डॉक्टर, वकील, पत्रकार , लेखक आदि समेत राज्य का अधिकाश आमजन चाहता है कि स्थयी राजधानी के मसले को लटकाया ना जाये l स्थायी राजधानी के मुद्दे पर अधिकतर लोगो की राय गैरसैण के पक्ष में है l
देहरादून के वकील, होटल मालिक, व्यवसायी तथा यहाँ प्रस्तावित राजधानी क्षेत्र नाथूवाला के निवासी तक भी यही चाहते है कि राज्य की
राजधानी पहाड़ पर होनी चाहिये l
अब सवाल उठता है कि जब गैरसैण राजधानी को लेकर कहीं कोई विरोध नहीं है तों राज्य के सत्ताधारी दल इस पर फैसला लेने से क्यों बचते रहें हैं ?
सरकार 2-अक्टूबर को गैरसैण में प्रस्तावित केबिनेट की बैठक को दूरस्थ क्षेत्र में विकास की पहल के रूप में प्रचारित कर रही हैं, क्या यह काम देहरादून में बैठकर नहीं हो सकता ? अगर नहीं, पहाड़ की समस्याओं को समझने के लिये पहाड़ पर ही केबिनेट का बैठना जरूरी है तों फिर दूरस्थ सीमान्त जिलो उत्तरकाशी, चमोली एवं पिथोरागढ़ का कोई एक स्थान क्यों नहीं ? गैरसैण में आज हर वो सुविधा मौजूद है जो उसे तथाकथित विकास की दृष्टि से पिछड़ा तों कतई साबित नहीं करता ! फिर यह पिछड़ेपन का प्रचार क्यों ?
गैरसैण को लेकर इन लम्पट राजनेताओं की ये शोशेबाजी कब बन्द होगी ? क्यों बार-बार गैरसैण के नाम पर अपने फायदे की राजनीती कर वास्तविक राज्य आंदोलकारियों के जख्मो को कुरेदने का काम करते है ?
सरकार 2-अक्टूबर को गैरसैण में प्रस्तावित केबिनेट की बैठक को स्थायी राजधानी के सवाल पर जोडने की हिम्मत क्यों नहीं दिखा पा रही है ?
(आभार:दैनिक हिन्दुस्तान)