देवभूमि के गीतों पर झूमेगा परियों का देश
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हमें अपनी जड़ों की भले ही परवाह न हो, लेकिन सात समंदर पार बसे प्रवासियों के दिलों में उत्तराखंड थिरकता है। इसलिए उनकी तड़प बार-बार उत्तराखंड को उनके करीब खींच ले जाती है। सोचिए, पोलैंड में कितने उत्तराखंडी रहते होंगे, लेकिन जितने भी हैं, वह पूरी तरह उत्तराखंड के रंग में रंगे हुए हैं। हमारी ही तरह वह वसंत में होली मनाते हैं और शरद् में दीवाली।
वह भी ठेठ उत्तराखंडी अंदाज में और इसमें हमजोली बनने के लिए बाकायदा देवभूमि से लोक कलाकारों को भी आमंत्रित करते हैं। इस 16 अक्टूबर से शुरू हो रहे दीवाली फेस्टिवल में उनके मेहमान होंगे, युवा गढ़वाली गायक रजनीकांत सेमवाल और श्रद्धा पांडेय।
इंडो-पोलिश कल्चरल कमेटी बीते दस साल से पोलैंड में दीवाली फेस्टिवल आयोजित कर रही है। प्रवासी उत्तराखंडियों का यह ऐसा उत्सव है, जिसमें हिमालय का पूरा जीवन-दर्शन झलकता है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो यूरोप में उत्तराखंड साकार हो उठा है।
थड़िया, चौंफला, चांचड़ी, झुमैलो, छोलिया व रवांई नृत्यों की बहार वातावरण में लोक के रंग घोल देती है। गीतों की भाषा से अनभिज्ञ होने के बावजूद संगीत के भावों पर पोलैंडवासी भी जी-भरकर थिरकते हैं। उन्हीं की डिमांड पर पिछले दो बरस से इस दौरान वहां म्यूजिकल वर्कशॉप भी आयोजित की जा रही है। इसमें पोलिश लोगों को उत्तराखंडी लोक संस्कृति से परिचित कराया जाता है।
इस बार दीवाली फेस्टिवल का शुभारंभ 16 अक्टूबर को होगा और 28 अक्टूबर तक इसकी धूम रहेगी। इस उत्सव में उत्तराखंड से अतिथि कलाकार के रूप में युवा गढ़वाली गायक रजनीकांत सेमवाल और श्रद्धा पांडेय भाग ले रहे हैं। सेमवाल उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे गायक हैं, जिन्होंने लीक से हटकर पहाड़ी संगीत को नई पहचान दी। उनकी एलबम 'टिकुलिया मामा' व 'हे रमिये..' को पोलैंड में खासा पसंद किया जाता है। सेमवाल के अनुसार वह 2010 में भी दीवाली फेस्टिवल का हिस्सा बन चुके हैं।
'हम पहाड़ से जितने दूर हैं, उतने ही करीब भी। हम चाहते हैं कि देश-दुनिया में गढ़वाल, कुमाऊं व जौनसार को पहचान मिले। इसलिए मई 2012 में उत्तराखंड महोत्सव के आयोजन पर भी विचार कर रहे हैं। इसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को भी बुलाया जाएगा।'
Source dainik jagran