उत्तराखंड की राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान
उत्तराखंड की राजधानी का मुद्दा बरसों से ठंडे बसते में पड़ा हुआ हैं! उत्तराखंड राज्य और राजधानी का मुद्दा बाकायदा जुड़वे मुद्दा हैं और स्थाई राजधानी का मुद्दा उतना ही पुराना हैं जितना की उत्तराखंड राज्य की मांग का मुद्दा! सन १९९४ में, तत्कालीन उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा गठित कौशिक समिति ने उत्तराखंड राज्य गठन पर अपनी प्रस्तुत रिपोर्ट में भी गैरसैण को उत्तराखंड राज्य की राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान बताया था! अब कथित तौर पर हमे एक अध्-कचरा राज्य तो मिल गया हैं, पर राज्य की स्थाई राजधानी का मुद्दा अभी भी ठन्डे बस्ते में पड़ा हुआ हैं! चाहे स्वामी/कोशियारी/खंडूरी की भाजपा सरकार हो अथवा नारायण दत्त तिवाड़ी की कांग्रेस सरकार, सब ने राजधानी के मुद्दे पर टाल-मटोली की! जनता ने समय समय पर राजधानी को गैरसैण स्थानान्तरित करने की मांग की जिसमे श्री मोहन सिंह नेगी जिन्हें बाबा उत्तराखंडी के नाम से भी जाना जाता था, आमरण अनशन करते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे! इनका मत यह हैं की अगर राजधानी मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय ले लिया तो पहाड़ अथवा मैदानी भू-भाग के लोग भड़क सकते हैं! इसीलिए कांग्रेस की सरकार अपने पूरे कार्यकाल के दौरान 'राजधानी चयन आयोग' जिसको सर्वोसर्वा जस्टिस बिरेन्द्र दीक्षित हैं, उनका कार्यकाल बढाते गए, और यही पैमाना खंडूरी ने भी अपनाया जब उन्होंने नवम्बर २००७ में दीक्षित आयोग को अर्ध-वार्षिक विस्तार दे दिया फिर भारी विरोध के चलते दीक्षित कमीशन ने अपनी रिपोर्ट पिछले वर्ष अगस्त में सरकार को सौंप दी, जिसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया हैं! और इसी बीच देहरादून में १८ करोड़ रुपये के मुख्यमंत्री आवास की भी नींव डाल दी!
इस संवाद मंच पर भी समय समय पर राजधानी के चयन को लेकर काफ़ी वाद-विवाद हुए हैं, जिसमे सदस्यों ने अपने अपने मत प्रकट किए! कोई देहरादून का पक्ष रख रहा हैं, कोई गैरसैण का, कोई रामनगर और कोई कालागढ़ का! रही बात देहरादून, रामनगर और कालागढ़ की, तो यह नगर मैदानी क्षेत्र में आते हैं, इससे पर्वतीय राज की मूल अवधारण पर ही प्रश्न-चिन्ह लग जाता हैं! देहरादून में पिछले ८ वर्षों से अस्थाई राजधानी हैं, पर उससे राज्य के विकास कार्य का तो बंटाधार तो हुआ ही हैं! अफसर और मंत्री अपने क्षेत्रों में ना रह कर देहरादून में ही अपनी अय्याशी का अड्डा बनाये हुए हैं! पहाड़ की वास्तविक स्थिति से किसी को कुछ भी भान नहीं हैं! कम से कम गैरसैण राजधानी स्थानान्तरित होने से इन सब अफसर मंत्रियों को पहाड़ में कम से कम १५०-२०० किलोमीटर अन्दर जाना पड़ेगा तभी तो पहाड़ की वास्तविक स्थिति का भान होगा! केवल सड़क, पुल, विद्युत परियोजनाएं ही विकास नहीं हैं! आज पहाड़ में खेती-बाड़ी ख़त्म हो रहीहैं, पशुधन भी ख़त्म हो रहा हैं, पारंपरिक उद्योग भी धीरे धीरे ख़त्म हो रहे हैं! जल, जंगल और जमीन से भी जनता को तरह तरह के नियम कानून बना कर बे-दखल किया जा रहा हैं! जल और जवानी का उत्तराखंड से पलायन आज भी जारी हैं! किसी ने ठीक ही कहा की उत्तराखंड का जल और जवानी उत्तराखंड के काम नहीं आते! अगर प्रदेश की सरकारी हुक्मरानों और मंत्रियों को राज्य की वास्तविक दशा देखनी हैं, तो इनको पहाड़ के अन्दर जाना होगा और यह तभी हो सकता हैं जब राजधानी प्रदेश के नादर स्थापित हो न की प्रदेश की मैदानी सीमा पर!
जहाँ तक बात ई-मेल एवं विडियो कोंफेरेंसिंग की हैं, उसमे मैं यह जोड़ना चाहता हूँ की ई-मेल और विडियो कोंफेरेंसिंग सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर इनकी भूमिका अहम् हैं! इसमे समय की बचत होती हैं तथा तथा संचार का यह एक अहम् हिस्सा हैं! लेकिन यह कोई राजधानी का विकल्प नहीं हैं! राजधानी का स्थापन गैरसैण में हो होना चाहिए और इस स्थान के अनुमोदन में मैं कुछ बिन्दुओं पर बात करूंगा:
१. पर्वतीय राज्य की राजधानी का स्थापना, पर्वतीय राज्य की मूल अवधारण के अनुकूल , पर्वतीय क्षेत्र में ही होनी चाहिए!
२. गैरसैण, गढ़वाल और कुमायूं मंडलों से सामान्तर दूरी पर हैं!
३. गैरसैण सड़क मार्ग से कर्णप्रयाग, रानीखेत, ग्वालदम, अलमोड़ा स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ हैं!
४. गैरसैण से लगभग ७० किलोमीटर की दूरी पर स्थित गौचर में हवाई पट्टी हैं, जिससे वायु मार्ग द्वारा भी यह स्थान जुड़ा हुआ हैं!
५. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल-मार्ग और टनकपुर-बागेश्वर रेल-मार्ग का विस्तार गैरसैण तक किया जा सकता हैं!
http://delightfullyinsomniac.blogspot.com/2010/07/blog-post.html६. जीवन-यापन हेतु पानी का स्रोत पिंडर एवं रामगंगा नदियों से लिया जा सकता हैं!
७. आज हमारे शहर बर्बादी के कगार पर हैं तथा उनका आधारभूत ढाँचे धूल-धूसरित होने के कगार पर हैं! देहरादून के अस्थाई राजधानी बनने से क्या हश्र हुआ हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं हैं! इसलिए गैरसैण से हमे एक मौका हैं की हम एक सुंदर, योजनाबद्ध तरीके से एक नए शहर का निर्माण करे, जिस पर हर राज्य वासी को गर्व हो!
अधिकतर पहाड़ विरोधी मानसिकता वाले लोग एवं राजनैतिक पार्टियाँ, जिसमे कांग्रेस और भाजपा शीर्ष हैं अपने राजनैतिक स्वार्थों के चलते हमेशा पहाड़ के लोगो को यह कह कर भुलावे में रखने की कोशिश करते हैं की गैरसैण तो केवल एक भावनात्मक मुद्दा हैं जिसका कोई व्यवहारिक आधार नहीं हैं!
जब तक हमारा प्रशासन पहाड़ की तरफ़ रूख नहीं करता, पहाड़ का विकास असंभव हैं! इसलिए उत्तराखंड राज्य की राजधानी गैरसैण में स्थानांतरित करने का मैं अनुमोदन करता हूँ!