द्वाराहाट। हिमालय को बचाने और बसाने को लेकर उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों से आये विशेषज्ञों ने अपनी चिन्ता व्यक्त की। सभी ने माना कि बिना यहां से पलायन रोके प्राकृतिक संसाधानों को बचा पाना मुज्किल होगा। विकास के नाम पर बनाये जा रहे विनाशकारी मॉडल से उजड़ते पहाड़ और खतरे में पड़ते हिमालय की हिफ़जत को देश और मानवता के हित में बचाना जरूरी है। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और भूमंडलीकरण के इस दौर में यहां के लोगों की भूमिका को नये सिरे से समझने की जरूरत भी महसूस की गयी। यह आयोजन म्यर पहाड़ ने स्व. विपिन त्रिपाठी की चौथी पुण्य तिथि पर एक व्याख्यानमाला के रूप में किया था। इसमें उत्तराखंडं के अपने-अपने क्षेत्रें के विशेषज्ञों ने हिस्सेदारी की। दो दिवसीय इस कार्यक्रम में हिमालय संबंधी विभिन्न चिन्ताओं पर जानकारों ने विस्तृत विचार रखे। इस मौके पर टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन में अपनी “शहादत देने वाले अमर “शहीद श्रीदेव सुमन और उत्तराखंड राज्य के शिल्पी और प्रखर समाजवादी स्व. विपिन त्र्पिाठी पर पोस्टर भी जारी किये गये।
इस आयोजन के पहले दिन स्व. विपिन त्रिपाठी की चौथी पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रंद्धांजलि दी गयी। द्वाराहाट के हितचिन्तक मैदान में राज्य के विभिन्न हिस्सों से आये आंदोलनकारियों और बुद्धिजीवियों ने उन्हें अपने समय का राजनीतिक चिन्तक बताया। सत्तर के दजक में पहाड़ की युवा चेतना के वाहक के रूप में उनके योगदान को याद किया गया। उस दौर में बन बचाओ आंदोलन में उनके साथ रहे तमाम आंदोलकारी इस मौक पर मौजूद थे। पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त इतिहासकार डा. शेखर पाठक ने उनके दिनों को याद करते हुये कहा कि विपिन त्रिपाठी अपने आप में एक संस्थान थे। हमने उनसे बहुत सीखा। राज्य आंदोलन के दौर में भी जब उनके साथ रहे तो बहस का एक बड़ा मंच तैयार मिलता था। वह विचार के मामले में घोर आग्रही होने के बावजूद हमेजा संवाद बनाये रखते थे। लोकवाहिनी क अध्यक्ष डा. शमशेर सिंह बिष्ट ने उन्हें एक ऐसा नायक बताया जो अपने अन्तिम क्षणों तक मूल्यों के लिए जिया। उन्होंने इस बात पर भी अपना विरोध जताया कि जिस दल को उन्होंने अपने श्रम से सींचा वह अब भाजपा जैसी पार्टी के साथ सरकार में शामिल है। यदि त्रिपाठी होते तो ऐसा कभी नहीं होता। नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन साह ने स्व. त्रिपाठी के विचारों और संघर्षों को और अधिक प्रासंगिक बताया।
उक्रांद के वरिष्टठ नेता काशी सिंह ऐरी ने उनके साथ अपने आंदोलन के दिनों को याद करते हुये कहा कि उन्होंने राज्य की जो परिकल्पना वह यदि उसे मूर्त रूप दिया जाये तो उत्तराखंड एक संपन्न और खुशहाल राज्य होगा। स्व. त्रिपाठी को श्रंद्धांजलि देने वालों में उक्रांद के अधयक्ष डा. नारायण सिंह जन्तवाल, डा. प्रकाश पांडे, जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा, डा. सुरेश डालाकोटी, रंगकर्मी श्रीष डोभाल, आंदोलनकारी प्रताप साही, महेश मठपाल, द्वाराहाट नगर पंचायत के अधयक्ष विजय जोशी, हेम पन्त, दयाल पांडे, पवन कांडपाल, मुकुल पांडे, कैलाश पांडे के अलावा भारी संख्या में लोग शामिल थे। मंच का संचालन अनिल चौधरी और हेम रावत ने संयुक्त रूप् से किया।
दूसरे दिन कुमाऊं विश्वविद्यालय के सभागार में हिमालय बचाने और हिमालय बचाने विषय को लेकर प्रथम स्व. विपिन त्रिपाठी व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ। इसमें अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों ने हिमालय के विभिन्न संदर्भों में अपना व्याख्यान दिया। व्याख्यानमाला का बीज वक्तव्य रखते हुये कार्यक्रम के संयोजक चारु तिवारी ने कहा कि साठ के दशक में समाजवादियों से लेकर दलाई लामा तक हिमालय बचाओ आंदोलन विश्वव्यापी शक्ल लेता रहा। लेकिन जितना यह बढ़ा हिमालय उतना ही टूटता भी गया। गलत नियोजन और हिमालय की उपेक्षा से पहाड़ आज अपने अस्तितव के लिए संघर्ष कर रहा है। मध्य हिमालय विशेषकर उत्तराखण्ड एक ऐसे भयावह मोड़ पर खड़ा है जिसका आभास नीति-नियंताओं को नहीं है। यहां के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यायरणीय खतरों ने पूरे देश के लिए संकट के संकेत दिये हैं। पिछले 10 सालों में पहाड़ में पौने दो लाख मकानों में ताले पड़ गये हैं। 15 लाख लोग स्थाई रूप से पहाड़ छोड़ चुके हें। विकास के विनाशकारी मॉडल के चलते राज्य की सत्रह नदियों पर दो सौ से अधिक बांध बनने हैं। इसमें 700 किलोमीटर नदियां सुरंगों के अन्दर होंगी। 22लाख जनता इन सुरंगों के ऊपर होगी। मोटे तौर पर एक तस्वीर जो उभरती है वह यह है कि इस क्षेत्र को जब तक इसकी हिफाजत करने वाले परंपरागत लोगों के साथ नहीं जोड़ा जायेगा हिमालय सुरक्षित नहीं रहेगा। आज का यह आयोजन इस बात पर केन्द्रित है कि हिमालय रूठेगा देश टूटेगा। इसलिए हिमालय को बचाने और बसाने दोने की जरूरत है।
आयोजन की शुरुआत सुप्रसिद्ध इतिहासकार और पर्यावरणविद् डा. अजय रावत के स्लाइड शो से हुई। उन्होंने इसके माध्यम से मध्य हिमालय की बदलती पारिस्थिकी के खतरों की ओर धयान दिलाया। इस क्षेत्र् के बदलते पर्यावरणीय परिवेज से जीव जन्तुओं और बनस्पतियों को हो रहे खतरों पर उनका यह “ाो केन्द्रित था। इसके माधयम से उन्होंने हिमालयी बनस्पतियों और जीवों पर तस्करों के खतरों और उसमें लिप्त लोागेों को भी दिखाया। यह स्लाइड “ाो एक तरह से हिमालय की सभी चिन्ताओं को एक नई समढ के साथ दूर करने के प्रयासों की महत्वपूर्ण कड़ी थी।
इस व्याख्यान माला की “ाुरुआत करते हुये प्रखर आंदोलकारी ,राजनीतिक विचारक और पत्र्कार पीसी तिवारी ने उत्तराखंड में नई राजनीतिक और सामाजिक चेतना पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि राजनीति के माधयम से आ रही सामाजिक विकृतियों के खिलाQ एक नई चेतना का सूत्र्पात करना होगा तभी हिमालय की हिQाजत की जा सकती हे। इसमें दो नावों में पैर रखने की स्थिति से सभी को बचना होगा क्योंकि इस समय जो स्थिितियां हैं उनसे मुकाबला सामाजिक चेतना लाकर करना है। पंचायत चुनाव के पारिपे्रक्ष्य में उन्होंने कहा कि हमें पंचायतें नहीं ग्राम सरकारें चाहिए।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. लक्ष्मण सिंह बटरोही ने हिमालयी संस्कृति, साहित्य, भा’ाा और बोली को अक्षुण्ण रखने पर जोर दिया। उन्होने इस बात पर आज्चर्य व्यक्त किया कि हिन्दी साहित्य को अपना अमूल्य योगदान देने वाले उत्तराखंउ में सरकारी उपेक्षा से नई साहित्यिक चेतना का उभार नहीं आ पा रहा है। छायावाद के स्तभं सुमित्रनन्दन पंत, नाटकों के पितामह गोबिनन्दवल्लभ पन्त, मौजूदा दौर में ओपेरा के जनक मनोहर “याम जोजी, आंचलिक कहानी के युग पुरु’ा “ौलेज मटियानी, चन्द्रकुंवर बर्थवाल, आदि की इस धारती में साहित्यिक माहौल बनाने के लिए सरकारों की चुप्पी चेतना को कुंद करने का काम कर रही है। साहित्य हमेजा ही समाज के नये पथ के निमार्ण का भागीदार रहा है। डा. बटरोही ने कहा कि हिमालय और विज्ो’ाकर उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में मौजूदा दौर में साहित्य और संस्कृति की अक्षण्णता यहां पलायन को रोकने में और सांस्कृतिक एकता में सहायक हो सकती है।
पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डा. यजोधार मठपाल ने उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक वि’ायों पर अपना सारगर्भित व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि तेजी के साथ बिकती जमीनें यहां के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। तेजी से खाली होते गांव और समय पर रोजगार के विकल्प नहीं ढूंढे गये तो आने वाले समय में यह इस क्षेत्र् के लिए तो खतरनाक है ही देज के लिए भी खतरा हैंं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सामरिक दृ’िट से संवेदनजील हिमालय को हर तरह से बचाना जरूरी है। दुभाग्र्य से उत्तराखंड में जो भी सरकारें आ रही हैं उनकी प्राथमिकताओं में यह सब नहीं हैं। उनहोंने इस बात की सराहना की कि दिल्ली में नई पीड़ी के लोग जिस तरह पहाड़ में आकर लोगों को हिमालय की हिQाजत की बात कह रहे हैं यह निज्चित रूप से एक अच्छी पहल है क्योंकि पलायन का दर्द उनसे अधिाक और कौन समझ सकता है।
उक्रांद के केन्द्रीय अधयक्ष डा. नारायण सिंह जंतवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिमालय को बचाने की बात वास्तव में आज के दौर का मुख्य ऐजेण्डा होना चाहिए। भूमंडलीकरण के इस दोर में जब तेजी के साथ चीजें बदल रही हैं तब उपभोक्तावाद के इस समय में सबकी निगाहें संसाधानों के दोहन पर हैं । सरकारें एक तरह से इस प्रवृत्ति की ऐजेंट बन जाती है। उत्तराखंड में विकास के जितने भी माॅडल आये वह इसी के प्रतिरूप् हैं। इससे विकास तो नहीं हुआ लोगों में निराजा और असुरक्षा का बोधा हुआ। परिणामस्वरूप् गांव खाली होने लगे। जिन लोगों के पारंपरिक रिज्ते प्रकृति के साथ है वही उसे बचाने की सोच रख सकते हैं। वे ही नहीं रहेंगें तो प्रकृति भी कैसे बचेगी। नीति-नियंताओं को अब नये सिरे से इस संकट से निकलने की नीतियों पर विचार करना चाहिए।
उक्रांद के “ाीर्’ा नेता काजी सिंह ऐरी ने अपने अधयक्षीय उद्बोधान में इस बात की जरूरत बताई कि साठ के दजक में जब पूरे देज में हिमालय बचाओं की गूंज उठी तो उस समय की परिस्थितियां और थी। अब हिमालय को दूसरे तरह के खतरे हें। गलत नियोजन से खाली होते पहाड़ों से अब यह आवाज निकलने लगी हैं कि हिमालय को बचाने से पहले इसे बसाओं। यदि गांव-लोग ही नहीं रहें तो हिमालय का अर्थ ही क्या रहेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इसे सेमिनारों और विचार से बाहर निकालकर जनांदोलन के रूप् में परिवर्तित किया जाये। यदि समय रहते यह सब नहीं हुआ तो यह देज के लिए अच्छा नहीं होगा। उन्होंने राज्य आंदोलन को इसी पीड़ा की अभिव्यक्ति बताया।
क्षेत्र्ीय विधाायक और कार्यक्रम के संयोजक पु’पेज .ित्र्पाठी ने सभी का अभार व्यक्त करते हुये कहा कि उत्तराखंड में अपने-अपने क्षेत्र् के विज्ो’ाज्ञों के इस समागम से लगता है कि हिमालय बचाने और बसाने की दिजा में यह बहस बहुत आगे तक जायेगी। उन्होंने कहा कि हमने यह एक “ाुरूआत की थी आने वाले दिनों में इसे एक अभियान के रूप् में चलाया जायेगा। म्यर पहाड़ के संयोजक दयाल पांडे ने सभी का अभार व्यक्त किया।