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उत्तराखंड का चौमुखी विकास ही है एकमात्र श्री माधवानंद भट्ट दंपत्ति का प्रयास और लक्ष्य उत्तराखंड के सपूत श्री माधवानंद भट्ट दंपत्ति का सपना है की उनका राज्य दिन -दूना रात चौगुना विकास करे, इसके लिए यह दंपत्ति दिन-रात के अथक प्रयासों में जुटा हुवा हैं. महाराष्ट्र में रहते हुवे भी अपने मिट्टी की सुगंध वे भूले नही हैं. एक तरफ वो महाराष्ट्र की शान बनकर यहाँ के विकास में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं, तो वही दूसरी ओर यहाँ की मिट्टी में वो अपने पावन जन्मभूमि उत्तराखंड की सुगंध को भी घोलने का प्रयास अनवरत करते जा रहे हैं. श्री माधवानंद भट्ट दंपत्ति यहाँ रहकर उन सब कामो में सदा बढ़ -चढ़ कर भाग लेते हैं जिससे उनकी जन्मभूमि का विकास हो, सभी उत्तराखंडी (चाहे वे अपने राज्य में रह रहे हो या सुदूर किसी दुसरे राज्य में) भाइयो -बहनों को एक मंच पर लाकर अपने जन्मभूमि के विकास में सहयोगी होने का जनजागरण हो.
उच्च शिक्षित श्री माधवानंद भट्ट, इंडियन ओवरसीज बैंक के स्वेच्छानिवृत्य कर्मचारी, और मौजूदा समय में एक सफल व्यवसायी हैं. बिल्डिंग निर्माण के क्षेत्र में नवी मुंबई में आज भी उनकी कंपनी (अनमोल डेवलपर्स) की एक अलग पहचान हैं. उनके दिल में बसे उत्तराखंड की मिट्टी का इसे सुगंध ही कहेंगे, की उनके द्वारा बनाये गए मकानों में लगभग ४०% मकान, उत्तराखंडी भाइयो ने ही खरीदी हैं. आगे चलकर अपने जन्मभूमि की कला-संस्कृति के विकास के लिए उन्होंने जन-जन तक पहुचने वाले माध्यम, फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने सेना के शहीद जाबाज सिपाहियों की विधवाओ की वस्तुस्थिति को लेकर, उत्तराखंडी भाषा में बनने वाली अब तक की सबसे महगी और सम्मानित फिल्म बनाई,"सिपैजी ". अपनी मातृभूमि की कला संस्कृति और प्रतिभाओ के प्रोत्साहन का सिलसिला आगे भी बदस्तूर उनका जारी हैं, और अब तक विविध विषयों पर कई म्यूजिक एल्बम उनकी फिल्म निर्माण कंपनी "श्री अनमोल प्रोड्क्शन" बना चुकी हैं.
अपनी कर्मभूमि महाराष्ट्र की प्रांतीय भाषा मराठी में बनाई उनकी हालिया प्रदर्शित "व्हाट अन आइडिया माय " से उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया की अपने राज्य के स्वाभिमान के साथ -साथ दूसरे राज्यों के प्रति भी उनके दिल में आदर और सम्मान हैं. फिल्म निर्माण के व्यवसाय में उनके कदम से कदम मिलाकर, उनकी सुशिक्षित पत्नी श्री मीनाक्षी भट्ट ने भी उनका बखूबी साथ निभाया हैं. एक सफल गृहिणी, व्यवसायी और मातृत्व की जिम्मेदारी को उन्होंने भी अपने पति के नक़्शे-कदम पर चलकर बखूबी निभाया हैं.
अन्य राज्यों की तरह पलायन की त्रासदी झेल रहे उत्तराखंड की धरती को केंद्र में रखकर, इस सामाजिक समस्या के प्रति आम लोगों में जनजागरण फ़ैलाने के उद्देश्य से, अब उन्होंने एक महत्वाकांक्षी डाक्यूमेंट्री फिल्म "पलायन - आखिर कब तक ?" बनाने का निर्णय लिया हैं, और जिस पर तेजी से काम भी शुरू हो गया हैं.
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M S Mehta