From : Keshwar Singh Bisht Ji
याद आयेंगे वे लम्हे...
मुंबई. अपनी भूमि से कोसों दूर निकल जाने और अपनी सांस्कृतिक विरासत से छिटक जाने का दर्द कितना गहरा होता है, यह बात तब कहीं महसूस किया जा सकता है, जब अपनी संस्कृति की गहरी भावनाओं से सराबोर किसी 'अपनेÓ से कहीं मुलाकात हो जाए. इस मुलाकात के बाद भावनाओं का जो प्याला छलक जाए, वह किसी समंदर के उफान से कम नहीं. अपना दर्द बांटते-बांटते यह मुलाकात कब खुशियों का सागर बन जाए और भावनाओं का ज्वार कितना ठांठे मारने लगे, यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है.
मुंबई-नवी मुंबई के उत्तराखंडी भी भावनाओं के कुछ ऐसी ही द्वंद्व से जूझते रहे हैं. अपनी जमीं, अपनी बोली और अपनी सांस्कृतिक विरासत से अलग-थलग पड़े प्रवासी उत्तराखंडियों का जनसागर 'जन्मभूमि उत्तरांचलÓ व प्रवासी उत्तराखंडी संस्थाओं द्वारा आयोजित पर्यटन, सांस्कृतिक व हस्तशिल्प मेला 'कौथिग-2010Ó को देखने जब उत्तराखंड भवन भूमि, वाशी, नवी मुंबई पर उमड़ा तो भावनाओं का अथाह सागर डोलने लगा. पहाड़ी व्यंजन, पहाड़ी परिधान, पहाड़ी नृत्य-गीत-संगीत की तीन दिवसीय छटा कुछ ऐसी रही कि मानों नवी मुंबई में तीन दिन के लिए 'देवभूमि उत्तराखंडÓ अपने भव्य रूप में साकार हो उठी हो.
वरिष्ठ पत्रकार श्री नंदकिशोर नौटियाल, भवन निर्माता व राजनीतिज्ञ श्री सुरेश हावरे, उद्योगपति श्री मोहन काला, भवन निर्माता और फिल्म निर्माता श्री माधव भट्टï, हॉकी खिलाड़ी श्री मीर रंजन नेगी व 'चक दे इंडियाÓ फेम चित्रांशी रावत की उपस्थिति एवं जागर सम्राट श्री प्रीतम भत्र्वाण एवं मीना राणा जैसे लोकप्रिय गायक-गायिका की उपस्थिति ने इस सांस्कृतिक मेले को उन सभी रंगों में रंग दिया, जिनकी छटा से कौथिग-2010 खिल उठा. सैकड़ों प्रवासी उत्तराखंडियों की भागीदारी ने इस मेले को यादगार बना दिया.
इसके अलावा 'उत्तराखंड हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषदÓ ने इस पर्यटन, सांस्कृतिक एवं हस्तशिल्प मेले कौथिग-2010 को नयी और खूबसूरत शक्ल प्रदान की. उत्तराखंड के हस्तशिल्पियों की नायाब कारीगरी ने प्रवासियों को अपनी भूली-बिसरी सी जमीं से जोड़ दिया.
उत्तराखंड के हस्तशिल्प व उत्तराखंड के खान-पान से सजे स्टॉल्स ने प्रवासियों को अपने गांवों के घर-आंगन में पहुंचा दिया. 'संस्कृति विभाग, उत्तराखंडÓ द्वारा प्रेषित कलाकारों के बड़े दल-बल ने लोक-गीत-संगीत और लोक-नृत्य का ऐसा समां बांधा कि प्रवासी अपनी सांस्कृतिक विरासत को मन में सहेजते चले गये. इस मेले को सजाने में मुंबई-नवी मुंबई की लगभग सभी संस्थाओं और उनके प्रतिनिधियों ने जो अथक मेहनत की, उसने इस मेले को खूबसूरत शक्ल प्रदान की. सबका तह-ए-दिल से आभार!
-केशरसिंह बिष्ट
मुख्य उप-संपादक,
नवभारत, मुंबई
विशेष
आप सभी के अवलोकनार्थ कौथिग-2010 से संबंधित तस्वीरों का लिंक भेज रहा हूं. देखिएगा और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराइएगा.
धन्यवाद