन हास्यास्पद बात यह है कि आज के वर्तमान टेक्नोलाजी के जमाने में हम अपनी स्थाई राजधानी के लिये एक नया शहर बसाने की कल्पना करने में भी डर रहे हैं।
इतिहास में एक बात और दर्ज है कि प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वॄतान्त में लिखा है कि जब वह काशीपुर पहुंचा, तो उसने देखा कि पहाड़ों का राजा मैदान में राजधानी बनाकर रहता है। इन पंक्तियों को लोग भले ही गर्व से कोट करते हों, लेकिन मुझे यह पंक्तियां चुभती हैं, व्यंग्यात्मक लगती हैं। अगर हम आज भी नहीं चेते तो कल फिर कोई विदेशी इतिहासकार हमारा उपहास करते हुये लिखेगा कि पहाड़ों की राजधानी पूरे प्रदेश से हट्कर एक कोने और भाबर के इलाके में है।