Author Topic: Uttarakhand Suffering From Disaster - दैवीय आपदाओं से जूझता उत्तराखण्ड  (Read 102797 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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गिरगांव में फिर धंसने लगी धरा
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पिथौरागढ़ की आपदाग्रस्त मुनस्यारी तहसील के गिरगांव में फिर खतरा मंडराने लगा है। गांव की जमीन लगातार धंस रही है। पिछले एक माह में गांव में करीब एक इंच भूमि धंस गई है। इसके चलते पांच मकानों में दरारें आ चुकी हैं। गांव के एक प्राथमिक स्कूल भवन के दरवाजे भूमि धंसने के बाद नहीं खुल पा रहे हैं। ऐसे में विद्यालय की कक्षाएं अन्यत्र संचालित की जा रही हैं।

थल-मुनस्यारी मार्ग में स्थित गिरगांव क्षेत्र विगत कई वर्षो से भूगर्भीय हलचलों से प्रभावित है। इस वर्ष सितम्बर माह की भारी वर्षा से इस गांव की जमीन धंसने लगी थी। इस दौरान गिरगांव के 28 मकानों में दरारें आ गई। यह मकान अब रहने योग्य नहीं हैं। गांव की दशा देखते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने गांव का निरीक्षण किया और गांव के हालातों से शासन को अवगत कराया। इसके बाद भू वैज्ञानिक भी क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने स्थिति का जायजा लिया। बीते माह प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक ने भी गांव का हवाई सर्वे किया था।

गिरगांव में अभी भी भूमि धंसाव जारी है। जमीन धंसाव से बहादुर सिंह, कुंदन सिंह , गोवर्धन सिंह, पोखर सिंह और खिला देवी के मकानों में दरारें आ चुकी हैं। वहीं प्राथमिक विद्यालय चौड़ा का भवन धंस चुका है।

क्या कहते हैं भू-वैज्ञानिक

आपदा प्रबंधन विभाग के भू-वैज्ञानिक डा. आरएस राणा का कहना है कि गिरगांव में भूगर्भीय हलचलें हो रही हैं। इसी प्रकार की हलचलें जिले के बौना तौमिक और कनार गांवों में भी हैं। भू-धंसाव के संबंध में रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है। गिरगांव निवासी मुनस्यारी की क्षेत्र प्रमुख पार्वती बाछमी और ग्राम प्रधान त्रिलोक सिंह बृजवाल ने इसकी सूचना प्रशासन को देते हुए ग्रामीणों की सुरक्षा की मांग की है।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6949507.html

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विस्थापन नीति का मसौदा तैयार
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           दैवीय आपदा और परियोजनाओं की वजह से विस्थापन झेल रहे लोगों को राहत दिलाने के लिए राज्य सरकार ने विस्थापन नीति का मसौदा तैयार कर लिया है। मुख्यमंत्री की हरी झंडी मिलने के बाद मसौदा वित्त की सहमति के लिए भेजा गया है।

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में दो सौ से अधिक गांव सालों से जर्जर स्थिति में थे, इस बार अतिवृष्टि ने इनकी संख्या में और इजाफा कर दिया है। अब इस तरह के गांवों की संख्या तीन सौ से अधिक बताई जा रही है। लाख कोशिश करने के बाद भी इन गांवों को विस्थापित करने के प्रयास अब तक सफल नहीं हो पाए हैं।

विस्थापन के लिए एक नीति की जरूरत महसूस की जा रही थी। उत्तराखंड में समस्या सिर्फ आपदा प्रभावित गांवों की ही नहीं है, बल्कि परियोजनाओं की वजह से भी गांवों को विस्थापित करने की जरूरत पड़ रही है। राज्य सरकार ने पहल करते हुए आपदा प्रबंधन विभाग को मसौदा तैयार करने को कहा था। विभाग ने मसौदा तैयार कर लिया है। मुख्यमंत्री की हरी झंडी के बाद अब मसौदे को वित्त की सहमति के लिए भेजा गया है।

सूत्रों के अनुसार विस्थापन नीति के मसौदे में व्यवस्था की गई है कि भूस्खलन आदि की वजह से किसी गांव के एक घर, कुछ घरों या पूरा गांव विस्थापित करने की जरूरत पड़ती है तो प्रभावित परिवार को मकान बनाने तथा खेती की जमीन उपलब्ध कराई जाएगी। जमीन उपलब्ध न होने की स्थिति में प्रभावित परिवार को धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी। यह नीति दैवीय आपदा से प्रभावित परिवारों के साथ ही परियोजनाओं की वजह से विस्थापित होने वाले परिवारों पर भी समान रूप से लागू होगी। राज्य सरकार की इस विस्थापन नीति में भारत सरकार की विस्थापन नीति से काफी कुछ ग्रहण करने का प्रयास किया गया है।

अब तक दैवीय आपदा से प्रभावित परिवारों को क्लेमिटी रिलीफ फंड से आर्थिक सहयोग दिया जाता है। इस नीति को लागू करने के बाद अलग से फंड बनाना पड़ेगा। इसी फंड में विस्थापितों को बसाने के लिए राशि जुटाई जाएगी। वित्त की सहमति के बाद इसे कैबिनेट में ले जाया जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद नीति लागू हो जाएगी।

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  कृपा पर जी रहा है आपदा प्रभावित परिवार
   अरुण मैठाणी, गोपेश्वर
काली घटाओं के कोप से घर जमींदोज हो गया, लेकिन जान बच गई। बेघर हुए परिवारों को प्रशासन ने टेंटों में शरण दिला दी। दो-तीन माह तो उसमें कट गए, मगर कंपकंपाती रातें टेंट के सहारे तो नहीं कट सकतीं। उम्मीद थी कि सरकार मदद करेगी। सरकार से मदद मिली भी, लेकिन यह तो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई। इतने पैसे से मकानों की मरम्मत कराना संभव नहीं था। अब कुछ पंचायत घर में या रिश्तेदारों के यहां अथवा तिरपाल के सहारे सर्दी काटने की तैयारी कर रहे हैं। चमोली जिले के 156 पीड़ित परिवारों की यही कहानी है। प्रशासन ने मानकों का पालन कर दिया, अब सब भगवान भरोसे है।
कर्णप्रयाग जिले के दियारकोट गांव के हरीश व गिरीश के परिवारों की दास्तां राहत के दावों की हकीकत बयां करने के लिए काफी है। इन दोनों भाइयों का घर सितम्बर में हुई भारी बारिश के दौरान भू-स्खलन की चपेट में आ गया। प्रभावित परिवार के सदस्यों को सुरक्षित स्थान पर टेंटों में ठहराया गया। हरीश व गिरीश का कहना है कि दोनों भाईयों को अभी तक राहत राशि के नाम पर कुल 28 हजार रुपए मिले उससे न तो मरम्मत हो सकती है और न ही घर बन सकता है। सर्दी चरम पर है प्रभावित परिवार अपना आशियाना उजड़ने के बाद बिना छत की मकान में तिरपाल डाल रहने को मजबूर है। परिवार में उनकी पत्‍‌नी, बूढ़ी माता व तीन लड़की तथा चार लड़के हैं।
प्रशासन के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाय तो जिले की छ: तहसील व एक उप तहसील में आज भी 42 परिवार पंचायत घर और 53 परिवारों ने रिश्तेदारों के यहां शरण ले रखी है। तहसीलदार कर्णप्रयाग सीएस चौहान ने बताया कि दोनों परिवारों को मानकों के अनुरूप 4-4 हजार त्वरित सहायता और 10-10 हजार तीक्ष्ण आंशिक क्षति के रूप में दिए गए हैं।
'प्रभावित परिवारों को मानकों के अनुरूप राहत राशि वितरित की जा चुकी है, यदि वास्तव में ऐसा है तो दोनों परिवारों को सरकार द्वारा दी जाने वाली आवासीय सुविधा में प्राथमिकता दी जाएगी।'


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7006922.html


 

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क्यों नहीं टूट रही प्रशासन की नींद?
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दैवीय आपदा से कराए जा रहे निर्माण कार्य लगातार सवालों के घेरे में हैं। कभी गुणवत्ता तो कभी कार्यदायी विभाग को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। लोगों और जनप्रतिनिधियों की लाख शिकायतों के बावजूद प्रशासन की नींद अभी तक नहीं टूटी है। जिला प्रशासन ने नगरीय क्षेत्र में १० करोड़ ५५ लाख २१ हजार रुपये की लागत के पुनर्निर्माण कार्य कराने के लिए ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग को कार्यदायी संस्था के रूप में चुना है। ग्रामीण क्षेत्र के कार्यों के लिए बने इस विभाग को नगरीय क्षेत्र में लाकर करोड़ों का कार्य देना अपने आप में जांच का विषय है।
दैवीय आपदा से आरईएस द्वारा १२३ कार्य कराए जा रहे हैं। कार्यदायी संस्था द्वारा कराए जा रहे कार्यों की गुणवत्ता को लेकर आए दिन विवाद हो रहा है। अधिकारी कई बार घटिया, ईंटें तथा अन्य निर्माण सामग्री जब्त कर चुके हैं। नया हरिद्वार, इंडस्ट्रीयल एरिया तथा ऋषिकुल क्षेत्र से घटिया ईंटें जब्त की गईर्ं हैं। नालों पर डाले गए स्लैब टूटने लगे हैं।

 नाला निर्माण में साबूत गोल पत्थर लगा दिए गए हैं। एसडीएम मामले की जांच भी कर चुके हैं। जिन नगरपालिका सभासदों के क्षेत्र में काम हो रहे हैं, उनका आरोप है कि एक भी कार्य गुणवत्ता के मानकों पर खरा नहीं है। दैवीय आपदा राशि की बंदरबांट की गई है। कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए टुकड़ों में काम बांटा गया है।

http://www.amarujala.com/state/Uttrakhand

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आपदा राहत : बेरीनाग में 56 में से केवल दो कार्य शुरू
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बेरीनाग: विभागीय ढिलाई के कारण बेरीनाग तहसील में दैवीय आपदा के 56 कार्यो में से केवल दो कार्य ही शुरू हुए हैं। उपजिलाधिकारी ने इसे गंभीरता से लेते हुए विभागों को कड़ी फटकार लगाई है और एक सप्ताह के भीतर कार्य शुरू करने के निर्देश दिए हैं।

शनिवार को उपजिलाधिकारी पीसी दुम्का ने दैवीय आपदा के कार्यो की समीक्षा बैठक ली। इस दौरान उन्हें पूरे विकासखंड में 56 कार्यो के सापेक्ष केवल दो ही कार्य शुरू होने की जानकारी मिली। जिस पर उन्होंने कार्यो के शुरू नहीं होने पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने डिग्री कालेज मार्ग को पन्द्रह दिनों के भीतर पूरा करने के निर्देश लोक निर्माण विभाग को दिए। साथ ही सभी विभागों को एक सप्ताह के भीतर कार्य शुरू करने का निर्देश दिया। उपजिलाधिकारी ने विभागीय अधिकारियों को प्रत्येक गुरुवार को प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए। उन्होंने कहा कि जनता के कार्यो में किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि किसी भी कार्य में लापरवाही पाए जाने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।


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मोटरमार्ग 20 तक बंद
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रानीखेत: दैवीय आपदा से क्षतिग्रस्त रानीखेत-बूचरी-पंतकोटली हल्का वाहन मोटरमार्ग निर्माण कार्य के चलते बंद कर दिया गया है। यह जानकारी देते हुए लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता ने बताया कि निर्माण के कारण सड़क मार्ग में कई स्थानों पर मलबा आ गया है। जिससे आवाजाही में मुश्किल खड़ी हो गई है। उन्होंने बताया कि मोटरमार्ग को वाहनों के लिए 20 फरवरी तक खोला जा सकेगा। उन्होंने सभी वाहन स्वामियों व चालकों से सहयोग की अपील की है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7304322.html

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पुर्नवास नीति: फाइलों में कैद
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आपदा प्रभावितों के लिए प्रस्तावित पुनर्वास नीति अफसरशाही की लापरवाही की भेंट चढ़ गई। आलम यह रहा कि इस बारे में छह माह पूर्व नए सिरे से शुरू हुई कवायद कागजों में ही सिमट कर रह गई। नतीजतन प्रभावित लोगों की परेशानी बढ़ती जा रही है।

सूबे के नौ जिलों के सौ गांवों को करीब छह साल पूर्व अति संवेदनशील घोषित किया जा चुका है लेकिन इनके पुनर्वास को लेकर प्रयास नहीं किए जा रहे, वह भी तब जबकि सूबे में आपदा के लिए अलग से विभाग काम कर रहा है और केंद्र सरकार आपदा पुनर्वास के लिए राज्य को हर संभव सहयोग करने को तैयार है। राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजना है लेकिन हालात बता रहे हैं कि इसकी भी जहमत नहीं उठाई जा रही है। नतीजा इन गांवों के तीन हजार परिवारों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया। यही नहीं, विभागों ने मुख्यमंत्री कार्यालय को भी इस बारे में गुमराह करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। गत अगस्त में बागेश्वर स्कूल हादसे के बाद हुई विभागीय समीक्षा में जब हकीकत सामने आई तो सरकार की नींद खुली और आपदा पुनर्वास को लेकर काम शुरू करने के निर्देश दिए। तत्कालीन विभागीय अपर मुख्य सचिव ने सभी जिलों के डीएम को पत्र भेज पुनर्वास नीति को लेकर सुझाव के साथ प्रभावित गांवों की स्टेट्स रिपोर्ट भी मंगाई गई ताकि वस्तुस्थिति का पता चल सके लेकिन अफसरशाही की लापरवाही देखिए, छह माह हो गए अभी तक आगे की कोई कार्यवाही नहीं की गई। कई जिलों ने तो रिपोर्ट भी शासन को भेजना मुनासिब नहीं समझा। आपदा प्रबंधन मंत्री खजानदास के मुताबिक इस बारे में अधिकारियों से बात की जाएगी।

इंसेट

इनका होना है पुनर्वास

देहरादून:आपदा प्रभावित गांवों में सर्वाधिक चमोली में 35, पिथौरागढ़ में 23, पौड़ी में 18, टिहरी में 14, उत्तरकाशी चार, बागेश्वर और नैनीताल में दो-दो और अल्मोड़ा और रुद्रप्रयाग के एक-एक गांव हैं। इन्हें पुनर्वासित किया जाना है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7349575.html

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दैवीय आपदा से निबटने में कारगर साबित होंगे प्रशिक्षण
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बागेश्वर: आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष हीरा धपोला ने कहा है कि न्याय पंचायत क्षेत्रों में आयोजित किये जा रहे प्रशिक्षण से दैवीय आपदा से निबटने में सफलता मिलेगी। कहा कि अब प्रत्येक गांव में आपदा न्यूनीकरण प्रशिक्षण आयोजित करने पर विचार किया जा रहा है। यहां जारी एक बयान में उपाध्यक्ष हीरा धपोला ने कहा कि प्रदेश सरकार के आपदा न्यूनीकरण विभाग ने प्रदेश में आपदा की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील गांवों को चिह्नित कर उनमें प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7607359.html

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आंधी तूफान से कपकोट में मकान ध्वस्त, चार घायल
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बागेश्वर: गुरुवार की सायं तूफान से कपकोट के सुलपुई गांव के एक व्यक्ति का दोमंजिला मकान ध्वस्त हो गया। जिससे घर के चार सदस्य घायल हो गए। इसके अलावा पोथिंग गांव में 9 घरों की छतें उड़ गई। तूफान से कई स्थानों में बिजली की लाईनें भी ध्वस्त होने के समाचार हैं।

गुरुवार की देर सायं जनपद के विभिन्न स्थानों में तूफान से व्यापक नुकसान की खबर है। तूफान से कपकोट के सुलपुई गांव निवासी उमेश सिंह कपकोटी पुत्र राम सिंह कपकोटी का मकान ध्वस्त हो गया जिससे उमेश सिंह समेत पत्नी कमई देवी, पुत्र ललित सिंह व पुत्री पुष्पा घायल हो गए जिन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कपकोट में भर्ती किया गया है।

 इसके अलावा पोथिंग गांव निवासी बसंत बल्लभ, नंदा बल्लभ, प्रयाग दत्त, चंद्र बल्लभ, किशन सिंह, दान सिंह, जोगा राम, घनश्याम तथा भैरवी देवी के मकानों की छतें उड़ गई। क्षेत्रीय पटवारियों ने क्षति का आंकलन कर प्रशासन को रिपोर्ट प्रेषित कर दी है।

 इसके अलावा कई गांवों की विद्युत लाईनें भी क्षतिग्रस्त हो गया है। इसके अलावा गरुड़, कांडा आदि स्थानों में तूफान से गोशालाओं की छतें उड़ने का समाचार है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7720562.html

Anil Arya / अनिल आर्य

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वायुसेना रहेगी आपदा राहत के लिए मुस्तैद
संकट की घड़ी में राज्य की हर मुमकिन मदद करेगा केंद्र
देहरादून। उत्तराखंड में पिछले साल आई आपदा के बाद केंद्र सरकार की भी नींद टूटी है। भविष्य में वह संकट की ऐसी घड़ी में इस पहाड़ी राज्य की हर मुमकिन मदद को तैयार रहेगी। राहत कार्यों में राज्य सरकार की मदद के लिए वायुसेना भी चौबीसों घंटे तैयार रहेगी। केंद्र सरकार ने इसका आश्वासन दिया है। उसने राज्य के पहाड़ी इलाकों में खाद्य सामग्री बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही पहुंचाने की नसीहत भी दी है।
वर्ष 2010 में भारी बरसात ने जो विकट हालात पैदा किए किए उससे राज्य में जान-माल का भारी नुकसान हुआ था। प्रदेश सरकार ने इसका अनुमान करीब 21 हजार करोड़ लगाया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने 500 करोड़ रुपये ही दिए। राहत राशि को लेकर केंद्र और राज्य सरकार में ‘वाकयुद्ध’ आज तक जारी है। इन सब के बीच केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि, भविष्य में ऐसी स्थिति पैदा होने पर वह राज्य की मदद में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उसे वायुसेना की मदद तत्काल मिलेगी। वायुसेना को पहले से ही इस कार्य के लिए सतर्क रखा जाएगा। एनडीआर फोर्स भी तैयार रहेगी। जिलों में आपदा राहत नियंत्रण केंद्र 24 घंटे खुले रहेंगे। केंद्र ने यह भी नसीहत दी कि पहाड़ों में मानसून सक्रिय होने से पहले चिकित्सा सुविधाएं और खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित कर दी जाएं। परिवहन सेवा बेहतर करने, 30 जून तक हर 50 किमी पर आपदा प्रबंध बल तैनात करने और बल के लोगों को मौके पर ही खाने-पीने की सुविधा मुहैया कराने के लिए भी कहा गया है। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने ये मानक तैयार किए हैं। प्रमुख सचिव (राजस्व और आपदा प्रबंधन) पीसी शर्मा के अनुसार केंद्र की गाइडलाइन में से ज्यादातर पर राज्य सरकार पहले से अमल कर रही है।
पिछले साल आई आपदा के बाद खुली आंख
चिकित्सा राहत और बचाव के लिए दल 24 घंटे तैयार रहेंगे
बरसात से पहले पहाड़ों में पहुंचाएं राहत सामग्री
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