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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 349294 times)

पंकज सिंह महर

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प्रिय जय भाई,
गैरसैंण राजधानी बनने के बाद जिन दुष्प्रभावों की बात आपने की है, उससे हम भी वाकिफ हैं। लेकिन हम देहरादून जैसी या अन्य राजधानी की बात ही नहीं कर रहे हैं। हम तो उत्तराखण्ड की ऐसी राजधानी का सपना देखते हैं, जिसमें उत्तराखण्ड का प्रतिबिंब दिखे, यह शायद आपको भी मालूम होगा कि उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा के मूल में यहां के जटिल पर्वतीय भूभाग का विकास था। दरअसल उत्तराखण्ड को समझने के लिये देहरादून के वातानुकूलित कमरे छोटे पड़ रहे हैं, जिससे निति-नियंताओं की सोच में भी लगातार ऋणात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। राज्य गठन से १० साल बाद जब हम पलायन, बेरोजगारी, नशाखोरी जैसी चीजों का प्रभाव पा रहे हैं, वहीं विकास और बुनियादी सुविधाओं का अभाव। यह क्यों हो रहा है, इसलिये हो रहा है कि देहरादून की आबो-हवा में बढ़ते प्रदूषण के साथ यहां मानसिक और सामाजिक प्रदूषण भी बढ़ रहा है, जिसका प्रभाव प्रदेश के विकास और उसके मानको के निर्धारण पर भी पड़ रहा है। परिसीमन ने बाद बने नये राजनैतिक समीकरणों ने इस राज्य की मूल अवधारणा पर भी कुठाराघात किया है। सरकारें पहाड़ में बुनियादी सुविधायें नहीं दे पा रहीं है और वहां से सक्षम लोग लगातार पलायन कर रहे हैं, जिसका दुष्प्रभाव आबादी पर पड़ता है और आबादी ही इस देश के परिसीमन का आधार है। यदि अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार और परिवहन की व्यवस्थायें हम पहाड़ों में उपलब्ध करा दें तो कोई पागल नहीं हो रहा है कि अपनी २०-३० नाली जमीन और पहाड़ी हवा-पानी छोड़कर हल्द्वानी-कोटद्वार-देहरादून के १८०० स्कवायर फिट के कंक्रीट के दड़बों में आकर रहे।

खैर अब आपके उठाये सवालों का जबाब, दरअसल हम उस गैरसैंण की बात करते हैं जो ४० बाई ६० कि०मी० का इलाका है, भराड़ीसैंण-दूधातोली-गैरसैंण- मेहलचौरी से लेकर चौखुटिया तक की। हमारा जो ब्लू प्रिंट है, वह यह है कि इस सारे क्षेत्र को सरकार एक्वायर कर ले। एक नोटिफिकेशन जारी हो, जिसमेम इस सारे इलाके का परिसीमन कर दिया जाय। इसे भूमाफिया के पनपने की संभावना अपने आप खत्म हो जायेगी।
अब बात करते हैं निर्माणों की, तो हम यह नहीं कहते कि इस सारे क्षेत्र को कंक्रीट का जंगल बना दें, हम कहते हैं कि वहां पर जो भी निर्माण हो वह पहाड़ी परिवेश को ध्यान में रखकर हो, यहां पर जो भी सरकारी भवन बने वह शिमला के जैसे बने। उसके साथ ही यह सारे मकान भूकम्परोधी तकनीक से बने, इनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था हो, मकानों को ऐसे मानकानुसार बनाया जाय जिससे ग्राउंड पर भार कम पड़े, ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने की व्यवस्था हो। साथ ही पूरा राजधानी क्षेत्र सोलर लाईट और विंड एनर्जी से चले। हमने तो सपना देखा था किगांव के इंटर कालेज के भवन जैसी, पाथर के छत वाली विधानसभा बने, जिसमें बड़े-बड़े मोल और बारकियां हो, इस बिल्डिंग से भी उत्तराखण्ड झलके। हम वहां पर माल या मल्टीप्लेक्स नहीं चाहते, हमें मुख्यमंत्री आवास और राजभवन में स्विमिंग पूल या बिलियर्ड रुम नहीं चाहिये। क्योंकि हम समझते हैं कि इस भवन में भी हमारी भेजा हुआ प्रतिनिधि, हम जैसा ही कोई रहेगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुझे लगता है बहुत सारे लोग जिन्हें उत्तराखंड के बारे में ज्यादे पता नहीं और गैरसैंन का नाम है सुना है उनके लिए देहरादून ही राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान है !

जैसे हमारे निशक जी की सरकार ....... ही ही ही..

सारे के सारे मंत्री .. संत्री..... विधायक...... को देहरादून ही अच्छा लगता है!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  उत्तराखंड की राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान   
उत्तराखंड की राजधानी का मुद्दा बरसों से ठंडे बसते में पड़ा हुआ हैं! उत्तराखंड राज्य और राजधानी का मुद्दा बाकायदा जुड़वे मुद्दा हैं और स्थाई राजधानी का मुद्दा उतना ही पुराना हैं जितना की उत्तराखंड राज्य की मांग का मुद्दा! सन १९९४ में, तत्कालीन उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा गठित कौशिक समिति ने उत्तराखंड राज्य गठन पर अपनी प्रस्तुत रिपोर्ट में भी गैरसैण को उत्तराखंड राज्य की राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान बताया था! अब कथित तौर पर हमे एक अध्-कचरा राज्य तो मिल गया हैं, पर राज्य की स्थाई राजधानी का मुद्दा अभी भी ठन्डे बस्ते में पड़ा हुआ हैं! चाहे स्वामी/कोशियारी/खंडूरी की भाजपा सरकार हो अथवा नारायण दत्त तिवाड़ी की कांग्रेस सरकार, सब ने राजधानी के मुद्दे पर टाल-मटोली की! जनता ने समय समय पर राजधानी को गैरसैण स्थानान्तरित करने की मांग की जिसमे श्री मोहन सिंह नेगी जिन्हें बाबा उत्तराखंडी के नाम से भी जाना जाता था, आमरण अनशन करते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे! इनका मत यह हैं की अगर राजधानी मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय ले लिया तो पहाड़ अथवा मैदानी भू-भाग के लोग भड़क सकते हैं! इसीलिए कांग्रेस की सरकार अपने पूरे कार्यकाल के दौरान 'राजधानी चयन आयोग' जिसको सर्वोसर्वा जस्टिस बिरेन्द्र दीक्षित हैं, उनका कार्यकाल बढाते गए, और यही पैमाना खंडूरी ने भी अपनाया जब उन्होंने नवम्बर २००७ में दीक्षित आयोग को अर्ध-वार्षिक विस्तार दे दिया फिर भारी विरोध के चलते दीक्षित कमीशन ने अपनी रिपोर्ट पिछले वर्ष अगस्त में सरकार को सौंप दी, जिसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया हैं! और इसी बीच देहरादून में १८ करोड़ रुपये के मुख्यमंत्री आवास की भी नींव डाल दी!

इस संवाद मंच पर भी समय समय पर राजधानी के चयन को लेकर काफ़ी वाद-विवाद हुए हैं, जिसमे सदस्यों ने अपने अपने मत प्रकट किए! कोई देहरादून का पक्ष रख रहा हैं, कोई गैरसैण का, कोई रामनगर और कोई कालागढ़ का! रही बात देहरादून, रामनगर और कालागढ़ की, तो यह नगर मैदानी क्षेत्र में आते हैं, इससे पर्वतीय राज की मूल अवधारण पर ही प्रश्न-चिन्ह लग जाता हैं! देहरादून में पिछले ८ वर्षों से अस्थाई राजधानी हैं, पर उससे राज्य के विकास कार्य का तो बंटाधार तो हुआ ही हैं! अफसर और मंत्री अपने क्षेत्रों में ना रह कर देहरादून में ही अपनी अय्याशी का अड्डा बनाये हुए हैं! पहाड़ की वास्तविक स्थिति से किसी को कुछ भी भान नहीं हैं! कम से कम गैरसैण राजधानी स्थानान्तरित होने से इन सब अफसर मंत्रियों को पहाड़ में कम से कम १५०-२०० किलोमीटर अन्दर जाना पड़ेगा तभी तो पहाड़ की वास्तविक स्थिति का भान होगा! केवल सड़क, पुल, विद्युत परियोजनाएं ही विकास नहीं हैं! आज पहाड़ में खेती-बाड़ी ख़त्म हो रहीहैं, पशुधन भी ख़त्म हो रहा हैं, पारंपरिक उद्योग भी धीरे धीरे ख़त्म हो रहे हैं! जल, जंगल और जमीन से भी जनता को तरह तरह के नियम कानून बना कर बे-दखल किया जा रहा हैं! जल और जवानी का उत्तराखंड से पलायन आज भी जारी हैं! किसी ने ठीक ही कहा की उत्तराखंड का जल और जवानी उत्तराखंड के काम नहीं आते! अगर प्रदेश की सरकारी हुक्मरानों और मंत्रियों को राज्य की वास्तविक दशा देखनी हैं, तो इनको पहाड़ के अन्दर जाना होगा और यह तभी हो सकता हैं जब राजधानी प्रदेश के नादर स्थापित हो न की प्रदेश की मैदानी सीमा पर!

जहाँ तक बात ई-मेल एवं विडियो कोंफेरेंसिंग की हैं, उसमे मैं यह जोड़ना चाहता हूँ की ई-मेल और विडियो कोंफेरेंसिंग सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर इनकी भूमिका अहम् हैं! इसमे समय की बचत होती हैं तथा तथा संचार का यह एक अहम् हिस्सा हैं! लेकिन यह कोई राजधानी का विकल्प नहीं हैं! राजधानी का स्थापन गैरसैण में हो होना चाहिए और इस स्थान के अनुमोदन में मैं कुछ बिन्दुओं पर बात करूंगा:

१. पर्वतीय राज्य की राजधानी का स्थापना, पर्वतीय राज्य की मूल अवधारण के अनुकूल , पर्वतीय क्षेत्र में ही होनी चाहिए!

२. गैरसैण, गढ़वाल और कुमायूं मंडलों से सामान्तर दूरी पर हैं!

३. गैरसैण सड़क मार्ग से कर्णप्रयाग, रानीखेत, ग्वालदम, अलमोड़ा स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ हैं!

४. गैरसैण से लगभग ७० किलोमीटर की दूरी पर स्थित गौचर में हवाई पट्टी हैं, जिससे वायु मार्ग द्वारा भी यह स्थान जुड़ा हुआ हैं!

५. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल-मार्ग और टनकपुर-बागेश्वर रेल-मार्ग का विस्तार गैरसैण तक किया जा सकता हैं!    http://delightfullyinsomniac.blogspot.com/2010/07/blog-post.html

६. जीवन-यापन हेतु पानी का स्रोत पिंडर एवं रामगंगा नदियों से लिया जा सकता हैं!

७. आज हमारे शहर बर्बादी के कगार पर हैं तथा उनका आधारभूत ढाँचे धूल-धूसरित होने के कगार पर हैं! देहरादून के अस्थाई राजधानी बनने से क्या हश्र हुआ हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं हैं! इसलिए गैरसैण से हमे एक मौका हैं की हम एक सुंदर, योजनाबद्ध तरीके से एक नए शहर का निर्माण करे, जिस पर हर राज्य वासी को गर्व हो!

अधिकतर पहाड़ विरोधी मानसिकता वाले लोग एवं राजनैतिक पार्टियाँ, जिसमे कांग्रेस और भाजपा शीर्ष हैं अपने राजनैतिक स्वार्थों के चलते हमेशा पहाड़ के लोगो को यह कह कर भुलावे में रखने की कोशिश करते हैं की गैरसैण तो केवल एक भावनात्मक मुद्दा हैं जिसका कोई व्यवहारिक आधार नहीं हैं!

जब तक हमारा प्रशासन पहाड़ की तरफ़ रूख नहीं करता, पहाड़ का विकास असंभव हैं! इसलिए उत्तराखंड राज्य की राजधानी गैरसैण में स्थानांतरित करने का मैं अनुमोदन करता हूँ!

kundan singh kulyal

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उत्तराखंड राज्य बने दस साल से भी अधिक समय हो गया हैं इन दस सालों मैं दस पहाड़ी जिले तीन मैदानी जिलों के मुकाबले कहाँ खड़े हैं..... जब तक राजधानी पहाड़ मै नहीं बनती पहाड़ का विकास संभव नहीं है| राजधानी गैरसैण कैसे बनेगी पहाड़ी जनता को इस पर विचार करने की जरुरत है जल्दी से इस पर विचार नहीं कर पाए तो देर हो जाएगी.......
                       कल नहीं आज चाहिए... गढ़ कुमाऊ के बीच मै चाहिए
              अस्थाई नहीं स्थाई चाहिए... दून नहीं गैरसैण चाहिए...
                                                                                                   जय उत्तराखंड... जय मेरा पहाड़...
                                                                                                 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Fight is there for capital.
 
  पहाड़ की राजधानी बने गैरसैंण         जागरण कार्यालय, चम्पावत:
उत्तराखंड लोकवाहिनी ने चेतना आंदोलन के तहत जनयात्रा निकालते हुए पहाड़ की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए लोगों से आगे आने को कहा है। जल, जंगल, जमीन पर जनता के हक की वकालत करते हुए राज्य को लूट रहे राजनैतिक दलों से सावधान रहने की अपील की गई है।
उत्तराखंड लोकवाहिनी, महिला मंच तथा चेतना संस्था के संयुक्त तत्वावधान में निकली इस यात्रा में बोलते हुए डा. शमशेर बिष्ट ने कहा कि यदि यहां के लोग राज्य गठन के दस साल बाद भी नहीं चेते तो इसके गंभीर परिणाम उन्हें देखने को मिलेंगे। उनका कहना था कि दिल्ली की डोर से बंधे सियासी दल राज्य का भला नहीं कर सकते हैं। इन दलों ने तो पहाड़ के विकास को लूटने और खसोटने का कार्य किया है। उन्होंने राज्य के लिए संघर्षशील लोगों से एकजुट होने की अपील की और कहा कि वह जनजागरण के जरिए जनता के बीच इस बात को प्रमुखता से ले जाएं। साथ ही एक ऐसा तीसरा विकल्प तैयार करें जो यहां की जनता की सोच के अनुरूप आदर्श राज्य का निर्माण कर सके। जिससे आंदोलनकारियों और शहीदों के सपनों को पूरा किया जा सके। यात्रा का चम्पावत में तमाम लोगों ने स्वागत किया। इस यात्रा में रामसिंह, मनीष सुंदरियाल, नारायण रावत, पृथ्वीपाल पर्णवाल, बसंत खनी, मनोज त्यागी, जीतू तथा बरद भाई शामिल थे।
 
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7834674.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 गैरसैण को राजधानी बनाने की मांग मुखर           जागरण कार्यालय, पिथौरागढ़:
उत्तराखंड लोक वाहिनी, महिला मंच और चेतना आंदोलन के संयुक्त तत्वावधान में जल, जंगल व जमीन को बचाने तथा गैरसैण को उत्तराखंड को स्थायी राजधानी बनाने के लिए अल्मोड़ा से शुरू जनजागरण यात्रा पिथौरागढ़ पहुंच चुकी है।
स्थानीय नगर पालिका सभागार में बुद्धिजीवियों और समाज कर्मियों के साथ हुई वार्ता में मुद्दों को लेकर बातचीत की गई। उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष डा. शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड के जल, जंगल और जमीन की लूट माफिया तत्वों का हावी होना, राजनीति और प्रशासन में भ्रष्टाचार पहाड़ से लोगों का पलायन, बढ़ती बेरोजगारी यहां प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं। उत्तराखंड की नदियों पर पांच सौ से ज्यादा छोटी बड़ी पन बिजली परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। उनका कहना था कि यदि सारी परियोजनाएं जमीन पर उतर गई तो नदियों पर कंपनियों का कब्जा हो जायेगा और आम पहाड़ी का बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा। नदियों को बचाने की लड़ाई को और अधिक मजबूत करने की जरुरत बताई। उन्होंने बताया कि इस संघर्ष को कारगर बनाने के लिए प्रदेश से बाहर के लोगों से भी समर्थन की दरकार की जा रही है।
आंदोलन के संयोजक मनोज त्यागी ने कहा कि विकास के मौजूदा स्वरुप को नकारना और नई वैकल्पिक विकास की योजना लोगों के सामने रखना आंदोलन का उद्देश्य है। प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समुदाय का निर्णय अंतिम माना जाये। सभा को भाकपा माले के गोविन्द कफलिया, उत्तराखंड विचार मंच के संजय चौहान, जगदीश कालोनी, अधिवक्ता प्रभु नारायण सिंह, देवेन्द्र रौतेला, डा. हरीश जोशी, पूना से आये जीतू, वरद, अल्मोड़ा से नारायण सिंह रावत, मनीष सुंदररियाल ने भी अपने विचार रखे। गांधीचौक में सार्वजनिक सभा करने के बाद यात्रा मुनस्यारी को प्रस्थान करेगी।
 
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7838653.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 गैरसैंण राजधानी बनाए बिना राज्य का विकास संभव नहीं     Jun 10, 09:44 pm   बताएं              जागरण कार्यालय,बागेश्वर: उत्तराखंड लोक वाहिनी की प्रदेश व्यापी जनजागरण यात्रा बागेश्वर पहुंची। यात्रा में शामिल सदस्यों ने नगर में रैली निकाली व चौक बाजार में सभा की। सभा में वक्ताओं ने कहा कि गैरसैंण राजधानी बनाए बिना यहां का विकास संभव नहीं है। कहा कि कांग्रेस व भाजपा ने हमेशा भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। यात्रा के सदस्यों ने बागेश्वर नगर में रैली निकाली व चौक बाजार में सभा की। सभा में लोकवाहिनी के केंद्रीय अध्यक्ष शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि राज्य के जल जंगल, जमीन व खनिजों में अवैध कारोबार को बढ़ावा दिया जा रहा है। माफियाओं ने राजनीति में भी कब्जा किया है। आजादी बचाओ आंदोलन के संयोजक मनोज त्यागी ने कहा कि भ्रष्टाचार के पीछे देशी व विदेशी कार्पोरेट की पूंजी लगी हुई है। युवा बेरोजगार संगठन के मनीष सुंदरियाल ने कहा कि देहरादून राजधानी होने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। उत्तराखंड सांस्कृतिक मंच के नारायण सिंह रावत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट होने को कहा। समापन करते हुए पीयूसीएल के प्रदेश उपाध्यक्ष एनबी भट्ट ने कहा कि जनता को एक और आंदोलन करना होगा। इसके बाद पत्रकारों से वार्ता करते हुए श्री बिष्ट ने कहा कि राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए राज्य में एक और संघर्ष की आवश्यकता है। वार्ता में बसंत खत्री, राम सिंह, पृथ्वीपाल आदि थे। http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7849004.html


विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]पहाड़ से बैर किलै,  गैरसैंण गैर किलै..

हिमालय साहित्य एवं कला परिषद की ओर से चंद्र कुंवर बत्र्वाल को समर्पित कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कविता के माध्यम से गैरसैंण राजधानी के मुद्दे पर सरकारी व्यवस्था पर तीखे प्रहार किए।सोमवार देर शाम सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित कवि सम्मेलन में अनेक कवियों ने अपनी कविता व गजल प्रस्तुत कर तालियां बटोरने की कोशिश की। मंच पर सर्वप्रथम गणेश खुगशाल गणी ने गढ़वाली कविता वल्यां छाल बटी पल्यां छाल तक, गंगा वार बटी गंगा पार तक, बौंण बटी घार तक, रौला बेटी धार तक फोंल्यां छिन स्विणा से की। दिल्ली की लेखा चंद्रा संध्या ने अपना बना लीजिए गजल प्रस्तुत की। गढ़ सम्राट नरेंद्र सिंह नेगी की गढ़वाली कविता पहाड़ से बैर किलै, गैरसैंण गैर किलै, पहाड़ मांगी राजधानी, देहरादून शैर किलै, सोचा धों किलै-किलै, पूछा तौं किलै-किलै ने श्रोताओं की वाहवाही लुटी। रुद्रप्रयाग के ओपी सेमवाल की गढ़वाली कविता मुल्क कु राजा तेरी जय हो गबरू दा, श्रीनगर के नीरज नैथानी की चांदी के चंद सिक्कों पर ईमान नहीं दिया करते, हरदोई के सुखदेव पांडे की भूमिकायें बढ़ी लेख छोटे हुए, दरपणों के भी दोहरे मुखोटे हुए आदि कविताओं को भी श्रोताओं ने खासा पसंद किया। प्रो. उमा मैठाणी, जगदंबा चमोला, अतुल मिश्रा व रामनरेश सिंह चौहान ने भी अपनी कविताओं से श्रोताओं का मनोरंजन किया। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी व पूर्व पालिका अध्यक्ष कृष्णा नन्द मैठाणी ने किया। कार्यक्रम में उमाशंकर थपलियाल, डॉ. एसपी सत्ती, देशपाल नेगी, राकेश भट्ट, संजय पांडे, योगेंद्र कांडपाल, दिनेश सेमवाल, जयकृष्ण पैन्यूली, राजेश जैन, संदीप रावत समेत अनेक लोग उपस्थित थे। संचालन नीरज नैथानी व राकेश भट्ट ने किया।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7899166.html[/center]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Exactly very good lines.
 
I was in haldwani yesterday.Saw a news clipping some people have started agitation for Doon to be permanent capital of uttarakhand.
 
This issue is being politicised now.
 
पहाड़ से बैर किलै,  गैरसैंण गैर किलै..

हिमालय साहित्य एवं कला परिषद की ओर से चंद्र कुंवर बत्र्वाल को समर्पित कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कविता के माध्यम से गैरसैंण राजधानी के मुद्दे पर सरकारी व्यवस्था पर तीखे प्रहार किए।सोमवार देर शाम सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित कवि सम्मेलन में अनेक कवियों ने अपनी कविता व गजल प्रस्तुत कर तालियां बटोरने की कोशिश की। मंच पर सर्वप्रथम गणेश खुगशाल गणी ने गढ़वाली कविता वल्यां छाल बटी पल्यां छाल तक, गंगा वार बटी गंगा पार तक, बौंण बटी घार तक, रौला बेटी धार तक फोंल्यां छिन स्विणा से की। दिल्ली की लेखा चंद्रा संध्या ने अपना बना लीजिए गजल प्रस्तुत की। गढ़ सम्राट नरेंद्र सिंह नेगी की गढ़वाली कविता पहाड़ से बैर किलै, गैरसैंण गैर किलै, पहाड़ मांगी राजधानी, देहरादून शैर किलै, सोचा धों किलै-किलै, पूछा तौं किलै-किलै ने श्रोताओं की वाहवाही लुटी। रुद्रप्रयाग के ओपी सेमवाल की गढ़वाली कविता मुल्क कु राजा तेरी जय हो गबरू दा, श्रीनगर के नीरज नैथानी की चांदी के चंद सिक्कों पर ईमान नहीं दिया करते, हरदोई के सुखदेव पांडे की भूमिकायें बढ़ी लेख छोटे हुए, दरपणों के भी दोहरे मुखोटे हुए आदि कविताओं को भी श्रोताओं ने खासा पसंद किया। प्रो. उमा मैठाणी, जगदंबा चमोला, अतुल मिश्रा व रामनरेश सिंह चौहान ने भी अपनी कविताओं से श्रोताओं का मनोरंजन किया। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी व पूर्व पालिका अध्यक्ष कृष्णा नन्द मैठाणी ने किया। कार्यक्रम में उमाशंकर थपलियाल, डॉ. एसपी सत्ती, देशपाल नेगी, राकेश भट्ट, संजय पांडे, योगेंद्र कांडपाल, दिनेश सेमवाल, जयकृष्ण पैन्यूली, राजेश जैन, संदीप रावत समेत अनेक लोग उपस्थित थे। संचालन नीरज नैथानी व राकेश भट्ट ने किया।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7899166.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जैसा है आपको विदित होगा मेरापहाड़ एव म्यार उत्तराखंड ग्रुप ने इस मुद्दे को अपने पोर्टल और संस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से जीवित रखा है नहीं तो राजनीतिक गलियारों में सत्ता की दौर में लोग इस अहम् मुद्दे को भूलते जा रहे है !

हर साले हमारे टीम गैरसैंन की यात्रा करते है. इस बार भी म्योर उत्तराखंड की टीम १४ अगस्त से गैरसैंन की यात्रा कर रहे है ..

आवो शपथ ले उन शहीदों की जिन्होंने इस राज्य एव राजधानी के लिए अपने प्राण निछावर किये !

गैरसैंन में ही पहाड़ का विकास छुपा है .....

न की देहरादून..
 

 

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