हमारी फिल्मों को पर्याप्त और व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं मिल पाता है, कई बार ऎसा भी हुआ है कि फिल्म बनकर रिलीज भी हो गई लेकिन हमें पता ही नहीं रहता है कि कोई फिल्म हमारी क्षेत्रीय भाषा में बनी भी है;
मैं जब भी घर जाता हूं तो हल्द्वानी से वी०सी०डी० लाता हूं, पिछली फिल्म मैंने "चेली" देखी थी...!