Author Topic: Hindi Film 'Daayen Ya Baayen By' Bela Negi on UK subject - "दायें या बाएँ" फिल्म  (Read 34583 times)

हेम पन्त

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I watched this movie in 2nd Nainital Film Festival yesterday... Bela negi has touched every problem of Pahad thru this movie... Don't miss any chance to see this movie.. My rating 4/5

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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I will also definitely watch this movies. Critics of the movie is also good. I saw only trailer so far.


Devbhoomi,Uttarakhand

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क्या आप में से किसी ने इस फिल्म को देखा है अभी तक ,अगर हाँ तो आप अपना वेव यहाँ सियर कर सकते हैं और अगर कोई भी सदस्य इस फिल्म की सी डी अपलब्ध करवा सकता है तो आप से विनती हैं की आप इस फिल्म की सी डी मुझे भेज सकते है,सी डी को भेजने में जतना भी खर्चा लगेगा वो सब मैं भगतान करूंगा धन्यवाद !

यम यस जाखी

dramanainital

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नैनीताल में आयोजित हुए फ़िल्म महोत्सव में ’दाएँ या बाएँ’ देखने का अवसर मिला.मध्यांतर तक फ़िल्म ने दाएँ या बाएँ देखने का मौका नहीं दिया, मध्यांतर के बाद भी फ़िल्म अपनी गति पकड़े रहती तो खूबसूरती और निखरती.पहाड़ और पहाड़ के जीवन के कितने ही ऐसे पहलू हैं जिन्हें ये फ़िल्म छूते हुए चलती है. बेरोज़गारी,पलायन, नशाखोरी, अन्धविश्वास, अकर्मण्यता, बेहतर शिक्षा का अभाव, पर्यावरण की अनदेखी कर प्राकृतिक संपदा का दोहन इत्यादि.यह विषय अपने आप में इतने महत्वपूर्ण हैं कि हर विषय पर एक स्वतन्त्र फ़िल्म बनाई जा सकती है.लेखिका,निर्देशिका बेला जी यहाँ पर थोड़ा लालची हो गईं, एक ही फ़िल्म में सारे विषयों को ले लिया.हाँ, हर विषय पर अपनी चुटीली टिप्पणी करने में वो जरूर सफ़ल हुईं.
      सुना है कि फ़िल्म का नाम पहले ’ड्राइविंग लाईसेंस’ था, बदल कर ’दाएँ या बाएँ’ किया गया. ये नाम फ़िल्म के कथानक के साथ पूरा पूरा न्याय करता है. आखिर चुनाव करना है दो स्थितियों के बीच, पहाड़ में रहकर रोज़गार के साधन की तलाश या पलायन कर ’मनीआर्डर अर्थशास्त्र’ की यथास्थिती.पटकथा की बुनाई दर्शक को बाँधे रखने में कामयाब है.
      संवाद बहुत से स्थानों पर गुदगुदाते हैं और कहीं कहीं पर खुल कर हँसने के लिये मजबूर करते हैं. कुछ स्थानों पर लगा कि संवाद यदि और पैने होते तो अच्छा होता. पहाड़ की खूबसूरती और उसके परिवेश को सटीक तरीके से कैमरे में कैद किया गया है.संगीत पारम्परिकता के और करीब होता तो फ़िल्म को एक नई ऊँचाई दे सकता था.
      बेला जी ने बहुत ही हिम्मत से काम लिया, और पहाड़ की बात करने के साथ साथ पहाड़ के कलाकारों को भी सामने आने का मौका दिया. दीपक डोबरियाल तो मंझे हुए कलाकार हैं ही, बेला जी जीतेंद्र बिष्ट, भारती भट एवं बाल कलाकार प्रत्यूष से भी अच्छा काम लेने में सक्षम रहीं. ज़हूर आलम एवं धनंजय शाह को कला प्रदर्शन का भरपूर मौका नहीं मिल सका. गिर्दा तो लगा ही नहीं कि फ़िल्म के पात्र हैं, वो गिर्दा जैसे ही लगे.श्रीमती बिष्ट अपनी छोटी सी भूमिका में भी हँसाने में कामयाब रहीं.आरती ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया. सुन्दर का पात्र निभाने वाले कलाकार का नाम याद नहीं आ रहा पर उन्होंने बहुत प्रभावित किया.
      बेला जी के निर्देशन में बनी यह पहली फ़िल्म साफ़ कर देती है कि उनमें एक सफ़ल एवं समर्थ निर्देशक की क्षमता है. उन्होंने फ़िल्म को अर्थोपार्जन का माध्यम न मानकर उसे अपनी बात कहने का माध्यम चुना अन्यथा किसी बाजारू विषय पर फ़िल्म बनाकर वाह वाही लूटने का आसान काम भी वो कर सकतीं थीं.उन्हें यह फ़िल्म दर्शकों तक पहुँचाने के लिये बहुत जद्दोज़हद करनी पड़ी.निर्माताओं को कहना चाहूँगा कि उनकी मानसिकता ने इस फ़िल्म को इसकी सही जगह दिलाने में नकारात्मक भूमिका निभाई. उत्तराखन्ड को केन्द्र में रख कर बनाई गई यह पहली फ़िल्म है. उत्तराखंड में सिनेमाहाँलों की क्या स्थिती ये यह जगविदित है, ऐसे में यह फ़िल्म बनाने का हौसला बेला जी का अपनी जड़ों के प्रति उनका नज़रिया प्रस्तुत करता है.उन्हें अपने आने वाले समय के लिये शुभकामनाओं के साथ साथ इस प्रस्तुती हेतु कोटि कोटि धन्यवाद.
       

हेम पन्त

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Photo :Actors of 'Daayen Ya Baayen
« Reply #114 on: November 01, 2010, 02:37:44 PM »
There was a special screening of "Daaye Ya Baaye" in Nainital Film Festival on 29th October.. Actors of this film were also present during the show.
 
Mr. Jahoor Alam introducing the actors to the viewers after the show.
   

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड के ग्रामीण परिवेश पर आधारित बेला नेगी निर्देशित बहुप्रतिक्षित फिल्म  “दायें या बायें” 29 अक्टूबर 2010 को देश के कुछ चुनिन्दा शहरों के साथ ही 'नैनीताल फिल्म फेस्टिवल ' के पहले दिन प्रदर्शित की गयी. इस फिल्म की लेखिका और निर्देशिका बेला नेगी मूलत: नैनीताल की ही निवासी हैं. इस फिल्म का नैनीताल में प्रदर्शन इसलिये भी खास रहा क्योंकि नैनीताल के ही स्थानीय कलाकारों ने इस फिल्म में कई महत्वपूर्ण रोल निभाये हैं. सभी स्थानीय कलाकार भी फिल्म के विशेष प्रदर्शन के मौके पर उपस्थित थे, सिर्फ गिरीश तिवारी “गिर्दा” को छोड़कर, जिनका अगस्त में देहान्त हो गया था.
 
“दायें या बायें” एक स्वस्थ मनोरंजक फिल्म होने के साथ-साथ पहाड़ की सबसे जटिल समस्याओं की ओर भी दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रही है. फिल्म के माध्यम से बेला नेगी ने कामेडी के बेहतरीन मिश्रण के साथ पहाड़ों में महिलाओं की स्थिति, शराबखोरी, दिशाहीन युवा पीढी, प्राकृतिक सम्पदाओं के अनियन्त्रित दोहन, राजनेताओं की कुटिल चालों के साथ-साथ पिछड़े इलाकों में शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा को भी बखूबी दर्शाया है. यहां तक की जहरखुरानी और जंगल की आग की तरफ भी ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गई है.  पर्वतीय ग्रामीण अंचल की पृष्टभूमि पर बनी शायद यह पहली फिल्म है जिसे इतने बड़े पैमाने पर बनाया गया है. पूरी फिल्म में पहाड़ के लोकजीवन एवं समस्याओं को बेहतरीन ढंग से दर्शाया गया है. बेला नेगी ने एक दृश्य में जागर का समावेश करके पहाड के लोक संगीत को भी फिल्म में स्थान देने की कोशिश की है.
 
पूरी फिल्म में काम करने वाले 1-2 कलाकारों को यदि छोड दिया जाये तो बांकी लोगों ने पहली बार फिल्म में अभिनय किया है. यहां तक की बेला ने ग्रामीण लोगों के रोल में गांव के वास्तविक निवासियों से अभिनय करवाया है. इससे पूरी फिल्म हकीकत केब हुत करीब लगने लगती है. पहाड पर आधारित फिल्म बनाने की बेला की यह ईमानदार कोशिश भावनात्मक तौर पर तो बेहद सफल रही है. देश भर के जाने-माने फिल्म समीक्षक भी इस फिल्म की तारीफ कर रहे हैं. लेकिन आर्थिक आधार पर यह फिल्म कितनी सफल होगी यह देखना दिलचस्प होगा.
 
हेम पन्त

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Home / News  / Movie Reviews / Daayen Ya Baayen

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  Eye TV India Bureau
 
  Cast: Deepak Dobriyal, Pratyush, Bharti Bhatt
 
  Director: Bela Negi
    Critic's I-view         Click for larger view                                          Ramesh Majila played by Deepak Dobriyal of the Vishal Bhardwaj's   'Omkara' fame had left his home in the remote Himalayas to become a film   writer in Mumbai. But unable to make his dreams come true in the harsh   metropolis, he returns to his little hamlet. He wishes to do something     in his   village of   the newly bifurcated state of Uttarakhand out of   the largest populous state of Uttar Pradesh. In these villages, the   womenfolk plough fields and the men folk eat drink and sleep.     
 
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        Deepak's wife  played by Bharti Bhatt and son played by Pratush,   however, don't like the idea of staying in the village, far  away from   worldly facilities of urban life. In spite of all this, Ramesh begins   teaching English   in the village school. Even villagers wonder why   Ramesh   has preferred to stay in the village, where there is hardly any   facility available except for electricity. Though computers have   reached the village, there is none to work on them. Meanwhile Ramesh   wins a big red car in a TV competition! Needless to say, he becomes an   instant hero in the close-knit village community although the car is a   kind of white elephant in the undeveloped backwaters of India, where   there are no roads and not enough money to buy petrol. When Ramesh along   with his friend Sunder decides to go out to   meet the state's chief   minister the entire village gathers to bid him farewell. However, he   meets with a car accident.         
      Click for larger view                                          Critically analyzing the movie, we find that 'Daayen ya Baayein' stands   on the bold shoulders of Deepak Dobriyal; especially because of his true   portrayal of the Uttarakhand's village life. After all, he hails from   there and is one from amongst them. Besides, its director Bela Negi too   is personally involved in the movie. She has not only written the   script,   but has also seen that she does full justice to her script.   So, she stayed for full two months   in a village where there is only   one bus   trip a day. Bela couldn't afford a known star in the cast as   itsthe movie's budget was very limited. In any case, Deepak  and Bela    leave no stone unturned to truly depict each and every,   ranging from   the protagonist Deepak's relationship with his grumbling  wife, his    lively  mother, his  bright  son and his cynical  sister-in-law. The   usual love and quarrel relationship among the middle class family   members of a village is the USP of the movie.     
    Overall, the movie is a success for the lead actor and the   writer-cum-director inasmuch as does convey the deterioration on the     Himalayan range   following the depletion of jungles in the name of   urban development.   
                       All News Material is Copyright © by SmasHits.com


http://ww.smashits.com/true-story-of-a-village/movie-review-8439.html

 

पंकज सिंह महर

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तहलका हिन्दी से साभार-
 
 
फिल्म समीक्षा
फिल्म दाएं या बाएं
निर्देशक बेला नेगी
कलाकार दीपक डोबरियाल, बदरुल इस्लाम, भारती भट्ट
आप एक कटोरी कोई भी फिल्म लीजिए जिसमें अंत से पहले पीछा करने के कुछ सीक्वेंस हों- ‘क’ किसी वजह से ‘ख’ के पीछे है और ‘ख’ किसी वजह से ‘ग’ के पीछे और बीच में कोई कीमती चीज बलि का बकरा बनी हुई है (कहीं यह पैसा होता है, यहां कार है). यहीं ‘दाएं और बाएं’ थोड़ा फंसती है. उसके आखिरी आधे घंटे की कहानी प्रियदर्शन की किसी भी फिल्म की शैली की है और उसे वह शालीन भी बनाए रखना चाहती है. मतलब वह बहुत देर तक बची रहने के बाद एक फ़ॉर्मूला आखिर चुन ही लेती है और उस फ़ॉर्मूले के मुख्य मंत्र को भूल जाती है. हो सकता है कि बेला नेगी उठा-पटक की कॉमेडी से जानबूझकर दूर रही हों लेकिन तब उन्हें पहाड़ी की चोटी पर कार के चढ़ने और लटक जाने के शुद्ध बॉलीवुडी दृश्य से परहेज क्यों नहीं था?
हां तो आप एक कटोरी ‘मालामाल वीकली’ लीजिए (हम फिल्म की कहानी की नहीं, उसके स्वभाव की बात कर रहे हैं), उसमें से पांच चम्मच नकली गांव को हटाकर दस चम्मच उत्तराखंड का एक बिल्कुल सच्चा गांव रख दीजिए, कहानी को कुछ और चम्मच अपने यथार्थ के प्रति ईमानदार बनाइए, छोटे किरदारों में सब एक्टर बुरे रखिए और नायक के किरदार को दीपक डोबरियाल नाम का प्रतिभाशाली तोहफा दे दीजिए, ‘दाएं या बाएं’ तैयार हो जाएगी.
 
आप दूसरी तरफ से भी आ सकते हैं. यदि आप एक कटोरी ‘ब्लू अम्ब्रेला’ लेना चाहते हों तो उसमें से कोई छ:-सात चम्मच सुन्दरता और तीन-चार चम्मच उदासी निकाल दीजिए, ठहरिए मत, घटनाएं बढ़ाइए और गहराई कम कीजिए, हंसी के कई दृश्य जोड़िए और ‘दाएं या बाएं’ तैयार हो जाएगी. लेकिन इस तरह कटोरी-चम्मच लेकर संजीव कपूर खाना बनाना सिखाते हैं और हमारे खयाल से कला के जानकार होने का गुमान रखने वाले लोगों को इस रसोई या दुकानदारी शैली में बात करना शोभा नहीं देता. इसलिए हम निरपेक्ष होकर ‘दाएं या बाएं’ के बारे में सोचें तो तो लगता है कि कुछ बहुत अच्छे लिखे गए दृश्य छोटी भूमिका वाले अभिनेताओं ने बर्बाद कर दिए हैं. बदरुल, मानव, भारती और बच्चे प्रत्यूष के अलावा अधिकांश की डायलॉग डिलीवरी सपाट है और अपने परिवेश को इतनी सच्चाई से दिखाने वाली एक फिल्म को जब-जब आप सच मानकर उससे जुड़ना चाहते हैं, तभी वे अभिनेता आपको परेशान करते हैं.
 
लेकिन ये कमियां व्यंग्य से भरे उन अच्छे दृश्यों के प्रभाव को खत्म नहीं कर पातीं, जिनमें इतनी स्वाभाविकता से बेला ही पहली बार गई हैं. वे सरकारी स्कूल के अध्यापकों और बच्चों को उनकी असलियत के सबसे करीब दिखाती हैं. वे सास-बहू वाले टीवी सीरियलों के गांव तक पहुंचने को बहुत अच्छी तरह पकड़ती हैं. वे उस बूढ़े के बहुत नज़दीक हैं जिसे लगता है कि सरकार उन लोगों को खत्म करके ही दम लेगी. लेकिन कहीं न कहीं आप इसे ‘पीपली लाइव’ को याद करते हुए भी देखेंगे और तब ज्यादा तेज, तीखी और अच्छे अभिनेताओं वाली पीपली लाइव बाजी मार ले जाएगी.
गौरव सोलंकी

Devbhoomi,Uttarakhand

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फिल्म दांयें-बाएं की कुछ और जानकारी है,कैसी चल रही है फिल्म

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जाखी जी,

फिल्म दिल्ली में एक जगह और मुंबई में कुछ जगहों पर ही पदर्शित हुयी! कल बेला जी ने बताया कि इस फिल्म को अन्य शहरों में जैसे देहरादून, नोयडा, गाजियावाद, लखनऊ, अहमदाबाद आदि.

अभी तक जहाँ भी फिल्म प्रदर्शित हुयी है अच्छी फीडबैक मिली है!

 

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