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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 351676 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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बिन सत्ता में आये भी तो शपथ ली जा सकती है " जैसे कि मै ईश्वर कि शपथ खाता हूँ कि जब तक राजधानी गैरसेन नहीं चली जाती तब तक नहाऊँगा नहीं या फिर चुनाव नहीं लडूंगा

पंकज सिंह महर

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  शंकर सिंह भाटिया, दैनिक जागरण     सन् 2000 में गठित झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड राज्यों में सिर्फ उत्तराखंड में ही स्थायी राजधानी का सवाल दस साल बाद भी मुंह बाए खड़ा है। देहरादून को अंतरिम राजधानी बनाया गया और स्थायी राजधानी तय करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ दी गई लेकिन राज्य सरकार की ओर से गठित दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आने के बाद भी राजधानी का मसला हल नहीं हो पाया है। अगस्त 2008 में दीक्षित आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। सन् 2009 के बजट सत्र में दीक्षित आयोग की सिफारिश को सदन में भी रखा जा चुका है। इसके बावजूद स्थायी राजधानी पर सरकार अभी तक निर्णय नहीं ले सकी। सन् 2001 में मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी सरकार ने स्थायी राजधानी स्थल चयन के लिए दीक्षित आयोग का गठन किया था। भाजपा की अंतरिम सरकार में दीक्षित आयोग ढंग से काम भी शुरू नहीं कर पाया था कि राज्य में पहले चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार गठित हो गई। एनडी तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार गठित होने के बाद लग रहा था कि दीक्षित आयोग अब ठंडे बस्ते में चला जाएगा लेकिन श्री तिवारी ने दीक्षित आयोग को ही स्थायी राजधानी चयन के लिए आगे काम करने का अवसर दिया। योजना और वास्तुकला विद्यालय नई दिल्ली के सहयोग से दीक्षित आयोग ने राजधानी स्थल चयन में करीब आठ साल का समय लगाया। इसके लिए कांग्रेस तथा भाजपा की सरकारों ने आयोग का कार्यकाल आठ बार बढ़ाया। करीब एक करोड़ रुपये आयोग पर खर्च हुआ। आयोग ने अपनी रिपोर्ट चार चरणों में दी। प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरण की रिपोर्ट योजना और वास्तुकला विद्यालय नई दिल्ली की थी। चौथे चरण की रिपोर्ट आयोग के अध्यक्ष वीरेंद्र दीक्षित की सिफारिशों से संबंधित है। इस चौथे चरण की रिपोर्ट में दीक्षित आयोग ने सिर्फ एक सिफारिश की है, जिसमें कहा गया है कि तीसरे चरण की रिपोर्ट को आयोग की सिफारिश माना जाए। संभवत: यही वजह है कि विधानसभा में सिर्फ तीसरे चरण की रिपोर्ट ही रखी गई। आयोग ने देहरादून के नत्थूवाला- बालावाला को स्थायी राजधानी के लिए सबसे उपयुक्त स्थल चुना है। देहरादून के ही चाय बागान को भी उपयुक्त पाया। देहरादून को न चुनने की स्थिति में काशीपुर को भी राजधानी के उपयुक्त पाया गया है। अन्य सभी स्थलों को आयोग ने रिजेक्ट कर दिया है। स्थायी राजधानी स्थल को लेकर राजनीतिक खींचतान की वजह से राज्य सरकार आयोग की सिफारिश हाथ में आने के बाद भी कोई निर्णय नहीं ले पा रही है। इसकी एक वजह आयोग की रिपोर्ट में मौजूद तथ्यात्मक खामियां हो सकती हैं। जैसे आयोग ने उपयुक्त स्थल घोषित किए गए नत्थूवाला-बालावाला की दूरी जौली ग्रांट हवाई अड्डे से पांच किमी बताई है, जबकि यह दूरी 17 किमी है। आयोग की रिपोर्ट में गैरसैंण स्थल को गैरसैंण और चौखुटिया विकासखंड में चमोली जिले के गैरसैंण तथा भिकियासैंण तहसीलों के अंतर्गत बताया गया है जबकि चौखुटिया और भिकियासैंण अल्मोड़ा जिले की तहसीलें हैं और गैरसैंण चमोली जिले की तहसील है। दीक्षित आयोग की रिपोर्ट में इस तरह की ढेर सारी तथ्यात्मक गलतियां हैं। आयोग ने गैरसैंण की भौगोलिक केंद्रीयता को मात देने के लिए जनसंख्यात्मक केंद्रीयता का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। अर्थात जहां जनसंख्या अधिक है, वही स्थल राजधानी के लिए उपयुक्त है। दूसरी तरफ जनमत में हमेशा आगे रहने वाले गैरसैंण को ही मात देने के लिए शोध छात्रा अर्जिता बंसल का एक ऐसा जनमत प्रस्तुत किया है, जिसका कोई आधार ही नहीं बताया गया है।   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यह अहम् मुद्दा अभी भी सरकार के एजेंडे में नहीं नहीं
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जधानी मुद्दे पर दिया धरना, प्रदर्शन
Nov 09, 08:13 pm
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उत्तरकाशी/ कोटद्वार, जागरण कार्यालय : गैरसैंण में राजधानी बनाने सहित अन्य आपदा प्रभावितों को राहत सहायता वितरित करने सहित अनेक मुद्दों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की जिलाकार्यकारिणी ने पर प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा।

राज्य काउंसिल के अह्वान पर मंगलवार को प्रधानमंत्री समेत मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेज वर्ष 1998 में इंद्रावती बाढ़ पीड़ितों को स्वीकृत वरुणावत पैकेज से राहत पैकेज वितरित के भी मांग की है। साथ ही बीपीएल सर्वेक्षण दोबारा कर वास्तविक रूप से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों का चयन हो सके। आयोजित धरने में भाकपा के जिला सचिव महावीर प्रसाद, कमल सिंह राणा, प्रेमसिंह भंडारी, नारायण सिंह, नत्थू राम भट्ट सहित भाकपा के जिला काउंसिल के अन्य सदस्य मौजूद थे।

कोटद्वार: गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग को लेकर युवा बेरोजगार संगठन के बैनर तले विभिन्न संगठनों ने मंगलवार को तहसील परिसर में धरना दिया। धरने के उपरांत मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर कार्रवाई की मांग की गई।

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम मे तहत विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता तहसील परिसर में एकत्रित हुए, जहां से वे गैरसैंण को स्थाई राजधानी को बनाने की मांग को लेकर नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गए। इस मौके पर हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि स्थाई राजधानी बनाने को लेकर कांग्रेस व भाजपा दोनों ही राष्ट्रीय दलों के मन में खोट है इसी के चलते राज्य निर्माण के दस वर्षो बाद भी सूबे की स्थाई राजधानी घोषित नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि सूबे की जनता गैरसैंण को राजधानी के रूप में देखना चाहती है व इसको लेकर पूरा प्रदेश एकमत है। गैरसैंण राजधानी को लेकर मुख्यमंत्री से चुप्पी तोड़ने की मांग करते हुए कहा गया कि राजधानी को लेकर सरकार का ऐसा ही रवैया रहा तो सूबे की जनता भाजपा सरकार के मिशन 2012 फेल कर देगी। इस मौके पर उपजिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' को ज्ञापन प्रेषित कर गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग की गई। सभा में युवा बेरोजगार संगठन के केंद्रीय संयोजक मनीष सुद्रिंयाल, सीपीआई के चंद्रमोहन बड़थ्वाल, उक्रांद नेता विजय खंतवाल, महिला फेडरेशन की जिलाध्यक्ष सरोज देवी, सूरज कुकरेती, कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रमोद राणा, राजेंद्र शाह, जगदीश जोशी, उमेश नौटियाल, जगदीश रावत जितेंद्र चौहान, आरसी कोठारी आदि ने विचार रखे।

पंकज सिंह महर

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  देहरादून: गैरसैण को राजधानी बनाने के सवाल पर सरकार व भाजपा-कांग्रेस की चुप्पी के विरोध में विभिन्न दलों व संगठनों ने धरना दिया। इस मौके पर एक स्वर में मांग उठी कि सरकार अविलंब सर्वदलीय बैठक बुलाकर गैरसैण को राजधानी बनाने की घोषणा करे। सीपीआई, सीपीएम, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखंड महिला मंच व तंजीम-ए-रहनुमाए मिल्लत के कार्यकर्ता पूर्वाह्न गांधी पार्क पहंुचे और मुख्य गेट के आगे धरने पर बैठ गए। इस मौके पर हुई सभा में कहा गया कि राज्य बने एक दशक बीत गया, लेकिन राजधानी के सवाल को भाजपा व कांग्रेस लगातार टालते आ रहे हैं। मुख्यमंत्री आवास पर करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाकर भाजपा सरकार ने उत्तराखंड आंदोलन की भावनाओं को कुचलने का ही कार्य किया। आपदा राहत की ही तरह स्थायी राजधानी के सवाल पर यह सरकार खामोशी ओढ़े हुई है। वक्ताओं ने आपदाग्रस्त परिवारों को फौरी तौर पर मनरेगा के तहत अनिवार्य रूप से काम दिलाने की मांग भी उठाई। कहा गया कि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 9.35 लाख लोग आपदा से प्रभावित हुए हैं, जो कि कुल आबादी का 10 प्रतिशत हैं। ऐसी स्थिति में जहां बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधनों की जरूरत है, वहीं उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग की भी। सभा में सीपीआई प्रदेश सचिव समर भंडारी, सीपीएम प्रदेश सचिव विजय रावत, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के राजीव कोठारी, तंजीम-ए-रहनुमाए मिल्लत के लताफत हुसैन, उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट, सुरेंद्र सिंह सजवाण, वीसी थपलियाल, आनंद चंदोला आदि ने विचार रखे। बाद में मांगों से संबंधित ज्ञापन मुख्यमंत्री को प्रेषित किया गया।     दैनिक जागरण, 11-10-2010   

पंकज सिंह महर

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  देहरादून, जागरण संवाददाता: स्थायी राजधानी नहीं बल्कि स्थायी सरकार होनी चाहिए। यह कथन राज्यपाल माग‌र्े्रट आल्वा ने राज्य स्थापना दिवस पर पुलिस लाइन में आयोजित रैतिक परेड कार्यक्रम में पत्रकारों से कहे। राज्यपाल स्थायी राजधानी प्रकरण पर पूछे गए पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रही थीं। राज्यपाल ने विधानसभा के नए भवन के निर्माण के लिए प्रयास करने की बात भी कही। परेड समापन के बाद राज्यपाल माग‌र्े्रट आल्वा ने पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री उनसे कई बार विधानसभा के नए भवन का निर्माण कराने का आग्रह कर चुके हैं। चूंकि, भवन छोटा है, गैलरी भी कम है और आमजन को परेशानी होती है। इसलिए नए भवन का निर्माण जरूरी है। स्थायी राजधानी के सवाल पर राज्यपाल ने कहा कि स्थायी सरकार होनी चाहिए और यह फैसला राज्य सरकार को करना है कि, राजधानी कहां बनाई जाए।     स्रोत- http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=43&edition=2010-11-10&pageno=3#   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यह स्पष्ट है ना तो BJP और ना ही CONGRESS इस राज्य के हितेषी! कोई भी पार्टी इस अहम् मुद्दे पर कभी खुल के नहीं बोले! उनको चाहिए कुर्सी और ५ साल के सीमेंट किया हुयी कुर्सी!

अपना भला करो, रिश्तेदारों का भला करो. .जनता जाए भाड़ में!   ..

क्यों कोई भी पार्टी के नेता इस बारे में खुल के बोलता है ! चुप्पी मतलब.... दाल में काला !


पंकज सिंह महर

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    दस साल बाद भी स्थायी राजधानी नहीं बनी  Posted On November - 9 - 2010      राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 8 नवंबर। नौ नवम्बर को उत्तराखण्ड 10 वर्ष का हो जायेगा। यूं तो दस साल का सफर कोई बहुत ज्यादा नहीं होता लेकिन खुदा कसम बहुत कम भी तो नहीं होता। दस वर्षों में किसी भी नवजात शिशु का आकार मजबूत तथा उसकी बुनियाद ठोस पड़ती है, लेकिन अफसोस कि शिशु रूपी यह उत्तराखण्ड कुपोषण का शिकार हो गया।
जिस राज्य ने इन दस सालों में पांच मुख्यमंत्री तथा आठ मुख्य सचिव बदलते हुए देखे हों, उस राज्य में तरक्की की कल्पना करना भी बेमानी जैसी लगती है। राज्य के मुख्यमंत्री खजाना खर्चने में मस्त रहे तो नौकरशाही इस खजाने को ठिकाने लगाने में मशगूल रही। राजनीतिक तौर पर भले ही कंगाली आज भी जारी है लेकिन राजनेताओं व ब्यूरोक्रेट के गठजोड़ ने इस राज्य को लूटने का पूरा इंतजाम कर रखा है। जहां उत्तरप्रदेश के जमाने में इस राज्य को दो मण्डलायुक्त चलाते थे वहीं इस राज्य को अब एक मुख्यमंत्री सहित दो -दो मुख्य सचिव चला रहे हैं। कर्मचारियों के वेतन के लिए तो हर दस साल में आयोग समीक्षा करता है लेकिन प्रदेश के नेताओं तथा दायित्वधारियों को प्रमुख सचिवों के बराबर वेतन की मंजूरी जरूर मिल गयी है जो लगभग हर साल बढ़ रही है। इतना ही नहीं यह प्रदेश ब्यूरोक्रेटों के सेवा काल के बाद रोजगार का आशियाना भी बन गया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि शायद उत्तराखण्ड देश का एकमात्र ऐसा राज्य होगा जहां बेरोजगारों के लिए तो रोजगार के अवसर अभी तक नहीं ढूंढे जा सके हैं लेकिन सेवानिवृति के बाद बड़े अधिकारियों के रोजगार के अवसर सुरक्षित हैं। इस राज्य की इससे बड़ी बदकिस्मती क्या हो सकती है कि दस वर्षो के बाद भी इसकी अपनी कोई स्थायी राजधानी नहीं है।
राजनीतिक स्वार्थ की चर्बी राजनेताओं में इस हद तक चढ़ चुकी है कि परिसीमन जैसा गंभीर मुद्दा नेताओं ने स्वीकार कर अंगीकृत तक कर लिया है। नये परिसीमन का आलम यह है कि वर्ष 2032 के बाद उत्तराखण्ड के पहाड़ी हिस्सों में कुल 19 सीटें ही बच पायेंगी, जबकि 51 सीटों के साथ मैदान मालामाल होंगे। साफ है कि आने वाले दो दशक बाद हम एक बार फिर उत्तरप्रदेश के दूसरे संस्करण का हिस्सा होंगे। उत्तराखण्ड के साथ यह बड़ी विडम्बना ही कही जा सकती है कि यहां अब भी उत्तरप्रदेश की मानसिकता वाले राजनीतिज्ञ व ब्यूरोक्रेट राजनीति व नीतिनिर्धारण में पूरी तरह से सक्रिय हैं जिसके चलते राज्य गठन की मूल अवधारणा पूरी नहीं हो पा रही है बल्कि नये परिसीमन तो कुछ पहाड़ विरोधी नेताओं को ऐसे हथियार के रूप में मिला है जो उत्तराखण्ड के स्वरूप को ही बिगाड़ देगा। आगे चल कर यह राज्य उत्तराखण्ड की जगह दो खण्डों में विभक्त न हो जाये, इससे इंनकार नहीं किया जा सकता। विकास का सारा आधारभूत ढांचा जिस तरह से राज्य के तराई के क्षेत्र में ही विकसित किया जा रहा है यह इस बात का रोल माडल है कि तराई मिनी उत्तरप्रदेश के रूप में तबदील होता जा रहा है।
पलायन पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या रही है लेकिन राज्य बनने के बाद यह मर्ज कम होने के बजाय और बढ़ गया है। पहाड़ों के जो लोग पहले लखनऊ, दिल्ली व मुम्बई जैसे स्थानों पर रोजगार की तलाश करते-करते बर्तन मांजते थे नीति निर्धारकों ने उनके  लिए रोजगार के नये दरवाजे खोलने के बजाय बर्तन मलने की देहरादून, हरिद्वार तथा हलद्वानी जैसे स्थानों पर व्यवस्था कर दी है।
दस सालों में पंचायती राज एक्ट, कृषि नीति, शिक्षा नीति और न जाने कितनी ही और नीतियां नहीं बन पायी हैं। विकास की चकाचौंध हलद्वानी, हरिद्वार और देहरादून में ही दिखायी देती है। इसकी एक नन्ही सी किरण भी पहाड़ी गांवों व कस्बों तक नहीं पहुंची है। अपराधी और माफियाओं के लिए सत्ता प्रतिष्ठान आश्रय के केन्द्र बने हुए हैं तो कई नेता उनके कवच का काम कर रहे हैं। राजनीतिक कंगाली इस हद तक गहरा गयी है कि विकास की उम्मीदों के अब सिर्फ  निशां ही बाकी हैं। राज्य का असल नागरिक लाचार और हताश है।
 
साभार-http://dainiktribuneonline.com/2010/11/दस-साल-बाद-भी-स्थायी-राजधा/
 

Devbhoomi,Uttarakhand

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गैरसैंण॒में बने राज्य की राजधानी
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गैरसैंण॒को राज्य की राजधानी॒बनाने एवं शारदा नदी से खनन निकासी शुरू कराने समेत पांच सूत्री मांगों को लेकर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा।
केंद्रीय महामंत्री गंगागिरि॒गोस्वामी के नेतृत्व में उपपा॒कार्यकर्ताओं का एक शिष्टमंडल तहसील कार्यालय पहुंचा जहां उन्होंने तहसीलदार विजयनाथ॒शुक्ल को मुख्यमंत्री के नाम संबोधित॒ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में गैरसैंण राजधानी॒बनाने और शारदा से खनन निकासी शुरू कराने के अलावा पूर्णागिरि॒धाम,॒श्यामलाताल,॒ब्यानधूरा॒को पर्यटन मानचित्र में दर्ज कर उन्हें मोटर मार्ग से जोड़ने, टनकपुर॒तामली॒जौलजीवी॒मोटर मार्ग, सूखीढांग॒डांडा मीडार॒मोटर मार्ग, अमोड़ी॒रीठासाहिब॒मार्ग और टनकपुर॒सेनापानी॒चोरगलिया॒हल्द्वानी मार्ग के निर्माण तथा शारदा नदी के साथ॒ही किरोड़ा॒नाले से भी खनन निकासी शुरू कराने की मांग उठाई है। ज्ञापन देने वालों में दुर्गानाथ,॒भाष्करानंद॒जोशी, दिनेश बाल्मीकि, जसोद॒सिंह, डा.मदन॒मोहन गहतोड़ी,॒शैलेंद्र नाथ शुक्ला, त्रिलोक सिंह बोहरा, बिहारी लाल भगत, उमापति जोशी, प्रकाश चंद्र, तारा दत्त, बचन सिंह, नारायण सिंह, जगदीश चंद्र उप्रेती॒शामिल थे।

http://www.amarujala.com/city/Champawat

Anil Arya / अनिल आर्य

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Dear Sirs,
As a member from mera pahad, I do agree to be Gairsain be capital of Uttarakhand. Looking to the state's well mixed geography & community, we can't afford it like Dilli se Daultabaad. We all are aware about Uttaranchal to Uttarakhand. How much expenses would have been wasted in modifying the name, logo?  We can see the vehicle's number plates UA/UK. Several websites are still showing state name as Uttaranchal.
 
Instead, I am of the opinion that Gairsain should be made summer capital of Uttarakhand. This will create some solution for all voices and also helpful in uniform development in all areas. Dehradun, being the largest city should remain as capital.
 

bobby18

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Greetings everyone
I am new to this forum , so please pardon and avoid if theirs any mistake.
I am a resident of uttarakhand , and i always heard this debate of shifting capital to Gairsain. And my thought conflict with this opinion. My reason are backed by the following reasons:
1).A state of large infrastructure is needed to set a city to be capital and that what dehradoon full fills in all terms.In gairsen all this infrastructure development need a lot more time and cost.
2).For a student like us who have various ( rather say illogical) documentation works with government organisations , cant afford such travelling routes.
3)Doon has all major connectivity with major towns and metros ,Gairsen lacks dat.
4)You cant attract major investment opportunities from FDI at a place like gairsen.

Yes , though i lay emphasis on development on 360 degree view, as only few cities have got the charms of uttrakhand flaour.....rest are still starving for basis need of water and electricity.



 

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